02-08-2019, 08:50 AM
बूढ़े ने कहा, मैं पहले ही आपको अपनी मजबूरी बता चुका हूँ। वरना आपकी बात क्यों टालता? नूरुद्दीन ने कहा, जैसी आपकी इच्छा। यह कह कर वह गिलास को खुद पी गया। अब हुस्न अफरोज ने एक सेब के दो टुकड़े किए और एक टुकड़ा वृद्ध की ओर बढ़ा कर बोली, शराब नहीं पीते तो फल तो लीजिए, इसे खाने से तो धर्म नहीं रोकता। बूढ़े ने धन्यवाद सहित सेब ले लिया और उसे खाने लगा। हुस्न अफरोज ने फिर गाना शुरू किया। अब बूढ़े पर हुस्न अफरोज का जादू चढ़ने लगा था। नूरुद्दीन पलंग पर जा कर सोने का बहाना करने लगा।
गाना खत्म होने पर हुस्न अफरोज ने शिकायत के स्वर में बूढ़े से कहा, देखिए, इनकी कैसी बुरी आदत है। दो गिलास पी कर ही नींद की गोद में चले जाते हैं। मैं अकेली रह जाती हूँ। अब कृपया आप मुझे अकेला न छोड़ें, मेरे और पास आ कर बैठ जाएँ। बूढ़ा तो उसके नयन-शर से पहले ही बिंध चुका था, वह उसके पास जा बैठा। हुस्न अफरोज समझ गई कि अब इसे पिलाई जा सकती है। उसने शराब का एक गिलास भर कर उसकी ओर बढ़ा कर कहा, देखिए, आपको मेरे सिर की कसम है, इससे इनकार न कीजिए। इसके पीने से जो पाप आप पर पड़ेगा वह मैं अपने सिर लेती हूँ। यह कह कर उसने हाव-भाव के साथ गिलास उसके मुँह से लगा दिया। बूढ़ा उसे पी गया और बचा हुआ आधा सेब भी खा गया। हुस्न अफरोज ने दूसरा गिलास बढ़ाया तो उसने बगैर हिचके पी लिया। इसके बाद उसे नशा चढ़ा तो वह खुद अपने हाथ से भर-भर कर कई गिलास पी गया। इतने में नूरुद्दीन भी पलँग से उठ कर आया और मुस्कुरा कर बोला, बड़े मियाँ, तुम तो बड़े परहेजगार थे, अब क्या हो गया। बूढ़ा ठठा कर हँसा और कहने लगा, मैंने पी कहाँ है, यह तो तुम्हारी साथिन ने जबर्दस्ती मुझे पिलाई है। इसी तरह वे लोग हँसी-खुशी के साथ आधी रात तक बैठे-बैठे मदिरापान करते रहे।
गाना खत्म होने पर हुस्न अफरोज ने शिकायत के स्वर में बूढ़े से कहा, देखिए, इनकी कैसी बुरी आदत है। दो गिलास पी कर ही नींद की गोद में चले जाते हैं। मैं अकेली रह जाती हूँ। अब कृपया आप मुझे अकेला न छोड़ें, मेरे और पास आ कर बैठ जाएँ। बूढ़ा तो उसके नयन-शर से पहले ही बिंध चुका था, वह उसके पास जा बैठा। हुस्न अफरोज समझ गई कि अब इसे पिलाई जा सकती है। उसने शराब का एक गिलास भर कर उसकी ओर बढ़ा कर कहा, देखिए, आपको मेरे सिर की कसम है, इससे इनकार न कीजिए। इसके पीने से जो पाप आप पर पड़ेगा वह मैं अपने सिर लेती हूँ। यह कह कर उसने हाव-भाव के साथ गिलास उसके मुँह से लगा दिया। बूढ़ा उसे पी गया और बचा हुआ आधा सेब भी खा गया। हुस्न अफरोज ने दूसरा गिलास बढ़ाया तो उसने बगैर हिचके पी लिया। इसके बाद उसे नशा चढ़ा तो वह खुद अपने हाथ से भर-भर कर कई गिलास पी गया। इतने में नूरुद्दीन भी पलँग से उठ कर आया और मुस्कुरा कर बोला, बड़े मियाँ, तुम तो बड़े परहेजगार थे, अब क्या हो गया। बूढ़ा ठठा कर हँसा और कहने लगा, मैंने पी कहाँ है, यह तो तुम्हारी साथिन ने जबर्दस्ती मुझे पिलाई है। इसी तरह वे लोग हँसी-खुशी के साथ आधी रात तक बैठे-बैठे मदिरापान करते रहे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.