02-08-2019, 08:48 AM
बूढ़ा और प्रभावित हुआ। कहने लगा, यहाँ सोने में तुम्हें कष्ट होगा। तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें ऐसी जगह ठहराऊँगा जहाँ तुम आराम से सो सको। वहाँ से इस सारे बाग की सैर भी कर सकते हो। नूरुद्दीन ने पूछा, क्या यह बाग आप का है? उसने मुस्कुरा कर कहा, हाँ, यह मेरे बाप की जायदाद है। फिर उसने बाग की एक और आरामदह इमारत में उन्हें ठहराया जहाँ से सारा बाग दिखाई देता था। उसने उन्हें वहाँ की और भी इमारतें दिखाईं। फिर नूरुद्दीन ने रक्षक के हाथ में दो अशर्फियाँ रखीं और कहा कि इससे हम लोगों के लिए सुस्वाद भोजन मँगा दीजिए। बूढ़े ने सोचा कि बहुत अच्छा हुआ कि मैंने ऐसे धनी और सुसंस्कृत आदमी को नहीं मारा। इन अशर्फियों से तो बढ़िया से बढ़िया खाना लाने पर भी मेरे पास बहुत-कुछ बचा रहेगा। अतएव वह उन्हें बाग की बारहदरी में बिठा कर भोजन लाने चला गया। इधर नूरुद्दीन ने चाहा कि ऊपर जा कर सैर करे किंतु जा कर देखा कि जीने में ताला जड़ा था।
बाग का रक्षक भोजन लाया तो नूरुद्दीन ने कहा कि हम ऊपर जा कर भी देखना चाहते हैं, क्या आप हमें दिखा सकेंगे? दरोगा ने ताली निकाल कर ताला खोल दिया। वे दोनों ऊपर जा कर बहुत खुश हुए। नूरुद्दीन ने कहा कि आप कृपा कर के हम लोगों को यहीं सोने की अनुमति दे दीजिए।
उसने यह भी कहा कि आप भी हमारे साथ भोजन करें और यहीं आराम करें। बूढ़े ने सोचा कि आज खलीफा तो आनेवाले हैं नहीं, आनेवाले होते तो अब तक संदेश भिजवा देते। उसने यह भी सोचा कि ऐसे उदार आदमी की बात नहीं टालनी चाहिए। इसलिए वह न केवल उन्हें स्थान देने पर राजी हो गया अपितु उसने खलीफा के लिए रखे हुए जड़ाऊ बरतनों में उन्हें भोजन परोसा। सब लोग खाना खा कर हाथ धो चुके तो नूरुद्दीन ने कहा, कुछ पीने को भी मिल सकता है?
बाग का रक्षक भोजन लाया तो नूरुद्दीन ने कहा कि हम ऊपर जा कर भी देखना चाहते हैं, क्या आप हमें दिखा सकेंगे? दरोगा ने ताली निकाल कर ताला खोल दिया। वे दोनों ऊपर जा कर बहुत खुश हुए। नूरुद्दीन ने कहा कि आप कृपा कर के हम लोगों को यहीं सोने की अनुमति दे दीजिए।
उसने यह भी कहा कि आप भी हमारे साथ भोजन करें और यहीं आराम करें। बूढ़े ने सोचा कि आज खलीफा तो आनेवाले हैं नहीं, आनेवाले होते तो अब तक संदेश भिजवा देते। उसने यह भी सोचा कि ऐसे उदार आदमी की बात नहीं टालनी चाहिए। इसलिए वह न केवल उन्हें स्थान देने पर राजी हो गया अपितु उसने खलीफा के लिए रखे हुए जड़ाऊ बरतनों में उन्हें भोजन परोसा। सब लोग खाना खा कर हाथ धो चुके तो नूरुद्दीन ने कहा, कुछ पीने को भी मिल सकता है?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.