02-08-2019, 08:44 AM
उधर कुछ देर बाद वही सरदार अपने साथ सशस्त्र सैनिकों को ला कर नूरुद्दीन का दरवाजा ऐसे क्रोध से खटखटाने लगा जैसे वास्तव में उसे गिरफ्तार करने आया हो। दरवाजा न खुलने पर उसने उसे तुड़वा दिया और अंदर जा कर सिपाहियों को मकान की तलाशी लेने और नूरुद्दीन और उसकी दासी को पकड़ने की आज्ञा दी। सिपाहियों ने मकान में न कोई सामान पाया न कोई आदमी।
उसने पड़ोसियों से पूछा कि नूरुद्दीन कहाँ है। उनमें दो-एक को मालूम था कि वह पिछवाड़े से भाग गया है किंतु सभी लोग उसे चाहते थे इसलिए बोले कि हम लोगों को बिल्कुल नहीं मालूम कि वह कहाँ गया। सरदार ने हाकिम से जा कर सारा हाल कहा तो उसने कहा कि उसका घर गिरवा कर समतल कर दो। और शहर में मुनादी करवा दो कि जो नूरुद्दीन को पकड़ कर लाएगा उसे एक हजार अशर्फियों का इनाम मिलेगा और अगर कोई उसे या उसकी दासी को शरण देगा तो उसे तथा उसके कुटुंबियों को मृत्यु-दंड दिया जाएगा। अतएव ऐसा ही किया गया।
उधर नूरुद्दीन का जहाज बगदाद पहुँचा तो कप्तान ने यात्रियों को समझाया कि यह नगर अद्भुत है, यहाँ क्षण मात्र में गरीब अमीर बन जाता है और अमीर गरीब इसलिए यहाँ परदेशियों को सावधान रहना जरूरी है। खैर, बगदाद पहुँच कर अन्य व्यापारी तो अपने-अपने ठिकानों पर गए, नूरुद्दीन ने कप्तान को पाँच अशर्फियाँ किराए में दीं और हुस्न अफरोज को ले कर उतरा। उसके लिए यह नगर नितांत अपरिचित था और उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि किस जगह ठहरे। दोनों बहुत देर तक भटकने के बाद एक बाग में पहुँचे जो नदी के तट पर था और जिसका द्वार खुला था। यहाँ बहुत देर तक बाग के कुंड में हाथ-पाँव धोने और जल पीने के बाद वे एक दालान में जा बैठे। वे दोनों बहुत थक गए थे इसलिए लेट गए और लेटते ही सो गए।
उसने पड़ोसियों से पूछा कि नूरुद्दीन कहाँ है। उनमें दो-एक को मालूम था कि वह पिछवाड़े से भाग गया है किंतु सभी लोग उसे चाहते थे इसलिए बोले कि हम लोगों को बिल्कुल नहीं मालूम कि वह कहाँ गया। सरदार ने हाकिम से जा कर सारा हाल कहा तो उसने कहा कि उसका घर गिरवा कर समतल कर दो। और शहर में मुनादी करवा दो कि जो नूरुद्दीन को पकड़ कर लाएगा उसे एक हजार अशर्फियों का इनाम मिलेगा और अगर कोई उसे या उसकी दासी को शरण देगा तो उसे तथा उसके कुटुंबियों को मृत्यु-दंड दिया जाएगा। अतएव ऐसा ही किया गया।
उधर नूरुद्दीन का जहाज बगदाद पहुँचा तो कप्तान ने यात्रियों को समझाया कि यह नगर अद्भुत है, यहाँ क्षण मात्र में गरीब अमीर बन जाता है और अमीर गरीब इसलिए यहाँ परदेशियों को सावधान रहना जरूरी है। खैर, बगदाद पहुँच कर अन्य व्यापारी तो अपने-अपने ठिकानों पर गए, नूरुद्दीन ने कप्तान को पाँच अशर्फियाँ किराए में दीं और हुस्न अफरोज को ले कर उतरा। उसके लिए यह नगर नितांत अपरिचित था और उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि किस जगह ठहरे। दोनों बहुत देर तक भटकने के बाद एक बाग में पहुँचे जो नदी के तट पर था और जिसका द्वार खुला था। यहाँ बहुत देर तक बाग के कुंड में हाथ-पाँव धोने और जल पीने के बाद वे एक दालान में जा बैठे। वे दोनों बहुत थक गए थे इसलिए लेट गए और लेटते ही सो गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.