02-08-2019, 08:43 AM
हाकिम जुबैनी को पुरानी बात याद आ गई और वह गुस्से में भर गया। उसने वजीर सुएखाकान को विदा किया और अपने एक सरदार को आज्ञा दी कि चालीस सिपाहियों को ले कर जाओ, नूरुद्दीन और उसकी दासी को बाँध कर यहाँ लाओ और उसके मकान को खुदवा कर भूमि को समतल कर दो। यह सरदार नूरुद्दीन के पिता से बड़ा उपकृत था। वह छुप कर अकेला उसके घर पर पहुँचा और उसे हाकिम की आज्ञा को बता कर कहा, यह चालीस अशर्फियाँ लो। इस समय मेरे पास इतना ही है। तुम तुरंत दासी को ले कर कहीं भाग जाओ वरना जान से हाथ धोओगे। मैं भी भागता हूँ, कोई मुझे यहाँ देख कर हाकिम से कह देगा तो मैं भी मारा जाऊँगा।
यह कह कर सरदार उसी तरह छुप कर चला गया। इधर नूरुद्दीन ने जा कर हुस्न अफरोज को यह सब बताया और उसे ले कर मकान के पिछवाड़े की दीवार फलाँग कर नदी के तट पर भागता हुआ पहुँचा। संयोग से उसी समय एक छोटा जहाज बगदाद जाने के लिए लंगर उठा रहा था। नूरुद्दीन और दासी के सवार होते ही जहाज ने लंगर उठा दिया और बगदाद को चल पड़ा।
यह कह कर सरदार उसी तरह छुप कर चला गया। इधर नूरुद्दीन ने जा कर हुस्न अफरोज को यह सब बताया और उसे ले कर मकान के पिछवाड़े की दीवार फलाँग कर नदी के तट पर भागता हुआ पहुँचा। संयोग से उसी समय एक छोटा जहाज बगदाद जाने के लिए लंगर उठा रहा था। नूरुद्दीन और दासी के सवार होते ही जहाज ने लंगर उठा दिया और बगदाद को चल पड़ा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.