02-08-2019, 08:42 AM
‘मैं आज बाजार की तरफ से निकला तो एक जगह भीड़ देखी। पूछने पर मालूम हुआ कि एक दासी बिक रही है। मुझे भी गृह-कार्य के लिए एक दासी की जरूरत थी इसलिए मैं भी रुक गया। दासी के देखने पर मुझे वह आपकी सेवा के उपयुक्त मालूम हुई इसलिए मैंने चार हजार अशर्फी पर उसका सौदा कर लिया। इतने में नूरुद्दीन आ गया और बोला कि मैं अपनी दासी तुम्हारे हाथ नहीं बेचूँगा। मैंने उसे बहुत समझाया कि मैं यह दासी अपने लिए नहीं बल्कि हाकिम के लिए खरीद रहा हूँ लेकिन उसने मेरी एक न सुनी। आपको भी भला-बुरा कहा और मुझे मार-पीट कर दासी को ले गया।
‘सरकार, आप को याद होगा कि तीन-चार बरस पहले आपने खाकान को दस हजार अशर्फियाँ एक सर्वगुण-संपन्न दासी खरीदने के लिए दी थीं। उसने इसी धन से यह दासी खरीद कर अपने बेटे को दे दी। तब से वह दासी उसी के पास है। पिता के मरने के बाद नूरुद्दीन ने अपनी सारी संपत्ति भोग-विलास में उड़ा दी। अब उसके पास अपने एक मकान और इस लौंडी के अलावा कुछ नहीं है। भूख से तंग आ कर वह अपनी उस दासी को बेच रहा था किंतु मुझ से दुश्मनी होने के कारण उसने मेरे साथ यह किया।’
‘सरकार, आप को याद होगा कि तीन-चार बरस पहले आपने खाकान को दस हजार अशर्फियाँ एक सर्वगुण-संपन्न दासी खरीदने के लिए दी थीं। उसने इसी धन से यह दासी खरीद कर अपने बेटे को दे दी। तब से वह दासी उसी के पास है। पिता के मरने के बाद नूरुद्दीन ने अपनी सारी संपत्ति भोग-विलास में उड़ा दी। अब उसके पास अपने एक मकान और इस लौंडी के अलावा कुछ नहीं है। भूख से तंग आ कर वह अपनी उस दासी को बेच रहा था किंतु मुझ से दुश्मनी होने के कारण उसने मेरे साथ यह किया।’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.