02-08-2019, 08:40 AM
दलाल ने वजीर को मकान में ले जा कर हुस्न अफरोज को दिखाया। वजीर ने कहा कि मैं चार हजार अशर्फी इसके लिए दूँगा, अगर कोई और इससे अधिक लगाए तो ले जाए। लेकिन इसके साथ ही उसने संकेत ही से सारे व्यापारियों से कह दिया कि खबरदार इसका अधिक मूल्य न लगाना इसलिए वे चुपचाप खड़े रहे। दलाल ने कहा, मैं इसके मालिक को जा कर बताता हूँ कि आपने इसके लिए चार हजार अशर्फियों का दाम लगाया है। अगर वह इस मूल्य पर बेचने को तैयार हो तो आप निस्संदेह दाम दे कर इसे अपने घर ले जाएँ।
इसके बाद दलाल नूरुद्दीन के पास आ कर बोला, मुझे खेद है कि आपकी दासी उचित से कम मूल्य पर बिक रही है। मैंने व्यापारियों को उसे दिखाया तो वे उसका चार हजार अशर्फी मूल्य देने को तैयार हो गए। मैं इस फिक्र में था कि कुछ देर और प्रतीक्षा करूँ, संभव है कोई आदमी उसका पाँच छह हजार देने के लिए तैयार हो जाए। उसी समय वजीर सूएखाकान की सवारी निकल रही थी। भीड़ देख कर उसने पूछा कि क्या बात है। यह मालूम होने पर कि एक अच्छी दासी बिक रही है उसने उसे देखना चाहा और देखने पर उसके लिए चार हजार अशर्फियाँ लगा दीं।
साथ ही अन्य व्यापारियों को भी इशारा कर दिया कि इससे अधिक दाम न लगाना। अब बोलो, तुम क्या कहते हो?
इसके बाद दलाल नूरुद्दीन के पास आ कर बोला, मुझे खेद है कि आपकी दासी उचित से कम मूल्य पर बिक रही है। मैंने व्यापारियों को उसे दिखाया तो वे उसका चार हजार अशर्फी मूल्य देने को तैयार हो गए। मैं इस फिक्र में था कि कुछ देर और प्रतीक्षा करूँ, संभव है कोई आदमी उसका पाँच छह हजार देने के लिए तैयार हो जाए। उसी समय वजीर सूएखाकान की सवारी निकल रही थी। भीड़ देख कर उसने पूछा कि क्या बात है। यह मालूम होने पर कि एक अच्छी दासी बिक रही है उसने उसे देखना चाहा और देखने पर उसके लिए चार हजार अशर्फियाँ लगा दीं।
साथ ही अन्य व्यापारियों को भी इशारा कर दिया कि इससे अधिक दाम न लगाना। अब बोलो, तुम क्या कहते हो?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.