02-08-2019, 08:38 AM
अब नूरुद्दीन मजबूर हो कर हुस्न अफरोज को ले कर बाजार में गया। पुराने दलाल को बुला कर उसने कहा, कई वर्ष हुए मेरे पिता के हाथ तुमने एक फारस देश की दासी दस हजार अशर्फियों में बेची थी। अब मैं उसे बेचना चाहता हूँ। तुम उसके लिए खरीदार देखो। दलाल ने उसकी बात मान कर हुस्न अफरोज को एक मकान में बंद कर के बाहर ताला डाल दिया जैसे बिकनेवाले दास-दासियों के साथ करते हैं। फिर वह दासों को खरीदनेवाले व्यापारियों के पास गया। उन व्यापारियों ने कई देशों तथा यूनान, फ्रांस, अफ्रीका आदि की दासियाँ मोल ले रखी थीं।
दलाल ने उन से कहा, तुम लोगों ने देश-देश की दासियाँ ले रखी हैं किंतु मैं फारस देश की ऐसी दासी तुम्हें दिखाऊँगा जिसके सामने कोई नहीं ठहरेगी। तुम लोगों ने विद्वानों का यह कथन तो सुना ही होगा कि हर गोल चीज सुपारी नहीं होती, हर चपटी चीज अंजीर नहीं होती, हर लाल चीज मांस नहीं होती और हर सफेद चीज अंडा नहीं होती। इसी तरह यह दासी जो चीज है वह कोई और दासी नहीं हो सकती।
दलाल के साथ जा कर व्यापारियों ने हुस्न अफरोज को देखा। वे कहने लगे कि इसमें संदेह नहीं कि ऐसी सुंदर और बुद्धिमती दासी हमने और कहीं नहीं देखी लेकिन हम सब मिल कर इसे खरीदेंगे और इसका मोल चार हजार अशर्फी लगाएँगे, इससे अधिक देना हमारे वश की बात नहीं है। यह कह कर वे मकान के बाहर आ कर खड़े हो गए। दलाल भी मकान बंद करने के बाद सौदेबाजी करने के लिए उनके पास आया। इसी बीच दुष्ट मंत्री सूएखाकान की सवारी उधर से निकली। उसने पूछा कि यह भीड़ कैसी है। दलाल ने कहा कि यह सब एक दासी लेने के लिए आए हैं और उसका मोल चार हजार अशर्फी लगा रहे हैं। सूएखाकान ने कहा, मुझे भी एक अच्छी लौंडी चाहिए। तुम मुझे वह दासी दिखाओ।
दलाल ने उन से कहा, तुम लोगों ने देश-देश की दासियाँ ले रखी हैं किंतु मैं फारस देश की ऐसी दासी तुम्हें दिखाऊँगा जिसके सामने कोई नहीं ठहरेगी। तुम लोगों ने विद्वानों का यह कथन तो सुना ही होगा कि हर गोल चीज सुपारी नहीं होती, हर चपटी चीज अंजीर नहीं होती, हर लाल चीज मांस नहीं होती और हर सफेद चीज अंडा नहीं होती। इसी तरह यह दासी जो चीज है वह कोई और दासी नहीं हो सकती।
दलाल के साथ जा कर व्यापारियों ने हुस्न अफरोज को देखा। वे कहने लगे कि इसमें संदेह नहीं कि ऐसी सुंदर और बुद्धिमती दासी हमने और कहीं नहीं देखी लेकिन हम सब मिल कर इसे खरीदेंगे और इसका मोल चार हजार अशर्फी लगाएँगे, इससे अधिक देना हमारे वश की बात नहीं है। यह कह कर वे मकान के बाहर आ कर खड़े हो गए। दलाल भी मकान बंद करने के बाद सौदेबाजी करने के लिए उनके पास आया। इसी बीच दुष्ट मंत्री सूएखाकान की सवारी उधर से निकली। उसने पूछा कि यह भीड़ कैसी है। दलाल ने कहा कि यह सब एक दासी लेने के लिए आए हैं और उसका मोल चार हजार अशर्फी लगा रहे हैं। सूएखाकान ने कहा, मुझे भी एक अच्छी लौंडी चाहिए। तुम मुझे वह दासी दिखाओ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.