02-08-2019, 08:38 AM
खैर अब पिछली बातों का क्या रोना, अब यह सोचना है कि आगे क्या होगा। अब तो घर में भी कोई ऐसा सामान नहीं है जो बेच सको और दास-दासी तो तुम पहले ही बेच चुके हो। मकान बेच दोगे तो हम लोग रहेंगे कहाँ। इसलिए ऐसा करो कि मुझे दासों की मंडी में ले चलो। तुम्हें याद होगा कि तुम्हारे पिता ने मुझे दस हजार अशर्फियों में खरीदा था। अब मेरा इतना तो मोल नहीं होगा किंतु इससे आधे को जरूर बिक जाऊँगी। तुम उससे व्यापार करो और जब तुम्हारे पास व्यापार से पैसा आ जाए तो मुझे फिर खरीद लेना।
नूरुद्दीन ने रोते हुए कहा, एक तो मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूँ फिर मैंने पिता को उनके अंत समय में वचन दिया है कि किसी भी दशा में तुम्हें नहीं बेचूँगा। हुस्न अफरोज ने कहा, प्रियतम, तुम ठीक कहते हो। मैं भी तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहती हूँ। किंतु हमारे धर्म के अनुसार विपत्ति पड़ने पर प्रतिज्ञा तोड़ी भी जा सकती है। जैसी विपत्ति तुम पर है उसमें तुम और क्या कर सकते हो।
नूरुद्दीन ने रोते हुए कहा, एक तो मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूँ फिर मैंने पिता को उनके अंत समय में वचन दिया है कि किसी भी दशा में तुम्हें नहीं बेचूँगा। हुस्न अफरोज ने कहा, प्रियतम, तुम ठीक कहते हो। मैं भी तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहती हूँ। किंतु हमारे धर्म के अनुसार विपत्ति पड़ने पर प्रतिज्ञा तोड़ी भी जा सकती है। जैसी विपत्ति तुम पर है उसमें तुम और क्या कर सकते हो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.