02-08-2019, 08:36 AM
नूरुद्दीन ने यह वार्तालाप सुन लिया। दासी ने बाहर आ कर लज्जित स्वर में मालिक की अनुपस्थिति की बात कहीं। नूरुद्दीन चुपचाप उठ आया। वह मन में सोचने लगा कि यह आदमी तो बड़ा ही दुष्ट निकला। कल तक मेरी प्रशंसा के पुल बाँधा करता था, मेरे ही मकान में रहता है और अब मुझसे हीं नही मिल रहा है। वह एक और मित्र के यहाँ गया जो पहले मित्र से कुछ कम धनवान था। वहाँ भी उसके साथ वही व्यवहार हुआ। इस तरह एक-एक कर के अपने दस मित्रों के घरों पर नूरुद्दीन गया किंतु किसी मित्र ने उससे बात भी न की, सहायता देना तो दूर की बात थी।
वह बेचारा अत्यंत आहत हो कर घर आया और अपनी प्रेयसी के सामने फूट पड़ा। आँसू बहाते हुए बोला, कैसी नीच है ये दुनिया। यही लोग कल तक मेरी जूतियाँ सीधी करने में गर्व का अनुभव करते थे और आज यह हाल है कि मुझ से कोई बात भी नहीं करना चाहता। मेरा हाल तो फलदार वृक्ष जैसा हो गया। जब तक फलों से लदा था सभी आदमी मेरे आसपास घूमा करते थे, अब कोई पास भी नहीं फटकता।
हुस्न अफरोज ने कहा, तुम्हें अब यह मालूम हुआ हैं। मैं तो शुरू ही से उनके रंग-ढंग से जानती थी कि वे सब महास्वार्थी हैं। मैं इसीलिए तुम्हें समझाया करती थी कि उनका साथ न करो।
वह बेचारा अत्यंत आहत हो कर घर आया और अपनी प्रेयसी के सामने फूट पड़ा। आँसू बहाते हुए बोला, कैसी नीच है ये दुनिया। यही लोग कल तक मेरी जूतियाँ सीधी करने में गर्व का अनुभव करते थे और आज यह हाल है कि मुझ से कोई बात भी नहीं करना चाहता। मेरा हाल तो फलदार वृक्ष जैसा हो गया। जब तक फलों से लदा था सभी आदमी मेरे आसपास घूमा करते थे, अब कोई पास भी नहीं फटकता।
हुस्न अफरोज ने कहा, तुम्हें अब यह मालूम हुआ हैं। मैं तो शुरू ही से उनके रंग-ढंग से जानती थी कि वे सब महास्वार्थी हैं। मैं इसीलिए तुम्हें समझाया करती थी कि उनका साथ न करो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.