02-08-2019, 08:34 AM
इसके बाद नूरुद्दीन आनंदपूर्वक हुस्न अफरोज के साथ रहने लगा और मंत्री भी उन दोनों की परस्पर प्रीति देख कर प्रसन्न हुआ और संतोष से रहने लगा। जुबैनी के सामने उसने दासी के बारे में वही कह दिया जो उसकी पत्नी ने कहा था।
इसके एक वर्ष बाद की बात है। मंत्री ने गरम पानी से देर तक स्नान किया किंतु अचानक कुछ ऐसा काम आ पड़ा कि वह बाहर निकल आया। गर्मी से अचानक सर्दी में आ जाने के कारण वह बीमार हो गया और उसका रोग बढ़ता गया। अपना अंत समय निकट देख कर नूरुद्दीन से, जो उसकी परिचर्या के लिए बराबर उसके पास रहता था, कहा, मैंने पहले भी कहा था और अब फिर कहता हूँ कि हुस्न अफरोज को प्यार से रखना और उसे कभी बेचना नहीं। इसके बाद उसने शरीर छोड़ दिया।
नूरुद्दीन ने उसकी बड़ी धूमधाम से अंत्येष्टि की और चालीस दिन तक बाप का मातम किया। इसी बीच उसने किसी मित्र आदि को अपने पास आने की अनुमति नहीं दी। फिर धीरे-धीरे उसके मित्र उसे तसल्ली देने के लिए आने लगे और कुछ दिनों में मित्रों के आने का ताँता लग गया। नूरुद्दीन अल्पवयस्क और अनुभवहीन था। उसके मित्रों ने इस बात का अनुचित लाभ उठाया। उन्होंने रासरंग के सुझाव दिए और नूरुद्दीन ने दोनों हाथों से धन लुटाना आरंभ किया और उसके मित्र धन से अपना घर भरने लगे। एक दिन हुस्न अफरोज ने उसे समझाया, तुमने अपने कमीने मित्रों पर बहुत कुछ लुटा दिया, अब चेत जाओ और यह फिजूलखर्चियाँ बंद कर दो। नूरुद्दीन हँस कर बोला, क्या बात करती हो? क्या मेरे पिता मरने पर अपने साथ ले गए और क्या मैं ले जाऊँगा? फिर जीवन में आनंद लेने के लिए अपने धन का प्रयोग क्यों न करूँ?
इसके एक वर्ष बाद की बात है। मंत्री ने गरम पानी से देर तक स्नान किया किंतु अचानक कुछ ऐसा काम आ पड़ा कि वह बाहर निकल आया। गर्मी से अचानक सर्दी में आ जाने के कारण वह बीमार हो गया और उसका रोग बढ़ता गया। अपना अंत समय निकट देख कर नूरुद्दीन से, जो उसकी परिचर्या के लिए बराबर उसके पास रहता था, कहा, मैंने पहले भी कहा था और अब फिर कहता हूँ कि हुस्न अफरोज को प्यार से रखना और उसे कभी बेचना नहीं। इसके बाद उसने शरीर छोड़ दिया।
नूरुद्दीन ने उसकी बड़ी धूमधाम से अंत्येष्टि की और चालीस दिन तक बाप का मातम किया। इसी बीच उसने किसी मित्र आदि को अपने पास आने की अनुमति नहीं दी। फिर धीरे-धीरे उसके मित्र उसे तसल्ली देने के लिए आने लगे और कुछ दिनों में मित्रों के आने का ताँता लग गया। नूरुद्दीन अल्पवयस्क और अनुभवहीन था। उसके मित्रों ने इस बात का अनुचित लाभ उठाया। उन्होंने रासरंग के सुझाव दिए और नूरुद्दीन ने दोनों हाथों से धन लुटाना आरंभ किया और उसके मित्र धन से अपना घर भरने लगे। एक दिन हुस्न अफरोज ने उसे समझाया, तुमने अपने कमीने मित्रों पर बहुत कुछ लुटा दिया, अब चेत जाओ और यह फिजूलखर्चियाँ बंद कर दो। नूरुद्दीन हँस कर बोला, क्या बात करती हो? क्या मेरे पिता मरने पर अपने साथ ले गए और क्या मैं ले जाऊँगा? फिर जीवन में आनंद लेने के लिए अपने धन का प्रयोग क्यों न करूँ?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.