02-08-2019, 08:27 AM
हजार अशर्फियाँ गिनवा दीं।
व्यापारी ने कहा, सरकार, एक निवेदन और है। इसे एक सप्ताह बाद ही हाकिम के पास ले जाएँ। कारण यह है कि यह बहुत दूर की यात्रा से बड़ी क्लांत है और एक हफ्ते के अंदर इसे अच्छा खिलाएँगे-पिलाएँगे और दो बार गरम पानी से नहलाएँगे तो इसका रूप ऐसा निखरेगा कि आप भी इसे पहचान नहीं सकेंगे। खाकान ने यह बात मान ली। उक्त दासी को उसने अपनी पत्नी के सुपुर्द किया और कहा कि इसे एक सप्ताह तक खिलाओ-पिलाओ और दो बार गरम हम्माम में भेजो, फिर मैं उसे जुबैनी के सामने पेश करूँगा। उसने दासी से भी, जिसका नाम हुस्न अफरोज था, कहा, देख, तुझे मैंने अपने स्वामी के लिए मोल लिया है। तू यहाँ आराम से किंतु बड़ी होशियारी से रह। खबरदार, किसी पुरुष से तेरा संसर्ग न हो। खास तौर से तू मेरे जवान बेटे नूरुद्दीन से सावधान रहना। वह दिन में कई बार अपनी माँ के पास आया करता है। हुस्न अफरोज ने खाकान से कहा, सरकार, आपने बहुत अच्छा किया जो मुझे यह चेतावनी दे दी। अब आप इत्मीनान रखिए। आपकी आज्ञा के विरुद्ध कोई बात नहीं होगी।
खाकान इसके बाद दरबार को चला गया। दोपहर के भोजन के समय नूरुद्दीन अपनी माँ के पास आया तो उसने देखा कि उसकी माँ के पास एक कंचनवर्णी, मृगनयनी, गजगामिनी षोडशी बैठी है। सौंदर्य की इस प्रतिमूर्ति को देखते ही उसका हृदय उस दासी के लिए बेचैन हो गया। उसके पूछने पर उसकी माँ ने बताया कि इस दासी को जो पारस देश से आई है, तुम्हारे पिता ने बसरा के हाकिम जुबैनी की सेवा के लिए खरीदा है। इसके बावजूद नूरुद्दीन उससे अपना मन न हटा सका और ऐसी तरकीब सोचने लगा जिससे वह दासी उसके हत्थे चढ़ जाए। नूरुद्दीन अत्यंत सुंदर था। इसलिए हुस्न अफरोज भी भगवान से प्रार्थना करने लगी कि कोई ऐसी बात हो जाए जिससे मैं हाकिम के बजाय इसी सजीले नौजवान के पास रह सकूँ।
व्यापारी ने कहा, सरकार, एक निवेदन और है। इसे एक सप्ताह बाद ही हाकिम के पास ले जाएँ। कारण यह है कि यह बहुत दूर की यात्रा से बड़ी क्लांत है और एक हफ्ते के अंदर इसे अच्छा खिलाएँगे-पिलाएँगे और दो बार गरम पानी से नहलाएँगे तो इसका रूप ऐसा निखरेगा कि आप भी इसे पहचान नहीं सकेंगे। खाकान ने यह बात मान ली। उक्त दासी को उसने अपनी पत्नी के सुपुर्द किया और कहा कि इसे एक सप्ताह तक खिलाओ-पिलाओ और दो बार गरम हम्माम में भेजो, फिर मैं उसे जुबैनी के सामने पेश करूँगा। उसने दासी से भी, जिसका नाम हुस्न अफरोज था, कहा, देख, तुझे मैंने अपने स्वामी के लिए मोल लिया है। तू यहाँ आराम से किंतु बड़ी होशियारी से रह। खबरदार, किसी पुरुष से तेरा संसर्ग न हो। खास तौर से तू मेरे जवान बेटे नूरुद्दीन से सावधान रहना। वह दिन में कई बार अपनी माँ के पास आया करता है। हुस्न अफरोज ने खाकान से कहा, सरकार, आपने बहुत अच्छा किया जो मुझे यह चेतावनी दे दी। अब आप इत्मीनान रखिए। आपकी आज्ञा के विरुद्ध कोई बात नहीं होगी।
खाकान इसके बाद दरबार को चला गया। दोपहर के भोजन के समय नूरुद्दीन अपनी माँ के पास आया तो उसने देखा कि उसकी माँ के पास एक कंचनवर्णी, मृगनयनी, गजगामिनी षोडशी बैठी है। सौंदर्य की इस प्रतिमूर्ति को देखते ही उसका हृदय उस दासी के लिए बेचैन हो गया। उसके पूछने पर उसकी माँ ने बताया कि इस दासी को जो पारस देश से आई है, तुम्हारे पिता ने बसरा के हाकिम जुबैनी की सेवा के लिए खरीदा है। इसके बावजूद नूरुद्दीन उससे अपना मन न हटा सका और ऐसी तरकीब सोचने लगा जिससे वह दासी उसके हत्थे चढ़ जाए। नूरुद्दीन अत्यंत सुंदर था। इसलिए हुस्न अफरोज भी भगवान से प्रार्थना करने लगी कि कोई ऐसी बात हो जाए जिससे मैं हाकिम के बजाय इसी सजीले नौजवान के पास रह सकूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.