02-08-2019, 08:27 AM
अगली सुबह से पहले शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि पहले जमाने में बसरा बगदाद के अधीन था। बगदाद में खलीफा हारूँ रशीद का राज था और उसने अपने चचेरे भाई जुबैनी को बसरा का हाकिम बनाया था। जुबैनी के दो मंत्री थे। एक का नाम था खाकान और दूसरे का सूएखाकान। खाकान उदार और क्षमाशील था और इसलिए बड़ा लोकप्रिय था। सूएखाकान उतना ही क्रूर और अन्यायी था और प्रजा उससे रुष्ट थी। सूएखाकान अपने सहयोगी मंत्री खाकान के प्रति भी विद्वेष रखता था।
एक दिन जुबैनी ने खाकान से कहा कि मुझे एक दासी चाहिए जो अति सुंदर हो तथा गायन-वादन तथा अन्य विद्याओं में निपुण भी हो। खाकान के बोलने के पहले ही सूएखाकान बोल उठा, ऐसी लौंडी तो दस हजार अशर्फी से कम में नहीं आएगी। जुबैनी ने आँखें तरेर कर कहा, तुम समझते हो दस हजार अशर्फियाँ मेरे लिए बड़ी चीज हैं? यह कह कर उसने खाकान को दस हजार अशर्फियाँ दिलवा दीं। खाकान ने घर आ कर दलालों को बुलाया और उनसे कहा कि तुम जुबैनी के लिए अति सुंदर और सारी विद्याओं, कलाओं में निपुण एक दासी तलाश करो चाहे जितने मोल की हो। सारे दलाल इच्छित प्रकार की दासी ढूँढ़ने में लग गए।
कुछ दिनों बाद एक दलाल खाकान के पास आ कर बोला कि एक व्यापारी ऐसी ही दासी लाया है जैसी आपने कहा था। खाकान के कहने पर दलाल उस व्यापारी को दासी समेत ले आया। खाकान ने आ कर जाँच-परख की तो दासी को हर प्रकार से गुणसंपन्न पाया और जुबैनी की आशा से अधिक सुंदर भी पाया। उसने व्यापारी से उसका दाम पूछा तो उसने कहा, स्वामी, यह रत्न तो अनमोल है। किंतु मैं आप के हाथ मात्र दस हजार अशर्फियों पर बेच दूँगा। इसके लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा पर मैंने बहुत श्रम किया है। यह गायन, वादन, साहित्य, इतिहास और सारी विद्याओं में पारंगत है और अभी तक अक्षत है। मंत्री ने बगैर कुछ कहे दस
एक दिन जुबैनी ने खाकान से कहा कि मुझे एक दासी चाहिए जो अति सुंदर हो तथा गायन-वादन तथा अन्य विद्याओं में निपुण भी हो। खाकान के बोलने के पहले ही सूएखाकान बोल उठा, ऐसी लौंडी तो दस हजार अशर्फी से कम में नहीं आएगी। जुबैनी ने आँखें तरेर कर कहा, तुम समझते हो दस हजार अशर्फियाँ मेरे लिए बड़ी चीज हैं? यह कह कर उसने खाकान को दस हजार अशर्फियाँ दिलवा दीं। खाकान ने घर आ कर दलालों को बुलाया और उनसे कहा कि तुम जुबैनी के लिए अति सुंदर और सारी विद्याओं, कलाओं में निपुण एक दासी तलाश करो चाहे जितने मोल की हो। सारे दलाल इच्छित प्रकार की दासी ढूँढ़ने में लग गए।
कुछ दिनों बाद एक दलाल खाकान के पास आ कर बोला कि एक व्यापारी ऐसी ही दासी लाया है जैसी आपने कहा था। खाकान के कहने पर दलाल उस व्यापारी को दासी समेत ले आया। खाकान ने आ कर जाँच-परख की तो दासी को हर प्रकार से गुणसंपन्न पाया और जुबैनी की आशा से अधिक सुंदर भी पाया। उसने व्यापारी से उसका दाम पूछा तो उसने कहा, स्वामी, यह रत्न तो अनमोल है। किंतु मैं आप के हाथ मात्र दस हजार अशर्फियों पर बेच दूँगा। इसके लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा पर मैंने बहुत श्रम किया है। यह गायन, वादन, साहित्य, इतिहास और सारी विद्याओं में पारंगत है और अभी तक अक्षत है। मंत्री ने बगैर कुछ कहे दस
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.