02-08-2019, 08:26 AM
सासू जी और उनकी ननद ,
इनकी बूआ
मेरी सास एकदम महा खुश , कभी मेरी ओर देखतीं तो कभी मोहल्ले की औरतों की ओर , ... फिर मुझे देख कर , अपनी ननद , इनकी बुआ की ओर इशारा कर के बोलीं ,
" बहु , तुमने अपनी ननदों को तो हाल एकदम खुल्ल्मखुला , खोल खोल के सुनाया , ... लेकिन मेरी ननद को ऐसे ही सूखे सूखे सस्ते में , अपने फूफ़ा के साथ सुला के , ...
अरे तेरी ससुराल में किसी ननद का काम एक दो चार यार से नहीं चलता ,... "
मैं समझ गयी बुआ सास की आड़ में वो खुद अपने लिए भी असली वाली , सुनना चाहती थीं।
लेकिन तभी मुझे याद आया ,
अरे ये भी तो अपने कमरे में , कान पारे हम लोगों के गाने सुन रहे होंगे , मैने मुश्किल से मुस्कराहट रोकी ,
सुनना हो तो सुने , अपनी बहनों का तो हाल खुलासा सुन ही लिया था ,
और अब अपनी अम्मा बुआ , चाची का हाल भी सुन लें ,
मुझे मालूम था की अपनी माँ बहनों का हाल सुन के इन की क्या हाल होती थी ,
कैसे कस के इनका और उस का बदला ये मेरी गुलाबो से लेंगे ,
लेना हो तो लें ,
और मैं चालू हो गयी उन्ही का नाम ले के ,
हमारे सैंया जी की अम्मा छिनार ,उनकी बुआ छिनार , उनकी चाची छिनार ,
उनकी अम्मा के , अरे उनकी बुआ के दो दो दुवार ,
एक जाए आगे , एक जाए पीछे ,... बचा नहीं कोई नउवा , कन्हार ,
कुछ आज चोदे कुछ काल चोदे , होली दिवाली दिन रात चोदे ,...
सभी सास लोग निहाल ,
एक दूसरे की ओर इशारा कर के , बहु अरे इनको काहें छोड़ दिया ,.
और मैं फिर अगली लाइन में उनको भी ,
एक गाना मुझे याद था लेकिन कुछ ज्यादा ही ,....
और उसकी धुन भी थोड़ी अलग थी , ...
जरूरत ये होती है की ढोलक बजाने वाली को वो गाना और धुन मालूम हो। मैंने गुड्डो के कान में फुसफुसाया , ...
भले वो अभी दसवें में थी , लेकिन मेरी तरह वो भी बनारस वाली थी , ... और मेरी तरह रतजगे और शादियों में उसकी ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी ,
वो जोर से मुस्करायी और सर जोर जोर से हिला के उसने हामी भरी।
बस अब उसकी ढोलक टनकनी शुरू हो गयी ,
और पहली लाइन से वो मेरे साथ साथ , ....
बिना जरा भी झिझके , शरमाये
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
हमारी बुआ सासु की बुरिया तलवा जैसी , पोखरवा जैसी , इनरवा जैसी ,
ओहमें नौ सौ गुण्डे नहावा करें , डुबकी लगावा करें मजा मारा करें ,
अरे बुर हर हर होवा करे , अरे बुर हर हर होवा करे
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
हमारी सासु की बुरिया बटुलिया जैसी , पतलिया जैसी , ,
ओहमें नौ मन चावल पकाए करें , अरे उफना करे
अरे बुर भद भद होवा करे , अरे बुर भद भद होवा करे
( फिर मुझे याद आया की नन्दोई जी भी तो इनके साथ बैठ कर , कान खोले , तो उनकी अम्मा क्यों ,.... बस अपनी मंझली ननद की सास को भी )
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
हमारी नन्दोई की अम्मा की बुरिया तलवा जैसी , पोखरवा जैसी , इनरवा जैसी ,
ओहमें नौ सौ गुण्डे नहावा करें , डुबकी लगावा करें मजा मारा करें ,
अरे बुर हर हर होवा करे , अरे बुर हर हर होवा करे
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
बस मेरी सास एकदम खुश , ...
देर हो रही थी ,
उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया और अपने गले की सत लड़ की माला निकाल के सीधे मेरे गले में ,
मैं झुक के उनका पैर छू लिया ,...
और सबसे ज्यादा तरफ मेरी की ,
और किसने , ... जिसको मैंने सबसे ज्यादा गरियाया था , मेरी मंझली ननद और
दुलारी ने
दोनों गले मिली ,
तभी मैंने देखा की मेरे कमरे का दरवाजा खुला ,
और नन्दोई जी सीढी से निगाह बचा के नीचे ,
और साथ में मिली मेरी ननद ,
मैंने गुड्डो की बहुत तारीफ़ तो की ही
सबसे कहा भी की असली तारीफ़ तो ढोलक वाली की है ,
पर असली बात मैंने कमरे मन घुसने से पहले उससे कह दी
" थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी , तो बोल , अगली बार ,... "
इनकी बूआ
मेरी सास एकदम महा खुश , कभी मेरी ओर देखतीं तो कभी मोहल्ले की औरतों की ओर , ... फिर मुझे देख कर , अपनी ननद , इनकी बुआ की ओर इशारा कर के बोलीं ,
" बहु , तुमने अपनी ननदों को तो हाल एकदम खुल्ल्मखुला , खोल खोल के सुनाया , ... लेकिन मेरी ननद को ऐसे ही सूखे सूखे सस्ते में , अपने फूफ़ा के साथ सुला के , ...
अरे तेरी ससुराल में किसी ननद का काम एक दो चार यार से नहीं चलता ,... "
मैं समझ गयी बुआ सास की आड़ में वो खुद अपने लिए भी असली वाली , सुनना चाहती थीं।
लेकिन तभी मुझे याद आया ,
अरे ये भी तो अपने कमरे में , कान पारे हम लोगों के गाने सुन रहे होंगे , मैने मुश्किल से मुस्कराहट रोकी ,
सुनना हो तो सुने , अपनी बहनों का तो हाल खुलासा सुन ही लिया था ,
और अब अपनी अम्मा बुआ , चाची का हाल भी सुन लें ,
मुझे मालूम था की अपनी माँ बहनों का हाल सुन के इन की क्या हाल होती थी ,
कैसे कस के इनका और उस का बदला ये मेरी गुलाबो से लेंगे ,
लेना हो तो लें ,
और मैं चालू हो गयी उन्ही का नाम ले के ,
हमारे सैंया जी की अम्मा छिनार ,उनकी बुआ छिनार , उनकी चाची छिनार ,
उनकी अम्मा के , अरे उनकी बुआ के दो दो दुवार ,
एक जाए आगे , एक जाए पीछे ,... बचा नहीं कोई नउवा , कन्हार ,
कुछ आज चोदे कुछ काल चोदे , होली दिवाली दिन रात चोदे ,...
सभी सास लोग निहाल ,
एक दूसरे की ओर इशारा कर के , बहु अरे इनको काहें छोड़ दिया ,.
और मैं फिर अगली लाइन में उनको भी ,
एक गाना मुझे याद था लेकिन कुछ ज्यादा ही ,....
और उसकी धुन भी थोड़ी अलग थी , ...
जरूरत ये होती है की ढोलक बजाने वाली को वो गाना और धुन मालूम हो। मैंने गुड्डो के कान में फुसफुसाया , ...
भले वो अभी दसवें में थी , लेकिन मेरी तरह वो भी बनारस वाली थी , ... और मेरी तरह रतजगे और शादियों में उसकी ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी ,
वो जोर से मुस्करायी और सर जोर जोर से हिला के उसने हामी भरी।
बस अब उसकी ढोलक टनकनी शुरू हो गयी ,
और पहली लाइन से वो मेरे साथ साथ , ....
बिना जरा भी झिझके , शरमाये
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
हमारी बुआ सासु की बुरिया तलवा जैसी , पोखरवा जैसी , इनरवा जैसी ,
ओहमें नौ सौ गुण्डे नहावा करें , डुबकी लगावा करें मजा मारा करें ,
अरे बुर हर हर होवा करे , अरे बुर हर हर होवा करे
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
हमारी सासु की बुरिया बटुलिया जैसी , पतलिया जैसी , ,
ओहमें नौ मन चावल पकाए करें , अरे उफना करे
अरे बुर भद भद होवा करे , अरे बुर भद भद होवा करे
( फिर मुझे याद आया की नन्दोई जी भी तो इनके साथ बैठ कर , कान खोले , तो उनकी अम्मा क्यों ,.... बस अपनी मंझली ननद की सास को भी )
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
हमारी नन्दोई की अम्मा की बुरिया तलवा जैसी , पोखरवा जैसी , इनरवा जैसी ,
ओहमें नौ सौ गुण्डे नहावा करें , डुबकी लगावा करें मजा मारा करें ,
अरे बुर हर हर होवा करे , अरे बुर हर हर होवा करे
गंगा जी तुम्हरा भला करें , गंगा जी , अरे गंगा जी तुम्हरा भला करें गंगा जी ,
बस मेरी सास एकदम खुश , ...
देर हो रही थी ,
उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया और अपने गले की सत लड़ की माला निकाल के सीधे मेरे गले में ,
मैं झुक के उनका पैर छू लिया ,...
और सबसे ज्यादा तरफ मेरी की ,
और किसने , ... जिसको मैंने सबसे ज्यादा गरियाया था , मेरी मंझली ननद और
दुलारी ने
दोनों गले मिली ,
तभी मैंने देखा की मेरे कमरे का दरवाजा खुला ,
और नन्दोई जी सीढी से निगाह बचा के नीचे ,
और साथ में मिली मेरी ननद ,
मैंने गुड्डो की बहुत तारीफ़ तो की ही
सबसे कहा भी की असली तारीफ़ तो ढोलक वाली की है ,
पर असली बात मैंने कमरे मन घुसने से पहले उससे कह दी
" थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी , तो बोल , अगली बार ,... "