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साहित्य
#35
उनकी रचनाओं में योग, निर्गुण-ब्रह्म और उपदेश एवं शिक्षा सम्बन्धाी बड़े हृदयग्राही वर्णन हैं। मेरा विचार है कि उन्होंने इस विषय में गुरु गोरखनाथ और उनके उत्ताराधिाकारी महात्माओं का बहुत कुछ अनुकरण किया है। गुरु गोरखनाथ का ज्ञानवाद और योगवाद ही कबीर साहब के निर्गुणवाद का स्वरूप ग्रहण करता है। मैं अपने इस कथन की पुष्टि के लिए गुरु गोरखनाथ की पूर्वोध्दाृत रचनाओं की ओर आप लोगों की दृष्टि फेरता हूँ और उनके समकालीन एवं उत्ताराधिाकारी नाथ सम्प्रदाय के आचार्यों की कुछ रचनाएँ भी नीचे लिखता हूँ-

1. थोड़ो खाय तो कलपै झलपै , घड़ों खाय तो रोगी।

दुहूँ पर वाकी संधिा विचारै , ते को बिरला जोगीड्ड

यहु संसार कुवधिा का खेत , जब लगि जीवै तब लगि चेत।

आख्याँ देखै काण सुणै , जैसा बाहै तैसा लुणैड्ड

- जलंधार नाथ

2. मारिबा तौ मनमीर मारिबा , लूटिबा पवन भँडार।

साधिाबा तौ पंचतत्ता साधिाबा , सेइबा तौ निरंजन निरंकार

माली लौं भल माली लौं , सींचै सहज कियारी।

उनमनि कलाएक पहूपनि , पाइले आवा गबन निवारीड्ड

- चौरंगी नाथ

3. आछै आछै महिरे मंडल कोई सूरा।

मारया मनुवाँ नएँ समझावै रे लोड्ड

देवता ने दाणवां एणे मनवैं व्याह्या।

मनवा ने कोई ल्यावैं रे लोड्ड

जोति देखि देखो पड़ेरे पतंगा।

नादै लीन कुरंगा रे लोड्ड

एहि रस लुब्धाी मैगल मातो।

स्वादि पुरुष तैं भौंरा रे लोड्ड

- कणोरी पाव

4. किसका बेटा किसकी बहू , आपसवारथ मिलिया सहू।

जेता पूला तेती आल , चरपट कहै सब आल जंजालड्ड

चरपट चीर चक्रमन कंथा , चित्ता चमाऊँ करना।

ऐसी करनी करो रे अवधाू , ज्यो बहुरि न होई मरनाड्ड

- चरपट नाथ

5. साधाी सूधाी के गुरु मेरे , बाई सूंव्यंद गगन मैं फेरे।

मनका बाकुल चिड़ियाँ बोलै , साधाी ऊपर क्यों मन डोलैंड्ड

बाई बंधया सयल जग , बाई किनहुं न बंधा।

बाइबिहूण ढहिपरै , जोरै कोई न संधिाड्ड

- चुणाकर नाथ
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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