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साहित्य
#33
उस समय भारतवर्ष में इन पीरों की बड़ी प्रतिष्ठा थी और वे बड़ी श्रध्दा की दृष्टि से देखे जाते थे। गुरु नानकदेव ने भी इन पीरों का नाम अपने इस वाक्य में 'सुणिये सिध्द-पीर सुरिनाथ' आदर से लिया है। जो पद उन्होंने सिध्द, नाथ और सूरि को दिया है वही पीर को भी। पहले आप पढ़ आये हैं कि उस समय सिध्दों का कितना महत्तव और प्रभाव था। नाथों का महत्तव भी गुरु गोरखनाथजी की चर्चा में प्रकट हो चुका है। सूरि जैनियों के आचार्य कहलाते थे और उस समय दक्षिण में उनकी महत्ताा भी कम नहीं थी। इन लोगों के साथ गुरु नानक देव ने जो पीर का नाम लिया है, इसके द्वारा उस समय इनकी कितनी महत्ताा थी, यह बात भली-भाँति प्रकट होती है। इस पीर नाम का सामना करने ही के लिए हिन्दू आचार्य उस समय गुरु नाम धाारण करने लग गये थे। इसका सूत्रापात गुरु गोरखनाथ जी ने किया था। गुरु नानकदेव के इस वाक्य में गुरु ईसर गुरु गोरख बरम्हा गुरु पारबती माई इसका संकेत है। गुरु नानक के सम्प्रदाय के आचार्यों के नाम के साथ जो गुरु शब्द का प्रयोग होता है, उसका उद्देश्य भी यही है। वास्तव में उस समय के हिन्दू आचार्यों को हिन्दू धार्म की रक्षा करने के लिए अनेक मार्ग ग्रहण करने पड़े थे। क्योंकि बिना इसके न तो हिन्दू धार्म सुरक्षित रह सकता था, न पीरों के सम्मुख उनको सफलता प्राप्त हो सकती थी। क्योंकि वे राजधार्म के प्रचारक थे। कबीर साहब की प्रतिभा विलक्षण थी और बुध्दि बड़ी ही प्रखर। उन्होंने इस बात को समझ लिया था। अतएव उन दोनों से भिन्न तीसरा मार्ग ग्रहण किया था। परन्तु कार्य उन्होंने वही किया जो उस समय * पीर कर रहे थे अर्थात् हिन्दुओं को किसी प्रकार हिन्दू धार्म से अलग करके अपने नव प्रवर्तित धार्म में आकर्षित कर लेना उनका उद्देश्य था। इस उद्देश्य-सिध्दि के लिए उन्होंने अपने को ईश्वर का दूत बतलाया और अपने ही मुख से अपने महत्तव की घोषण्ाा बड़ी ही सबल भाषा में की। निम्नलिखित पद्य इसके प्रमाण हैं-

काशी में हम प्रगट भये हैं रामानन्द चेताये।

समरथ का परवाना लाये हंस उबारन आये।

कबीर शब्दावली , प्रथम भाग पृ. 71

सोरह संख्य के आगे समरथ जिन जग मोहि पठाया

कबीर बीजक , पृ. 20

तेहि पीछे हम आइया सत्य शब्द के हेत।

कहते मोहिं भयल युग चारी

समझत नाहिं मोहि सुत नारी।

कह कबीर हम युग युग कही।

जबहीं चेतो तबहीं सही।

कबीर बीजक , पृ. 125, 592

जो कोई होय सत्य का किनका सो हमको पतिआई।

और न मिलै कोटि करि थाकै बहुरि काल घर जाई।

कबीर बीजक , पृ. 20

जम्बू द्वीप के तुम सब हंसा गहिलो शब्द हमार।

दास कबीरा अबकी दीहल निरगुन कै टकसार।

जहिया किरतिम ना हता धारती हता न नीर।

उतपति परलै ना हती तबकी कही कबीर।

ई जग तो जँहड़े गया भया योग ना भोग।

तिल तिल झारि कबीर लिय तिलठी झारै लोग।

कबीर बीजक , पृ. 80, 598, 632

सुर नर मुनि जन औलिया , यह सब उरली तीर।

अलह राम की गम नहीं , तहँ घर किया कबीर।

साखी संग्रह , पृ. 125
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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