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साहित्य
#18
अमीर खुसरो का समकालीन एक और मुल्लादाऊद नामक ब्रजभाषा का कवि हुआ। कहा जाता है कि उसने नूरक एवं चन्दा की प्रेम कथा नामक दो हिन्दी पद्य-ग्रन्थों की रचना की, किन्तु ये दोनों ग्रन्थ अप्राप्त-से हैं। इसलिए इसकी रचना की भाषा के विषय में कुछ लिखना असम्भव है। इसके उपरान्त महात्मा गोरखनाथ का हिन्दी साहित्य-क्षेत्रा में दर्शन होता है। हाल में कुछ लोगों ने इनको ग्यारहवीं ई. शताब्दी का कवि लिखा है, किन्तु अधिाकांश सम्मति यही है कि ये चौदहवीं शताब्दी में थे। ये धार्म्माचार्य्य ही नहीं थे, बहुत बड़े साहित्यिक पुरुष भी थे। इन्होंने संस्कृत भाषा में नौ ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें से'विवेक-मार्तण्ड', 'योग-चिन्तामणि' आदि प्रकाण्ड ग्रन्थ हैं। इनका आविर्भाव नेपाल अथवा उसकी तराई में हुआ। उन दिनों इन स्थानों में विकृत बौध्द धार्म्म का प्रचार था, जो उस समय नाना कुत्सित विचारों का आधाार बन गया था। इन बातों को देखकर उन्होंने उसका निराकरण करके आर्य्य धार्म्म के उत्थान में बहुत बड़ा कार्य किया। उन्होंने अपने सिध्दान्त के अनुसार शैव धार्म का प्रचार किया, किन्तु परिमार्जित रूप में। उस समय इनका धार्म इतना आद्रित हुआ कि उनकी पूजा देवतों के समान होने लगी। इनका मन्दिर गोरखपुर में अब तक मौजूद है। गोरखपंथ के प्रवर्तक आप ही हैं। इनके अनुयायी अब तक उत्तार भारत में जहाँ-तहाँ पाये जाते हैं। इनकी रचनाओं एवं शब्दों का मर्म समझने के लिए यह आवश्यक है कि उस काल के बौध्द धार्म की अवस्था आप लोगों के सामने उपस्थित की जावे। इस विषय में 'गंगा' नामक मासिक पत्रिाका के प्रवाह 1, तरंग9 में राहुल सांकृत्यायन नामक एक बौध्द विद्वान् ने जो लेख लिखा है उसी का एक अंश मैं यहाँ प्रस्तुत विषय पर प्रकाश डालने के लिए उध्दाृत करता हूँ-

''भारत से बौध्द धार्म का लोप तेरहवीं, चौदहवीं शताब्दी में हुआ। उस समय की स्थिति जानने के लिए कुछ प्राचीन इतिहास जानना आवश्यक है।''
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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साहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:42 PM
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