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साहित्य
#16
इस पद्य का अरबी बÐ है फ़ऊल फ़ेलुन फ़ऊल फ़ेलुन फ़उल फ़ेलुन फष्ऊल फ़ेलुन। पहले दो चरणों में हिन्दी शब्दों का प्रयोग निर्दोष हुआ है यद्यपि वे शुध्द ब्रज भाषा में लिखे गये हैं। केवल 'नैना' का 'ना' दीर्घ कर दिया गया है। किन्तु यह अपभ्रंश और ब्रज भाषा के नियमानुकूल है। शेष पद्यों की भाषा खड़ी हिन्दी की बोलचाल में है। केवल 'रतियाँ', 'बतियाँ', 'पतियाँ', 'घतियाँ' का प्रयोग ही ऐसा है, जो ब्रजभाषा का कहा जा सकता है। उनके इस प्रकार के मिश्रण के सम्बन्धा में मैं अपनी सम्मति प्रकट कर चुका हूँ। हाँ, मात्रिाक छन्दों के नियमों की दृष्टि से खड़ी बोली के पद्य निर्दोष नहीं हैं। अनेक स्थानों पर लघु के स्थान पर गुरु लिखा गया है यद्यपि वहाँ लघु लिखना चाहिए था। जैसे सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ ऍंधोरी 'रतियाँ' इस पद्य में 'जो' के स्थान पर 'जु' तो के स्थान पर 'त', कैसे के स्थान पर 'कैस' और ऍंधोरी के स्थान पर'ऍंधोर', पढ़ने से ही छन्द की गति निर्दोष रहेगी। ऐसी ही हिन्दी भाषा के शेष पद्यों की पंक्तियाँ सदोष हैं, परन्तु जब हम वर्तमान काल की उन्नति प्राप्त उर्दू पद्यों को देखते हैं तो उनके इस प्रकार के पद्य-गत हिन्दी भाषा के शब्द-विन्यास को दोषावह नहीं समझते, क्योंकि अरबी बÐों में हिन्दी शब्दों का व्यवहार प्राय: विवश होकर इसी रूप में करना पड़ता है। वरन् कहना यह पड़ता है कि उर्दू कविता के प्रारम्भ होने से 200 वर्ष पहले ही इस प्रणाली का आविर्भाव कर उन्होंने उर्दू संसार के कवियों को उस मार्ग का प्रदर्शन किया जिस पर चलकर ही आज उर्दू पद्य-साहित्य इतना समुन्नत है। इस दृष्टि से उनकी गृहीत प्रणाली एक प्रकार से अभिनन्दनीय ही ज्ञात होती है, निन्दनीय नहीं। खुसरो ने हिन्दुस्तानी भावों का चित्राण करते हुए कुछ ऐसे गीत भी लिखे हैं जो बहुत ही स्वाभाविक हैं। उनमें से एक देखिए-

ड्डसावन का गीतड्ड

अम्मा मेरे बाबा को भेजो जी कि सावन आया।

बेटी तेरा बाबा तो बुङ्ढा री कि सावन आया।

अम्मा मेरे भाई को भेजो जी कि सावन आया।

बेटी तेरा भाई तो बालारी कि सावन आया।

अम्मा मेरे मामूं को भेजो जी कि सावन आया।

बेटी तेरा मामूँ तो बाँकारी कि सावन आया।

दो दोहे भी देखिए, कितने सुन्दर हैं-

1. खुसरो रैनि सुहाग की , जागी पी के संग।

तन मेरो मन पीउ को , दोऊ भये इक रंग।

2. गोरी सोवै सेज पर , मुख पर डारे केस।

चल खुसरो घर आपने , रैनि भई चहुँदेस।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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साहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:42 PM
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