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साहित्य
#15
उनके पहले के कवियों की रचनाओं से उनकी रचनाओं में अधिाकतर प्रांजलता है, जो हिन्दी के भण्डार पर उनका प्रशंसनीय अधिाकार प्रकट करती है। उनकी रचनाओं में फारसी और अरबी इत्यादि के शब्द भी आये हैं, परन्तु वे इस सुन्दरता से खपाये गये हैं कि जिसकी बहुत कुछ प्रशंसा की जा सकती है। चन्द बरदाई के समय से ही हिन्दी भाषा में अरबी,फारसी और तुर्की के शब्द गृहीत होने लगे थे और यह सामयिक प्रभाव का फल था। परन्तु जिस सावधाानी और सफाई के साथ उन भाषाओं के शब्दों का प्रयोग इन्होंने किया है, वह अनुकरणीय है। उन भाषाओं के अधिाकतर शब्द अन्य कवियों द्वारा तोड़-मरोड़कर या बिगाड़कर लिखे गये हैं, किन्तु यह कवि प्राय: इन दोषों से मुक्त था। एक विशेषता इनमें यह भी देखी जाती है कि अरबी के बÐों में इन्होंने हिन्दी पद्यों की रचना सफलतापूर्वक की है, साथ ही फारसी के वाक्यों के साथ हिन्दी वाक्यों को अपने एक पद्य में इस उत्तामता से मिलाया है, जो मुग्धा कर देता है। मैं उस पद्य को यहाँ लिखता हूँ। आप लोग भी उसका रस लें-

'' जेहाले मिस्कीं मकुन तग़ाफुलदुराय नैना बनाय बतियाँ।

कि ताबे हिज्रां दारमऐजां न लेहु काहें लगाय छतियाँ।

शबाने हिज्रां न दराज़ चूँ जुल्फ व रोजे वसलत चूँ उम्र कोतह।

सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ ऍंधोरी रतियाँ।

एकाएक अज़दिल दो चश्मे जादू बसद फ़रेबम् बेबुर्द तस्कीं।

किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ।

चूँ शमा सोज़ां चूँ ज़र्रा हैरां हमेशा गिरियाँ बइश्क़ ऑंमह।

न नींद नैना न अंग चैना न आप आवें न भेजैं पतियाँ।

बहक्क रोजे विसाल दिलवर दि दाद मारा फ़रेब खुसरों।

सुपीत मन को दुराय राखूँ जो जान पाऊँ पिया की घतियाँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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साहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:42 PM
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