01-08-2019, 03:45 PM
जिस क्रम से कविताओं का उध्दरण किया गया है, उसके देखने से ज्ञात हो जायेगा कि उत्तारोत्तार एक से दूसरी कविता की भाषा का अधिाकतर परिमार्जित रूप है। शारंगधार की रचना में अधिाक मात्राा में अपभ्रंश शब्द हैं। ऐसे शब्द चिद्दित कर दिये गये हैं। उसके बाद की नम्बर 2 और 3 की रचनाओं में इने-गिने शब्द ही अधिाकतर दिखलाई देते हैं। जिससे पता चलता है कि इस शताब्दी की आदि की रचनाओं पर तो अपभ्रंश शब्दों का अवश्य अधिाक प्रभाव है। परन्तु बाद की रचनाओं में उनका प्रभाव उत्तारोत्तार कम होता गया है। यहाँ तक कि अमीर खुसरो की रचनाएँ उनसे सर्वथा मुक्त दिखलाई पड़ती हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.