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साहित्य
#12
चौदहवें शतक में भी कुछ जैन विद्वानों ने हिन्दी भाषा में कविता की है। इनके अतिरिक्त नल्ल सिंह भाट सिरोहिया ने विजयपाल रासो, शारंगधार नामक कवि ने शारंगधार-पध्दति, हम्मीर काव्य और हम्मीर रासो नामक तीन ग्रंथ बनाये, जिनमें से हम्मीर रासो अधिाक प्रसिध्द है, बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में जैसे शब्दों से युक्त भाषा लिखी गयी है, उससे इन लोगों की रचनाओं में हिन्दी का स्वरूप विशेष परिमार्जित मिलता है। प्रमाण्ास्वरूप कुछ पद्य नीचे उध्दाृत किये जाते हैं।

कवि शारंगधार (रचनाकाल 1306 ई.)

1. ढोलामारियढिल्लिमहँ मुच्छिउ मेच्छ सरीर।

पुर जज्जल्ला मंत्रिावर चलिय वीर हम्मीर।

चलिअ बीर हम्मीर पाअभर मेंइणि कंपइ।

दिग पग डह अंधाार धाूलि सुरिरह अच्छा इहि।

ग्रंथ-संघपति समरा रासो, कवि अम्बदेव जैन, (रचना काल 1314 ई.)

2. निसि दीवी झलहलहिं जेम उगियो तारायण।

पावल पारुन पामिय बहई वेगि सुखासण।

आगे बाणिहिं संचरए सँघपति सहु देसल।

बुध्दिवंत बहु पुण्यवंत पर कमिहिं सुनिश्चल।

ग्रंथ थूलि भद्र फागु, कवि जिन पर्सिूंरि (रचनाकाल 1320 ई.)

3. अह सोहग सुन्दर रूपवंत गुण मणिभण्डारो।

कंचण जिमि झलकंत कंति संजम सिरिहारो।

थूलिभद्र मणिराव जाम महि अलो बुहन्तउ।

नयर राम पाउलिय मांहि पहुँतउ बिहरंतउ।

ग्रन्थ विजयपाल रासो (रचना काल 1325 ई.) नल्लसिंह भाट सिरोहिया।

4. दश शत वर्ष निराण मास फागुन गुरु ग्यारसि।

पाय-सिध्द बरदान तेग जद्दव कर धाारसि।

जीतिसर्व तुरकान बलख खुरसान सुगजनी।

रूम स्याम अस्फहाँ फ्रंग हवसान सु भजनी।

ईराण तोरि तूराण असि खौसिर बंग ख्रधाार सब।

बलवंड पिंड हिंदुवान हद चढिब बीर बिजयपालसब।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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