01-08-2019, 03:45 PM
के साहित्य में भी यह बात पाई जाती है। चौदहवीं ईस्वी शताब्दी से सत्राहवीं शताब्दी तक * साम्राज्य दिन-दिन शक्तिशाली होता गया। इसके बाद उसका अचानक ऐसा पतन हुआ कि कुछ वर्षों में ही इतिश्री हो गई। यह एक संयोग की बात है कि हिन्दी-संसार के वे कवि और महाकवि जिनसे हिन्दी-भाषा का मुख उज्ज्वल हुआ इसी काल में हुए। इस माधयमिक काल में जैसा सुधाावर्षण हुआ, जैसी रस धाारा बही, जैसे ज्ञानालोक से हिन्दी संसार आलोकित हुआ, जैसा भक्ति-प्रवाह हिन्दी काव्य-क्षेत्रा में प्रवाहित हुआ, जैसे समाज के उच्च कोटि के आदर्श उसको प्राप्त हुए, उसका वर्णन बड़ा ही हृदय-ग्राही और मर्म-स्पर्शी होगा। मैंने इस कार्य्यसिध्दि के लिए ही इस समय की धाार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक अवस्थाओं का चित्रा यहाँ पर चित्रिात किया है। अब प्रकृत विषय को लीजिए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.