01-08-2019, 03:43 PM
मैं समझता हूँ कि जितने ग्रामीण गीत हिन्दी भाषा के सर्वसाधाारण में प्रचलित हैं, उनमें जगनायक के आल्हा खंड की प्रधाानता है। उसके देखने से यह अवगत होता है कि सर्वसाधाारण की बोलचाल में भी कैसी ओजपूर्ण रचना हो सकती है। इस उद्देश्य से भी इस कवि की चर्चा आवश्यक ज्ञात हुई। उसकी रचना के कुछ पद्य नीचे लिखे जाते हैं-
कूदे लाखन तब हौदा से , औ धारती मैं पहुँचे आइ।
गगरी भर के फूल मँगाओ सो भुरुही को दओ पियाइ।
भांग मिठाई तुरतै दइ दइ , दुहरे घोट अफीमन क्यार।
राती भाती हथिनी करि कै दुहरे ऑंदू दये डराय।
चहुँ ओर घेरे पृथीराज हैं , भुरुही रखि हौ धार्म हमार।
खैंचि सरोही लाखन लीन्ही समुहें गोलगये समियाय।
साँकर फेरै भुरुही दल में , सब दल काट करो खरियान।
जैसे भेड़हा भेड़न पैठे , जैसे सिंह बिड़ारै गाय।
वह गत कीनी लाखन ने , नद्दी बितवै के मैदान।
देवि दाहिनी भइ लाखन को , मुरचा हटौ पिथौरा क्यार।
कूदे लाखन तब हौदा से , औ धारती मैं पहुँचे आइ।
गगरी भर के फूल मँगाओ सो भुरुही को दओ पियाइ।
भांग मिठाई तुरतै दइ दइ , दुहरे घोट अफीमन क्यार।
राती भाती हथिनी करि कै दुहरे ऑंदू दये डराय।
चहुँ ओर घेरे पृथीराज हैं , भुरुही रखि हौ धार्म हमार।
खैंचि सरोही लाखन लीन्ही समुहें गोलगये समियाय।
साँकर फेरै भुरुही दल में , सब दल काट करो खरियान।
जैसे भेड़हा भेड़न पैठे , जैसे सिंह बिड़ारै गाय।
वह गत कीनी लाखन ने , नद्दी बितवै के मैदान।
देवि दाहिनी भइ लाखन को , मुरचा हटौ पिथौरा क्यार।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.