06-01-2019, 10:38 AM
भाग - 48
उसकी ऊँगलियाँ दीपा की चूत से निकले काम-रस से सनी हुई थीं। दीपा की आँखें अभी भी बंद थीं और वो तेज़ी से साँसें ले रही थी।
राजू ने दीपा का हाथ पकड़ा और पेड़ के नीचे बैठ गया और दीपा को भी खींचते हुए नीचे बैठाने की कोशिश करना लगा।
दीपा मदहोश सी उसके साथ बैठ गई.. राजू ने अपनी टाँगों को फैला कर दीपा को बीच में बैठा लिया।
“कोई देख लेगा यहाँ..।”
दीपा ने फिर से धड़कते हुए दिल के साथ एक बार फिर कहा।
“कोई नहीं आएगा यहाँ…” राजू ने दीपा को अपने बदन से चिपकते हुए कहा और अपने दोनों हाथों को आगे ले जाकर दीपा की चूचियों को कमीज़ से ऊपर पकड़ कर धीरे-धीरे मसलने लगा।
दीपा ने अपनी अधखुली आँखों से राजू के हाथों की हरकत देखते हुए कहा- उई..अह.. ईए.. ईए क्या कर रहे हो.. आह्ह.. दर्द हो रहा है।
राजू ने अपने दहकते हुए होंठों को दीपा की गर्दन पर लगा दिया और दीपा के मुँह से मस्ती भरी सिसकारी निकल गई..।
“यहाँ कोई नहीं देखेगा… मैं तुम्हें प्यार कर रहा हूँ…तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या..?”
राजू की बात का दीपा ने कोई जवाब नहीं दिया, राजू उसकी दोनों चूचियों को धीरे-धीरे अपने हाथों में भर कर मसलते हुए.. उसके गर्दन पर अपने होंठों पर रगड़ रहा था।
दीपा की साँसें एक बार फिर से पूरी तेज़ी से चलने लगी थीं और वो घुटी सी आवाज़ में सिसिया रही थी। जिसे सुन कर राजू के हिम्मत और बढ़ती जा रही थी। उसने अपना एक हाथ उसकी चूची से हटा कर नीचे सलवार के जाबरान की तरफ ले जाना शुरू कर दिया।
जैसे ही दीपा को इस बात का अहसास हुआ, उसने अपने सलवार के नाड़े को कस कर पकड़ लिया.. ताकि राजू अपना हाथ अन्दर ना ले जा सके.. पर राजू के आगे दीपा की एक ना चली और राजू ने थोड़ी सी मशक्कत के बाद अपना हाथ दीपा की सलवार और चड्डी के अन्दर घुसा दिया।
आहह.. क्या अहसास था…उस कुँवारी चूत का.. एकदम गरम और गदराई हुई.. दीपा की चूत एकदम चिकनी थी। शायद उसने एक दिन पहले ही अपनी चूत की बालों को साफ़ किया था।
अपनी चूत पर राजू के हाथ का अहसास पाते ही.. दीपा एकदम से मचल उठी। उसने अपने दोनों हाथों से राजू की जाँघों को दबोच लिया और उसने अपनी पीठ को राजू की छाती से सटा लिया। जिससे राजू का हौसला हर पल बढ़ता जा रहा था।
राजू ने दूसरे हाथ को नीचे ले जाकर दीपा की कमीज़ और नीचे पहनी हुई समीज़ के नीचे से डालते हुए.. उसकी चूचियों पर पहुँचा दिया।
दीपा की नंगी चूचियों को महसूस करते ही.. राजू का लण्ड अपनी औकात पर आ गया और पीछे दीपा की कमर पर जा धंसा। राजू के लण्ड के गरमी को अपनी कमर महसूस करते ही दीपा एकदम से सिहर उठी, उसकी साँसें और तेज हो गईं.. उसके होंठ उत्तेजना के कारण काँप रहे थे।
राजू ने दीपा के बाईं चूची को अपने हाथ में लेकर धीरे से मसल दिया।
“आह.. उफ़.. बसस्स ओह्ह..” दीपा एकदम से सिसक उठी।
उसकी ये सिस्कारियां बयान कर रही थीं कि वो कितनी गरम हो चुकी है। फिर राजू ने दीपा की गर्दन पर अपने दहकते हुए होंठों को रख कर.. उसकी चूची के चूचुक को अपनी उँगलियों के बीच में लेकर मसलना शुरू कर दिया।
दीपा के चूचुक एकदम नुकीले होकर कड़क हो चुके थे। दीपा की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था।
दीपा की चूत में सरसराहट और तेज हो गई थी और उसकी कुँवारी चूत लगातार अपना कामरस बहा कर लण्ड को लेने के लिए तड़फ रही थी। मदहोश हो रही दीपा ने अपना सारा वजन राजू के ऊपर डाल दिया था.. उसका सर पीछे लुड़क कर राजू के कंधे पर टिका हुआ था,
जिसका फायदा उठाते हुए.. राजू ने एक बार फिर से अपने होंठों को दीपा के रसीले होंठों पर टिका दिया।
इस बार दीपा ने कोई विरोध नहीं किया और उसने अपने होंठों को ढीला छोड़ कर राजू के हवाले कर दिया। उसके पूरे बदन में मस्ती के लहरें दौड़ रही थीं और उसका बदन आग के तरह तप रहा था, पर राजू जानता था कि वो यहाँ कुछ ज्यादा नहीं कर सकता।
राजू अब आराम से दीपा के होंठों को रस चूस-चूस कर पी रहा था और दीपा भी अपने होंठों को ढीला को छोड़ कर राजू से चुसवाते हुए मदहोश होती जा रही थी।
तभी दोनों को किसी के क़दमों की आहट पास आते हुए महसूस हुई। दोनों एकदम से अलग हो गए..खड़े होकर अपने कपड़ों को दुरस्त करने लगे। तभी उनके पास से एक आदमी गुज़रा और वो आगे की तरफ चला गया। दोनों ने चैन की साँस ली।
“अब घर चलना चाहिए…” दीपा ने घबराए हुए हड़बड़ाते हुए राजू से कहा।
राजू- हाँ चलो.. घर पर सब इंतजार करते होंगे..।
फिर दोनों बाग़ से निकल कर घर की तरफ चल पड़े। रास्ते में दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई.. घर आते ही दीपा कमरे में घुस गई और अपनी सलवार उतारने के बाद अपनी चड्डी निकाल कर देखने लगी। उसकी पैन्टी नीचे से एकदम उसके कामरस से सनी हुई थी।
जब उसने अपनी चूत की फांकों को अपनी उँगलियों से छुआ, तो उसकी ऊँगलियाँ भी उसकी चूत से निकल रहे पानी से लसलसा गईं।
दूसरी तरफ चमेली के घर पर आज रतन और रज्जो के वापिस जाने का दिन था… रज्जो का दिल वहाँ से जाने को नहीं कर रहा था और वो बुझे हुए मन से जाने की तैयारी कर रही थी। चमेली अभी तक सेठ के घर से नहीं लौटी थी। रतन चारपाई पर बैठा हुआ रज्जो को देख रहा था।
“क्या हुआ इतनी उदास क्यों है?”
रतन ने रज्जो के उदास चेहरे को देख कर पूछा।
रज्जो- कुछ नहीं,
रतन- अरे बता ना।
“क्या हम कुछ और दिन नहीं रुक सकते..?”
रज्जो ने डरते हुए पूछा।
“अरे घर में माँ-बाबा नाराज़ हो जाएँगे कि इतने दिन सुसराल में बैठा रहा… चल फिर भी अगर तू कहती है.. तो कम से कम आज का दिन और रुक जाते हैं और हाँ.. जितनी भी बातें अपनी सहेलियों से करनी हैं.. आज खत्म कर ले.. वैसे भी तू मेरी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देती..।” रतन ने मुस्कुराते हुए कहा।
रज्जो ने अपना सर झुका लिया और बाहर की तरफ जाने लगी। तभी चमेली घर में दाखिल हुई.. रज्जो को बाहर जाता देख कर उसने पूछा- तैयारी हो गई तुम्हारी..?
रज्जो- हाँ माँ.. पर हम कल जा रहे हैं… वैसे भी आज वक्त बहुत हो गया है.. रात को देर से पहुँचेगे नहीं तो.. अभी मैं मीना के घर जा रही हूँ..।
ये कहते हुए.. रज्जो पड़ोस के घर में चली गई। बाहर के दरवाजे पर खड़ी चमेली ने एक बार रज्जो को पड़ोस के घर में घुसते देखा और फिर एक तरफ अन्दर वाले कमरे में वहाँ खड़े-खड़े नज़र डाली। रतन कमरे में चारपाई पर नीचे पैर लटका कर लेटा हुआ था। उसने दरवाजा बंद किया और कमरे में आ गई।
चमेली- क्या बात है दामाद जी.. आज अचानक से जाने के फैसला कैसे बदल लिया?
चमेली ने होंठों पर कामुक मुस्कान लाते हुए कहा।
“अरे सासू जी… आपका प्यार जाने नहीं दे रहा…।” रतन ने अपने लण्ड को धोती के ऊपर से मसलते हुए कहा।
रतन की इस हरकत से चमेली के चेहरा शरम से लाल हो गया।
“क्या सोच रही हो.. अब वहाँ ही खड़ी रहोगी..?” रतन ने अपनी धोती को बगल से हटाते हुए अपना लण्ड बाहर निकाल कर कहा।
रतन का लण्ड एकदम तना हुआ था और काले साँप की तरह फुंफकार रहा था।
“ये हरदम ऐसे ही खड़ा रहता है..?” चमेली ने रतन के लण्ड को देखते हुए, अपने होंठों को दाँतों में लेकर चबाते हुए कहा।
रतन ने अपने सुपारे की चमड़ी को पीछे करके लाल सुपारे चमेली को दिखाते हुए कहा- हरदम तो नहीं पर.. आपकी चूत की खुशबू इससे दूर से ही मिल गई थी.. इसलिए उसके सम्मान में खड़ा हो गया।
चमेली तिरछी नज़रों से रतन के लण्ड को लालसा भरी नज़रों से देख रही थी। रतन के लण्ड के लाल और मोटे सुपारे को देख कर चमेली की चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं…. उसके बदन में वासना की लहर दौड़ रही थी।
उसकी ऊँगलियाँ दीपा की चूत से निकले काम-रस से सनी हुई थीं। दीपा की आँखें अभी भी बंद थीं और वो तेज़ी से साँसें ले रही थी।
राजू ने दीपा का हाथ पकड़ा और पेड़ के नीचे बैठ गया और दीपा को भी खींचते हुए नीचे बैठाने की कोशिश करना लगा।
दीपा मदहोश सी उसके साथ बैठ गई.. राजू ने अपनी टाँगों को फैला कर दीपा को बीच में बैठा लिया।
“कोई देख लेगा यहाँ..।”
दीपा ने फिर से धड़कते हुए दिल के साथ एक बार फिर कहा।
“कोई नहीं आएगा यहाँ…” राजू ने दीपा को अपने बदन से चिपकते हुए कहा और अपने दोनों हाथों को आगे ले जाकर दीपा की चूचियों को कमीज़ से ऊपर पकड़ कर धीरे-धीरे मसलने लगा।
दीपा ने अपनी अधखुली आँखों से राजू के हाथों की हरकत देखते हुए कहा- उई..अह.. ईए.. ईए क्या कर रहे हो.. आह्ह.. दर्द हो रहा है।
राजू ने अपने दहकते हुए होंठों को दीपा की गर्दन पर लगा दिया और दीपा के मुँह से मस्ती भरी सिसकारी निकल गई..।
“यहाँ कोई नहीं देखेगा… मैं तुम्हें प्यार कर रहा हूँ…तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या..?”
राजू की बात का दीपा ने कोई जवाब नहीं दिया, राजू उसकी दोनों चूचियों को धीरे-धीरे अपने हाथों में भर कर मसलते हुए.. उसके गर्दन पर अपने होंठों पर रगड़ रहा था।
दीपा की साँसें एक बार फिर से पूरी तेज़ी से चलने लगी थीं और वो घुटी सी आवाज़ में सिसिया रही थी। जिसे सुन कर राजू के हिम्मत और बढ़ती जा रही थी। उसने अपना एक हाथ उसकी चूची से हटा कर नीचे सलवार के जाबरान की तरफ ले जाना शुरू कर दिया।
जैसे ही दीपा को इस बात का अहसास हुआ, उसने अपने सलवार के नाड़े को कस कर पकड़ लिया.. ताकि राजू अपना हाथ अन्दर ना ले जा सके.. पर राजू के आगे दीपा की एक ना चली और राजू ने थोड़ी सी मशक्कत के बाद अपना हाथ दीपा की सलवार और चड्डी के अन्दर घुसा दिया।
आहह.. क्या अहसास था…उस कुँवारी चूत का.. एकदम गरम और गदराई हुई.. दीपा की चूत एकदम चिकनी थी। शायद उसने एक दिन पहले ही अपनी चूत की बालों को साफ़ किया था।
अपनी चूत पर राजू के हाथ का अहसास पाते ही.. दीपा एकदम से मचल उठी। उसने अपने दोनों हाथों से राजू की जाँघों को दबोच लिया और उसने अपनी पीठ को राजू की छाती से सटा लिया। जिससे राजू का हौसला हर पल बढ़ता जा रहा था।
राजू ने दूसरे हाथ को नीचे ले जाकर दीपा की कमीज़ और नीचे पहनी हुई समीज़ के नीचे से डालते हुए.. उसकी चूचियों पर पहुँचा दिया।
दीपा की नंगी चूचियों को महसूस करते ही.. राजू का लण्ड अपनी औकात पर आ गया और पीछे दीपा की कमर पर जा धंसा। राजू के लण्ड के गरमी को अपनी कमर महसूस करते ही दीपा एकदम से सिहर उठी, उसकी साँसें और तेज हो गईं.. उसके होंठ उत्तेजना के कारण काँप रहे थे।
राजू ने दीपा के बाईं चूची को अपने हाथ में लेकर धीरे से मसल दिया।
“आह.. उफ़.. बसस्स ओह्ह..” दीपा एकदम से सिसक उठी।
उसकी ये सिस्कारियां बयान कर रही थीं कि वो कितनी गरम हो चुकी है। फिर राजू ने दीपा की गर्दन पर अपने दहकते हुए होंठों को रख कर.. उसकी चूची के चूचुक को अपनी उँगलियों के बीच में लेकर मसलना शुरू कर दिया।
दीपा के चूचुक एकदम नुकीले होकर कड़क हो चुके थे। दीपा की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था।
दीपा की चूत में सरसराहट और तेज हो गई थी और उसकी कुँवारी चूत लगातार अपना कामरस बहा कर लण्ड को लेने के लिए तड़फ रही थी। मदहोश हो रही दीपा ने अपना सारा वजन राजू के ऊपर डाल दिया था.. उसका सर पीछे लुड़क कर राजू के कंधे पर टिका हुआ था,
जिसका फायदा उठाते हुए.. राजू ने एक बार फिर से अपने होंठों को दीपा के रसीले होंठों पर टिका दिया।
इस बार दीपा ने कोई विरोध नहीं किया और उसने अपने होंठों को ढीला छोड़ कर राजू के हवाले कर दिया। उसके पूरे बदन में मस्ती के लहरें दौड़ रही थीं और उसका बदन आग के तरह तप रहा था, पर राजू जानता था कि वो यहाँ कुछ ज्यादा नहीं कर सकता।
राजू अब आराम से दीपा के होंठों को रस चूस-चूस कर पी रहा था और दीपा भी अपने होंठों को ढीला को छोड़ कर राजू से चुसवाते हुए मदहोश होती जा रही थी।
तभी दोनों को किसी के क़दमों की आहट पास आते हुए महसूस हुई। दोनों एकदम से अलग हो गए..खड़े होकर अपने कपड़ों को दुरस्त करने लगे। तभी उनके पास से एक आदमी गुज़रा और वो आगे की तरफ चला गया। दोनों ने चैन की साँस ली।
“अब घर चलना चाहिए…” दीपा ने घबराए हुए हड़बड़ाते हुए राजू से कहा।
राजू- हाँ चलो.. घर पर सब इंतजार करते होंगे..।
फिर दोनों बाग़ से निकल कर घर की तरफ चल पड़े। रास्ते में दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई.. घर आते ही दीपा कमरे में घुस गई और अपनी सलवार उतारने के बाद अपनी चड्डी निकाल कर देखने लगी। उसकी पैन्टी नीचे से एकदम उसके कामरस से सनी हुई थी।
जब उसने अपनी चूत की फांकों को अपनी उँगलियों से छुआ, तो उसकी ऊँगलियाँ भी उसकी चूत से निकल रहे पानी से लसलसा गईं।
दूसरी तरफ चमेली के घर पर आज रतन और रज्जो के वापिस जाने का दिन था… रज्जो का दिल वहाँ से जाने को नहीं कर रहा था और वो बुझे हुए मन से जाने की तैयारी कर रही थी। चमेली अभी तक सेठ के घर से नहीं लौटी थी। रतन चारपाई पर बैठा हुआ रज्जो को देख रहा था।
“क्या हुआ इतनी उदास क्यों है?”
रतन ने रज्जो के उदास चेहरे को देख कर पूछा।
रज्जो- कुछ नहीं,
रतन- अरे बता ना।
“क्या हम कुछ और दिन नहीं रुक सकते..?”
रज्जो ने डरते हुए पूछा।
“अरे घर में माँ-बाबा नाराज़ हो जाएँगे कि इतने दिन सुसराल में बैठा रहा… चल फिर भी अगर तू कहती है.. तो कम से कम आज का दिन और रुक जाते हैं और हाँ.. जितनी भी बातें अपनी सहेलियों से करनी हैं.. आज खत्म कर ले.. वैसे भी तू मेरी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देती..।” रतन ने मुस्कुराते हुए कहा।
रज्जो ने अपना सर झुका लिया और बाहर की तरफ जाने लगी। तभी चमेली घर में दाखिल हुई.. रज्जो को बाहर जाता देख कर उसने पूछा- तैयारी हो गई तुम्हारी..?
रज्जो- हाँ माँ.. पर हम कल जा रहे हैं… वैसे भी आज वक्त बहुत हो गया है.. रात को देर से पहुँचेगे नहीं तो.. अभी मैं मीना के घर जा रही हूँ..।
ये कहते हुए.. रज्जो पड़ोस के घर में चली गई। बाहर के दरवाजे पर खड़ी चमेली ने एक बार रज्जो को पड़ोस के घर में घुसते देखा और फिर एक तरफ अन्दर वाले कमरे में वहाँ खड़े-खड़े नज़र डाली। रतन कमरे में चारपाई पर नीचे पैर लटका कर लेटा हुआ था। उसने दरवाजा बंद किया और कमरे में आ गई।
चमेली- क्या बात है दामाद जी.. आज अचानक से जाने के फैसला कैसे बदल लिया?
चमेली ने होंठों पर कामुक मुस्कान लाते हुए कहा।
“अरे सासू जी… आपका प्यार जाने नहीं दे रहा…।” रतन ने अपने लण्ड को धोती के ऊपर से मसलते हुए कहा।
रतन की इस हरकत से चमेली के चेहरा शरम से लाल हो गया।
“क्या सोच रही हो.. अब वहाँ ही खड़ी रहोगी..?” रतन ने अपनी धोती को बगल से हटाते हुए अपना लण्ड बाहर निकाल कर कहा।
रतन का लण्ड एकदम तना हुआ था और काले साँप की तरह फुंफकार रहा था।
“ये हरदम ऐसे ही खड़ा रहता है..?” चमेली ने रतन के लण्ड को देखते हुए, अपने होंठों को दाँतों में लेकर चबाते हुए कहा।
रतन ने अपने सुपारे की चमड़ी को पीछे करके लाल सुपारे चमेली को दिखाते हुए कहा- हरदम तो नहीं पर.. आपकी चूत की खुशबू इससे दूर से ही मिल गई थी.. इसलिए उसके सम्मान में खड़ा हो गया।
चमेली तिरछी नज़रों से रतन के लण्ड को लालसा भरी नज़रों से देख रही थी। रतन के लण्ड के लाल और मोटे सुपारे को देख कर चमेली की चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं…. उसके बदन में वासना की लहर दौड़ रही थी।