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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#50
भाग - 47

राजू बिना कुछ बोले.. बाहर की ओर चल पड़ा। दीपा भी उसके पीछे चलने लगी… जैसे ही दोनों घर के बाहर आए.. तो राजू ने दीपा से पूछा- कहाँ जाना है आपको..?

राजू ने आज पहली बार दीपा से बात की थी। राजू की आवाज़ सुन कर वो थोड़ा सा हड़बड़ा गई।

“वो.. बाजार जाना है.. कुछ सामान लेना है मुझे..।”

राजू- वैसे यहाँ से बाजार ज्यादा दूर नहीं है। पैदल चलें ?

दीपा ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा- ठीक है।

दोनों बाजार की तरफ पैदल चल पड़े। दोनों खामोशी से बाजार की तरफ बढ़ रहे थे। बाजार पहुँच कर दीपा ने अपने लिए कुछ खरीदारी की और फिर वो दोनों घर की तरफ चल पड़े।

राजू- मैं आपसे एक बात कहूँ…।

दीपा ने थोड़ा चौंकते हुए उसकी तरफ देखा।

“आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हो..।”

दीपा राजू की बात सुनकर शर्मा गई और अपने सर को झुका कर मुस्कारने लगी। दोनों घर की तरफ चलते हुए.. एक बाग के सामने से गुजर रहे थे।

“चलिए कुछ देर यहाँ बाग के अन्दर घूम कर आते हैं.. बहुत अच्छी जगह है।”

राजू की बात सुन कर दीपा के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो राजू के साथ चले या नहीं..।

दीपा को यूँ सोचता देख कर राजू समझ गया कि वो शायद घबरा रही है।

“चलिए अगर आपका दिल नहीं है तो कोई बात नहीं… रहने दीजिए…।”

ये कह कर राजू आगे बढ़ने लगा।

“रूको मुझे देखना है ये बाग… छोटी माँ भी उसके बारे में बात कर रही थीं..।”

दीपा ने राजू के नाराज़ चेहरे की ओर देखते हुए कहा और दीपा की ये बात सुन कर तो जैसे राजू की बाँछें खिल गईं।

दोनों बाग़ के अन्दर चले गए.. दोपहर का समय था… ज्यादातर वहाँ के लोग उस बाग़ में सुबह या शाम को घूमने आते थे और दोपहर को बाग़ में बस कुछ गिने-चुने लोग ही देखे जा सकते थे। राजू तो पहले भी कई बार यहाँ आ चुका था और इस बाग के कोने-कोने से वाकिफ़ था।

दोनों खोमाशी से बाग़ के अन्दर बढ़ते जा रहे थे। बाग़ के काफ़ी अन्दर आने के बाद राजू एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया।

दीपा जो यहाँ पहली बार आई थी, वो बाग़ की सुंदरता को देख कर मन्त्र-मुग्ध हो रही थी। वो राजू के सामने इधर-उधर टहल रही थी और राजू दीपा के बदन से अपनी आँखें सेंक रहा था। टहलते हुए अचानक दीपा के कदम थम गए, वो कुछ पलों के लिए भूल गई कि उसके साथ राजू भी है, जो उसी की तरफ देख रहा है।

दीपा खड़ी हुई जो कुछ देख रही थी, वो नीचे बैठे राजू को शायद नहीं दिखाई दे रहा था… राजू तो बस वहीं बैठा हुआ दीपा के चेहरे के बदलते भावों को देख रहा था। दीपा की साँसें तेज चल रही थीं… उसकी कसी हुई चूचियां तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रही थीं… जिसे देख राजू के लण्ड में हरकत होने लगी। दीपा उसी ओर टकटकी लगाए देखे जा रही थी। राजू एकदम से खड़ा हो गया और दीपा के पीछे आ गया।

इस बात से अंजान दीपा अभी भी उसी तरफ टकटकी लगाए देखे जा रही थी। राजू ने उसकी नज़रों का पीछा करते हुए.. उस तरफ देखा जिस तरफ दीपा देख रही थी और राजू ने जो देखा वो देख कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

उनसे कुछ दूर एक पेड़ के नीचे एक लड़का और लड़की बैठे हुए थे। वे दोनों एक-दूसरे की बाँहों में समाए हुए.. एक-दूसरे के होंठों को चूस रहे थे।

लड़के का हाथ लड़की की सलवार के अन्दर था और वो उसकी चूत को सहला रहा था। लड़की मचल कर उससे लिपटे जा रही थी। अपने सामने ये नज़ारा देख कर कर दीपा कुछ पलों के लिए सब भूल गई थी। उसके पूरे बदन में अजीब सी झुरझुरी हो रही थी।

तभी उसे अपनी कमर पर किसी के हाथ का अहसास हुआ.. जिससे दीपा एकदम हड़बड़ा गई। उसने पीछे मुड़ कर देखा.. तो राजू उसके पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था।

दीपा एकदम से शरमा गई.. उसने अपने सर को झुका लिया… दीपा के गोरे गाल शरम के मारे लाल होकर दहकने लगे। वो एकदम पीछे की तरफ भाग कर उस पेड़ के पीछे चली गई, जिस पेड़ के नीचे राजू बैठा था। दीपा की साँसें अब भी तेज चल रही थीं।


उसके हाथ-पाँव बुरी तरह से काँप रहे थे। राजू को इससे अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था और वो इस मौके को हाथ से नहीं देना चाहता था.. वो तेजी से उस पेड़ के पीछे गया.. यहाँ पर दीपा खड़ी हो कर तेज़ी से साँसें ले रही थी।

उसका पूरा बदन अनज़ान उत्सुकता और डर के मारे काँप रहा था। उसकी पीठ राजू की तरफ थी, तभी उसे अपनी कमर के दोनों तरफ फिर से राजू के हाथों को अहसास हुआ और उसके दिल की धड़कनें थम गईं। उसने अपने चेहरे को पीछे घुमा कर देखा.. राजू वासना भरी नज़रों से उसके बदन को घूर रहा था।

इससे पहले कि दीपा कुछ बोलती.. राजू के हाथ दीपा की कमर से उसके पतले पेट की ओर बढ़ने लगे।

दीपा के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई.. उसका पूरा बदन कँपने लगा। दीपा की आवाज़ उसके मुँह में ही बंद होकर रह गई। उसके पाँव तो मानो वहीं जम गए हों.. वो चाह कर भी ना तो हिल पा रही थी और ना ही राजू को रोक पा रही थी।

दीपा ने आज से पहले कभी ऐसी परिस्थिति का सामना नहीं किया था। जैसे ही राजू ने अपने हाथों को दीपा की नाभि के पास ले जाकर हल्का सा दबाया… तो दीपा के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।

राजू दीपा की हालत समझ चुका था.. उसने फिर से अपने हाथों को दीपा की कमर पर रखा और उसे अपनी तरफ घुमा दिया। दीपा किसी कट्पुतली की तरह उसकी तरफ घूम गई।

वो अपनी अधखुली आँखों से ज़मीन की तरफ देखते हुए.. तेज़ी से साँसें ले रही थी। उसके गाल और कान दोनों लाल होकर दहक रहे थे। राजू ने अपने हाथों को अब उसकी कमर से सरकाते हुए उसकी पीठ की तरफ ले जाना शुरू कर दिया।

हर पल दीपा मदहोश होती जा रही थी। उसे अपने आप पर काबू नहीं रहा और राजू की बाँहें अब दीपा की पीठ पर कसती जा रही थीं। जिससे दोनों के जिस्मों की दूरी कम होने लगी।

जैसे ही दीपा को अपने चेहरे पर राजू की गरम सांसों का अहसास हुआ.. दीपा के पूरे बदन में बिजली की लहर सी दौड़ गई। राजू ने दीपा को पीछे करते हुए पेड़ से सटा दिया, पर अगले ही पल जैसे ही दीपा को होश आया तो उसने अपने आप को राजू के बाँहों में क़ैद पाया।

“ये.. ये.. क्या कर रहे हो तुम..?” इससे पहले कि दीपा आगे कुछ बोल पाती.. राजू ने दीपा को बाँहों में कसते हुए.. उसके रसीले होंठों पर अपने होंठों को लगा दिया।

दीपा ने अपने दोनों हाथों को उसके कंधों पर रख कर उससे पीछे धकेलने की कोशिश की, पर राजू ने उसे मजबूती से अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था।

दीपा उसकी बाँहों में मछली की तरह छटपटा रही थी, पर उसे पीछे नहीं हटा पा रही थी। राजू के ऊपर तो जैसे वासना का भूत सवार हो गया था। वो पागलों की तरह दीपा के होंठों को चूस रहा था।

कभी वो दीपा के ऊपर वाले होंठों को चूसता.. तो कभी नीचे वाले होंठों को.. उसके हाथ दीपा की कमर पर थिरक रहे थे और अचानक उसने अपने हाथों को नीचे सरका कर दीपा की सलवार के ऊपर से उसके चूतड़ों पर रख कर धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया।

दीपा की गाण्ड को मसलते ही दीपा एकदम से पागल हो उठी। उसके हाथों ने उसका साथ छोड़ दिया.. अब दीपा के हाथ भले ही उसके कंधों पर थे, पर वो उसे पीछे नहीं धकेल रही थी।

राजू दीपा के होंठों को चूसते हुए.. धीरे-धीरे अपनी हथेलियों को उसकी गाण्ड के ऊपर घुमाते हुए सहला रहा था। दीपा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और वो राजू की बाँहों में पिघलने लगी थी।

मौके फायदा उठाते हुए.. राजू ने और ज़ोर से दीपा के रसीले होंठों को चूसना शुरू कर दिया। दीपा के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ जाती और वो राजू के कंधों को और ज़ोर से दबा देती।

राजू ने अपना एक हाथ आगे ले जाकर एक पल में उसकी सलवार के अन्दर घुसा दिया। दीपा के दिल ने धड़कना बंद कर दिया। राजू ने अपना हाथ सीधा उसकी चूत के ऊपर रख दिया।

दीपा की चूत पूरी पनियाई हुई थी। राजू का हाथ अपनी चूत पर महसूस करते ही दीपा के बदन ने एक जोरदार झटका खाया और वो एकदम से राजू से चिपक गई।

दीपा- आहह.. राजू छोड़ दो मुझे… कोई देख लेगा आह..।

दीपा ने काँपती हुई आवाज़ में कहा।

राजू ने दीपा की सलवार से हाथ बाहर निकाला और अपने चेहरे पास ले जाकर उससे देखने लगा…
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 06-01-2019, 10:35 AM



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