06-01-2019, 10:33 AM
भाग - 46
रात ढल चुकी थी, आज कुसुम कुछ ज्यादा ही सजी-संवरी थी… नीले रंग की साड़ी और मैचिंग के ब्लाउज में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी और कुसुम ने जब से राजू के लण्ड का स्वाद चखा था, तब से उसका बदन और भर गया था और वो पहले से भी ज्यादा कयामत लगने लगी थी।
जब सेठ घर वापिस आया तो कुसुम का ये रूप देख कर सेठ भी हिल गया।
आज कई महीनों बाद उसने अपनी पत्नी कुसुम को ध्यान से देखा था और कुसुम आज खुद भी सेठ को अपने मस्त अदाएं दिखाते हुए अपने मखमली बदन के दर्शन करवा रही थी। कुसुम के मस्त कर देने वाली अदाओं का जादू सेठ के सर पर चढ़ कर बोलने लगा। कुसुम ने सेठ के लिए खाना लगाया और सेठ खाना खाने लगा।
खाना परोसते वक़्त वो सेठ को कुछ ज्यादा ही झुक कर अपने पहले से और ज्यादा और भर चुकी चूचियों के दर्शन करवा रही थी… जिससे देख कर सेठ की धोती के अन्दर हलचल होने लगी।
सेठ- क्या बात है कुसुम.. आज तो तुम कयामत ढा रही हो.. कहीं मेरा कत्ल करने का इरादा तो नहीं है..।
कुसुम- क्या आप भी ना… मैं भला ऐसा कर सकती हूँ..?
सेठ ने खाना खा कर उठते हुए कहा- मुझे आज लग तो कुछ ऐसा ही रहा है..।
कुसुम- तो फिर यही समझ लीजिए.. आप हाथ धो कर अपने कमरे में चलिए… आज आपका कत्ल वहीं करूँगी।
कुसुम ने एक बार सेठ की तरफ मुस्कुरा कर देखा और फिर बर्तन उठा कर रसोई की तरफ जाने लगी। कुसुम जानबूझ कर आज अपनी गाण्ड को कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी और कुसुम के भारी चूतड़ों को देख कर सेठ की हालत खराब होती जा रही थी। सेठ ने जल्दी से हाथ धोए और अपने कमरे में चला गया।
कुसुम ने घर का बाकी का काम निपटाया और सेठ के कमरे में चली गई।
जब कुसुम सेठ के कमरे में पहुँची, तो उसने अपनी साड़ी उतार दी.. सेठ कुसुम के बदन को सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में देख कर पागल हो उठा। उसका लण्ड उसकी धोती में एकदम से तन गया… उसने पलंग पर से उठते हुए.. कुसुम को अपनी बाँहों में भर लिया। उस रात ना चाहते हुए भी कुसुम को अपनी चूत में सेठ के लण्ड को लेना पड़ा.. जिससे वो सिर्फ़ तड़फ कर रह गई.. पर अपने पेट में पल रहे राजू के बीज को सेठ का नाम देने के लिए ये करना बहुत ज़रूरी था।
दूसरी तरफ चमेली रतन से चुदाने के बाद.. अपनी नजरें रतन से नहीं मिला पा रही थी, पर रतन जैसे जवान मर्द के लण्ड का स्वाद पाकर उसकी चूत में तब से खुजली मची हुई थी। रज्जो रतन के बगल में लेटी हुई थी और वो गहरी नींद में सो रही थी।
चमेली बार-बार अपना सर उठा कर रतन की तरफ देखती… पर रतन भी आँखें बंद किए हुए लेटा हुआ था और चमेली की चूत का बुरा हाल हो रहा था। आख़िर थक कर चमेली भी सोने की कोशिश करने लगी। सुबह जब चमेली की आँख खुली.. तो 6 बज रहे थे। गाँव में सभी लोग सुबह जल्दी उठ जाते हैं और रज्जो पड़ोस की भाभी के साथ शौच के लिए खेतों में जा चुकी थी।
जैसे ही चमेली नींद से जागी.. तो उसने कमरे में रतन को अकेला पाया। वो उठ कर बाहर गई और फिर ये सोच करके रज्जो खेतों में चली गई है.. उसने दरवाजा बन्द किया और फिर से कमरे में आ गई। जैसे ही वो कमरे में दाखिल हुई.. तो उसने देखा रतन भी उठ गया था।
उसका लण्ड सुबह-सुबह उसकी धोती के आगे से उठा हुआ था। ये देख कर चमेली ने अपनी नजरें झुका लीं और अपने बिस्तर की तरफ जाने लगी।
रतन- रज्जो कहाँ गई…?
चमेली- खेत में..।
रतन चमेली के बात सुन कर लपक कर खड़ा हो गया और चमेली के पास जाकर बिस्तर पर बैठ गया…। चमेली पर बिस्तर पर लेटी हुई.. रतन को सवालिया नज़रों से देख रही थी। रतन अपनी धोती के ऊपर से अपने लण्ड को मसलते हुए, अपने होंठों को चमेली के होंठों की तरफ बढ़ाने लगा। बदले में चमेली ने अपनी आँखें बंद करके.. अपनी मूक सहमति रतन को जता दी।
रतन चमेली के ऊपर झुक गया और उसकी दोनों चूचियों को उसके ब्लाउज के ऊपर से मसलते हुए.. उसके होंठों को चूसने लगा। चमेली ने भी मस्त होकर अपने बाँहों को रतन के गले में डाल दिया।
रतन चमेली के ऊपर आ गया, रतन के ऊपर आते ही.. चमेली ने अपने पेटीकोट को पकड़ कर अपनी कमर तक उठा लिया और अपनी टाँगों को फैला कर रतन के कमर के इर्द-गिर्द कस लिया।
रतन अभी भी उसके होंठों को चूसने में मस्त था.. चमेली जानती थी कि उनके पास समय बहुत कम है।
उसने अपने होंठों को रतन के होंठों से अलग किया और बोली- अभी समय बहुत कम है.. जल्दी से कर लो..।
चमेली की बात सुन कर रतन के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई। उसने अपनी धोती को उतार कर एक तरफ रख दिया और अपने लण्ड को पकड़ कर चमेली की चूत के छेद पर लण्ड का सुपारा टिका दिया।
सुबह-सुबह रतन के लण्ड के गरम सुपारे को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके चमेली एकदम मस्त हो गई। उसके मुँह से मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई।
“अह.. रतन जल्दी से चोद डाल अपनी रांड को..।”
चमेली की बात सुनते ही.. रतन ने एक जोरदार धक्का मारा और रतन का लण्ड चमेली की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ.. अन्दर जा घुसा। चमेली के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
उसने जल्दी से अपने ब्लाउज के सारे बटनों को खोल कर.. अपनी बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियों को आज़ाद कर दिया। चमेली की चूचियां बाहर आते ही.. रतन ने किसी भूखे बच्चे की तरह उसकी चूचियों को बारी-बारी से चूसना चालू कर दिया। चमेली एकदम मस्त हो गई।
“आह.. चूस्स्स साले.. अपनी रांड को आह्ह.. चोद मुझे कुत्ते.. अह अह..मेरे चूत..।”
रतन पागलों की तरह चमेली की चूत में अपने मूसल लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए.. उसकी चूचियों को दबा-दबा कर चूस रहा था और चमेली भी अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर रतन के लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी।
करीब दस मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद दोनों झड़ गए। थोड़ी देर बाद रतन चमेली के ऊपर से उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर चला गया।
चमेली ने भी रतन के जाने के बाद अपने कपड़े पहने और बाहर आकर हाथ-मुँह धोने के बाद घर के काम में लग गई।
दूसरी तरफ एक रात अपने माँ-बाप के पास रहने के बाद अगली सुबह नास्ता करने के बाद सीमा के मायके लौट आया। सीमा के मायके में उसके माँ और भाई और उसकी पत्नी भी थी। सब अपने-अपने काम में व्यस्त थी। जब सीमा ने राजू को देखा, तो उसने राजू को अपने पास बुलाया।
“तुम तो इसी शहर के हो ना… तुम्हें तो यहाँ का सब पता होगा..।”
राजू- जी मालकिन…।
सीमा- अच्छा… फिर एक काम करो… दीपा को अपने साथ बाजार ले जाओ… उसके अपने लिए कुछ सामान खरीदना है… तुम्हें तो पता है माँ की तबियत खराब है.. और मैं उसके साथ बाजार नहीं जा सकती।
राजू- जी मालकिन..।
सीमा- अच्छा तुम रूको.. मैं दीपा को बोल कर आती हूँ कि वो तैयार हो जाए… पर ध्यान रखना जल्दी वापिस आ जाना।
राजू- जी जैसा आप कहें…।
सीमा कमरे में चली गई.. यहाँ पर दीपा अभी नहा कर कपड़े पहन रही थी।
“जल्दी से तैयार हो जाओ.. बाजार जाना है ना..?”
दीपा ने सीमा की ओर देखते हुए कहा- पर आप तो कह रही थीं कि कल चलेंगे।
सीमा- हाँ.. पर मैं नहीं जा पाऊँगी, वो राजू आ गया है.. उसके साथ चली जाओ… मुझे पता नहीं समय मिले या ना मिले…।
दीपा ने थोड़ा सा घबराते हुए कहा- पर वो.. में. आप भी चलो ना साथ में…।
सीमा- अरे घबरा क्यों रही है… राजू भी इसी शहर का है.. उससे यहाँ के रास्ते मालूम हैं, तुम बेफिकर उसके साथ जाओ… चलो अब तैयार हो जाओ।
ये कह कर सीमा कमरे से बाहर आ गई। राजू भी बाहर बैठा इंतजार कर रहा था। जब थोड़ी देर बाद दीपा तैयार होकर बाहर आई। राजू उसे देखता ही रह गया, वो काले रंग की सलवार कमीज़ में कयामत ढा रही थी।
काला रंग उसके गोरे रंग पर बहुत अच्छा लग रहा था… राजू को यूँ अपनी तरफ देखता देख कर दीपा ने शर्मा कर नजरें झुका लीं।
रात ढल चुकी थी, आज कुसुम कुछ ज्यादा ही सजी-संवरी थी… नीले रंग की साड़ी और मैचिंग के ब्लाउज में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी और कुसुम ने जब से राजू के लण्ड का स्वाद चखा था, तब से उसका बदन और भर गया था और वो पहले से भी ज्यादा कयामत लगने लगी थी।
जब सेठ घर वापिस आया तो कुसुम का ये रूप देख कर सेठ भी हिल गया।
आज कई महीनों बाद उसने अपनी पत्नी कुसुम को ध्यान से देखा था और कुसुम आज खुद भी सेठ को अपने मस्त अदाएं दिखाते हुए अपने मखमली बदन के दर्शन करवा रही थी। कुसुम के मस्त कर देने वाली अदाओं का जादू सेठ के सर पर चढ़ कर बोलने लगा। कुसुम ने सेठ के लिए खाना लगाया और सेठ खाना खाने लगा।
खाना परोसते वक़्त वो सेठ को कुछ ज्यादा ही झुक कर अपने पहले से और ज्यादा और भर चुकी चूचियों के दर्शन करवा रही थी… जिससे देख कर सेठ की धोती के अन्दर हलचल होने लगी।
सेठ- क्या बात है कुसुम.. आज तो तुम कयामत ढा रही हो.. कहीं मेरा कत्ल करने का इरादा तो नहीं है..।
कुसुम- क्या आप भी ना… मैं भला ऐसा कर सकती हूँ..?
सेठ ने खाना खा कर उठते हुए कहा- मुझे आज लग तो कुछ ऐसा ही रहा है..।
कुसुम- तो फिर यही समझ लीजिए.. आप हाथ धो कर अपने कमरे में चलिए… आज आपका कत्ल वहीं करूँगी।
कुसुम ने एक बार सेठ की तरफ मुस्कुरा कर देखा और फिर बर्तन उठा कर रसोई की तरफ जाने लगी। कुसुम जानबूझ कर आज अपनी गाण्ड को कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी और कुसुम के भारी चूतड़ों को देख कर सेठ की हालत खराब होती जा रही थी। सेठ ने जल्दी से हाथ धोए और अपने कमरे में चला गया।
कुसुम ने घर का बाकी का काम निपटाया और सेठ के कमरे में चली गई।
जब कुसुम सेठ के कमरे में पहुँची, तो उसने अपनी साड़ी उतार दी.. सेठ कुसुम के बदन को सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में देख कर पागल हो उठा। उसका लण्ड उसकी धोती में एकदम से तन गया… उसने पलंग पर से उठते हुए.. कुसुम को अपनी बाँहों में भर लिया। उस रात ना चाहते हुए भी कुसुम को अपनी चूत में सेठ के लण्ड को लेना पड़ा.. जिससे वो सिर्फ़ तड़फ कर रह गई.. पर अपने पेट में पल रहे राजू के बीज को सेठ का नाम देने के लिए ये करना बहुत ज़रूरी था।
दूसरी तरफ चमेली रतन से चुदाने के बाद.. अपनी नजरें रतन से नहीं मिला पा रही थी, पर रतन जैसे जवान मर्द के लण्ड का स्वाद पाकर उसकी चूत में तब से खुजली मची हुई थी। रज्जो रतन के बगल में लेटी हुई थी और वो गहरी नींद में सो रही थी।
चमेली बार-बार अपना सर उठा कर रतन की तरफ देखती… पर रतन भी आँखें बंद किए हुए लेटा हुआ था और चमेली की चूत का बुरा हाल हो रहा था। आख़िर थक कर चमेली भी सोने की कोशिश करने लगी। सुबह जब चमेली की आँख खुली.. तो 6 बज रहे थे। गाँव में सभी लोग सुबह जल्दी उठ जाते हैं और रज्जो पड़ोस की भाभी के साथ शौच के लिए खेतों में जा चुकी थी।
जैसे ही चमेली नींद से जागी.. तो उसने कमरे में रतन को अकेला पाया। वो उठ कर बाहर गई और फिर ये सोच करके रज्जो खेतों में चली गई है.. उसने दरवाजा बन्द किया और फिर से कमरे में आ गई। जैसे ही वो कमरे में दाखिल हुई.. तो उसने देखा रतन भी उठ गया था।
उसका लण्ड सुबह-सुबह उसकी धोती के आगे से उठा हुआ था। ये देख कर चमेली ने अपनी नजरें झुका लीं और अपने बिस्तर की तरफ जाने लगी।
रतन- रज्जो कहाँ गई…?
चमेली- खेत में..।
रतन चमेली के बात सुन कर लपक कर खड़ा हो गया और चमेली के पास जाकर बिस्तर पर बैठ गया…। चमेली पर बिस्तर पर लेटी हुई.. रतन को सवालिया नज़रों से देख रही थी। रतन अपनी धोती के ऊपर से अपने लण्ड को मसलते हुए, अपने होंठों को चमेली के होंठों की तरफ बढ़ाने लगा। बदले में चमेली ने अपनी आँखें बंद करके.. अपनी मूक सहमति रतन को जता दी।
रतन चमेली के ऊपर झुक गया और उसकी दोनों चूचियों को उसके ब्लाउज के ऊपर से मसलते हुए.. उसके होंठों को चूसने लगा। चमेली ने भी मस्त होकर अपने बाँहों को रतन के गले में डाल दिया।
रतन चमेली के ऊपर आ गया, रतन के ऊपर आते ही.. चमेली ने अपने पेटीकोट को पकड़ कर अपनी कमर तक उठा लिया और अपनी टाँगों को फैला कर रतन के कमर के इर्द-गिर्द कस लिया।
रतन अभी भी उसके होंठों को चूसने में मस्त था.. चमेली जानती थी कि उनके पास समय बहुत कम है।
उसने अपने होंठों को रतन के होंठों से अलग किया और बोली- अभी समय बहुत कम है.. जल्दी से कर लो..।
चमेली की बात सुन कर रतन के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई। उसने अपनी धोती को उतार कर एक तरफ रख दिया और अपने लण्ड को पकड़ कर चमेली की चूत के छेद पर लण्ड का सुपारा टिका दिया।
सुबह-सुबह रतन के लण्ड के गरम सुपारे को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके चमेली एकदम मस्त हो गई। उसके मुँह से मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई।
“अह.. रतन जल्दी से चोद डाल अपनी रांड को..।”
चमेली की बात सुनते ही.. रतन ने एक जोरदार धक्का मारा और रतन का लण्ड चमेली की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ.. अन्दर जा घुसा। चमेली के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
उसने जल्दी से अपने ब्लाउज के सारे बटनों को खोल कर.. अपनी बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियों को आज़ाद कर दिया। चमेली की चूचियां बाहर आते ही.. रतन ने किसी भूखे बच्चे की तरह उसकी चूचियों को बारी-बारी से चूसना चालू कर दिया। चमेली एकदम मस्त हो गई।
“आह.. चूस्स्स साले.. अपनी रांड को आह्ह.. चोद मुझे कुत्ते.. अह अह..मेरे चूत..।”
रतन पागलों की तरह चमेली की चूत में अपने मूसल लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए.. उसकी चूचियों को दबा-दबा कर चूस रहा था और चमेली भी अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर रतन के लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी।
करीब दस मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद दोनों झड़ गए। थोड़ी देर बाद रतन चमेली के ऊपर से उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर चला गया।
चमेली ने भी रतन के जाने के बाद अपने कपड़े पहने और बाहर आकर हाथ-मुँह धोने के बाद घर के काम में लग गई।
दूसरी तरफ एक रात अपने माँ-बाप के पास रहने के बाद अगली सुबह नास्ता करने के बाद सीमा के मायके लौट आया। सीमा के मायके में उसके माँ और भाई और उसकी पत्नी भी थी। सब अपने-अपने काम में व्यस्त थी। जब सीमा ने राजू को देखा, तो उसने राजू को अपने पास बुलाया।
“तुम तो इसी शहर के हो ना… तुम्हें तो यहाँ का सब पता होगा..।”
राजू- जी मालकिन…।
सीमा- अच्छा… फिर एक काम करो… दीपा को अपने साथ बाजार ले जाओ… उसके अपने लिए कुछ सामान खरीदना है… तुम्हें तो पता है माँ की तबियत खराब है.. और मैं उसके साथ बाजार नहीं जा सकती।
राजू- जी मालकिन..।
सीमा- अच्छा तुम रूको.. मैं दीपा को बोल कर आती हूँ कि वो तैयार हो जाए… पर ध्यान रखना जल्दी वापिस आ जाना।
राजू- जी जैसा आप कहें…।
सीमा कमरे में चली गई.. यहाँ पर दीपा अभी नहा कर कपड़े पहन रही थी।
“जल्दी से तैयार हो जाओ.. बाजार जाना है ना..?”
दीपा ने सीमा की ओर देखते हुए कहा- पर आप तो कह रही थीं कि कल चलेंगे।
सीमा- हाँ.. पर मैं नहीं जा पाऊँगी, वो राजू आ गया है.. उसके साथ चली जाओ… मुझे पता नहीं समय मिले या ना मिले…।
दीपा ने थोड़ा सा घबराते हुए कहा- पर वो.. में. आप भी चलो ना साथ में…।
सीमा- अरे घबरा क्यों रही है… राजू भी इसी शहर का है.. उससे यहाँ के रास्ते मालूम हैं, तुम बेफिकर उसके साथ जाओ… चलो अब तैयार हो जाओ।
ये कह कर सीमा कमरे से बाहर आ गई। राजू भी बाहर बैठा इंतजार कर रहा था। जब थोड़ी देर बाद दीपा तैयार होकर बाहर आई। राजू उसे देखता ही रह गया, वो काले रंग की सलवार कमीज़ में कयामत ढा रही थी।
काला रंग उसके गोरे रंग पर बहुत अच्छा लग रहा था… राजू को यूँ अपनी तरफ देखता देख कर दीपा ने शर्मा कर नजरें झुका लीं।