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Fantasy मेरा मोहल्ला
#16
Part - 14

अब वैसे भी मेरी पिटाई तो होना तय ही है. अगर कुछ गड़बड़ भी हो जाएगी तो अब इससे ज्यादा कुछ फर्क‌ नहीं पड़ने वाला और अगर … अगर मैं कामयाब हो जाता हूँ तो … एक चूत और मेरे लंड के नाम हो जाएगी. लोगों की दो उंगलियां घी में होती हैं मगर मेरी तो चारों  हो जाएंगी … सुमन आंटी, कामिनी, नीतू और रजनी,


मतलब मैं ऐसे दोराहे पे खड़ा से जहां पे डर के मारे गांड भी फट रही थी की अगर ये सब मेरे मन का वहम है तो मर जाऊंगा
और ये सोच कर हिम्मत भी बढ़ रही थी कि कही ये उनका प्लान तो नहीं है,


रजनी अभी दरवाजे पर ही पहुंची‌ थीं कि अब ये बात मेरे दिमाग में आते ही मैंने बिजली की सी फुर्ती से उठकर रजनी को दरवाजे पर ही पकड़ लिया.

अचानक हमले से रजनी अब बुरी तरह घबरा गईं- य ये ये … त त तुम्म्म … क्क्या कर रहे होओओ? छ छछोड़ मुझे … उउऊ ऊह्ह्ह …
रजनी ने मेरी‌ बांहों में कसमसाते हुए कहा.

“कुछ‌ नहींई … मैंने रजनी को अपनी बांहों में भरकर जोरों से भींचते हुए कहा.

“आने दो कल राज को, अब वो ही खबर लेंगे तुम्हारी?” रजनी ने अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा.

मैं बोला  “आपको जब कल से पता था, तो आपने कल ही राज को क्यों नहीं बता दिया, कल तो वो घर पर ही थे? मगर कल तो आप भी खिड़की से हमें देख देख कर मजा ले रही थीं.”

एक पल के लिए रजनी ने अब मेरी आंखों में देखा और फिर अपना चेहरा घुमा लिया. उनका पूरा बदन अब जोरों से कांपने लगा था.

मुझे नहीं पता था कि कल जो मुझे खिड़की से किसी के देखने का वहम सा हुआ था, वो रजनी ही थीं. मैंने तो ये अन्धेर में ऐसे ही तीर चलाया था मगर वो सही निशाने पर लगा था.

क्योंकि मैंने रजनी की मनोदशा और उनकी तरफ की सेटिंग भांप ली थी. मैंने आगे बढ़कर उनके चेहरे को एक बार फ़िर अपने हाथों में लेकर अपनी तरफ घुमाया और एकटक देखते हुए उनके जवाब का इंतज़ार करने लगा.

उनका चेहरा अब टमाटर की तरह लाल हो गया था और होंठ थरथराने से लगे थे. आंखें अब भी नीचे थीं और एक अजीब सा भाव उनके चेहरे पर उभर आया था, जैसे कि उनकी चोरी पकड़ी गई हो.

बड़ा ही मनोरम दृश्य था वो, लाल साड़ी में लिपटी लाल लाल गालों से घिरा वो खूबसूरत सा चेहरा … जी कर रहा था कि उनके पूरे चेहरे को ही चूम-चाट लूँ. मगर मेरे दिल में अभी भी एक डर सा बना हुआ था.

“छोड़ो … छोड़ो मुझे … नहीं तो मैं शोर मचाकर सबको बुला लूँगी.” रजनी ने अब कसमसाते हुए कहा. लेकिन मैंने उन्हें कस कर पकड़े रखा, मैंने भी सोच लिया था कि अब जो होगा सो देखा जाएगा.

मैं और रजनी अब एक दूसरे पर अपना अपना जोर आजमा रहे थे. मैंने उन्हें जोर से जकड़ा हुआ था और वो अपने आप को छुड़ाने का प्रयास कर रही थीं. मगर इस कसमसाहट में उनकी चूचियां बार बार मेरे सीने से रगड़ कर मेरे अन्दर के शैतान को और भी भड़का रही थीं. रजनी की सांसें धीरे धीरे अब गर्म और तेज़ होती जा रही थीं. मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब आगे क्या करना चाहिए.

मगर तभी रजनी ने ही हथियार डाल दिए और कहने लगीं- उफ्फ … सन्नी , जाने दे मुझे … नीतू यहीं पर हैं.
रजनी ने अपने चेहरे को घुमाकर बाहर की तरफ देखते हुए कहा.

मेरे लिए तो रजनी का बस इतना कहना ही काफी था. मुझे मेरा सिग्नल मिल गया था, इसलिए अगले ही पल मैंने सीधा रजनी के होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया … और जब तक वो कुछ समझतीं, तब मैंने उनके होंठों को अपने मुँह में भरकर जोरों से चूसना शुरू कर दिया.

“उउऊ ऊह्ह्ह … हुहुहुँ … ऊऊउउ …” ये कहकर रजनी अब जोरों से कसमसाने‌ लगीं और अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़कर अपने होंठों से अलग कर दिया.

“उफ्फ् … समझा कर ना, नीतू यहीं पर हैं, अगर गलती से कोई बाहर आ गयी तोओ …” रजनी ने अपनी अनियंत्रित साँसों को इकठ्ठा करते हुए कहा.

“आ जाने दो … मैं नहीं डरता उनसे …” मैंने रजनी की नशीली आंखों में देखकर उनके मुलायम गाल को चूमते हुए कहा.

‘हांआ … हांआआ … तुम्हें डर क्यों लगेगा? … तुम्हें तो डर नहीं, मगर मुझे तो अपनी बदनामी का डर है …” रजनी ने अब थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा और मेरे चेहरे को अपने से दूर हटा दिया.

“आपको डर है तो ये लो.” मैंने दरवाजे को बन्द करके अन्दर से कुण्डी लगा ली और‌ रजनी को खींचकर बिस्तर की तरफ लाने लगा.

“ये ये … त् तुम्म्म क्क्या कर रहे हो … छ छछोड़ मुझे … उउऊ ऊह्ह्ह …” रजनी ने मुझसे छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा लेकिन मैं अब कहां छोड़ने वाला था.

रजनी को अपनी बांहों में पकड़े पकड़े ही मैं उन्हें बिस्तर के पास ले आया और कहा- बताया ना कि डॉक्टर की दवाई लेने की कोशिश कर रहा हूँ!

मैंने रजनी के गालों को‌ चूमते हुए कहा जिससे उनके गाल तो क्या अब तो पूरा का पूरा चेहरा ही शर्म से सिन्दूरी सा हो गया.

“आह … ये क्या कर रहा है? जाने दो मुझे … अभी मुझे ढेर सारा काम है घर में … प्लीज जाने दो अभी … फिर कभी?” रजनी ने कसमसाते हुए कहा और मेरे बांहों से निकलने का प्रयास करने लगीं. मगर मैंने उन्हें बांहों में लेकर बिस्तर पर गिरा लिया और अपने शरीर के भार से दबाकर फिर से उनके नर्म नर्म गालों पर चुम्बनों की‌ बौछार सी‌ कर दी.

मेरे चुम्बनों से बचने‌ के लिए रजनी अब बिस्तर पर पड़े पड़े ही घूम‌ कर उलटी हो गईं. मेरे लिए ये तो और भी अच्छा हो गया था, क्योंकि रजनी का ब्लाउज पीछे से काफी खुला हुआ था, जिससे गर्दन के नीचे से उनकी आधी से ज्यादा नंगी पीठ अब मेरे सामने थी.

शायद रजनी को मालूम नहीं था कि ऐसा करने से मैं उनकी प्यास को और भी भड़का दूँगा. मैंने अब उनकी नंगी पीठ पर से चूमना शुरू‌ किया और धीरे धीरे गर्दन की तरफ बढ़ने लगा जिससे रजनी और भी‌ जोरों से सिसक उठीं.

जब तक मेरे होंठ रजनी की नंगी पीठ को चूमते हुए उनकी गर्दन तक पहुंचे, तब तक तो वो सहती रहीं, मगर जब गर्दन को चूमते हुए मैं ऊपर उनकी कानों की लौ के पास पहुंचा तो रजनी की बर्दाश्त के बाहर हो गया. वो अब जोरों से सिसक उठीं और तुरन्त ही फिर से घुमकर सीधी हो गईं.

मैं भी अब थोड़ा सा उठकर रजनी के आधा ऊपर आ गया और उनकी चूचियों को अपने सीने से दबाकर उनके लाल लाल गालों को चूमते हुए उनके रसीले होंठों की तरफ बढ़ने लगा.

रजनी का विरोध भी अब कम होता जा रहा था और वो भी शायद बस वो दिखावे के लिए ही कर रही थीं. क्योंकि उनका बदन तो अब कुछ और ही‌ कह रहा था.

रजनी के गालों को चूमते हुए मैं उनके रसीले होंठों पर आ गया था, जो कि अब जोरों से थरथराने लगे थे. मगर अब जैसे ही मैंने अपने होंठों से उनके होंठों को छुआ, रजनी के होंठ और भी जोरों से थरथरा गए. उन्होंने अब खुद ही अपने मुँह को खोलकर मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया और मुझे अपनी बांहों‌ में भरकर उन्हें जोरों से चूसने लगीं.

अब तो कुछ कहने को रह ही नहीं गया था. इसलिए मैंने भी रजनी को जोरों से भींच लिया और उनके रसीले होंठ को चूसते हुए धीरे से अपनी जीभ को उनके मुँह में घुसा दिया.

रजनी ने भी अपना मुँह खोलकर मेरी जीभ का स्वागत किया और उसे धीरे धीरे चूसते हुए मुझे अपनी बांहों में लेकर पलट गईं. अब रजनी मेरे ऊपर आ गयी थीं और मैं उनके नीचे था. इससे उनकी ठोस भरी हुई चूचियां मेरे सीने पर अपना दबाव बनाने लगीं.

मेरे हाथ अब खुद ब खुद ही रजनी की पीठ पर आ गए थे, जो‌ कि उनके ब्लाउज के बीच के खाली जगह को अपनी उंगलियों से गुदगुदाने लगे. जैसे जैसे मेरी उंगलियां उनकी नंगी पीठ पर घूम रही थीं, वैसे वैसे ही रजनी का बदन भी अब थिरकने सा लगा. मैं और रजनी बड़ी ही तन्मयता से एक दूसरे को चूम‌ रहे थे. ना तो रजनी को कोई जल्दी थी और ना ही मुझे!

रजनी की नंगी‌ पीठ को गुदगुदाते हुए धीरे धीरे मेरे हाथ साड़ी के ऊपर से ही अब रजनी के विशाल नितम्बों पर पहुंच गए. मैंने बस एक दो बार अपनी हथेलियों से उनके नर्म गुदाज और गोलाकर विशाल नितम्बों को सहलाया और फिर नीचे उनके पैरों की तरफ बढ़ गया.

हमारी इस गुत्थमगुत्था की लड़ाई में रजनी की साड़ी और पेटीकोट उनकी पिंडलियों तक ऊपर हो गए थे. जैसे ही मेरे हाथ उनकी मांसल जांघों पर से होते हुए थोड़ा सा नीचे की तरफ बढ़े, मेरे हाथ में उनकी साड़ी का छोर आ गया और मेरे हाथ उनकी नंगी चिकनी पिंडलियों पर घूमने लगे. इससे भाभी की पिंडलियां अपनी चिकनाहट के कारण मेरी हथेलियों को‌ गुदगुदी का सा एहसास करवाने लगीं.

मैं भी अब अपनी हथेलियों से धीरे धीरे रजनी के नंगी चिकनी पिण्डलियों को सहलाते हुए धीरे धीरे उनकी साड़ी को ऊपर की तरफ खिसकाने लगा … मगर उनकी जांघों पर पहुंच कर मेरे हाथ रुक गए. क्योंकि रजनी की साड़ी व पेटीकोट उनके नीचे दबे होने के कारण अब और ऊपर नहीं हो रहे थे. मैंने भी अब अपने हाथों को उनकी साड़ी व पेटीकोट के अन्दर घुसा दिया और अन्दर से ही उनकी चिकनी जांघों को सहलाता हुआ, फिर से ऊपर की तरफ बढ़ने लगा.

उधर ऊपर हमारे होंठ अभी भी एक दूसरे में गुत्थमगुत्था हो रहे थे, ना तो रजनी मेरे होंठों को छोड़ रही थीं और ना ही मैं उन्हें छोड़ने के मूड में था. जब मेरी जीभ रजनी के हाथ लगती, तो वो उसे जोरों से चूसने लगतीं … और जब मुझे रजनी की जीभ हाथ लगती, तो मैं उसे चूसने लगता.
हम दोनों को ही अब होश नहीं रह गया था और रजनी की तड़प तो इस चुम्बन से ही प्रतीत हो रही थी. ऐसा लग रहा था कि वो बहुत दिनों से … दिन नहीं … शायद सालों से ही प्यासी थीं. साली चुद्द्क्कड़ रांड थी कसम से, पूरी रात अपने पति से चुदवाई थी और अब मुझसे चुदने के किये तैयार है

मेरे हाथ भी अब साड़ी के अन्दर रजनी की नर्म मुलायम जांघों पर से होते हुए पेंटी में कसे हुए उनके विशाल नितम्बों तक पहुंच गए थे. रजनी ने पेंटी पहन रखी थी. मगर वो पेंटी उनके भरे हुए नितम्बों को सम्भालने में नाकामयाब सी लग रही थी. क्योंकि पेंटी उनके बड़े बड़े गोलाकार नितम्बों पर बिल्कुल चिपकी हुई थी. ऐसा लग रहा था कि अभी ही रजनी के नितम्ब उस पेंटी के झीने से कपड़े को फाड़कर बाहर आ जाएंगे.

रजनी के पेंटी में कैद उनके विशाल नितम्बों को सहलाते हुए मैं अब वापस अपने हाथों को पीछे से ही उनकी जांघों के जोड़ की तरफ बढ़ाने लगा. मगर जैसे ही रजनी के विशाल नितम्बों की गोलाई खत्म होने के बाद मेरी उंगलियां उनकी जांघों के जोड़ पर लगीं … वो हल्की सी नम हो गईं. शायद काम क्रीड़ा का खेल‌ खेलते खेलते रजनी की चुत ने कामरस उगल दिया था, जिससे उनकी पेंटी भीग गयी थी.

उत्सुकतावश मैंने भी अब अपने हाथ को थोड़ा सा और नीचे उनकी चुत की तरफ बढ़ा दिया. मगर जैसे ही मेरी उंगलियों ने उनकी गीली चुत को छुआ, रजनी ने अपने दांतों को मेरे होंठों में गड़ा दिया, जिससे मुझे दर्द तो हुआ था, लेकिन मैंने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि वहीं पर रखे रहा. चुत के पास से रजनी की पेंटी बिल्कुल गीली हो रखी थी और उसमें से गर्माहट सी निकल रही थी.

मुझसे अब रहा नहीं गया, इसलिए मैंने पीछे से ही एक बार जोर से भाभी की चुत को मसल दिया जिससे रजनी मेरे होंठों को अपने मुँह से आजाद करके थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठ कर सिसक उठीं.

रजनी का पल्लू पहले से ही नीचे गिरा हुआ था. अब जैसे ही रजनी उचक कर ऊपर की तरफ हुईं, एक बार फिर से रजनी के लाल ब्लाऊज में कसी हुई बड़ी बड़ी सुडौल और भरी हुई चूचियां मेरे सामने आ गईं.

मैंने भी देर ना करते हुए अपने दोनों हाथों से उन्हें थाम लिया और सीधा ही अपने प्यासे होंठों को उनकी चूचियों की नंगी घाटी के बीच में लगा दिया.

“उह्ह … इई.श्श्शशश …” कहकर रजनी अब एक बार फिर से सिसकार उठीं और अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को अपनी चूचियों पर जोरों से दबा लिया. मैंने भी धीरे धीरे उनकी चूचियों की घाटी को अपनी जीभ निकालकर चाटना शुरू कर दिया जिससे रजनी अपनी आंखें बंद करके जोरों से सिसकारियां सी भरने लगीं.

मगर मुझे इतने से सब्र नहीं हो रहा था. मैं तो भाभी की चूचियों को पूरी ही नंगी करके उनके रस को पीना चाह रहा था, इसलिए मैं अब उनके ब्लाउज के हुक खोलने लगा.

मगर जैसे ही मैंने उनके एक दो हुकों को खोला, रजनी ने अपनी आंखें खोल लीं- येऐ … क्याआ … कर … रहे … होओओ?
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मेरा मोहल्ला - by Starocks - 30-12-2018, 03:29 PM
RE: मेरा मोहल्ला - by Starocks - 05-01-2019, 11:28 AM



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