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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#46
भाग - 45

रतन ने चमेली के तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए पूछा- क्यों अच्छा लगा रहा हैं ना अपने दामाद का लौड़ा… क्यों बोल ना रांड.. चल अब इससे चूस..।

ये कहते हुए रतन ने एक हाथ से चमेली के सर को पकड़ कर उसके होंठों को अपने लण्ड के करीब लाना शुरू कर दिया, चमेली का दिल जोरों से धड़क रहा था। अपने दामाद का लण्ड और उसका फूला हुआ लाल सुपारा देख कर उसकी चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं और जैसे ही रतन का लण्ड का सुपारा उसके होंठों से टकराया.. तो चमेली के होंठ अपने आप खुल गए।

चमेली ने एक बार रतन के चेहरे की ओर देखा, जो उसकी ओर ही देख रहा था और फिर धीरे-धीरे चमेली के होंठ अलग हुए और उसके लण्ड के सुपारे के चारों तरफ किसी छल्ले की तरह कसते चले गए।

“आह चूस ना साली..” रतन ने अपनी कमर को मस्ती में एक झटका देते हुए कहा और फिर रतन का मोटा गुलाबी सुपारा चमेली के होंठों के भीतर कस कर उसके मुँह में चला गया।

कामविव्ह्ल हो चुकी चमेली अब सब कुछ भूल चुकी थी। रतन ने नीचे झुक कर चमेली का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया और चमेली ने भी अपने कांपते हुए हाथ से रतन के सख्त लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया और उसके लण्ड के सुपारे को अपने होंठों में दबा-दबा कर चूसने लगी।
रतन की आँखें मस्ती में बंद होने लगीं और वो अपनी कमर को धीरे-धीरे हिलाने लगा। अब तक चमेली जान चुकी थी कि उसकी चूत भी रतन के लण्ड के जैसे लण्ड के लिए पानी ही बहा रही है। राजू तो अब पता नहीं कितने दिनों बाद वापिस लौटता.. चमेली एकदम मस्ती के साथ रतन के लण्ड के सुपारे को अपने होंठों के बीच में मस्ती में दबा-दबा कर चूस रही थी।

वो बीच-बीच में अपनी जीभ से लण्ड के पेशाब वाले छेद को कुरेद देती.. जिससे रतन मस्ती में सिसक उठता और चमेली के सर को दोनों हाथों से पकड़ कर तेज़ी से अपनी कमर हिलाते हुए, अपने लण्ड को उसके मुँह के अन्दर-बाहर करने लगता।

अब रतन भी पूरी मस्ती में आ चुका था और वो ये मौका नहीं गंवाना चाहता था.. क्योंकि रज्जो का कोई पता नहीं था कि वो कब आ धमके। उसने चमेली के सर को पकड़ कर पीछे खींचा, जिससे उसका लण्ड फनफनाता हुआ बाहर आ गया। फिर रतन ने चारों तरफ देखा.. कमरे में खाट भी नहीं बिछी हुई थी। उसने सामने पड़े बिस्तर के ढेर पर से एक तकिए को उठा कर पास पड़े संदूक के साथ नीचे ज़मीन पर रख दिया और चमेली को कंधों से पकड़ कर उठा कर उस तकिए पर बैठा दिया।

अब चमेली अपनी चूतड़ों के बल उस तकिए पर बैठी थी। उसकी पीठ संदूक के साथ सटी हुई थी। रतन ने नीचे बैठते हुए, उसकी जाँघों को फैला कर अपनी टाँगों को उसकी जाँघों के नीचे से डाल कर बिछा दिया। फिर रतन ने चमेली की टांगों को घुटनों से पकड़ा और मोड़ कर अपने कंधों पर रख दिया। चमेली पीछे की तरफ लुड़क गई.. पर पीछे संदूक से उसकी पीठ सटी हुई थी।

आज चमेली एक नई ही स्थिति में चुदने वाली थी। अपने दामाद के जोश और ठरक को देख कर चमेली की चूत की फाँकें और फड़फड़ाने लगीं। जैसे ही रतन ने चमेली की टाँगों को अपने कंधों पर रखा.. चमेली के मुँह से ‘आहह..’ निकल गई। “आहह.. रतन धीरे..”

रतन ने एक बार चमेली के तरफ मुस्कुराते हुए देखा.. फिर अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने लण्ड को पकड़ लिया। फिर रतन ने अपने लण्ड को चमेली की चूत के छेद पर टिका दिया।

अपने दामाद के लण्ड का गरम सुपारे को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके चमेली एकदम मस्ती में काँप उठी। उसकी गाण्ड तकिए से थोड़ी ऊपर उठ गई.. जैसे वो लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए मचल रही हो और फिर रतन के एक जोरदार धक्के ने चमेली की चूत की दीवारों को हिला कर रख दिया।

रतन के लण्ड का वार इतना तेज और जबरदस्त था कि रतन का लण्ड एक ही बार में चमेली की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ.. पूरा का पूरा अन्दर जा घुसा। चमेली के मुँह से दर्द और मस्ती भरी ‘आहह..’ निकल पड़ी। उसने हाथों को अपने टाँगों के नीचे से ले जाकर रतन की कमर को कस कर पकड़ लिया।

रतन ने भी उसकी टाँगों के नीचे से हाथ ले जाकर उसके कंधों को कस कर पकड़ लिया। अब रतन अपनी गाण्ड को हिलाते हुए.. उसकी चूत में अपने लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा। चमेली की मस्ती भरी सिसकारियाँ फिर से पूरे कमरे में गूंजने लगीं। चमेली तो बस बैठी थी.. वो चाह कर भी हिल नहीं पा रही थी और रतन अपने मूसल लण्ड को पूरी ताक़त और बेरहमी के साथ चमेली की चूत की गहराईयों में पेल रहा था।

रतन- आह्ह.. साली क्या.. चूत है तेरी..एकदम कसी हुई.. आज कल की छोकरियों की भी इतनी कसी नहीं होती.. ओह साली भोसड़ी है या भट्टी.. ओह्ह कितनी गरम है…।

रतन के जबरदस्त धक्कों से चमेली का पूरा बदन मस्ती में थरथरा रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां हर धक्के से हिल रही थीं।

“अह.. मादरचोद अब बातें..चोदना बंद कर.. आह.. साले अपने माँ को भी इसी. आसन में चोदता है क्या.. आह्ह.. हरामी कुत्ते.. ओह फाड़ दे रे.. मेरी..ई चूत ओह्ह धीरेए… धीरेए अह आह ओह्ह..।”

चमेली के होंठों की जकड़न लगातार बढ़ती जा रही थी। रतन के लण्ड का सुपारा बुरी तरह से उसकी चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था। चमेली भी जितना हो सकता था.. उतनी अपनी कमर को आगे की तरफ धकेल कर रतन के लण्ड को अपनी चूत की गहराइयों में लेने की कोशिश कर रही थी। “साली तू आज चाहे मुझे जितनी भी गाली दे…. देखना मैं तुझे अपनी रांड बना कर रखूँगा… आह क्या कसी हुई चूत है तेरी…।”

चमेली ने मस्ती में अपने होंठों को दाँतों से काटते हुए कहा- क्या.. क्या कहा.. तूने बहनचोद.. तू मुझे अपनी रांड बनाएगा..आआअ.. आह्ह.. साले वो तो मेरा..अह.. मर्द किसी काम का नहीं है.. वरना तेरी आह्ह.. धीरेए भोसड़ी के.. वरना तेरे जैसे कितने अपनीई चूत से निकाल देती अब तक…।

रतन- आहह.. चुप कर बहन की लौड़ी.. मैं हूँ ना अब निकाल लेना.. अपनी चूत से..उइई मेरे बच्चों को.. ।

रतन के ताबड़तोड़ धक्कों से चमेली की हालत खराब होने लगी। उसकी चूत में सरसराहट और बढ़ गई और उसका पूरा बदन ऐसे अकड़ने लगा जैसे उसको कोई दौरा पड़ रहा हो। रतन जान गया कि अब ये रांड अपनी चूत से कामरस की नदी बहाने वाली है। उसने चमेली के कंधों को और ज़ोर से पकड़ कर ‘धनाधन’ शॉट लगाने चालू कर दिए।

चमेली- आह्ह.. चोद साले.. भोसड़ी के.. और ज़ोर लगा..आ बहनचोद.. मुझे रांड बनाएगा..आह दिखाअ.. तो सही अपने लौड़े का दमम्म्म आह्ह.. ऊंघ ओह्ह ओह्ह.. मैं गइई आह्ह..।

चमेली की चूत से लावा के जैसी नदी बह निकली। वो बुरी तरह काँपते हुए झड़ने लगी। रतन के लण्ड ने भी चमेली की चूत में अपने वीर्य की बौछार कर दी और दोनों हाँफने लगे। थोड़ी देर बाद जब दोनों की साँसें दुरस्त हुईं, तो रतन ने चमेली के टाँगों को अपने कंधों से नीचे उतारा और उसके होंठों को एक बार चूस कर बोला।

रतन- क्यों सासू जी.. कैसा लगा अपने दामाद का लवड़ा.. अपनी चूत में लेकर…।

अब जब कामवसना का भूत चमेली के दिमाग़ से उतर गया.. तो रतन के मुँह से अपने लिए ऐसी बात सुन कर वो बुरी तरह झेंप गई। रतन उठ कर खड़ा हो गया और पास पड़ी चमेली की चोली को उठा कर अपने लण्ड पर लगे वीर्य और चमेली की चूत के कामरस को साफ़ करने लगा। चमेली चोर नज़रों से रतन को देख रही थी, जो अपने लण्ड को उसकी चोली से उसके सामने ही साफ़ कर रहा था।

चमेली ने नाराज़ होने का नाटक करते हुए कहा- क्या दामाद जी.. मेरी चोली खराब कर रहे हो..।

रतन- एक बार मेरी रांड बन जा.. हर महीने तुझे नया लहंगा-चोली दिलवाता रहूँगा।

चमेली रतन की बात सुन कर मुस्कराए बिना रह नहीं सकी। रतन अपना पजामा पहन कर बाहर चला गया और चमेली अपने दूसरे कपड़े पहने लगी।

जैसे ही चमेली ने अपने दूसरे कपड़े पहने.. बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई। जब चमेली ने जाकर दरवाजा खोला तो रज्जो सामने खड़ी थी। रज्जो को देखते ही.. उसने अपने सर को झुका लिया। वो रज्जो से नज़रें नहीं मिला पा रही थी।

अब हम सीमा के मायके का रुख़ करते हैं। यहाँ पर सीमा दीपा और राजू के साथ अपने मायके के घर पहुँच चुकी है।

उसी शहर में राजू के माँ-बाबा का घर भी था। जैसे ही राजू उस शहर में पहुँचा तो वो सीमा से इजाज़त माँग कर अपने घर अपने माँ-बाबा को मिलने के लिए चला गया। दूसरी तरफ सेठ के घर में कुसुम आज रात का बेसब्री से इंतजार कर रही थी कि कब रात हो और सेठ घर पर आए और वो उसके साथ हम-बिस्तर हो।

जिससे उसके पेट में पल रहे राजू के अंश को वो सेठ का कह कर बेरोकटोक इस दुनिया में ला सके। आज कुसुम को फिर से सब कुछ अपनी मुट्ठी में आता नज़र आ रहा था।

आख़िर अब फिर से उसके वश में हो सकता था.. सेठ तो अपने घर के वारिस के लिए कहाँ-कहाँ नहीं भटका था। अगर कुसुम इस बात को साबित कर देती है कि उसके पेट में सेठ का वारिस पल रहा है, तो सेठ भी उसकी मुठ्ठी में आ जाएगा।
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 05-01-2019, 09:05 AM



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