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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#45
भाग - 44

क्योंकि रज्जो ज्यादातर बाहर अपनी सहेलियों से गप लड़ाती रहती थी और चमेली ये भी जानती थी कि आज यहाँ पर रतन और रज्जो का आख़िरी दिन था, कल दोनों वापिस जा रहे थे।

चमेली मन ही मन यही दुआ माँग रही थी किसी तरह ये दिन और रात भी बीत जाए। हालांकि चमेली जैसे चुड़ैल औरत रतन के जैसे मूसल लण्ड पर मर मिटी थी, पर वो रिश्तों की मर्योदाओं में बँधी हुई थी।

वो ये भी जानती थी कि अगर ऐसा कुछ हुआ और भूले से ही किसी को इस बारे में पता चला, तो उसकी और उसकी बेटी…. दोनों की जिंदगी नरक बन सकती है। वो अपने सनकी दामाद का क्या करे.. वो तो हर हाल में उसे चोदना चाहता है।

जैसे-जैसे चमेली अपने घर के करीब पहुँच रही थी, उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं और उसके हाथ-पैर उसका साथ छोड़ रहे थे। उसके पास घर जाने के सिवाय और कोई चारा भी नहीं था… वो जाती भी कहाँ। थोड़ी ही देर में वो घर पहुँच गई और जब वो घर के अन्दर आई, तो उसकी जान में जान आई.. रज्जो घर पर ही थी।

रतन ने उसकी तरफ देखते हुए, एक मुस्कान भरी। चमेली ने अपना सर झुका लिया और घर के काम में लग गई।

चमेली घर पर आकर काम में इतनी मसरूफ़ हो गई कि उससे पता ही नहीं चला कब रज्जो पड़ोस के घर पर चली गई। रतन ने मौका देखते ही चमेली से आँख बचाते हुए.. बाहर का दरवाजा बंद कर दिया। जब रतन दरवाजा बंद करके वापिस आया तो चमेली भीतर वाले कमरे में झाड़ू लगा रही थी।

अन्दर आते ही रतन चमेली की तरफ बढ़ा। अपने पीछे से आते हुए क़दमों की आहट को सुन कर चमेली एकदम से चौंक गई.. पर अब तक बहुत देर हो चुकी थी।

जैसे ही चमेली ने पीछे मुड़ कर रतन की तरफ देखा.. वो एकदम से सन्न रह गई। रतन नीचे से बिल्कुल नंगा था और ऊपर सिर्फ़ उसने एक बनियान पहन रखी थी।

रतन का फनफनाता हुआ 8 इंच का काला और मोटा लण्ड उसके चलने के कारण इधर-उधर हिल रहा था.. जिसे देख चमेली की साँसें मानो उसके हलक में अटक गई हों.. उसके हाथ पैर जैसे वहीं जम गए।

चमेली को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर वो करे तो क्या.. उसने रतन की तरफ पीठ करके सर को झुका लिया.. अब बचने को उसको कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था।

रतन ने पलक झपकते ही चमेली को पीछे से बाँहों में भर लिया और अपने होंठों को चमेली की गर्दन पर लगा दिया। रतन का तना हुआ लण्ड सीधा चमेली के चूतड़ों की दरार में जा धंसा। चमेली के पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई और वो एकदम से सिसक उठी।

चमेली- आह्ह.. सी..इईईई ये ईए क्या कर रहे हैं दामाद जी… रज्जो….।

रतन ने चमेली की चूचियों को मसलते हुए कहा- हाँ.. मेरी रानी.. वो तो कब की चली गई.. उसे ना तो मेरी परवाह है और ना ही मेरे लण्ड की… अब मेरा और मेरे लौड़े का ध्यान रखना आपका फर्ज़ बनता है… क्यों सही कह रहा हूँ ना…?

चमेली रतन की बाँहों में मचली जा रही थी और वो रतन के हाथों को अपनी गुंदाज और मस्त चूचियों पर से हटाने के कोशिश कर रही थी… पर रतन ने उसकी चूचियों को बेदर्दी से मसलते हुए फिर से उसकी गरदन को चाटना शुरू कर दिया था। चमेली को ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन में जान ही ना बची हो।

रतन के मर्दाना हाथों के आगे उसकी एक नहीं चल रही थी और उसके पैर उसके बदन का साथ छोड़ने लगे। चमेली किसी मछली की तरह तड़पती हुई धीरे-धीरे नीचे बैठने लगी.. पर रतन उसकी चूचियों को नहीं छोड़ रहा था। वो लगातार चमेली के दोनों चूचियों को मसल रहा था और जैसे-जैसे चमेली नीचे को हो रही थी.. वो भी नीचे बैठते हुए उसकी गर्दन.. गालों और कानों के पास अपनी जीभ को घुमा रहा था।

चमेली के बदन में ना चाहते हुए भी मस्ती की लहरें उठने लगीं। उसके साँसें अब और तेजी से चल रही थीं। आख़िरकार चमेली एकदम से नीचे ज़मीन पर चूतड़ों के बल बैठ गई और रतन उसके पीछे अपने पैरों को बल बैठ गया और उसी तरह अपने तपते होंठों को चमेली की गर्दन पर घुमाते हुए, उसकी चूचियों को मसल रहा था।

मस्ती का आलम चमेली पर इस कदर हावी हो गया कि वो अपने टाँगों को आगे की और फैला कर अपनी हथेलियों को ज़मीन से रगड़ने लगी और उसकी मस्ती भरी सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूंजने लगीं। अब बस चमेली सिर्फ़ मुँह से ही रतन को छोड़ देने के लिए कह रही थी। उसके उलट उसके बदन ने रतन का विरोध करना छोड़ दिया।

ये देखते हुए रतन ने एकदम से चमेली के लहँगे के ऊपर से उसकी चूत को अपनी मुठ्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया। चमेली को एक जोरदार झटका लगा.. मानो उसके पूरे बदन में बिजली सी कौंध गई हो.. उसके आँखें मस्ती में एकदम से बंद हो गईं, “आह.. रतन ये.. तुम ठीक नहीं कर रहे आहह.. ओह्ह छोड़ दो मुझे..।”

रतन ने चमेली की चूत को लहँगे के ऊपर से सहलाते हुए कहा- आहह.. सासू जी.. कसम से आपके जैसा गदराया हुआ माल.. आज तक नहीं चोदा.. आज आपकी गदराई हुई चूत चोद कर मेरे लण्ड की किस्मत जाग जाएगी।

चमेली ने अपने दामाद के मुँह से अपनी चूत के बारे में ऐसी बातें सुन कर चौंकते हुए कहा- आहह.. छोड़िए ना.. आपको मेरे बेटी की कसम.. आहह.. में.. में. उसके साथ धोखा नहीं कर सकती..।

रतन- साली रांड.. तू उस नौकर के साथ खुले-आम चुदवा सकती है..और इधर तेरा दामाद कब से तरस रहा है तेरी चूत के लिए.. तुझे मेरे लवड़े की परवाह नहीं है..क्या..? आज तो तेरी चूत में अपना लण्ड घुसा कर ही दम लूँगा.. साली एक बार मेरा लण्ड अपनी चूत में ले लेगी तो सब भूल जाएगी।

ये कहते हुए रतन ने एक झटके में चमेली के लहँगे को उसकी कमर तक ऊपर उठा दिया। चमेली तो जैसे शरम के मारे ज़मीन में गढ़ गई। उसने अपनी इज़्ज़त यानी चूत को छुपाने के लिए अपने जाँघों को आपस में सटा लिया, पर रतन ने अपने ताकतवर हाथों से उसकी जाँघों को फैला दिया।

चमेली की चूत उसके कामरस से लबलबा रही थी.. जिसे देख कर पीछे बैठे रतन का लण्ड एकदम से फनफना उठा।

रतन- आह.. क्या कमाल की चूत है रे.. तेरी.. रांड आह.. देख ना साली कैसे पानी बहा रही है और ऊपर से तू नखरे चोद रही है.. चल आज देख.. तेरी चूत कैसे फाड़ता हूँ..।

ये कहते हुए पीछे बैठे रतन ने अपने एक हाथ नीचे ले जाकर अपनी एक ऊँगली को चमेली की चूत में घुसा दिया, चमेली एकदम से सिसया उठी.. उसकी आँखें मस्ती में बंद होने लगीं।

“आह नहीं छोड़ दो.. ओह्ह आह.. नहीं रतन में. आह्ह.. मुझे कुछ हो रहा है..।”

पर रतन के दिमाग़ पर तो जैसे वासना का भूत चढ़ा हुआ था।

वो तेज़ी से अपनी दो उँगलियों को चमेली की चूत की अन्दर-बाहर करने लगा, चमेली की चूत में सरसराहट एकदम से बढ़ गई। चमेली बुरी तरह छटपटा रही थी, उसे ऐसा लग रहा था…जैसे उसकी चूत से कुछ निकलने वाला है, पर वो झड़ने वाली नहीं थी। रतन अब पूरी रफ़्तार से अपनी उँगलियों को चमेली की चूत में अन्दर-बाहर करते हुए.. चमेली के गालों को चूस रहा था।

चमेली- आह्ह.. ओह नहींईईईई दमाआद्द्ड़ जीईए ओह आह्ह.. आह्ह.. आह्ह.. बसस्स्स्स उफफफफफफफफ्फ़ आह्ह.. से..इईईईईई ओह मार डाला…।

चमेली का बदन बुरी तरह से कंपकंपाने लगा, रतन की दोनों ऊँगलियाँ चमेली की चूत से निकल रहे रस से एकदम सन गई थीं और नीचे चूतड़ों के बल बैठी चमेली की चूत से मूत की धार निकल पड़ी और तेज ‘सुर्रसुउउ’ की आवाज़ से उसकी चूत से सुनहरे रंग का पानी पेशाब के रूप में निकलने लगा।

चमेली की चूत से निकल रहे मूत की धार इतनी तेज थी कि धार 3 फुट दूर तक जा रही थी।

चमेली के कमर मूतते हुए लगातार झटके खा रही थी और रतन ने अपनी उँगलियों को चूत से बाहर निकाल कर चमेली के चोली के ऊपर से उसकी चूचियों के चूचुकों को मसलना शुरू कर दिया। चमेली लगभग एक मिनट तक मूतती रही। वो बुरी तरह से निढाल हो चुकी थी, उसके आँखें मस्ती में पूरी तरह से बंद थीं।

पेशाब की कुछ आख़िरी बूंदे रिस कर उसकी गाण्ड के छेद की तरफ बह निकलीं।

ये सब देख कर रतन का लण्ड एकदम फूल गया। चमेली की चूत से निकल रही मूत की धार देख कर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था।

“अर्ररे वाह.. रांड साली तेरी चूत तो बहुत पानी छोड़ती है.. अब तेरी चूत में लण्ड पेलने का और मज़ा आएगा।” ये कहते हुए उसने चमेली की चोली को पीछे से खोल कर उसके बदन से अलग कर दिया।

चमेली की बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियां उछल कर बाहर आ गईं… जिसे पलक झपकते ही.. रतन ने अपनी दोनों हथेलियों में भर लिया और उसके चूचकों को दबाते हुए.. अपने हथेलियों से रगड़ने लगा। चमेली एकदम से सिसक उठी, अब वो अपना आपा खोते जा रही थी.. उसके मुँह से मस्ती भरी सिसकियाँ निकल कर पूरे कमरे में गूँज रही थीं।

रतन ने एक हाथ नीचे ले जाकर फिर से उसकी चूत की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया।

“आह रतन हट जाओ ओह.. मुझे कुछ हो रहा हायइ ओह रतन.. देखो ना.. आह्ह.. ओह्ह रज्जोआ आह्ह..।”

फिर रतन एकदम से खड़ा हो गया और घूम कर चमेली के सामने आकर खड़ा हो गया.. चमेली ने अपनी आँखें खोल कर देखा.. तो रतन को अपने सामने खड़ा पाया।

वो अपने हाथ से अपने लण्ड के सुपारे की चमड़ी को आगे-पीछे कर रहा था.. रतन का काला लण्ड एकदम चमचमा रहा था और उसके गुलाबी सुपारे को देख कर तो जैसे चमेली अपनी पलकें झपकाना भूल गई।
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 05-01-2019, 09:04 AM



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