05-01-2019, 09:02 AM
भाग - 43
ये कहते हुए कुसुम ने राजू की पीठ पर अपनी बाँहों को कस लिया और ऊपर की तरफ अपनी गाण्ड को उठाने लगी। लण्ड पर चूत का दबाव पड़ते ही कुसुम की चूत की फाँकें फ़ैलने लगीं और राजू के लण्ड का मोटा सुपारा कुसुम की कसी चूत के छेद को फ़ैलाते हुए.. अन्दर घुसने लगा। कुसुम अपनी सांसों को थामे हुए, तब तक अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठाती रही… जब तक राजू का लण्ड धीरे-धीरे कुसुम की चूत में जड़ तक नहीं समा गया।
जैसे ही राजू के लण्ड का सुपारा कुसुम की बच्चेदानी से जाकर टकराया.. कुसुम के होंठों पर संतुष्टि भरी मुस्कान फ़ैल गई… मस्ती अपने चरम पर पहुँच गई। कुसुम एकदम कामविभोर हो गई… मानो जैसे वो जन्नत में पहुँच गई हो.. उसने अपने अधखुली और वासना से लिपटी हुई आँखों से राजू की तरफ देखा, तो उसे ऐसा लगा… मानो जैसे राजू ही उसकी जिंदगी हो।
उसने अपने दोनों हाथों में राजू के चेहरे को पकड़ कर कुछ देर के लिए उसकी तरफ़ देखा और फिर अपने थरथरा रहे होंठों को.. राजू के होंठों पर लगा दिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना सारा प्यार राजू पर लुटाने लगी। राजू भी मस्ती में आकर कुसुम के होंठों को चूसते हुए.. धीरे-धीरे अपने लण्ड को कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।
दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसते हुए अपने प्यार का इज़हार एक-दूसरे से कर रहे थे। जब राजू अपना लण्ड कुसुम की चूत से बाहर निकाल कर दोबारा अन्दर पेलता, तो कुसुम अपनी जाँघों को फैला कर अपनी गाण्ड को ऊपर उठा कर फिर से राजू के लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए आतुर हो उठती।
जब राजू का लण्ड फिर से कुसुम की चूत की गहराईयों में जाता, तो कुसुम अपने दोनों हाथों से राजू के चूतड़ों को दबा कर उसके लण्ड पर अपनी चूत को और दबा देती।
उसकी चूत की दीवारें राजू के लण्ड को अन्दर ही अन्दर कस कर चोद रही थीं.. मानो जैसे उसके लण्ड को मथ रही हों। कुसुम की चूत की गरमी को अपने लण्ड पर महसूस करके राजू भी मदहोश हुआ जा रहा था। हर धक्के के साथ राजू की रफ्तार बढ़ रही थी और कुसुम भी मस्ती में अपने होंठों को चुसवाते हुए उसकी लय में अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर राजू का लण्ड अपनी चूत की गहराईयों में लेने की कोशिश कर रही थी।
अब राजू पूरे जोश में आ चुका था, उसने अपने होंठों को कुसुम के होंठों से अलग किया और उसकी जाँघों के बीच बैठते हुए ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। राजू के लण्ड के ताबड़तोड़ धक्कों ने कुसुम की चूत की दीवारों को बुरी तरह रगड़ कर रख दिया.. उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
कुसुम ने अपने चूचियों के चूचकों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा- आहह.. आह.. राजू धीरे कर ओह्ह.. मर गइईए रे.. धीरे बेटा.. ओह आह्ह.. ओह्ह और बहुत मज़ा आ रहा है.. राजू ओह्ह धीरे बेटा आह्ह.. उह चोद मुझे आह्ह..।
राजू- आह.. चोद तो रहा हूँ..हुन्न्ञणणन् आह्ह.. उह..।
कुसुम ने अपनी सिसकारियों को दबाने के लिए अपने होंठों को दाँतों में बीच में दबा लिया और तेज़ी से अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए झड़ने लगी। राजू के लण्ड ने भी उसकी चूत की दीवारों को भिगो कर रख दिया। झड़ने के बाद राजू कुसुम के ऊपर निढाल होकर गिर पड़ा।
अगली सुबह जब कुसुम उठी, तो उसने पाया कि उसके कमरे के दरवाजे पर कोई दस्तक कर रहा था.. बाहर से चमेली की आवाज़ आई। जैसे ही वो उठ कर बैठी तो उससे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ… उसका पेटीकोट अभी भी जाँघों के ऊपर चढ़ा हुआ था और ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे। राजू रात को पता नहीं किस समय बाहर चला गया था।
उसका कमरा शामयाना सा लग रहा था, उसने अपने ब्लाउज के बटन बंद किए और चमेली को आवाज़ दी, “हाआँ.. आ रही हूँ..तू जा…” उसके बाद कुसुम ने साड़ी पहनी और बाहर आ गई। जब वो पीछे गुसलखाने में हाथ-पैर धोने गई तो चमेली उससे गुसलखाने के बाहर खड़ी हुई नज़र आई।
कुसुम- तू यहाँ क्या कर रही है ?
चमेली ने मुस्कुराते हुए धीमे स्वर में कहा- महारानी जी अन्दर नहा रही हैं।
कुसुम- क्यों आज कोई ख़ास बात है।
चमेली ने कुसुम की तरफ देख कर आँख दबाते हुए कहा- माहवारी आई है.. इस बार भी सेठ जी दु:खी हो जाएंगे।
कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा- तू अपने काम पर ध्यान दिया कर समझी..।
इतने में सेठ की दूसरी पत्नी सीमा गुसलखाने से बाहर आती है और कुसुम के पाँव छू कर अन्दर की तरफ चली जाती है। चमेली और कुसुम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख कर मुस्कुरा देते हैं। जैसे ही कुसुम गुसलखाने में घुसी.. तो उसका दिमाग़ एक पल के लिए घूम गया और वो कुछ हिसाब लगाने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद कुसुम के होंठों पर गहरी मुस्कान फ़ैल गई।
कुसुम को महीना आए हुए.. आज एक महीने से ज्यादा हो गया था और ये सोच कर कि वो पेट से है वो ख़ुशी से पागल हो गई.. पर अगले ही पल उसके माथे पर सिकन और परेशानी के भाव उभर आए… क्योंकि सेठ के साथ सोए हुए तो उसे एक महीने से भी ज्यादा समय हो गया था। वो जानती थी कि उसके पेट में राजू का अंश पल रहा है और वो किसी भी कीमत पर इसे इस दुनिया में लाना चाहती थी।
क्योंकि इसे बच्चे की वजह से वो अपना खोया हुआ रुतबा फिर से सेठ के घर में हासिल कर सकती थी, पर वो ये कैसे साबित करे कि ये सेठ का ही बच्चा है। ये सब सोचते हुए उसने कब नहा लिया उसे पता भी नहीं चला और जब वो तैयार होकर घर के आगे की तरफ आई, तो सेठ गेंदामल सीमा से कुछ बात कर रहा था।
सेठ के बातों से साफ़ झलक रहा था कि वो थोड़ा परेशान है। थोड़ी देर बात करने के बाद सीमा अपने कमरे में चली गई, सेठ बाहर आँगन में पलंग पर बैठा हुआ नास्ता कर रहा था। मौका देख कुसुम सेठ के पास जाकर बैठ गई।
कुसुम- क्या बात है जी.. आप थोड़ा परेशान हो। ?
सेठ- नहीं.. कुछ ख़ास बात नहीं है..।
कुसुम- चलो… हम भी आपसे बात नहीं करते, मैं देख रही हूँ.. जब से आप इससे ब्याह कर लिए है.. आप मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते..।
सेठ- नहीं नहीं.. ऐसी बात नहीं है.. दरअसल उसने कहा है कि उसकी माँ की तबियत बहुत खराब है और वो घर जाना चाहती है.. तुम तो जानती हो.. मैं पहले ही काफ़ी दिनों दुकान से दूर रहा हूँ.. अब फिर से वहाँ जाऊँगा तो चार-पाँच दिन तो लग ही जाएंगे।
कुसुम- जी… वो तो है… उसके मायके का घर भी तो दूर है।
सेठ- क्यों ना राजू और दीपा को उसके साथ भेज दूँ.. इसमें मेरा वक़्त भी बच जाएगा।
जैसे ही सेठ ने राजू और दीपा को उसके साथ भेजने की बात कही.. कुसुम को लगा मानो जैसे भगवान उस पर कुछ ज्यादा ही दयावान हो गया हो।
कुसुम- जी.. ये ठीक रहेगा..।
सेठ- तो ठीक है… मैं सीमा को बोल देता हूँ और जाते हुए.. तांगे वाले को भी बोल दूँगा कि वो तीनों को स्टेशन छोड़ आएगा। गाड़ी 11 बजे की है और मुझे भी अब दुकान के लिए निकलना है।
कुसुम से अपनी ख़ुशी छुपाए नहीं छुप रही थी। वो उठ कर अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर लेट गई। यही वो समय था, जब वो सेठ के साथ एक रात गुजार कर अपने पेट में पल रहे राजू के बच्चे को सेठ का नाम दे सकती थी और एक तीर से दो शिकार हो सकते थे। दूसरा ये कि राजू और दीपा इस दौरान और करीब आ सकते थे।
जिससे वो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले सकती थी। गेंदामल ने जबसे बात राजू को बताया कि उसे सीमा और दीपा के साथ जाना होगा, तो वो थोड़ा निराश हो गया.. पर वो गेंदामल की बात को टाल नहीं सकता था। इसलिए उसने भी सीमा के मायके जाने की तैयारी शुरू कर दी। जब दीपा को इस बात का पता चला कि राजू भी उन दोनों के साथ जा रहा है, तो उसके मन के अन्दर हलचल होने लगी।
जिस तरह से राजू ने पहले ही दिन उसके कुंवारे बदन को मसल कर जवानी का मज़ा चखा दिया था… उस हिसाब से राजू मौका मिलने पर कुछ भी कर सकता था… यही सोच-सोच कर दीपा के मन में तूफ़ान मचा हुआ था। दीपा भी अपना सामान पैक कर रही थी और दूसरी तरफ सीमा भी… थोड़ी देर बाद बाहर तांगे वाला भी आ गया और तीनों स्टेशन के लिए निकल पड़े। इस बार सेठ गेंदामल ने तीनों को ट्रेन में सीट दिलवा दी थी, ताकि तीनों को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो। राजू दीपा और सीमा के बिल्कुल सामने वाले सीट पर बैठा था।
खैर.. सफ़र में कुछ ख़ास नहीं हो रहा है, तो हम अब चमेली के घर का रुख़ करते हैं। आज जब चमेली सेठ के घर से काम निपटा कर घर वापिस जा रही थी, तो उसके दिल के धड़कनें भी तेज चल रही थीं। वो मन ही मन यही मना रही थी कि उसकी बेटी रज्जो भी घर पर हो।
ये कहते हुए कुसुम ने राजू की पीठ पर अपनी बाँहों को कस लिया और ऊपर की तरफ अपनी गाण्ड को उठाने लगी। लण्ड पर चूत का दबाव पड़ते ही कुसुम की चूत की फाँकें फ़ैलने लगीं और राजू के लण्ड का मोटा सुपारा कुसुम की कसी चूत के छेद को फ़ैलाते हुए.. अन्दर घुसने लगा। कुसुम अपनी सांसों को थामे हुए, तब तक अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठाती रही… जब तक राजू का लण्ड धीरे-धीरे कुसुम की चूत में जड़ तक नहीं समा गया।
जैसे ही राजू के लण्ड का सुपारा कुसुम की बच्चेदानी से जाकर टकराया.. कुसुम के होंठों पर संतुष्टि भरी मुस्कान फ़ैल गई… मस्ती अपने चरम पर पहुँच गई। कुसुम एकदम कामविभोर हो गई… मानो जैसे वो जन्नत में पहुँच गई हो.. उसने अपने अधखुली और वासना से लिपटी हुई आँखों से राजू की तरफ देखा, तो उसे ऐसा लगा… मानो जैसे राजू ही उसकी जिंदगी हो।
उसने अपने दोनों हाथों में राजू के चेहरे को पकड़ कर कुछ देर के लिए उसकी तरफ़ देखा और फिर अपने थरथरा रहे होंठों को.. राजू के होंठों पर लगा दिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना सारा प्यार राजू पर लुटाने लगी। राजू भी मस्ती में आकर कुसुम के होंठों को चूसते हुए.. धीरे-धीरे अपने लण्ड को कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।
दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसते हुए अपने प्यार का इज़हार एक-दूसरे से कर रहे थे। जब राजू अपना लण्ड कुसुम की चूत से बाहर निकाल कर दोबारा अन्दर पेलता, तो कुसुम अपनी जाँघों को फैला कर अपनी गाण्ड को ऊपर उठा कर फिर से राजू के लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए आतुर हो उठती।
जब राजू का लण्ड फिर से कुसुम की चूत की गहराईयों में जाता, तो कुसुम अपने दोनों हाथों से राजू के चूतड़ों को दबा कर उसके लण्ड पर अपनी चूत को और दबा देती।
उसकी चूत की दीवारें राजू के लण्ड को अन्दर ही अन्दर कस कर चोद रही थीं.. मानो जैसे उसके लण्ड को मथ रही हों। कुसुम की चूत की गरमी को अपने लण्ड पर महसूस करके राजू भी मदहोश हुआ जा रहा था। हर धक्के के साथ राजू की रफ्तार बढ़ रही थी और कुसुम भी मस्ती में अपने होंठों को चुसवाते हुए उसकी लय में अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर राजू का लण्ड अपनी चूत की गहराईयों में लेने की कोशिश कर रही थी।
अब राजू पूरे जोश में आ चुका था, उसने अपने होंठों को कुसुम के होंठों से अलग किया और उसकी जाँघों के बीच बैठते हुए ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। राजू के लण्ड के ताबड़तोड़ धक्कों ने कुसुम की चूत की दीवारों को बुरी तरह रगड़ कर रख दिया.. उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
कुसुम ने अपने चूचियों के चूचकों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा- आहह.. आह.. राजू धीरे कर ओह्ह.. मर गइईए रे.. धीरे बेटा.. ओह आह्ह.. ओह्ह और बहुत मज़ा आ रहा है.. राजू ओह्ह धीरे बेटा आह्ह.. उह चोद मुझे आह्ह..।
राजू- आह.. चोद तो रहा हूँ..हुन्न्ञणणन् आह्ह.. उह..।
कुसुम ने अपनी सिसकारियों को दबाने के लिए अपने होंठों को दाँतों में बीच में दबा लिया और तेज़ी से अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए झड़ने लगी। राजू के लण्ड ने भी उसकी चूत की दीवारों को भिगो कर रख दिया। झड़ने के बाद राजू कुसुम के ऊपर निढाल होकर गिर पड़ा।
अगली सुबह जब कुसुम उठी, तो उसने पाया कि उसके कमरे के दरवाजे पर कोई दस्तक कर रहा था.. बाहर से चमेली की आवाज़ आई। जैसे ही वो उठ कर बैठी तो उससे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ… उसका पेटीकोट अभी भी जाँघों के ऊपर चढ़ा हुआ था और ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे। राजू रात को पता नहीं किस समय बाहर चला गया था।
उसका कमरा शामयाना सा लग रहा था, उसने अपने ब्लाउज के बटन बंद किए और चमेली को आवाज़ दी, “हाआँ.. आ रही हूँ..तू जा…” उसके बाद कुसुम ने साड़ी पहनी और बाहर आ गई। जब वो पीछे गुसलखाने में हाथ-पैर धोने गई तो चमेली उससे गुसलखाने के बाहर खड़ी हुई नज़र आई।
कुसुम- तू यहाँ क्या कर रही है ?
चमेली ने मुस्कुराते हुए धीमे स्वर में कहा- महारानी जी अन्दर नहा रही हैं।
कुसुम- क्यों आज कोई ख़ास बात है।
चमेली ने कुसुम की तरफ देख कर आँख दबाते हुए कहा- माहवारी आई है.. इस बार भी सेठ जी दु:खी हो जाएंगे।
कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा- तू अपने काम पर ध्यान दिया कर समझी..।
इतने में सेठ की दूसरी पत्नी सीमा गुसलखाने से बाहर आती है और कुसुम के पाँव छू कर अन्दर की तरफ चली जाती है। चमेली और कुसुम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख कर मुस्कुरा देते हैं। जैसे ही कुसुम गुसलखाने में घुसी.. तो उसका दिमाग़ एक पल के लिए घूम गया और वो कुछ हिसाब लगाने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद कुसुम के होंठों पर गहरी मुस्कान फ़ैल गई।
कुसुम को महीना आए हुए.. आज एक महीने से ज्यादा हो गया था और ये सोच कर कि वो पेट से है वो ख़ुशी से पागल हो गई.. पर अगले ही पल उसके माथे पर सिकन और परेशानी के भाव उभर आए… क्योंकि सेठ के साथ सोए हुए तो उसे एक महीने से भी ज्यादा समय हो गया था। वो जानती थी कि उसके पेट में राजू का अंश पल रहा है और वो किसी भी कीमत पर इसे इस दुनिया में लाना चाहती थी।
क्योंकि इसे बच्चे की वजह से वो अपना खोया हुआ रुतबा फिर से सेठ के घर में हासिल कर सकती थी, पर वो ये कैसे साबित करे कि ये सेठ का ही बच्चा है। ये सब सोचते हुए उसने कब नहा लिया उसे पता भी नहीं चला और जब वो तैयार होकर घर के आगे की तरफ आई, तो सेठ गेंदामल सीमा से कुछ बात कर रहा था।
सेठ के बातों से साफ़ झलक रहा था कि वो थोड़ा परेशान है। थोड़ी देर बात करने के बाद सीमा अपने कमरे में चली गई, सेठ बाहर आँगन में पलंग पर बैठा हुआ नास्ता कर रहा था। मौका देख कुसुम सेठ के पास जाकर बैठ गई।
कुसुम- क्या बात है जी.. आप थोड़ा परेशान हो। ?
सेठ- नहीं.. कुछ ख़ास बात नहीं है..।
कुसुम- चलो… हम भी आपसे बात नहीं करते, मैं देख रही हूँ.. जब से आप इससे ब्याह कर लिए है.. आप मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते..।
सेठ- नहीं नहीं.. ऐसी बात नहीं है.. दरअसल उसने कहा है कि उसकी माँ की तबियत बहुत खराब है और वो घर जाना चाहती है.. तुम तो जानती हो.. मैं पहले ही काफ़ी दिनों दुकान से दूर रहा हूँ.. अब फिर से वहाँ जाऊँगा तो चार-पाँच दिन तो लग ही जाएंगे।
कुसुम- जी… वो तो है… उसके मायके का घर भी तो दूर है।
सेठ- क्यों ना राजू और दीपा को उसके साथ भेज दूँ.. इसमें मेरा वक़्त भी बच जाएगा।
जैसे ही सेठ ने राजू और दीपा को उसके साथ भेजने की बात कही.. कुसुम को लगा मानो जैसे भगवान उस पर कुछ ज्यादा ही दयावान हो गया हो।
कुसुम- जी.. ये ठीक रहेगा..।
सेठ- तो ठीक है… मैं सीमा को बोल देता हूँ और जाते हुए.. तांगे वाले को भी बोल दूँगा कि वो तीनों को स्टेशन छोड़ आएगा। गाड़ी 11 बजे की है और मुझे भी अब दुकान के लिए निकलना है।
कुसुम से अपनी ख़ुशी छुपाए नहीं छुप रही थी। वो उठ कर अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर लेट गई। यही वो समय था, जब वो सेठ के साथ एक रात गुजार कर अपने पेट में पल रहे राजू के बच्चे को सेठ का नाम दे सकती थी और एक तीर से दो शिकार हो सकते थे। दूसरा ये कि राजू और दीपा इस दौरान और करीब आ सकते थे।
जिससे वो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले सकती थी। गेंदामल ने जबसे बात राजू को बताया कि उसे सीमा और दीपा के साथ जाना होगा, तो वो थोड़ा निराश हो गया.. पर वो गेंदामल की बात को टाल नहीं सकता था। इसलिए उसने भी सीमा के मायके जाने की तैयारी शुरू कर दी। जब दीपा को इस बात का पता चला कि राजू भी उन दोनों के साथ जा रहा है, तो उसके मन के अन्दर हलचल होने लगी।
जिस तरह से राजू ने पहले ही दिन उसके कुंवारे बदन को मसल कर जवानी का मज़ा चखा दिया था… उस हिसाब से राजू मौका मिलने पर कुछ भी कर सकता था… यही सोच-सोच कर दीपा के मन में तूफ़ान मचा हुआ था। दीपा भी अपना सामान पैक कर रही थी और दूसरी तरफ सीमा भी… थोड़ी देर बाद बाहर तांगे वाला भी आ गया और तीनों स्टेशन के लिए निकल पड़े। इस बार सेठ गेंदामल ने तीनों को ट्रेन में सीट दिलवा दी थी, ताकि तीनों को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो। राजू दीपा और सीमा के बिल्कुल सामने वाले सीट पर बैठा था।
खैर.. सफ़र में कुछ ख़ास नहीं हो रहा है, तो हम अब चमेली के घर का रुख़ करते हैं। आज जब चमेली सेठ के घर से काम निपटा कर घर वापिस जा रही थी, तो उसके दिल के धड़कनें भी तेज चल रही थीं। वो मन ही मन यही मना रही थी कि उसकी बेटी रज्जो भी घर पर हो।