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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#43
भाग - 42

राजू पेशाब करने गुसलखाने में चला गया, पेशाब करने के बाद जब वो वापिस अपने कमरे की तरफ जा रहा था, तब उसे कुसुम के कमरे की खिड़की जो घर के पीछे की तरफ थी, उसमें से लालटेन की रोशनी अन्दर आती हुई नज़र आई। एक पल के लिए राजू वहीं रुक गया और फिर कुछ सोच कर उस खिड़की की तरफ बढ़ गया।

जब वो खिड़की के पास पहुँचा, तो उसने अन्दर झाँकने की कोशिश की।

लकड़ी की बनी खिड़की में झिरी होना आम बात है और वो राजू को आसानी से मिल भी गई। राजू उस झिरी से अन्दर झाँकने लगा। वो खिड़की कुसुम के बिस्तर के बिल्कुल पास थी, मतलब जिसस दीवार से कुसुम का बिस्तर सटा हुआ था, उसी में वो खिड़की थी। सबसे पहले उसे कुसुम रज़ाई ओढ़े दिखाई दी। उसके बाद उसने पूरे कमरे का मुआयना किया, उसके कमरे में कुसुम के अलावा और कोई नहीं था।

राजू ने चारों तरफ एक बार देखा और फिर धीरे से कुसुम को आवाज़ दी। एक-दो बार आवाज़ देने के बाद कुसुम के बिस्तर के हिलने की आवाज़ हुई। राजू चुप हो गया और दिल थामे खिड़की खुलने का इंतजार करने लगा। जैसे ही कुसुम ने खिड़की खोली, सामने राजू को देख उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम- तू यहाँ क्या कर रहा है.. अभी तक सोया नहीं..?

राजू- वो मैं पेशाब करने बाहर आया था… आप के कमरे के लालटेन जलती हुई नज़र आई, तो देखने चला आया और वैसे भी अब मुझे आपके बिना नींद नहीं आती।

कुसुम ने राजू की बात सुन कर मन ही मन खुश होते हुए कहा- क्यों.. नींद क्यों नहीं आती..?

राजू ने खिड़की की सलाखों पर हाथ रखते हुए कहा- अब क्या कहूँ मालकिन… जब तक मेरा लण्ड आपकी चूत का पानी चख नहीं लेता.. साला सोने नहीं देता और वैसे भी आपके बदन की गरमी में कुछ अलग सा नशा है।

कुसुम ने उदास होते हुए कहा- हाँ.. मेरे राजा, मुझे अब तुम्हारे बिना नींद नहीं आ रही थी… देख ना.. कब से मेरी चूत में खुजली मची हुई है।

राजू- तो फिर मालकिन आप कमरे का दरवाजा खोल कर रखो… मैं अभी आता हूँ।

कुसुम- अरे नहीं… आगे से नहीं.. अगर किसी ने देख लिया तो..?

राजू ने पजामे के ऊपर से अपने लण्ड को मसलते हुए कहा कहा- तो फिर क्या करूँ… मालकिन देखो ना मेरा लण्ड फूल कर तुम्हारी चूत में जाने को बेताब हो रहा है।

कुसुम ने राजू के बेताबी को देख कर मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा- हाँ.. वो तो देख रही हूँ.. अच्छा रुक ज़रा…।

ये कह कर कुसुम ने खिड़की के बीच वाली

सलाख को ऊपर की और उठाना शुरू कर दिया।

राजू- ये आप क्या रही हैं मालकिन.. लोहे की सलाख ऐसे थोड़ा टूटेगी।

कुसुम- शी.. चुप.. एक पल रुक तो सही.. टूटेगी नहीं.. तो ना सही… इसमें से निकल तो सकती है ना…।

आख़िर कार कुसुम ने सलाख को आधा टेढ़ा करके घुन लगी लकड़ी से उसे निकाल दिया, जिससे दो सलाखों के बीच में इतनी जगह तो बन ही गई थी कि राजू चढ़ कर अन्दर आ सके। जैसे ही वो सलाख खिड़की से निकली.. कुसुम और राजू दोनों के होंठों पर वासना भरी मुस्कान फ़ैल गई और राजू झट से दोनों सलाखों के बीच से कुसुम के कमरे में आ गया।

राजू के अन्दर आने के बाद कुसुम ने उस सलाख को फिर से वहाँ पर हल्का सा अटका दिया। फिर उसने खिड़की बंद करके ऊपर से परदा गिरा दिया। इससे पहले की कुसुम पीछे हटती, राजू ने उसे पीछे से बाँहों में भरते हुए, कुसुम की दोनों चूचियों को अपने हाथों में भर कर मसलना शुरू कर दिया।

“आह्ह.. रुक तो सही.. मैं कहीं भागे थोड़ा जा रही हूँ…।”

राजू ने कुसुम की दोनों चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से मसलते हुए कहा- आह.. बस अब और रुका नहीं जाता मालकिन… और आप सबर रखने को कह रही हो.. राजू ने अपने दहकते हुए होंठों को कुसुम की गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन और ब्लाउज के ऊपर पीठ के खुले हुए हिस्से.. कंधों और बाकी खुली जगह को पागलों की तरह चूमने और चाटने लगा।

कुसुम ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा- ओह्ह.. राजू तूने मुझ पर कौन सा जादू कर दिया है.. ओह्ह ह..इईईई आह्ह.. मैं अब एक पल भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।

राजू ने कुसुम की दोनों चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से अपने हाथों में भर कर मसलते हुए कहा- आह मालकिन.. मैं भी तो तुम्हारे बिना एक पल नहीं रह सकता।

ये कहते हुए उसने कुसुम को अपनी तरफ घुमा लिया। कुसुम के साँसें उखड़ी हुई थीं, उसकी आँखें मस्ती के कारण बंद होती मालूम हो रही थीं और गुलाबी रसीले होंठ कामवासना के कारण थरथरा रहे थे। राजू ने अपने हाथों को कुसुम की कमर में डाल कर उसे अपनी तरफ खींच लिया। कुसुम की गुंदाज.. कसी हुई चूचियां.. राजू की छाती से जा टकराईं।

अगले ही पल दोनों एक-दूसरे के होंठों में होंठों को डाल कर पागलों की तरह चूस रहे थे, कुसुम ने अपनी बाहें राजू की पीठ पर कस रखी थीं और वो राजू की पीठ को अपने कोमल हाथों से सहला रही थी।

राजू ने कुसुम के होंठों को चूमते हुए उसे बिस्तर पर लेटा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया। कुसुम की साँसें मस्ती में तेज हो गई थीं और वो अपने होंठों को ढीला छोड़ कर राजू से अपने होंठों को चुसवा कर मस्त हुई जा रही थी। राजू उसके होंठों को चूसते हुए, उसके ब्लाउज के बटनों को धीरे-धीरे खोल रहा था। जैसे ही कुसुम के ब्लाउज के सारे बटन खुले, उसकी बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियाँ ब्लाउज के क़ैद से बाहर उछल पड़ीं।

राजू ने अपने होंठों को कुसुम के होंठों से अलग किया और कुसुम की आँखों में देखा, उसकी आँखें बहुत मुश्किल से खुल पा रही थीं.. जिसमें वासना का नशा छाया हुआ था। कुसुम की चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं.. जिसे देख कर राजू की आँखों की चमक भी बढ़ गई। वो किसी भूखे कुत्ते की तरह कुसुम की चूचियों पर टूट पड़ा और अपने दोनों हाथों में जितना भर सकता था..भर कर.. दोनों चूचियों को मसलते हुए, उसके चूचकों पर अपनी जीभ को फिराने लगा।

कुसुम मस्ती में एकदम से सिसक उठी और उसने राजू को बाँहों में भरते हुए अपने बदन से चिपका लिया। राजू का लण्ड उसके पजामे को फाड़ कर बाहर आने को बेकरार हुआ जा रहा था।

कुसुम ने मस्ती में सिसयाते हुए कहा- आह राजू से..हइई तूने मुझे क्या कर दिया है.. ओह्ह.. क्यों तेरे लण्ड अपनी फुद्दी में लिए बिना मुझे नींद नहीं आती.. मैं मर जाऊँगी.. तेरे बिना..।

राजू ने कुसुम की चूचियों पर अपने होंठों को रगड़ते हुए कहा- आह.. मालकिन.. मेरा भी तो आप जैसा ही हाल है.. साला ये लण्ड जब तक आपकी चूत का रस नहीं चख लेता… मुझे भी नींद नहीं आती।

कुसुम- हट साले.. फिर तड़फा क्यों रहा है.. डाल दे अपना मूसल सा लण्ड मेरी चूत में… और खूब रगड़ कर चोद अपनी मालकिन को..।

ये कहते हुए कुसुम बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई। उसने अपने पेटीकोट को अपनी कमर तक ऊपर उठा दिया। लालटेन की रोशनी में कुसुम की चिकनी चूत कामरस से लबालबा कर चमक उठी। जिसे देखते ही राजू एकदम से पागल सा हो गया और कुसुम की जाँघों के बीच में आकर उस पर सवार हो गया।
ऊपर आते ही राजू ने कुसुम की एक चूची को जितना हो सकता था… मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया। कुसुम के पूरे बदन में मानो बिजली सी कौंध गई। उसने राजू के सर को अपनी बाँहों में जकड़ कर अपनी चूचियों पर दबाना चालू कर दिया।

“आह चूस्स्स.. साले.. चूस्स्स ले.. मेरा दूध सब तेरे लिए है… ओह और ज़ोर से चूस्स्स अह हाआंन्णाणन् काट ले.. ओह धीरेई..।”

राजू कुसुम के चूचुक को अपने होंठों में बीच में दबा कर अपनी जीभ से कुलबुलाने लगा। कुसुम का पूरा बदन मस्ती के कारण काँप रहा था। उसकी हल्की सिसकियां उसके कमरे की दीवारों से टकरा कर उसी कमरे में खो कर रहे जा रही थीं।

उसकी चूत में खुजली और बढ़ गई थी, राजू ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

कुसुम ने अपनी टाँगों को मोड़ कर राजू के जाँघों पर पाँव रख कर उसके पजामे में अपने पैर फँसा दिए और फिर उसके पजामे को अपने पैरों से नीचे सरकाते हुए.. उसके पैरों से निकाल दिया। राजू का फनफनाता हुआ लण्ड.. जैसे ही पजामे की क़ैद से बाहर आया.. वो सीधा कुसुम की चूत की फांकों के बीच जा पहुँचा।

जैसे ही राजू के लण्ड के गरम सुपारे ने कुसुम की चूत की फांकों को छुआ.. कुसुम की चूत में सरसराहट और बढ़ गई। कुसुम मस्त होकर अपनी टाँगों को और फैला कर ऊपर की ओर उठा कर राजू की कमर पर कस लिया। राजू का लण्ड का सुपारा कुसुम की चूत की फांकों को फैला कर उसकी चूत के छेद पर जा लगा। कुसुम ने अपनी मदहोशी से भरी आँखों को खोल कर राजू की तरफ देखा। कुसुम ने मदहोशी और मस्ती भरी आवाज़ में राजू के आँखों में झाँकते हुए कहा- आह.. ओह्ह.. बहुत गरम है रे… तेरा ये लौड़ा..।

राजू- हाँ मालकिन.. आप की चूत भी भट्टी की तरह तप रही है..।

कुसुम- वो तो कब से फुदक रही है..तेरे लण्ड को अन्दर लेने के लिए..।
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 05-01-2019, 09:01 AM



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