05-01-2019, 09:00 AM
भाग - 41
रतन ने चमेली के तरफ देखते हुए अजीब से मुस्कान के साथ कहा- वही.. जो आप अभी-अभी नदी के किनारे वाली झाड़ियों के बीच करके आ रही हैं।
चमेली ने रतन की बात सुन कर घबराते हुए कहा- में.में. कुछ समझी नहीं.. आप क्या कह रहा हैं.. मैं तो वो बस..।
रतन ने चमेली को बीच में टोकते हुए कहा- हाँ.. मैंने सब देख लिया सासू जी… क्या चूत है आपकी.. एकदम गदराई हुई.. ऐसी चूत तो मैंने आज तक नहीं देखी.. बस एक बार चोदने के लिए मिल जाए तो मेरे जिंदगी बन जाएगी।
चमेली- ये.. ये.. क्या कह रहे हैं आप.. कैसी गंदी बातें कर रहे हैं आप… मैं आप की सास हूँ।
रतन- अच्छा.. मैं गंदा बोल रहा हूँ.. तो तुम भी तो वहाँ अपनी गाण्ड हिला-हिला कर अपनी बेटी की उम्र के छोरे का लण्ड सरेआम ले रही थीं… देखो सासू जी… अगर घर में जवान लण्ड मौजूद है, तो बाहर जाकर क्यों अपना मुँह काला करवा रही हो।
चमेली ने गुस्से से कहा- रतन अपनी मर्यादा में रहो… वरना मैं कहती हूँ ठीक नहीं होगा।
रतन ने गुस्से से आग-बबूला होते हुए कहा- अच्छा साली.. अब तू देख.. तेरी और तेरी बेटी की इज्जत के धज्जियाँ कैसे उड़ाता हूँ… बहनचोद गान्डू समझ रखा है क्या.. मुझे…? बेटी साली.. चिल्लाने लगती है और माँ तो साली ऐसे नखरे करती है.. जैसे बहुत शरीफ हो। आज तो तेरी चूत में अपना लण्ड डाल कर पेल कर ही रहूँगा।
चमेली- तुम होश में नहीं हो.. अभी तुम से बात करने का कोई फायदा नहीं।
रतन- मुझे बात करके लेना ही क्या है, मुझे तो बस तेरी चूत चाहिए.. और हाँ.. सुन आज रात को तैयार रहना और अगर कोई आनाकानी की.. तो याद रखना..मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
ये कहते हुए, रतन ने आगे बढ़ कर चमेली को अपनी बाँहों में भर लिया। चमेली रतन की इस हरकत से एकदम से घबरा गई और वो रतन की गिरफ़्त से छूटने के लिए हाथ-पैर मारने लगी। पर 22 साल के हट्टे-कट्टे रतन के सामने चमेली की एक ना चली।
रतन ने चमेली को चारपाई पर पटक दिया और किसी भूखे कुत्ते की तरह उस पर सवार हो गया। उसने चमेली के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर से चूस डाला।
चमेली ने अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया। रतन पागलों की तरह चमेली के गालों और गर्दन को चूमने लगा।
“आह्ह.. दामाद जी.. ये क्या कर रहे हैं आप.. छोडिए मुझे.. ये ये सब ठीक नहीं है।”
रतन- क्यों साली.. उधर तो उस लौंडे का लण्ड अपनी चूत में उछल-उछल कर ले रही थी। मुझे में क्या खराबी है… बहनचोदी.. अगर ज्यादा नखरा किया.. तो तेरे पति को जाकर तेरी करतूतों के बारे में सब बता दूँगा।
रतन की बात सुन कर चमेली बुरी तरह से डर गई। रतन ने चमेली को कमजोर पड़ता देख कर फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चमेली रतन के नीचे किसी मछली की तरह छटपटाने लगी। रतन ने एक हाथ नीचे ले जाकर चमेली के लहँगे को ऊपर उठाना चालू कर दिया। चमेली ने भी हाथ नीचे ले जाकर रतन का हाथ पकड़ कर उसे रोकने की नाकामयाब कोशिश की।
पर रतन के आगे उसकी एक ना चली और रतन ने चमेली के हाथ को झटकते हुए उसके लहँगे को ऊपर उठा दिया और चमेली के होंठों से अपने होंठों को हटाते हुए, चारपाई के किनारे खड़ा हो गया। चमेली के झांटों से भरी गदराई चूत देख कर रतन के लण्ड एकदम से तन गया।
उसने देखा कि चमेली की चूत से पानी बह कर अभी भी बाहर आ रहा था। ये राजू और चमेली का कामरस था। जिसकी वजह से अभी तक चमेली की चूत लबलबा रही थी।
रतन- धत साली.. देख अभी भी तेरे भोसड़ी उस बहनचोद के पानी से भरी हुई है..खैर आज तो तुम बच गईं, पर याद रखना.. अब तू कल मुझे अपनी चूत देगी, वरना तू जानती है ना… मैं क्या कर सकता हूँ…?
रतन ने चमेली की टांगों को फैला कर ऊपर उठा रखा था और चमेली शरम से मरी जा रही थी। उसका दामाद उसकी टांगों को फैला कर उसकी चूत को देख रहा था। रतन पीछे हट गया, चमेली के नजरें अपराध बोध और शरम से एकदम झुक गईं।
वो चारपाई से उतरी और बिना रतन की तरफ देखे बाहर चली गई। रतन का लण्ड अब उसके पजामे में फटने को था।
चमेली को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। वो तो एकदम से फँस गई थी, ये सोचते हुए चमेली सेठ के घर की तरफ चली गई। दूसरी तरफ रतन चारपाई पर बैठा हुआ आने वाले पलों के बारे में सोच रहा था, तभी बाहर से रज्जो अन्दर आ गई। उसने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और पीछे वाले कमरे में आ गई।
जैसे ही वो पीछे वाले कमरे में पहुँची, तो वो रतन को देख कर एकदम से सहम गई, रतन अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से ही बुरी तरह मसल रहा था, अन्दर आते ही रज्जो के पाँव मानो उसी जगह थम गए हों। रतन ने रज्जो की तरफ देखा और कड़क आवाज़ में बोला।
रतन- तू क्या सारा दिन इधर-उधर घूमती रहती है। ज़रा मेरे पास भी बैठ लिया कर… चल इधर आ मेरे पास बैठ..।
रतन की आवाज़ सुन कर जैसे रज्जो के बदन से जान निकल गई हो। वो अपने सर को झुकाए हुए रतन के पास आकर बैठ गई, जैसे ही रज्जो रतन के पास बैठी, रतन ने उससे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। रज्जो का बदन ऐसे काँप गया। जैसे उसे करेंट लग गया हो। मस्ती में उसकी आँखें बंद हो गईं।
रतन अपने दोनों हाथों से उसके बदन को सहलाने लगा, उसके हाथ रज्जो के बदन के हर अंग कर मर्दन कर रहे थे। रज्जो मस्त होकर पिछले दिनों में हुई बातें भूल कर रतन की बाँहों में सिमटने लगी। रतन ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर लण्ड बाहर निकाल लिया और रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया।
रज्जो का दिल एकदम से धड़कना बंद हो गया, उसे ऐसा लगा मानो जैसे उसका हाथ किसी गरम लोहे के सलाख पर आ गया हो। उसने चौंकते हुए
अपने होंठों को रतन के होंठों से अलग किया और अपने हाथ की तरफ देखा। सामने रतन का फनफनाता हुआ लण्ड देख कर उसकी चूत की फाँकें कुलबुला उठीं।
“पकड़ ना साली… सोच क्या रही है।”
ये कहते हुए, रतन ने रज्जो के हाथ को पकड़ कर अपने लण्ड पर कस लिया और अपने हाथ से रज्जो के हाथ को हिलाते हुए अपने लण्ड पर मुठ्ठ मरवाने लगा।
“आह ऐसे ही हिला.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है..।”
ये कहते हुए रतन ने अपना हाथ रज्जो के हाथ से हटा लिया। रज्जो अब गरम हो चुकी थी और उसका हाथ अपने आप ही रतन के लण्ड के ऊपर-नीचे होने लगा।
रतन ने एक बार फिर से रज्जो के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना एक हाथ ऊपर ले जाकर रज्जो की चूचियों पर रख दिया। रज्जो के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसका हाथ और तेज़ी से रतन के लण्ड को हिलाने लगा। रतन पहले से ही बहुत गरम था, ऊपर से रज्जो के कोमल हाथ उस पर और कहर ढा रहे थे।
रज्जो अपनी हथेली में रतन के लण्ड की नसों को फूलता हुआ साफ़ महसूस कर रही थी और फिर रतन के लण्ड से वीर्य के पिचकारियाँ निकल पड़ीं, जिससे रज्जो का हाथ पूरी तरह से सन गया। रतन झड़ कर निढाल हो कर पसर गया, रज्जो रतन से अलग हुई। उसने एक बार रतन के सिकुड़ रहे लण्ड पर नज़र डाली। उसके चेहरे पर शरम और मुस्कान दोनों एक साथ उभर आए।
वो चारपाई से खड़ी हुई और शरमाते हुए बाहर की तरफ भाग गई। बाहर जाकर उसने अपने हाथ साफ़ किए और फिर से अन्दर आ गई, रतन अपने पजामा को ठीक करके पहन चुका था। जैसे ही रज्जो अन्दर आई, रतन उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिया। रज्जो भी शरमा गई और सर झुका कर मुस्कुराने लगी।
रात हो चुकी थी। चमेली अपने घर से वापिस आ चुकी थी। पर आज रात वहाँ पर कुछ ख़ास नहीं होने वाला था। दूसरी तरफ सेठ के घर पर सब लोग खाना खा कर अपने-अपने कमरों में जा चुके थे, पर आज रात कुसुम की आँखों से नींद कोसों दूर थी। अपने मायके में जिस तरह उसने चुदाई का खुला आनन्द लिया था, वो अब यहाँ नहीं मिलने वाला था।
यही सोचते हुए कुसुम अपनी चूत में सुलग रही आग के बारे में सोच रही थी। दूसरी तरफ राजू घोड़े बेच कर सो रहा था। पिछले कुछ दिनों से वो रात को कम ही सो पाता था। रात के करीब एक बजे राजू पेशाब लगने से उठा और कमरे से बाहर आकर गुसलखाने की तरफ बढ़ा। यहाँ अक्सर घर की औरतें नहाती थीं।
जैसे ही राजू उस गुसलखाने के पास पहुँचा। उसे अन्दर से किसी के क़दमों की आवाज़ आई। उसने सोचा शायद अन्दर कोई है और वो वहीं रुक गया और इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद गुसलखाने से दीपा बाहर निकली और सामने खड़े राजू को देख कर एक बार तो वो घबरा गई, पर जब उसने अंधेरे में राजू के चेहरे को देखा, तो उसने शरमा कर अपनी नजरें झुका लीं और घर के आगे की तरफ जाने लगी।
राजू वहीं खड़ा दीपा को घर के आगे की तरफ़ जाता देखता रहा। जब वो अन्दर के तरफ मुड़ने लगी, तो उसने एक बार फिर पीछे पलट कर राजू की तरफ देखा। अंधेरा होने के कारण दोनों एक-दूसरे को दूर से ठीक से नहीं देख पा रहे थी, पर दोनों के जज़्बात आपस में ज़रूर टकरा रहे थे। दीपा फिर मुड़ कर चली गई।
रतन ने चमेली के तरफ देखते हुए अजीब से मुस्कान के साथ कहा- वही.. जो आप अभी-अभी नदी के किनारे वाली झाड़ियों के बीच करके आ रही हैं।
चमेली ने रतन की बात सुन कर घबराते हुए कहा- में.में. कुछ समझी नहीं.. आप क्या कह रहा हैं.. मैं तो वो बस..।
रतन ने चमेली को बीच में टोकते हुए कहा- हाँ.. मैंने सब देख लिया सासू जी… क्या चूत है आपकी.. एकदम गदराई हुई.. ऐसी चूत तो मैंने आज तक नहीं देखी.. बस एक बार चोदने के लिए मिल जाए तो मेरे जिंदगी बन जाएगी।
चमेली- ये.. ये.. क्या कह रहे हैं आप.. कैसी गंदी बातें कर रहे हैं आप… मैं आप की सास हूँ।
रतन- अच्छा.. मैं गंदा बोल रहा हूँ.. तो तुम भी तो वहाँ अपनी गाण्ड हिला-हिला कर अपनी बेटी की उम्र के छोरे का लण्ड सरेआम ले रही थीं… देखो सासू जी… अगर घर में जवान लण्ड मौजूद है, तो बाहर जाकर क्यों अपना मुँह काला करवा रही हो।
चमेली ने गुस्से से कहा- रतन अपनी मर्यादा में रहो… वरना मैं कहती हूँ ठीक नहीं होगा।
रतन ने गुस्से से आग-बबूला होते हुए कहा- अच्छा साली.. अब तू देख.. तेरी और तेरी बेटी की इज्जत के धज्जियाँ कैसे उड़ाता हूँ… बहनचोद गान्डू समझ रखा है क्या.. मुझे…? बेटी साली.. चिल्लाने लगती है और माँ तो साली ऐसे नखरे करती है.. जैसे बहुत शरीफ हो। आज तो तेरी चूत में अपना लण्ड डाल कर पेल कर ही रहूँगा।
चमेली- तुम होश में नहीं हो.. अभी तुम से बात करने का कोई फायदा नहीं।
रतन- मुझे बात करके लेना ही क्या है, मुझे तो बस तेरी चूत चाहिए.. और हाँ.. सुन आज रात को तैयार रहना और अगर कोई आनाकानी की.. तो याद रखना..मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
ये कहते हुए, रतन ने आगे बढ़ कर चमेली को अपनी बाँहों में भर लिया। चमेली रतन की इस हरकत से एकदम से घबरा गई और वो रतन की गिरफ़्त से छूटने के लिए हाथ-पैर मारने लगी। पर 22 साल के हट्टे-कट्टे रतन के सामने चमेली की एक ना चली।
रतन ने चमेली को चारपाई पर पटक दिया और किसी भूखे कुत्ते की तरह उस पर सवार हो गया। उसने चमेली के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर से चूस डाला।
चमेली ने अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया। रतन पागलों की तरह चमेली के गालों और गर्दन को चूमने लगा।
“आह्ह.. दामाद जी.. ये क्या कर रहे हैं आप.. छोडिए मुझे.. ये ये सब ठीक नहीं है।”
रतन- क्यों साली.. उधर तो उस लौंडे का लण्ड अपनी चूत में उछल-उछल कर ले रही थी। मुझे में क्या खराबी है… बहनचोदी.. अगर ज्यादा नखरा किया.. तो तेरे पति को जाकर तेरी करतूतों के बारे में सब बता दूँगा।
रतन की बात सुन कर चमेली बुरी तरह से डर गई। रतन ने चमेली को कमजोर पड़ता देख कर फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चमेली रतन के नीचे किसी मछली की तरह छटपटाने लगी। रतन ने एक हाथ नीचे ले जाकर चमेली के लहँगे को ऊपर उठाना चालू कर दिया। चमेली ने भी हाथ नीचे ले जाकर रतन का हाथ पकड़ कर उसे रोकने की नाकामयाब कोशिश की।
पर रतन के आगे उसकी एक ना चली और रतन ने चमेली के हाथ को झटकते हुए उसके लहँगे को ऊपर उठा दिया और चमेली के होंठों से अपने होंठों को हटाते हुए, चारपाई के किनारे खड़ा हो गया। चमेली के झांटों से भरी गदराई चूत देख कर रतन के लण्ड एकदम से तन गया।
उसने देखा कि चमेली की चूत से पानी बह कर अभी भी बाहर आ रहा था। ये राजू और चमेली का कामरस था। जिसकी वजह से अभी तक चमेली की चूत लबलबा रही थी।
रतन- धत साली.. देख अभी भी तेरे भोसड़ी उस बहनचोद के पानी से भरी हुई है..खैर आज तो तुम बच गईं, पर याद रखना.. अब तू कल मुझे अपनी चूत देगी, वरना तू जानती है ना… मैं क्या कर सकता हूँ…?
रतन ने चमेली की टांगों को फैला कर ऊपर उठा रखा था और चमेली शरम से मरी जा रही थी। उसका दामाद उसकी टांगों को फैला कर उसकी चूत को देख रहा था। रतन पीछे हट गया, चमेली के नजरें अपराध बोध और शरम से एकदम झुक गईं।
वो चारपाई से उतरी और बिना रतन की तरफ देखे बाहर चली गई। रतन का लण्ड अब उसके पजामे में फटने को था।
चमेली को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। वो तो एकदम से फँस गई थी, ये सोचते हुए चमेली सेठ के घर की तरफ चली गई। दूसरी तरफ रतन चारपाई पर बैठा हुआ आने वाले पलों के बारे में सोच रहा था, तभी बाहर से रज्जो अन्दर आ गई। उसने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और पीछे वाले कमरे में आ गई।
जैसे ही वो पीछे वाले कमरे में पहुँची, तो वो रतन को देख कर एकदम से सहम गई, रतन अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से ही बुरी तरह मसल रहा था, अन्दर आते ही रज्जो के पाँव मानो उसी जगह थम गए हों। रतन ने रज्जो की तरफ देखा और कड़क आवाज़ में बोला।
रतन- तू क्या सारा दिन इधर-उधर घूमती रहती है। ज़रा मेरे पास भी बैठ लिया कर… चल इधर आ मेरे पास बैठ..।
रतन की आवाज़ सुन कर जैसे रज्जो के बदन से जान निकल गई हो। वो अपने सर को झुकाए हुए रतन के पास आकर बैठ गई, जैसे ही रज्जो रतन के पास बैठी, रतन ने उससे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। रज्जो का बदन ऐसे काँप गया। जैसे उसे करेंट लग गया हो। मस्ती में उसकी आँखें बंद हो गईं।
रतन अपने दोनों हाथों से उसके बदन को सहलाने लगा, उसके हाथ रज्जो के बदन के हर अंग कर मर्दन कर रहे थे। रज्जो मस्त होकर पिछले दिनों में हुई बातें भूल कर रतन की बाँहों में सिमटने लगी। रतन ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर लण्ड बाहर निकाल लिया और रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया।
रज्जो का दिल एकदम से धड़कना बंद हो गया, उसे ऐसा लगा मानो जैसे उसका हाथ किसी गरम लोहे के सलाख पर आ गया हो। उसने चौंकते हुए
अपने होंठों को रतन के होंठों से अलग किया और अपने हाथ की तरफ देखा। सामने रतन का फनफनाता हुआ लण्ड देख कर उसकी चूत की फाँकें कुलबुला उठीं।
“पकड़ ना साली… सोच क्या रही है।”
ये कहते हुए, रतन ने रज्जो के हाथ को पकड़ कर अपने लण्ड पर कस लिया और अपने हाथ से रज्जो के हाथ को हिलाते हुए अपने लण्ड पर मुठ्ठ मरवाने लगा।
“आह ऐसे ही हिला.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है..।”
ये कहते हुए रतन ने अपना हाथ रज्जो के हाथ से हटा लिया। रज्जो अब गरम हो चुकी थी और उसका हाथ अपने आप ही रतन के लण्ड के ऊपर-नीचे होने लगा।
रतन ने एक बार फिर से रज्जो के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना एक हाथ ऊपर ले जाकर रज्जो की चूचियों पर रख दिया। रज्जो के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसका हाथ और तेज़ी से रतन के लण्ड को हिलाने लगा। रतन पहले से ही बहुत गरम था, ऊपर से रज्जो के कोमल हाथ उस पर और कहर ढा रहे थे।
रज्जो अपनी हथेली में रतन के लण्ड की नसों को फूलता हुआ साफ़ महसूस कर रही थी और फिर रतन के लण्ड से वीर्य के पिचकारियाँ निकल पड़ीं, जिससे रज्जो का हाथ पूरी तरह से सन गया। रतन झड़ कर निढाल हो कर पसर गया, रज्जो रतन से अलग हुई। उसने एक बार रतन के सिकुड़ रहे लण्ड पर नज़र डाली। उसके चेहरे पर शरम और मुस्कान दोनों एक साथ उभर आए।
वो चारपाई से खड़ी हुई और शरमाते हुए बाहर की तरफ भाग गई। बाहर जाकर उसने अपने हाथ साफ़ किए और फिर से अन्दर आ गई, रतन अपने पजामा को ठीक करके पहन चुका था। जैसे ही रज्जो अन्दर आई, रतन उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिया। रज्जो भी शरमा गई और सर झुका कर मुस्कुराने लगी।
रात हो चुकी थी। चमेली अपने घर से वापिस आ चुकी थी। पर आज रात वहाँ पर कुछ ख़ास नहीं होने वाला था। दूसरी तरफ सेठ के घर पर सब लोग खाना खा कर अपने-अपने कमरों में जा चुके थे, पर आज रात कुसुम की आँखों से नींद कोसों दूर थी। अपने मायके में जिस तरह उसने चुदाई का खुला आनन्द लिया था, वो अब यहाँ नहीं मिलने वाला था।
यही सोचते हुए कुसुम अपनी चूत में सुलग रही आग के बारे में सोच रही थी। दूसरी तरफ राजू घोड़े बेच कर सो रहा था। पिछले कुछ दिनों से वो रात को कम ही सो पाता था। रात के करीब एक बजे राजू पेशाब लगने से उठा और कमरे से बाहर आकर गुसलखाने की तरफ बढ़ा। यहाँ अक्सर घर की औरतें नहाती थीं।
जैसे ही राजू उस गुसलखाने के पास पहुँचा। उसे अन्दर से किसी के क़दमों की आवाज़ आई। उसने सोचा शायद अन्दर कोई है और वो वहीं रुक गया और इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद गुसलखाने से दीपा बाहर निकली और सामने खड़े राजू को देख कर एक बार तो वो घबरा गई, पर जब उसने अंधेरे में राजू के चेहरे को देखा, तो उसने शरमा कर अपनी नजरें झुका लीं और घर के आगे की तरफ जाने लगी।
राजू वहीं खड़ा दीपा को घर के आगे की तरफ़ जाता देखता रहा। जब वो अन्दर के तरफ मुड़ने लगी, तो उसने एक बार फिर पीछे पलट कर राजू की तरफ देखा। अंधेरा होने के कारण दोनों एक-दूसरे को दूर से ठीक से नहीं देख पा रहे थी, पर दोनों के जज़्बात आपस में ज़रूर टकरा रहे थे। दीपा फिर मुड़ कर चली गई।