24-07-2019, 12:07 PM
(This post was last modified: 24-07-2019, 03:03 PM by thepirate18. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
Update 46
पारिवारिक मिलन : एक भावुक पल
एक शुक्रवार की शाम को जैसे जादू से सारे मर्द इकट्ठे क्लब चले गए। मुझे उस दिन घर में काफी ख़ामोशी सी भी लग रही थी। जब मैं पारिवारिक-कक्ष में गयी तो मम्मी चिंतित लग रहीं थीं। सुशी बुआ उन्हें अपने से लिपटा कर जैसे उन्हें साहस सा दे रहीं लग रहीं थीं। दादी मम्मी के बालों सो सहला रहीं थीं। जैसे बेटी समझ जाती है वैसे मुझे एक क्षण लगा समझने में कि मम्मी की समय हैं यह। मुझे मेरे हँसते मुस्कराते घर में गंभीरता बिलकुल नहीं सुहाई।
मुझे देख कर मम्मी के आँखें नुम हो गयीं। मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा। "सुन्नी, हमारी नेहा लाखों में एक है। उसे बता को तो देख ,"सुशी बुआ ने मम्मी को उकसाया।
दादी माँ ने सर हिला कर सम्मति दी। मैंने घबराते हुए पूछा ,"मम्मी क्या बात है? मुझे बतिये ना। मैंने क्या कोई गलती की है ?"
मैंने कालीन पे बैठ कर मम्मी की गोद में अपना मुंह छुपा लिया।
बुआ ने अब गंभीरता से कहा , "सुन्नी तू नहीं बताएगी तो मैं बता दूंगीं। पर नेहा को तुझसे ही पता चलना चाहिए। "
मम्मी के सुंदर चहरे पे दर्द की छाया मेरे ह्रदय में भले खोंप रही थी। आखिर कार मम्मी ने गहरी सांस ले कर मेरे बालों को चूमा ,"बेटी यदि तेरी माँ की बात से तू अपनी माँ से नाराज़ हो गयी या उस से घृणा करने लगी तो मैं मर जाऊंगी। "
मुझे रोना आ गया ,"मम्मी आपकी बेटी कभी आपसे नाराज़ कैसे हो सकती है। और घृणा आपकी ओर उस से पहले अपनी जीभ न काट लूंगी मैं। "
मम्मी ने मुझे गले लगा लिया और हम दोनों रोने लगीं। बुआ और दादी ने भी मुश्किल से सुबकियां रोकीं। बुआ ने वातावरण को हकला करने के लिए झूटे गुस्से से कहा ,"अभी किसी ने कुछ कहा भी नहीं और देखो हम चारों टसुए बहाने लगीं। चल अब मुँह खोल सुन्नी। वरना मैं तेरी चूत में दाल दूँगी बेलन। " मम्मी और दादी न चाहते हुए भी मुस्कुरा दीं। बुआ की जानबूझ कर फूहड़ सी बात से वातावरण वाकई हल्का हो गया।
"नेहा बेटा जब तू चार साल की थी तब मुझे लिंफोमा जिसमे ल्यूकीमिआ का मिश्रण था हो गया। "
मैं सन्न रह गयी। मेरी प्यारी मम्मी को कैंसर था और मुझे बताया भी नहीं किसीने। बुआ ने तुरंत मेरे चेहरे को देख कर कहा ," देख नेहा हत्थे से छूटने मत लग जाना। तेरी मम्मी का कैंसर बहुत ही जल्दी पकड़ लिया था डॉक्टरों ने। सुन्नी ने खून की जांच कराई थी दुबारा गर्भित होने से पहले। "
मम्मी ने बात संभाली , "सुशी बुआ सहीं कह रहीं हैं। इसीलिए हम सबने तुझ से यह बात छुपाई। मेरी स्टेज बहुत शुरुआत की थी और कीमो से सब ख़त्म हो गया। पर हमने घबराहट में एक गलती कर दी ," और मम्मी की हिचकियाँ बंध गयीं फिर से।
दादी ने बात संभाली अब ,"नेहा बेटा हम सब सुन्नी के स्वास्थ्य के लिए इतने परेशां थे कि सुन्नी के अण्डाणु को बैंक में बचाना भूल गए। तेरी माँ की तबसे इच्छा थी कि तेरे जैसी प्यारी बेटी या वैसा ही प्यारा बेटा की। लेकिन सुन्नी को तेरा बहन या भाई तेरे जैसा ही चाहिए। अंकु का वीर्य तो है पर सुन्नी के अण्डाणु जैसे अंडे तो सिर्फ तेरे पास हैं। "
मैंने लपक चूमा , "मम्मी मैं तैयार हूँ सब करने को पर आप उदास मत हो। "
"नेहा बेटा हम तेरे बचपन को छोटा नहीं करना चाहते पर तुझे सत्य का आभास तो देना ही पड़ेगा हमें। सुन्नी तैयार थी की तेरे अण्डाणु को अंकु के वीर्य से गर्भादान करके सुन्नी के गर्भाशय में स्थापित करने के लिए। पर हार्मोन्स इतने सारे देने पड़ेंगें की सुन्नी की बिमारी वापस आने का खतरा है। सुन्नी तो तैयार है पर हम सब नहीं। अंकु के लिए तेरी मम्मी को एक बार खोने का डर के बाद अंकु सुन्नी को कोई खतरा नहीं लेने देगा ," बुआ ने विस्तार से बताया।
मैंने सुबकते हुए कहा ,"बुआ मैं सब कुछ करूँगीं जो ज़रूरी है। पर मम्मी को खतरा नहीं लेने दूंगीं।आप मुझे बताइये मुझे क्या करना है ?"
बुआ बागडोर संभाली,"देक्झ मैं तेरी माँ को हरगिज़ नहीं उसकी ज़िन्दी खतरे में डालने दूँगी। चाहे मुझे उसे बांधना पड़े। सुन्नी मेरी ननद या भाभी ही नहीं मेरी छोटी बहन है।,"बुआ भावुक हो गयीं ,"देख नेहा तू हिसाब लगा कि क्या होना चाहिए। तेरे पापा के वीर्य के शुक्राणु तेरे अंडे जो सिर्फ तेरे गर्भ में पल सकते हैं। "
बुआ ने मुझे अध्यापिका की तरह देखा जैसे वो किसी मंदबुद्धि के छात्र का उत्साहन कर रहीं हों। मम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया पर दादी मंद मंद मुस्कराने लगीं।
बुआ ने झल्ला कर कहा ,"अरे मेरी मेधावी नेहा बिटिया सिर्फ एक रास्ता है। तेरी शादी अंकु के साथ और जितने तेरी मम्मी चाहे उतने बेटी-बेटे ,समझी !" मैं भी शर्म से लाल हो गयी पर बुआ कहाँ पीछा छोडने वालीं थीं , "बोल क्या कहती है। "
मैंने मम्मी को ओर देखा फिर शर्म सर झुका कर ज़ोर से हाँ कर दी।
मम्मी ने मुझे गले लगा कर रो पड़ीं। दादी की आँखें भी बहने लगीं। बुआ अब वास्तव में सुबक रहीं थीं पर सुशी बुआ तो सुशी बुआ थीं ,"देख सुन्नी अभी भी सोच ले इस शैतान नेहा को अपनी सौतन बनाने से पहले।"
दादी माँ ने अपनी बेटी तो डांटा , "अरे सुशी सौतन होगी तेरी। मेरी नेहा बिटिया तो अब मेरी बहु की बेटी ही नहीं बहन भी हैं। "
बुआ ने कहा, "देखो सब लोग। यह शादी सिर्फ घर में ही रहेगी पर धूमधाम में कोई कस्र नहीं सहूंगीं मैं। मम्मी देखो नेहा के लिए सारे ज़ेवर नए होने चाहियें। "
मैंने शरमाते हुए कहा , "नहीं बुआ यदि मम्मी को कोई आपत्ति न हो तो मैं उनकी शादी का जोड़ा पहनूंगीं अपनी शादी पे। "
मेरी बात सुनकर तीनों फिर से सुबक उठीं एक दुसरे से लिपट कर । "स्त्रियां न समझी जाएँ, न संभाली जाएँ," मैंने सोचा और फिर मैं भी सुबकने लगी।
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पारिवारिक मिलन : एक भावुक पल
एक शुक्रवार की शाम को जैसे जादू से सारे मर्द इकट्ठे क्लब चले गए। मुझे उस दिन घर में काफी ख़ामोशी सी भी लग रही थी। जब मैं पारिवारिक-कक्ष में गयी तो मम्मी चिंतित लग रहीं थीं। सुशी बुआ उन्हें अपने से लिपटा कर जैसे उन्हें साहस सा दे रहीं लग रहीं थीं। दादी मम्मी के बालों सो सहला रहीं थीं। जैसे बेटी समझ जाती है वैसे मुझे एक क्षण लगा समझने में कि मम्मी की समय हैं यह। मुझे मेरे हँसते मुस्कराते घर में गंभीरता बिलकुल नहीं सुहाई।
मुझे देख कर मम्मी के आँखें नुम हो गयीं। मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा। "सुन्नी, हमारी नेहा लाखों में एक है। उसे बता को तो देख ,"सुशी बुआ ने मम्मी को उकसाया।
दादी माँ ने सर हिला कर सम्मति दी। मैंने घबराते हुए पूछा ,"मम्मी क्या बात है? मुझे बतिये ना। मैंने क्या कोई गलती की है ?"
मैंने कालीन पे बैठ कर मम्मी की गोद में अपना मुंह छुपा लिया।
बुआ ने अब गंभीरता से कहा , "सुन्नी तू नहीं बताएगी तो मैं बता दूंगीं। पर नेहा को तुझसे ही पता चलना चाहिए। "
मम्मी के सुंदर चहरे पे दर्द की छाया मेरे ह्रदय में भले खोंप रही थी। आखिर कार मम्मी ने गहरी सांस ले कर मेरे बालों को चूमा ,"बेटी यदि तेरी माँ की बात से तू अपनी माँ से नाराज़ हो गयी या उस से घृणा करने लगी तो मैं मर जाऊंगी। "
मुझे रोना आ गया ,"मम्मी आपकी बेटी कभी आपसे नाराज़ कैसे हो सकती है। और घृणा आपकी ओर उस से पहले अपनी जीभ न काट लूंगी मैं। "
मम्मी ने मुझे गले लगा लिया और हम दोनों रोने लगीं। बुआ और दादी ने भी मुश्किल से सुबकियां रोकीं। बुआ ने वातावरण को हकला करने के लिए झूटे गुस्से से कहा ,"अभी किसी ने कुछ कहा भी नहीं और देखो हम चारों टसुए बहाने लगीं। चल अब मुँह खोल सुन्नी। वरना मैं तेरी चूत में दाल दूँगी बेलन। " मम्मी और दादी न चाहते हुए भी मुस्कुरा दीं। बुआ की जानबूझ कर फूहड़ सी बात से वातावरण वाकई हल्का हो गया।
"नेहा बेटा जब तू चार साल की थी तब मुझे लिंफोमा जिसमे ल्यूकीमिआ का मिश्रण था हो गया। "
मैं सन्न रह गयी। मेरी प्यारी मम्मी को कैंसर था और मुझे बताया भी नहीं किसीने। बुआ ने तुरंत मेरे चेहरे को देख कर कहा ," देख नेहा हत्थे से छूटने मत लग जाना। तेरी मम्मी का कैंसर बहुत ही जल्दी पकड़ लिया था डॉक्टरों ने। सुन्नी ने खून की जांच कराई थी दुबारा गर्भित होने से पहले। "
मम्मी ने बात संभाली , "सुशी बुआ सहीं कह रहीं हैं। इसीलिए हम सबने तुझ से यह बात छुपाई। मेरी स्टेज बहुत शुरुआत की थी और कीमो से सब ख़त्म हो गया। पर हमने घबराहट में एक गलती कर दी ," और मम्मी की हिचकियाँ बंध गयीं फिर से।
दादी ने बात संभाली अब ,"नेहा बेटा हम सब सुन्नी के स्वास्थ्य के लिए इतने परेशां थे कि सुन्नी के अण्डाणु को बैंक में बचाना भूल गए। तेरी माँ की तबसे इच्छा थी कि तेरे जैसी प्यारी बेटी या वैसा ही प्यारा बेटा की। लेकिन सुन्नी को तेरा बहन या भाई तेरे जैसा ही चाहिए। अंकु का वीर्य तो है पर सुन्नी के अण्डाणु जैसे अंडे तो सिर्फ तेरे पास हैं। "
मैंने लपक चूमा , "मम्मी मैं तैयार हूँ सब करने को पर आप उदास मत हो। "
"नेहा बेटा हम तेरे बचपन को छोटा नहीं करना चाहते पर तुझे सत्य का आभास तो देना ही पड़ेगा हमें। सुन्नी तैयार थी की तेरे अण्डाणु को अंकु के वीर्य से गर्भादान करके सुन्नी के गर्भाशय में स्थापित करने के लिए। पर हार्मोन्स इतने सारे देने पड़ेंगें की सुन्नी की बिमारी वापस आने का खतरा है। सुन्नी तो तैयार है पर हम सब नहीं। अंकु के लिए तेरी मम्मी को एक बार खोने का डर के बाद अंकु सुन्नी को कोई खतरा नहीं लेने देगा ," बुआ ने विस्तार से बताया।
मैंने सुबकते हुए कहा ,"बुआ मैं सब कुछ करूँगीं जो ज़रूरी है। पर मम्मी को खतरा नहीं लेने दूंगीं।आप मुझे बताइये मुझे क्या करना है ?"
बुआ बागडोर संभाली,"देक्झ मैं तेरी माँ को हरगिज़ नहीं उसकी ज़िन्दी खतरे में डालने दूँगी। चाहे मुझे उसे बांधना पड़े। सुन्नी मेरी ननद या भाभी ही नहीं मेरी छोटी बहन है।,"बुआ भावुक हो गयीं ,"देख नेहा तू हिसाब लगा कि क्या होना चाहिए। तेरे पापा के वीर्य के शुक्राणु तेरे अंडे जो सिर्फ तेरे गर्भ में पल सकते हैं। "
बुआ ने मुझे अध्यापिका की तरह देखा जैसे वो किसी मंदबुद्धि के छात्र का उत्साहन कर रहीं हों। मम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया पर दादी मंद मंद मुस्कराने लगीं।
बुआ ने झल्ला कर कहा ,"अरे मेरी मेधावी नेहा बिटिया सिर्फ एक रास्ता है। तेरी शादी अंकु के साथ और जितने तेरी मम्मी चाहे उतने बेटी-बेटे ,समझी !" मैं भी शर्म से लाल हो गयी पर बुआ कहाँ पीछा छोडने वालीं थीं , "बोल क्या कहती है। "
मैंने मम्मी को ओर देखा फिर शर्म सर झुका कर ज़ोर से हाँ कर दी।
मम्मी ने मुझे गले लगा कर रो पड़ीं। दादी की आँखें भी बहने लगीं। बुआ अब वास्तव में सुबक रहीं थीं पर सुशी बुआ तो सुशी बुआ थीं ,"देख सुन्नी अभी भी सोच ले इस शैतान नेहा को अपनी सौतन बनाने से पहले।"
दादी माँ ने अपनी बेटी तो डांटा , "अरे सुशी सौतन होगी तेरी। मेरी नेहा बिटिया तो अब मेरी बहु की बेटी ही नहीं बहन भी हैं। "
बुआ ने कहा, "देखो सब लोग। यह शादी सिर्फ घर में ही रहेगी पर धूमधाम में कोई कस्र नहीं सहूंगीं मैं। मम्मी देखो नेहा के लिए सारे ज़ेवर नए होने चाहियें। "
मैंने शरमाते हुए कहा , "नहीं बुआ यदि मम्मी को कोई आपत्ति न हो तो मैं उनकी शादी का जोड़ा पहनूंगीं अपनी शादी पे। "
मेरी बात सुनकर तीनों फिर से सुबक उठीं एक दुसरे से लिपट कर । "स्त्रियां न समझी जाएँ, न संभाली जाएँ," मैंने सोचा और फिर मैं भी सुबकने लगी।
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