24-07-2019, 12:04 PM
Update 45
दादी माँ ( निर्मला देवी ) की यादें
जब शांति दीदी ने बीऐ पास कर ली तो उनके उन्नीस साल होते होते शादी की तारिख तय हो गयी। जीजू हमारे परिवार के करीब के दसौत थे और उनका बेरोकटोक आना जाना था। जीजू दीदी से एक साल बड़े थे। उन्होंने शादी तय हॉट ही अपने हक़ जाताना शुरू कर दिया था पानी सा;ली के ऊपर। मेरे बचपने को अनदेखा कर जब मौका मिलता जीजू मेरे आपके शरीर को मसलते नौचते। मैं भी ना चाहते हुए उनकी बढ़तीं इच्छाओं का इन्तिज़ार करती। शादी के एक महीने पहले होली थी और जीजू अब बीस साल के लम्बे चौड़े ऊंचे सुंदर जवान थे। होली पर उन्होंने मेरी आफत मुला दी। खूब मसला मेरी उगती चूचियों को। जीजू ने मेरी मम्मी पापा और दीदी और और घरवालों के सामने ही ही मेरी कुँअरि चूत को कुरेदने लगे। मैं बिलबिला कर गुस्सा हो गयी और चीख कर उन्हें दूर कर दिया। उनका चेहरा दुःख से एकदम उदास हो गया। शायद मेरा बचपना था या जीजू का बेसबरापन पर होली के आनंद में पत्थर फिंक गए। मैं पैर पटकती अपने कमरे में चली गयी। मुझे पता भी नहीं चला जीजू के आँखों में आंसूं आ गए। उन्होंने तुरंत मम्मी से माफ़ी मांगीं पर मेरे पीछे मम्मी ने उन्हें गले लगा कर कहा , "नन्ही है पर तुमने कुछ गलत नहीं किया। एक गलती की तो उसे छोड़ दिया। एक बार दबा लिया था तो चाहे चीखे चिल्लाये छोड़ने का ता सवाल ही नहीं होता। "
पापा ने भी उन्हें उत्साहित किया , "बेटे छोटी साली तो नखरे दिखाएगी ही। उसके नखरों से डरना थोड़े ही चाहिए। यदि मैं डर जाता तो तीन तीन छोटी सालियाँ हैं मेरी। तीनो की सील कौन तोड़ता ? एक तो निरमु से एक साल छोटी थी जब मैंने उसकी सील तोड़ी। "
मम्मी ने मेरे कमरे आ कर मुझे डांटा। मैं अब तक अपनी गलती समझ चुकी थी। मैं रुआंसी हो गयी। आखिर माँ तो माँ ही होती है मम्मी ने मुझे गले लगा कर मांफ कर दिया और ऊंच-नीच समझायी जीजू-साली के रिश्तों की।
मैं अब नए ज्ञान से परिचित हो कर बेधड़क हो गयी। रात के खाने के समय मैंने सिर्फ एक टी-शर्ट पहनी मम्मी के कहने से। ना नीचे कच्छी।
जब जीजू ने मुझे देखा तो तुरंत सॉरी कहने लगे मैं भड़क कर उनकी गोद में बैठ गयी, "सॉरी किसे कह रहे हैं जीजू। सॉरी कहना अपनी अम्मा को। मैं तो आपकी साली हूँ। यहाँ सॉरी की कोई जगह नहीं है। "
जीजू का सुंदर चेहरा खिल उठा। दीदी का सुंदर मुँह ने मुझे दूर से चुंबन भेजा। मम्मी और पापा मुस्करा दिए। मैंने जीजू की गोद नहीं छोड़ी। पापा ने जीजू को ख़ास स्कॉच दी और दोनों थोड़े टुन्न होने लगे। मुझे लगा की जीजू ज़्यादा स्कॉच न पीलें। मैंने मटकते हुए कहा ," जीजू आप मेरे कंप्यूटर को ठीक करो प्लीज़। "
मेरा बहन इतना ढीला था की मम्मी और दीदी की हंसी फूट पड़ी। पर जीजू ने दोपहर की गलती को याद करके मेरा मज़ाक नहीं उड़ाया और सबसे माफ़ी मांगने के बाद मुझे उठा कर मेरे कमरे में ले गए।
पहुँच कर जैसे जीजू शैतान बन गए। उन्होंने मुझे मेरे बिस्तर पे फेंक दिया और मेरी टी-शर्ट के चिट्ठड़े कर दिए। अब मैं पूरी नंगी जीजू के सामने कांप रही थी। जीजू ने अपने सारे कपडे उतार दिए और उनका लम्बा मोटा लंड तन्नाया हुआ था।
जीजू ने प्यार से मेरे थिरकते होंठों को चूमा फिर उनके होंठ मेरे अविकसित चूचियों को चुसते मेरे उभरे बचपने के पेट के ऊपर थे। उन्होंने मेरी नाभि को जीभ से खूब कुरेदा। मैं अब वासना के रोमांच से मचलने लगी।
जब जीजू ने मेरी कोरी चूत को जीभ से खोला तो मैं बिस्तर से उछल पड़ी। जीजू ने मुझे बिस्तर पर दबा कर खूब मन लगा कर मेरी चूत को चूसा और अचानक मैं अपनी कमसिन उम्र के पहले रतिनिष्पत्ति के कवर में जल उठी।
"जीजू अब मुझे चोदिये ,"ना जाने कहाँ से ऐसे अश्लील शब्द मेरे मुँह से फूट पड़े।
जीजू ने अपना लंड अपनी किशोरावस्था के पहले चार महीनों में लडखती साली की कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर टिका दिया।
"साली जी थोड़ा दर्द होगा ,"जीजू ने हौले से कहा।
"हाँ जीजू मम्मी ने सब बता दिया है। मैं चीखूँ तो आप मेरा मुँह दबा देना ,"मैंने जीजू को विश्वास दिलाया अपने निर्णय का।
फिर क्या था। जीजू बिफर गए कामोत्तेजित सांड की तरह। उन्होंने मुझे अपने नीचे दबा लिया। काफी आसान काम था उनके लिए। कहाँ मैं चार चार दस इंच की बालिका कहाँ जीजू छह फुट दो इंच के भारी भरकम मर्द। उनका लंड मेरी कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर दस्तक देने लगा। जीजू ने मेरा मुँह दबा लिया अपने चौड़े हाथ से, और भयंकर धक्का लगाया। मेरी चीख सारे घर में गूँज उठती यदि मेरा मुँह नहीं बंद होता जीजू के हाथ के नीचे। जीजू न मेरे बिबिलाने की परवाह की और न ही मेरे बहते आंसुओं की। एक के बाद एक भयंकर धक्के लगा लगा कर जड़ तक ठूंस दिया अपने विकराल लंड मेरी कुंवारी चूत में। मैं रो रो कर तड़पती रही पर जीजू ने पिशाचों की तरह बिना तरस खाये मेरी चूत का मर्दन करते रहे। मैं अब शुक्रगुज़ार हूँ जीजू की। आधे घंटे में मेरा दर्द काफूर हो गया और मैं अब सिसक रही और ज़ोर से चुदने के लिए। एक घंटे बाद जब मैं कई बार झड़ गयी तो जीजू ने मेरी कुंवारी चूत को अपने वीर्य से सींच दिया।
फिर क्या था। जीजू बिफर गए कामोत्तेजित सांड की तरह। उन्होंने मुझे अपने नीचे दबा लिया। काफी आसान काम था उनके लिए। कहाँ मैं चार चार दस इंच की बालिका कहाँ जीजू छह फुट दो इंच के भारी भरकम मर्द। उनका लंड मेरी कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर दस्तक देने लगा। जीजू ने मेरा मुँह दबा लिया अपने चौड़े हाथ से, और भयंकर धक्का लगाया। मेरी चीख सारे घर में गूँज उठती यदि मेरा मुँह नहीं बंद होता जीजू के हाथ के नीचे। जीजू न मेरे बिबिलाने की परवाह की और न ही मेरे बहते आंसुओं की। एक के बाद एक भयंकर धक्के लगा लगा कर जड़ तक ठूंस दिया अपने विकराल लंड मेरी कुंवारी चूत में। मैं रो रो कर तड़पती रही पर जीजू ने पिशाचों की तरह बिना तरस खाये मेरी चूत का मर्दन करते रहे। मैं अब शुक्रगुज़ार हूँ जीजू की। आधे घंटे में मेरा दर्द काफूर हो गया और मैं अब सिसक रही और ज़ोर से चुदने के लिए। एक घंटे बाद जब मैं कई बार झड़ गयी तो जीजू ने मेरी कुंवारी चूत को अपने वीर्य से सींच दिया।
जीजू ने अपना लंड मेरी चूत से बाहर नहीं निकाला और फिर तीन बार चोदा मुझे। फिर जीजू ने मुझे सुनहरी शर्बत का खेल सिखाया। मैं थकान से टूट चुकी थी पर जीजू का मन नहीं भरा था अपने खिलौने से। अब उन्होंने मेरी गांड का कौमार्यभंग किया। मैं इतना रोई की मेरी नाक भी बहने लगी पर जीजू ने बिना तरस खाये मुझे घंटों चोदा मेरी गांड में।उस रात की आखिरी बात जो मुझे हमेशा याद रहेगी- जीजू ने इस बार मुझे गांड के मक्खन का स्वाद चखाया और मैं अब उनकी दासी बन गयी। दीदी की शादी के बाद जीजू ने मुझे हज़ारों बार चोदा। और फिर जब मेरी शादी तेरे दादू के साथ हो गयी तो जीजू और तेरे दादू ने अदल बदल कर दीदी और मुझे खूब चोदा।
वर्तमान में
मैंने दादी की होंठों को चूम कर पूछा ,"किसका लंड बड़ा है दादी आपके जीजू का या दादू का ?"
दादी ने मुस्कुरा कर कहा , "बेटा फ़िक्र मत कर इस घर के मर्दों से बड़े लंड कहीं नहीं हैं। मेरे जीजू का लण्ड खूब मोटा दस इंच का था पर तेरे दादू का लंड तो और भी मोटा और लम्बा है। "
मैं अब बहुत गरम हो चली थी, "दादी पापा का लंड कितना बड़ा है ?"मैं पूछते हुए शर्म से लाल हो गयी।
" नेहा बेटा बेटी के लिए उसके पापा का लंड बहुत ख़ास होता है। जब मैंने अपने पापा के लंड को पहली बार लिया था तो मुझे उनके लंड के सामने किसी और लंड की कामना भी नहीं थी। पर तेरे पापा का लंड तेरे दादू से बाइस है।" दादी ने मेरे भग-शिश्न को मसलते हुए कहा।
"क्या यह सिर्फ पोती और दादी के लिए है या दादू भी स्नान के लिए टब में आ सकतें हैं ," ना जाने कब दादू अपनी दौड़ के बाद पसीने से लथपथ घर आ गये थे।
"अरे इन्तिज़ार किसका कर रहें हैं कपड़े उतारिये और अंदर आ जाइये ," दाद ने दादू को उकसाया।
दादू ने अपना ट्रैक-सूट एक झटके में उतार दिया। उनका भारी भरकम भालू जैसा बालों से भरा शरीर पसीने से भीगा था। मैं कूद कर दादू की गोद में बैठ गयी बिना शर्म के। दादू ने मुझे दिल भर कोर चूमा फिर मैंने उनकी बालों भरीं पसीने से लथपथ कांखों को मन भर चूसा। मैंने मन लगा कर के पसीने की हर बूँद चाट ली उनके बालों भरे सीने से।
"नेहा बेटा तेरे दादू का लंड तैयार है अपनी पोती के लिए। चढ़ जा अपने दादू के घोड़े पर ," दादी के शब्दों के बची-कुची शर्म का पर्दा खींच कर फेंक दिया।
मैं बिना शर्म के दादू के विकराल लंड के ऊपर बैठ गयी ,"मुझसे नहीं डाला जायेगा आपका लंड अपनी चूत में। "
दादी ने मेरे कंधे दबाये दादू के लंड के ऊपर। मेरी चूत दादू ले लंड को निगलने लगी धीरे धीरे। दादू ने जड़ तक अपना लंड ठूंस कर मेरी चूत का मीठा मर्दन शुरू कर दिया। जब मैं दस बारह बार झड़ चुकी तो उन्होंने मुझे उठा कर टब में घोड़ी बना कर चोदा। मैं सिसक सिसक कर झड़ती रही। दादू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता मेरी चूत में पिस्टन की तरह अंदर बाहर आ जा रहा था।
बिना मुझे आगाह किये दादू ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल कर मेरी गांड में ठूंस दिया। मेरी चीखों ने दादू को और भी उत्साहित किया मेरी गांड को बेदर्दी से चोदने के लिए।
लम्बी चुदाई के बाद दादू ने मेरी गांड भर दी अपने गरम वीर्य से। फिर मुझे मिला दादू और दादी का सुनहरा शर्बत और दादू और दादी को मेरा।
फिर हम तीनो बिस्तर को ओर चल पड़े, मेरे आगे दिन भर की चुदाई थी दादी और दादू के साथ।
अब मेरा परिवार प्रेमग्रस्त था। शायद यह मेरी कल्पना है मेरे परिवार में तो प्रेम की बिमारी सालों से ही थी। बस मुझे ही ही देर से लगी यह जलन। लेकिन अब लग गयी तो बुझने का नाम ही नहीं लेती। सुशी बुआ मुझे चिढ़ातीं कि घर में एक लंड है जिसकी मैंने सेवा नहीं की है। मैं शर्म से लाल हो जाती। बुआ मेरे पापा की ओर इंगित कर रहीं थीं।
फिर अचानक मम्मी ने एक रहस्य खोला तो मेरा जीवन ही बदल गया।
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दादी माँ ( निर्मला देवी ) की यादें
जब शांति दीदी ने बीऐ पास कर ली तो उनके उन्नीस साल होते होते शादी की तारिख तय हो गयी। जीजू हमारे परिवार के करीब के दसौत थे और उनका बेरोकटोक आना जाना था। जीजू दीदी से एक साल बड़े थे। उन्होंने शादी तय हॉट ही अपने हक़ जाताना शुरू कर दिया था पानी सा;ली के ऊपर। मेरे बचपने को अनदेखा कर जब मौका मिलता जीजू मेरे आपके शरीर को मसलते नौचते। मैं भी ना चाहते हुए उनकी बढ़तीं इच्छाओं का इन्तिज़ार करती। शादी के एक महीने पहले होली थी और जीजू अब बीस साल के लम्बे चौड़े ऊंचे सुंदर जवान थे। होली पर उन्होंने मेरी आफत मुला दी। खूब मसला मेरी उगती चूचियों को। जीजू ने मेरी मम्मी पापा और दीदी और और घरवालों के सामने ही ही मेरी कुँअरि चूत को कुरेदने लगे। मैं बिलबिला कर गुस्सा हो गयी और चीख कर उन्हें दूर कर दिया। उनका चेहरा दुःख से एकदम उदास हो गया। शायद मेरा बचपना था या जीजू का बेसबरापन पर होली के आनंद में पत्थर फिंक गए। मैं पैर पटकती अपने कमरे में चली गयी। मुझे पता भी नहीं चला जीजू के आँखों में आंसूं आ गए। उन्होंने तुरंत मम्मी से माफ़ी मांगीं पर मेरे पीछे मम्मी ने उन्हें गले लगा कर कहा , "नन्ही है पर तुमने कुछ गलत नहीं किया। एक गलती की तो उसे छोड़ दिया। एक बार दबा लिया था तो चाहे चीखे चिल्लाये छोड़ने का ता सवाल ही नहीं होता। "
पापा ने भी उन्हें उत्साहित किया , "बेटे छोटी साली तो नखरे दिखाएगी ही। उसके नखरों से डरना थोड़े ही चाहिए। यदि मैं डर जाता तो तीन तीन छोटी सालियाँ हैं मेरी। तीनो की सील कौन तोड़ता ? एक तो निरमु से एक साल छोटी थी जब मैंने उसकी सील तोड़ी। "
मम्मी ने मेरे कमरे आ कर मुझे डांटा। मैं अब तक अपनी गलती समझ चुकी थी। मैं रुआंसी हो गयी। आखिर माँ तो माँ ही होती है मम्मी ने मुझे गले लगा कर मांफ कर दिया और ऊंच-नीच समझायी जीजू-साली के रिश्तों की।
मैं अब नए ज्ञान से परिचित हो कर बेधड़क हो गयी। रात के खाने के समय मैंने सिर्फ एक टी-शर्ट पहनी मम्मी के कहने से। ना नीचे कच्छी।
जब जीजू ने मुझे देखा तो तुरंत सॉरी कहने लगे मैं भड़क कर उनकी गोद में बैठ गयी, "सॉरी किसे कह रहे हैं जीजू। सॉरी कहना अपनी अम्मा को। मैं तो आपकी साली हूँ। यहाँ सॉरी की कोई जगह नहीं है। "
जीजू का सुंदर चेहरा खिल उठा। दीदी का सुंदर मुँह ने मुझे दूर से चुंबन भेजा। मम्मी और पापा मुस्करा दिए। मैंने जीजू की गोद नहीं छोड़ी। पापा ने जीजू को ख़ास स्कॉच दी और दोनों थोड़े टुन्न होने लगे। मुझे लगा की जीजू ज़्यादा स्कॉच न पीलें। मैंने मटकते हुए कहा ," जीजू आप मेरे कंप्यूटर को ठीक करो प्लीज़। "
मेरा बहन इतना ढीला था की मम्मी और दीदी की हंसी फूट पड़ी। पर जीजू ने दोपहर की गलती को याद करके मेरा मज़ाक नहीं उड़ाया और सबसे माफ़ी मांगने के बाद मुझे उठा कर मेरे कमरे में ले गए।
पहुँच कर जैसे जीजू शैतान बन गए। उन्होंने मुझे मेरे बिस्तर पे फेंक दिया और मेरी टी-शर्ट के चिट्ठड़े कर दिए। अब मैं पूरी नंगी जीजू के सामने कांप रही थी। जीजू ने अपने सारे कपडे उतार दिए और उनका लम्बा मोटा लंड तन्नाया हुआ था।
जीजू ने प्यार से मेरे थिरकते होंठों को चूमा फिर उनके होंठ मेरे अविकसित चूचियों को चुसते मेरे उभरे बचपने के पेट के ऊपर थे। उन्होंने मेरी नाभि को जीभ से खूब कुरेदा। मैं अब वासना के रोमांच से मचलने लगी।
जब जीजू ने मेरी कोरी चूत को जीभ से खोला तो मैं बिस्तर से उछल पड़ी। जीजू ने मुझे बिस्तर पर दबा कर खूब मन लगा कर मेरी चूत को चूसा और अचानक मैं अपनी कमसिन उम्र के पहले रतिनिष्पत्ति के कवर में जल उठी।
"जीजू अब मुझे चोदिये ,"ना जाने कहाँ से ऐसे अश्लील शब्द मेरे मुँह से फूट पड़े।
जीजू ने अपना लंड अपनी किशोरावस्था के पहले चार महीनों में लडखती साली की कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर टिका दिया।
"साली जी थोड़ा दर्द होगा ,"जीजू ने हौले से कहा।
"हाँ जीजू मम्मी ने सब बता दिया है। मैं चीखूँ तो आप मेरा मुँह दबा देना ,"मैंने जीजू को विश्वास दिलाया अपने निर्णय का।
फिर क्या था। जीजू बिफर गए कामोत्तेजित सांड की तरह। उन्होंने मुझे अपने नीचे दबा लिया। काफी आसान काम था उनके लिए। कहाँ मैं चार चार दस इंच की बालिका कहाँ जीजू छह फुट दो इंच के भारी भरकम मर्द। उनका लंड मेरी कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर दस्तक देने लगा। जीजू ने मेरा मुँह दबा लिया अपने चौड़े हाथ से, और भयंकर धक्का लगाया। मेरी चीख सारे घर में गूँज उठती यदि मेरा मुँह नहीं बंद होता जीजू के हाथ के नीचे। जीजू न मेरे बिबिलाने की परवाह की और न ही मेरे बहते आंसुओं की। एक के बाद एक भयंकर धक्के लगा लगा कर जड़ तक ठूंस दिया अपने विकराल लंड मेरी कुंवारी चूत में। मैं रो रो कर तड़पती रही पर जीजू ने पिशाचों की तरह बिना तरस खाये मेरी चूत का मर्दन करते रहे। मैं अब शुक्रगुज़ार हूँ जीजू की। आधे घंटे में मेरा दर्द काफूर हो गया और मैं अब सिसक रही और ज़ोर से चुदने के लिए। एक घंटे बाद जब मैं कई बार झड़ गयी तो जीजू ने मेरी कुंवारी चूत को अपने वीर्य से सींच दिया।
फिर क्या था। जीजू बिफर गए कामोत्तेजित सांड की तरह। उन्होंने मुझे अपने नीचे दबा लिया। काफी आसान काम था उनके लिए। कहाँ मैं चार चार दस इंच की बालिका कहाँ जीजू छह फुट दो इंच के भारी भरकम मर्द। उनका लंड मेरी कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर दस्तक देने लगा। जीजू ने मेरा मुँह दबा लिया अपने चौड़े हाथ से, और भयंकर धक्का लगाया। मेरी चीख सारे घर में गूँज उठती यदि मेरा मुँह नहीं बंद होता जीजू के हाथ के नीचे। जीजू न मेरे बिबिलाने की परवाह की और न ही मेरे बहते आंसुओं की। एक के बाद एक भयंकर धक्के लगा लगा कर जड़ तक ठूंस दिया अपने विकराल लंड मेरी कुंवारी चूत में। मैं रो रो कर तड़पती रही पर जीजू ने पिशाचों की तरह बिना तरस खाये मेरी चूत का मर्दन करते रहे। मैं अब शुक्रगुज़ार हूँ जीजू की। आधे घंटे में मेरा दर्द काफूर हो गया और मैं अब सिसक रही और ज़ोर से चुदने के लिए। एक घंटे बाद जब मैं कई बार झड़ गयी तो जीजू ने मेरी कुंवारी चूत को अपने वीर्य से सींच दिया।
जीजू ने अपना लंड मेरी चूत से बाहर नहीं निकाला और फिर तीन बार चोदा मुझे। फिर जीजू ने मुझे सुनहरी शर्बत का खेल सिखाया। मैं थकान से टूट चुकी थी पर जीजू का मन नहीं भरा था अपने खिलौने से। अब उन्होंने मेरी गांड का कौमार्यभंग किया। मैं इतना रोई की मेरी नाक भी बहने लगी पर जीजू ने बिना तरस खाये मुझे घंटों चोदा मेरी गांड में।उस रात की आखिरी बात जो मुझे हमेशा याद रहेगी- जीजू ने इस बार मुझे गांड के मक्खन का स्वाद चखाया और मैं अब उनकी दासी बन गयी। दीदी की शादी के बाद जीजू ने मुझे हज़ारों बार चोदा। और फिर जब मेरी शादी तेरे दादू के साथ हो गयी तो जीजू और तेरे दादू ने अदल बदल कर दीदी और मुझे खूब चोदा।
वर्तमान में
मैंने दादी की होंठों को चूम कर पूछा ,"किसका लंड बड़ा है दादी आपके जीजू का या दादू का ?"
दादी ने मुस्कुरा कर कहा , "बेटा फ़िक्र मत कर इस घर के मर्दों से बड़े लंड कहीं नहीं हैं। मेरे जीजू का लण्ड खूब मोटा दस इंच का था पर तेरे दादू का लंड तो और भी मोटा और लम्बा है। "
मैं अब बहुत गरम हो चली थी, "दादी पापा का लंड कितना बड़ा है ?"मैं पूछते हुए शर्म से लाल हो गयी।
" नेहा बेटा बेटी के लिए उसके पापा का लंड बहुत ख़ास होता है। जब मैंने अपने पापा के लंड को पहली बार लिया था तो मुझे उनके लंड के सामने किसी और लंड की कामना भी नहीं थी। पर तेरे पापा का लंड तेरे दादू से बाइस है।" दादी ने मेरे भग-शिश्न को मसलते हुए कहा।
"क्या यह सिर्फ पोती और दादी के लिए है या दादू भी स्नान के लिए टब में आ सकतें हैं ," ना जाने कब दादू अपनी दौड़ के बाद पसीने से लथपथ घर आ गये थे।
"अरे इन्तिज़ार किसका कर रहें हैं कपड़े उतारिये और अंदर आ जाइये ," दाद ने दादू को उकसाया।
दादू ने अपना ट्रैक-सूट एक झटके में उतार दिया। उनका भारी भरकम भालू जैसा बालों से भरा शरीर पसीने से भीगा था। मैं कूद कर दादू की गोद में बैठ गयी बिना शर्म के। दादू ने मुझे दिल भर कोर चूमा फिर मैंने उनकी बालों भरीं पसीने से लथपथ कांखों को मन भर चूसा। मैंने मन लगा कर के पसीने की हर बूँद चाट ली उनके बालों भरे सीने से।
"नेहा बेटा तेरे दादू का लंड तैयार है अपनी पोती के लिए। चढ़ जा अपने दादू के घोड़े पर ," दादी के शब्दों के बची-कुची शर्म का पर्दा खींच कर फेंक दिया।
मैं बिना शर्म के दादू के विकराल लंड के ऊपर बैठ गयी ,"मुझसे नहीं डाला जायेगा आपका लंड अपनी चूत में। "
दादी ने मेरे कंधे दबाये दादू के लंड के ऊपर। मेरी चूत दादू ले लंड को निगलने लगी धीरे धीरे। दादू ने जड़ तक अपना लंड ठूंस कर मेरी चूत का मीठा मर्दन शुरू कर दिया। जब मैं दस बारह बार झड़ चुकी तो उन्होंने मुझे उठा कर टब में घोड़ी बना कर चोदा। मैं सिसक सिसक कर झड़ती रही। दादू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता मेरी चूत में पिस्टन की तरह अंदर बाहर आ जा रहा था।
बिना मुझे आगाह किये दादू ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल कर मेरी गांड में ठूंस दिया। मेरी चीखों ने दादू को और भी उत्साहित किया मेरी गांड को बेदर्दी से चोदने के लिए।
लम्बी चुदाई के बाद दादू ने मेरी गांड भर दी अपने गरम वीर्य से। फिर मुझे मिला दादू और दादी का सुनहरा शर्बत और दादू और दादी को मेरा।
फिर हम तीनो बिस्तर को ओर चल पड़े, मेरे आगे दिन भर की चुदाई थी दादी और दादू के साथ।
अब मेरा परिवार प्रेमग्रस्त था। शायद यह मेरी कल्पना है मेरे परिवार में तो प्रेम की बिमारी सालों से ही थी। बस मुझे ही ही देर से लगी यह जलन। लेकिन अब लग गयी तो बुझने का नाम ही नहीं लेती। सुशी बुआ मुझे चिढ़ातीं कि घर में एक लंड है जिसकी मैंने सेवा नहीं की है। मैं शर्म से लाल हो जाती। बुआ मेरे पापा की ओर इंगित कर रहीं थीं।
फिर अचानक मम्मी ने एक रहस्य खोला तो मेरा जीवन ही बदल गया।
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