24-07-2019, 11:47 AM
Update 41
नाश्ते की मेज़ पर नानाजी और बुआ थीं। बाकी सब अपने प्रोग्राम और योनाओं के मुताबिक कहीं न कहीं चले गए थे।
मैं दौड़ कर नानाजी की गोद में बैठ गयी। उन्होंने अखबार बंद कर के मुझे अपनी मज़बूत बाँहों में भींच लिया। बुआ ने मुझे नाश्ता परोसा और फिर चिढ़ाया , "देख मेरे ससुरजी कितने बेचैन थे तुझे देखे बिना। रोज़ पूछते थे कि कब वापस आएगी नेहा अकबर भैया के घर से ?अब आराम से सुनाना अपने नानू को पूरे का पूरा किस्सा। "
मैं शर्म से लाल हो गयी और अपने मुँह ननु की घने बालों से ढके सीने में छुपा लिया।
नानाजी और बुआ हंस पड़े , "बहु और मत छेड़ो हमारी नन्ही नातिन (धेवती) को। वैसे तेरा क्या प्लान है सुशी बेटी। "
सुशी बुआ इठला कर बोलीं ,"नन्ही नहीं है आपकी प्यारी धेवती बाबूजी। आपके दोनों बेटे अपनी बहन को ले गए है दिन भर खरीदारी करने को। आखिर खास दिन है आज आप चारों के लिए। पारो आज बहुत थकी थी तो मैंने उसे आराम करने को कह दिया है। इसीसलिए मैं अपने पापा की मालिश करने जाने वालीं हूँ।अक्कू भैया (यानि मेरे पापा ) मम्मी के साथ झील पर गए हुए है। "
पारो हमारे घर की मालिश की ज़िम्मेदार थी। पारो दीदी पांच फुट दो इंच की गठीली सुंदर स्त्री थी। उसकी शादी रिश्तेदारों के धोके से एक कुटिल व्यक्ति से हो गयी। जब उनके ऊपर होते अत्याचार के बारे में मामाओं को पता चला तो उन्होंने न सिर्फ उनके निकम्मे पति को सबक सिखाया पर उन्हें घर ले आये। अब पारो और उनके विधुर पिताजी प्रेम से पारो की बेटी पाल रहे थे । उसके पिता रामचंद उर्फ़ जग रामू काका हमारे घर के मुख्य बावर्ची थे।
नानाजी ने मुस्कुरा कर मुझे पूछा ,"नेहा बेटी तेरा क्या प्लान है ?"
मैं कल रात की भयंकर चुदाई से थकी हुई थी पर ना जाने क्यों मुझे अब बुआ और नानाजी के अनकहे विचार साफ़ दिखने लगे।
"नानू, यदि बुआ दादू की मालिश करेंगी तो मैं आपकी मालिश करूंगी आज।" मैंने नानू के होंठो को चूमा प्यार से।
"याद है जब तू बोर कर देती थी नानू और दादू को "डंडी कहाँ छुपाई " खिलवा कर ? आज क्यों नहीं खेलती वो खेल पर नए तरीके से ? क्या मैंने गलत कहा बाबू जी?" सुशी बुआ अब पूरे प्रवाह में थीं।
"बहु जैसा नेहा कहेगी उसके नानू और दादू वैसे ही खेलने को तैयार हैं ,"मुझे नानू के शब्दों में और कुछ ही सुनाई दिया और मैं रोमांचित हो गयी उन अनकहे शब्दों के विचारों से।
सुशी बुआ ने हमारे घर की खासियत मालिश के तेल का सोने का डोंगा मुझे थमा दिया। मालिश का तेल गोले और सरसों के तेल के अलावा, ताज़े मक्ख़न का ख़ास मिश्रण था।
सुशी बुआ वैसा ही सोने का दूसरा डोंगा लेकर अपनी विशाल गांड हिलती दादू के कमरे की ओर चल दीं।
"नानू चलिए मैं भी आपकी मालिश करती हूँ ,"नानू ने मुझे बाहों में उठा लिया। जैसा घर का माहौल था। मैंने सिर्फ पापा की टी शर्ट पहनी थी। मुझे उसी समय याद आया कि नीचे मैंने पैंटी नहीं पहनी थी। पर नानू की बाहों में झूलते मुझे कोई शर्म नहीं आयी। शायद अब मुझे अपने घर मके सदस्यों के बीच अथाह प्रेम की कुंजी मिलने वाली थी।
नानू ने मुझे कमरे में लेजा कर फर्श पर नीचे खड़ा कर दिया ,"नानू चलिए बिस्तर में। कपड़े उतारिये आज नेहा मालिश्ये की मालिश से आप सब मालिशें भूल जायेंगें। " मैंने छाती बाहर निकलते हुए नाटकीय अंदाज़ में कहा।
नानू हँसते हुए शीघ्र अपना कुरता और पजामा निकाल कर बॉक्सर शॉर्ट्स में खड़े थे। उस उम्र में भी नानू का पहलवानों जैसा बालों से भरा शरीर ने मुझे पहली बार नानू को एक पुरुष की तरह देखने के लिए विवश कर दिया। मेरे विचारों में अकबर चाचू के पारिवारिक प्रेम की यांदें ताज़ा हो गयीं। नानू पेट के बल लेट गए थे बिस्तर पे।
"नानू कहीं पूरे कपड़े बिना उतारे कोई अच्छी मालिश हो सकती है ?"मैंने नानू के बॉक्सर को पकड़ कर नीचे खींच कर उतर दिया, नानू ने अपने भारी भरकम बालों से भरे कूल्हों को उठा कर पेरी मदद की।
नानू का विशाल शरीर अब मेरी आँखों के सामने था। विशाल पेड़ के तनो जैसे जाँघे , चौड़ी कमर और बहुत चौड़ा सीना , बहु बलशाली भुजाएं। मुझे अपनी चूत में जानी पहचानी कुलबुलाहट होती महसूस होने लगी।
"नेहा बेटी पारो अपने कपड़े तेल से ख़राब होने से बचाने के लिए सब उतार कर मालिश करती है ,"यदि नानू की आवाज़ में नटखटपन था तो मुझे अपने कानो में सांय-सांय जैसी आवाज़ों में नहीं समझा पड़ा।
मैंने बिना एक क्षण सोचे अपनी लम्बी टी शर्त उतर दी। मैंने खूब तेल लगा कर ज़ोर से मालिश की नानू के कमर कन्धों, जांघों की। फिर मैं घोड़े की तरह उनकी जाँघों के ऊपर स्वर हो कर उनके विशाल चूतड़ों की मालिश करने लगी। नानू की साँसे बहुत मधुर मधुर लग रहीं थी मुझे। मैंने उनके चूतड़ों को फैला कर उनकी घने बालों से ढकी गांड के ऊपर मालिश का तेल गिरा कर अपनी ऊँगली से चूतड़ों की दरार की मालिश के बहाने उनकी गांड की छेद को सहलाने लगी। मेरी चूत में रस की बाढ़ आ गयी।
मैंने सूखे गले से निकली आवाज़ में कहा ,"नानू अब पलट जाइये। आपके सामने की मालिश का नंबर है अब। "
नानू बिना कुछ बोले अपनी पीठ पर पलट गए। इन्होने कई सालों के बाद अपनी प्यारी षोडसी धेवती के विकसित होते नग्न शरीर को पुरुष की निगाहों से सराहा और मैं अपने नेत्र नानू के विशाल अजगर से नहीं हटा पायी। बड़े मामू जैसा विशाल मोटा मूसल झूल रहा था नानू की वृहत जाँघों के बीच में।
मैंने हम दोनों का ध्यान हटाने के लिए ऐसे व्यवहार किया जैसे मैं हर रोज़ नग्न हो कर उनकी मालिश करती थी। नानू आँखें मूँद ली शायद आगे आने वाले मालिश के आनंद के लिए।
मैंने उनकी विशाल सीने की तेल लगा लगा कर ज़ोर से मालिश की।
फिर उनके काफी बाहर निकले पेट की मालिश। मेरी आँखें नानू के अजगर जैसे महा लंड से हट ही नहीं पा रहीं थीं। मैंने दिल मज़बूत करके अपना ध्यान नानू की जाँघों पर लगाया। मैंने उनके पैर की हर ऊँगली की मालिश करते हुए फिर से उनकी जाँघों को तेल से मसलते हुए उनकी जांघों के बीच दुबारा पहुँच गयी और मरी चीख निकलते निकलते रह गयी।
नानू का लंड अब खम्बे जैसा तन्ना कर्व थरथरा रह था। मेरा गला सूख गया। मेरी साँसें भारी हो गयीं। अब मेरी आँखें नानू के लंड से हटने में पूर्णरूप से अशक्षम थीं। नानू का लंड ने मानो मुझे सम्मोहित (हिप्नोटाइज़) कर दिया था।
"नानू अब मैं आपके ख्माबे की मालिश करने लगीं हूँ। पारो भी तो करती होगी इसकी मालिश," मेरा हलक सूख चूका था रोमांच से। मेरी आवाज़ मेढकों जैसे टर्र-टर्र की तरह भारी थी।
"बेटा पारो कोई हिस्सा नहीं छोड़ती ,"नानू की आखें बंद थी और उनके होंठों पर मंद मंद मुस्कान खेल रही थी।
मैंने खूब सारा तेल लगा कर कंपते हाथों से नानू के महालँड को पकड़ लिया। परे दोनों हाथों की उँगलियाँ नानू के लंड की परिधि को घेरने में पूरी तरह असफल थीं। नानू का लंड अपने बेटों जैसा लम्बा मोटा था। आखिर सेब पेड़ से ज़्यादा दूर तो नहीं टपकेगा।
मैंने मन लगा कर तेल से चिकेन नानू के लंड को खूब ज़ोर से सहला सहला कर उसकी मालिश की। अब मुहसे रुका नहीं जा रहा था। मैं कुछ बोलना ही चाह रही थी कि नानू ने प्यार से कहा ,"नेहा बेटा पारो से मत कहना पर इतनी अच्छी मालिश तो मुझे हमेशा याद रहेगी। अब तू तक गयी होगी यदि तेरा मन करे तो हम "डंडी कहाँ छुपाई" खेल सकते है।"
मैं अब नानू के तेल से लिसे चकते महा लंड को अपने नहीं हाथों से सहला रही थी मुझे पता नहीं कहाँ से साहस आ गया , "नानू आप बुआ वाले नये खेल की बात कर रहें हैं या बचपन वाले खेल की। "
"नेहा बेटा अब तो तू बड़ी हो गयी है शायद बचपन वाले खेल से जल्दी ऊब जाएगी," नानू ने अचानक आँखें खोल दीं। मैं शर्म गयी पर मेरे हाथ नहीं हिले नानू के लंड के ऊपर से।
"नानू मैं छुपाऊं डंडी को ?"मैंने थरथरती आवाज़ में पूछा।
"हाँ बेटा जहाँ मर्ज़ी हो छुपा लो डंडी को फिर मैं कोशिश करूंगा ढूँढ़ने की ,"नानू अब मुस्कुरा कर मुझे बेचैन कर रहे थे।
उस खेल में एक खिलाड़ी डंडी को चुप देता था एक खांचे में और फिर दुसरे को अंदाज़ लगाना होता था की किस खांचे में थी डंडी। यदि सही अंदाज़ लग जाता तो दुसरे को उस खांचे के नंबर मिलते अन्यथा छुपाने वाले को नंबर मिल जाते।
मैंने अब सम्मोहित कन्या की तरह एक तक नानू के एक आँख वाले अजगर को स्थिर कर अपनी नन्ही चूत के द्वार को उनके बड़े सेब जैसे सुपाड़ी के ऊपर टिका दिया।
नानू ने मेरी कमर पकड़ ली अपने मज़बूत हांथो से। मैं भूल गया बुआ के मालिश वाले तेल की करामत। जैसे मैंने अपने हाथों को नानू के लंड से उठाया मेरी चूत बिजली के रफ्तार से उनके तेल से लिसे महालँड के ऊपर फिसल गयी। मैं चीखते हुए नानू की छाती के ऊपर गिर गयी।
नानू ने मेरे कान में फुसफुसाया, "नेहा बेटा , हमें पता है आपने डंडी कहाँ छुपाई है."
मैं अब वासना से पागल हो चुकी थी ,"नानू मैंने डंडी नहीं खम्बा छुपा लिया है आपकी धेवती की चूत में। अब आप पानी धेवती की चूत का उद्धार कर दीजिये। "मैं बिलबिलाते हुए बोली।
नानू ने मुझे कमर से पकड़ कर गुड़िया की तरह ऊपर नीचे करने लगे।तेल की माया से उनका महालँड मेरी चूत में जानलेवा ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था।
मेरी चूत रस से तो भरी हुई थी और मैं इतनी देर से गर्म थी कि मैं पांच धक्कों के बा भरभरा कर झड़ गयी ,"नानू आह झाड़ गयी मैं नानू ऊ ऊऊऊ ऊंणंन्न," मेरी चूत में से अब अश्लील फचक फचक की आवाज़ें फूट पड़ीं। आधे घंटे तक नानू ने मुझे अपने ऊपर बैठ आकर चोदने के बाद निहुरा दिया बिस्तर पे और फिर तीन भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड थोक दिया मेरी नन्ही चूत में।
अब मेरी चूचियां नानू के खेलने के लिए लटक रहीं थीं। नानू ने मेरी चूत का मर्दन किया प्यार भरी निर्ममता से। मैं झड़ते झड़ते थकने लगी।
नानू ने मुझे पीठ के ऊपर पटक कर पूरे अपने वज़न से दबा कर फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया अपने महा विकराल लंड।
मुझे छह बार और झाड़ कर नानू ने मेरे अल्पविकसित गर्भाशय को नहला दिया अपने गरम जननक्षम गड़े वीर्य से। उनके लंड से फूटती बौछार एक दो गुहारें नहीं थी पर मानसून जैसे सैलाब की बारिश थी।
नानू ने मुझे प्यार से चूम कर मदहोश कर दिया। मैंने शर्मा कर अपना लाल मुँह नानू के सीने में छुपा लिया, "नानू आप जीत गए इस बार। आपका खम्बा आपकी नातिन की चूत में ही छुपा था। "
"नेहा बेटा , हम दोनों ही जीत गए है और अगली कई बार ,"नानू ने मेरे थिरकते होंठो को चूसते हुए कहा।
"नानू अब कहाँ और छुपायेंगे अपने खम्बे को ?" मैंने अपनी सहमत खुद बुलवाने का इंतिज़ाम कर लिया था।
"नेहा बेटा अभी एक और मीठी, घरी रेशमी सुरंग है हमरो नातिन के पास। इस बार खम्बा वहीँ छुपेगा ," नानू ने मुस्कुरा कर मुख्य फिर निहुरा दिया और घोड़ी बना दिया।
नानू ने तेल से मेरी गांड भर दी और फिर खूब तेल लगाया अपने महा लंड के ऊपर, "नेहा बेटा फ़िक्र मत करना। धीरे धीरे डालेंगे तेरी गांड में। "
मैं बिलख उठी ,"नानू धीरे धीरे क्यों ? अपनी नातिन की गांड पहली बार मार रहें है आप। चीखें न निकलें तो आपकी नातिन को कैसे याद रहेगी पहली बार। "
फिर नानू ने जो किया उस से मेरी जान निकल गयी। नानू ने तेल मुझपे दया दिखने के लिए नहीं लगाया था पर उन्होंने मेरी गांड में अपना लंड भयंकर आसानी से ठूंसने के लिए लगाया था। मेरी चीख एक बार निकली तो मानो सौ बार निकली। नानू का सुपाड़ा मुश्किल से अंदर घुस था कि नानू ने अपने बलशाली शरीर की ताकत से अपना चिकना तेल लिसा विक्राल लंड तीन भीषण धक्को से जड़ तक मेरी गांड में ठूंस दिया।
मेरी आँखे भर गयीं दर्दीले आंसुओं से, नानू ने बिना मुझे सांस भरने का मौका दिए मेरी गांड भीषण तेज़ी और तख्त से मारनी शुरू की तो न धीमे हुए और न रुके एक क्षण को भी। मेरी चीखें सिसकियों में बदल गयीं। मेरी गांड की महक से कमरा भर गया। नानू का लंड रेलगाड़ी के इंजन ले पिस्टन की तरह मेरी गांड का मर्दन कर रहा था।
डेढ़ घंटे तक नानू ने बिना थके मारी मेरी गांड। मैं तो झड़ते झड़ते निहाल हो गयी। नानू ने अपनी नातिन की गांड उद्धार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं थक के चूर चूर हो गयी नांउं ने मुझे धक्के से पट्ट , मुँह के बल , बस्तर पे लिटा कर मेरी गांड को अपने गरम वीर्य से भरने लगे। मेरी गहरी गहरी साँसे मेरे कानों में गूँज रहीं थीं।
नानू ने मुझे बाहों में समेत कर होश में आने दिया। मैंने आज्ञाकारी नातिन की तरह नानू के अपनी गांड के रस से लिसे लंड को चाट चाट आकर बिलकुल थूक से चमका दिया। नानू ने भी मेरी गांड पे भयंकर चुदाई के मंथन से फैले गांड के रस को चूम चाट कर साफ़ किया।
फिर नानू मुझे नहलाने ले गए स्नानग्रह में।
मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मेरे शर्बत को चखने के बाद ही सटका उसे।
अब मेरी बारी थी नानू के अमृत को चखने की। नानू ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरी तरह उनकी वस्ति भी भरी हुई थी और मुझे मन भर कर उनका अमृत स्वरुप सुनहरी शर्बत मिला पीने को।
मेरी गांड में ना केवल पिछले दिन का हलवा भरा हुआ था, उसके ऊपर कल रात की भयंकर चुदाई में दोनों मामाओं ने गांड भी दिल खोल कर मारिन थी। उसके ऊपर नानू ने गिलास भर वीर्य से लबालब भर दिया था। नानू मेरी हालत देख कर मुस्कुराये और मुझे सिंहासन पर बिठा कर मेरी टांगें अपने कन्धों पर दाल दीं। अब उन्हें मेरे विसर्जन का पूरा नज़ारा उनकी आँखों के सामने था। मैं पहले तो बहुत शर्मायी पर नानू के कहने से और मेरी खुद को रोकने की असफलता से मैंने अपनी गुदा को ढीला खोल दिया जैसे प्रकृति ने निश्चित किया था उसका प्रयोग। नानू ने उस मोहक दृश्य को सराहा जब तक मेरा विसर्जन पूरा खत्म नहीं हो गया। नानू की बारी थी अब पर उन्होंने मुझे खुद साफ़ नहीं करने दिया पर मुझे घुमा कर मेरे चूतड़ों की दरार को चाट चाट कर साफ़ ही नहीं किया बल्कि गुदाद्वार में जीभ घुसाकर अंदर तक साफ़ किया।
अब मैंने नानू के विसर्जन का मनमोहक दृश्य अपने मस्तिष्क में भर लिया। मैं भी तो नानू की नातिन थी। मैंने भी उनके विशाल चूतड़ों को फैला कर बिलकुल साफ़ कर दिया उनकी दरार को और गुदाद्वार को।
फिर नानू और मैंने उनके दांतों के ब्रशसुबह की सफाई की। नहाते समय नानू ने साबुन लगते लगते मुझे फिर से गरम कर दिया। इस बार नानू ने मुझे शॉवर की दीवार से लगा कर निहुराया और फिर बिना तरस खाये मेरी चूत में ठूंस दिया अपना विक्राल लंड तीन धक्कों में। पहले तो मैं चीखी हमेशा की तरह फिर सिसकारियां मरते हुए झड़ गयी। नानू ने आधा घंटा चोदा मुझे मैं ततड़प उठी अनेकों बार झाड़ कर। आखिरकार नानू ने एक बार फिर से मेरे किशोर गर्भाशय को अपने वीर्य से नहला दिया।
हम दोनों को खूब भूख लगी थी। मैंने नानू की गोल्फ टी शर्ट पहन ली। मैं नानू की गोद में बैठी थी। खाने पर मैंने नानू से पूछा,"नानू आज क्या ख़ास दिन है मम्मी, आपके और मामाओं के लिए ?"
नानू ने मुझे चूमा ,"आज रजत सालगिरह (सिल्वर एनिवर्सरी) है हमारे और सुन्नी के संसर्ग की।"
मैं हतप्रभ रह गयी। मम्मी मुझसे भी चार साल छोटी थीं जब उन्होंने पहली बार नानू को अपना कौमार्य सौंपा था। उनके बड़े भाई कहाँ पीछे रहने वाले थे।
"नेहा बेटा , हमारे सुईठे के साथ एक गलियारा है जिस से शयन कक्ष और स्नानगृह साफ़ साफ़ दिखता है। अगर तेरा दिलम चाहे तो वहां से अपनी मम्मी के कौमार्यभाग की पच्चीसवीं ( २५वीं ) वर्षगांठ का अनुष्ठान देख सकती है। "नानू ने मेरे स्तनों को टी शर्त के ऊपर से मसलते हुए मुझे आमंत्रित किया। मैं अपनी मम्मी इस ख़ास वर्षगांठ का समारोह किसी भी वजह से देखने से नहीं चूक सकती थी।
नानू को मैंने अकेला छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने शयन ग्रह को अपन बेटी के अनुष्ठान के लोए तैयार करना था।
मैं नानू के खोले नए राज का प्रयोग करने का उत्साह मुश्किल से दबा पा रही थी।
मैं नानू को उनके सुइट की ओर जाता छोड़ कर सुशी बुआ को चोरी छुपे देखने चल पड़ी। दादू दादी का मेहमान सुइट भी नानू जैसा था। अब मैं छुपे गलियारे में घुस गयी और मुझे तुरंत अपनी शैतानी भरी जस्सोस्सि का इनाम मिल गया। कमरे में दादू बिलकुल नंगे थे। उनका नानू जैसा ऊंचा पहलवानी घने बालों से भरा शरीर उनकी तोंद से और भी बलशाली लग रहा था।
सुशी बुआ नीचे बैठी अपने पिता के विकराल लंड को चूस रहीं थीं। दादू का शरीर तेल से लिसा हुआ था। वैसे ही सुशी बुआ का शरीर भी। लगता था की दादू ने भी अपनी बेटी की मालिश भी करी थी।
"सुशी बेटा अब हमें अपनी बेटी की चूत दुबारा चाहिए," दादू ने कहते हुए बुआ को उठा कर बिस्तर पे निहुरा दिया और दानवीय आकार का अपना मोटा अत्यंत लम्बा लंड बिना दया दिखाए अपनी बेटी की चूत में ठूंस दिया। सुशी बुआ चीखीं पर दर्द के बावजूद अपने पापा को उसत्साहित करने लगीं, "पापा और ज़ोर से चोदिये अपनी बेटी की चूत। भर दीजिये अपनी बेटी का गर्भाशय अपने वीर्य से। "
कमरे में बुआ की सिसकारियां और दादू के लंड और बुआ की चूत के संसर्ग से उपजीं फचक फचक की अव्वाज़ें गूंज उठीं।
दादू ने दिल भर कर अपनी बेटी की चूत मारी। आधे घंटे में बुआ का झड़ झड़ के बुरा हाल हो गया। दादू ने पानी बेटी को गुड़िया की तरह उठा कर चित बिस्तर पे लिटा कर बुआ की गदरायी जांघें हवा में उठा कर चौड़ी फैला दीं।
अब बुआ की घने घुंगराले गीली झांटों से ढकी खुली छूट का पूरा नज़ारा मेरी आँखों के सामने था। दादू ने बिना देर लगाए अपनी बिलखती सिसकती बेटी की चूत एक बार फिर से भर दी अपने महा लंड से। बुआ सिसक सिसक कर गुहार लगा रहीं थी ,"पापा चोदिये अपनी बेटी को। आह और ज़ोर से उन्। .. उन्। .... मार डाला पापा आपने। झड़ गयी मैं फिर से। "
दादू बेदर्दी से अपनी बेटी की चूचियां मसल रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे दादू बुआ के विशाल भारी चूचियों को उनकी छाती से उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे। बुआ की सिसकियाँ उनके पापा की बेदर्दी से और ऊँची हो गयीं।
दादू ने तीस चालीस मिनटों के बाद हुंकार कर अपनी बेटी की चूत में अपने वीर्य की बारिश कर दी। बुआ हलकी चीख के साथ फिर से झड़ गयीं। मुझे लग रहा था कि यह चुदाई सुबह से चल रही थी और बुआ का थकान बहुत गहरी थी। मेरा अंदाज़ा ठीक निकला दादू ने अपनी इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर बेटी की गदरायी काया को अपनी बाहों में भरकर बिस्तर पे कुछ देर आराम करने के लिए लेट गए।
मैं चुपचाप वहां से निकल गयी और अपने कमरे में जा आकर दौड़ने के कपड़े पहन कर बाहर निकल पड़ी। अब मैं दादू की टी शर्ट के नीचे सिर्फ ट्रैक -सूट के पैंट पहने थी। मैंने धीरे धीरे अपनी गति बड़ा दी। हालाँकि वसंत के आने की तैयारी में थी पर तब भी हवा में ठंडापन था। पर नुझे शीघ्र ही पसीना आने लगा। पांच किलोमीटर दौड़ कर मैं वापस मुड़ चली घर की ओर।
अब मैं पसीने से तराबोर थी और पसीने की बूंदे मेरी नाक की नोक के ऊपर मोतियों की तरह रुक कर नीचे गिर पड़तीं। मुझे ज्ञात नहीं था पर दादू की पुरानी टी शर्त इतनी झीनी थी कि मेरे पसीने से भीग कर वह बिलकुल पारदर्शक हो गयी थी।
मैं हाँफते हाँफते घर के बाहर टेनिस कोर्ट के पास पहुँच कर गोल रास्ते के ऊपर च पड़ी। इसे गोल रास्ता इसलिए कहते थे क्योंकि इस रास्ते पर घर में काम करने वालों के मकान थे। जिससे किसीको यह महसून न हो की उनका घर किसी और के घर से दूर था।
मुझे एक घर से दर्द से सिसकने की आवाज़ें सुनाई पड़ी। मैं नादानी में उस तरफ मुड़ पड़ी। खुली खिड़की से मुझे तुरंत अपनी गलती का आभास हो गया। यह घर हमारे सुरक्षा-अधिकारी का था। राजमनोहर सिंह, जग राज चाचा, चालीस साल के अत्यंत बलिष्ठ फ़ौज से रिटायर्ड थे। उनकी एक साल छोटी पत्नी रत्ना थीं। मनोहर बहुत चौड़े बलशाली काळा भुजंग पुरुष थे। बहुत लम्बे तो नहीं फिर भी पांच फुट आठ नौ इंच लम्बे दानवीय आकार के मालिक थे ।उनका चेहरा सुंदर तो नहीं पर मर्दाने आकर्षण से परिपूर्ण था। रत्ना चाची पांच फुट की गठीली गहरे रंग के शरीर की मलिका थीं।
कमरे में रत्ना बिलकुल नग्न थीं और उनके सामने एक और उनके जैसे ही काया की मालकिन पर बहुत युवा लगने वाली कन्या निहुरी हुई थी। राजू चाचा उस कन्या के गदराये चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी चूत और गांड चाट रहे थे।
उस कन्या की सिसकियाँ निकल रहीं थीं ,"पापा हाय कितनी याद आती है आपकी कैसे चूसते है प्यार से अपनी बेटी की चूत। "
मैं तुरंत समझ गयी की वह कन्या कोई और नहीं राजू चाचा और रत्ना चाची की लाड़ली सुकन्या थी। सुकन्या, जिसको सब प्यार से सुकि कहते थे , का विवाह एक सम्पन परिवार में करवाया था नानू ने दो साल पहले। सुकि दीदी मुझे समय तीन साल बड़ी थीं।
"सुकि और पापा का लंड याद नहीं तुझे। कितने वर्षों से तेरी सेवा की है तेरे पापा के लंड ने। अब शादी के बाद क्या दामाद का लंड इतना भा गया है तुझे ,"रत्ना चाची ने प्यार मारा सुकि दीदी के ऊपर।
"मम्मी तेरे दामाद का लंड बहुत लम्बा तगड़ा है पापा के जैसा पर किसी भी बेटी के लिए उसके पापा के लंड अच्छा भला कौनसा लंड हो सकता है। कैसे भूल जाऊंगीं सात साल पहले की रात जब पापा ने मेरा कौमार्य भंग किया था। उस प्यार भरी रात मुझे अब तक आतें हैं। आह पापा ऐसे ही घुसा दीजिये मेरी गांड जीभ। मम्मी भूरा कहाँ है , बेचारे का ध्यान भी तो रखिये ," सुकि दीदी सिसकते हुए बोलीं।
भूरा राजू चाचू का वफादार ग्रेट डेन और सेंट बर्नार्ड का मिश्रण था। भूरे के कुदरती प्यारी प्रकृति और वफ़ादारी से वोह सबका चहेता था।
जैसे ही उसका नाम लिया तो भूरा तुरंत कमरे में तूफ़ान की तरह आ गया। रत्ना चाची ने प्यार से उसे अपनी चूत सूंघने दी। भूरा का लंड बाहर निकल पड़ा। लाल रंग का लम्बा मोटा लंड। थरथरा रहा था आने वाले आनंद के विचार से। भूरे ने अपनी लम्बी जिव्हा से रत्ना चाची के मूंग को छाता और जब उसकी जीभ उनकी नासिका में घुस जाती तो रत्ना चाची खिलखिला कर हंस पड़ती।
"सुकि बेटी तेरे जाने इन दोनों मर्दों मुझ अकेली जान ही पड़ गयी है। तुझे दोनों कभी भी नहीं भरता ," रत्ना चाची ने कोमल हाथों से भूरे के लंड को सहलाया।
"पापा माँ शिकायत कर रही या मुझे चिड़ा रही है ," सुकि ने सिसकते हुए कहा , "मम्मी अब मैं पापा के लंड अपनी चूत में लिए बिना नहीं रह सकती। पापा से चुदने के बाद भूरे की बारी है। तब तक तू इसको अपनी रसीली चूत दे दे। "
राजू चाचू ने बिना एक क्षण बर्बाद किये अपने लम्बे मोटे लंड को अपनी बेटी की चूत के ऊपर टिका दिया। उधर रत्ना चाची भी निहुर कर घोड़ी बन गयीं थीं ," आका भूरा बेटा।आ बेटा और भर दे अपनी मम्मी की चूत अपने लंड से। "
भूरा जैसे सारी बातें समझता था। उसने लपक आकर अपनी दोनों आगे की टांगें रत्ना चाची के सीने दोनों ओर बिस्तर पे टिका कर अपने पिछवाड़े को हिला हिला कर अपनी मम्मी की चूत ढूंढ़ने लगा। फिर एक क्षण में कमरे में दो चीखें गूँज उठीं। राजू चाचू का लंड और भूरे का लंड सुकि दीदी और रत्ना चाची की चूत में जड़ तक ठूंस गए।
भूरे ने शुरू से ही बिजली की तेज़ी से अपनी मम्मी की छूट मारनी शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। रत्ना चाची की चीखें और सिसकियाँ उबलने लगीं, "हाय मेरे लाल मेरे बेटे मार ऐसे ही अपनी माँ की चूत। "
"पापा धीरे धीरे दर्द होता है आपका मूसल लेने में ,"सुकि दीदी बिलबिलायीं।
पर न तो राजू चाचू धीमे हुए और न ही भूरा। सुकि दीदी और रत्ना चाची की सिसकियाँ कमरे में संगीत से स्वर छेड़ने लगीं। दोनों निरंतर झड़ रहीं थीं।अहदे घंटे के बाद भूरे ने एक भीषण धक्का लगाया और रत्ना चाची की वास्तविक दर्दभरी चीख उबाल पड़ी, "हाय बेटा अपनी गाँठ मत दाल अपनी माँ के अंदर। " पर तब तक देर हो चुकी थी और भूरे ने अपनी मोती गाँठ रत्न चाची की चूत में ठूंस दी थी। अब चाचीअपने बेटे के साथ बांध चुकी थीं।
उधर राजू चाचू ने अपनी थकती बेटी को पीठ के ऊपर पलट कर बिस्तर पे फैन दिया और फिर बौराये सांड की तरह उसके ऊपर फिर से चढ़ाई कर दी। चाचू का लंड की हर दस इन्चें अपनी बेटी की चूत का निर्मम प्यारा मर्दन कर रहीं थीं। चाचू का लंड मेरे घर के पुरुर्षों से भले ही कम लम्बा और मोटा था पर उनकी चुदाई की खासियत बिलकुल जानलेवा थी। उनकी बेटी का बार बार झड़ कर बुरा हाल होने लगा था। तीस मिनटों के बाद चाचू ने भरभरा कर अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से सींच दिया। सुकि दीदी सिसकते अपने पापा के गरम वीर्य की बौछार को सँभालते हुए फिर से झाड़ गयी। राजू चाचू अपनी बेटी के ऊपर हफ्ते हुए निढाल हो गए।
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नाश्ते की मेज़ पर नानाजी और बुआ थीं। बाकी सब अपने प्रोग्राम और योनाओं के मुताबिक कहीं न कहीं चले गए थे।
मैं दौड़ कर नानाजी की गोद में बैठ गयी। उन्होंने अखबार बंद कर के मुझे अपनी मज़बूत बाँहों में भींच लिया। बुआ ने मुझे नाश्ता परोसा और फिर चिढ़ाया , "देख मेरे ससुरजी कितने बेचैन थे तुझे देखे बिना। रोज़ पूछते थे कि कब वापस आएगी नेहा अकबर भैया के घर से ?अब आराम से सुनाना अपने नानू को पूरे का पूरा किस्सा। "
मैं शर्म से लाल हो गयी और अपने मुँह ननु की घने बालों से ढके सीने में छुपा लिया।
नानाजी और बुआ हंस पड़े , "बहु और मत छेड़ो हमारी नन्ही नातिन (धेवती) को। वैसे तेरा क्या प्लान है सुशी बेटी। "
सुशी बुआ इठला कर बोलीं ,"नन्ही नहीं है आपकी प्यारी धेवती बाबूजी। आपके दोनों बेटे अपनी बहन को ले गए है दिन भर खरीदारी करने को। आखिर खास दिन है आज आप चारों के लिए। पारो आज बहुत थकी थी तो मैंने उसे आराम करने को कह दिया है। इसीसलिए मैं अपने पापा की मालिश करने जाने वालीं हूँ।अक्कू भैया (यानि मेरे पापा ) मम्मी के साथ झील पर गए हुए है। "
पारो हमारे घर की मालिश की ज़िम्मेदार थी। पारो दीदी पांच फुट दो इंच की गठीली सुंदर स्त्री थी। उसकी शादी रिश्तेदारों के धोके से एक कुटिल व्यक्ति से हो गयी। जब उनके ऊपर होते अत्याचार के बारे में मामाओं को पता चला तो उन्होंने न सिर्फ उनके निकम्मे पति को सबक सिखाया पर उन्हें घर ले आये। अब पारो और उनके विधुर पिताजी प्रेम से पारो की बेटी पाल रहे थे । उसके पिता रामचंद उर्फ़ जग रामू काका हमारे घर के मुख्य बावर्ची थे।
नानाजी ने मुस्कुरा कर मुझे पूछा ,"नेहा बेटी तेरा क्या प्लान है ?"
मैं कल रात की भयंकर चुदाई से थकी हुई थी पर ना जाने क्यों मुझे अब बुआ और नानाजी के अनकहे विचार साफ़ दिखने लगे।
"नानू, यदि बुआ दादू की मालिश करेंगी तो मैं आपकी मालिश करूंगी आज।" मैंने नानू के होंठो को चूमा प्यार से।
"याद है जब तू बोर कर देती थी नानू और दादू को "डंडी कहाँ छुपाई " खिलवा कर ? आज क्यों नहीं खेलती वो खेल पर नए तरीके से ? क्या मैंने गलत कहा बाबू जी?" सुशी बुआ अब पूरे प्रवाह में थीं।
"बहु जैसा नेहा कहेगी उसके नानू और दादू वैसे ही खेलने को तैयार हैं ,"मुझे नानू के शब्दों में और कुछ ही सुनाई दिया और मैं रोमांचित हो गयी उन अनकहे शब्दों के विचारों से।
सुशी बुआ ने हमारे घर की खासियत मालिश के तेल का सोने का डोंगा मुझे थमा दिया। मालिश का तेल गोले और सरसों के तेल के अलावा, ताज़े मक्ख़न का ख़ास मिश्रण था।
सुशी बुआ वैसा ही सोने का दूसरा डोंगा लेकर अपनी विशाल गांड हिलती दादू के कमरे की ओर चल दीं।
"नानू चलिए मैं भी आपकी मालिश करती हूँ ,"नानू ने मुझे बाहों में उठा लिया। जैसा घर का माहौल था। मैंने सिर्फ पापा की टी शर्ट पहनी थी। मुझे उसी समय याद आया कि नीचे मैंने पैंटी नहीं पहनी थी। पर नानू की बाहों में झूलते मुझे कोई शर्म नहीं आयी। शायद अब मुझे अपने घर मके सदस्यों के बीच अथाह प्रेम की कुंजी मिलने वाली थी।
नानू ने मुझे कमरे में लेजा कर फर्श पर नीचे खड़ा कर दिया ,"नानू चलिए बिस्तर में। कपड़े उतारिये आज नेहा मालिश्ये की मालिश से आप सब मालिशें भूल जायेंगें। " मैंने छाती बाहर निकलते हुए नाटकीय अंदाज़ में कहा।
नानू हँसते हुए शीघ्र अपना कुरता और पजामा निकाल कर बॉक्सर शॉर्ट्स में खड़े थे। उस उम्र में भी नानू का पहलवानों जैसा बालों से भरा शरीर ने मुझे पहली बार नानू को एक पुरुष की तरह देखने के लिए विवश कर दिया। मेरे विचारों में अकबर चाचू के पारिवारिक प्रेम की यांदें ताज़ा हो गयीं। नानू पेट के बल लेट गए थे बिस्तर पे।
"नानू कहीं पूरे कपड़े बिना उतारे कोई अच्छी मालिश हो सकती है ?"मैंने नानू के बॉक्सर को पकड़ कर नीचे खींच कर उतर दिया, नानू ने अपने भारी भरकम बालों से भरे कूल्हों को उठा कर पेरी मदद की।
नानू का विशाल शरीर अब मेरी आँखों के सामने था। विशाल पेड़ के तनो जैसे जाँघे , चौड़ी कमर और बहुत चौड़ा सीना , बहु बलशाली भुजाएं। मुझे अपनी चूत में जानी पहचानी कुलबुलाहट होती महसूस होने लगी।
"नेहा बेटी पारो अपने कपड़े तेल से ख़राब होने से बचाने के लिए सब उतार कर मालिश करती है ,"यदि नानू की आवाज़ में नटखटपन था तो मुझे अपने कानो में सांय-सांय जैसी आवाज़ों में नहीं समझा पड़ा।
मैंने बिना एक क्षण सोचे अपनी लम्बी टी शर्त उतर दी। मैंने खूब तेल लगा कर ज़ोर से मालिश की नानू के कमर कन्धों, जांघों की। फिर मैं घोड़े की तरह उनकी जाँघों के ऊपर स्वर हो कर उनके विशाल चूतड़ों की मालिश करने लगी। नानू की साँसे बहुत मधुर मधुर लग रहीं थी मुझे। मैंने उनके चूतड़ों को फैला कर उनकी घने बालों से ढकी गांड के ऊपर मालिश का तेल गिरा कर अपनी ऊँगली से चूतड़ों की दरार की मालिश के बहाने उनकी गांड की छेद को सहलाने लगी। मेरी चूत में रस की बाढ़ आ गयी।
मैंने सूखे गले से निकली आवाज़ में कहा ,"नानू अब पलट जाइये। आपके सामने की मालिश का नंबर है अब। "
नानू बिना कुछ बोले अपनी पीठ पर पलट गए। इन्होने कई सालों के बाद अपनी प्यारी षोडसी धेवती के विकसित होते नग्न शरीर को पुरुष की निगाहों से सराहा और मैं अपने नेत्र नानू के विशाल अजगर से नहीं हटा पायी। बड़े मामू जैसा विशाल मोटा मूसल झूल रहा था नानू की वृहत जाँघों के बीच में।
मैंने हम दोनों का ध्यान हटाने के लिए ऐसे व्यवहार किया जैसे मैं हर रोज़ नग्न हो कर उनकी मालिश करती थी। नानू आँखें मूँद ली शायद आगे आने वाले मालिश के आनंद के लिए।
मैंने उनकी विशाल सीने की तेल लगा लगा कर ज़ोर से मालिश की।
फिर उनके काफी बाहर निकले पेट की मालिश। मेरी आँखें नानू के अजगर जैसे महा लंड से हट ही नहीं पा रहीं थीं। मैंने दिल मज़बूत करके अपना ध्यान नानू की जाँघों पर लगाया। मैंने उनके पैर की हर ऊँगली की मालिश करते हुए फिर से उनकी जाँघों को तेल से मसलते हुए उनकी जांघों के बीच दुबारा पहुँच गयी और मरी चीख निकलते निकलते रह गयी।
नानू का लंड अब खम्बे जैसा तन्ना कर्व थरथरा रह था। मेरा गला सूख गया। मेरी साँसें भारी हो गयीं। अब मेरी आँखें नानू के लंड से हटने में पूर्णरूप से अशक्षम थीं। नानू का लंड ने मानो मुझे सम्मोहित (हिप्नोटाइज़) कर दिया था।
"नानू अब मैं आपके ख्माबे की मालिश करने लगीं हूँ। पारो भी तो करती होगी इसकी मालिश," मेरा हलक सूख चूका था रोमांच से। मेरी आवाज़ मेढकों जैसे टर्र-टर्र की तरह भारी थी।
"बेटा पारो कोई हिस्सा नहीं छोड़ती ,"नानू की आखें बंद थी और उनके होंठों पर मंद मंद मुस्कान खेल रही थी।
मैंने खूब सारा तेल लगा कर कंपते हाथों से नानू के महालँड को पकड़ लिया। परे दोनों हाथों की उँगलियाँ नानू के लंड की परिधि को घेरने में पूरी तरह असफल थीं। नानू का लंड अपने बेटों जैसा लम्बा मोटा था। आखिर सेब पेड़ से ज़्यादा दूर तो नहीं टपकेगा।
मैंने मन लगा कर तेल से चिकेन नानू के लंड को खूब ज़ोर से सहला सहला कर उसकी मालिश की। अब मुहसे रुका नहीं जा रहा था। मैं कुछ बोलना ही चाह रही थी कि नानू ने प्यार से कहा ,"नेहा बेटा पारो से मत कहना पर इतनी अच्छी मालिश तो मुझे हमेशा याद रहेगी। अब तू तक गयी होगी यदि तेरा मन करे तो हम "डंडी कहाँ छुपाई" खेल सकते है।"
मैं अब नानू के तेल से लिसे चकते महा लंड को अपने नहीं हाथों से सहला रही थी मुझे पता नहीं कहाँ से साहस आ गया , "नानू आप बुआ वाले नये खेल की बात कर रहें हैं या बचपन वाले खेल की। "
"नेहा बेटा अब तो तू बड़ी हो गयी है शायद बचपन वाले खेल से जल्दी ऊब जाएगी," नानू ने अचानक आँखें खोल दीं। मैं शर्म गयी पर मेरे हाथ नहीं हिले नानू के लंड के ऊपर से।
"नानू मैं छुपाऊं डंडी को ?"मैंने थरथरती आवाज़ में पूछा।
"हाँ बेटा जहाँ मर्ज़ी हो छुपा लो डंडी को फिर मैं कोशिश करूंगा ढूँढ़ने की ,"नानू अब मुस्कुरा कर मुझे बेचैन कर रहे थे।
उस खेल में एक खिलाड़ी डंडी को चुप देता था एक खांचे में और फिर दुसरे को अंदाज़ लगाना होता था की किस खांचे में थी डंडी। यदि सही अंदाज़ लग जाता तो दुसरे को उस खांचे के नंबर मिलते अन्यथा छुपाने वाले को नंबर मिल जाते।
मैंने अब सम्मोहित कन्या की तरह एक तक नानू के एक आँख वाले अजगर को स्थिर कर अपनी नन्ही चूत के द्वार को उनके बड़े सेब जैसे सुपाड़ी के ऊपर टिका दिया।
नानू ने मेरी कमर पकड़ ली अपने मज़बूत हांथो से। मैं भूल गया बुआ के मालिश वाले तेल की करामत। जैसे मैंने अपने हाथों को नानू के लंड से उठाया मेरी चूत बिजली के रफ्तार से उनके तेल से लिसे महालँड के ऊपर फिसल गयी। मैं चीखते हुए नानू की छाती के ऊपर गिर गयी।
नानू ने मेरे कान में फुसफुसाया, "नेहा बेटा , हमें पता है आपने डंडी कहाँ छुपाई है."
मैं अब वासना से पागल हो चुकी थी ,"नानू मैंने डंडी नहीं खम्बा छुपा लिया है आपकी धेवती की चूत में। अब आप पानी धेवती की चूत का उद्धार कर दीजिये। "मैं बिलबिलाते हुए बोली।
नानू ने मुझे कमर से पकड़ कर गुड़िया की तरह ऊपर नीचे करने लगे।तेल की माया से उनका महालँड मेरी चूत में जानलेवा ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था।
मेरी चूत रस से तो भरी हुई थी और मैं इतनी देर से गर्म थी कि मैं पांच धक्कों के बा भरभरा कर झड़ गयी ,"नानू आह झाड़ गयी मैं नानू ऊ ऊऊऊ ऊंणंन्न," मेरी चूत में से अब अश्लील फचक फचक की आवाज़ें फूट पड़ीं। आधे घंटे तक नानू ने मुझे अपने ऊपर बैठ आकर चोदने के बाद निहुरा दिया बिस्तर पे और फिर तीन भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड थोक दिया मेरी नन्ही चूत में।
अब मेरी चूचियां नानू के खेलने के लिए लटक रहीं थीं। नानू ने मेरी चूत का मर्दन किया प्यार भरी निर्ममता से। मैं झड़ते झड़ते थकने लगी।
नानू ने मुझे पीठ के ऊपर पटक कर पूरे अपने वज़न से दबा कर फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया अपने महा विकराल लंड।
मुझे छह बार और झाड़ कर नानू ने मेरे अल्पविकसित गर्भाशय को नहला दिया अपने गरम जननक्षम गड़े वीर्य से। उनके लंड से फूटती बौछार एक दो गुहारें नहीं थी पर मानसून जैसे सैलाब की बारिश थी।
नानू ने मुझे प्यार से चूम कर मदहोश कर दिया। मैंने शर्मा कर अपना लाल मुँह नानू के सीने में छुपा लिया, "नानू आप जीत गए इस बार। आपका खम्बा आपकी नातिन की चूत में ही छुपा था। "
"नेहा बेटा , हम दोनों ही जीत गए है और अगली कई बार ,"नानू ने मेरे थिरकते होंठो को चूसते हुए कहा।
"नानू अब कहाँ और छुपायेंगे अपने खम्बे को ?" मैंने अपनी सहमत खुद बुलवाने का इंतिज़ाम कर लिया था।
"नेहा बेटा अभी एक और मीठी, घरी रेशमी सुरंग है हमरो नातिन के पास। इस बार खम्बा वहीँ छुपेगा ," नानू ने मुस्कुरा कर मुख्य फिर निहुरा दिया और घोड़ी बना दिया।
नानू ने तेल से मेरी गांड भर दी और फिर खूब तेल लगाया अपने महा लंड के ऊपर, "नेहा बेटा फ़िक्र मत करना। धीरे धीरे डालेंगे तेरी गांड में। "
मैं बिलख उठी ,"नानू धीरे धीरे क्यों ? अपनी नातिन की गांड पहली बार मार रहें है आप। चीखें न निकलें तो आपकी नातिन को कैसे याद रहेगी पहली बार। "
फिर नानू ने जो किया उस से मेरी जान निकल गयी। नानू ने तेल मुझपे दया दिखने के लिए नहीं लगाया था पर उन्होंने मेरी गांड में अपना लंड भयंकर आसानी से ठूंसने के लिए लगाया था। मेरी चीख एक बार निकली तो मानो सौ बार निकली। नानू का सुपाड़ा मुश्किल से अंदर घुस था कि नानू ने अपने बलशाली शरीर की ताकत से अपना चिकना तेल लिसा विक्राल लंड तीन भीषण धक्को से जड़ तक मेरी गांड में ठूंस दिया।
मेरी आँखे भर गयीं दर्दीले आंसुओं से, नानू ने बिना मुझे सांस भरने का मौका दिए मेरी गांड भीषण तेज़ी और तख्त से मारनी शुरू की तो न धीमे हुए और न रुके एक क्षण को भी। मेरी चीखें सिसकियों में बदल गयीं। मेरी गांड की महक से कमरा भर गया। नानू का लंड रेलगाड़ी के इंजन ले पिस्टन की तरह मेरी गांड का मर्दन कर रहा था।
डेढ़ घंटे तक नानू ने बिना थके मारी मेरी गांड। मैं तो झड़ते झड़ते निहाल हो गयी। नानू ने अपनी नातिन की गांड उद्धार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं थक के चूर चूर हो गयी नांउं ने मुझे धक्के से पट्ट , मुँह के बल , बस्तर पे लिटा कर मेरी गांड को अपने गरम वीर्य से भरने लगे। मेरी गहरी गहरी साँसे मेरे कानों में गूँज रहीं थीं।
नानू ने मुझे बाहों में समेत कर होश में आने दिया। मैंने आज्ञाकारी नातिन की तरह नानू के अपनी गांड के रस से लिसे लंड को चाट चाट आकर बिलकुल थूक से चमका दिया। नानू ने भी मेरी गांड पे भयंकर चुदाई के मंथन से फैले गांड के रस को चूम चाट कर साफ़ किया।
फिर नानू मुझे नहलाने ले गए स्नानग्रह में।
मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मेरे शर्बत को चखने के बाद ही सटका उसे।
अब मेरी बारी थी नानू के अमृत को चखने की। नानू ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरी तरह उनकी वस्ति भी भरी हुई थी और मुझे मन भर कर उनका अमृत स्वरुप सुनहरी शर्बत मिला पीने को।
मेरी गांड में ना केवल पिछले दिन का हलवा भरा हुआ था, उसके ऊपर कल रात की भयंकर चुदाई में दोनों मामाओं ने गांड भी दिल खोल कर मारिन थी। उसके ऊपर नानू ने गिलास भर वीर्य से लबालब भर दिया था। नानू मेरी हालत देख कर मुस्कुराये और मुझे सिंहासन पर बिठा कर मेरी टांगें अपने कन्धों पर दाल दीं। अब उन्हें मेरे विसर्जन का पूरा नज़ारा उनकी आँखों के सामने था। मैं पहले तो बहुत शर्मायी पर नानू के कहने से और मेरी खुद को रोकने की असफलता से मैंने अपनी गुदा को ढीला खोल दिया जैसे प्रकृति ने निश्चित किया था उसका प्रयोग। नानू ने उस मोहक दृश्य को सराहा जब तक मेरा विसर्जन पूरा खत्म नहीं हो गया। नानू की बारी थी अब पर उन्होंने मुझे खुद साफ़ नहीं करने दिया पर मुझे घुमा कर मेरे चूतड़ों की दरार को चाट चाट कर साफ़ ही नहीं किया बल्कि गुदाद्वार में जीभ घुसाकर अंदर तक साफ़ किया।
अब मैंने नानू के विसर्जन का मनमोहक दृश्य अपने मस्तिष्क में भर लिया। मैं भी तो नानू की नातिन थी। मैंने भी उनके विशाल चूतड़ों को फैला कर बिलकुल साफ़ कर दिया उनकी दरार को और गुदाद्वार को।
फिर नानू और मैंने उनके दांतों के ब्रशसुबह की सफाई की। नहाते समय नानू ने साबुन लगते लगते मुझे फिर से गरम कर दिया। इस बार नानू ने मुझे शॉवर की दीवार से लगा कर निहुराया और फिर बिना तरस खाये मेरी चूत में ठूंस दिया अपना विक्राल लंड तीन धक्कों में। पहले तो मैं चीखी हमेशा की तरह फिर सिसकारियां मरते हुए झड़ गयी। नानू ने आधा घंटा चोदा मुझे मैं ततड़प उठी अनेकों बार झाड़ कर। आखिरकार नानू ने एक बार फिर से मेरे किशोर गर्भाशय को अपने वीर्य से नहला दिया।
हम दोनों को खूब भूख लगी थी। मैंने नानू की गोल्फ टी शर्ट पहन ली। मैं नानू की गोद में बैठी थी। खाने पर मैंने नानू से पूछा,"नानू आज क्या ख़ास दिन है मम्मी, आपके और मामाओं के लिए ?"
नानू ने मुझे चूमा ,"आज रजत सालगिरह (सिल्वर एनिवर्सरी) है हमारे और सुन्नी के संसर्ग की।"
मैं हतप्रभ रह गयी। मम्मी मुझसे भी चार साल छोटी थीं जब उन्होंने पहली बार नानू को अपना कौमार्य सौंपा था। उनके बड़े भाई कहाँ पीछे रहने वाले थे।
"नेहा बेटा , हमारे सुईठे के साथ एक गलियारा है जिस से शयन कक्ष और स्नानगृह साफ़ साफ़ दिखता है। अगर तेरा दिलम चाहे तो वहां से अपनी मम्मी के कौमार्यभाग की पच्चीसवीं ( २५वीं ) वर्षगांठ का अनुष्ठान देख सकती है। "नानू ने मेरे स्तनों को टी शर्त के ऊपर से मसलते हुए मुझे आमंत्रित किया। मैं अपनी मम्मी इस ख़ास वर्षगांठ का समारोह किसी भी वजह से देखने से नहीं चूक सकती थी।
नानू को मैंने अकेला छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने शयन ग्रह को अपन बेटी के अनुष्ठान के लोए तैयार करना था।
मैं नानू के खोले नए राज का प्रयोग करने का उत्साह मुश्किल से दबा पा रही थी।
मैं नानू को उनके सुइट की ओर जाता छोड़ कर सुशी बुआ को चोरी छुपे देखने चल पड़ी। दादू दादी का मेहमान सुइट भी नानू जैसा था। अब मैं छुपे गलियारे में घुस गयी और मुझे तुरंत अपनी शैतानी भरी जस्सोस्सि का इनाम मिल गया। कमरे में दादू बिलकुल नंगे थे। उनका नानू जैसा ऊंचा पहलवानी घने बालों से भरा शरीर उनकी तोंद से और भी बलशाली लग रहा था।
सुशी बुआ नीचे बैठी अपने पिता के विकराल लंड को चूस रहीं थीं। दादू का शरीर तेल से लिसा हुआ था। वैसे ही सुशी बुआ का शरीर भी। लगता था की दादू ने भी अपनी बेटी की मालिश भी करी थी।
"सुशी बेटा अब हमें अपनी बेटी की चूत दुबारा चाहिए," दादू ने कहते हुए बुआ को उठा कर बिस्तर पे निहुरा दिया और दानवीय आकार का अपना मोटा अत्यंत लम्बा लंड बिना दया दिखाए अपनी बेटी की चूत में ठूंस दिया। सुशी बुआ चीखीं पर दर्द के बावजूद अपने पापा को उसत्साहित करने लगीं, "पापा और ज़ोर से चोदिये अपनी बेटी की चूत। भर दीजिये अपनी बेटी का गर्भाशय अपने वीर्य से। "
कमरे में बुआ की सिसकारियां और दादू के लंड और बुआ की चूत के संसर्ग से उपजीं फचक फचक की अव्वाज़ें गूंज उठीं।
दादू ने दिल भर कर अपनी बेटी की चूत मारी। आधे घंटे में बुआ का झड़ झड़ के बुरा हाल हो गया। दादू ने पानी बेटी को गुड़िया की तरह उठा कर चित बिस्तर पे लिटा कर बुआ की गदरायी जांघें हवा में उठा कर चौड़ी फैला दीं।
अब बुआ की घने घुंगराले गीली झांटों से ढकी खुली छूट का पूरा नज़ारा मेरी आँखों के सामने था। दादू ने बिना देर लगाए अपनी बिलखती सिसकती बेटी की चूत एक बार फिर से भर दी अपने महा लंड से। बुआ सिसक सिसक कर गुहार लगा रहीं थी ,"पापा चोदिये अपनी बेटी को। आह और ज़ोर से उन्। .. उन्। .... मार डाला पापा आपने। झड़ गयी मैं फिर से। "
दादू बेदर्दी से अपनी बेटी की चूचियां मसल रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे दादू बुआ के विशाल भारी चूचियों को उनकी छाती से उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे। बुआ की सिसकियाँ उनके पापा की बेदर्दी से और ऊँची हो गयीं।
दादू ने तीस चालीस मिनटों के बाद हुंकार कर अपनी बेटी की चूत में अपने वीर्य की बारिश कर दी। बुआ हलकी चीख के साथ फिर से झड़ गयीं। मुझे लग रहा था कि यह चुदाई सुबह से चल रही थी और बुआ का थकान बहुत गहरी थी। मेरा अंदाज़ा ठीक निकला दादू ने अपनी इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर बेटी की गदरायी काया को अपनी बाहों में भरकर बिस्तर पे कुछ देर आराम करने के लिए लेट गए।
मैं चुपचाप वहां से निकल गयी और अपने कमरे में जा आकर दौड़ने के कपड़े पहन कर बाहर निकल पड़ी। अब मैं दादू की टी शर्ट के नीचे सिर्फ ट्रैक -सूट के पैंट पहने थी। मैंने धीरे धीरे अपनी गति बड़ा दी। हालाँकि वसंत के आने की तैयारी में थी पर तब भी हवा में ठंडापन था। पर नुझे शीघ्र ही पसीना आने लगा। पांच किलोमीटर दौड़ कर मैं वापस मुड़ चली घर की ओर।
अब मैं पसीने से तराबोर थी और पसीने की बूंदे मेरी नाक की नोक के ऊपर मोतियों की तरह रुक कर नीचे गिर पड़तीं। मुझे ज्ञात नहीं था पर दादू की पुरानी टी शर्त इतनी झीनी थी कि मेरे पसीने से भीग कर वह बिलकुल पारदर्शक हो गयी थी।
मैं हाँफते हाँफते घर के बाहर टेनिस कोर्ट के पास पहुँच कर गोल रास्ते के ऊपर च पड़ी। इसे गोल रास्ता इसलिए कहते थे क्योंकि इस रास्ते पर घर में काम करने वालों के मकान थे। जिससे किसीको यह महसून न हो की उनका घर किसी और के घर से दूर था।
मुझे एक घर से दर्द से सिसकने की आवाज़ें सुनाई पड़ी। मैं नादानी में उस तरफ मुड़ पड़ी। खुली खिड़की से मुझे तुरंत अपनी गलती का आभास हो गया। यह घर हमारे सुरक्षा-अधिकारी का था। राजमनोहर सिंह, जग राज चाचा, चालीस साल के अत्यंत बलिष्ठ फ़ौज से रिटायर्ड थे। उनकी एक साल छोटी पत्नी रत्ना थीं। मनोहर बहुत चौड़े बलशाली काळा भुजंग पुरुष थे। बहुत लम्बे तो नहीं फिर भी पांच फुट आठ नौ इंच लम्बे दानवीय आकार के मालिक थे ।उनका चेहरा सुंदर तो नहीं पर मर्दाने आकर्षण से परिपूर्ण था। रत्ना चाची पांच फुट की गठीली गहरे रंग के शरीर की मलिका थीं।
कमरे में रत्ना बिलकुल नग्न थीं और उनके सामने एक और उनके जैसे ही काया की मालकिन पर बहुत युवा लगने वाली कन्या निहुरी हुई थी। राजू चाचा उस कन्या के गदराये चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी चूत और गांड चाट रहे थे।
उस कन्या की सिसकियाँ निकल रहीं थीं ,"पापा हाय कितनी याद आती है आपकी कैसे चूसते है प्यार से अपनी बेटी की चूत। "
मैं तुरंत समझ गयी की वह कन्या कोई और नहीं राजू चाचा और रत्ना चाची की लाड़ली सुकन्या थी। सुकन्या, जिसको सब प्यार से सुकि कहते थे , का विवाह एक सम्पन परिवार में करवाया था नानू ने दो साल पहले। सुकि दीदी मुझे समय तीन साल बड़ी थीं।
"सुकि और पापा का लंड याद नहीं तुझे। कितने वर्षों से तेरी सेवा की है तेरे पापा के लंड ने। अब शादी के बाद क्या दामाद का लंड इतना भा गया है तुझे ,"रत्ना चाची ने प्यार मारा सुकि दीदी के ऊपर।
"मम्मी तेरे दामाद का लंड बहुत लम्बा तगड़ा है पापा के जैसा पर किसी भी बेटी के लिए उसके पापा के लंड अच्छा भला कौनसा लंड हो सकता है। कैसे भूल जाऊंगीं सात साल पहले की रात जब पापा ने मेरा कौमार्य भंग किया था। उस प्यार भरी रात मुझे अब तक आतें हैं। आह पापा ऐसे ही घुसा दीजिये मेरी गांड जीभ। मम्मी भूरा कहाँ है , बेचारे का ध्यान भी तो रखिये ," सुकि दीदी सिसकते हुए बोलीं।
भूरा राजू चाचू का वफादार ग्रेट डेन और सेंट बर्नार्ड का मिश्रण था। भूरे के कुदरती प्यारी प्रकृति और वफ़ादारी से वोह सबका चहेता था।
जैसे ही उसका नाम लिया तो भूरा तुरंत कमरे में तूफ़ान की तरह आ गया। रत्ना चाची ने प्यार से उसे अपनी चूत सूंघने दी। भूरा का लंड बाहर निकल पड़ा। लाल रंग का लम्बा मोटा लंड। थरथरा रहा था आने वाले आनंद के विचार से। भूरे ने अपनी लम्बी जिव्हा से रत्ना चाची के मूंग को छाता और जब उसकी जीभ उनकी नासिका में घुस जाती तो रत्ना चाची खिलखिला कर हंस पड़ती।
"सुकि बेटी तेरे जाने इन दोनों मर्दों मुझ अकेली जान ही पड़ गयी है। तुझे दोनों कभी भी नहीं भरता ," रत्ना चाची ने कोमल हाथों से भूरे के लंड को सहलाया।
"पापा माँ शिकायत कर रही या मुझे चिड़ा रही है ," सुकि ने सिसकते हुए कहा , "मम्मी अब मैं पापा के लंड अपनी चूत में लिए बिना नहीं रह सकती। पापा से चुदने के बाद भूरे की बारी है। तब तक तू इसको अपनी रसीली चूत दे दे। "
राजू चाचू ने बिना एक क्षण बर्बाद किये अपने लम्बे मोटे लंड को अपनी बेटी की चूत के ऊपर टिका दिया। उधर रत्ना चाची भी निहुर कर घोड़ी बन गयीं थीं ," आका भूरा बेटा।आ बेटा और भर दे अपनी मम्मी की चूत अपने लंड से। "
भूरा जैसे सारी बातें समझता था। उसने लपक आकर अपनी दोनों आगे की टांगें रत्ना चाची के सीने दोनों ओर बिस्तर पे टिका कर अपने पिछवाड़े को हिला हिला कर अपनी मम्मी की चूत ढूंढ़ने लगा। फिर एक क्षण में कमरे में दो चीखें गूँज उठीं। राजू चाचू का लंड और भूरे का लंड सुकि दीदी और रत्ना चाची की चूत में जड़ तक ठूंस गए।
भूरे ने शुरू से ही बिजली की तेज़ी से अपनी मम्मी की छूट मारनी शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। रत्ना चाची की चीखें और सिसकियाँ उबलने लगीं, "हाय मेरे लाल मेरे बेटे मार ऐसे ही अपनी माँ की चूत। "
"पापा धीरे धीरे दर्द होता है आपका मूसल लेने में ,"सुकि दीदी बिलबिलायीं।
पर न तो राजू चाचू धीमे हुए और न ही भूरा। सुकि दीदी और रत्ना चाची की सिसकियाँ कमरे में संगीत से स्वर छेड़ने लगीं। दोनों निरंतर झड़ रहीं थीं।अहदे घंटे के बाद भूरे ने एक भीषण धक्का लगाया और रत्ना चाची की वास्तविक दर्दभरी चीख उबाल पड़ी, "हाय बेटा अपनी गाँठ मत दाल अपनी माँ के अंदर। " पर तब तक देर हो चुकी थी और भूरे ने अपनी मोती गाँठ रत्न चाची की चूत में ठूंस दी थी। अब चाचीअपने बेटे के साथ बांध चुकी थीं।
उधर राजू चाचू ने अपनी थकती बेटी को पीठ के ऊपर पलट कर बिस्तर पे फैन दिया और फिर बौराये सांड की तरह उसके ऊपर फिर से चढ़ाई कर दी। चाचू का लंड की हर दस इन्चें अपनी बेटी की चूत का निर्मम प्यारा मर्दन कर रहीं थीं। चाचू का लंड मेरे घर के पुरुर्षों से भले ही कम लम्बा और मोटा था पर उनकी चुदाई की खासियत बिलकुल जानलेवा थी। उनकी बेटी का बार बार झड़ कर बुरा हाल होने लगा था। तीस मिनटों के बाद चाचू ने भरभरा कर अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से सींच दिया। सुकि दीदी सिसकते अपने पापा के गरम वीर्य की बौछार को सँभालते हुए फिर से झाड़ गयी। राजू चाचू अपनी बेटी के ऊपर हफ्ते हुए निढाल हो गए।
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