24-07-2019, 09:58 AM
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Update 40
नूसी आपा ने इस बार बहती आँखों और नासिका के रस को तुरंत चूसना और चेतना शुरू कर दिया। मैं भी उसके नीचे लेट कर उसकी एक चूची चूसने लगी और दूसरी को मसलने मड़ोड़ने लगी।
"अब्बो,ठीक ऐसे ही। शानू की यह रात उसको ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी। अल्लाह कसम उसकी चीखें नहीं बंद होनी चाहिए अब्बू ,"नूसी आपा ने अब्बो को बढ़ावा देते हुए उकसाया।
और अकबर चाचू ने अपना वायदा किया और उस से भी आगे निकल गए।
उन्होंने शानू की कुंवारी गांड को उसी बेदर्दी से अगले घंटे तक मारा। शानू की चीखें ,सुबकियां , और हिचकियाँ अगले घंटे तक बंद नहीं हुई। उसकी अब्बू का लंड अब सटासट उसकी गांड में से माथे हलवे की चिकनाई से अंदर बाहर जा रहा था। अकबर चाचू ने शानू की दर्दीली गांड-चुदाई से उसके लिए झड़ना बिलकुल असंभव कर दिया था। शानू घंटे से भी ज़्यादा अपनी गांड चुदाई के दर्द से बिलबिलाने के अलावा कुछ और सोच भी नहीं पायी झड़ना तो कोसों दूर।
पर आखिर कर वासना की प्रज्जवलत अग्नि, चुदाई का जूनून और अपने अब्बू के साथ नाजायज़ सम्भोग की तमक से शानू दर्द के गड्ढे से भर निकल ही गयी। उसके अब्बू का लंड उसकी गांड के मक्खन से लिसा अब उसे आननद देने लगा। नूसी आपा और मई अब बेदर्दी उसकी छूछोयां मसलने लगे पर अब उसकी वासना फतह का झंडा लहरा था। शानू ने अगले दस मिनटों में तीन ब्रा झड़ने के बाद अपने अब्बू से और भी ज़ोर से गांड मारने की गुहार लगाना श्रुओ कर दिया। अकबर चाचू ने अपनी प्याररी नन्ही बेटी की गांड को एक और घंटा बिना थके और धीरे हुए चोदा।शानू की अविरत रत-निष्पति ने उसके अल्पव्यस्क कच्चे बदन को बिलकुल थका दिया। जब अकबर चाकू ने अपना लंड शानू की गांड में खोला तो वो चीख कर निश्चित हो गयी। अकबर चाचू ने बीस पच्चीस वीर्य की बौछारों के बाद विजय पताका फहराता हुआ लंड निकला तो नूसी उसके ऊपर भूखों की तारक जगपत पड़े। हम दोनों ने अकबर चाचू के शानू की गांड के मंथन के रास और उनके पाने वरीय के माखन को चूसने और चाटने लगे।
उधर आदिल भैया ने भी अपनी अम्मी की गांड मार मार कर उन्हें इतनी बार झाड़ दिया कि वो भी शानू की तरह बेहोश हो गयीं। कमरे में दो ख़ूबसूरत गाण्डों की भयंकर चुदाई और मंथन की गहरी खुशबू फ़ैली हुई थी। नूसी आपा और मेरी चूतों में आग लगी हुई थी। अब हम दोनों को उस आग को दो मुस्टंड लंड चाहिए थे।
नूसी ने अपने अब्बू का हुए मैंने आदिल भैया का ताज़ा ताज़ा गांड मंथन के बाद से उपजे माखन से सजे संवरे लंड को मुँह में ले कर चूसने चाटने लगीं। दोनों मर्दों के लंड तूफानी तेज़ी से तनतना रहे थे।
अब्बू ने नूसी आपा को निहुरा कर उनकी चूत में अपना लंड तीन चूत - फाड़ू धक्कों में जड़ तक ठूंस दिया। नूसी आपा की चीख में आनंद ज़्यादा दर्द कम था। आदिल भैया भी अपने अब्बा से पीछे नहीं थे। उन्होंने भी बेदर्दी से मेरी चूत में अपना लंड ठूंसने में को धक्कों की कंजूसी बरती। पर उसके बाद की चुदाई में कोई कंजूसी नहीं दिखाई दोनों ने। अकबर अब्बू ने अपनी बेटी की भैया ने मेरी चूत को घण्टे भट रोंदने के बाद ही अपने लंड की उपजाऊ क्रीम से हमारी चूतों को सींच दिया।
हम सब जब चुदाई के थकन से थोड़ा उभरे तो मुझे याद आया ,"अच्छा तो अब हम तीन शादियों के लिए तैयार हो जातें हैं। "
मैंने फिर शानू की ओर देखा और अपनी गिनती बदली , "तीन नहीं चार। "
"चलो नेहा तुम ही लगाओ किसका नंबर पहला है ," शब्बो बुआ और नूसी आपा मेरी गयीं थीं।
"बुआ जान आप अपने बड़े भाई का लंड थामिये ।चाचू आप अपनी बहन की चूचिया थामिये," अकबर चाचू और शब्बो बुआ ने बिना ना-नुकर किये जो कहा वैसा ही किया।
"बुआ चलिए अब मेरे साथ दोहराइये - मैं अपने भाई का ख्याल छोटी बहन और बीवी की तरह रखूंगी। और उन्हें कभी भी बिना चुदाई के सोने नहीं दूँगी," मैंने बात आगे बढ़ायी , " और अब नूसी के साथ मिल कर इस घर में बच्चों की रौनक फ़ैल दूंगीं। "
बुआ ने इसे दोहराया। उनके हाथ अपने भाई के सख्त महा लंड को सहला रहे थे।
"चाचू आप कहिये , "शब्बो को मैं अपनी छोटी बहन और बीवी की तरह प्यार करूँगा। इनकी चूत को कभी बिना चोदे रात नहीं बिताने दूंगा। मैं शब्बो के पेट में जितने हो सकते हैं उतने बच्चे डालने की पूरो पूरी कोशिश करूंगा। "
अकबर चाचू ना केवल दोहराया उन्होंने अपनी बहन को प्यार से चूमा भी।
नूसी आपा ने एक और बात जोड़ दी ," बुआ अब आप अब्बू के कमरे अपनी जायज़ जगह ले लीजिये। यदि अम्मी जन्नत से बोल यही कहतीं।" हम सबने इस बात का पूरा समर्थन किया।
दूसीर शादी बुआ और आदिल भैया के बीच। उन दोनों ने भी माँ और बेटे के साथ साथ हमबिस्तर शौहर और बीवी की तरह खूब चुदाई करने का और बच्चे पैदा करने का इकरार किया।
तीसरी शादी अकबर चाचू और नूसी की थी. नूसी आपा अब्बू का लंड सहलाते हुए वही वायदा दोहराया।
चौथी शादी के शानू तैयार थी। उसने अपने नन्हे हाथों से अपने अब्बू और भैया के लंड सहलाते हुए कहा ,"मैं अपने अब्बू और भैया की भूख का पूरा ख्याल रखूंगी। अब से मेरी चूत और गांड दोनों भैया और अब्बू के लिए दिन रात खुली रहेंगीं। "
आखिर में मैंने बुआ का नकली लंड बाँध कर अपनी और शानू की शादी भी कर दी। आखिर में मेरी गिनती दुबारा गलत हो गयी।
उस बाकि रात के सुहागरात के लिए आदिल भैया ने अपनी अम्मी को अपनी नै नवेली बीवी की तरह बाँहों में उठा कर उन्हें अपने कमरे की ओर चल दिए। अकबर चाचू बड़ी बेटी को अपनी वधु की तरह प्यार से उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़े। मैंने अपनी बीवी उर्फ़ शानू को पकड़ा और अपने में कमरे में खींच के ले गयी।
उस रात तीनो कमरों में भीषण प्यार भरी चुदाई हुई। मैंने शानू की चूत और गांड मार मार कर उसे आखिर में आलम में ले जा कर ही सोई ।
अगले दिनों में खूब चुदाई हुई। शब्बो बुआ ने अपने बेटे और भाई के साथ इकठ्ठे चूत और गांड मरवाई।
नूसी आपा ने भी ना नहीं किया। लेकिन दोनों महालण्डों को एक साथ लेने में उनका पसीना निकल गया।
आखिरकर में मेरी वापस जाने का दिन भी आ गया। उसके पहली रात में तीनो 'लड़कियों' शौहरों की दोनों लंडो को मेरे लिए छोड़ दिया। अकबर चाचू और आदिल भयइया ने उस रात मेरी चूत और गांड की की बुरी रौंदा। सुबह तक न केवल उन्होंने मेरे दोनों छेदों को बेदर्दी से रौंदा पर इकठ्ठे भी। मैं अगली सुबह टांगें चौड़ा कर चल रही थी।
हफ्ते बाद फ़ोन पे बात करते हुए शानू ने मुझे बताया की उस के बाद घर में दिन में तो सा जो हाथ पड़ता उसके साथ जोड़ा चुदाई करते पर रात में मैंने देखा की नूसी आपा और शब्बो बुआ अदला बदली से एक एक रात अपने 'नए 'शौहर ' के साथ बारी बारी से बितातीं। उस समय तो नहीं पता था पर कुछ महीनो बाद नूसी आपा और शब्बो बुआ दोनों पेट से होंगीं।
घर वापस आने में अपना ही आनंद है। नाना, दादा और दादीजी ने दिल भर कर चूमा जैसे मैं एक हफ्ता नहीं बाद मिल रही थी। दोनों मामा भी प्रेम दिखने से नहीं थके।
घर वापस आने पर थोड़ी देर तक तो मम्मी और बुआ ने खूब प्यारा चूमा फिर सुशी बुआ ने टांग खींचनी शुरू कर दी, "क्या हुआ नेहा बिटिया। क्या अकबर भैया ने काफी काम करवाया ? इतनी चाल तो मेरी कभी भी ख़राब नहीं हुई। मुझे लगता है आदिल बेटे ने ज़रूर टेनिस के खेल खेल में ज़ोर के शॉट मार दिए होंगे? "
मैं शर्मा कर लाल हो गयी ,"बुआ आप भी ना क्या क्या बोल जाती हैं। आपने ही तो ज़रूरी काम की लिस्ट थमाई थी। टेनिस केहेलने का तो टाइम ही नहीं मिला। "
मैं अपनी बुद्धूपने पर और भी शर्मा गयी। मम्मीमन्ड मंद मुस्करा रहीं थीं।
"चल तू आज मेरे साथ सोना। मुझे सब सुनना है की अकबर, शब्बो, नूसी आदिल, शानू कैसे हैं ," सुशी बुआ मुझसे आखें मटकाते हुए बोलीं।
"भाई मुझे गोल्फ के बाद थकन हो रही है ,"दादीजी बोलीं पर उनकी आँखें प्यार से अपने बेटे को निहार रहीं थीं।
"मम्मी चलिए मैं आपकी मालिश कर दूंगा ," पापाजी प्यार से बोले और अपनी मम्मी कके साथ अपने सुइट की ओर अग्रसर हो गए।
अब मुझे सुशी बुआ की कहानी याद आयी। पापाजी और दादी जी के इकठ्ठे प्यार करने के ख्याल से ही माओं रोमांचित हो गयी। माँ बेटे के अनुचित अगम्यगमनी प्यार सबसे वर्जित होता है और इसी लिए उतना ही मीठा और आनंददायी होता है।
दादा जी ने नानाजी जी से कहा, "रूद्र चल यार कुछ गेम हो जाएँ चैस के ? सुनी सुबह से हराने का एलान कर रही है को। "दादा जी ने प्यार से अपनी बहु को निहारा।
"सुनी बेटा हम दोनों थोड़े बूढ़े सही पर दोनों मिल गए तो जीतना मुश्किल है तुम्हारा ," नानाजी रूपवती बेटी की और देख कर मुस्कराते हुए कहा।
"पापाजी कोशिश तो ज़रूर करूंगी। और यहाँ कौन बूढ़ा है। बूढ़े होंगे आपके और बाबूजी के दुश्मन। और फिर कुछ हार तो जीतने से भी मधुर होतीं हैं। " मम्मी ने अपने पिताजी और ससुर जी का हाथ थाम लिए उनके कमरे की ओर जाते हुए।
"चल अब नेहा मेरे साथ विस्तार से बता सारे हफ्ते की दास्तान ," सुशी बुआ ने मुझे उठाते हुए कहा , "और सुनिए जी आप और जेठजी जल्दी से आइये। आपको नहीं सुन्नी हमारी नेहा के अद्भुद कारनामे ?"
बड़े मां और छोटे मामा लपक कर खड़े हो गए। बड़े मामा ने मुझे बाँहों में उठा लिया ," भाई वाकई नेहा बिटिया , तुम्हारी चल तो वाकई दर्दीली से दिख रही है। "
"बड़े मामू , आदिल भैया और अकबर चाचू के मूसल साड़ी रात सहने पड़े तो किसी भी लड़की की चाल दर्दीली हो जाएगी," मैंने बड़े मां के कटाक्ष का जवाब बेहरमी से दे तो दिया पर जैसे ही छोटे मामा के ऊपर नाज़ा पड़ी तो शर्म से लाल हो गयी।
"अरे शर्मा क्यों रही है। कमरे में पहुँचते ही अपने छोट मामा से भी दोस्ती कर लेना।," सुशी बुआ ने मेरा और भी मज़ाक बनाया।
कमरे में बुआ हम सबको लाल मदिर के गिलास बनाये और एलान किया ,"चलिए आप दोनों अपनी भांजी के कपडे उतरिये। उसका किस्सा कपडे पहन कर नहीं ," शर्माती तो रही पर बड़े मामा और छोट मामा ने मेरा कुरता उतार दिया। मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। बड़े मामा ने सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार ही नहीं मेरा जांघिया भी उतर फेंका।
"चल अब इन्तिज़ार किस बात का है। अपने छोटे मामा के कपडे उतार नेहा। जब तक मैं अपने प्यारे जेठजी का ख्याल करतीं हुँ। " सुशी बुआ ने बड़े मामा को वस्त्रहीन करने में बहुत देर नहीं लगायी।
मैंने भी शर्म का आँचल छोड़ कर छोटे मामा का कुरता पजामा उतार दिया। छोटे मामा ने बड़े मामा की तरह पाजामे के नीचे कच्चा नहीं पहना था। उनका दानवीय लंड हाथी की सूंड की तरह उनकी विशाल बालों से भरी जांघों के बीच लहरा रहा था।
"अरे नेहा क्या नाटक कर रही है। अब तक तेरे छोटे मामू का लंड तेरे मुंह में क्यों नहीं है। जल्दी से तैयार कर अपने छोटे मामू का लंड। मुझे अकबर भैया के घर में हुए तेरे कारनामों की कहानी सुननी है ," सुशी बुआ ने मुस्करा कर तना मारा और अगले क्षण उनका मुँह बड़े मामा के मोटे लंड से भर गया।
मैंने भी थोड़ा सा , बस थोड़ा सा ही, शरमाते हुए छोटे मामू का भारी भरकम लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मुश्किल से अपने मुंह में ले लिया। मुश्किल से जगह बची थी मेरे मुँह में अपनी जीभ को उनके सुपाड़ी को सहलाने के लिए। मैं अपने नन्हे हाथों से उनके मुस्टंड होते लंड के खम्बे को सहलाते हुए अपने छोटे मामू की लंड को अपनी आफत बुलवाने के लिए तैयार करने लगी। बड़े मामू और छोटे मामू के लंड कुछ ही क्षणों में प्रचंड हो चले थे। उनके भीमकाय पुरुषत्व विज्ञप्ति के हथियार अपनी छोटी बहु और नन्ही भांजी की निर्मम पर अगम्यागमनी वासनामयी चुदाई के लिए न केवल तैयार थे पर हिंसक ठर्राहट से चुनौती से दे रहे थे।
"चलो मेरे स्वामी अब अपनी नन्ही भांजी को घुड़ सवारी के लिए तैयार कर लो मैं अपने जेठ जी और आपके बड़े भैया के घोड़े पे चढ़ती हूँ। नेहा जब तू अच्छी और पूरी तरह अपने छोटे मामू के घोड़े पर चढ़ जाये तो शुरू कर अपनी कहानी । मेरी चूत कब से गीली है तेरी कहानी सुनने के लिए ," सुशी बुआ ने बड़े मामू को दीवान पर बिठा कर अपनी कमर उनके सीने की तरफ कर अपनी घने रेशमी रति रस से भीगी झांटों से ढकी चूत को बड़े मामू , अपने जेठ जी के महाकाय लंड के ऊपर टिका कर धीरे धीरे नीचे दबाने लगीं। इतने वर्षों से भीमकाय लंड अपनी चूत और गांड में लेने के बाद भी सुशी बुआ की चूत चरमरा उठी बड़े मामू की हर इंच के साथ। सुशी बुआ ने अपने निचला होंठ दांतों से दबा कर अपनी चूत में एक एक इंच कर बड़े मामू के लंड को पूरा निगल लिया।
जब उनकी रेशमी झांटे बड़े मामू की खुरदुरी झांटों से संगम करने लगी तो सुशी बुआ का मुँह फिर से चल पड़ा ," सुनिए जी, पहली बार जा रहा आपका लंड अपनी नन्ही भांजी की चूत में। कोई हिचक मत कीजियेगा। नेहा की चूत कुलबुला न उठे तो मैं आपको नहीं दूँगी अपनी चूत एक हफ्ते तक , सिर्फ अपने जेठजी की सेवा करूंगी तब तक। "
सुशी बुआ ने मुश्किल से लिया था बड़े मामू का लंड पर अब इतरा रहीं थी और मेरी चूत की आफत बुलाने के लिए अपने पति, मेरे छोटे मामू, को चुनौती दे रहीं थीं।
मुझे पता था की पुरुष का गर्व अपनी भ्याता के चुनौती से उग्र हो जायेगा। छोटे मामू ने मुझे घुमा कर मेरी गोल कमर को पकड़ कर हवा में उठा लिया। फिर मुझे खिलोने की तरह उछाल कर अपने हाथो से मेरी जांघों को पकड़ मुझे अपने लंड के ऊपर टिका लिया। कुछ कोशिशों के बाद और मेरे हाथों की अगुवाई से उनके लंड का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी नहीं चूत के द्वार पर टिक गया। छोटे मामू ने अपने भारी चूतड़ों की एक लचक से अपना सुपाड़ा मेरी चूत में ठूंस दिया। मैं सिसक उठी और आगे आने वाले मीठे पर जानलेवा दर्द की तैयारी के लिए अपने होंठ को दांतों से दबा लिया। पर साड़ी तैयारियां निरर्थक हो गयीं जब छोटे मामू ने अपने हाथो को ढीला छोड़ दिया। मेरा अपना वज़न ही मेरी आफत का औज़ार बन गया। मेरी चूत छोटे मामू के लंड के ऊपर रोलर-कोस्टर की तरह भीषण रफ़्तार से नीचे फिसल पड़ी।
मेरी चीख मेरे हलक से उबल कर कमरे को न भरती तो क्या करती ? " नहीईई ाआँह्ह्ह मा आ मू उउउ। "
पर जब तक में संभल पाती छोटे मामू की कर्कश घुंघराली झांटे मेरी रेशमी झांटो से उलझ गयीं थीं।
" हाय जी ,मैंने इतनी भी बेदर्दी दिखाने के लिए भी तो नहीं उकसाया था आपको ," वैसे तो सुशी बुआ मुझ पर तरस खा रहीं थी शब्दों से पर उनकी चमकीली भूरी आँखें ख़ुशी से उज्जवल हो गयीं थीं।
मामू भी मुझे गोद में ले कर दीवान पे बैठ गए अपने बड़े भैया के पास। अब सुशी बुआ और मैं दोनों भाइयों, बुआ अपने जेठजी और मैं अपने छोटे मामू , के महाकाय लंडो को अपनी चूतों में ले कर स्थिर होने लगीं। बड़े मामू और छोटे मामू के हाथों के आनंद के लिए चार चार गुदाज़, उरोज़ों का विकल्प था। सुशी बुआ की चूँचियाँ मेरी चूँचियों से कहीं ज़्यादा विशाल थीं और सुहागन परिपक्व स्त्रीत्व के सौंदर्य से भरी हुईं थीं। मेरी चूँचियों अभी भी कुंवारे - लड़कपन और अल्पव्यस्क अपरिपक्व तरुणा की तरह थीं।
मैंने बड़ी सी सांस भर कर अकबर चाचू के घर में अपने हफ्ते भर की कारनामों की दास्तान शुरू कर दी। छोटे मामू के हाथों ने एक क्षण के लिए भी मेरे उरोजों को अकेला नहीं छोड़ा। जैसे जैसे कहानी के कामुक प्रसंग आते मेरी चूचियों की सहमत आ जाती। छोटे मामू का लंड मेरी तंग नन्ही चूत में मचलने थिरकने लगता। सुशी बुआ का भी हाल मुझसे अच्छा नहीं था। पर सुशी बुआ मुझे रोक कर उन कथांशों का और भी विस्तार भरा विवरण बताने के लिए डाँट देतीं ।
जब तक मैंने शादी की रात का पूरा विवरण दिया तो दोनों पुरुषों के लंड की थरथराहट महसूस करने वाली थी।
जब मैं आखिरी रात पर आयी, जिस दिन और रात शब्बो बुआ , नूसी आपा और शन्नो ने आदिल भैया और अकबर चाचू सिर्फ मुझे चोदने के लिए छोड़ दिया था उसका विवरण सुन कर सुशी बुआ सिसकने लगीं। छोटे मामू ने मेरी छोचियों को और भी बेदर्दी से मसलते हुए मेरे चूचुकों को रेडियो की घुंडियों की तरह मरोड़ने मसलने लगे।
मैं सिसक सिसक कर अच्छी भांजी की तरह कहानी को बिना रुके सुनती रही। आखिर कर मैं आदिल भैया और अकबर चाचू की इकट्ठे मेरी चूत और गांड की चुदाई की प्रसंग पर आ गयी।
अब मैं भी सुशी बुआ की तरह मामू के लंड के ऊपर अपनी चूत मसलने लगी। जैसे ही मेरी कहानी में आदिल भैया और अकबर चाचू के लंडों ने मेरी चूत और गांड में गरम वीर्य की बारिश की तो बुआ और मैं भी भरभरा कर झड़ गयीं।
"अब नहीं रुका जाता , जेठजी अब चोद दीजिये अपनी बहू को। आप भी फाड़ दीजिये अपनी भांजी की चूत। आज रात आप दोनों मिल कर इसकी चूत और गांड की धज्जियाँ दीजियेगा ,"सुशी बुआ ने सिसक कर गुहार मारी।
"छोटे मामू मुझे भी चुदना है अब," मैं भी मचल कर सिसकी।
छोटे मामू ने मुझे पलट कर पेट के ऊपर दीवान पर लिटा पट्ट दिया। उनका भरी भरकम शरीर मेरे ऊपर विरजमान था। छोटे मामू का लंड उस मुद्रा में मेरी चूत को और भी दर्द कर रहा था।
बड़े मामू ने सुशी बुआ को निहुरा कर घोड़े बना दिया और फिर शुरू हुआ भीषण चुदाई का प्रारम्भ सुशी बुआ के शयनकक्ष में।
मेरी चूत बिलबिला उठी जैसे ही छोटे मामू ने चुदाई की रफ़्तार बड़ाई। मेरे पट लेते हुए शरीर के ऊपर उनके भरी शक्तिशाली बदन का पूरा वज़न मेरे ऊपर था। मेरी नन्ही चूत और भी तंग हो गयी थी। मामू अपने हाथ मेरे सीने के नीचे खिसका कर मेरे पसीने से उरोजों को अपने विशाल हाथों में जकड़ कर मसलने लगे। उनका लंड मेरी चूत में दनादन अंदर बाहर आ जा रहा था। उनके लंड की भयंकर धक्कों से मेरी चूत चरमरा उठी। उधर बड़े मामू शुरुआत से ही सुशी बुआ की चूत की भीषण चुदाई कर रहे थे।
हम दोनों की चूतों से महाकाय लौंड़ों की चुदाई की गर्मी से पचक पचक की अश्लील आवाज़ें उबलने लगीं।
सुशी बुआ वासना के ज़्वर से जल उठीं ," रवि भैया आ.... आ ... आ ..... आ.........हाय आप मेरी चूत फाड़ कर ही मानोगे। "
मेरी हालत भी ख़राब थी। मेरी तरुण चुदाई का अनुभव सुशी बुआ के परिपक्व तज़ुर्बे के सामने बचपन के समान था।
मैं सिर्फ बिलबिलाती सिसकती रही और छोटे मामू ने घंटे भर रौंदी मेरी चूत निर्मम लंड के धक्कों से। मैं न जाने कितनी बार झड़ गयी थी।
मैं छोटे मामू की मर्दानी चुदाई की थकन से शिथिल हो चली थी।
बड़े मामू ने अपना रतिरस से लिसा लंड सुशी बुआ की चूत में से निकाल कर दीवान पर चित्त कर दिया भीषण धक्के से और उनके विशाल गदराये नितम्बों को चौड़ा कर अपने महालँड के सुपाड़ी को बुआ की गांड के ऊपर टिका दिया। फिर जो बड़े ममौ ने किया उसे देख कर मेरी आँखें फट गयीं। बड़े मामू ने अपने पूरे वज़न को ढीला छोड़ दिया और उनका लंड एक भीषण जानलेवा धक्के से सुशी बुआ की कसी गांड में समा गया।
सुशी बुआ की चीख कमरे में गूँज उठी, " नहींईई ई उननननन मर गयी माँ मैं तो।" बिलबिला उठी दर्द से सुशी बुआ।
बड़ी मामू ने अपनी बहु की हृदय हिला देने वाली गुहार को अनदेखा कर अपने लंड को बाहर निकाला और फिर उसी बेदर्दी से बुआ की गांड में ठूंस दिया। बुआ अपने जेठ के भारी भरकम शरीर के नीचे दबीं सिर्फ बिलबिलाने और चीखने और अपनी गांड को अपने जेठ के हवाले करने के अल्वा कोई और चारा नहीं था।
छोटे मामू ने भी मौका देखा और मेरे कान में फुसफुसाए ,"नेहा बेटी अब तेरी गांड का नंबर है ?"
इस से पहले मैं कुछ बोल पाती छोटे मामू के लंड ने मेरी चूत में एक नया रतिनिष्पत्ति का तूफ़ान फैला दिया। जब तक मैं झड़ने की मीठी पीड़ा से निकल पाती छोटे मामू ने मेरे गोल गोल चूतड़ों को फैला कर मेरी चूत के रस से लिसे लंड को मेरी गांड के ऊपर दबाने लगे। भगवान् की दया से उन्होंने अपने बड़े भैया की तरह मेरी गांड में अपना वृहत लंड नहीं ठूंसा। पर धीरे धीरे इंच इंच करके दबाते रहे। मैं सिसकी और होंठ दबा कर दर्द को पीने लगी। छोटे मामू का लंड जड़ तक तक मेरी गांड में समा गया,तब तक मेरी साँसे अफरा तफरी में थीं। छोटे मामू ने मेरे सीने के नीचे हाथ डाल कर मेरे पसीने से गीले उरोज़ों को अपने फावड़े जैसे हाथों में जकड़ लिया।
मैं अब छोटे मामू के लंड की हर नस को अपनी गांड में महसूस करने लगी थी। छोटे मामू ने धीरे धीरे एक एक इंच करके अपने लंड का मोटा लम्बा तना मेरी गांड से बाहर निकाल लिया सिर्फ उनका बड़े सेब जैसा सुपाड़ा ही रह गया थे मेरी गांड के छल्ले के भीतर। मैं मन ही मन छोटे मामू को धन्यवाद दे रही थी, अपनी भांजी की प्यार और आराम से गांड मरने के लिए। फिर छोटे मामू ने जैसे मेरे विचारों को पढ़ लिया। ठीक अपने बड़े भैया जैसे पूरे वज़न से मेरी गांड लंड ठूंस दिया। मुझे लगा जैसे कोई गरम लौहे का खम्बा घुस गया हो मेरी गांड में। मेरी चीख निकली तो निकली पर मेरी आँखें बहने लगीं। दोनों मामा बेददृ से चोदने लगे सुशी बुआ और मेरी गाँडों को। बड़े मामू अपनी बिलबिलाती बहु की गांड का मंथन निर्मम धक्कों से कर रहे थे। छोटे मामू भी अपने बड़े भैया के पदचिन्हों के ऊपर चलते हुए अपनी छोटी बहन की षोडसी बेटी की गांड का मर्दन उसी बेदर्दी से कर रहे थे।
दस पंद्रह मिनटों में बुआ और मैं चीखने बिलबिलाने की जगह सिसकने लगीं। कमरे में हम दोनों की गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी। दोनों मामाओं के लंड बुआ और मेरी गांड के मक्खन को मथ रहे थे। हम दोनों की गांड के मक्खन चिकने हो गए उनके लंड तेज़ी से हम दोनों की गांड मरने सक्षम थे। दोनों बहियों में होड़ सी लग गयी की कौन बुआ और मेरी ऊंची सिसकारियां निकलवा सका था। बुआ और मैं तो लगातार झड़ रहीं थीं। घंटे भर बाद दोनों हलकी सी गुर्राहट मारी और हम दोनों की गांड भर दी अपने गाड़े गर्म वीर्य से।
जब हम दोनों को होश सा आया तो बड़े मामू सुशी बुआ के गोरे नितम्बों को चाट कर साफ़ कर रहे थे। छोटे मामू ने भी में मेरे चूतड़ों को अपने थूक से चमका दिया थे और अब मेरी सूजी लाल गांड के ढीले छल्ले के अंदर अपनी जीभ को डाल कर मेरी गांड के मथे मक्खन को तलाश रहे थे।
सुशी बुआ ने अपने पति, मेरे छोटे मामू से कहा ,"अरे सुनिए तो। मुझे तो चखा दो मेरे प्यारी भांजी की गांड के रस को। "
छोटे मामू ने मेरी गांड के रस से लिसे लंड को सौंप दिया अपनी अर्धांगिनी के मुँह के ऊपर और मुझे मिल गया सुशी बुआ के मीठी गांड के मक्खन से लिसे बड़े मामू का लंड। हम दोनों तो स्वर्ग में थी। सुशी बुआ की गांड के रस ने मेरी लार टपका दी। हम दोनों ने दिल लगा कर दोनों लंडों को चूम चाट कर चमका दिया।
लेकिन हम दोनों के प्यार ने दोनों लंडों को लौहे के तने जैसा तन्ना दिया ,दोनों मामा तैयार थे अपने फौलादी अमानवीय आकार के लंड हांथो में लिए।
"छोटू चल अब जैसा अंजनी और सुन्नी के साथ किया था, कब तेरी भाभी अपने मायके गयी थी, वो पोजीशन बना दे इस बार," सुशी बुआ की आँखें चकने लगीं। मैं भी वासना की बिजली से मचल उठी। मेरी मम्मी और भाभी को मेरे दोनों मामाओं ने किसी ख़ास अंदाज़ में चोदा थे।
छोटे मामू दिवान पे लेट गए और सुशी बुआ की विशाल गांड के चूतड़ उनके मुँह के ऊपर थे। बड़े मामू ने मेरी चूत को अपने छोटे भाई से लंड के ऊपर टिका दिया। जैसे तैसे मैंने छोटे मामू का पूरा लंड ले लिया अपनी चूत में। फिर मेरी तौबा बुलवाई बड़े मामू ने। मेरी गांड में उनका लंड मुश्किल से घुस पा रहा था। जैसे ही उनका सुपाड़ा अंदर घुस तो समझिये किला फतह हो गया। बड़े मामू ने मेरे गदराये चूतड़ों को कस के जकड़ कर पांच छह धक्कों में अपना लंड पुअर का पुअर जड़ तक ठूंस दिया मेरी नन्ही षोडसी गांड में। बड़े मामू ने मेरा मुँह दबा दिया थे बुआ की फैली गांड के ऊपर। मेरी चीखें ज़रूए बुआ की गांड के ऊपर गुदगुदी दे रहीं होंगी।
फिर दौड़ने मामाओं ने पांच दस मिनटों में ले से बाँध ली मेरी दोहरी चुदाई की। अब आया वो मौका जिसको मैं हमेशा याद रखुंगीं। बड़े मामू ने मेरे हाथ को सुशी बुआ की घने झांटों से ढकी छूट के ऊपर टिका दिया बाकि काम मेरी कल्पना ने कर दिया।
मैंने अपनी गांड और चूत की एक साथ दर्दीली चुदाई के दर्द को बुआ की चूत के साथ बांटने ने निश्चय कर लिया। हाथ की नोक बना कर मैंने सुशी बुआ की चूत चोदने लगी। धीरे धीरे उनकी सिसकियाँ निकलने लगीं। मैंने मौका देख कर कलाई तक ठूंस दिया अपना हाथ सुशी बुआ की चूत में। सुशी बुआ दर्द से बिबिला उठीं ,"मार देगी नेहा अपनी बुआ को। धीरे धीरे चोद तेरी माँ की तरह इस चूत में से तेरे तरह की रंडी भांजी नहीं निकली है अभी तक। "
छोटे मामू के मज़बूत फावड़े जैसे हाथों में बुआ को हिलने डुलने नहीं दिया। मैंने बुआ के कुंवारे गर्भाशय की ग्रीवा को महसूस किया। मैंने एक एक कर अपनी उँगलियों से बुआ के गर्भाशय के ग्रीवा उर्फ़ र्सर्विक्स के द्वार को खोलने लगी। जैसे ही मुझे लगा की मेरी पाँचों उँगलियों की नोक उनके गर्भाशय के नन्हे द्वार में फंस गयीं है। मैंने बेदर्दी से अपना हाथ पाँचों उँगलियों के पोरों तक ठूंस दिया। बुआ की चीख गूँज उठी कमरे में। दर्द से बिलबिलाती बुआ ने गुहार लगायी, "मर गयी बेटी धीरे धीरे मार अपनी बुआ की चूत मुट्ठी से। "
मैंने बुआ की गुहार को अनदेखा कर अपनी उंगलयों को घुमा घुमा कर बुआ के गर्भाशय के द्वार को चौड़ाने लगी।जब मुझे लगा की बुआ की चीखें सिसकारियों में बदल गयीं हैं। तभी मैंने पूरे ज़ोर से ठूंस दिया अपना पूरा हाथ बुआ के गर्भाशय में। बुआ तपड़ उठी दर्द से जैसे किसी ने उन्हें बिजली के जीवित तार से छु दिया हो।
मेरा हाथ और कलाई अब बुआ की चूत में थे। मैंने धीरे धीरे बस के गर्भाशय की चुदाई शुरू कर दी। मेरे निर्मम मुट्ठ-चुदाई से बुआ की कोमल चूत और गर्भाशय के दीवारों से खून निकल गया था। पर अब अचानक बुआ कल्पने लगीं वासना के ज्वर से , "चोद दे अपनी बुआ की चूत नेहा बेटी। फाड़ दाल अपनी बुआ के बंजर गर्भ को। हाय मैं झड़ने लगीं हूँ। और जोर से नेहा आ आ आ आ आ। "
कमरे में अब भीषण चुदाई का माहौल बन गया। मैं अब पागलों की तरह निर्मम धक्कों से बुआ की चूत और गर्भाशय को कोहनी तक हाथ ठूंस कर चोद रही थी। मेरे दोनों मामा भी उतनी ही बेदर्दी से मेरी चूत और गांड चोद रहे थे। पता नहीं कब तक चला इस चुदाई सिलसिला। डेढ़ घंटे बाद बुआ और मैं बेहोशी के आलम में दोनों मामाओं के गरम वीर्य को सटक रहीं थीं।
बुआ की चूत में से टपकते खून की बूंदो को चाट कर साफ़ कर दिया मैंने।
फिर बुआ ने सुनहरी शर्बत माँगा अपने पति और जेठ से। दोनों ने बारी बारी से अपना सुनहरी गर्म शर्बत आधा आधा बाँटा हम दोनों के बीच में। हमारी संतुष्टि के बाद बुआ और मैंने भी दोनों मामाओं को अपन्ना सुनहरी शर्बत ईमानदारी से आधा आधा बाँट कर पिलाया। उस रात कितनी ही मुद्राओं में चोदा बड़े और छोटे मामू ने मुझे और बुआ को। सुबह जब मैं उठी तो बहुत देर हो गयी थी।
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नूसी आपा ने इस बार बहती आँखों और नासिका के रस को तुरंत चूसना और चेतना शुरू कर दिया। मैं भी उसके नीचे लेट कर उसकी एक चूची चूसने लगी और दूसरी को मसलने मड़ोड़ने लगी।
"अब्बो,ठीक ऐसे ही। शानू की यह रात उसको ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी। अल्लाह कसम उसकी चीखें नहीं बंद होनी चाहिए अब्बू ,"नूसी आपा ने अब्बो को बढ़ावा देते हुए उकसाया।
और अकबर चाचू ने अपना वायदा किया और उस से भी आगे निकल गए।
उन्होंने शानू की कुंवारी गांड को उसी बेदर्दी से अगले घंटे तक मारा। शानू की चीखें ,सुबकियां , और हिचकियाँ अगले घंटे तक बंद नहीं हुई। उसकी अब्बू का लंड अब सटासट उसकी गांड में से माथे हलवे की चिकनाई से अंदर बाहर जा रहा था। अकबर चाचू ने शानू की दर्दीली गांड-चुदाई से उसके लिए झड़ना बिलकुल असंभव कर दिया था। शानू घंटे से भी ज़्यादा अपनी गांड चुदाई के दर्द से बिलबिलाने के अलावा कुछ और सोच भी नहीं पायी झड़ना तो कोसों दूर।
पर आखिर कर वासना की प्रज्जवलत अग्नि, चुदाई का जूनून और अपने अब्बू के साथ नाजायज़ सम्भोग की तमक से शानू दर्द के गड्ढे से भर निकल ही गयी। उसके अब्बू का लंड उसकी गांड के मक्खन से लिसा अब उसे आननद देने लगा। नूसी आपा और मई अब बेदर्दी उसकी छूछोयां मसलने लगे पर अब उसकी वासना फतह का झंडा लहरा था। शानू ने अगले दस मिनटों में तीन ब्रा झड़ने के बाद अपने अब्बू से और भी ज़ोर से गांड मारने की गुहार लगाना श्रुओ कर दिया। अकबर चाचू ने अपनी प्याररी नन्ही बेटी की गांड को एक और घंटा बिना थके और धीरे हुए चोदा।शानू की अविरत रत-निष्पति ने उसके अल्पव्यस्क कच्चे बदन को बिलकुल थका दिया। जब अकबर चाकू ने अपना लंड शानू की गांड में खोला तो वो चीख कर निश्चित हो गयी। अकबर चाचू ने बीस पच्चीस वीर्य की बौछारों के बाद विजय पताका फहराता हुआ लंड निकला तो नूसी उसके ऊपर भूखों की तारक जगपत पड़े। हम दोनों ने अकबर चाचू के शानू की गांड के मंथन के रास और उनके पाने वरीय के माखन को चूसने और चाटने लगे।
उधर आदिल भैया ने भी अपनी अम्मी की गांड मार मार कर उन्हें इतनी बार झाड़ दिया कि वो भी शानू की तरह बेहोश हो गयीं। कमरे में दो ख़ूबसूरत गाण्डों की भयंकर चुदाई और मंथन की गहरी खुशबू फ़ैली हुई थी। नूसी आपा और मेरी चूतों में आग लगी हुई थी। अब हम दोनों को उस आग को दो मुस्टंड लंड चाहिए थे।
नूसी ने अपने अब्बू का हुए मैंने आदिल भैया का ताज़ा ताज़ा गांड मंथन के बाद से उपजे माखन से सजे संवरे लंड को मुँह में ले कर चूसने चाटने लगीं। दोनों मर्दों के लंड तूफानी तेज़ी से तनतना रहे थे।
अब्बू ने नूसी आपा को निहुरा कर उनकी चूत में अपना लंड तीन चूत - फाड़ू धक्कों में जड़ तक ठूंस दिया। नूसी आपा की चीख में आनंद ज़्यादा दर्द कम था। आदिल भैया भी अपने अब्बा से पीछे नहीं थे। उन्होंने भी बेदर्दी से मेरी चूत में अपना लंड ठूंसने में को धक्कों की कंजूसी बरती। पर उसके बाद की चुदाई में कोई कंजूसी नहीं दिखाई दोनों ने। अकबर अब्बू ने अपनी बेटी की भैया ने मेरी चूत को घण्टे भट रोंदने के बाद ही अपने लंड की उपजाऊ क्रीम से हमारी चूतों को सींच दिया।
हम सब जब चुदाई के थकन से थोड़ा उभरे तो मुझे याद आया ,"अच्छा तो अब हम तीन शादियों के लिए तैयार हो जातें हैं। "
मैंने फिर शानू की ओर देखा और अपनी गिनती बदली , "तीन नहीं चार। "
"चलो नेहा तुम ही लगाओ किसका नंबर पहला है ," शब्बो बुआ और नूसी आपा मेरी गयीं थीं।
"बुआ जान आप अपने बड़े भाई का लंड थामिये ।चाचू आप अपनी बहन की चूचिया थामिये," अकबर चाचू और शब्बो बुआ ने बिना ना-नुकर किये जो कहा वैसा ही किया।
"बुआ चलिए अब मेरे साथ दोहराइये - मैं अपने भाई का ख्याल छोटी बहन और बीवी की तरह रखूंगी। और उन्हें कभी भी बिना चुदाई के सोने नहीं दूँगी," मैंने बात आगे बढ़ायी , " और अब नूसी के साथ मिल कर इस घर में बच्चों की रौनक फ़ैल दूंगीं। "
बुआ ने इसे दोहराया। उनके हाथ अपने भाई के सख्त महा लंड को सहला रहे थे।
"चाचू आप कहिये , "शब्बो को मैं अपनी छोटी बहन और बीवी की तरह प्यार करूँगा। इनकी चूत को कभी बिना चोदे रात नहीं बिताने दूंगा। मैं शब्बो के पेट में जितने हो सकते हैं उतने बच्चे डालने की पूरो पूरी कोशिश करूंगा। "
अकबर चाचू ना केवल दोहराया उन्होंने अपनी बहन को प्यार से चूमा भी।
नूसी आपा ने एक और बात जोड़ दी ," बुआ अब आप अब्बू के कमरे अपनी जायज़ जगह ले लीजिये। यदि अम्मी जन्नत से बोल यही कहतीं।" हम सबने इस बात का पूरा समर्थन किया।
दूसीर शादी बुआ और आदिल भैया के बीच। उन दोनों ने भी माँ और बेटे के साथ साथ हमबिस्तर शौहर और बीवी की तरह खूब चुदाई करने का और बच्चे पैदा करने का इकरार किया।
तीसरी शादी अकबर चाचू और नूसी की थी. नूसी आपा अब्बू का लंड सहलाते हुए वही वायदा दोहराया।
चौथी शादी के शानू तैयार थी। उसने अपने नन्हे हाथों से अपने अब्बू और भैया के लंड सहलाते हुए कहा ,"मैं अपने अब्बू और भैया की भूख का पूरा ख्याल रखूंगी। अब से मेरी चूत और गांड दोनों भैया और अब्बू के लिए दिन रात खुली रहेंगीं। "
आखिर में मैंने बुआ का नकली लंड बाँध कर अपनी और शानू की शादी भी कर दी। आखिर में मेरी गिनती दुबारा गलत हो गयी।
उस बाकि रात के सुहागरात के लिए आदिल भैया ने अपनी अम्मी को अपनी नै नवेली बीवी की तरह बाँहों में उठा कर उन्हें अपने कमरे की ओर चल दिए। अकबर चाचू बड़ी बेटी को अपनी वधु की तरह प्यार से उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़े। मैंने अपनी बीवी उर्फ़ शानू को पकड़ा और अपने में कमरे में खींच के ले गयी।
उस रात तीनो कमरों में भीषण प्यार भरी चुदाई हुई। मैंने शानू की चूत और गांड मार मार कर उसे आखिर में आलम में ले जा कर ही सोई ।
अगले दिनों में खूब चुदाई हुई। शब्बो बुआ ने अपने बेटे और भाई के साथ इकठ्ठे चूत और गांड मरवाई।
नूसी आपा ने भी ना नहीं किया। लेकिन दोनों महालण्डों को एक साथ लेने में उनका पसीना निकल गया।
आखिरकर में मेरी वापस जाने का दिन भी आ गया। उसके पहली रात में तीनो 'लड़कियों' शौहरों की दोनों लंडो को मेरे लिए छोड़ दिया। अकबर चाचू और आदिल भयइया ने उस रात मेरी चूत और गांड की की बुरी रौंदा। सुबह तक न केवल उन्होंने मेरे दोनों छेदों को बेदर्दी से रौंदा पर इकठ्ठे भी। मैं अगली सुबह टांगें चौड़ा कर चल रही थी।
हफ्ते बाद फ़ोन पे बात करते हुए शानू ने मुझे बताया की उस के बाद घर में दिन में तो सा जो हाथ पड़ता उसके साथ जोड़ा चुदाई करते पर रात में मैंने देखा की नूसी आपा और शब्बो बुआ अदला बदली से एक एक रात अपने 'नए 'शौहर ' के साथ बारी बारी से बितातीं। उस समय तो नहीं पता था पर कुछ महीनो बाद नूसी आपा और शब्बो बुआ दोनों पेट से होंगीं।
घर वापस आने में अपना ही आनंद है। नाना, दादा और दादीजी ने दिल भर कर चूमा जैसे मैं एक हफ्ता नहीं बाद मिल रही थी। दोनों मामा भी प्रेम दिखने से नहीं थके।
घर वापस आने पर थोड़ी देर तक तो मम्मी और बुआ ने खूब प्यारा चूमा फिर सुशी बुआ ने टांग खींचनी शुरू कर दी, "क्या हुआ नेहा बिटिया। क्या अकबर भैया ने काफी काम करवाया ? इतनी चाल तो मेरी कभी भी ख़राब नहीं हुई। मुझे लगता है आदिल बेटे ने ज़रूर टेनिस के खेल खेल में ज़ोर के शॉट मार दिए होंगे? "
मैं शर्मा कर लाल हो गयी ,"बुआ आप भी ना क्या क्या बोल जाती हैं। आपने ही तो ज़रूरी काम की लिस्ट थमाई थी। टेनिस केहेलने का तो टाइम ही नहीं मिला। "
मैं अपनी बुद्धूपने पर और भी शर्मा गयी। मम्मीमन्ड मंद मुस्करा रहीं थीं।
"चल तू आज मेरे साथ सोना। मुझे सब सुनना है की अकबर, शब्बो, नूसी आदिल, शानू कैसे हैं ," सुशी बुआ मुझसे आखें मटकाते हुए बोलीं।
"भाई मुझे गोल्फ के बाद थकन हो रही है ,"दादीजी बोलीं पर उनकी आँखें प्यार से अपने बेटे को निहार रहीं थीं।
"मम्मी चलिए मैं आपकी मालिश कर दूंगा ," पापाजी प्यार से बोले और अपनी मम्मी कके साथ अपने सुइट की ओर अग्रसर हो गए।
अब मुझे सुशी बुआ की कहानी याद आयी। पापाजी और दादी जी के इकठ्ठे प्यार करने के ख्याल से ही माओं रोमांचित हो गयी। माँ बेटे के अनुचित अगम्यगमनी प्यार सबसे वर्जित होता है और इसी लिए उतना ही मीठा और आनंददायी होता है।
दादा जी ने नानाजी जी से कहा, "रूद्र चल यार कुछ गेम हो जाएँ चैस के ? सुनी सुबह से हराने का एलान कर रही है को। "दादा जी ने प्यार से अपनी बहु को निहारा।
"सुनी बेटा हम दोनों थोड़े बूढ़े सही पर दोनों मिल गए तो जीतना मुश्किल है तुम्हारा ," नानाजी रूपवती बेटी की और देख कर मुस्कराते हुए कहा।
"पापाजी कोशिश तो ज़रूर करूंगी। और यहाँ कौन बूढ़ा है। बूढ़े होंगे आपके और बाबूजी के दुश्मन। और फिर कुछ हार तो जीतने से भी मधुर होतीं हैं। " मम्मी ने अपने पिताजी और ससुर जी का हाथ थाम लिए उनके कमरे की ओर जाते हुए।
"चल अब नेहा मेरे साथ विस्तार से बता सारे हफ्ते की दास्तान ," सुशी बुआ ने मुझे उठाते हुए कहा , "और सुनिए जी आप और जेठजी जल्दी से आइये। आपको नहीं सुन्नी हमारी नेहा के अद्भुद कारनामे ?"
बड़े मां और छोटे मामा लपक कर खड़े हो गए। बड़े मामा ने मुझे बाँहों में उठा लिया ," भाई वाकई नेहा बिटिया , तुम्हारी चल तो वाकई दर्दीली से दिख रही है। "
"बड़े मामू , आदिल भैया और अकबर चाचू के मूसल साड़ी रात सहने पड़े तो किसी भी लड़की की चाल दर्दीली हो जाएगी," मैंने बड़े मां के कटाक्ष का जवाब बेहरमी से दे तो दिया पर जैसे ही छोटे मामा के ऊपर नाज़ा पड़ी तो शर्म से लाल हो गयी।
"अरे शर्मा क्यों रही है। कमरे में पहुँचते ही अपने छोट मामा से भी दोस्ती कर लेना।," सुशी बुआ ने मेरा और भी मज़ाक बनाया।
कमरे में बुआ हम सबको लाल मदिर के गिलास बनाये और एलान किया ,"चलिए आप दोनों अपनी भांजी के कपडे उतरिये। उसका किस्सा कपडे पहन कर नहीं ," शर्माती तो रही पर बड़े मामा और छोट मामा ने मेरा कुरता उतार दिया। मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। बड़े मामा ने सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार ही नहीं मेरा जांघिया भी उतर फेंका।
"चल अब इन्तिज़ार किस बात का है। अपने छोटे मामा के कपडे उतार नेहा। जब तक मैं अपने प्यारे जेठजी का ख्याल करतीं हुँ। " सुशी बुआ ने बड़े मामा को वस्त्रहीन करने में बहुत देर नहीं लगायी।
मैंने भी शर्म का आँचल छोड़ कर छोटे मामा का कुरता पजामा उतार दिया। छोटे मामा ने बड़े मामा की तरह पाजामे के नीचे कच्चा नहीं पहना था। उनका दानवीय लंड हाथी की सूंड की तरह उनकी विशाल बालों से भरी जांघों के बीच लहरा रहा था।
"अरे नेहा क्या नाटक कर रही है। अब तक तेरे छोटे मामू का लंड तेरे मुंह में क्यों नहीं है। जल्दी से तैयार कर अपने छोटे मामू का लंड। मुझे अकबर भैया के घर में हुए तेरे कारनामों की कहानी सुननी है ," सुशी बुआ ने मुस्करा कर तना मारा और अगले क्षण उनका मुँह बड़े मामा के मोटे लंड से भर गया।
मैंने भी थोड़ा सा , बस थोड़ा सा ही, शरमाते हुए छोटे मामू का भारी भरकम लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मुश्किल से अपने मुंह में ले लिया। मुश्किल से जगह बची थी मेरे मुँह में अपनी जीभ को उनके सुपाड़ी को सहलाने के लिए। मैं अपने नन्हे हाथों से उनके मुस्टंड होते लंड के खम्बे को सहलाते हुए अपने छोटे मामू की लंड को अपनी आफत बुलवाने के लिए तैयार करने लगी। बड़े मामू और छोटे मामू के लंड कुछ ही क्षणों में प्रचंड हो चले थे। उनके भीमकाय पुरुषत्व विज्ञप्ति के हथियार अपनी छोटी बहु और नन्ही भांजी की निर्मम पर अगम्यागमनी वासनामयी चुदाई के लिए न केवल तैयार थे पर हिंसक ठर्राहट से चुनौती से दे रहे थे।
"चलो मेरे स्वामी अब अपनी नन्ही भांजी को घुड़ सवारी के लिए तैयार कर लो मैं अपने जेठ जी और आपके बड़े भैया के घोड़े पे चढ़ती हूँ। नेहा जब तू अच्छी और पूरी तरह अपने छोटे मामू के घोड़े पर चढ़ जाये तो शुरू कर अपनी कहानी । मेरी चूत कब से गीली है तेरी कहानी सुनने के लिए ," सुशी बुआ ने बड़े मामू को दीवान पर बिठा कर अपनी कमर उनके सीने की तरफ कर अपनी घने रेशमी रति रस से भीगी झांटों से ढकी चूत को बड़े मामू , अपने जेठ जी के महाकाय लंड के ऊपर टिका कर धीरे धीरे नीचे दबाने लगीं। इतने वर्षों से भीमकाय लंड अपनी चूत और गांड में लेने के बाद भी सुशी बुआ की चूत चरमरा उठी बड़े मामू की हर इंच के साथ। सुशी बुआ ने अपने निचला होंठ दांतों से दबा कर अपनी चूत में एक एक इंच कर बड़े मामू के लंड को पूरा निगल लिया।
जब उनकी रेशमी झांटे बड़े मामू की खुरदुरी झांटों से संगम करने लगी तो सुशी बुआ का मुँह फिर से चल पड़ा ," सुनिए जी, पहली बार जा रहा आपका लंड अपनी नन्ही भांजी की चूत में। कोई हिचक मत कीजियेगा। नेहा की चूत कुलबुला न उठे तो मैं आपको नहीं दूँगी अपनी चूत एक हफ्ते तक , सिर्फ अपने जेठजी की सेवा करूंगी तब तक। "
सुशी बुआ ने मुश्किल से लिया था बड़े मामू का लंड पर अब इतरा रहीं थी और मेरी चूत की आफत बुलाने के लिए अपने पति, मेरे छोटे मामू, को चुनौती दे रहीं थीं।
मुझे पता था की पुरुष का गर्व अपनी भ्याता के चुनौती से उग्र हो जायेगा। छोटे मामू ने मुझे घुमा कर मेरी गोल कमर को पकड़ कर हवा में उठा लिया। फिर मुझे खिलोने की तरह उछाल कर अपने हाथो से मेरी जांघों को पकड़ मुझे अपने लंड के ऊपर टिका लिया। कुछ कोशिशों के बाद और मेरे हाथों की अगुवाई से उनके लंड का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी नहीं चूत के द्वार पर टिक गया। छोटे मामू ने अपने भारी चूतड़ों की एक लचक से अपना सुपाड़ा मेरी चूत में ठूंस दिया। मैं सिसक उठी और आगे आने वाले मीठे पर जानलेवा दर्द की तैयारी के लिए अपने होंठ को दांतों से दबा लिया। पर साड़ी तैयारियां निरर्थक हो गयीं जब छोटे मामू ने अपने हाथो को ढीला छोड़ दिया। मेरा अपना वज़न ही मेरी आफत का औज़ार बन गया। मेरी चूत छोटे मामू के लंड के ऊपर रोलर-कोस्टर की तरह भीषण रफ़्तार से नीचे फिसल पड़ी।
मेरी चीख मेरे हलक से उबल कर कमरे को न भरती तो क्या करती ? " नहीईई ाआँह्ह्ह मा आ मू उउउ। "
पर जब तक में संभल पाती छोटे मामू की कर्कश घुंघराली झांटे मेरी रेशमी झांटो से उलझ गयीं थीं।
" हाय जी ,मैंने इतनी भी बेदर्दी दिखाने के लिए भी तो नहीं उकसाया था आपको ," वैसे तो सुशी बुआ मुझ पर तरस खा रहीं थी शब्दों से पर उनकी चमकीली भूरी आँखें ख़ुशी से उज्जवल हो गयीं थीं।
मामू भी मुझे गोद में ले कर दीवान पे बैठ गए अपने बड़े भैया के पास। अब सुशी बुआ और मैं दोनों भाइयों, बुआ अपने जेठजी और मैं अपने छोटे मामू , के महाकाय लंडो को अपनी चूतों में ले कर स्थिर होने लगीं। बड़े मामू और छोटे मामू के हाथों के आनंद के लिए चार चार गुदाज़, उरोज़ों का विकल्प था। सुशी बुआ की चूँचियाँ मेरी चूँचियों से कहीं ज़्यादा विशाल थीं और सुहागन परिपक्व स्त्रीत्व के सौंदर्य से भरी हुईं थीं। मेरी चूँचियों अभी भी कुंवारे - लड़कपन और अल्पव्यस्क अपरिपक्व तरुणा की तरह थीं।
मैंने बड़ी सी सांस भर कर अकबर चाचू के घर में अपने हफ्ते भर की कारनामों की दास्तान शुरू कर दी। छोटे मामू के हाथों ने एक क्षण के लिए भी मेरे उरोजों को अकेला नहीं छोड़ा। जैसे जैसे कहानी के कामुक प्रसंग आते मेरी चूचियों की सहमत आ जाती। छोटे मामू का लंड मेरी तंग नन्ही चूत में मचलने थिरकने लगता। सुशी बुआ का भी हाल मुझसे अच्छा नहीं था। पर सुशी बुआ मुझे रोक कर उन कथांशों का और भी विस्तार भरा विवरण बताने के लिए डाँट देतीं ।
जब तक मैंने शादी की रात का पूरा विवरण दिया तो दोनों पुरुषों के लंड की थरथराहट महसूस करने वाली थी।
जब मैं आखिरी रात पर आयी, जिस दिन और रात शब्बो बुआ , नूसी आपा और शन्नो ने आदिल भैया और अकबर चाचू सिर्फ मुझे चोदने के लिए छोड़ दिया था उसका विवरण सुन कर सुशी बुआ सिसकने लगीं। छोटे मामू ने मेरी छोचियों को और भी बेदर्दी से मसलते हुए मेरे चूचुकों को रेडियो की घुंडियों की तरह मरोड़ने मसलने लगे।
मैं सिसक सिसक कर अच्छी भांजी की तरह कहानी को बिना रुके सुनती रही। आखिर कर मैं आदिल भैया और अकबर चाचू की इकट्ठे मेरी चूत और गांड की चुदाई की प्रसंग पर आ गयी।
अब मैं भी सुशी बुआ की तरह मामू के लंड के ऊपर अपनी चूत मसलने लगी। जैसे ही मेरी कहानी में आदिल भैया और अकबर चाचू के लंडों ने मेरी चूत और गांड में गरम वीर्य की बारिश की तो बुआ और मैं भी भरभरा कर झड़ गयीं।
"अब नहीं रुका जाता , जेठजी अब चोद दीजिये अपनी बहू को। आप भी फाड़ दीजिये अपनी भांजी की चूत। आज रात आप दोनों मिल कर इसकी चूत और गांड की धज्जियाँ दीजियेगा ,"सुशी बुआ ने सिसक कर गुहार मारी।
"छोटे मामू मुझे भी चुदना है अब," मैं भी मचल कर सिसकी।
छोटे मामू ने मुझे पलट कर पेट के ऊपर दीवान पर लिटा पट्ट दिया। उनका भरी भरकम शरीर मेरे ऊपर विरजमान था। छोटे मामू का लंड उस मुद्रा में मेरी चूत को और भी दर्द कर रहा था।
बड़े मामू ने सुशी बुआ को निहुरा कर घोड़े बना दिया और फिर शुरू हुआ भीषण चुदाई का प्रारम्भ सुशी बुआ के शयनकक्ष में।
मेरी चूत बिलबिला उठी जैसे ही छोटे मामू ने चुदाई की रफ़्तार बड़ाई। मेरे पट लेते हुए शरीर के ऊपर उनके भरी शक्तिशाली बदन का पूरा वज़न मेरे ऊपर था। मेरी नन्ही चूत और भी तंग हो गयी थी। मामू अपने हाथ मेरे सीने के नीचे खिसका कर मेरे पसीने से उरोजों को अपने विशाल हाथों में जकड़ कर मसलने लगे। उनका लंड मेरी चूत में दनादन अंदर बाहर आ जा रहा था। उनके लंड की भयंकर धक्कों से मेरी चूत चरमरा उठी। उधर बड़े मामू शुरुआत से ही सुशी बुआ की चूत की भीषण चुदाई कर रहे थे।
हम दोनों की चूतों से महाकाय लौंड़ों की चुदाई की गर्मी से पचक पचक की अश्लील आवाज़ें उबलने लगीं।
सुशी बुआ वासना के ज़्वर से जल उठीं ," रवि भैया आ.... आ ... आ ..... आ.........हाय आप मेरी चूत फाड़ कर ही मानोगे। "
मेरी हालत भी ख़राब थी। मेरी तरुण चुदाई का अनुभव सुशी बुआ के परिपक्व तज़ुर्बे के सामने बचपन के समान था।
मैं सिर्फ बिलबिलाती सिसकती रही और छोटे मामू ने घंटे भर रौंदी मेरी चूत निर्मम लंड के धक्कों से। मैं न जाने कितनी बार झड़ गयी थी।
मैं छोटे मामू की मर्दानी चुदाई की थकन से शिथिल हो चली थी।
बड़े मामू ने अपना रतिरस से लिसा लंड सुशी बुआ की चूत में से निकाल कर दीवान पर चित्त कर दिया भीषण धक्के से और उनके विशाल गदराये नितम्बों को चौड़ा कर अपने महालँड के सुपाड़ी को बुआ की गांड के ऊपर टिका दिया। फिर जो बड़े ममौ ने किया उसे देख कर मेरी आँखें फट गयीं। बड़े मामू ने अपने पूरे वज़न को ढीला छोड़ दिया और उनका लंड एक भीषण जानलेवा धक्के से सुशी बुआ की कसी गांड में समा गया।
सुशी बुआ की चीख कमरे में गूँज उठी, " नहींईई ई उननननन मर गयी माँ मैं तो।" बिलबिला उठी दर्द से सुशी बुआ।
बड़ी मामू ने अपनी बहु की हृदय हिला देने वाली गुहार को अनदेखा कर अपने लंड को बाहर निकाला और फिर उसी बेदर्दी से बुआ की गांड में ठूंस दिया। बुआ अपने जेठ के भारी भरकम शरीर के नीचे दबीं सिर्फ बिलबिलाने और चीखने और अपनी गांड को अपने जेठ के हवाले करने के अल्वा कोई और चारा नहीं था।
छोटे मामू ने भी मौका देखा और मेरे कान में फुसफुसाए ,"नेहा बेटी अब तेरी गांड का नंबर है ?"
इस से पहले मैं कुछ बोल पाती छोटे मामू के लंड ने मेरी चूत में एक नया रतिनिष्पत्ति का तूफ़ान फैला दिया। जब तक मैं झड़ने की मीठी पीड़ा से निकल पाती छोटे मामू ने मेरे गोल गोल चूतड़ों को फैला कर मेरी चूत के रस से लिसे लंड को मेरी गांड के ऊपर दबाने लगे। भगवान् की दया से उन्होंने अपने बड़े भैया की तरह मेरी गांड में अपना वृहत लंड नहीं ठूंसा। पर धीरे धीरे इंच इंच करके दबाते रहे। मैं सिसकी और होंठ दबा कर दर्द को पीने लगी। छोटे मामू का लंड जड़ तक तक मेरी गांड में समा गया,तब तक मेरी साँसे अफरा तफरी में थीं। छोटे मामू ने मेरे सीने के नीचे हाथ डाल कर मेरे पसीने से गीले उरोज़ों को अपने फावड़े जैसे हाथों में जकड़ लिया।
मैं अब छोटे मामू के लंड की हर नस को अपनी गांड में महसूस करने लगी थी। छोटे मामू ने धीरे धीरे एक एक इंच करके अपने लंड का मोटा लम्बा तना मेरी गांड से बाहर निकाल लिया सिर्फ उनका बड़े सेब जैसा सुपाड़ा ही रह गया थे मेरी गांड के छल्ले के भीतर। मैं मन ही मन छोटे मामू को धन्यवाद दे रही थी, अपनी भांजी की प्यार और आराम से गांड मरने के लिए। फिर छोटे मामू ने जैसे मेरे विचारों को पढ़ लिया। ठीक अपने बड़े भैया जैसे पूरे वज़न से मेरी गांड लंड ठूंस दिया। मुझे लगा जैसे कोई गरम लौहे का खम्बा घुस गया हो मेरी गांड में। मेरी चीख निकली तो निकली पर मेरी आँखें बहने लगीं। दोनों मामा बेददृ से चोदने लगे सुशी बुआ और मेरी गाँडों को। बड़े मामू अपनी बिलबिलाती बहु की गांड का मंथन निर्मम धक्कों से कर रहे थे। छोटे मामू भी अपने बड़े भैया के पदचिन्हों के ऊपर चलते हुए अपनी छोटी बहन की षोडसी बेटी की गांड का मर्दन उसी बेदर्दी से कर रहे थे।
दस पंद्रह मिनटों में बुआ और मैं चीखने बिलबिलाने की जगह सिसकने लगीं। कमरे में हम दोनों की गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी। दोनों मामाओं के लंड बुआ और मेरी गांड के मक्खन को मथ रहे थे। हम दोनों की गांड के मक्खन चिकने हो गए उनके लंड तेज़ी से हम दोनों की गांड मरने सक्षम थे। दोनों बहियों में होड़ सी लग गयी की कौन बुआ और मेरी ऊंची सिसकारियां निकलवा सका था। बुआ और मैं तो लगातार झड़ रहीं थीं। घंटे भर बाद दोनों हलकी सी गुर्राहट मारी और हम दोनों की गांड भर दी अपने गाड़े गर्म वीर्य से।
जब हम दोनों को होश सा आया तो बड़े मामू सुशी बुआ के गोरे नितम्बों को चाट कर साफ़ कर रहे थे। छोटे मामू ने भी में मेरे चूतड़ों को अपने थूक से चमका दिया थे और अब मेरी सूजी लाल गांड के ढीले छल्ले के अंदर अपनी जीभ को डाल कर मेरी गांड के मथे मक्खन को तलाश रहे थे।
सुशी बुआ ने अपने पति, मेरे छोटे मामू से कहा ,"अरे सुनिए तो। मुझे तो चखा दो मेरे प्यारी भांजी की गांड के रस को। "
छोटे मामू ने मेरी गांड के रस से लिसे लंड को सौंप दिया अपनी अर्धांगिनी के मुँह के ऊपर और मुझे मिल गया सुशी बुआ के मीठी गांड के मक्खन से लिसे बड़े मामू का लंड। हम दोनों तो स्वर्ग में थी। सुशी बुआ की गांड के रस ने मेरी लार टपका दी। हम दोनों ने दिल लगा कर दोनों लंडों को चूम चाट कर चमका दिया।
लेकिन हम दोनों के प्यार ने दोनों लंडों को लौहे के तने जैसा तन्ना दिया ,दोनों मामा तैयार थे अपने फौलादी अमानवीय आकार के लंड हांथो में लिए।
"छोटू चल अब जैसा अंजनी और सुन्नी के साथ किया था, कब तेरी भाभी अपने मायके गयी थी, वो पोजीशन बना दे इस बार," सुशी बुआ की आँखें चकने लगीं। मैं भी वासना की बिजली से मचल उठी। मेरी मम्मी और भाभी को मेरे दोनों मामाओं ने किसी ख़ास अंदाज़ में चोदा थे।
छोटे मामू दिवान पे लेट गए और सुशी बुआ की विशाल गांड के चूतड़ उनके मुँह के ऊपर थे। बड़े मामू ने मेरी चूत को अपने छोटे भाई से लंड के ऊपर टिका दिया। जैसे तैसे मैंने छोटे मामू का पूरा लंड ले लिया अपनी चूत में। फिर मेरी तौबा बुलवाई बड़े मामू ने। मेरी गांड में उनका लंड मुश्किल से घुस पा रहा था। जैसे ही उनका सुपाड़ा अंदर घुस तो समझिये किला फतह हो गया। बड़े मामू ने मेरे गदराये चूतड़ों को कस के जकड़ कर पांच छह धक्कों में अपना लंड पुअर का पुअर जड़ तक ठूंस दिया मेरी नन्ही षोडसी गांड में। बड़े मामू ने मेरा मुँह दबा दिया थे बुआ की फैली गांड के ऊपर। मेरी चीखें ज़रूए बुआ की गांड के ऊपर गुदगुदी दे रहीं होंगी।
फिर दौड़ने मामाओं ने पांच दस मिनटों में ले से बाँध ली मेरी दोहरी चुदाई की। अब आया वो मौका जिसको मैं हमेशा याद रखुंगीं। बड़े मामू ने मेरे हाथ को सुशी बुआ की घने झांटों से ढकी छूट के ऊपर टिका दिया बाकि काम मेरी कल्पना ने कर दिया।
मैंने अपनी गांड और चूत की एक साथ दर्दीली चुदाई के दर्द को बुआ की चूत के साथ बांटने ने निश्चय कर लिया। हाथ की नोक बना कर मैंने सुशी बुआ की चूत चोदने लगी। धीरे धीरे उनकी सिसकियाँ निकलने लगीं। मैंने मौका देख कर कलाई तक ठूंस दिया अपना हाथ सुशी बुआ की चूत में। सुशी बुआ दर्द से बिबिला उठीं ,"मार देगी नेहा अपनी बुआ को। धीरे धीरे चोद तेरी माँ की तरह इस चूत में से तेरे तरह की रंडी भांजी नहीं निकली है अभी तक। "
छोटे मामू के मज़बूत फावड़े जैसे हाथों में बुआ को हिलने डुलने नहीं दिया। मैंने बुआ के कुंवारे गर्भाशय की ग्रीवा को महसूस किया। मैंने एक एक कर अपनी उँगलियों से बुआ के गर्भाशय के ग्रीवा उर्फ़ र्सर्विक्स के द्वार को खोलने लगी। जैसे ही मुझे लगा की मेरी पाँचों उँगलियों की नोक उनके गर्भाशय के नन्हे द्वार में फंस गयीं है। मैंने बेदर्दी से अपना हाथ पाँचों उँगलियों के पोरों तक ठूंस दिया। बुआ की चीख गूँज उठी कमरे में। दर्द से बिलबिलाती बुआ ने गुहार लगायी, "मर गयी बेटी धीरे धीरे मार अपनी बुआ की चूत मुट्ठी से। "
मैंने बुआ की गुहार को अनदेखा कर अपनी उंगलयों को घुमा घुमा कर बुआ के गर्भाशय के द्वार को चौड़ाने लगी।जब मुझे लगा की बुआ की चीखें सिसकारियों में बदल गयीं हैं। तभी मैंने पूरे ज़ोर से ठूंस दिया अपना पूरा हाथ बुआ के गर्भाशय में। बुआ तपड़ उठी दर्द से जैसे किसी ने उन्हें बिजली के जीवित तार से छु दिया हो।
मेरा हाथ और कलाई अब बुआ की चूत में थे। मैंने धीरे धीरे बस के गर्भाशय की चुदाई शुरू कर दी। मेरे निर्मम मुट्ठ-चुदाई से बुआ की कोमल चूत और गर्भाशय के दीवारों से खून निकल गया था। पर अब अचानक बुआ कल्पने लगीं वासना के ज्वर से , "चोद दे अपनी बुआ की चूत नेहा बेटी। फाड़ दाल अपनी बुआ के बंजर गर्भ को। हाय मैं झड़ने लगीं हूँ। और जोर से नेहा आ आ आ आ आ। "
कमरे में अब भीषण चुदाई का माहौल बन गया। मैं अब पागलों की तरह निर्मम धक्कों से बुआ की चूत और गर्भाशय को कोहनी तक हाथ ठूंस कर चोद रही थी। मेरे दोनों मामा भी उतनी ही बेदर्दी से मेरी चूत और गांड चोद रहे थे। पता नहीं कब तक चला इस चुदाई सिलसिला। डेढ़ घंटे बाद बुआ और मैं बेहोशी के आलम में दोनों मामाओं के गरम वीर्य को सटक रहीं थीं।
बुआ की चूत में से टपकते खून की बूंदो को चाट कर साफ़ कर दिया मैंने।
फिर बुआ ने सुनहरी शर्बत माँगा अपने पति और जेठ से। दोनों ने बारी बारी से अपना सुनहरी गर्म शर्बत आधा आधा बाँटा हम दोनों के बीच में। हमारी संतुष्टि के बाद बुआ और मैंने भी दोनों मामाओं को अपन्ना सुनहरी शर्बत ईमानदारी से आधा आधा बाँट कर पिलाया। उस रात कितनी ही मुद्राओं में चोदा बड़े और छोटे मामू ने मुझे और बुआ को। सुबह जब मैं उठी तो बहुत देर हो गयी थी।
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