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Adultery नेहा का परिवार : लेखिका सीमा Completed!
#41
Update 37


"अब्बू चोदिये अपनी बेटी को ," मैं मस्ती के आलम में जल रही थी। 

अब्बू का दिल भी अब मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा देने वाली चुदाई का था। उन्होंने अपना लन्ड मेरी चूत पूरी रफ़्तार से अंदर बाहर 

करने लगे। मैं मज़े और दर्द के मिले जुले आलम में डूबने लगी। अब्बू का लन्ड अब फच फच की आवाज़ें निकलता मेरी चूत की तौबा 

बुला रहा था। 

" उन्न्नन्न अब्बू ऊ ऊ ऊ ऊ आनननगगगग मममममम," मेरी सिसकियाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। 

अब्बू ने हचक हचक कर मेरी चूत मारनी शुरू कर दी। मैं थोड़े लम्हों की चुदाई से ज़ोरों से झड़ गयी। अब्बू ने मेरी पसीने से भीगी 

चूचियों को मसलते हुए मेरी चूत में अपना लन्ड रेल-इंजन के पिस्टन जैसे पेलने लगे थे। मेरी सिसकारियां और हलकी हलकीमज़े में 

डूबीं चीखें कमरे में गूँज उठीं। 

अब्बू का लन्ड मूसल की तरह मेरी चूत कूट रहा था। मेरी चूत फड़क फड़क कर अब्बू का बोतल जैसे मोटे लन्ड को कसने की 

नाकामयाब कोशिश करने लगी। पर अब्बू का लन्ड अब अपनी बेटी की चूत की तौबा बुलवाने के कामना से और भी मोटा लंबा लग 

रहा था। लेकिन अल्लाह गवाह है इस दिन का मेरी चूत ने छह साल से इन्तिज़ार किया था। इस लम्हे की मस्ती से मैं गहरे पानी के 

भंवर में डूबने लगी। 

अब्बू ने मेरी भारी जांघों को मोड़ अर मेरे घुटने मेरे सर के ऊपर तक पहुँच कर अब और भी ताकतवर धक्कों से मेरी चूत मारने लगे। 

मेरी चूत में से अब्बू के हर धक्के से फचक फचक के आवाज़ उठ रही थी। मैं अब लगातार एक लड़ी की तरह झड़ रही थी।

अब्बू ने ना जाने कितनी देर तक मेरी चूत मारी मैं तो झड़ झड़ के इतनी थक गयी की मेरी ऊंची सिसकारियां भी अब फुसफुसाहट बन 

गयी थीं। 

जब अब्बू का लन्ड मेरी चूत में खुला तो मैं उनके गरम उपजाऊ वीर्य की बारिश से बिलबिला उठी। इतना मज़े का अहसास था वो। 

अब्बू का लन्ड उनके वीर्य की हर फौवारे से पहले ऐंठ सा जाता था मेरी चूत में। 

फिर हम दोनों पसीने से भीगे एक दुसरे की बाँहों में गहरी गहरी सांस लेते बिस्तर पे ढलक गए।

जब मुझे होश आया तो अब्बू का पूरा वज़न अपने ऊपर पा कर मेरा दिल प्यार से भर गया। उनका लन्ड थोड़ ढीला हो गया था पर मेरी 

चूत फिर भी इतनी फैली हुई थी उसकी मोटाई के इर्द-गिर्द। 

"नूसी बेटा , मुझे अब पेशाब लगा है ," अब्बू ने मेरी नाक की नोक को चुभलाते हुए कहा। 

" और मुझे प्यास भी लगी है ," मैंने मौका देखा कर अब्बू के लन्ड को अपनी चूत से भींचते हुए कहा। 

गुसलखाने में अब्बू ने पहले अपनी प्यास बुझायी। मेरा सरारती सुनहरी शरबत की धार की एक एक बूँद अब्बू ने प्यार से सटक ली। 

फिर मैंने अब्बू का भारी लन्ड अपने खुले मुँह के आगे लगा कर अपनी प्यासी आँखे अब्बू की प्यार भरी आँखों में अटका दीं। जैसे ही 

मेरा मुँह अब्बू के खारे पेशाब से भर गया तो उसके मज़े से ही मेरी चूत फड़कने लगी। मैंने भी दिल खोल कर अब्बू के की हर बूँद 

को चटखारे लेते पी गयी। 

अब्बू ने मुझे गोद में उठा लिया। एक दुसरे के खुशबूदार पेशाब की महक से भरे हमारे खुले मुँह ज़ोर से चुपक गए। 

कमरे में पहुँच आकर अब्बू ने मुझे बिस्तर के पास उतार दिया। 

"अब्बू , नेहा ने आपकी जादुई चटाई के बारे में बताया था क्या अपनी बेटी को नहीं मज़ा देंगें उस जादुई चटाई का ? ,"मैंने इठलाते 

हुए अब्बू से पूछा। 

"अपनी बेटी के लिए तो जान भी दे देंगें नूसी ,"अब्बू ने मेरे फड़कते हुए उरोज़ों को मसलते हुए कहा। 

अब्बू ने बड़े बड़े दानेदार चटाई को बिस्तर पे फैला दिया। मुझे समझ आने लगा कि कैसे तुझे इतना मज़ा अय्या था उस चटाई के ऊपर 

लेट कर चुदवाने में। 

"मैंने अब्बू के भारी भरकम चौड़े मांसल बालों से ढके चूतड़ों को सहलाते हुए कहा ,"अब्बू अपनी बेटी की गांड की सील कब तोड़ेंगें 

आप ?" मैंने उनके दोनों चूतड़ों को प्यार से चूमते हुए पूछा। 

"बेटा गांड मरवाने में बहुत दर्द होगा आपको ,"अब्बू ने मुझे बाँहों में भर कर दिल भर चूमा, "आदिल बेटे ने आपकी गांड कैसे अकेली 

छोड़ दी अब तक ?" 

"दर्द हो या ना हो अब्बू गांड की सील तो बस आप ही तोड़ेंगें। आदिल ने मेरी गांड आपके लिए ही कुंवारी छोड़ी है ," मेरी बात सुन के 

अब्बू की आँखे खिल उठी। 

"यदि आपका बहुत दिल है तो ज़रूर गांड मारेंगें आपकी। बहुत ध्यान से मारेंगें नूसी जिस से आपको काम से काम दर्द हो ,"अब्बू ने 

मुझे चटाई पे पेट के बल लिटा दिया। 

मैंने अपना मुँह बायीं ओर मोड़ कर बेसब्री से छोटी बच्ची की तरह ज़िद करते हुए कहा ,"अब्बू आपको हमारी कसम है जो हमारी गांड 

को धीरे धीरे चोदा आपने। हमें पता है कि यदि लड़की की चीखें ना निकलें, और उसकी आँखें बरसात की तरह न बरसें तो मर्द को 

गांड मारने का मज़ा नहीं आता। आप हमारी गांड उसी तरह बेदर्दी से मारें जैसे आपने शन्नो मौसी की कुंवारी गांड मारी थी अम्मी की 

मदद से।"

अब्बू की मुस्कान और चेहरे पे फैली चमक से मुझे बता दिया कि मेरे अब्बू को अपनी बेटी के दिल की चाहत का पूरा इल्म हो चला 

था।
अब्बू कुछ और कहे बिना मेरे पट्ट बदन के ऊपर अपने पूरे वज़न से लेट गए। उनके भारी बदन से दब कर मेरे दोनों उरोज़ 

और सारा बदन चटाई के मोटे मोटे दानों के ऊपर कुचल गए। 

अब्बू को अब कुछ और कहने की ज़रुरत भी नहीं थी। उन्होंने मेरी गुदाज़ भारी भरकम जांघों को को फैला कर पीछे से मेरे 

कसी तंग चूत में अपना लन्ड ठूसने लगे। उस तरह लेते हुए मेरी चूत तंग हो गयी थी। अब्बू का घोड़े जैसा लन्ड अब और 

भी मोटा महसूस हो रहा था। 

अब्बू ने मेरे वासना से जलते लाल मुंह को चूमते हुए मेरी चूत लंबे धक्कों से मारते हुए मेरे कान के पास फुसफुसाए ,"नूसी 

बेटा जब हम आपकी गांड मारेंगें तो जितना दर्द भी हो आपको हम धीमे नहीं होंगें। "

मैं अब्बू के लन्ड के जादू से वैसे ही बेचैन हो चली थी और अब उनके आने वाले लम्हों के हुलिए से मेरी चूत में रस की बाढ़ 

बह चली। 

अब्बू ने मेरी चूत में एक और धक्का मारा और मस्ती और दर्द से मेरी हलकी सी चीख का मज़ा लेते हुए मेरे फड़कते 

नथुनों को चूमने चूसने लगे। 

"नूसी बेटा जब आपके अब्बू का लन्ड अपनी बेटी की गांड मारते हुए आपकी गांड के रस से लिस जाएगा तो कौन उसका 

स्वाद चखेगा ?"अब्बू ने मुझे और भी वासना के मज़े से चिढ़ाया। 

मैं अब झड़ने वाली थी , "अब्बू मुझे झाड़िए अब। आपकी बेटी अपने अब्बू का लन्ड चूस कर साफ़ कर देगी अपनी गांड 

मरवाने के बाद। "मैं मस्ती के आलम से जलती हुई बदमस्त हो गयी थी। 

अब्बू चूत को और भी ज़ोर से चोदने लगे। उनके हर धक्के से मेरे उरोज़ , मेरी चूत का मोटा लंबा सूजा दाना चटाई के 

दानों से मसल उठता। मेरे सारे बदन पे उन दानों की रगड़ अब्बू की चुदाई के मज़े में और भी इज़ाफ़ा कर रही थी। 

मैं कुछ लम्हों की चुदाई से भरभरा कर झाड़ उठी। अब्बू ने बिना रुके आधा घंटे और मेरी चूत मारी। मैं चार पांच बार झाड़ 

गयी थी। अब्बू ने अपना लन्ड मेरी चूत में से बाहर निकाल लिया। अब आ गया था वो लम्हा जिसका मुझे छह साल से 

इन्तिज़ार था। 

अब्बू ने मेरे मांसल भारी नितम्बों को अपने फावड़े जैसे बड़े हाथों से मसलते हुए उन्हें दूर तक फैला दिया। उनके सामने अब 

मेरी गांड का नन्हा छल्ला आने वाली गांड - चुदाई के मज़े और दर्द के सोच से फड़क रहा होगा। अब्बू ने झुक कर मेरी 

गांड के ऊपर अपने मीठे थूक की लार टपका दी। अब्बू का लन्ड मेरी चूत के रस से लिसा बिलकुल गीला था। 

अब्बू ने अपना मोटे सेब जैसा सूपड़ा मेरी गांड के छले पे टिकाया और बिना कोई इशारा दिए एक गांड-फाड़ू धक्का मारा। 

मैं दर्द से बिलबिलाते हुए चीख उठी। 

अब्बू का पूरा सूपड़ा एक धक्के में ही मेरी गांड में धंस गया था। मुझे लगा जैसे मेरी कुंवारी गांड में जैसे किसीने गरम मोटी 

सलाख ठूंस दी हो।

मेरी आँखे आंसुओं से भर गयीं। अब्बू अपना वायदा पूरी तरह से निभाने वाले थे। मेरी गांड की अब खैर नहीं थी। मैंने 

अपनी गांड को अल्लाह और अब्बू के भरोसे छोड़ दिया। और बस अब्बू के लन्ड को अपनी गांड में जड़ तक लेने के लिए 

बिलबिलाने लगी। चाहे जितना भी दर्द हो। मुझे अब अपनी गांड फटने का भी डर नहीं था। यदि खून भी निकले फटने से तो 

कुछ दिनों में ही दुरुस्त हो जाएगी। पर उस रात अब्बू के लन्ड से पहली बार गांड मरवाने का जन्नत जैसा मज़ा बार बार तो 

नहीं मिलने वाला था। 

अब्बू ने बिना मेरे सुबकने बिलबिलाने की परवाह किये अपने वायदे को निभाते हुए अपना पूरा वज़न ढीला छोड़ कर मेरे

बदन के ऊपर गिर पड़े। उनके भारी वज़न से ही उनका लन्ड तीन चार इंच और मेरी बिलखती गांड में ठूंस गया। मैं अब दर्द 

से बिलबिला रही थी। मेरी आँखें गंगा जमुना की तरह बह रहीं थीं। मैं जितना भी कोशिश करती पर मेरे सुड़कने के बावज़ूद 

मेरे आंसू मेरे नथुनों में बह चले। 

अब्बू ने मेरे हाथों की उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फंस ली और मेरे हांथो को पूरा फैला कर अपने लन्ड की कई और इंचोन 

को मेरी कुंवारी गांड में ठूंसने लगे। 

मेरा सुबकना बिलबिलाना मेरे मज़े के दरवाज़े पे खटखटाहट दे रहा था। अब्बू के पहलवानी भरी बदन और चूतड़ों की 

ताकत के कमाल से उनके हर धक्के से उनके घोड़े जैस लन्ड की कुछ और इन्चें मेरी गांड में सरक रहीं थी। 

जब मैंने अब्बू की घुँघराली खुरदुरी झांटों की खुरच को अपने चिकने गुदगुदे नितम्बों पे महसूस किया तो मैं समझ गयी कि 

अब्बू ने किला फतह कर लिया था। उनका टेलीफोन के खम्बे जैसा मोटा लंबा लन्ड मेरी कुंवारी गांड में जड़ तक धंस गया 

था। 

मैं दर्द से बिलबिलाती हुई रो तो रही थी पर मेरे अंदर फिर भी एक अजीब से पथभ्रष्ट चाहत थी की अब्बू मेरी गांड खूब 

ज़ोर से मारें और मुझे दर्द से बेहोश कर दें। वासना में जलते हुए ना जाने मेरे दिमाग़ में कैसे कैसे ख्याल आने लगे थे। मैं 

बस अब्बू के लिए उस रात को यादगार बनाना चाह रही थी।

अब्बू ने अपना पूरा लन्ड बाहर निकाल कर दो धक्कों में फॉर से मेरी जलती गांड में ठूंस दिया। मैं सुबकते हुए चीख उठी। पर 

अब्बू ने बिना हिचके जैसे मैंने उनसे वायदा लिया था वैसे ही हचक हचक मेरी गांड को कूटने लगे। 

ना जाने कितनी देर तक मैं दर्द से बिलबिलाती रोती सुबकती रही पर एकाएक मेरी गांड में से एक मज़े की लहर उठ चली। 

अब्बू ने भी उसे महसूस कर लिया। उन्होंने मेरे आंसुओं और बहती नाक से सने मुँह को अपनी ओर मोड़कर उसे अपनी लंबी खुरदुरी 

जीभ से चूसने चाटने लगे। उन्होंने मेरे फड़कती नाक के दोनों नथुनों को भी अपनी जीभ से कुरेद कुरेद कर मुझे मस्ती के आलम में 

और भी गहरे डूबा दिया। 

"हाय अल्लाह ! अब्बू ना जाने कैसे अब मेरी गांड में से मज़ा उठने लगा है ," मैं वासना के बदहोशी में बुदबुदायी। 

"नूसी बेटा इसमें अल्लाह नहीं अब्बू के लन्ड का हाथ है ," अब्बू ने अपने दांतों से मेरे कानों के लोलकियों को चुभलाते हुए कहा। 

"अब्बू ………… ऊ…………. ऊ …………….ऊ ……………….. ओऊ ………….फिर मारिये ना मेरी गांड 

………….ऊन्नह्ह्ह्ह्ह………….. ," मैं बिलख उठी आने वाली मस्ती की चाहत से। 

अब्बू अब दनदना कर मेरी गांड मारने लगे। मेरी चूचियां चटाई की रगड़ से दर्दीले मज़े से कुचली हुईं थीं। मेरा दाना अब्बू के हर 

धक्के से चटाई के दानों से रगड़ कर मचल उठता था। 

मेरा सारा बदन ना जाने कितने मज़े के असर से जल रहा था। 

अब्बू ने तब तक मेरी गांड की चुदाई की जो तेज़ कड़कड़ी बनाई वो घण्टे तक नहीं ढीली हुई। मैं तब तक ना जाने कितनी बार 

झाड़ गयी थी। आखिर मैं चीख मार कर बेहोश हो गयी। 

जब मुझे होश आया तो अब्बू मेरे बदन के ऊपर वैसे ही लेते हुए थे। उनके तन्नाया हुआ लन्ड उसी तरह मेरी गांड में धंसा हुआ था। 

"नूसी अब आपकी गांड मुझे आपका खूबसूरत चेहरा देखते हुए मारनी है ," अब्बी ने मेरी नाक को चूसते हुए कहा। 

"अब्बू आपकी बेटी की गांड और चूत तो अब आदिल के साथ साथ आपकी भी है। जैसे मर्ज़ी हो वैसे ही मारिये आप ," मैंने प्यार 

से कहा। 

अब्बू ने अपना लन्ड एक झटके से मेरी तड़पती गांड से निकल तो मैं दर्द से चीखे बिना नहीं रह सकी। 

उनका लन्ड मेरी गांड के रास से पूरा लिसा हुआ था। तुरंत घुटनों के ऊपर झुक कर इठला कर बोली , "देखिये ना अब्बू ना जाने 

किस रंडी लड़की ने मेरे अब्बू का लन्ड गन्दा कर दिया है ?"

"यह गन्दा नहीं बेटा जन्नत के ख़ज़ाने से लिसा हुआ है ,"अब्बू ने मेरे घुंघराले बालों को सहलाते हुए कहा। 

" चलिये जो भी हो मैं ही साफ़ कर देतीं हूँ अपने प्यारे अब्बू के प्यारे लन्ड को ," मैं अब्बू के प्यार भरे इज़हार से ख़ुशी से दमक 

उठी।

मैंने अब्बू के फड़कते हर लन्ड को चूस चूम कर उसकी हर इंच को बिलकुल साफ़ कर दिया। अब उनका लन्ड मेरे थूक से 

लिस कर चमक रहा था। 

अब्बू ने थोड़े बेसबरेपन से मुझे चित्त लिटा कर मेरी भारी जांघों को पूरे मेरे कन्धों की ओर मोड़ कर मेरी गांड बिस्तर से ऊपर 

उठा दी। फिर बिना देर किये मेरी अभी भी खुली गांड के छेद में अपने लन्ड का मोटा सुपाड़ा जल्दी से फंसा दिया। मैं जब 

तक कुछ समझ सकती अब्बू ने एक बार फिर प्यार भरी बेदर्दी से अपना सारा का सारा हाथी का लन्ड मेरी गांड में दो तीन 

धक्को से ठूंस दिया। 

मैं अब उतने दर्द से नहीं चीखी जैसे पहली बार चीखी थी। अब्बू ने मेरी जांघों को अपनी बाँहों पे डाल कर अपने हाथों से मेरे 

पसीने से लतपथ उरोज़ों को कस कर अपने बड़े मज़बूत हाथों से मसलते हुए मेरी गांड की तौबा बुलवाने लगे। उनका लन्ड 

एक बार फिर से मेरी गांड के रस लिस कर चिकना हो गया। मेरी गांड के मक्खन की चिकनाहट से अब्बू का लन्ड अब फिर 

से सटासट मेरी गांड में इंजन के पिस्टन की राफ्टर और ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था। मैं अब वासना से सुबक रही

थी दर्द न जाने कहाँ चला गया। 

अब्बू जब गांड -चुदाई की ताल तोड़ दांत किसकिसा कर कई बार एक ही धक्के से मेरी गांड में अपना पूरा लन्ड उतार देते 

तो मेरी सिसकारियां कमरे में गूँज उठती।

"अब्बू ऊ ……. ऊ …….. ऊ ……… ऊ ………..ऊ ………..ऊवनन्ननन …………. उंन्नन्नन्न ," मैं सिसकते हुए बुदबुदाई। 

मेरे झड़ने की लड़ी एक बार फिर से लंबी पहाड़ी जैसी ऊंची हो चली। 

मैं अब अब्बू के महालण्ड से अपनी गांड के लतमर्दन के आगे घुटने टिक कर बस अपनी मज़े में लोट पोट होने लगी। 

अब्बू का लन्ड अब फचक फचक की आवाज़ें निकलता मेरी गांड को कूट रहा था। 

अब्बू के गले से कभी कभी 'उन्ह उन्ह ' की आवाज़ें उबाल पड़तीं। अब्बू अब और भी कोशिश कर रहे थे अपने धक्कों में और 

भी ताकत लगाने की। मेरी गांड की तो पहले से ही शामत आ चुकी थी। 

पर उस शामत मेरी गांड और चूत में वासना का तूफ़ान उठ रहा था। मेरी चूत कसमसा कर बार बार झड़ रही थी। मैं अब 

सिसकने के सिवाय कुछ भी बोलने ने नाकामयाब थी। मेरी मस्ती अब्बू के लन्ड से उपजी वासना की आग से और भी परवान 

चढ़ रही थी। 

अब्बू ने उसी ताकत और रफ़्तार से मेरी गांड की चुदाई ज़ारी रक्खी जब तक मैं इतनी बार झाड़ चुचोद की थी की मेरे होश 

हवास उड़ गए। 

अब्बू ने मेरी हालात पर तरस खा कर अपनी चुदाई की रफ़्तार बड़ाई। इस बार अब्बू सिर्फ अपने मज़े के लिए मेरी गांड रहे 

थे। 

जब अब्बू का लन्ड मेरी गांड की गहराइयों में अपने गरम उपजाऊ वीर्य की बारिश करने लगा तो मैं एक बार इतनी ज़ोर से 

झड़ गयी कि पूरी तरह गाफिल हो चली।

जब मैं थोड़े होशोहवास में वापस आयी तो अब्बू प्यार से मुझे चूम रहे थे। मैंने भी अपनी बाँहों को अब्बू के गले का हार बना 

दिया और उनके खुले मुँह में अपनी जीभ घुस कर उनके मीठे थूक का स्वाद चखने लगी। 

"अब्बू मेरी गांड का हलवा आपने पूरा मैथ दिया है। मुझे अब बाथरूम जाना है ,"मैं बेशर्मी से अब्बू को चिड़ा रही थी। 

"बेटा बाथरूम तो मुझे भी जाना है ," अब्बू मुझे गुड़िया की बाँहों में उठा कर खड़े हो गए। उनका लन्ड अभी भी मेरी गांड में 

ठुसा हुआ था। 

बाथरूम में जाते ही अब्बू ने कहा ,"नूसी बेटा अपनी गांड कस लो। पहली गांड की चुदाई का मीठा रस तो मैं नहीं छोड़ने

वाला। " अब्बू की चाहत से मुझे और भी मस्ती चढ़ गयी। अब्बू मेरी गांड की कुटाई के बाद अपना वीर्य मेरी गांड से पीना 

चाह रहे थे। 

"अब्बू पता नहीं और क्या क्या निकल जाये मेरी गांड में से ," मैंने हिचकते हुए कहा। 

"नूसी बेटा आपकी गांड में से जो निकले वो मेरे लिए नैमत जैसे होगा ,"अब्बू ने अपना लन्ड निकल और मैंने गांड कस ली। 

मैंने अपनी गांड के छेद को धीरे धीरे खोल और मेरी गांड जो अब्बू के वीर्य से लबालब भरी थी ढीली होने लगी। 

अब्बू ने बिना हिचक सब कुछ सटक गए।

फिर अब्बू ने मेरा सुनहरी शरबत पिया। अब मेरी बारी थी अब्बू के लन्ड को चूस चाट कर साफ़ करने की। 

जब मैंने अपनी गांड के रस और अब्बू के वीर्य से लिसे उनके लन्ड को बिलकुल साफ़ कर दिया तो मैंने उनके खारे सुनहरी 

शरबत की सौगात मांगी। 

बिना एक बून्द जाय किया मैंने अब्बू सारा शरबत गटागट पी गयी। 

"अब्बू मेरी गांड का रस मुझे भी बुरा नहीं लगा ,"मैंने अब्बू के मूँह को चूमते हुए कहा। 

"बुरा! नूसी बेटा मुझे तो किसिस मिठाई से भी ज़्यादा मीठा लगा इसीसलिए मुझे और भी चाहिए ,"अब्बू ने प्यार से मुझे 

चूमा । 

"तो फिर अब्बू आपको मेरी गांड फिर से मारनी पड़ेगी ," मैंने बेटी के प्यार से इठलाते हुए कहा। 

अब्बू ने जवाब में मुझसे जो माँगा तो मैं हैरत से भौचक्की रह गयी। पर अब्बू की आवाज़ में इतनी चाहत थी की मैं भी उनकी 

विकृत वासना की आग में जल उठी। 

अब्बू और मैंने जो किया वो मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा। उस से मैं और अब्बू और भी करीब आ गए एक मर्द और औरत की 

तरह ही नहीं पर अब्बू और बेटी की तरह भी। 

कमरे में वापस आ कर अब्बू ने रात देर तक मेरी चूत और गांड को इतनी बार चोदा की मैं तो गिनती ही भूल गयी। जब मैं 

एक बार फिर से बेहोश हो गयी तभी अब्बू ने मुझे छोड़ा।


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RE: नेहा का परिवार : लेखिका सीमा do not comment till posting complete story - by thepirate18 - 24-07-2019, 07:42 AM



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