23-07-2019, 06:59 PM
Update 35
जब मैं खीरा लेकर शयनघर में पहुंची तो जीजू ने एक बार फिर से घोड़ी बनी शानू को पीछे से चूम , चाट कर फिर से चरम-
आनंद के करार पर पहुंचा कर उसे भूखा हो गए।
"जीजू हाय अम्मी कितना तड़पा रहें हैं आप आज ? एक बार तो झाड़ दीजिये मुझे रब के नाम पर," शानू कुलबिला रही। थी
उसकी अनबुझी प्यास को अनदेखा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर पटक दिया। पहले तो मैं चीखी फिर खिखिला कर हंस
दी। उन्होंने मेरे फ़ैली जांघों के बीच में वासना की आग में जल कर बिलखती शानू को गुड़िया की तरह उठा कर फिर से घोड़ी
की तरह टिका दिया। मेरे हाथ का खीरा ना जाने कब जीजू के हाथ में चला गया था।
उन्होंने एक ही झटके में सारा का सारा खीरा शानू की गीली कुलबुलाती चूत में ठूंस दिया।
शानू चिहुंक कर उठी ," हाय जीजू दर्द हुआ मुझे। क्या घुसा दिया आपने मेरी चूत में ?"
मैंने शानू के थिरकते चूतड़ पर ज़ोर से थप्पड़ मारा ," रांड मेरी नन्ही बहन जिस खीरे से मेरी गांड की बर्बादी करवाने वाली थी
उसका कम से कम चूत में तो ले कर स्वाद ले ले। "
"हाय नेहा चूत में जीजू का लण्ड चाहिए। पता नहीं क्यों तड़पा रहें आज ? "शानू की कमसिन आवाज़ में औरताना वासना की
गहरायी ना जाने कब और कहाँ से आ गयी।
" छोटी साली साहिबान यदि अपने लण्ड मैं आपकी चूत में डालूं तो रो धो तो नहीं करोगी ?" जीजू ने खीरा तीन चार बार शानू
की चूत में आगे पीछे किया और शानू की चूत के रस लिसे खीरे को उन्होंने मेरी के तंग छेद पर रख कर धीरे नोक को दबाते
गए और मेरी गांड का कसा छेद धीरे धीरे हार मान कर खुलने लगा।
जैसे ही खीरे नोक मेरी गुदा की मखमली दीवारों के भीतर घुसी जीजू ने एक झटके से पूरा खीरा मेरी गांड में ठूंस दिया।
" हाय जीजू धीरे धीरे। यह आपकी बड़ी साली और बहन की गांड है आपकी छोटी रंडी साली की चूत नहीं जो गधे का लण्ड
भी खा जाये ," मैं दर्द से बिलबिला उठी और जीजू को ताना मारने से पीछे नहीं हठी।
" साली चुप कर जल्दी से जीजू को खीरा गांड में डालने दे। फिर मेरी चूत मारने के लिए फारिग होंगें? वैसे भी जीजू का लण्ड
घोड़े के लण्ड को भी शर्मिंदा कर देने में काबिल है। किस गधे की नौबत है जो मेरे जीजू से मुकाबला करे लण्ड के मामले में ?"
शानू चुदने को बेताब जीजू को रिझाने लगी।
"जीजू ने मेरी ओर मुसकरा कर आँख मारी और मेरी टी शर्त से शानू की चूत रगड़ने लगे। मेरी आँखे फट गयीं। जीजू शानू की
कमसिन नाबालिग चूत सूखी मारने थे।
जब जीजू के दिल राज़ी हो गया तो उन्होंने अपना विकराल मोटा सूपड़ा शानू के तंग संकरे चूत कई दरार पर टिका दिया। मैंने
उनकी मंशा समझ कर अपनी टांगें शानू की कमर के ऊपर जकड कर उसका मुंह अपनी चूत दिया।
जीजू ने शानू के हिलते गोल मटोल चूतड़ों को कस कर पकड़ा और एक बेरहम जानलेवा धक्का लगाया। शानू जो अपनी चूत
को मरवाने के लिए तड़प रही थी हलक फाड़ चीखी , " नहीं …..ई ……. ई …….. ई …….. ई ……….. ई ………… ई
………. ई ………ई …….. ई ………ई ………ई ………ई ………….ई ,"
शानू के चेहरे पर एक ही लम्हे में बुँदे छ गईं। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। दुसरे ही लम्हे में उसकी आँखों से समुंदर बह
चला। मैंने जीजू को पूरा मजा देने के लिए शानू का मुंह रखा था। आखिर अपनी कमसिन साली चीख सुन कर किस जीजू का
लण्ड और भी मोटा लम्बा नहीं हो जाता ?
जीजू ने बिना हिचकी दूसरा फिर तीसरा धक्का मारा। हर धक्के से उनका हाथ भर का महा लण्ड उनकी नहीं कमसिन दर्द से
बिलखती साली की चूत में समाता जा रहा था।
शानू की दर्दीली चीख़ से न केवल जीजू बल्कि मैं भी उत्तेजित हो गयी। शानू ने जितना भी तड़प तड़प कर छूटने की कोशिश की
उतनी ही बेदर्दी से जीजू ने उसकी कमर दबोच कर और मैंने उसके कन्धों और गर्दन को अपनी टांगों से और उसके हाथों को अपने
हाथों से कस कर और भी लाचार और निसहाय बना दिया।
जीजू का भारी भरकम छह फुट तीन इंच ऊंचा दानवीय शरीर बेचारी पांच फुट दो इंच की कमसिन शानू के नन्हे शरीर के ऊपर
हावी था। बेचारी नन्ही हिरणी बब्बर शेर के नीचे आ गयी थी। अब उसके बचने की कोई भी उम्मीद नहीं थी।
जीजू ने चौथा और फिर भयंकर पांचवां धक्का मारा और उनका विकराल लण्ड जड़ तक शानू की बिलखती चूत में थंस गया।
शानू के सूखी चूत के मर्दन से दर्द की बौछार से आंसू बहा रहा था। बड़ी मुश्किल से उसकी चीखों के बीच में से उसकी हिचकियाँ
से भरी पुकार निकली , " मर गयी जीजू ऊ.... ऊ …….. ऊ …….. ऊ ………. ऊ …….. ऊ ……… ऊ ………. ऊ ……….
ऊ ……. ऊ …………ऊ …… उन्न्नन्न । "
जीजू और मैंने उसकी निरीह पुकार को नज़र अंदाज़ कर दिया , " जीजू, मैं तो मान गयी आपको। कैसे आपने अपना महा लण्ड
शानू की चूत में ठूंस दिया। अब उसे आराम नहीं होने दीजिये। चूत फाड़ दीजिये इस साली की। " मैंने जीजू को ललकारा।
जीजू ने मेरी ललकार का जवाब अपने भीमकाय लण्ड से दिया। उन्होंने एक एक इंच करके अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर
निकला शानू की दर्द से मचलती चूत में से। मेरी भी आँखे फट गईं। जीजू के लण्ड पर लाल रंग के लकीरें उनके घोड़े जैसे लण्ड
को और भी भयानक बना रहीं थीं।
हम दोनों जानते थे की शानू की चूत तीन चार धक्कों के बाद उसके रस से लबालब भर जायेगी।
जीजू ने इस बार दो ही धक्कों में शानू की चूत की गहराइयों को और भी अंदर धकेलते हुए अपना वृहत लण्ड एक बार फिर जड़
तक ठूंस दिया। इस बार शानू की चीखें थोड़ी हलकी थीं। जीजू ने बिना देर किये दनादन अपने लण्ड की आधी लम्बाई से शानू
की चूत बिजली की रेलगाड़ी की रफ़्तार से चोदने लगे।
शानू के आंसूं बहने बंद हो गए। उसकी चीखें पहले तो धीमी हुईं फिर सिसकारियों में बदल गईं। और फिर जीजू के भीमकाय
लण्ड और उसकी चूत के बीच में अदि-काल से चलता रति-सम्भोग का खेल शुरू हो गया।
शानू की चूत में रति-रस का सैलाब आ गया। चुदाई के दर्द से शानू की काम-वासना और भी प्रज्ज्वलित हो गयी। शानू के
सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं। मैंने अब उसका सुबकता मुंह अपनी गीली चूत के ऊपर दबा लिया। शानू के चूतड़ खुद-ब-खुद
जीजू के लण्ड का स्वागत करने के लिए आके-पीछे होने लगे।
जीजू का लण्ड अब फचक फचक फचक की आवाज़ें पैदा करते हुए शानू की नन्ही चूत रौंद रहा था। मेरी चूत जीजू के लण्ड के
लिए तड़पने लगी।
पर मुझे शानू के फड़कते होठों से स्पंदन से उपजे आनंद से ही संतोष करना पड़ा। जीजू का पहले शानू की चूत का मर्दन करने के
बाद ही मेरा नंबर लगाएगा।
शानू की सुबकियां अब वासना के आनंद से भरी हुईं थीं। उसका बदन बार बार रति-निष्पत्ति के प्रभाव से कांप रहा था। जीजू ने
जब देखा कि शानू की चीखें न केवल धीमी हो गईं हैं बल्कि वो अब ज़ोर ज़ोर से सिसक रही थी तो उन्होंने उसकी गोल गोल
गुदाज़ कमर को छोड़ कर उसके अल्पव्यस्क कच्चे स्तनों को अपने विशाल निर्मम हाथों में भर कर बेदर्दी से मसलने लगे। शनु की
चीखें निकल पड़ीं फिर से। जीजू ने ना केवल शानू के उरोजों को मसला मरोड़ा बल्कि उनको खींच खींच उसकी छाती से जैसे
उखाड़ने कि कोशिश कर रहे थे। उन्होंने शानू की वासना के मसाले में में दर्द की मिर्ची मिला दी। शानू चाहे चीख रही हो या
सिसक रही हो पर वो भरभरा कर लगातार झड़ रही थी।
जीजू के भीमकाय लण्ड की भीषण चुदाई से शानू अनेकों बार झड़ गयी पर जीजू ने चुदाई की रफ़्तार को ज़रा सा भी धीमा नहीं
होने दिया। मैं भी शानू की चुदाई को देख और अपनी चूत के उसके सिसकते मुंह के आनंद से भरभरा कर झड़ गयी। जीजू ने जब
मेरी आँखों को कामोत्तेजना के आनंद से बंद होते देखा तो लगभग एक घंटे की चुदाई का खत्म करते हुए शानू की चूत को और भी
बेदरदी और तेज़ी से चोदने लगे। शानू सिसकते हुए बार बार झड़ रही थी। जीजू के भीषण धक्का लगाया और अपने उर्वर बच्चे
पैदा करले वाली मलाई की बरसात की बौछार से शानू के कच्चे गर्भाशय को नहला दिया।
शानू बिलकुल शिथिल और बेहोश से हो गयी। जैसे ही जीजू ने अपना बलशाली लण्ड उसकी चूत में से निकाला शानू की चूत से
जीजू के मर्दाने रस की लहरें उसकी टांगों के ऊपर दौड़ने लगीं।
मैंने एक लम्हा भी नहीं बर्बाद किया। शानू जैसे ही बिस्तर पर ढुलक गई मैंने जीजू का अभी भी तन्नाया हुआ लण्ड अपने दोनों
हाथों में सम्भाल कर उसके ऊपर लिसे रस को चाटने लगी।
जीजू ने मेरा सर कस कर दबोच लिया और अपना महा लण्ड मेरे मुंह में ठूसने लगे। मैं गौं - गौं करती उनके मोठे लण्ड को
मुश्किल से मुंह में भर पा रही थी। मेरे मुंह के कौनें इतने फ़ैल गए थे जीजू के मोटे लण्ड के ऊपर की मुझे डर लग रहा था की वो
फट जाएंगें। जीजू ने बिना मेरी परवाह किये मेरे मुंह का भरपूर चोदन किया। उनका सब जैसा सुपाड़ा मेरे हलक के पीछे की
दीवार से जब टकराता तो मैं 'गौं - गौं ' करतीं और मेरी आँखें गीली हो जातीं। पर जीजू के मर्दाने मुंह-चोदन से मेरी चूत और भी
गीली हो चली थी।
"बड़ी साली साहिबां अब आपकी बारी है।" जीजू ने अपना लण्ड मेरे मुंह से खींच लिया। मेरी लार मेरे फड़कते स्तनों के ऊपर
फ़ैल गयी।
" जीजू मेरी चूत तो एक घंटे से तड़प रही है आपके लण्ड के लिए ," मैं जल्दी से बिस्तर के किनारे की तरफ खिसकने लगी।
"नेहा रानी तुम्हारे जीजू के लण्ड को एक साली की चूत के बाद दूसरी साली की गांड चाहिए ," जीजू का लण्ड मानों दो तीन इंच
और लम्बा और मोटा लग रहा था।
मैं समझ गयी अब जीजू मेरी चीखें निकलवाने के लिए तैयार हो रहे थे।
जीजू ने मेरी गांड में से खीरा निकला और उसे मेरे मुंह में ठूंस दिया। मैंने अपने मुंह में ठूंसे आधे खीरे को चाटा और चूसा। मेरे मलाशय
के सौंधे स्वाद और महक से मेरा मुंह पानी से भर गया। जीजू ने फिर खीरे के दूसरा हिस्सा अपने मुंह में भर कर दिल खोल कर चाटा और
चूसा।
"साली जी जब मेरा लण्ड आपकी गांड से निकलेगा तो उस पर इस खीरे से बहुत ज़्यादा आपकी गांड का रस लगा होगा। अल्लाह
कसम इतना लज़ीज़ रस के लिए तो मैं आपकी गांड घंटों तक रगड़ सकता हूँ ," जीजू ने चटखारे लेते हुए मुझे आगाह किया। उनकी बात
भी सही थी। उनके विकराल लण्ड की लम्बाई मोटाई खीरे से दुगुनी से भी ज़्यादा थी। मेरी गांड की खैर नहीं थी।
"तो जीजू फिर इन्तिज़ार किस बात का कर रहे हैं। बातें ही बनाएंगें या फिर मर्दों की तरह अपने दानव जैसे लण्ड के कारनामे भी
दिखाएंगें ," मैंने बुद्धुओं की तरह पहले से ही बेअंकुश भड़के हुए सांड को लाल रुमाल दिखा दिया।
जीजू ने मेरे गदराये थिरकते दोनों चूतड़ों पर तीन चार थप्पड़ टिकट हुए मेरी गीली चूत में खीरा हद तक ठूंस दिया, "अरे साली साली जी
अभी आपको दिखता हूँ की मैं सिर्फ मुंह से ही बातें ही बनाता हूँ या मर्दों के तरह लण्ड से भी बोल सकता हूँ। "
मैं चीख उठी , "जीजू यह आपकी अम्मी के चूतड़ और चूत नहीं है। इनसे सभ्य इंसानों की तरह पेश आइये ," मेरी गांड का बाजा बजने
वाला था और मैं चुप ही नहीं हो के दे रही थी। इसे ही तो कहते हैं 'आ बैल मुझे मार 'और बैल भी बजरंगी लण्ड वाला।
" रंडी साली जी मेरी फरिश्तों जैसी अम्मी को क्यों अपनी रांडों जैसी गांड चुदाई के बीच में ला रही हैं। गांड तो फटनी ही है आपकी।
क्या ऐसी फड़वाने की तमन्ना है कि कोई शहर का मोची भी न सिल सके ?" जीजू ने मेरे पहले से ही लाल चूतड़ों पर तीन चार ठप्पड़
टिका दिए। मैं चीख उठी, बिलबिलाती हुई।
जब तक मैं कुछ वाचाल जवाब सोच पाती जीजू ने मेरे चूतड़ों को फैला कर अपना लण्ड मेरी गांड के छल्ले पर दबा दिया। मेरा हलक
सुख गया और मेरी साँसें तेज़ हो गईं। जीजू के लण्ड के ऊपर सिर्फ शानू की चूत के रस के सिवाय कोई तेल या लेप नहीं था। मेरी
सूखी गांड वास्तव में फटने वाली थी।
जीजू ने जैसा वायदा किया था उसको निभाते हुए एक बलशाली झटके वाले धक्के में अपना मोटे सब जैसा सुपाड़ा मेरी गांड दिया।
न चाहते हुए भी मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरी चीख कमरे उठी। मेरी आँखें गंगा के जल से भर गईं। मेरी सूखी गांड को मानों जैसे
जीजू ने तेज़ चाकू से काट कर उसमे मिर्चें भर दी हों। मेरी बोलती बंद हो गयी। जीजू के मर्दानगी ने मेरी रंडीबाजी वाले वाचाल
लच्छेबाजी की भी गांड फाड़ दी।
" अरे साली जी अभी से टसुये बहाओगी तो आगे क्या होगा। अभी तो साली की गांड में मेरा सुपाड़ा ही अंदर गया है बाकि का खम्बा
तो अभी भी बाहर है ," जीजू ने मेरे तड़पने, बिलखने को बिलकुल नज़रअंदाज़ करते हुए मेरे उनके थप्पड़ों से दुखते चूतड़ों को बेदर्दी से
मसल दिया।
दर्द से मेरा हलक भींच गया था और मेरी आवाज़ न जाने किस गड्ढे में गुम गई थी पर मुझे सारे संसार की सालियों की इज़्ज़त का भी
ख्याल था।
मेरी आवाज़ में पहले जैसी शोखी चाहे न हो पर रुआँसी आवाज़ में थोड़ा तीखापन भी भी शुमार था, " अरे जीजू तो खम्बा क्या अपनी
अम्मी की क़ुतुब मीनार से चुदी गांड में डालने को बाहर रख झोड़ा है?" मैंने कह तो दिया पर तुरंत अपनी आँखें मींच ली आने वाले आतंक
के ख्याल से।
जीजू ने इस बार एक भी लफ्ज़ ज़ाया नहीं किया। मेरी कमर को भींच कर एक भीषण धक्का मारा और कम से कम तीन चार, घोड़े के
लण्ड जैसी मोटी, इंचें मेरी गांड में शरमन टैंक की तरह दाखिल हो गईं। मेरी दर्द से नहायी चीखें अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
मेरी आँखें बाह चली। मेरा सुबकता खुला मुंह लार टपका रहा था। जीजू ने पहले धक्के के बाद दूसरा, तीसरा धक्का लगाया। उनकी
घुंघराली झांटे अब मेरे लाल कोमल चूतड़ों को रगड़ रहीं थीं। उनका हाथ भर लम्बा बोतल जैसा मोटा लण्ड जड़ तक मेरी तड़पती फटी
गांड में समां गया था।
मैंने अब बेशर्मी से सुबकना शुरू कर दिया। जब गांड फट रही हो तो कम से कम खुल के रो तो लेना चाहिये। और वो ही किया मैंने
अगले दस पंद्रह मिनटों तक। जीजू ने निर्ममता से अपना घोड़े जैसे महा लण्ड से बिफरे सांड की तरह मेरी गांड-मर्दन करने लगे।
मैं सुबक सुबक सबक कर कराह रही थी पर एक क्षण के लए भी मेरी गांड जीजू के महाकाय लण्ड के आक्रमण से दूर नहीं
भागी। मेरे आंसुओं में शीघ्र आने वाले आनंद के बरसात की बूँदें भी तो शामिल थीं।
जीजू के भीषण धक्कों से मैं सिर से चूतड़ों तक हिल जाती। मेरी घुटी घुटी चीखों ने अपने चरम आनंद के मदहोशी से बाहर आती
शानू को और भी जगा दिया।
शानू के आंखें चमक गईं जब उसने मेरी गांड का शैतानी लत-मर्दन देखा। शानू अपने जीजू के भीमकाय लण्ड की मर्दानगी को तो
खुद भुगत चुकी थी पर अब वो मेरी गांड की तौबा बुलवाने के लिए तैयार ही गई।
शानू ने मेरे उछलते मचलते उरोजों को कस कर मसलते हुए जीजू को न्यौता दिया, "जीजू और ज़ोर से मारिये नेहा की गांड। बड़ी
खुजली मच रही थी इसकी गांड में। आपको कसम है मेरी की इसकी चीखे बिलुल बंद न हों। "
शानू ने मेरे फड़कती नासिका को मुंह में ले कर चुभलाते हुए मेरे दोनों चूचुकों को बेदर्दी से दबा कर मरोड़ दिया। में तो वैसे ही चीख
रही थी दर्द से।
जीजू ने गुर्राते हुए और भी हचक कर धक्का मारा। एक ही जानलेवा धक्के से पूरा का पूरा घोड़े जैसा लण्ड मेरी गांड के छल्ले से
जड़ तक समा गया।
मेरी गांड से रस से जीजू का लण्ड पूरा का पूरा नहा उठा था।मेरी गांड की मोहक सुगंध कमरे की हवा में मिल कर हम तीनो को
मदहोश कर रही थी। शानू ने अपनी जीभ की नोक बारी बारी से मेरे दोनों नथुनों में घुसा कर उनको चोदने लगी। अब मेरे खुले मुंह से
दर्द के साथ साथ वासनामयी सिसकारियाँ भी उबलने लगीं। शानू के हाथ मेरे दोनों उरोजों और चुचकों को कभी मसलते, कभी
मरोड़ते, कभी मेरी छाती से उन्हें दूर तक खींचते और कभी प्यार से सहला रहे थे। मेरी गांड में से अब दर्द की जलन के साथ एक
अनोखा आनंद भी उपज रहा था। जीजू का लण्ड अब मेरे गांड के रस से लिस कर चिकना हो चला था। जीजू का लण्ड अब रेल के
इंजन के पिस्टन की रफ़्तार और ताकत से मेरी गांड के अंदर बाहर आ जा रहा था। मेरी गांड में से लण्ड के आवागमन से अश्लील
फचक फचक की आवाज़ें निकल रहीं थीं।
"जी. .. ई … ई …… ई ……. ई ……. ई जू ….. ऊ ….. ऊ …… ऊ …… ऊ ……. ऊ ……. ऊ ….. आं ….. आँ ….. उन्न
….. ऊँनन …. ऊँ …. ऊँ …..ऊँ ……माँ ….. आ ….. आ …… आ …… ,"में वासना और गांड से उपजी पीड़ा से मिलीजुली आनंद
की बौछार से बिलबिला उठी।
चाहे कितनी बार भी सम्भोग का खेल ले लो पर जब नए खेल में वासना के ज्वर की आग बदन में जल उठती है तो उसके तपन का
आनंद उतना ही मीठा होता है। और षोडशी के कमसिन शरीर भी प्रज्जवलित होती है। मैं अब गान्ड-मर्दन के अतिरेक से अनर्गल
बुदबुदा रही थी। शानू मेरे गीले चेहरे को चूम चाट कर साफ करने लेगी थी। जीजू ने मेरी कमर जकड़ कर अपने लण्ड मेरी गांड में
दनादन पल रहे थे। मेरे सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं। मैं रतिरस से औरभर उठी। मेरी चूत से रति रस की बाद बह चली थी। में
अचानक भरभरा कर झड़ गई। वासनामयी आनंद के अतिरेक से मैं सबक उठती। शानू और जीजू मिल कर मेरे चरम-आनंद की कड़ी
को टूटने ही नहीं दे रहे थे। मैं यदि एक बार झड़ी तो सौ बार झड़ी। मेरा शरीर कमोंमंद के आवेश से सिहर उठ।मैं हर चरम आनंद की
पराकाष्ठा से कांप उठती। जीजू का लण्ड बिना थके रुके धीमे हुए निरंतर मेरी गांड में अंदर बाहर अनोखी रफ़्तार से आ जा रहा
था।
ना जाने कितनी देर तक जीजू ने मेरी गांड का अविरत मर्दन किया। ना जाने कितनी बार मैं वासना के आनंद से कांपती हांफती
झड़ गयी। पर जब घण्टे बाद जीजू ने मेरी जलती गांड को अपनी अपनी मर्दानी उर्वर मलाई से सींचआ तो मैं लगभग होश खो
बैठी थी।
जीजू ने मुझे बिस्तर पे ढुलक जाने दिया और अपना वीर्य और मेरी गांड के रस से लिसे लण्ड को इन्तिज़ार करती शानू के मुंह में
ठूंस दिया। शानू ने जी भर कर जीजू का लण्ड चूस चाट कर साफ़ कर दिया। लेकिन शानू रुकी नहीं और जीजू की भारी मोटी
उर्वर जननक्षम वीर्य पैदा करने वाले बड़े बड़े अण्डों को सहलाते हुए उनके मुश्किल लण्ड को फिर से तनतना दिया।
जीजू किसी किताबी कभी न संतुष्ट होने वाले आदिमानव की तरह शानू के ऊपर टूट पड़े। उन्होंने उसके होंठों को चूसा , उसके
उगते चूचियों को मसला और चूचुकों को चूस चूस कर लाल कर दिया। उसकी पहले से ही गीली चूत को चाट कर तैयार कर के
उसे मेरी खुली जांघों के बीच में झुका दिया।
शानू घोड़ी बनी मेरी चूत में अपना मुंह दबा कर जीजू के लण्ड के सगत के लिए तैयार थी।
जीजू ने उसके दोनों चूचियों को मुट्ठी में भर कर अपना घोड़े जैसा लण्ड के सुपाड़े को शानू की नन्ही चूत के द्वार पे टिकाया और
एक भीषण झटके से सुपाड़ा शानू की चूत में ठूंस दिया। मैंने शानू का मुंह अपनी चूत में दबा लिया। शानू बिलबिला तो उठी पर
थोड़ी देर पहले की लम्बी चुदाई से उसकी चूत खुल गयी थी। तीन चार धक्कों में जीजू का वृहत भीमकाय शानू की कमसिन
नाबालिग चूत में जड़ तक समा गया। शानू जीजू के पहले पांच छह धक्के सबक सिसक कर स्वीकार किये फिर चुदाई की मस्ती
में खो गयी।
उसने लपक कर मेरी चूत चाटनी शुरू कर दी। जीजू का लण्ड अब अश्लील फचक फचक फचक की आवाज़ करता शानू की
चूत में लपक हचक कर अंदर बाहर आ जा रहा था। कमरे में मेरी और शानू की सिसकारियाँ गूँज उठी। शानू ने अपने बढ़ते तजुर्बे
को दिखते हुए एक हाथ से मेरा डायन स्तन दबोच हाथ की दो उँगलियाँ मेरी ताज़ी ताज़ी चूड़ी गांड में घुसेड़ दीं।
उसके कभी होंठ और कभी दांत मेरे तन्नाए भग-शिश्न को चूमते खींचते तो मैं भी बिलबिला उठती।
जब मैं या शानू चरम-आनंद के पटाखों की तरह फुट जातीं तो हमारी हलकी सी सिसकी भरी चीख जीजू के लिए हमारे झड़ने
का बिगुल बजा देतीं।
जीजू की मांसल जांघें शानू के गोल मुलायम चूतड़ों पे थप्पड़ सा मार रहीं थीं। उनका लण्ड अब बीएस एक को चोद रहा था।
ज़ोरदार, धमकदर, सुपाड़े से जड़ तक भयंकर धक्कों से। शानू पूरी हिल जाती पर उसने मेरी चूत को एक क्षण भी अकेला नहीं
छोड़ा।
जीजू के दिल भर कर शानू की चूत को अपने विकराल लण्ड से रौंदा। और जब वो झड़ें तो हम दोनों इतनी बार झड़ चुकीं थीं
की थक कर चूर हो गईं। पर सम्भोग की थकन में भी मीठा आनंद होता है और शीघ्र ताज़ी उगने वाली कामवासना का पैगाम भी।
और वो ही हुआ।
थोड़ी देर बाद हम तीनों लेते हुए थे। जीजू हमारे बीच में और उनके हाथ मेरे और शानू के उरोजों को शाला मसला तरहे थे। शानू और
मेरे नन्हे हाथ उनके दानवीय आकार के आधे सोये लण्ड को जगाने में मशगूल थे। जीजू को और हमें दो घनघोर चुदाई के बाद कुदरत
की फ़ितरत की तरह पेशाब लगने लगा। जीजू ने शानू को कन्धों पर उठा लिया बच्चे की तरह।
बिना किसी के कुछ कहे जीजू ने पहल की और जल्दी ही वि मेरी खुली जांघों के बीच में बैठे मेरे सुनहरी शर्बत का मज़ा लूट रहे थे।
शानू ने भी उनकी भड़ास मिटाई। एक बून्द भी बर्बाद नहीं की जीजू ने हमारे बेशकीमती तोहफे की । जीजू ने अपना खारा सुनहरा
शर्बत ईमानदारी से आधा आधा शानू और मेरे बीच में बाँटा। फिर हम दोनों उनके लण्ड को चूसने सहलाने लगे। जीजू जैसे सांड को
क्या चाहिए साली की चुदाई करने के लिए - एक इशारा। और हम दोनों तो इशारों की पूरी दुकान खोल कर बैठे थे।
जीजू ने मुझे और शानू को कमोड के ऊपर झुका कर बारी बारी से हमने पीछे से चोदने लगे।
जब शानू या मैं एक बार झड़ जाती तो वो चूत बदल देते। हमें तीन बार झाड़ कर जीजू हमें बिस्तर पे ले गए। जीजू ने मुझे पीठ पर
लिटाया और शानू को मेरे ऊपर। हमारे चूतड़ बिस्तर के किनारे पे थे। अब जीजू बस थोड़ी सी मेहनत से हमारी चूत बदल सकते
थे। उन्होंने इस बार जो कड़कड़ी बनाई उससे शानू और मेरे तो अस्थिपंजर हिल उठे। आखिर कार जब झड़-झड़ के हमारी जान ही
निकल गयी जीजू ने हम दोनों को खींच कर अपने वीर्य की बारिश हमारे मुंह के ऊपर कर दी। उनके गरम वीर्य की बौछारें शानू और
मेरी आँखों में भी चली गईं। फिर जीजू ने शानू और मेरी नाक उठा कर हमारी नासिकाएँ भी भर दी वीर्य की बौछार से।
उस रात जीजू ने हमें तीन चार बार और चोदा उसमे मेरी गांड-चुदाई भी शामिल थी। फिर हम तीनों आखिर बार की चुदाई के बाद की
मीठी थकान से हार कर गहरी नींद में सो गए।
मेरी एक बार आँख खुली तो लगभग ग्यारह बज रहे थे सुबह के पर शानू अभी भी जीजू के सूखते वीर्य से लिसी गहरी नींद में सो रही
थी। मैं भी आँख बंद कर निंद्रा देवी की गॉड में ढुलक गयी। जीजू गायब थे बिस्तर से।
मैं जब दोबारा उठी तो लगभग दोपहर हो चुकी थी। शानू अभी भी बच्ची की तरह थकी हारी गहरी नींद में थी। मेरी वस्ति पेशाब से भरी
मचल रही थी। मैं लाचारी से उठ स्नानघर ले गयी जब तक मैं अपना मुत्र झरझर करती फ़ुहार से शनुभि आँखें रगड़ती आ गयी स्नानघर
से। मैंने उसे गोद में बिठा लिया एयर उसने मेरी फैली जांघों के बीच में अपना मूत्राशय खोल दिया। शानू के गरम मूत्र की फुव्वार मेरे
पेंडू को भिगोती कमोड में झरने की तरह गिरने लगी। मैंने उनींदी प्यारी शानू के गुलाबी सूजे होंठों को प्यार से चुमाँ।
"कुम्भकरण की भतीजी क्या चल कर नहीं देखना नसीम आपा की अब्बू के साथ पहली रात कैसी गुजरी? “ मैंने शानू की नासिका
को नोक काटते हुए पूछा।
मानों उसे जैसे बिजली का करंट लग गया हो ,"हाय रब्बा मैं तो भूल ही गयी। कैसे भूल गयी मैं ?"
हम दोनो जल्दी से तैयार हो कर अकबर चाचू के कमरे की ओर दौड़ पड़े। दोनों के नई कोई कपड़ा पहनने का प्रयास नहीं किया।
नसीम आपा चित्त बिस्तर में गाफिल बेहोश सी सो रहीं थीं। उनके उरोजों पर नीले लाल बेदर्दी से मरोड़ने मसलने के निशान थे। वैसे ही
निशान उनकी जाँघों और कमर पर थे।
उनके शरीर और चहरे पर भूरे, सफ़ेद सूखे शरीर के रसों के थक्के लगे हुए थे। उनकी सुंदर फड़कती नासिका के दोनों नथुने सूखे वीर्य
से भरे हुए थे। ठीक उसी तरह उनकी आँखें भी। नसीम आपा उस वक्त मोनालिसा, क्लियोपैट्रा , वीनस दी माईलो किसी भी
काल्पनिक दैविक सौंदर्य की माप के स्तर से सुंदर लग रहीं थीं। नसीम आपा अपने पुरुष के सानिध्य और सम्भोग से तृप्त और थकी
सुंदरता की मूरत बानी मुझे और शानू को उस समय भ्रमणद की सबसे सुंदर स्त्री लग रहीं थीं। मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण विचार थे
क्योंकि उस भ्रमांड में मेरे जन्मदात्री मम्मी भी थीं और मेरे लिए उनसे सुंदर कोई भी नहीं था।
हम दोनों नसीम आपा से दोनों ओर कूद कर बिस्तर पर लेट गए। मैंने उनका गहरी साँसे और हलके हलके मादक खर्राटे लेते चेहरे को
हांथो में भर कर चूमने लगी। नसीम आपा चौंक कर जग उठीं। उन्होंने ने मुझे अपनी बाहों में भर कर अपना मुंह चूमने चूसने दिया। मैंने
उनके चेहरे पर चिपके अकबर चाचू के सूखे वीर्य, नसीम आपा की गांड के रस के थक्के जीभ से चाट चाट कर साफ़ कर दिए। फिर
मैंने अपनी जीभ की नोक उनके नथुनों में घुसा कर चाचू का सूखा वीर्य चूसने लगी। मैंने अपनी लार नसीम आपा के नथुनो में बहने दी।
नसीम आपा ने अपनी सुंदर नासिका को सिकोड़ कर ज़ोर से झींक मारी। मैंने उनकी नासिका को तैयारी से अपने मुंह में भर लिया
था। जब मैं संतुष्ट हो गयी की नसीम आपा की नासिका उनके अब्बू के वीर्य से साफ़ हो गयी है तभी मैंने उसे अपने गीले मुंह से
आज़ाद किया।
"आपा कैसी रही कल की रात? ,"शानू जिसने उनका शरीर वैसे ही चूस चाट कर साफ़ किया था बेचैनी से बोली।
"हाय शानू हाय सीमा क्या बताऊँ। कल की रात तो ज़न्नत की सैर थी। काश खुदा इस रात को हमेशा मेरे दिमाग़ में चलती तस्वीर
की तरह गोद दे ," नसीम आपा के चेहरे पर छाये संतोष ,फख्र और प्यार को समझने के लिए , कोई शब्द भी नहीं थे , उसके
विवरण करने के लिए।
नसीम आपा ने बारी बारी से शानू और मुझे चूमा और फिर कहा ,"नेहा तुझे तो मैं पहले ही अपनी ज़िंदगी से भी ज़्यादा प्यार देने का
वायदा कर चुकीं हूँ। पर अब तो तू मेरी खून से भी करीब हो गयी है। तू और शानू अब मेरी नहीं बहनें हैं जिसके ऊपर मैं अपनी ज़िंदगी
बिखेर दूंगीं ," नसीम आपा की आवाज़ में भावुकपन था।
"आपकी ज़िंदगी तो हमें अपने से भी प्यारी है नसीम आपा। आपकी उम्र को हज़ारों साल और जुड़ जाएँ। ,"मैंने भी रुआंसी होते हुए
कहा।
"आपा आप ऐसी बात करके क्यों रुला रहीं हैं हमें ," शानू तो बिलकुल रोने जैसी हो गयी।
"माफ़ करो अपनी पागल बड़ी बहन को। मैं तो कल रात की सौगात का शुक्रिया अदा कर रही थी ," नसीम आपा ने हम दोनों को
प्यार से चूम कर कहा।
" नसीम आपा क्या चाचू ने चटाई इस्तेमाल की?" मैंने नसीम आपा के सूजे नीले धब्बों से सजे उरोज़ों को सहलाते हुए पूछा।
"हां नेहा। हाय रब्बा कैसे जादुई चटाई है वो। पता है अब्बू ने अम्मी के कहने से खरीदी थी। इस चटाई पर अब ने अम्मी को हज़ारों
बार चोदा है ," नसीम आपा किलक कर बताने लगीं।
" क्या आपने चाचू का सुनहरी शरबत पिया ?, " मैं उत्सुकता से मरी जा रही थी।
" हां नेहा खूब जी भर कर पिया और पिलाया भी। तो बात और भी आगे बढ़ा दी मैं तो शर्म से मर गयी उनकी चाहत सुन कर
....... ," नसीम आपा को बीच में टोक दिया शानू ने।
"आपा सब कुछ शुरू से बताओ ना। बिना कुछ भी छोड़े। नेहा तू बीच बीच पूछ ," मास्टरनी शानू ने हम दोनों को डाँटा।
हम दोनों मुस्कुरा कर चुप हो गए और नसीम आपा अपने अब्बू के साथ बितायी पहली रात की कहानी विस्तार से सुनाने लगीं ।
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जब मैं खीरा लेकर शयनघर में पहुंची तो जीजू ने एक बार फिर से घोड़ी बनी शानू को पीछे से चूम , चाट कर फिर से चरम-
आनंद के करार पर पहुंचा कर उसे भूखा हो गए।
"जीजू हाय अम्मी कितना तड़पा रहें हैं आप आज ? एक बार तो झाड़ दीजिये मुझे रब के नाम पर," शानू कुलबिला रही। थी
उसकी अनबुझी प्यास को अनदेखा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर पटक दिया। पहले तो मैं चीखी फिर खिखिला कर हंस
दी। उन्होंने मेरे फ़ैली जांघों के बीच में वासना की आग में जल कर बिलखती शानू को गुड़िया की तरह उठा कर फिर से घोड़ी
की तरह टिका दिया। मेरे हाथ का खीरा ना जाने कब जीजू के हाथ में चला गया था।
उन्होंने एक ही झटके में सारा का सारा खीरा शानू की गीली कुलबुलाती चूत में ठूंस दिया।
शानू चिहुंक कर उठी ," हाय जीजू दर्द हुआ मुझे। क्या घुसा दिया आपने मेरी चूत में ?"
मैंने शानू के थिरकते चूतड़ पर ज़ोर से थप्पड़ मारा ," रांड मेरी नन्ही बहन जिस खीरे से मेरी गांड की बर्बादी करवाने वाली थी
उसका कम से कम चूत में तो ले कर स्वाद ले ले। "
"हाय नेहा चूत में जीजू का लण्ड चाहिए। पता नहीं क्यों तड़पा रहें आज ? "शानू की कमसिन आवाज़ में औरताना वासना की
गहरायी ना जाने कब और कहाँ से आ गयी।
" छोटी साली साहिबान यदि अपने लण्ड मैं आपकी चूत में डालूं तो रो धो तो नहीं करोगी ?" जीजू ने खीरा तीन चार बार शानू
की चूत में आगे पीछे किया और शानू की चूत के रस लिसे खीरे को उन्होंने मेरी के तंग छेद पर रख कर धीरे नोक को दबाते
गए और मेरी गांड का कसा छेद धीरे धीरे हार मान कर खुलने लगा।
जैसे ही खीरे नोक मेरी गुदा की मखमली दीवारों के भीतर घुसी जीजू ने एक झटके से पूरा खीरा मेरी गांड में ठूंस दिया।
" हाय जीजू धीरे धीरे। यह आपकी बड़ी साली और बहन की गांड है आपकी छोटी रंडी साली की चूत नहीं जो गधे का लण्ड
भी खा जाये ," मैं दर्द से बिलबिला उठी और जीजू को ताना मारने से पीछे नहीं हठी।
" साली चुप कर जल्दी से जीजू को खीरा गांड में डालने दे। फिर मेरी चूत मारने के लिए फारिग होंगें? वैसे भी जीजू का लण्ड
घोड़े के लण्ड को भी शर्मिंदा कर देने में काबिल है। किस गधे की नौबत है जो मेरे जीजू से मुकाबला करे लण्ड के मामले में ?"
शानू चुदने को बेताब जीजू को रिझाने लगी।
"जीजू ने मेरी ओर मुसकरा कर आँख मारी और मेरी टी शर्त से शानू की चूत रगड़ने लगे। मेरी आँखे फट गयीं। जीजू शानू की
कमसिन नाबालिग चूत सूखी मारने थे।
जब जीजू के दिल राज़ी हो गया तो उन्होंने अपना विकराल मोटा सूपड़ा शानू के तंग संकरे चूत कई दरार पर टिका दिया। मैंने
उनकी मंशा समझ कर अपनी टांगें शानू की कमर के ऊपर जकड कर उसका मुंह अपनी चूत दिया।
जीजू ने शानू के हिलते गोल मटोल चूतड़ों को कस कर पकड़ा और एक बेरहम जानलेवा धक्का लगाया। शानू जो अपनी चूत
को मरवाने के लिए तड़प रही थी हलक फाड़ चीखी , " नहीं …..ई ……. ई …….. ई …….. ई ……….. ई ………… ई
………. ई ………ई …….. ई ………ई ………ई ………ई ………….ई ,"
शानू के चेहरे पर एक ही लम्हे में बुँदे छ गईं। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। दुसरे ही लम्हे में उसकी आँखों से समुंदर बह
चला। मैंने जीजू को पूरा मजा देने के लिए शानू का मुंह रखा था। आखिर अपनी कमसिन साली चीख सुन कर किस जीजू का
लण्ड और भी मोटा लम्बा नहीं हो जाता ?
जीजू ने बिना हिचकी दूसरा फिर तीसरा धक्का मारा। हर धक्के से उनका हाथ भर का महा लण्ड उनकी नहीं कमसिन दर्द से
बिलखती साली की चूत में समाता जा रहा था।
शानू की दर्दीली चीख़ से न केवल जीजू बल्कि मैं भी उत्तेजित हो गयी। शानू ने जितना भी तड़प तड़प कर छूटने की कोशिश की
उतनी ही बेदर्दी से जीजू ने उसकी कमर दबोच कर और मैंने उसके कन्धों और गर्दन को अपनी टांगों से और उसके हाथों को अपने
हाथों से कस कर और भी लाचार और निसहाय बना दिया।
जीजू का भारी भरकम छह फुट तीन इंच ऊंचा दानवीय शरीर बेचारी पांच फुट दो इंच की कमसिन शानू के नन्हे शरीर के ऊपर
हावी था। बेचारी नन्ही हिरणी बब्बर शेर के नीचे आ गयी थी। अब उसके बचने की कोई भी उम्मीद नहीं थी।
जीजू ने चौथा और फिर भयंकर पांचवां धक्का मारा और उनका विकराल लण्ड जड़ तक शानू की बिलखती चूत में थंस गया।
शानू के सूखी चूत के मर्दन से दर्द की बौछार से आंसू बहा रहा था। बड़ी मुश्किल से उसकी चीखों के बीच में से उसकी हिचकियाँ
से भरी पुकार निकली , " मर गयी जीजू ऊ.... ऊ …….. ऊ …….. ऊ ………. ऊ …….. ऊ ……… ऊ ………. ऊ ……….
ऊ ……. ऊ …………ऊ …… उन्न्नन्न । "
जीजू और मैंने उसकी निरीह पुकार को नज़र अंदाज़ कर दिया , " जीजू, मैं तो मान गयी आपको। कैसे आपने अपना महा लण्ड
शानू की चूत में ठूंस दिया। अब उसे आराम नहीं होने दीजिये। चूत फाड़ दीजिये इस साली की। " मैंने जीजू को ललकारा।
जीजू ने मेरी ललकार का जवाब अपने भीमकाय लण्ड से दिया। उन्होंने एक एक इंच करके अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर
निकला शानू की दर्द से मचलती चूत में से। मेरी भी आँखे फट गईं। जीजू के लण्ड पर लाल रंग के लकीरें उनके घोड़े जैसे लण्ड
को और भी भयानक बना रहीं थीं।
हम दोनों जानते थे की शानू की चूत तीन चार धक्कों के बाद उसके रस से लबालब भर जायेगी।
जीजू ने इस बार दो ही धक्कों में शानू की चूत की गहराइयों को और भी अंदर धकेलते हुए अपना वृहत लण्ड एक बार फिर जड़
तक ठूंस दिया। इस बार शानू की चीखें थोड़ी हलकी थीं। जीजू ने बिना देर किये दनादन अपने लण्ड की आधी लम्बाई से शानू
की चूत बिजली की रेलगाड़ी की रफ़्तार से चोदने लगे।
शानू के आंसूं बहने बंद हो गए। उसकी चीखें पहले तो धीमी हुईं फिर सिसकारियों में बदल गईं। और फिर जीजू के भीमकाय
लण्ड और उसकी चूत के बीच में अदि-काल से चलता रति-सम्भोग का खेल शुरू हो गया।
शानू की चूत में रति-रस का सैलाब आ गया। चुदाई के दर्द से शानू की काम-वासना और भी प्रज्ज्वलित हो गयी। शानू के
सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं। मैंने अब उसका सुबकता मुंह अपनी गीली चूत के ऊपर दबा लिया। शानू के चूतड़ खुद-ब-खुद
जीजू के लण्ड का स्वागत करने के लिए आके-पीछे होने लगे।
जीजू का लण्ड अब फचक फचक फचक की आवाज़ें पैदा करते हुए शानू की नन्ही चूत रौंद रहा था। मेरी चूत जीजू के लण्ड के
लिए तड़पने लगी।
पर मुझे शानू के फड़कते होठों से स्पंदन से उपजे आनंद से ही संतोष करना पड़ा। जीजू का पहले शानू की चूत का मर्दन करने के
बाद ही मेरा नंबर लगाएगा।
शानू की सुबकियां अब वासना के आनंद से भरी हुईं थीं। उसका बदन बार बार रति-निष्पत्ति के प्रभाव से कांप रहा था। जीजू ने
जब देखा कि शानू की चीखें न केवल धीमी हो गईं हैं बल्कि वो अब ज़ोर ज़ोर से सिसक रही थी तो उन्होंने उसकी गोल गोल
गुदाज़ कमर को छोड़ कर उसके अल्पव्यस्क कच्चे स्तनों को अपने विशाल निर्मम हाथों में भर कर बेदर्दी से मसलने लगे। शनु की
चीखें निकल पड़ीं फिर से। जीजू ने ना केवल शानू के उरोजों को मसला मरोड़ा बल्कि उनको खींच खींच उसकी छाती से जैसे
उखाड़ने कि कोशिश कर रहे थे। उन्होंने शानू की वासना के मसाले में में दर्द की मिर्ची मिला दी। शानू चाहे चीख रही हो या
सिसक रही हो पर वो भरभरा कर लगातार झड़ रही थी।
जीजू के भीमकाय लण्ड की भीषण चुदाई से शानू अनेकों बार झड़ गयी पर जीजू ने चुदाई की रफ़्तार को ज़रा सा भी धीमा नहीं
होने दिया। मैं भी शानू की चुदाई को देख और अपनी चूत के उसके सिसकते मुंह के आनंद से भरभरा कर झड़ गयी। जीजू ने जब
मेरी आँखों को कामोत्तेजना के आनंद से बंद होते देखा तो लगभग एक घंटे की चुदाई का खत्म करते हुए शानू की चूत को और भी
बेदरदी और तेज़ी से चोदने लगे। शानू सिसकते हुए बार बार झड़ रही थी। जीजू के भीषण धक्का लगाया और अपने उर्वर बच्चे
पैदा करले वाली मलाई की बरसात की बौछार से शानू के कच्चे गर्भाशय को नहला दिया।
शानू बिलकुल शिथिल और बेहोश से हो गयी। जैसे ही जीजू ने अपना बलशाली लण्ड उसकी चूत में से निकाला शानू की चूत से
जीजू के मर्दाने रस की लहरें उसकी टांगों के ऊपर दौड़ने लगीं।
मैंने एक लम्हा भी नहीं बर्बाद किया। शानू जैसे ही बिस्तर पर ढुलक गई मैंने जीजू का अभी भी तन्नाया हुआ लण्ड अपने दोनों
हाथों में सम्भाल कर उसके ऊपर लिसे रस को चाटने लगी।
जीजू ने मेरा सर कस कर दबोच लिया और अपना महा लण्ड मेरे मुंह में ठूसने लगे। मैं गौं - गौं करती उनके मोठे लण्ड को
मुश्किल से मुंह में भर पा रही थी। मेरे मुंह के कौनें इतने फ़ैल गए थे जीजू के मोटे लण्ड के ऊपर की मुझे डर लग रहा था की वो
फट जाएंगें। जीजू ने बिना मेरी परवाह किये मेरे मुंह का भरपूर चोदन किया। उनका सब जैसा सुपाड़ा मेरे हलक के पीछे की
दीवार से जब टकराता तो मैं 'गौं - गौं ' करतीं और मेरी आँखें गीली हो जातीं। पर जीजू के मर्दाने मुंह-चोदन से मेरी चूत और भी
गीली हो चली थी।
"बड़ी साली साहिबां अब आपकी बारी है।" जीजू ने अपना लण्ड मेरे मुंह से खींच लिया। मेरी लार मेरे फड़कते स्तनों के ऊपर
फ़ैल गयी।
" जीजू मेरी चूत तो एक घंटे से तड़प रही है आपके लण्ड के लिए ," मैं जल्दी से बिस्तर के किनारे की तरफ खिसकने लगी।
"नेहा रानी तुम्हारे जीजू के लण्ड को एक साली की चूत के बाद दूसरी साली की गांड चाहिए ," जीजू का लण्ड मानों दो तीन इंच
और लम्बा और मोटा लग रहा था।
मैं समझ गयी अब जीजू मेरी चीखें निकलवाने के लिए तैयार हो रहे थे।
जीजू ने मेरी गांड में से खीरा निकला और उसे मेरे मुंह में ठूंस दिया। मैंने अपने मुंह में ठूंसे आधे खीरे को चाटा और चूसा। मेरे मलाशय
के सौंधे स्वाद और महक से मेरा मुंह पानी से भर गया। जीजू ने फिर खीरे के दूसरा हिस्सा अपने मुंह में भर कर दिल खोल कर चाटा और
चूसा।
"साली जी जब मेरा लण्ड आपकी गांड से निकलेगा तो उस पर इस खीरे से बहुत ज़्यादा आपकी गांड का रस लगा होगा। अल्लाह
कसम इतना लज़ीज़ रस के लिए तो मैं आपकी गांड घंटों तक रगड़ सकता हूँ ," जीजू ने चटखारे लेते हुए मुझे आगाह किया। उनकी बात
भी सही थी। उनके विकराल लण्ड की लम्बाई मोटाई खीरे से दुगुनी से भी ज़्यादा थी। मेरी गांड की खैर नहीं थी।
"तो जीजू फिर इन्तिज़ार किस बात का कर रहे हैं। बातें ही बनाएंगें या फिर मर्दों की तरह अपने दानव जैसे लण्ड के कारनामे भी
दिखाएंगें ," मैंने बुद्धुओं की तरह पहले से ही बेअंकुश भड़के हुए सांड को लाल रुमाल दिखा दिया।
जीजू ने मेरे गदराये थिरकते दोनों चूतड़ों पर तीन चार थप्पड़ टिकट हुए मेरी गीली चूत में खीरा हद तक ठूंस दिया, "अरे साली साली जी
अभी आपको दिखता हूँ की मैं सिर्फ मुंह से ही बातें ही बनाता हूँ या मर्दों के तरह लण्ड से भी बोल सकता हूँ। "
मैं चीख उठी , "जीजू यह आपकी अम्मी के चूतड़ और चूत नहीं है। इनसे सभ्य इंसानों की तरह पेश आइये ," मेरी गांड का बाजा बजने
वाला था और मैं चुप ही नहीं हो के दे रही थी। इसे ही तो कहते हैं 'आ बैल मुझे मार 'और बैल भी बजरंगी लण्ड वाला।
" रंडी साली जी मेरी फरिश्तों जैसी अम्मी को क्यों अपनी रांडों जैसी गांड चुदाई के बीच में ला रही हैं। गांड तो फटनी ही है आपकी।
क्या ऐसी फड़वाने की तमन्ना है कि कोई शहर का मोची भी न सिल सके ?" जीजू ने मेरे पहले से ही लाल चूतड़ों पर तीन चार ठप्पड़
टिका दिए। मैं चीख उठी, बिलबिलाती हुई।
जब तक मैं कुछ वाचाल जवाब सोच पाती जीजू ने मेरे चूतड़ों को फैला कर अपना लण्ड मेरी गांड के छल्ले पर दबा दिया। मेरा हलक
सुख गया और मेरी साँसें तेज़ हो गईं। जीजू के लण्ड के ऊपर सिर्फ शानू की चूत के रस के सिवाय कोई तेल या लेप नहीं था। मेरी
सूखी गांड वास्तव में फटने वाली थी।
जीजू ने जैसा वायदा किया था उसको निभाते हुए एक बलशाली झटके वाले धक्के में अपना मोटे सब जैसा सुपाड़ा मेरी गांड दिया।
न चाहते हुए भी मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरी चीख कमरे उठी। मेरी आँखें गंगा के जल से भर गईं। मेरी सूखी गांड को मानों जैसे
जीजू ने तेज़ चाकू से काट कर उसमे मिर्चें भर दी हों। मेरी बोलती बंद हो गयी। जीजू के मर्दानगी ने मेरी रंडीबाजी वाले वाचाल
लच्छेबाजी की भी गांड फाड़ दी।
" अरे साली जी अभी से टसुये बहाओगी तो आगे क्या होगा। अभी तो साली की गांड में मेरा सुपाड़ा ही अंदर गया है बाकि का खम्बा
तो अभी भी बाहर है ," जीजू ने मेरे तड़पने, बिलखने को बिलकुल नज़रअंदाज़ करते हुए मेरे उनके थप्पड़ों से दुखते चूतड़ों को बेदर्दी से
मसल दिया।
दर्द से मेरा हलक भींच गया था और मेरी आवाज़ न जाने किस गड्ढे में गुम गई थी पर मुझे सारे संसार की सालियों की इज़्ज़त का भी
ख्याल था।
मेरी आवाज़ में पहले जैसी शोखी चाहे न हो पर रुआँसी आवाज़ में थोड़ा तीखापन भी भी शुमार था, " अरे जीजू तो खम्बा क्या अपनी
अम्मी की क़ुतुब मीनार से चुदी गांड में डालने को बाहर रख झोड़ा है?" मैंने कह तो दिया पर तुरंत अपनी आँखें मींच ली आने वाले आतंक
के ख्याल से।
जीजू ने इस बार एक भी लफ्ज़ ज़ाया नहीं किया। मेरी कमर को भींच कर एक भीषण धक्का मारा और कम से कम तीन चार, घोड़े के
लण्ड जैसी मोटी, इंचें मेरी गांड में शरमन टैंक की तरह दाखिल हो गईं। मेरी दर्द से नहायी चीखें अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
मेरी आँखें बाह चली। मेरा सुबकता खुला मुंह लार टपका रहा था। जीजू ने पहले धक्के के बाद दूसरा, तीसरा धक्का लगाया। उनकी
घुंघराली झांटे अब मेरे लाल कोमल चूतड़ों को रगड़ रहीं थीं। उनका हाथ भर लम्बा बोतल जैसा मोटा लण्ड जड़ तक मेरी तड़पती फटी
गांड में समां गया था।
मैंने अब बेशर्मी से सुबकना शुरू कर दिया। जब गांड फट रही हो तो कम से कम खुल के रो तो लेना चाहिये। और वो ही किया मैंने
अगले दस पंद्रह मिनटों तक। जीजू ने निर्ममता से अपना घोड़े जैसे महा लण्ड से बिफरे सांड की तरह मेरी गांड-मर्दन करने लगे।
मैं सुबक सुबक सबक कर कराह रही थी पर एक क्षण के लए भी मेरी गांड जीजू के महाकाय लण्ड के आक्रमण से दूर नहीं
भागी। मेरे आंसुओं में शीघ्र आने वाले आनंद के बरसात की बूँदें भी तो शामिल थीं।
जीजू के भीषण धक्कों से मैं सिर से चूतड़ों तक हिल जाती। मेरी घुटी घुटी चीखों ने अपने चरम आनंद के मदहोशी से बाहर आती
शानू को और भी जगा दिया।
शानू के आंखें चमक गईं जब उसने मेरी गांड का शैतानी लत-मर्दन देखा। शानू अपने जीजू के भीमकाय लण्ड की मर्दानगी को तो
खुद भुगत चुकी थी पर अब वो मेरी गांड की तौबा बुलवाने के लिए तैयार ही गई।
शानू ने मेरे उछलते मचलते उरोजों को कस कर मसलते हुए जीजू को न्यौता दिया, "जीजू और ज़ोर से मारिये नेहा की गांड। बड़ी
खुजली मच रही थी इसकी गांड में। आपको कसम है मेरी की इसकी चीखे बिलुल बंद न हों। "
शानू ने मेरे फड़कती नासिका को मुंह में ले कर चुभलाते हुए मेरे दोनों चूचुकों को बेदर्दी से दबा कर मरोड़ दिया। में तो वैसे ही चीख
रही थी दर्द से।
जीजू ने गुर्राते हुए और भी हचक कर धक्का मारा। एक ही जानलेवा धक्के से पूरा का पूरा घोड़े जैसा लण्ड मेरी गांड के छल्ले से
जड़ तक समा गया।
मेरी गांड से रस से जीजू का लण्ड पूरा का पूरा नहा उठा था।मेरी गांड की मोहक सुगंध कमरे की हवा में मिल कर हम तीनो को
मदहोश कर रही थी। शानू ने अपनी जीभ की नोक बारी बारी से मेरे दोनों नथुनों में घुसा कर उनको चोदने लगी। अब मेरे खुले मुंह से
दर्द के साथ साथ वासनामयी सिसकारियाँ भी उबलने लगीं। शानू के हाथ मेरे दोनों उरोजों और चुचकों को कभी मसलते, कभी
मरोड़ते, कभी मेरी छाती से उन्हें दूर तक खींचते और कभी प्यार से सहला रहे थे। मेरी गांड में से अब दर्द की जलन के साथ एक
अनोखा आनंद भी उपज रहा था। जीजू का लण्ड अब मेरे गांड के रस से लिस कर चिकना हो चला था। जीजू का लण्ड अब रेल के
इंजन के पिस्टन की रफ़्तार और ताकत से मेरी गांड के अंदर बाहर आ जा रहा था। मेरी गांड में से लण्ड के आवागमन से अश्लील
फचक फचक की आवाज़ें निकल रहीं थीं।
"जी. .. ई … ई …… ई ……. ई ……. ई जू ….. ऊ ….. ऊ …… ऊ …… ऊ ……. ऊ ……. ऊ ….. आं ….. आँ ….. उन्न
….. ऊँनन …. ऊँ …. ऊँ …..ऊँ ……माँ ….. आ ….. आ …… आ …… ,"में वासना और गांड से उपजी पीड़ा से मिलीजुली आनंद
की बौछार से बिलबिला उठी।
चाहे कितनी बार भी सम्भोग का खेल ले लो पर जब नए खेल में वासना के ज्वर की आग बदन में जल उठती है तो उसके तपन का
आनंद उतना ही मीठा होता है। और षोडशी के कमसिन शरीर भी प्रज्जवलित होती है। मैं अब गान्ड-मर्दन के अतिरेक से अनर्गल
बुदबुदा रही थी। शानू मेरे गीले चेहरे को चूम चाट कर साफ करने लेगी थी। जीजू ने मेरी कमर जकड़ कर अपने लण्ड मेरी गांड में
दनादन पल रहे थे। मेरे सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं। मैं रतिरस से औरभर उठी। मेरी चूत से रति रस की बाद बह चली थी। में
अचानक भरभरा कर झड़ गई। वासनामयी आनंद के अतिरेक से मैं सबक उठती। शानू और जीजू मिल कर मेरे चरम-आनंद की कड़ी
को टूटने ही नहीं दे रहे थे। मैं यदि एक बार झड़ी तो सौ बार झड़ी। मेरा शरीर कमोंमंद के आवेश से सिहर उठ।मैं हर चरम आनंद की
पराकाष्ठा से कांप उठती। जीजू का लण्ड बिना थके रुके धीमे हुए निरंतर मेरी गांड में अंदर बाहर अनोखी रफ़्तार से आ जा रहा
था।
ना जाने कितनी देर तक जीजू ने मेरी गांड का अविरत मर्दन किया। ना जाने कितनी बार मैं वासना के आनंद से कांपती हांफती
झड़ गयी। पर जब घण्टे बाद जीजू ने मेरी जलती गांड को अपनी अपनी मर्दानी उर्वर मलाई से सींचआ तो मैं लगभग होश खो
बैठी थी।
जीजू ने मुझे बिस्तर पे ढुलक जाने दिया और अपना वीर्य और मेरी गांड के रस से लिसे लण्ड को इन्तिज़ार करती शानू के मुंह में
ठूंस दिया। शानू ने जी भर कर जीजू का लण्ड चूस चाट कर साफ़ कर दिया। लेकिन शानू रुकी नहीं और जीजू की भारी मोटी
उर्वर जननक्षम वीर्य पैदा करने वाले बड़े बड़े अण्डों को सहलाते हुए उनके मुश्किल लण्ड को फिर से तनतना दिया।
जीजू किसी किताबी कभी न संतुष्ट होने वाले आदिमानव की तरह शानू के ऊपर टूट पड़े। उन्होंने उसके होंठों को चूसा , उसके
उगते चूचियों को मसला और चूचुकों को चूस चूस कर लाल कर दिया। उसकी पहले से ही गीली चूत को चाट कर तैयार कर के
उसे मेरी खुली जांघों के बीच में झुका दिया।
शानू घोड़ी बनी मेरी चूत में अपना मुंह दबा कर जीजू के लण्ड के सगत के लिए तैयार थी।
जीजू ने उसके दोनों चूचियों को मुट्ठी में भर कर अपना घोड़े जैसा लण्ड के सुपाड़े को शानू की नन्ही चूत के द्वार पे टिकाया और
एक भीषण झटके से सुपाड़ा शानू की चूत में ठूंस दिया। मैंने शानू का मुंह अपनी चूत में दबा लिया। शानू बिलबिला तो उठी पर
थोड़ी देर पहले की लम्बी चुदाई से उसकी चूत खुल गयी थी। तीन चार धक्कों में जीजू का वृहत भीमकाय शानू की कमसिन
नाबालिग चूत में जड़ तक समा गया। शानू जीजू के पहले पांच छह धक्के सबक सिसक कर स्वीकार किये फिर चुदाई की मस्ती
में खो गयी।
उसने लपक कर मेरी चूत चाटनी शुरू कर दी। जीजू का लण्ड अब अश्लील फचक फचक फचक की आवाज़ करता शानू की
चूत में लपक हचक कर अंदर बाहर आ जा रहा था। कमरे में मेरी और शानू की सिसकारियाँ गूँज उठी। शानू ने अपने बढ़ते तजुर्बे
को दिखते हुए एक हाथ से मेरा डायन स्तन दबोच हाथ की दो उँगलियाँ मेरी ताज़ी ताज़ी चूड़ी गांड में घुसेड़ दीं।
उसके कभी होंठ और कभी दांत मेरे तन्नाए भग-शिश्न को चूमते खींचते तो मैं भी बिलबिला उठती।
जब मैं या शानू चरम-आनंद के पटाखों की तरह फुट जातीं तो हमारी हलकी सी सिसकी भरी चीख जीजू के लिए हमारे झड़ने
का बिगुल बजा देतीं।
जीजू की मांसल जांघें शानू के गोल मुलायम चूतड़ों पे थप्पड़ सा मार रहीं थीं। उनका लण्ड अब बीएस एक को चोद रहा था।
ज़ोरदार, धमकदर, सुपाड़े से जड़ तक भयंकर धक्कों से। शानू पूरी हिल जाती पर उसने मेरी चूत को एक क्षण भी अकेला नहीं
छोड़ा।
जीजू के दिल भर कर शानू की चूत को अपने विकराल लण्ड से रौंदा। और जब वो झड़ें तो हम दोनों इतनी बार झड़ चुकीं थीं
की थक कर चूर हो गईं। पर सम्भोग की थकन में भी मीठा आनंद होता है और शीघ्र ताज़ी उगने वाली कामवासना का पैगाम भी।
और वो ही हुआ।
थोड़ी देर बाद हम तीनों लेते हुए थे। जीजू हमारे बीच में और उनके हाथ मेरे और शानू के उरोजों को शाला मसला तरहे थे। शानू और
मेरे नन्हे हाथ उनके दानवीय आकार के आधे सोये लण्ड को जगाने में मशगूल थे। जीजू को और हमें दो घनघोर चुदाई के बाद कुदरत
की फ़ितरत की तरह पेशाब लगने लगा। जीजू ने शानू को कन्धों पर उठा लिया बच्चे की तरह।
बिना किसी के कुछ कहे जीजू ने पहल की और जल्दी ही वि मेरी खुली जांघों के बीच में बैठे मेरे सुनहरी शर्बत का मज़ा लूट रहे थे।
शानू ने भी उनकी भड़ास मिटाई। एक बून्द भी बर्बाद नहीं की जीजू ने हमारे बेशकीमती तोहफे की । जीजू ने अपना खारा सुनहरा
शर्बत ईमानदारी से आधा आधा शानू और मेरे बीच में बाँटा। फिर हम दोनों उनके लण्ड को चूसने सहलाने लगे। जीजू जैसे सांड को
क्या चाहिए साली की चुदाई करने के लिए - एक इशारा। और हम दोनों तो इशारों की पूरी दुकान खोल कर बैठे थे।
जीजू ने मुझे और शानू को कमोड के ऊपर झुका कर बारी बारी से हमने पीछे से चोदने लगे।
जब शानू या मैं एक बार झड़ जाती तो वो चूत बदल देते। हमें तीन बार झाड़ कर जीजू हमें बिस्तर पे ले गए। जीजू ने मुझे पीठ पर
लिटाया और शानू को मेरे ऊपर। हमारे चूतड़ बिस्तर के किनारे पे थे। अब जीजू बस थोड़ी सी मेहनत से हमारी चूत बदल सकते
थे। उन्होंने इस बार जो कड़कड़ी बनाई उससे शानू और मेरे तो अस्थिपंजर हिल उठे। आखिर कार जब झड़-झड़ के हमारी जान ही
निकल गयी जीजू ने हम दोनों को खींच कर अपने वीर्य की बारिश हमारे मुंह के ऊपर कर दी। उनके गरम वीर्य की बौछारें शानू और
मेरी आँखों में भी चली गईं। फिर जीजू ने शानू और मेरी नाक उठा कर हमारी नासिकाएँ भी भर दी वीर्य की बौछार से।
उस रात जीजू ने हमें तीन चार बार और चोदा उसमे मेरी गांड-चुदाई भी शामिल थी। फिर हम तीनों आखिर बार की चुदाई के बाद की
मीठी थकान से हार कर गहरी नींद में सो गए।
मेरी एक बार आँख खुली तो लगभग ग्यारह बज रहे थे सुबह के पर शानू अभी भी जीजू के सूखते वीर्य से लिसी गहरी नींद में सो रही
थी। मैं भी आँख बंद कर निंद्रा देवी की गॉड में ढुलक गयी। जीजू गायब थे बिस्तर से।
मैं जब दोबारा उठी तो लगभग दोपहर हो चुकी थी। शानू अभी भी बच्ची की तरह थकी हारी गहरी नींद में थी। मेरी वस्ति पेशाब से भरी
मचल रही थी। मैं लाचारी से उठ स्नानघर ले गयी जब तक मैं अपना मुत्र झरझर करती फ़ुहार से शनुभि आँखें रगड़ती आ गयी स्नानघर
से। मैंने उसे गोद में बिठा लिया एयर उसने मेरी फैली जांघों के बीच में अपना मूत्राशय खोल दिया। शानू के गरम मूत्र की फुव्वार मेरे
पेंडू को भिगोती कमोड में झरने की तरह गिरने लगी। मैंने उनींदी प्यारी शानू के गुलाबी सूजे होंठों को प्यार से चुमाँ।
"कुम्भकरण की भतीजी क्या चल कर नहीं देखना नसीम आपा की अब्बू के साथ पहली रात कैसी गुजरी? “ मैंने शानू की नासिका
को नोक काटते हुए पूछा।
मानों उसे जैसे बिजली का करंट लग गया हो ,"हाय रब्बा मैं तो भूल ही गयी। कैसे भूल गयी मैं ?"
हम दोनो जल्दी से तैयार हो कर अकबर चाचू के कमरे की ओर दौड़ पड़े। दोनों के नई कोई कपड़ा पहनने का प्रयास नहीं किया।
नसीम आपा चित्त बिस्तर में गाफिल बेहोश सी सो रहीं थीं। उनके उरोजों पर नीले लाल बेदर्दी से मरोड़ने मसलने के निशान थे। वैसे ही
निशान उनकी जाँघों और कमर पर थे।
उनके शरीर और चहरे पर भूरे, सफ़ेद सूखे शरीर के रसों के थक्के लगे हुए थे। उनकी सुंदर फड़कती नासिका के दोनों नथुने सूखे वीर्य
से भरे हुए थे। ठीक उसी तरह उनकी आँखें भी। नसीम आपा उस वक्त मोनालिसा, क्लियोपैट्रा , वीनस दी माईलो किसी भी
काल्पनिक दैविक सौंदर्य की माप के स्तर से सुंदर लग रहीं थीं। नसीम आपा अपने पुरुष के सानिध्य और सम्भोग से तृप्त और थकी
सुंदरता की मूरत बानी मुझे और शानू को उस समय भ्रमणद की सबसे सुंदर स्त्री लग रहीं थीं। मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण विचार थे
क्योंकि उस भ्रमांड में मेरे जन्मदात्री मम्मी भी थीं और मेरे लिए उनसे सुंदर कोई भी नहीं था।
हम दोनों नसीम आपा से दोनों ओर कूद कर बिस्तर पर लेट गए। मैंने उनका गहरी साँसे और हलके हलके मादक खर्राटे लेते चेहरे को
हांथो में भर कर चूमने लगी। नसीम आपा चौंक कर जग उठीं। उन्होंने ने मुझे अपनी बाहों में भर कर अपना मुंह चूमने चूसने दिया। मैंने
उनके चेहरे पर चिपके अकबर चाचू के सूखे वीर्य, नसीम आपा की गांड के रस के थक्के जीभ से चाट चाट कर साफ़ कर दिए। फिर
मैंने अपनी जीभ की नोक उनके नथुनों में घुसा कर चाचू का सूखा वीर्य चूसने लगी। मैंने अपनी लार नसीम आपा के नथुनो में बहने दी।
नसीम आपा ने अपनी सुंदर नासिका को सिकोड़ कर ज़ोर से झींक मारी। मैंने उनकी नासिका को तैयारी से अपने मुंह में भर लिया
था। जब मैं संतुष्ट हो गयी की नसीम आपा की नासिका उनके अब्बू के वीर्य से साफ़ हो गयी है तभी मैंने उसे अपने गीले मुंह से
आज़ाद किया।
"आपा कैसी रही कल की रात? ,"शानू जिसने उनका शरीर वैसे ही चूस चाट कर साफ़ किया था बेचैनी से बोली।
"हाय शानू हाय सीमा क्या बताऊँ। कल की रात तो ज़न्नत की सैर थी। काश खुदा इस रात को हमेशा मेरे दिमाग़ में चलती तस्वीर
की तरह गोद दे ," नसीम आपा के चेहरे पर छाये संतोष ,फख्र और प्यार को समझने के लिए , कोई शब्द भी नहीं थे , उसके
विवरण करने के लिए।
नसीम आपा ने बारी बारी से शानू और मुझे चूमा और फिर कहा ,"नेहा तुझे तो मैं पहले ही अपनी ज़िंदगी से भी ज़्यादा प्यार देने का
वायदा कर चुकीं हूँ। पर अब तो तू मेरी खून से भी करीब हो गयी है। तू और शानू अब मेरी नहीं बहनें हैं जिसके ऊपर मैं अपनी ज़िंदगी
बिखेर दूंगीं ," नसीम आपा की आवाज़ में भावुकपन था।
"आपकी ज़िंदगी तो हमें अपने से भी प्यारी है नसीम आपा। आपकी उम्र को हज़ारों साल और जुड़ जाएँ। ,"मैंने भी रुआंसी होते हुए
कहा।
"आपा आप ऐसी बात करके क्यों रुला रहीं हैं हमें ," शानू तो बिलकुल रोने जैसी हो गयी।
"माफ़ करो अपनी पागल बड़ी बहन को। मैं तो कल रात की सौगात का शुक्रिया अदा कर रही थी ," नसीम आपा ने हम दोनों को
प्यार से चूम कर कहा।
" नसीम आपा क्या चाचू ने चटाई इस्तेमाल की?" मैंने नसीम आपा के सूजे नीले धब्बों से सजे उरोज़ों को सहलाते हुए पूछा।
"हां नेहा। हाय रब्बा कैसे जादुई चटाई है वो। पता है अब्बू ने अम्मी के कहने से खरीदी थी। इस चटाई पर अब ने अम्मी को हज़ारों
बार चोदा है ," नसीम आपा किलक कर बताने लगीं।
" क्या आपने चाचू का सुनहरी शरबत पिया ?, " मैं उत्सुकता से मरी जा रही थी।
" हां नेहा खूब जी भर कर पिया और पिलाया भी। तो बात और भी आगे बढ़ा दी मैं तो शर्म से मर गयी उनकी चाहत सुन कर
....... ," नसीम आपा को बीच में टोक दिया शानू ने।
"आपा सब कुछ शुरू से बताओ ना। बिना कुछ भी छोड़े। नेहा तू बीच बीच पूछ ," मास्टरनी शानू ने हम दोनों को डाँटा।
हम दोनों मुस्कुरा कर चुप हो गए और नसीम आपा अपने अब्बू के साथ बितायी पहली रात की कहानी विस्तार से सुनाने लगीं ।
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