21-07-2019, 07:49 AM
(This post was last modified: 25-11-2020, 01:21 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
वो ,... उनकी सास और ,....
चुरमुर करती चटकने को बेताब लाल लाल चूड़ियां ऑलमोस्ट कुहनी तक ,कंगन ,बाजूबंद पतली कमर में पतली सी चांदी की करधन , पैरों में चौड़ी वाली हजार घुंघरुओं की पायल ( जो मैंने उन्हें उनके बर्थडे की रात पहनाई थी,)चौड़ा गीला ताजा महावर , और रुमझुम करते सारी रात बजने को बेताब बिछुए ,...और हाँ गले में मंगलसूत्र भी ,
काजल से कजरारी आँखे , लालगुलाबी भरे भरे रसीले होंठ , मालपुवा ऐसे कचकचा के काटने लायक गाल और जो पैडेड ब्रा उन्होंने चोली के नीचे पहन रखी थी ,एकदम किसी किशोरी के नयी नयी गौने के दुल्हन के अनछुए टेनिस बाल साइज के बूब्स लग रहे थे ,
मेरा तो मन कर रहा था की बस ,... लूट लूँ ,...
और सबसे बढकर उनका एट्टीट्यूड , वो एकदम गौने की रात वाली लाज शरम, पलाश की तरह दहकते ब्लश करते गाल ,झुकी झुकी निगाहें,... जैसे मन कर भी रहा हो डर भी लग रहा हो , ... क्या होगा आज रात ,..
पूरी रात मेरी थी
( थी तो पूरी जिंदगी मेरी )
" हे जरा चल के तो दिखाओ "
जिस तरह उन्होंने शरमाते हुए धीरे से हूँ बोला और घूँघट हल्का सा हट गया ,
लगा जैसे हजारों दिए अँधेरी रात में एक साथ जल गए हों ,
हजार जल तरंग एक साथ बज उठे हों ,
और हलके हलके कदम रखते हुए उन्होंने कैट वाक् शुरू किया ,
मेरी निगाहे तो उनके नितम्बो पर चिपकीं थी ,एकदम गज गामिनी।
अब मुझसे नहीं रहा गया।
दरवाजा घुसने के साथ ही उन्होंने बंद कर दिया था ,एक मद्धम मद्धम नाइट बल्ब जल रहा था ,मदिर मदिर,
टीवी पर सीरियल आ रहा था , बहुत हलकी आवाज में ,लेकिन अब उसे कौन देख रहा था ,यहाँ सामने हॉट हॉट पूरी अडल्ट फिल्म चल रही थी ( जैसी हमारे मोहल्ले वाला केबल वाला रोज रात में एक बजे से लगाता था )
मैंने बोल ही दिया , आओ न। इन्तजार करना बहुत मुश्किल हो रहा था।
और वो आ गए ,मेरे साथ हलकी सी रजाई जो मैंने ओढ़ रखी थी उसके अंदर।
एसी फुल ब्लास्ट पर चल रहा था।
वो आये और मैंने उन्हें दबोच लिया ,आज मैं शिकारी थी और वो शिकार ,...मम्मी से तो वो बच गए लेकिन मुझसे नहीं बचने वाले थे।
मैंने उन्हें गपूच लिया और हलके सहलाती रही , कभी गालों को कभी होंठों को।
फिर हलके से दबा लिया।
जल्दी नहीं थी मुझे रात अभी जवान थी , और मुझे धीमे धीमे मजा लेना था।
वह चुपचाप लेटे , बस थोड़ा लजाते कुनमुनाते ,
जो करना था मैं कर रही थी , उनकी लंबी लंबी गहरी साँसे बस उनकी उत्सुकता ,उत्तेजना का राज खोल रही थीं।
और मुझे पता चल रहा था की उन्हें कितना मजा आ रहा था।
बाहर रात धीरे धीरे झर रही थी ,
हलकी सी खुली खिड़की सी रात रानी की भीनी भीनी खुशबू अंदर आ रही थी और साथ साथ में थोड़ी थोड़ी मीठी मीठी चांदनी भी।
और फिर हलकी सी खट खट की आवाज हुयी ,
हम दोनों ने उसे अनसुनी कर दिया।
हम दोनों आपस में ही खोये थे ,लेकिन आवाज तेज हो गयी फिर और फिर बार बार,
और फिर मम्मी की आवाज सुनाई पड़ी ,
"तुम लोग सो गए हो क्या" ?
जब तक ये अपना हाथ मेरे मुंह पे लाकर मेरा मुंह भींचते ,मेरे मुंह से निकल ही गया
" हाँ मम्मी "
और उसी समय मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया लेकिन अब हो क्या सकता था।
" दरवाजा खोलो न " मम्मी की टिपकिकल डिमांडिंग आवाज सुनाई पड़ी।
………………….
खूब निदासी आँखों के साथ जुम्हाई लेते ,अंगड़ाई लेते मैंने जाके दरवाजा खोला।
ये एकदम रजाई ओढ़ के दीवार की ओर दुबक गए ,आँखे जोर से बंद कर के।
" अभी अभी नींद लगी थी ,बहुत तेज। आप देर से नॉक कर रही थीं क्या ?" मैंने बहाना बनाया। और ये भी जोड़ा ,
" बिचारे तो थके मांदे , आधे घंटे पहले ही पलंग पर पड़ते सो गए। "
" आधे घण्टे हो गए नॉक करते , तुम न घोड़े बेच कर के सोती हो ,बचपन की आदत है तेरी। " मम्मी ने बुरा सा मुंह बना के हड़काया और मतलब साफ़ किया ,
" थोड़ी देर पहले ही नींद खुल गयी थी मेरी ,फिर नहीं आ रही थी। मैंने सोचा चलो सीरियल का रिपीट आ रहा होगा देख लूँ ,शुरू हो गया क्या ?
उनकी निगाहें टीवी पर गडीं थी और मेरी बिस्तर पर जहाँ ये दुबके छिपे पड़े थे।
बस मैंने उन्हें बचाने के लिये ,... मैं घुस गयी रजाई में एकदम उनसे चिपक कर ,
" आइये न मम्मी ,बस अभी शुरू हुआ है। "
और मम्मी भी रजाई में धंस ली सीरियल देखने लगी।
गनीमत थी उनके और मम्मी के बीच में मैं थी , चीन की दीवाल की तरह।
मम्मी का ध्यान पूरी तरह सीरियल पर लगा था और मैंने मना रही थी किसी तरह आधा घंटा पूरा हो सीरियल ख़तम हो और मॉम जायँ अपने कमरे में।
आधे घण्टे ख़तम हो गए ,सीरियल भी ख़तम हो गया लेकिन मम्मी बजाय जाने के चैनेल सर्फ़ करने लगीं और मुझसे बोली ,
" ज़रा पानी लाओ , गला सूख रहा है। "
मैं एक दो मिनट रुकी पर रास्ता भी क्या था ,मैं पलंग से उठ कर गयी और जब लौटी तो ,....
चुरमुर करती चटकने को बेताब लाल लाल चूड़ियां ऑलमोस्ट कुहनी तक ,कंगन ,बाजूबंद पतली कमर में पतली सी चांदी की करधन , पैरों में चौड़ी वाली हजार घुंघरुओं की पायल ( जो मैंने उन्हें उनके बर्थडे की रात पहनाई थी,)चौड़ा गीला ताजा महावर , और रुमझुम करते सारी रात बजने को बेताब बिछुए ,...और हाँ गले में मंगलसूत्र भी ,
काजल से कजरारी आँखे , लालगुलाबी भरे भरे रसीले होंठ , मालपुवा ऐसे कचकचा के काटने लायक गाल और जो पैडेड ब्रा उन्होंने चोली के नीचे पहन रखी थी ,एकदम किसी किशोरी के नयी नयी गौने के दुल्हन के अनछुए टेनिस बाल साइज के बूब्स लग रहे थे ,
मेरा तो मन कर रहा था की बस ,... लूट लूँ ,...
और सबसे बढकर उनका एट्टीट्यूड , वो एकदम गौने की रात वाली लाज शरम, पलाश की तरह दहकते ब्लश करते गाल ,झुकी झुकी निगाहें,... जैसे मन कर भी रहा हो डर भी लग रहा हो , ... क्या होगा आज रात ,..
पूरी रात मेरी थी
( थी तो पूरी जिंदगी मेरी )
" हे जरा चल के तो दिखाओ "
जिस तरह उन्होंने शरमाते हुए धीरे से हूँ बोला और घूँघट हल्का सा हट गया ,
लगा जैसे हजारों दिए अँधेरी रात में एक साथ जल गए हों ,
हजार जल तरंग एक साथ बज उठे हों ,
और हलके हलके कदम रखते हुए उन्होंने कैट वाक् शुरू किया ,
मेरी निगाहे तो उनके नितम्बो पर चिपकीं थी ,एकदम गज गामिनी।
अब मुझसे नहीं रहा गया।
दरवाजा घुसने के साथ ही उन्होंने बंद कर दिया था ,एक मद्धम मद्धम नाइट बल्ब जल रहा था ,मदिर मदिर,
टीवी पर सीरियल आ रहा था , बहुत हलकी आवाज में ,लेकिन अब उसे कौन देख रहा था ,यहाँ सामने हॉट हॉट पूरी अडल्ट फिल्म चल रही थी ( जैसी हमारे मोहल्ले वाला केबल वाला रोज रात में एक बजे से लगाता था )
मैंने बोल ही दिया , आओ न। इन्तजार करना बहुत मुश्किल हो रहा था।
और वो आ गए ,मेरे साथ हलकी सी रजाई जो मैंने ओढ़ रखी थी उसके अंदर।
एसी फुल ब्लास्ट पर चल रहा था।
वो आये और मैंने उन्हें दबोच लिया ,आज मैं शिकारी थी और वो शिकार ,...मम्मी से तो वो बच गए लेकिन मुझसे नहीं बचने वाले थे।
मैंने उन्हें गपूच लिया और हलके सहलाती रही , कभी गालों को कभी होंठों को।
फिर हलके से दबा लिया।
जल्दी नहीं थी मुझे रात अभी जवान थी , और मुझे धीमे धीमे मजा लेना था।
वह चुपचाप लेटे , बस थोड़ा लजाते कुनमुनाते ,
जो करना था मैं कर रही थी , उनकी लंबी लंबी गहरी साँसे बस उनकी उत्सुकता ,उत्तेजना का राज खोल रही थीं।
और मुझे पता चल रहा था की उन्हें कितना मजा आ रहा था।
बाहर रात धीरे धीरे झर रही थी ,
हलकी सी खुली खिड़की सी रात रानी की भीनी भीनी खुशबू अंदर आ रही थी और साथ साथ में थोड़ी थोड़ी मीठी मीठी चांदनी भी।
और फिर हलकी सी खट खट की आवाज हुयी ,
हम दोनों ने उसे अनसुनी कर दिया।
हम दोनों आपस में ही खोये थे ,लेकिन आवाज तेज हो गयी फिर और फिर बार बार,
और फिर मम्मी की आवाज सुनाई पड़ी ,
"तुम लोग सो गए हो क्या" ?
जब तक ये अपना हाथ मेरे मुंह पे लाकर मेरा मुंह भींचते ,मेरे मुंह से निकल ही गया
" हाँ मम्मी "
और उसी समय मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया लेकिन अब हो क्या सकता था।
" दरवाजा खोलो न " मम्मी की टिपकिकल डिमांडिंग आवाज सुनाई पड़ी।
………………….
खूब निदासी आँखों के साथ जुम्हाई लेते ,अंगड़ाई लेते मैंने जाके दरवाजा खोला।
ये एकदम रजाई ओढ़ के दीवार की ओर दुबक गए ,आँखे जोर से बंद कर के।
" अभी अभी नींद लगी थी ,बहुत तेज। आप देर से नॉक कर रही थीं क्या ?" मैंने बहाना बनाया। और ये भी जोड़ा ,
" बिचारे तो थके मांदे , आधे घंटे पहले ही पलंग पर पड़ते सो गए। "
" आधे घण्टे हो गए नॉक करते , तुम न घोड़े बेच कर के सोती हो ,बचपन की आदत है तेरी। " मम्मी ने बुरा सा मुंह बना के हड़काया और मतलब साफ़ किया ,
" थोड़ी देर पहले ही नींद खुल गयी थी मेरी ,फिर नहीं आ रही थी। मैंने सोचा चलो सीरियल का रिपीट आ रहा होगा देख लूँ ,शुरू हो गया क्या ?
उनकी निगाहें टीवी पर गडीं थी और मेरी बिस्तर पर जहाँ ये दुबके छिपे पड़े थे।
बस मैंने उन्हें बचाने के लिये ,... मैं घुस गयी रजाई में एकदम उनसे चिपक कर ,
" आइये न मम्मी ,बस अभी शुरू हुआ है। "
और मम्मी भी रजाई में धंस ली सीरियल देखने लगी।
गनीमत थी उनके और मम्मी के बीच में मैं थी , चीन की दीवाल की तरह।
मम्मी का ध्यान पूरी तरह सीरियल पर लगा था और मैंने मना रही थी किसी तरह आधा घंटा पूरा हो सीरियल ख़तम हो और मॉम जायँ अपने कमरे में।
आधे घण्टे ख़तम हो गए ,सीरियल भी ख़तम हो गया लेकिन मम्मी बजाय जाने के चैनेल सर्फ़ करने लगीं और मुझसे बोली ,
" ज़रा पानी लाओ , गला सूख रहा है। "
मैं एक दो मिनट रुकी पर रास्ता भी क्या था ,मैं पलंग से उठ कर गयी और जब लौटी तो ,....