19-07-2019, 02:21 PM
(This post was last modified: 19-07-2019, 02:24 PM by thepirate18. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
Update 25
हम दोनों नहा कर अपने कॉलेज का कार्य खत्म कर टीवी देखने पारिवारिक-भवन में चल दिए। कुछ देर में मम्मी डैडी भी वहां आ गए। मम्मी के चेहरे पर अत्यंत प्यारी थकन झलक रही थी। उस थकन से मम्मी का देवियों जैसा सुंदर चेहरा और भी दमक रहा था। मुझे थोड़ा डर लगा कि अक्कू की चुदाई से क्या मेरा मुंह भी ऐसे ही दमक जाता है और क्या मम्मी को संदेह हो सकता है ?
लेकिन जब तक मैं और फ़िक्र कर पाऊँ डैडी ने मुझे अपनी गोद में खींच कर बिठा लिया और मैं सब कुछ भूल गयी। मम्मी ने प्यार से अक्कू को चूमा और अक्कू हमेशा की तरह मम्मी की गोद में सर रख कर सोफे पर लेट गया। मम्मी ने उसके घने घुंगराले बालों में अपनी कोमल उँगलियाँ से कंघी करने लगीं।
देश-विदेश के समाचार सुन कर डैडी चहक कर बोले ," कौन आज नयी स्टार-वार्स की मूवी देखना चाहता है। "
मैं लपक कर खुशी से चीख उठी ," मैं डैडी मैं और छोटू भैया भी." मुझे अक्कू के बिना तो कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता था।
अक्कू ने भी खुश हो कर किलकारी मारी ," डैडी फिर खाना फ़ूड-हट में ?" फ़ूड-हट शहर का सबसे प्रथिष्ठिस्ट भोजनालय था।
मम्मी भी पुलक उठीं ," हम सब बहुत दिनों से फ़ूड-हट नहीं गयें हैं। "
डैडी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ,"चलिए मेरी राजकुमारी साहिबा अपने छोटे भाई को तैयार कर जल्दी से खुद तैयार हो जाइए। "
अक्कू छुटपन से ही मेरी ज़िम्मेदारी बन गया था। उस के बिना मैं तड़प उठती थी।
मम्मी ने हमारी भागती हुई पीठ से पूछा ," आप दोनों का कॉलेज का काम तो पूरा हो गया ना ?"
हम दोनों ने चिल्ला कर कहा , "हाँ मम्मी। " और हम दोनों अपने कमरे की ओर दौड़ पड़े।
हमें डैडी और मम्मी के साथ और बाहर खाना खाना बहुत ही प्रिय था। ड्राइवर के साथ नई फिल्म देखने में बहुत मज़ा नहीं आता जितना मम्मी-पापा के साथ आता था। हम घर देर से शाम पहुंचे। मम्मी डैडी के लिए स्कॉच लाने के लिए उठीं तो उन्हें रोक कर कर खुद डैडी का पसंदीदा स्कॉच का गिलास ले आयी, उसमे सिर्फ दो बर्फ के क्यूब्स थे जैसा डैडी को पसंद है ।
डैडी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बिठा कर मेरी इतनी प्रशंसा की मानो मुझे नोबेल प्राइज़ मिल गया हो। मम्मी ने मेरे गर्व के गुब्बारे को पिचका दिया ,"अजी अपनी प्यारे बेटी से पूछिए की मम्मी की ड्रिंक कहाँ है ?"
मेरे मुंह से "ओह ओ !", निकल गयी और मैंने हँसते हुए प्यार भरी माफी माँगी , " सॉरी मम्मी। "
पर तब तक अक्कू दौड़ कर मम्मी का ड्रिंक बना लाया। बेलीज़ एक बर्फ के क्यूब के साथ, मम्मी के एक हल्का का घूँट भर कर अक्कू की प्रशंसा के पुल बांध दिए।
हम परिवार के शाम के अलसाये सानिध्य में थोड़ा कटाक्ष,थोड़ा मज़ाक, पर बहुत प्यार संग्रहित होता है।
मम्मी ने रात के खाने के लिए तैयार होने को हमें कमरे में भेज दिया।
अक्कू ने मुझे लपक कर दबोच लिया और हमारे खुले मुंह एक दुसरे के मुंह से चिपक गए। अक्कू के हाथ मेरे गोल मटोल मुलायम चूतड़ों को मसल रहे थे।
मेरे कमसिन अविकसित चूत भीग गयी। मेरी गांड का छेद भी फड़कने लगा ," अक्कू हमें देर हो जाएगी। थोड़ा सब्र करो। " हालांकि मेरा मन भी अक्कू ले लंड को पहले चूस कर अपनी गांड में घुसाने का हो रहा था पर मैं उस से बड़ी थी और उसके उत्साह को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी मेरे थी।
अक्कू ने मुझे और भी ज़ोर से जकड़ लिया ,"अक्कू देखो डैडी और मम्मी कितने संयम से बैठे थे। क्या उनका मन नहीं करता की एक दुसरे के कपडे फाड़ कर डैडी मम्मी की गांड मारने लगे। " मेरा ब्रह्म-बाण काम कर गया।
खाने के बाद सारे परिवार ने मम्मी के चहेते धारावाहिक कार्यक्रम देखे और फिर सोने का समय हो गया। हम दोनों ने डैडी और मम्मी को शुभ-रात्रि चूम कर कमरे की ओर दौड़ पड़े।
मम्मी का " अरे आराम से जाओ, गिर कर चोट लगा लोगे " चिल्लाना हमेशा की तरह हमारे बेहरे कानों के ऊपर विफल हो गया।
मैं अक्कू को बिलकुल रोकना नहीं चाह रही थी। अक्कू ने मेरी छाती के उभारों को निर्ममता से मसल कर दर्दीला और लाल कर दीया। मैंने उसका लंड चूस कर एक बार उसका मीठा रस पी गयी। अक्कू ने मेरी चूत और गांड चाट, चूस कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया और फिर अक्कू ने मेरी गांड फाड़ने वाली चुदाई शुरू की तो देर रात तक मुझे चोदता रहा जब तक में निढाल हो कर पलंग पर लुढक न गयी।
तब से अक्कू अरे मेरे कुछ नियम से बन गए। हम कॉलेज से आने के जल्दी से नाश्ता खा कर कमरे में जा कर पहले एक दुसरे को झाड़ कर कॉलेज का काम ख़त्म करते थे। फिर अक्कू मेरी गांड मारता था उसके बाद हम एक दुसरे के मूत्र से खेलते थे और हमें एक दुसरे का मूत्र और भी स्वादिष्ट लगने लगा। अक्कू को कॉलेज में भी मेरी आवशयक्ता पड़ने लगी। मैं मौका देख कर उसका लंड चूस कर उसे शांत कर देती थी।
मेरे किशोरावस्था में कदम रखने के कुछ महीनों में ही जैसे जादू से मेरे स्तनों का विकास रातोंरात हो गया। अब मेरी छाती पर उलटे बड़े कटोरों के समान , अक्कू को बहुत प्यारे लगने वाले, दो उरोज़ों का आगमन ने हमारी अगम्यागमन समागम को और भी रोमांचित बना दिया। अब अक्कू कई बार मेरे उरोज़ों को मसल, और चूस को सहला कर मुझे झाड़ने में सक्षम हो गया था।
अक्कू भी ताड़ के पेड़ की तरह लम्बा हो रहा था मुझे उसका लंड बड़ी तेज़ी से और भी लम्बा और मोटा होने का आभास निरंतर होने लगा था।
एक शुक्रवार के दिन अक्कू को सारा दिन कॉलेज में मेरी ज़रुरत थी पर हमें एकांत स्थल ही नहीं मिला। उस दिन हमनें अपना कॉलेज का काम उसी दिन ख़त्म करने की कोई आवशयकता नहीं थी। मुझे अपने छोटे भैया के भूखे सख्त वृहत लंड के ऊपर बहुत तरस आ रहा था।
अक्कू और मैं जब अपनी रोज़ की रति-क्रिया में सलंग्न हो गए तो उस दिन हम दोनों ने पागलों के तरह संतुष्ट न होने का मानो संकल्प कर लिया था। हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा। अक्कू मेरी तीसरी बार गांड मार रहा था। उसके बड़े हाथ मेरे उरोज़ों को बेदर्दी से मसल रहे थे। उसका मोटा लम्बा लंड निर्मम प्रहारों मेरी गांड का लतमर्दन कर रहा था। मेरी हल्की चीखें, ऊंची सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।
हमें मम्मी की खाने के लिए आने की पुकारें सुनाई नहीं दीं।
मैं ज़ोरों से अक्कू से विनती कर रही थी , "अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड मारो। अक्कू मेरी गांड फाड़ दो जैसे डैडी मम्मी की गांड फाड़ते हैं। "
अक्कू ने भी ज़ोर से घुरघुरा कर बोला, "दीदी मेरा लंड तो हमेशा आपकी गांड में घुसा रहना चाहता है। " अक्कू ने मेरे दोनों कंचों जैसे चूचुकों को उमेठ कर मेरी चीख को और भी परवान चढ़ा दिया।
उस समय यदि भूताल भी आ जाता तो भी अक्कू और मुझे पता नहीं चलता। पर एक शांत स्थिर आवाज़ हम दोनों के वासना से ग्रस्त मस्तिष्कों की मोटी तह को छेद कर प्रविष्ट हो गयी , "अक्कू और सुशी, जब तुम दोनों फारिग हो जाओ तो डैडी और मुझे तुम दोनों से आवश्यक बात करनी है। "
मम्मी के शांत स्वरों को सुन कर अक्कू मुझे से इतनी जल्दी लपक कर दूर हुआ मानो की उसे किसी ने बिजली का झटका लगा दिया हो।
उसका मोटे सुपाड़े ने मेरी गांड के तंग छेद को रबड़ बैंड के तरह तरेड़ दिया और मेरे रोकते हुए भी मेरी चीख निकल गयी।
मम्मी डैडी शांति से हमें देख रहे थे। अक्कू और मेरे तो प्राण निकल गए।
डैडी ने शांत स्वाभाव से कहा ,"पहले तो मम्मी और मैं तुम दोनों से क्षमाप्रार्थी हैं की तुम दोनों के बंद कमरे में में हम बिना तुम्हारी आज्ञा के प्रवेश हो गए। पर मम्मी बहुत देर से तुम दोनों को पुकार रहीं थीं। जब हम दोनों दरवाज़ा खटखटा ही रहे थी की सुशी की उम … कैसे कहूँ ....... सुशी के चीख सुन कर हमसे रुका नहीं गया … और … " डैडी का सुंदर मुंह शर्म से लाल हो चूका था और मुझे डैडी और भी सुंदर लगे। मैं किसी और समय लपक कर उनसे लिपट काट चूम लेती पर उस दिन तो मेरा हलक रेत की तरह सूखा हो गया था।
"हमें यह तो पता है की तुम क्या कर रहे थे। पर शायद तुम दोनों हमें कुछ समझा सको की यह सब कब से .... कैसे ," मम्मी भी डैडी की तरह अवाक अवस्था में शर्म से लाल और शब्द विहीन हो गयीं।
अक्कू ने उस दिन मुझे अपनी समझदारी से कायल कर दिया ,"मम्मी यह सब मेरे दीदी के प्यार के वजह से मेरे शरीर में हुए प्रभावों से शुरू हुआ। मैं गलती से दीदी को दूर करना शुरू कर दिया। दीदी के एरी तरफ प्यार इतना प्रबल था की उन्होंने मेरे लिए मेरे लं …… सॉरी पीनिस को सहलाना…., " अक्कू भी घबरा और शर्मा रहा था।
"मम्मी मैं बड़ी हूँ और सारी ज़िम्मेदारीमेरी है। मैं अक्कू को अपना प्यार पूरी तरह से देना चाहती हूँ। और मुझसे उसके शरीर में मेरी वजह से होते बदलाव की वजह से अपने से दूर नहीं जाने दे सकती। और फिर मैंने सोचा की आपको और डैडी को देख कर मैं शायद अक्कू की देखभाल और भी अच्छे से कर सकूँ और फिर जो हम दोनों ने आपको देख कर सीखा उस से अक्कू और मैं बहुत खुश हैं।
क्या हमें यह नहीं करना चाहिए था ?" मेरा सूखा गला मुश्किल से इतना कुछ बोल पाया।
मम्मी और डैडी ने एक दुसरे को देर तक एक तक देखा। मम्मी ने हमेशा की तरह शीघ्र ही गलतियों के ऊपर फैसला अपने दिमाग में बैठा लिया था। मैं अब परेशान थी की मम्मी हमें क्यासज़ा देंगी?
"तो तुम दोनों चोरी से हमारी एकान्तता का उल्लंघन भी कर रहे हो ," मम्मी के शांत स्वर चिल्लाने और गुस्से से भी ज़्यादा डराते थे।
अक्कू ने जल्दी से कहा ,"मम्मी सिर्फ एक बार। उस रात के बाद हमने कभी भी वैसा नहीं ……बस उस दिन," अक्कू भी डर से बहुत विचलित था।
मम्मी ने धीरे से पूछा ,"सुशी क्या अक्कू तुम्हारी सिर्फ गांड मरता है ?"
मम्मी से मुंह से निकले उन शब्दों में से मानों मम्मी की शिष्टता से उनकी अश्लीलता गायब हो गयी।
"मम्मी उसके अलावा मैं उसके लं लं लंड को चूसती हूँ और अक्कू भी मेरी चू ….. चू ….चु ….. चूत चूसता है ," मैंने हकला कर जवाब दिया।
"इसका मतलब है की अक्कू ने तुम्हारी अब तक चूत नहीं मारी?" मम्मी ने बिना स्वर ऊंचा किये मुझसे पूछा।
अक्कू और मेरे चेहरे पर अनभिग्यता का भौंचक्कापन साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा होगा।
मैंने धीरे से हकलाते हुआ कहा ," मुझे पता ही था की अक्कू से अपनी चूत भी मरवा सकती थी। डैडी ने उस दिन सिर्फ आपकी गांड ही मारी थी। "
मम्मी ने अपना मुंह नीचे कर उसे अपने सुडौल हांथों में छुपा लिया। डैडी के शर्म से लाल चेहरे पर एक अजीब सी तिरछी मुस्कान का आभास सा होने लगा।
मम्मी का शरीर काम्पने लगा मानों वो रोने लगीं हों। मैं और अक्कू दौड़ कर मम्मी से लिपट गए ," सॉरी मम्मी। सॉरी। "
ममी ने अपने सुंदर हँसते मुंह से दोनों के सिरों को चूमा ,"अरे पागलो तुम दोनों ने डैडी और मुझसे क्यों नहीं बात की ?"
"सॉरी, हमें पता नहीं यह क्यों नहीं ध्यान आया ," वास्तव में डैडी और मम्मी हमारे किसी भी सवाल को नज़रअंदाज़ नहीं करते थे।
"अंकु, इन दोनों को तो अभी बहुत कुछ सीखना है ," मम्मी ने डैडी से हमें अपने से लिपटाते हुए कहा ,"क्या तुम दोनों डैडी और मुझसे सब कुछ सीखना चाहते हो। हम तुम दोनों को रोक तो नहीं सकते पर एक दुसरे के शरीर को और अच्छी तरह से उपभोग करने में सहायता ज़रूर दे सकतें हैं। "
अक्कू और मैं बच्चों की तरह खुशी से चीखने उछलने लगे।
डैडी ने नाटकीय अंदाज़ से अप्पने दोनों कानों को अपने हाथों से ढक लिया।
"अच्छा अब शांत हो जाओ। चलो पहले खाना खाने आ जाओ फिर हम सब इकट्ठे निर्णय लेंगें," डैडी ने हम दोनों के बालों को सहलाया।
अक्कू ने जल्दी से अपनी निक्कर ढूडनी शुरू कर दी। मम्मे ने उसे रोक कर कहा ,"अक्कू क्या तुम अपनी बड़ी बहन के आनंद को अधूरा ही छोड़ दोगे ? डैडी और मैं कुछ देर और प्रतीक्षा कर सकते हैं। तूम पहले अपनी दीदी को अच्छे से संतुष्ट करो," मम्मी के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान थी। मम्मी का दैव्य रूप किसी को भी चकाचौंध कर सकने में सक्षम था।
अक्कू और मैं जब अकेले हुए तो कई क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिर खड़े रहे फिर अचानक एक दुसरे से लिपट कर पागलों की तरह एक दुसरे को चूमने लगे।
मैंने अक्कू के तेज़ी से खड़े होते लंड को सहलाना शुरू कर दिया। अक्कू मुझे पलंग पर पेट के बल लिटा कर बेदर्दी से मेरे गांड में अपना लंड ठूंसने लगा। मेरी चीखें उसे और भी उकसाने लगीं। अक्कू ने उस शाम मेरी गांड की हालत ख़राब कर दी। डैडी और मम्मी को एक घंटे से भी ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ा।
अक्कू और मैं थोड़ा घबराते हुए और धड़कते दिल से नीचे भोजन-कक्ष की दिशा में चल दिए। लेकिन कुछ ही क्षणों में हमारा घबराना बिलकुल गायब हो गया। मम्मी और डैडी ने अत्यंत साधारण और व्यवहारिक रूप में रोज़ की तरह हमारे आगमन स्वीकार किया। डैडी ने जिस कहानी से मम्मी हंस रहीं थी उसको हमें शुरू से सुनाना कर दिया। मम्मी ने खुद ही खाना पपरोसा। दोनों नौकर आदर से कुछ दूर खड़े रहे।
हम दोनों और मम्मी एक बार फिर से, पापा की मज़ेदार कहानी पर फिर से हंस दिए। अक्कू और मैंने खूब जम कर खाना खाया।
"अरे अक्कू बेटा थोड़ा और लो ना। मुझे क्या पता था की तुम इतनी महनत करते हो ?" मम्मी ने अक्कू को चिढ़ाया और स्वयं सबसे पहले हंस दीं।
"अरे निर्मू देवी, हम भी तो उतनी ही मेहनत करते हैं। आपने हमें तो कभी भी ऐसे दुलार नहीं दिया ?" डैडी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा।
"आप को तो कई सालों का अभ्यास है मेरे बेटा तो अभी शुरूआत कर रहा है न।" मम्मी ने प्यार से अक्कू के बालों को सहलाया। अक्कू का सुंदर मुखड़ा शर्म से लाल हो गया था।
"मम्मी ," अक्कू ने शर्म से वज़न दे कर फुसफुसाया।
'मम्मी मैं भी तो मेहनत करती हूँ अक्कू के साथ, आपने मुझ पर तो कोई ध्यान नहीं दिया ?" मैंने हिम्मत दिखा कर मज़ाक में शामिल होने का प्रयास किया।
मम्मी ने मुझे कस कर चूमा ,"मेरी नन्ही बिटिया, तुम पर तो मेरी जान न्यौछावर पर तुम्हारा ख्याल रखने की तो तुम्हारे पापा की ज़िम्मेदारी है। "
मैं बिना सब समझे बच्चों की तरह खिल उठी।
अक्कू और मैं डैडी को कभी डैडी और कभी पापा कह कर सम्बोधित करते थे। पर मम्मी हमेशा उन्हें 'तुम्हारे पापा' कह कर सम्बोधित करती थीं। कुछ देर बाद में हमें पता चला कि मम्मी को 'पापा' का सम्बोधन अधिक पसंद था।
मम्मी ने हम सबको भोजन-उपरांत के मिष्ठान परोसते हुए मुस्करा कर दोनों नौकरों को छुट्टी दे दी। दोनों ने नमस्ते कर जल्दी छुट्टी मिलने की खुश में अपने निवास-स्थान की ओर चले गये। घर में काम करने वालों के निवास स्थान हमारे फ़ैली हुई जागीर पे हमारे मुख्य आवास से कुछ ही दूर थे।
मम्मी ने अक्कू की कटोरी कई बार भरी, "अक्कू बेटा थोड़ा और खालो सिरफ मेहनय कराती है पर तुम्हारे खाने का ख्याल तो सिर्फ मम्मी ही रखती है। "
मम्मी ने मेरी ओर मुस्करा कर मुझे किया कि वो सिर्फ अक्कू को चिड़ा रहीं है।
मुझे भी न जाने कहाँ से स्वतः साहस और आत्मविश्वास आ गया और मैं भी मम्मी की तरह बोलने लगी , " मम्मी अगर अक्कू ने मेहनत भी की तो उसे मज़ा भी तो आया। नहीं अक्कू?' बेचारा अक्कू को समझ नहीं आये कि वो कहाँ देखे , "ठीख है मम्मी आप अपने लाडले का ध्यान रखिये और मैं अपने पापा का ध्यान रखूँगी। मुझे पता है की आप उनसे कितना परिश्रम करवातीं हैं "
मम्मी का शर्म से लाल सुंदर मुखड़ा देख एके लीरा आत्मविश्वास और भी बढ़ गया।
मैंने मिष्ठान की कटोरी ले कर डैडी की गोद में बैठ गयी और उन्हें चमच्च से खिलने लगी।
डैडी ने मुझे अपनी बाँहों में भींच आकर हँसते हुए कहा , "सस्सहि. बिलकुल ठीक कह रही है निर्मू। कब आपने ने मुझे मेरी गॉड में बैठ कर आखिरी बार खिलाया था ?'
पापा ने मेरे लाल गालों को चुम कर उन्हें और भी लाल कर दिया।
मम्मी ने अक्कू की ओर देख कर गर्व से कहा, "अक्कू बेटा चलो, हम दोनों जोड़ी बना लेते हैं। वो दोनों पापा-बेटी को जो वो चाहें करें
!"
अक्कू का सीना फूल कर चौड़ा हो गया, जैसे ही मम्मी उसकी गोद में बैठ गयीं। उसने पुअर से अपनी मम्मी के कमर के चारों ओर दाल दीं।
मैं और मम्मी पापा और अक्कू मिष्ठान खिलाने लगे।
"अक्की बेटा देखो तो मुझे मैं कितनी बुद्धू मम्मी हूँ ? मेरे प्यारे बेटे को खाने की सारी मेहनत करनी पड़ रही है ," मम्मे ने नाटकीय अंदाज़ में माथे पर हाथ मार कर कहा।
मम्मी ने भरी चम्मच को अपने मुंह में डाल कर मिष्ठान को प्यार से चबाया और फिर अपना मुंह अक्कू के मुंह के ऊपर लगा दिया।
अक्कू की बाहें मम्मी की गुदाज़ गोल भरी-भरी गदराई कमर पर और भी कस गयीं। अक्कू का मुंह स्वतः ही खुल गया और मम्मी के मुंह से चबाया हुआ मिष्ठान अक्कू के मुंह में फिसल गया।
मुझे न जाने क्यों एक अचेतन, ज्ञानरहित ईर्ष्या होने लगी।
मैंने भी पापा की आँखों में देखा और उन्होंने मुस्करा कर मुझे बढ़ावा दिया।
"पापा आप फ़िक्र नहीं कीजिये। मम्मी मेहनत आपसे करातीं हैं और ख्याल छोटू भैया अक्कू का रखतीं हैं। आज से मैं आपकी सेहत का ख्याल रखूंगीं ," मैं ज़ोर से बोल कर मम्मी की तरह पपा को अपने मुंह में से चबाये मिष्ठान को डैडी के मुंह में भरने लगी।
डैडी ने मेरे सर को सहला कर मम्मी और अक्कू को चिढ़ाया , "भई निर्मू, सुशी के मुंह से तुम्हारे मिष्ठान और भी मीठे हो गयी। मेरा ख्याल है कि चीनी की बजाय मैं तो सुशी के मुंह की मिठास मेरी पसंद की है। "
अक्कू ने मम्मी की तरफदारी की , 'मम्मी आप उन दोनों की तरफ ध्यान नहीं दीजिये। आपके मुंह से तो नमक भी शहद से मीठा लगेगा। "
अक्कू की इतनी प्यार भरी बात से मम्मी की सुबकाई निकल गयी और उन्होंने अक्कू को अपने बाँहों में भर कर पागलों की तरह चूमने लगीं।
मेरी और डैडी की आँखे भी भीग उठीं।
डैडी ने ऊंची आवाज़ में कहा , "निर्मू, तुम बच्चों को बताओगी या मैं बताऊँ ?"
मम्मी ने गीली आखों को झुका कर उन्हें ही बोलने का संकेत दिया।
"मम्मी और मैंने यह निर्णय लिया है कि तुम दोनों की अम …… काम-शिक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी है। यदि तुम दोनों को स्वीकार हो तो तुम दोनों हमारे शयन-कक्ष में आ जायो। "
अक्कू और मैं किलकारी मार कर मम्मी और डैडी को चूमने लगे।
"पापा, सारी रात के लिये ?" मैंने अपनी उत्साह और लगाव से पूरी फ़ैली बड़ी-बड़ी आँखों से डैडी को देख कर पूछा।
"न केवल सारी रात के लिए पर जब तक तुम दोनों का मन न भर जाए तब तक ," डैडी ने मुझे अपने से भींच कर चूमा।
"चलो, पापा और मैं तुम दोनों का शयन कक्ष में इंतज़ार कर रहे हैं," मम्मी ने अक्कू को गीली आँखों से चूमा , "कपड़े इच्छानुसार। पहनों या नहीं तुम दोनों की इच्छा पर निर्भर है। "
हम दोनों भाग लिए अपने कमरे की तरफ।
उस दिन मम्मी हमें धीमे जाने के नहीं चिल्लायीं।
अक्कू और मैं जल्दी से अपने कमरे में जाकर अपने कपड़े उतरने लगे। मैंने रोज़ की तरह अक्कू की टीशर्ट पहन ली जो मेरी जांघों तक जाती थी।
अक्कू ने अपने रोज़ की तरह नाड़े वाला शॉर्ट्स पहन लिए। अक्कू को मुझसे अपने निककर का नाड़ा खुलवाना बहुत अच्छा लगता था। उसी तरह मुझे अक्कू का मेरी टीशर्ट के नीचे हाथ डाल कर मेरी चूचियों को रगड़ना मेरी सिसकारी निकल देता था।
हम दोनों भागते हुए मम्मी और पापा के शयनकक्ष पहुँच गए ।
मम्मी और पापा बिस्तर पर पूर्णतया नग्न हो कर बिस्तर के सिरहाने से कमर लगा कर इंतज़ार कर रहे थे।
मम्मी ने अपनी बहन फैला कर बिना कुछ बोले अक्कू को न्यौता दिया। अक्कू भाग कर मम्मी के बाँहों में समा गया। मैं भी पापा की मुस्कुराहट से प्रोत्साहित हो कर उनकी गोद में उछल कर चढ़ गयी।
तब मेरा ध्यान पापा के विकराल लंड पर गया और मेरी तो जान ही निकल गयी। पापा का लंड अक्कू से दुगुना लम्बा और उतने से भी ज़्यादा मोटा था। मुझे क्या पता था की अक्कू जब पूरा विकसित हो जाएगा तो वो पापा से भी एक-दो इंच आगे बढ़ जाएगा।
पापा ने मुझे अपनी जांघों के ऊपर बिठा लिया। मेरी टीशर्ट मेरे चूतड़ों के ऊपर तक उठ गयी। मेरी चूत के कोमल भगोष्ठ पापा के घुंघराले झांटों से चुभ रहे थे। पर मुझे वो चुभन अत्यंत आनंदायी लगी।
मम्मी ने अक्कू के खुशी से मुस्कराते मुंह के ऊपर अपना मीठा मुंह रख दिया और उनकी गुदाज़ बाहें अक्कू के गले का हार बन गयीं।
दोनों की जीभ एक दुसरे के मुंह की मिठास को तलाशने और चखने लगीं।
पापा के हाथ हलके से मेरी टीशर्ट के नीचे सरक गए। पापा ने मेरे गोल पेट को सहलाते हुए मेरी नाभी को अपने तर्जनी से कुरेदा। इस बार मुझे गुलगुली होने की बजाय एक सिहरन मेरे शरीर में दौड़ गयी। मैंने बिना जाने अपना शरीर पापा की चौड़ी बालों से भरे सीने पर दबा दिया।
मम्मी ने प्यार से अक्कू को बिस्तर पर लिटा दिया। उन्होंने उसके पूरे मुंह को होल-होल चूम कर अपने मादक होंठों से उसकी गर्दन की त्वचा को सहलाया। अक्कू की तेज़-तेज़ चलने लगी।
मम्मी ने अपने कोमल मखमली हाथों की उँगलियों से अक्कू के सीने को गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हलके स्पर्श से सहलाते हुए अपने होंठों से और भी महीन चुम्बनों से भर दिया। मम्मी ने अक्कू के छोटे छोटे चूचुकों को अपने होंठों में भर कर पहले धीरे धीरे और फिर कस कर चूसा।
अक्कू की ज़ोर से सिसकारी गयी।
मैं अब समझ रही थी की मैंने कितना कुछ और कर सकती थी अपने अक्कू को और भी आनंद देने के लिए।
मम्मी ने अक्कू के पेट को भी उसी तरह प्यार सहलाया और चूमा। मम्मी ने अपने जीभ की नोक से अक्कू की नाभी को तक कुरेदा और चाटा। अक्कू भी मेरी तरह हसने की बजाय सिसक उठा।
मम्मी ने बहुत ही धीरे धीरे अक्कू का नाड़ा खोल दिया। मम्मी ने उस से भी धीरे धीरे अक्कू के निक्कर को नीचे लगीं।
अक्कू ने अपने कूल्हे ऊपर उठा कर मम्मी के सहायता की।
मम्मी ने अक्कू का निक्कर इतने ध्यान और प्यार से उतारा मानो वो बहुत ही नाज़ुक और महत्वपूर्ण कार्य हो।
फिर मम्मी ने अक्कू के एक पैर अपने हाथों में लेकर उसे चूमा और उंसकी हर उंगली और अंगूठे को अपने मुंह में भर कर चूसा। अक्कू बेचारे की सिसकियाँ अब रुक ही नहीं पा रहीं थीं।
मम्मी ने अक्कू के दोनों पैरों का मानों अभिनन्दन किया था। मम्मी के हलके चुम्बन और हल्का स्पर्श अब अक्कू की जांघों पर पहुँच गया। अक्कू का गोरा झांट-विहीन लंड अक्कड कर खम्बे की तरह छत को छूने का प्रयास कर रहा था।
पापा के हाथ अब मेरी दोनों चूचियों के ऊपर थे। पर पापा ने अपनी विशाल हथेलियों से उन्हें धक कर होले होले सहलाने के सियाय कुछ और नहीं किया। मेरा दिल कर रहा था कि पापा मेरी फड़कती चूचियों को कस कर मसल डालें।
मम्मी ने अपने सुंदर सुहावने शुष्ठु करकमलों से अक्कू के मनोहर लंड के प्रचंड तने हो हलके से सहलाया मानों मम्मी अक्कू के लंड की आराधना कर रहीं हों।
अक्कू के चूतड़ उतावलेपन से बिस्तर से ऊपर उछल पड़े।
मम्मी अब अक्कू के लंड को श्रद्धालु भाव से सहलाते हुए अपने मीठे गुलाबी होंठो से उसके चिकने गोरे अंडकोष को चूमने लगीं। अक्कू की ऊंची सिसकारी कमरे में गूँज उठी ," अआह मम्मी। "
अक्कू के मुंह से निकले वो पहले शब्द थे जब से हम मम्मी और पापा के कमरे में आये थे।
मम्मी ने उतने ही अनुराग से अक्कू के लम्बे मोटे खम्बे को चूमा जब तक उनके होंठ अक्कू के सुपाड़े पर पहुँच गए। मम्मी ने बड़ी निष्ठा से अक्कू के सुपाड़े को ढकने वाली की गोरी त्वचा को नीचे खींच कर उसके मोटे गुलाबी सुपाड़े को अनेकों बार चुम लिया।
अक्कू का मुंह आनंद से लाल हो गया था।
मम्मी के होंठ एक बार फिर से अक्कू के लंड की जड़ पर पहुँच गए। इस बार मम्मी ने अपने जीभ से अक्कू के तन्नाये हुए लंड की रेशमी गोरी त्वचा को उसके लंड की पूरी लम्बाई तक चाटा। अक्कू की सिस्कारियां किसी अनजान को उसके दर्द का गलत आभास दे देतीं।
मम्मी ने अपने जीभ की नोक से अक्कू के सुपाड़े के नीचे के गहरे खांचे को पूरे तरह से माप लिया।
फिर मम्मी ने अपने जीभ और भी बाहर निकाल के अक्कू के खून से अतिपुरित लगभग जामनी रंग के सुपाड़े को प्यार चाटा। मम्मी ने कई बार अक्कू के सुपाड़े के ऊपर जीभ फैराई। अक्कू का सुपाड़ा अब मम्मी के मीठे थूक से नहा कर गिला गया था।
फिर मम्मी ने अक्कू की अनरोध करती आँखों में प्यार से झांक कर अपने सुंदर मुंह खोला और उसे अक्कू के सुपाड़े के ऊपर रख कर अपने जीभ से उसके पेशाब के छेद को कुरेदने लगीं।
अक्कू ने आनंद और रोमांच के अतिरेक से भरी गुहार लगायी ,"ऊऊं आन्न्ह मम्मी। "
मम्मी ने प्यार भरे पर कामोत्तेजक नेत्रों से अपने जान से भी प्यारे बेटे के तरसने को निहारा। फिर माँ का दिल पिघल गया। और मम्मी ने अक्कू के निवेदन और आग्रह को स्वीकार कर धीरे से उसके लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में ले लिया।
अक्कू का सुंदर चेहरा कामना के आनंद से दमक उठा। अक्कू की सिसकारी ने मुझे भी रोमांचित कर दिया।
अब पापा के विशाल हाथ मेरी छोटे कटोरों जैसी चूचियों से भरे। थे पापा ने मेरी चूचियों को हौले हौले मसलना प्रारम्भ कर दिया। मैं स्वतः ही अपनी चिकनी झांट-रहित छूट को पापा के विकराल स्पात के खम्बे जैसे सख्त पर रेशम से भी चिकने लंड के ऊपर रगड़ने लगी। पापा ने मेरे दोनों चूचुकों को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच में भींच कर मड़ोड़ते हुए कस कर मसल दिया। मैं हलके से चीख उठी पर और भी बेसब्री से अपनी चूचियों को पापा के हाथों की और दबा दिया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
हम दोनों नहा कर अपने कॉलेज का कार्य खत्म कर टीवी देखने पारिवारिक-भवन में चल दिए। कुछ देर में मम्मी डैडी भी वहां आ गए। मम्मी के चेहरे पर अत्यंत प्यारी थकन झलक रही थी। उस थकन से मम्मी का देवियों जैसा सुंदर चेहरा और भी दमक रहा था। मुझे थोड़ा डर लगा कि अक्कू की चुदाई से क्या मेरा मुंह भी ऐसे ही दमक जाता है और क्या मम्मी को संदेह हो सकता है ?
लेकिन जब तक मैं और फ़िक्र कर पाऊँ डैडी ने मुझे अपनी गोद में खींच कर बिठा लिया और मैं सब कुछ भूल गयी। मम्मी ने प्यार से अक्कू को चूमा और अक्कू हमेशा की तरह मम्मी की गोद में सर रख कर सोफे पर लेट गया। मम्मी ने उसके घने घुंगराले बालों में अपनी कोमल उँगलियाँ से कंघी करने लगीं।
देश-विदेश के समाचार सुन कर डैडी चहक कर बोले ," कौन आज नयी स्टार-वार्स की मूवी देखना चाहता है। "
मैं लपक कर खुशी से चीख उठी ," मैं डैडी मैं और छोटू भैया भी." मुझे अक्कू के बिना तो कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता था।
अक्कू ने भी खुश हो कर किलकारी मारी ," डैडी फिर खाना फ़ूड-हट में ?" फ़ूड-हट शहर का सबसे प्रथिष्ठिस्ट भोजनालय था।
मम्मी भी पुलक उठीं ," हम सब बहुत दिनों से फ़ूड-हट नहीं गयें हैं। "
डैडी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ,"चलिए मेरी राजकुमारी साहिबा अपने छोटे भाई को तैयार कर जल्दी से खुद तैयार हो जाइए। "
अक्कू छुटपन से ही मेरी ज़िम्मेदारी बन गया था। उस के बिना मैं तड़प उठती थी।
मम्मी ने हमारी भागती हुई पीठ से पूछा ," आप दोनों का कॉलेज का काम तो पूरा हो गया ना ?"
हम दोनों ने चिल्ला कर कहा , "हाँ मम्मी। " और हम दोनों अपने कमरे की ओर दौड़ पड़े।
हमें डैडी और मम्मी के साथ और बाहर खाना खाना बहुत ही प्रिय था। ड्राइवर के साथ नई फिल्म देखने में बहुत मज़ा नहीं आता जितना मम्मी-पापा के साथ आता था। हम घर देर से शाम पहुंचे। मम्मी डैडी के लिए स्कॉच लाने के लिए उठीं तो उन्हें रोक कर कर खुद डैडी का पसंदीदा स्कॉच का गिलास ले आयी, उसमे सिर्फ दो बर्फ के क्यूब्स थे जैसा डैडी को पसंद है ।
डैडी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बिठा कर मेरी इतनी प्रशंसा की मानो मुझे नोबेल प्राइज़ मिल गया हो। मम्मी ने मेरे गर्व के गुब्बारे को पिचका दिया ,"अजी अपनी प्यारे बेटी से पूछिए की मम्मी की ड्रिंक कहाँ है ?"
मेरे मुंह से "ओह ओ !", निकल गयी और मैंने हँसते हुए प्यार भरी माफी माँगी , " सॉरी मम्मी। "
पर तब तक अक्कू दौड़ कर मम्मी का ड्रिंक बना लाया। बेलीज़ एक बर्फ के क्यूब के साथ, मम्मी के एक हल्का का घूँट भर कर अक्कू की प्रशंसा के पुल बांध दिए।
हम परिवार के शाम के अलसाये सानिध्य में थोड़ा कटाक्ष,थोड़ा मज़ाक, पर बहुत प्यार संग्रहित होता है।
मम्मी ने रात के खाने के लिए तैयार होने को हमें कमरे में भेज दिया।
अक्कू ने मुझे लपक कर दबोच लिया और हमारे खुले मुंह एक दुसरे के मुंह से चिपक गए। अक्कू के हाथ मेरे गोल मटोल मुलायम चूतड़ों को मसल रहे थे।
मेरे कमसिन अविकसित चूत भीग गयी। मेरी गांड का छेद भी फड़कने लगा ," अक्कू हमें देर हो जाएगी। थोड़ा सब्र करो। " हालांकि मेरा मन भी अक्कू ले लंड को पहले चूस कर अपनी गांड में घुसाने का हो रहा था पर मैं उस से बड़ी थी और उसके उत्साह को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी मेरे थी।
अक्कू ने मुझे और भी ज़ोर से जकड़ लिया ,"अक्कू देखो डैडी और मम्मी कितने संयम से बैठे थे। क्या उनका मन नहीं करता की एक दुसरे के कपडे फाड़ कर डैडी मम्मी की गांड मारने लगे। " मेरा ब्रह्म-बाण काम कर गया।
खाने के बाद सारे परिवार ने मम्मी के चहेते धारावाहिक कार्यक्रम देखे और फिर सोने का समय हो गया। हम दोनों ने डैडी और मम्मी को शुभ-रात्रि चूम कर कमरे की ओर दौड़ पड़े।
मम्मी का " अरे आराम से जाओ, गिर कर चोट लगा लोगे " चिल्लाना हमेशा की तरह हमारे बेहरे कानों के ऊपर विफल हो गया।
मैं अक्कू को बिलकुल रोकना नहीं चाह रही थी। अक्कू ने मेरी छाती के उभारों को निर्ममता से मसल कर दर्दीला और लाल कर दीया। मैंने उसका लंड चूस कर एक बार उसका मीठा रस पी गयी। अक्कू ने मेरी चूत और गांड चाट, चूस कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया और फिर अक्कू ने मेरी गांड फाड़ने वाली चुदाई शुरू की तो देर रात तक मुझे चोदता रहा जब तक में निढाल हो कर पलंग पर लुढक न गयी।
तब से अक्कू अरे मेरे कुछ नियम से बन गए। हम कॉलेज से आने के जल्दी से नाश्ता खा कर कमरे में जा कर पहले एक दुसरे को झाड़ कर कॉलेज का काम ख़त्म करते थे। फिर अक्कू मेरी गांड मारता था उसके बाद हम एक दुसरे के मूत्र से खेलते थे और हमें एक दुसरे का मूत्र और भी स्वादिष्ट लगने लगा। अक्कू को कॉलेज में भी मेरी आवशयक्ता पड़ने लगी। मैं मौका देख कर उसका लंड चूस कर उसे शांत कर देती थी।
मेरे किशोरावस्था में कदम रखने के कुछ महीनों में ही जैसे जादू से मेरे स्तनों का विकास रातोंरात हो गया। अब मेरी छाती पर उलटे बड़े कटोरों के समान , अक्कू को बहुत प्यारे लगने वाले, दो उरोज़ों का आगमन ने हमारी अगम्यागमन समागम को और भी रोमांचित बना दिया। अब अक्कू कई बार मेरे उरोज़ों को मसल, और चूस को सहला कर मुझे झाड़ने में सक्षम हो गया था।
अक्कू भी ताड़ के पेड़ की तरह लम्बा हो रहा था मुझे उसका लंड बड़ी तेज़ी से और भी लम्बा और मोटा होने का आभास निरंतर होने लगा था।
एक शुक्रवार के दिन अक्कू को सारा दिन कॉलेज में मेरी ज़रुरत थी पर हमें एकांत स्थल ही नहीं मिला। उस दिन हमनें अपना कॉलेज का काम उसी दिन ख़त्म करने की कोई आवशयकता नहीं थी। मुझे अपने छोटे भैया के भूखे सख्त वृहत लंड के ऊपर बहुत तरस आ रहा था।
अक्कू और मैं जब अपनी रोज़ की रति-क्रिया में सलंग्न हो गए तो उस दिन हम दोनों ने पागलों के तरह संतुष्ट न होने का मानो संकल्प कर लिया था। हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा। अक्कू मेरी तीसरी बार गांड मार रहा था। उसके बड़े हाथ मेरे उरोज़ों को बेदर्दी से मसल रहे थे। उसका मोटा लम्बा लंड निर्मम प्रहारों मेरी गांड का लतमर्दन कर रहा था। मेरी हल्की चीखें, ऊंची सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।
हमें मम्मी की खाने के लिए आने की पुकारें सुनाई नहीं दीं।
मैं ज़ोरों से अक्कू से विनती कर रही थी , "अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड मारो। अक्कू मेरी गांड फाड़ दो जैसे डैडी मम्मी की गांड फाड़ते हैं। "
अक्कू ने भी ज़ोर से घुरघुरा कर बोला, "दीदी मेरा लंड तो हमेशा आपकी गांड में घुसा रहना चाहता है। " अक्कू ने मेरे दोनों कंचों जैसे चूचुकों को उमेठ कर मेरी चीख को और भी परवान चढ़ा दिया।
उस समय यदि भूताल भी आ जाता तो भी अक्कू और मुझे पता नहीं चलता। पर एक शांत स्थिर आवाज़ हम दोनों के वासना से ग्रस्त मस्तिष्कों की मोटी तह को छेद कर प्रविष्ट हो गयी , "अक्कू और सुशी, जब तुम दोनों फारिग हो जाओ तो डैडी और मुझे तुम दोनों से आवश्यक बात करनी है। "
मम्मी के शांत स्वरों को सुन कर अक्कू मुझे से इतनी जल्दी लपक कर दूर हुआ मानो की उसे किसी ने बिजली का झटका लगा दिया हो।
उसका मोटे सुपाड़े ने मेरी गांड के तंग छेद को रबड़ बैंड के तरह तरेड़ दिया और मेरे रोकते हुए भी मेरी चीख निकल गयी।
मम्मी डैडी शांति से हमें देख रहे थे। अक्कू और मेरे तो प्राण निकल गए।
डैडी ने शांत स्वाभाव से कहा ,"पहले तो मम्मी और मैं तुम दोनों से क्षमाप्रार्थी हैं की तुम दोनों के बंद कमरे में में हम बिना तुम्हारी आज्ञा के प्रवेश हो गए। पर मम्मी बहुत देर से तुम दोनों को पुकार रहीं थीं। जब हम दोनों दरवाज़ा खटखटा ही रहे थी की सुशी की उम … कैसे कहूँ ....... सुशी के चीख सुन कर हमसे रुका नहीं गया … और … " डैडी का सुंदर मुंह शर्म से लाल हो चूका था और मुझे डैडी और भी सुंदर लगे। मैं किसी और समय लपक कर उनसे लिपट काट चूम लेती पर उस दिन तो मेरा हलक रेत की तरह सूखा हो गया था।
"हमें यह तो पता है की तुम क्या कर रहे थे। पर शायद तुम दोनों हमें कुछ समझा सको की यह सब कब से .... कैसे ," मम्मी भी डैडी की तरह अवाक अवस्था में शर्म से लाल और शब्द विहीन हो गयीं।
अक्कू ने उस दिन मुझे अपनी समझदारी से कायल कर दिया ,"मम्मी यह सब मेरे दीदी के प्यार के वजह से मेरे शरीर में हुए प्रभावों से शुरू हुआ। मैं गलती से दीदी को दूर करना शुरू कर दिया। दीदी के एरी तरफ प्यार इतना प्रबल था की उन्होंने मेरे लिए मेरे लं …… सॉरी पीनिस को सहलाना…., " अक्कू भी घबरा और शर्मा रहा था।
"मम्मी मैं बड़ी हूँ और सारी ज़िम्मेदारीमेरी है। मैं अक्कू को अपना प्यार पूरी तरह से देना चाहती हूँ। और मुझसे उसके शरीर में मेरी वजह से होते बदलाव की वजह से अपने से दूर नहीं जाने दे सकती। और फिर मैंने सोचा की आपको और डैडी को देख कर मैं शायद अक्कू की देखभाल और भी अच्छे से कर सकूँ और फिर जो हम दोनों ने आपको देख कर सीखा उस से अक्कू और मैं बहुत खुश हैं।
क्या हमें यह नहीं करना चाहिए था ?" मेरा सूखा गला मुश्किल से इतना कुछ बोल पाया।
मम्मी और डैडी ने एक दुसरे को देर तक एक तक देखा। मम्मी ने हमेशा की तरह शीघ्र ही गलतियों के ऊपर फैसला अपने दिमाग में बैठा लिया था। मैं अब परेशान थी की मम्मी हमें क्यासज़ा देंगी?
"तो तुम दोनों चोरी से हमारी एकान्तता का उल्लंघन भी कर रहे हो ," मम्मी के शांत स्वर चिल्लाने और गुस्से से भी ज़्यादा डराते थे।
अक्कू ने जल्दी से कहा ,"मम्मी सिर्फ एक बार। उस रात के बाद हमने कभी भी वैसा नहीं ……बस उस दिन," अक्कू भी डर से बहुत विचलित था।
मम्मी ने धीरे से पूछा ,"सुशी क्या अक्कू तुम्हारी सिर्फ गांड मरता है ?"
मम्मी से मुंह से निकले उन शब्दों में से मानों मम्मी की शिष्टता से उनकी अश्लीलता गायब हो गयी।
"मम्मी उसके अलावा मैं उसके लं लं लंड को चूसती हूँ और अक्कू भी मेरी चू ….. चू ….चु ….. चूत चूसता है ," मैंने हकला कर जवाब दिया।
"इसका मतलब है की अक्कू ने तुम्हारी अब तक चूत नहीं मारी?" मम्मी ने बिना स्वर ऊंचा किये मुझसे पूछा।
अक्कू और मेरे चेहरे पर अनभिग्यता का भौंचक्कापन साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा होगा।
मैंने धीरे से हकलाते हुआ कहा ," मुझे पता ही था की अक्कू से अपनी चूत भी मरवा सकती थी। डैडी ने उस दिन सिर्फ आपकी गांड ही मारी थी। "
मम्मी ने अपना मुंह नीचे कर उसे अपने सुडौल हांथों में छुपा लिया। डैडी के शर्म से लाल चेहरे पर एक अजीब सी तिरछी मुस्कान का आभास सा होने लगा।
मम्मी का शरीर काम्पने लगा मानों वो रोने लगीं हों। मैं और अक्कू दौड़ कर मम्मी से लिपट गए ," सॉरी मम्मी। सॉरी। "
ममी ने अपने सुंदर हँसते मुंह से दोनों के सिरों को चूमा ,"अरे पागलो तुम दोनों ने डैडी और मुझसे क्यों नहीं बात की ?"
"सॉरी, हमें पता नहीं यह क्यों नहीं ध्यान आया ," वास्तव में डैडी और मम्मी हमारे किसी भी सवाल को नज़रअंदाज़ नहीं करते थे।
"अंकु, इन दोनों को तो अभी बहुत कुछ सीखना है ," मम्मी ने डैडी से हमें अपने से लिपटाते हुए कहा ,"क्या तुम दोनों डैडी और मुझसे सब कुछ सीखना चाहते हो। हम तुम दोनों को रोक तो नहीं सकते पर एक दुसरे के शरीर को और अच्छी तरह से उपभोग करने में सहायता ज़रूर दे सकतें हैं। "
अक्कू और मैं बच्चों की तरह खुशी से चीखने उछलने लगे।
डैडी ने नाटकीय अंदाज़ से अप्पने दोनों कानों को अपने हाथों से ढक लिया।
"अच्छा अब शांत हो जाओ। चलो पहले खाना खाने आ जाओ फिर हम सब इकट्ठे निर्णय लेंगें," डैडी ने हम दोनों के बालों को सहलाया।
अक्कू ने जल्दी से अपनी निक्कर ढूडनी शुरू कर दी। मम्मे ने उसे रोक कर कहा ,"अक्कू क्या तुम अपनी बड़ी बहन के आनंद को अधूरा ही छोड़ दोगे ? डैडी और मैं कुछ देर और प्रतीक्षा कर सकते हैं। तूम पहले अपनी दीदी को अच्छे से संतुष्ट करो," मम्मी के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान थी। मम्मी का दैव्य रूप किसी को भी चकाचौंध कर सकने में सक्षम था।
अक्कू और मैं जब अकेले हुए तो कई क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिर खड़े रहे फिर अचानक एक दुसरे से लिपट कर पागलों की तरह एक दुसरे को चूमने लगे।
मैंने अक्कू के तेज़ी से खड़े होते लंड को सहलाना शुरू कर दिया। अक्कू मुझे पलंग पर पेट के बल लिटा कर बेदर्दी से मेरे गांड में अपना लंड ठूंसने लगा। मेरी चीखें उसे और भी उकसाने लगीं। अक्कू ने उस शाम मेरी गांड की हालत ख़राब कर दी। डैडी और मम्मी को एक घंटे से भी ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ा।
अक्कू और मैं थोड़ा घबराते हुए और धड़कते दिल से नीचे भोजन-कक्ष की दिशा में चल दिए। लेकिन कुछ ही क्षणों में हमारा घबराना बिलकुल गायब हो गया। मम्मी और डैडी ने अत्यंत साधारण और व्यवहारिक रूप में रोज़ की तरह हमारे आगमन स्वीकार किया। डैडी ने जिस कहानी से मम्मी हंस रहीं थी उसको हमें शुरू से सुनाना कर दिया। मम्मी ने खुद ही खाना पपरोसा। दोनों नौकर आदर से कुछ दूर खड़े रहे।
हम दोनों और मम्मी एक बार फिर से, पापा की मज़ेदार कहानी पर फिर से हंस दिए। अक्कू और मैंने खूब जम कर खाना खाया।
"अरे अक्कू बेटा थोड़ा और लो ना। मुझे क्या पता था की तुम इतनी महनत करते हो ?" मम्मी ने अक्कू को चिढ़ाया और स्वयं सबसे पहले हंस दीं।
"अरे निर्मू देवी, हम भी तो उतनी ही मेहनत करते हैं। आपने हमें तो कभी भी ऐसे दुलार नहीं दिया ?" डैडी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा।
"आप को तो कई सालों का अभ्यास है मेरे बेटा तो अभी शुरूआत कर रहा है न।" मम्मी ने प्यार से अक्कू के बालों को सहलाया। अक्कू का सुंदर मुखड़ा शर्म से लाल हो गया था।
"मम्मी ," अक्कू ने शर्म से वज़न दे कर फुसफुसाया।
'मम्मी मैं भी तो मेहनत करती हूँ अक्कू के साथ, आपने मुझ पर तो कोई ध्यान नहीं दिया ?" मैंने हिम्मत दिखा कर मज़ाक में शामिल होने का प्रयास किया।
मम्मी ने मुझे कस कर चूमा ,"मेरी नन्ही बिटिया, तुम पर तो मेरी जान न्यौछावर पर तुम्हारा ख्याल रखने की तो तुम्हारे पापा की ज़िम्मेदारी है। "
मैं बिना सब समझे बच्चों की तरह खिल उठी।
अक्कू और मैं डैडी को कभी डैडी और कभी पापा कह कर सम्बोधित करते थे। पर मम्मी हमेशा उन्हें 'तुम्हारे पापा' कह कर सम्बोधित करती थीं। कुछ देर बाद में हमें पता चला कि मम्मी को 'पापा' का सम्बोधन अधिक पसंद था।
मम्मी ने हम सबको भोजन-उपरांत के मिष्ठान परोसते हुए मुस्करा कर दोनों नौकरों को छुट्टी दे दी। दोनों ने नमस्ते कर जल्दी छुट्टी मिलने की खुश में अपने निवास-स्थान की ओर चले गये। घर में काम करने वालों के निवास स्थान हमारे फ़ैली हुई जागीर पे हमारे मुख्य आवास से कुछ ही दूर थे।
मम्मी ने अक्कू की कटोरी कई बार भरी, "अक्कू बेटा थोड़ा और खालो सिरफ मेहनय कराती है पर तुम्हारे खाने का ख्याल तो सिर्फ मम्मी ही रखती है। "
मम्मी ने मेरी ओर मुस्करा कर मुझे किया कि वो सिर्फ अक्कू को चिड़ा रहीं है।
मुझे भी न जाने कहाँ से स्वतः साहस और आत्मविश्वास आ गया और मैं भी मम्मी की तरह बोलने लगी , " मम्मी अगर अक्कू ने मेहनत भी की तो उसे मज़ा भी तो आया। नहीं अक्कू?' बेचारा अक्कू को समझ नहीं आये कि वो कहाँ देखे , "ठीख है मम्मी आप अपने लाडले का ध्यान रखिये और मैं अपने पापा का ध्यान रखूँगी। मुझे पता है की आप उनसे कितना परिश्रम करवातीं हैं "
मम्मी का शर्म से लाल सुंदर मुखड़ा देख एके लीरा आत्मविश्वास और भी बढ़ गया।
मैंने मिष्ठान की कटोरी ले कर डैडी की गोद में बैठ गयी और उन्हें चमच्च से खिलने लगी।
डैडी ने मुझे अपनी बाँहों में भींच आकर हँसते हुए कहा , "सस्सहि. बिलकुल ठीक कह रही है निर्मू। कब आपने ने मुझे मेरी गॉड में बैठ कर आखिरी बार खिलाया था ?'
पापा ने मेरे लाल गालों को चुम कर उन्हें और भी लाल कर दिया।
मम्मी ने अक्कू की ओर देख कर गर्व से कहा, "अक्कू बेटा चलो, हम दोनों जोड़ी बना लेते हैं। वो दोनों पापा-बेटी को जो वो चाहें करें
!"
अक्कू का सीना फूल कर चौड़ा हो गया, जैसे ही मम्मी उसकी गोद में बैठ गयीं। उसने पुअर से अपनी मम्मी के कमर के चारों ओर दाल दीं।
मैं और मम्मी पापा और अक्कू मिष्ठान खिलाने लगे।
"अक्की बेटा देखो तो मुझे मैं कितनी बुद्धू मम्मी हूँ ? मेरे प्यारे बेटे को खाने की सारी मेहनत करनी पड़ रही है ," मम्मे ने नाटकीय अंदाज़ में माथे पर हाथ मार कर कहा।
मम्मी ने भरी चम्मच को अपने मुंह में डाल कर मिष्ठान को प्यार से चबाया और फिर अपना मुंह अक्कू के मुंह के ऊपर लगा दिया।
अक्कू की बाहें मम्मी की गुदाज़ गोल भरी-भरी गदराई कमर पर और भी कस गयीं। अक्कू का मुंह स्वतः ही खुल गया और मम्मी के मुंह से चबाया हुआ मिष्ठान अक्कू के मुंह में फिसल गया।
मुझे न जाने क्यों एक अचेतन, ज्ञानरहित ईर्ष्या होने लगी।
मैंने भी पापा की आँखों में देखा और उन्होंने मुस्करा कर मुझे बढ़ावा दिया।
"पापा आप फ़िक्र नहीं कीजिये। मम्मी मेहनत आपसे करातीं हैं और ख्याल छोटू भैया अक्कू का रखतीं हैं। आज से मैं आपकी सेहत का ख्याल रखूंगीं ," मैं ज़ोर से बोल कर मम्मी की तरह पपा को अपने मुंह में से चबाये मिष्ठान को डैडी के मुंह में भरने लगी।
डैडी ने मेरे सर को सहला कर मम्मी और अक्कू को चिढ़ाया , "भई निर्मू, सुशी के मुंह से तुम्हारे मिष्ठान और भी मीठे हो गयी। मेरा ख्याल है कि चीनी की बजाय मैं तो सुशी के मुंह की मिठास मेरी पसंद की है। "
अक्कू ने मम्मी की तरफदारी की , 'मम्मी आप उन दोनों की तरफ ध्यान नहीं दीजिये। आपके मुंह से तो नमक भी शहद से मीठा लगेगा। "
अक्कू की इतनी प्यार भरी बात से मम्मी की सुबकाई निकल गयी और उन्होंने अक्कू को अपने बाँहों में भर कर पागलों की तरह चूमने लगीं।
मेरी और डैडी की आँखे भी भीग उठीं।
डैडी ने ऊंची आवाज़ में कहा , "निर्मू, तुम बच्चों को बताओगी या मैं बताऊँ ?"
मम्मी ने गीली आखों को झुका कर उन्हें ही बोलने का संकेत दिया।
"मम्मी और मैंने यह निर्णय लिया है कि तुम दोनों की अम …… काम-शिक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी है। यदि तुम दोनों को स्वीकार हो तो तुम दोनों हमारे शयन-कक्ष में आ जायो। "
अक्कू और मैं किलकारी मार कर मम्मी और डैडी को चूमने लगे।
"पापा, सारी रात के लिये ?" मैंने अपनी उत्साह और लगाव से पूरी फ़ैली बड़ी-बड़ी आँखों से डैडी को देख कर पूछा।
"न केवल सारी रात के लिए पर जब तक तुम दोनों का मन न भर जाए तब तक ," डैडी ने मुझे अपने से भींच कर चूमा।
"चलो, पापा और मैं तुम दोनों का शयन कक्ष में इंतज़ार कर रहे हैं," मम्मी ने अक्कू को गीली आँखों से चूमा , "कपड़े इच्छानुसार। पहनों या नहीं तुम दोनों की इच्छा पर निर्भर है। "
हम दोनों भाग लिए अपने कमरे की तरफ।
उस दिन मम्मी हमें धीमे जाने के नहीं चिल्लायीं।
अक्कू और मैं जल्दी से अपने कमरे में जाकर अपने कपड़े उतरने लगे। मैंने रोज़ की तरह अक्कू की टीशर्ट पहन ली जो मेरी जांघों तक जाती थी।
अक्कू ने अपने रोज़ की तरह नाड़े वाला शॉर्ट्स पहन लिए। अक्कू को मुझसे अपने निककर का नाड़ा खुलवाना बहुत अच्छा लगता था। उसी तरह मुझे अक्कू का मेरी टीशर्ट के नीचे हाथ डाल कर मेरी चूचियों को रगड़ना मेरी सिसकारी निकल देता था।
हम दोनों भागते हुए मम्मी और पापा के शयनकक्ष पहुँच गए ।
मम्मी और पापा बिस्तर पर पूर्णतया नग्न हो कर बिस्तर के सिरहाने से कमर लगा कर इंतज़ार कर रहे थे।
मम्मी ने अपनी बहन फैला कर बिना कुछ बोले अक्कू को न्यौता दिया। अक्कू भाग कर मम्मी के बाँहों में समा गया। मैं भी पापा की मुस्कुराहट से प्रोत्साहित हो कर उनकी गोद में उछल कर चढ़ गयी।
तब मेरा ध्यान पापा के विकराल लंड पर गया और मेरी तो जान ही निकल गयी। पापा का लंड अक्कू से दुगुना लम्बा और उतने से भी ज़्यादा मोटा था। मुझे क्या पता था की अक्कू जब पूरा विकसित हो जाएगा तो वो पापा से भी एक-दो इंच आगे बढ़ जाएगा।
पापा ने मुझे अपनी जांघों के ऊपर बिठा लिया। मेरी टीशर्ट मेरे चूतड़ों के ऊपर तक उठ गयी। मेरी चूत के कोमल भगोष्ठ पापा के घुंघराले झांटों से चुभ रहे थे। पर मुझे वो चुभन अत्यंत आनंदायी लगी।
मम्मी ने अक्कू के खुशी से मुस्कराते मुंह के ऊपर अपना मीठा मुंह रख दिया और उनकी गुदाज़ बाहें अक्कू के गले का हार बन गयीं।
दोनों की जीभ एक दुसरे के मुंह की मिठास को तलाशने और चखने लगीं।
पापा के हाथ हलके से मेरी टीशर्ट के नीचे सरक गए। पापा ने मेरे गोल पेट को सहलाते हुए मेरी नाभी को अपने तर्जनी से कुरेदा। इस बार मुझे गुलगुली होने की बजाय एक सिहरन मेरे शरीर में दौड़ गयी। मैंने बिना जाने अपना शरीर पापा की चौड़ी बालों से भरे सीने पर दबा दिया।
मम्मी ने प्यार से अक्कू को बिस्तर पर लिटा दिया। उन्होंने उसके पूरे मुंह को होल-होल चूम कर अपने मादक होंठों से उसकी गर्दन की त्वचा को सहलाया। अक्कू की तेज़-तेज़ चलने लगी।
मम्मी ने अपने कोमल मखमली हाथों की उँगलियों से अक्कू के सीने को गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हलके स्पर्श से सहलाते हुए अपने होंठों से और भी महीन चुम्बनों से भर दिया। मम्मी ने अक्कू के छोटे छोटे चूचुकों को अपने होंठों में भर कर पहले धीरे धीरे और फिर कस कर चूसा।
अक्कू की ज़ोर से सिसकारी गयी।
मैं अब समझ रही थी की मैंने कितना कुछ और कर सकती थी अपने अक्कू को और भी आनंद देने के लिए।
मम्मी ने अक्कू के पेट को भी उसी तरह प्यार सहलाया और चूमा। मम्मी ने अपने जीभ की नोक से अक्कू की नाभी को तक कुरेदा और चाटा। अक्कू भी मेरी तरह हसने की बजाय सिसक उठा।
मम्मी ने बहुत ही धीरे धीरे अक्कू का नाड़ा खोल दिया। मम्मी ने उस से भी धीरे धीरे अक्कू के निक्कर को नीचे लगीं।
अक्कू ने अपने कूल्हे ऊपर उठा कर मम्मी के सहायता की।
मम्मी ने अक्कू का निक्कर इतने ध्यान और प्यार से उतारा मानो वो बहुत ही नाज़ुक और महत्वपूर्ण कार्य हो।
फिर मम्मी ने अक्कू के एक पैर अपने हाथों में लेकर उसे चूमा और उंसकी हर उंगली और अंगूठे को अपने मुंह में भर कर चूसा। अक्कू बेचारे की सिसकियाँ अब रुक ही नहीं पा रहीं थीं।
मम्मी ने अक्कू के दोनों पैरों का मानों अभिनन्दन किया था। मम्मी के हलके चुम्बन और हल्का स्पर्श अब अक्कू की जांघों पर पहुँच गया। अक्कू का गोरा झांट-विहीन लंड अक्कड कर खम्बे की तरह छत को छूने का प्रयास कर रहा था।
पापा के हाथ अब मेरी दोनों चूचियों के ऊपर थे। पर पापा ने अपनी विशाल हथेलियों से उन्हें धक कर होले होले सहलाने के सियाय कुछ और नहीं किया। मेरा दिल कर रहा था कि पापा मेरी फड़कती चूचियों को कस कर मसल डालें।
मम्मी ने अपने सुंदर सुहावने शुष्ठु करकमलों से अक्कू के मनोहर लंड के प्रचंड तने हो हलके से सहलाया मानों मम्मी अक्कू के लंड की आराधना कर रहीं हों।
अक्कू के चूतड़ उतावलेपन से बिस्तर से ऊपर उछल पड़े।
मम्मी अब अक्कू के लंड को श्रद्धालु भाव से सहलाते हुए अपने मीठे गुलाबी होंठो से उसके चिकने गोरे अंडकोष को चूमने लगीं। अक्कू की ऊंची सिसकारी कमरे में गूँज उठी ," अआह मम्मी। "
अक्कू के मुंह से निकले वो पहले शब्द थे जब से हम मम्मी और पापा के कमरे में आये थे।
मम्मी ने उतने ही अनुराग से अक्कू के लम्बे मोटे खम्बे को चूमा जब तक उनके होंठ अक्कू के सुपाड़े पर पहुँच गए। मम्मी ने बड़ी निष्ठा से अक्कू के सुपाड़े को ढकने वाली की गोरी त्वचा को नीचे खींच कर उसके मोटे गुलाबी सुपाड़े को अनेकों बार चुम लिया।
अक्कू का मुंह आनंद से लाल हो गया था।
मम्मी के होंठ एक बार फिर से अक्कू के लंड की जड़ पर पहुँच गए। इस बार मम्मी ने अपने जीभ से अक्कू के तन्नाये हुए लंड की रेशमी गोरी त्वचा को उसके लंड की पूरी लम्बाई तक चाटा। अक्कू की सिस्कारियां किसी अनजान को उसके दर्द का गलत आभास दे देतीं।
मम्मी ने अपने जीभ की नोक से अक्कू के सुपाड़े के नीचे के गहरे खांचे को पूरे तरह से माप लिया।
फिर मम्मी ने अपने जीभ और भी बाहर निकाल के अक्कू के खून से अतिपुरित लगभग जामनी रंग के सुपाड़े को प्यार चाटा। मम्मी ने कई बार अक्कू के सुपाड़े के ऊपर जीभ फैराई। अक्कू का सुपाड़ा अब मम्मी के मीठे थूक से नहा कर गिला गया था।
फिर मम्मी ने अक्कू की अनरोध करती आँखों में प्यार से झांक कर अपने सुंदर मुंह खोला और उसे अक्कू के सुपाड़े के ऊपर रख कर अपने जीभ से उसके पेशाब के छेद को कुरेदने लगीं।
अक्कू ने आनंद और रोमांच के अतिरेक से भरी गुहार लगायी ,"ऊऊं आन्न्ह मम्मी। "
मम्मी ने प्यार भरे पर कामोत्तेजक नेत्रों से अपने जान से भी प्यारे बेटे के तरसने को निहारा। फिर माँ का दिल पिघल गया। और मम्मी ने अक्कू के निवेदन और आग्रह को स्वीकार कर धीरे से उसके लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में ले लिया।
अक्कू का सुंदर चेहरा कामना के आनंद से दमक उठा। अक्कू की सिसकारी ने मुझे भी रोमांचित कर दिया।
अब पापा के विशाल हाथ मेरी छोटे कटोरों जैसी चूचियों से भरे। थे पापा ने मेरी चूचियों को हौले हौले मसलना प्रारम्भ कर दिया। मैं स्वतः ही अपनी चिकनी झांट-रहित छूट को पापा के विकराल स्पात के खम्बे जैसे सख्त पर रेशम से भी चिकने लंड के ऊपर रगड़ने लगी। पापा ने मेरे दोनों चूचुकों को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच में भींच कर मड़ोड़ते हुए कस कर मसल दिया। मैं हलके से चीख उठी पर और भी बेसब्री से अपनी चूचियों को पापा के हाथों की और दबा दिया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************