19-07-2019, 01:38 PM
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Update 22
सुशी बुआ के संस्मरण
अक्कू और मैं हमेशा से बहुत करीब थे। मम्मे ने उसकी देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी थी। जबसे अक्कू पैदा हुआ मैं तब दो साल की थी पर मुझे नन्हा सा छोटे-छोटे हाथ-पाँव फैंकता हुआ गुड्डा बिलकुल भा गया। अक्कू तभी से मेरे दिल में हमेशा के के बस गया। मैंने उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ा। मम्मी ने भी मुझे प्रोत्साहित करने के लिए अक्कू की देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी ।
मम्मी मज़ाक में सबसे कहतीं थीं कि अक्कू भले ही मेरी कोख़ से जन्मा हो पर सुशी उसकी माँ है। मैं इस बात को मज़ाक नहीं वास्तविकता समझती थी , इतना प्यार था मुझे अपने छुटके भाई से।
अक्कू और मैं कॉलेज भी इकट्ठे जाते। मैं तब गोल मटोल थी [ "मैं आज भी सूखा कांटा नहीं हूँ," ] और अक्कू बिजली की तेज़ी से बढ़ रहा था।
वो कॉलेज में सबसे लम्बा और बड़ा था और कॉलेज के सब लड़के उससे डरते थे।
मेरी ज़िद पर मम्मी ने मुझे अक्कू को नहलाना सिखाया। अक्कू जब बड़ा हुआ तो उसे मुझसे शर्म आने लगी और उसने खुद नहाना शुरू कर दिया।
मुझे ना जाने क्यों ऐसा लगा कि मुझसे कुछ छिन गया है।
मैं भी और लड़कियों के मुकाबले जल्दी विकसित हो गयी। मुझे में किशोरावस्था के पहली ही शारीरिक इच्छाएं जागने लगीं जो मुझे समझ नहीं आतीं थी।
एक दिन मैं अक्कू के कॉलेज के काम में मदद करने के लिए उसके कमरे गयी।
अक्कू के कॉलेज के कपड़े बिस्तर पे बिखरे पड़े थे। कमरे से लगे हुए स्नानगृह से शॉवर की आवाज़ से मैं समझ गयी कि अक्कू नहा रहा था। मुझ से रुका नहीं गया। मैंने अपने सारे कपडे उतार दिए। तब तक मेरे उरोज़ों की जगह सिर्फ दो भारी चर्बी के उभार थे। मैं हल्के हलके पांवों से स्नानगृह में प्रविष्ट हो गयी।
खुले शॉवर के नीचे अक्कू नंग्न था। उसका कद मुझसे बहुत लम्बा हो चूका था। पर मेरी आँखे उसके गोरे लंड पर जा कर टिक गयीं। अक्कू का लंड मुझे बहुत बड़ा लगा। मैंने तब तक कोई लंड नहीं देखा था फिर भी।
मैं अक्कू से जा कर चिपक गयी ,"अक्कू, तुम मेरे साथ क्यों नहीं नहते हो। मुझे तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता है। "
अक्कू ने मुझे भी बाँहों में भर लिया ,"दीदी , सॉरी। मुझे एक परेशानी होने लगी थी और उस वजह से आपसे मैं शर्माने लगा। "
"अक्कू, मेरे से शर्म आने का मतलब है कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते ?" मैं कुछ रुआंसी हो गयी।
"नहीं दीदी, मैं तो आपके बिना रह नहीं सकता। जब आप मेरे साथ नहाते हो तो मेरा यह अजीब सा हो जाता है ," अक्कू ने अपनी निगाहें से अपने लंड की ओर मेरा ध्यान इंगित किया।
"अक्कू, मुझे पता नहीं कि इसको कैसे ठीक करें पर मैं पता लगाऊंगीं। पर तुम मुझे ऐसे नहीं तरसाया करो। " मैंने बिना सोचे समझे अपने दोनों हाथों से अक्कू के लंड को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया।
अक्कू की सिसकारी निकल गयी, "दीदी ऊं दीदी। " वैसी ही जैसे कि जब मैं उसकी खरोंचों पर डेटोल लगती थी ।
मैं घबरा गयी कि मैंने अक्कू को दर्द कर दिया ," सॉरी अक्कू। बहुत दर्द हुआ क्या। मैं तो इसे …… यह मुझे इतना प्यारा लग रहा है मैंने सोचा ……… ओह! अक्कू सॉरी यदि मैंने दर्द ……। "
अक्कू ने घबरा कर मेरे मुंह को चूम लिया और जल्दी से मुझे प्यार से पकड़ते हुआ कहा, "नहीं दीदी मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था। प्लीज़ और करो न। "
अब मेरी हिम्मत खुल गयी मैंने झुक कर दोनों हाथों से अक्कू के लंड को सहलाना शुरू कर दिया। उस समय भी अक्कू का लंड मेरे दोनों नन्हें हाथों में मुश्किल से समा पा रहा था।
अब मैं अक्कू की सिस्कारियों से घबराने की जगह प्रोत्साहित हो रही थी ।
अक्कू ने अपने गोरे चिकने पर भारी और मज़बूत चूतड़ों से मेरे हाथों में अपने लंड को धकेलने लगा। मैं अब उसका लंड और भी तेज़ी से सहलाने लगी। उसका गुलाबी मोटा सा सुपाड़ा [ तब मुझे इस सबका नाम नहीं पता था ] बहुत प्यारा लगा और मैंने उसे दो तीन बार चूम लिया। अक्कू ने ज़ोर से सिसकारी मारी। अब तक मैं समझ गयी थी ऊंची सिसकारी का मतलब था कि अक्कू को और भी अच्छा लग रहा था।
मैंने दोनों हाथो से सहलाते हुए अक्कू के सुपाड़े को लगातार चूमती रही।
अक्कू के मुंह से वैसी की आवाज़ें निकल रहीं थी जैसी एक बार मम्मी के कमरे से मैंने सूनी थीं। जब मैंने मम्मी से डर कर पूछा कि, "डैडी आपको दर्द कर रहे थे," मम्मी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ," नहीं पगली वो तो मुझे प्यार कर रहे थे। "
फिर मम्मी ने मुझे समझाया, "सुशी बेटा जब बड़े लोग, यानी मम्मी डैडी जैसे दो बड़े लोग, प्यार करते हैं तो उन्हें जब बहुत अच्छा लगता है तो उनके मुंह से कई तरह की आवाज़ें निकलती हैं। इसी तरह के प्यार से तो डैडी ने तुम्हें और अक्कू को मेरे पेट में बनाया था। "
यह बात अचानक मुझे समझ आ गयी। मैंने अक्कू के सुपाड़े को औए भी ज़ोर से चूमना शुरू कर दिया। मेरे हाथ और मुंह थोड़ा थकना शुरू हो गये थे पर मैं अपने छोटे भईया के लिए कुछ भी कर सकती थी।
लम्बी देर के बाद अक्कू ने ज़ोर से कहा , "दीदी अब तो और भी अच्छा लग रहा है। दीदी प्लीज़ अब मत रुकियेगा। " मैं तो रुकने की सोच भी नहीं रही थी।
अचानक अक्कू के लंड ने हिचकी जैसे ठड़कने मारी और तीन चार ऐसे ठड़कने के बाद अचानक उसके सुपाड़े से एक सफ़ेद पानी की धार निकल कर मेरे मुंह पैर फ़ैल गयी। मैं चौंक कर थोडा पीछे हो गयी। मुझे लगा कि शायद अक्कू का पेशाब निकल पड़ा। पर मैंने अक्कू को कितनी बार पेशाब कराया था और मुझे उसके लंड से निकलते सफ़ेद धार बिलकुल पेशाब की तरह नहीं लगी। मुझे अक्कू के पेशाब की सुगंध तो बहुत अच्छे से याद थी पर इस धार की सुगंध तो बिलकुल अलग थी।
अक्कू ने लंड से ना जाने कितनी ऐसी धार उछल कर मेरे मुंह, हाथों और छाती पर फ़ैल गयीं।
अक्कू का चेहरा लाल हो गया था और मुहे और भी सुंदर लगने लगा। उसके चेहरे पर इतनी खुशी थी कि मैंने निश्चय कर लिया कि मैं उसे रोज़ नहलाऊंगीं और उसके लंड को इसी तरह सहला कर अक्कू के लंड से दूसरी तरह का पेशाब निकालूंगीं।
"दीदी, आपने कितना अच्छा लगवाया। थैंक यू दीदी ," अक्कू ने प्यार से मुझे चूम लिया।
"अक्कू अब कभी भी दीदी से कुछ नहीं छुपाना। तुम्हारे बिना मुझे बुरा लगता है ," मैंने अक्कू को प्यार से चूमा।
"प्रॉमिस दीदी," अक्कू ने मुझे कस कर भींच लिया। फिर मैंने एक बार फिर, अनेकों बार जैसे, अपने छोटे भाई को ध्यान से नहलाया।
जब मैं अक्कू को सुखा रही थी तो मैंने कहा ," अक्कू मम्मी ने मुझे आखिरी साल बताया था कि जब वो और डैडी एक दुसरे से प्यार करतें हैं तो उनकी भी तुम्हारी तरह आवाज़ निकलती है। आज रात को हम दोनों मम्मी डैडी को प्यार करते हुए देखेंगें। ठीक है ? फिर मैं तुम्हें और भी "अच्छा" लगा सकतीं हूँ। " अक्कू ने हमेशा की तरह दीदी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया।
रात के खाने के बाद खाली थे। हम दोनों ने कॉलेज का काम पहले ही ख़त्म कर लिया था।
हम दोनों डैडी-मम्मी के शयन-कक्ष से लगे डैडी के अध्यन-कक्ष [स्टडी] में छुप गए। डैडी के अध्यन-कक्ष की खिड़की से उनका पलंग पूरा साफ दिखता था।
जब हमारी हिम्मत बंधी तो हमने सर उठा कर अंदर झांका।
डैडी और मम्मी पूरे नंगे थे। मम्मी बिस्तर पर खड़ीं थी और डैडी कालीन पर।
डैडी बहुत लम्बे और चौड़े तो हैं हीं पर मम्मी के सामने खड़े हुए और भी विशाल लग रहे थे। डैडी का सीना, पेट , चूतड़, विशाल टांगें और बाज़ू घने बालों से ढकीं थी। मुझे पहली बार डैडी को देख कर मेरे नन्हे नाबालिग शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गयी। मम्मी बिलकुल नंगी हो कर मुझे और भी सुंदर लग रहीं थीं।
उनके मोटी भारी चूचियाँ इतनी विशाल और भारी थीं कि अपने भार से वो उनके पेट की और ढलक रहीं थीं। पर उस ढलकान से मम्मी की चूचियों ने अक्कू की आँखों को मानों कैद कर लिया।
डैडी अपना मुंह मम्मी के खुले मुंह से लगा कर अपनी जीभ उनके मुंह में धकेल रहे थे। मम्मी के मुंह से हल्की हल्की सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मम्मी भी डैडी से लिपट कर उनके मुंह में अपनी जीभ देने लगीं। डैडी ने अपने बड़े हाथों में मम्मी के दोनों चूचियों को भर कर ज़ोर से उन्हें दबाने, मसलने लगे। अक्कू और मुझे लगा कि डैडी, मम्मी को दर्द कर रहें हैं।
पर मम्मी की सिस्कारियां और भी ऊंची हो गयी ,"अंकित, और ज़ोर से दबाओ। मसल डालो इन निगोड़ी चूचियों को." डैडी ने मम्मी के दोनों निप्पल पकड़ कर बेदर्दी से मड़ोड़ दिए और फिर उन्हें खींचने लगे।
" हाय अंकित कितना अच्छा दर्द है। " मम्मी को बहुत अच्छा लग रहा था।
डैडी ने कुछ देर बाद मम्मी का एक निप्पल अपने मुंह में लेकर ज़ोर से चूसने लगे और दुसरे को मसलने और मडोड़ने लगे।
मम्मी ने ज़ोर से चीख कर डैडी का सर अपनी चूचियों पर दबा लिया, "अंकु, और ज़ोर से काटो मेरी चूचियों को , आः ….., माँ …….. कितना दर्द कर रहे हो …….. और दर्द करो आँह … आँह …. आँह …….. अंकु। "
मम्मी डैडी को अंकु सिर्फ प्यार से और घर में ही पुकारतीं थी।
डैडी ने बड़ी देर तक मम्मी के दोनों चूचियों को बारी बारी चूसा, चूमा और कभी सहलाया कभी बेदर्दी से मसला। पर मम्मी को जो भी उन्होंने किया वो बहुत अच्छा लगा।
अक्कू और मैं मंत्रमुग्ध हो कर डैडी मम्मी के प्यार के खेल को एकटक देख रहे थे। मुझे पता था कि मेरा मेधावी छोटा भैया भी हर बात को गौर से देख कर सीख रहा था।
मम्मी ने डैडी को प्यार से चूम कर अपने घुटनों पर पलंग पर बैठ गयीं। मम्मी ने डैडी का बहुत ही भयंकर डरावने रूप वाला लम्बा मोटा लंड अपने दोनों हाथो में सम्हाला। जैसे मैं अक्कू का मोटा लंड नहीं सभाल पाई थी, मेरी तरह मम्मी भी मुश्किल से डैडी के लंड को अपने दोनों हाथों से घेर पा रहीं थीं।
मम्मी ने प्रेम से अपनी जीभ बाहर निकाल कर डैडी के पूरे लंड को चाटने लगीं। डैडी के चेहरे पर हल्की से मुस्कान फ़ैल गयी। उनके चेहरे पर वैसे ही 'अच्छा लगने' लगने वाली अभिव्यक्ति थे जैसे अक्कू के चेहरे पर मैंने देखी थी।
मम्मी ने अपनी उँगलियों से डैडी के लंड की जड़ पर उगे घने घुंघराले बालों सहलाया और उन्हें हलके से खींचा। डैडी ने भी हल्की सी सिसकारी मारी।
"निर्मु मेरे लंड को चूसो अब ," डैडी ने, मुझे लगा कि सख्त आवाज़ में हुक्म दिया। पर मम्मी ने मुसकरा कर अपने मुंह को पूरा खोल लिया। मम्मी ने बड़ी मुश्किल से डैडी का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर छुपा लिया। डैडी की आँखें थोड़ी देर के लिए बंद हो गयीं। उन्हें वास्तव में बहुत अच्छा लग रहा था।
मम्मी ने और भी ज़ोर लगा कर डैडी का थोडा सा और लंड भी अपने मुंह में ले लिया। मम्मी के मुंह से उबकाई की आवाज़ निकल पड़ी। पर अपना मुंह दूर खींचने की जगह मम्मी ने अपने मुंह को डैडी के लंड के ऊपर दबाना शुरू कर दिया।
मम्मी के मुंह से कई बार गोंगों की उल्टी करने जैसी आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी ने अपने बड़े हाथ से मम्मी के सर को पकड़ कर अपने लंड पे उनका मुंह दबाने लगे। डैडी ने अपने चूतड़ों को हिला कर अपने लंड को मम्मी के मुंह के और भी अंदर डालने की कोशिश करने लगे।
मम्मी का मुंह लाल हो गया था। उनकी आँखों में आंसूं भर गये , शायद उल्टी करने की आवाज़ों की वजह से।
मुझे जब एक बार उल्टी हुई थी तो मेरे भी आंसू निकल पड़े थे।
मम्मी ने अपने नाज़ुक हाथों डैडी के विशाल चूतड़ों पर रख उनके लंड को अपने गिगियाते मुंह के अंदर खींचने लगीं।
लगभग आधे घंटे बाद डैडी ने अपना, मम्मी के थूक और आंसुओं से चमकता, लंड मम्मी के मुंह से लिया। मम्मी गहरी गहरी साँसे लेने लगीं। उनके सुंदर नाक के नथुने उनके हांफने के कारण फड़क रहे थे। जैसे मेरे और अक्कू के हो जाते थे दौड़ने के बाद।
डैडी ने मम्मी को बिस्तर पर घुटनों और हाथों के ऊपर लिटा दिया। उन्होंने मम्मी की मोटी मुलायम झाँगेँ फैला दी थीं।
मम्मी के पेशाब करने वाली जगह पर घने घुंघराले बाल थे। डैडी ने मम्मे के चूतड़ों को अपने हाथों से फैला कर अपने मुंह से उनकी पेशाब करने की जगह को चूमने लगे। अब मम्मी की बारी थी ज़ोर से सिसकारने की।
डैडी ने अपनी अपने जीभ निकल कर मम्मी के पेशाब करने वाली दरार में उसे घुसा दिया। मम्मी तड़प कर चीख उठीं।
इस बार उनकी चीख बहुत ऊंची थी। मैंने कस कर अक्कू का हाथ दबा दिया। मुझे लगा कि डैडी ने मम्मी के पेशाब की जगह को काट लिया था।
"अंकु मेरी चूत ज़ोर से चूसो। आँ….. ओह! ……. अंकु बहुत….. आँ …….काट लो मेरी चूत को अंकु….. ज़ोर से, और ज़ोर से……. ," मम्मी की चीखें वास्तव में आनंद की थीं। उनके पेशाब करने वाली दरार का नाम भी हमें पता चल गया था।
डैडी ने अपनी लम्बी जीभ से ना केवल मम्मी की चूत चाटी पर उनकी टट्टी करने
वाले छेद को भी चाट रहे थे। डैडी को मम्मी का टट्टी करने वाला छेद बिलकुल बुरा नहीं लग रहा था।
"अंकु, ….ओह …. माँ ……। क्या कर रहे आँ………। मैं झड़ने वाली हूँ। मेरी गांड चाटो और चाटो……, प्लीज़…," मम्मी ने चीख कर डैडी से कहा।
डैडी ने अपनी जीभ की नोक मम्मी की गांड के छेद के अंदर दाल दी और उनकी उंगलिया मम्मी की चूत को रगड़ रहीं थी।
डैडी ने तड़पती कांपती मम्मी को कस कर दबोच लिया और उनकी गांड चाटना नहीं रोका , "अंकु…. अब रुक जाओ। मैं झड़ चुकी हूँ। "
पर डैडी नहीं रुके और हम दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ जब कुछ ही क्षणों में मम्मी ने 'रुक जाओ' की रट के जगह 'और चाटो' की रट लगा दी। मम्मी ने चार बार चीख कर अपने झड़ने की गुहार लगाई। अब तक मैं और अक्कू समझ गए
जो अक्कू को स्नानगृह में हुआ था , उसे झड़ना कहते हैं।
डैडी ने आखिर कांपती मम्मी को मुक्त कर दिया। उनका डरावना लंड किसी खम्बे की तरह हिल-डुल रहा था। डैडी ने फुफुसा कर मम्मी से कुछ कहा। मम्मी कुछ थकी हुई सी लग रहीं थीं। हमें डैडी और मम्मी के बीच हुए वो वार्तालाप नहीं सुनाई पड़ा।
डैडी ने पास की मेज़ से एक ट्यूब निकाल कर उसमे से सफ़ेद जैली जैसी चीज़ अपने लंड के ऊपर लगा ली और फिर ट्यूब की नोज़ल को मम्मी की गांड के छेद में घुस कर उसे दबा दिया। अक्कू और मैं अब बिलकुल अनभिज्ञ थे कि अंदर क्या हो रहा था।
डैडी ने अपना डरावना लंड मम्मी की गांड के ऊपर रख एक ज़ोर से धक्का दिया। डैडी का बड़े सेब से भी मोटा सूपड़ा एक धक्के में मम्मी की गांड के अंदर घुस गया।
"नहीईईईईन…… अंकु……. धीईईईईईईरे…….। हाय माँ मेरी गांड फट जायेगी…….," मम्मी की दर्द भरी चीख से उनका शयन कक्ष गूँज उठा।
मेरे और अक्कू के पसीने छूट पड़े। डैडी मम्मी को कितना दर्द कर रहे थे पर उनके चीखने पर भी रुकने की जगह डैडी ने एक और धक्का मारा। अक्कू और मेरी फटी हुई आँखों के सामने डैडी का मोटा लंड कुछ और इंच मम्मी की गांड में घुस गया।
मम्मी दर्द से बिलबिला उठीं और फिर से चीखीं पर डैडी बिना रुके धक्के के बाद धक्का मार रहे थे। बहुत धक्कों के बाद डैडी का पूरा लंड मम्मी की गांड में समां गया। मम्मी अब बिलख रहीं थीं। उनकी आँखों में से आंसूं बह रहे थे। उनका पूरा भरा-भरा सुंदर शरीर कांप रहा था दर्द के मारे।
डैडी ने अपने लंड को मम्मी की गांड के और भी भीतर दबा कर मुसराये , "निर्मु, बहुत दर्द हो रहा हो तो बाहर निकाल लूँ अपना लंड आपकी गांड से। "
अक्कू और मेरी हल्की सी राहत की सांस निकल पड़ी। आखिर डैडी को मम्मी पर तरस आ गया।
"खबरदार अंकु जो एक इंच भी बाहर निकाला। तुम्हारा लंड बना ही है मेरी चूत और गांड मारने के लिए। कब मैंने दर्द की वजह से मैंने तुम्हे लंड बाहर निकालने के लिए बोला है ," मम्मे की दर्द भरी आवाज़ में थोडा गुस्सा और बहुत सा उल्लाहना था।
"मैं तो मज़ाक कर रहा था निर्मू। मैं तुम्हारी गांड का सारा माल मथने के बाद ही अपना लंड निकालूँगा ," डैडी ने ज़ोर से मम्मी के भरे पूरे चौड़े चूतड़ पर ज़ोर से अपनी पूरी ताकत से खुले हाथ का थप्पड़ जमा दिया। मम्मी फिर से चीख उठीं।
मम्मी के आंसुओं से भीगे चेहरे पर दर्द के शिकन तो थी पर फिर भी हल्की से मुस्कराहट भी फ़ैल गयी थी , "हाय अंकु तुम कितना दर्द करते हो मुझे। अंकु मेरी गाड़ मरना शुरू करो और मेरे चूतड़ों को मार मार कर लाल कर दो। अंकु आज मुझे चोद-चोद कर बेहोश कर दो। "
मम्मी की गुहार से हम दोनों चौंक गए।
डैडी ने अपना आधे से ज़यादा लंड बाहर निकाला और एक धक्के में बरदर्दी से मम्मी की गांड में पूरा का पूरा अंदर तक घुसा दिया।
मम्मी की चीख इस बार उतनी तेज़ नहीं थी। डैडी ने एक के बाद एक तीन थप्पड़ मम्मी के चूतड़ों पर टिका दिये। इस बार मम्मी ने बस सिसकारी मारी पर चीखीं नहीं।
डैडी ने मम्मी के गांड में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया।
डैडी कभी अपने पूरा लंड को, सिवाय सुपाड़े के बाहर निकाल कर, उसे निर्ममता से मम्मी के खुली गांड में बेदर्दी से ठूंस थे ।
कभी बस आधे लंड से मम्मी की गांड बहुत तेज़ी और ज़ोर से मारते थे। जब जब डैडी की जांघें मम्मी के चूतड़ों से टकराती थीं तो एक ज़ोर से थप्पड़ की आवाज़ कमरे में गूँज उठती थी। मम्मी का पूरा शरीर हिल उठता था।
मम्मी के विशाल भारी चूचियाँ आगे पीछे हिल रहीं थीं।
डैडी का लंड अब और भी तेज़ी से मम्मी की गांड के अंदर बाहर हो रहा था ,"अंकु और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। ऑ…. ऑ…. अन्न…… मेरे गांड मारो अंकु……आन्ह……. और ज़ोर से……..माँ मैं मर गयी………. ," मम्मी की चीखें अब डैडी को प्रोत्साहित कर रहीं थीं।
डैडी के मोटे भारी चूतड़ बहुत तेज़ी से आगे पीछे हो रहे थे। उनके लड़ पर मम्मी की गांड के अंदर की चीज़ फ़ैल गयी थी।
"मैं आने वाली हूँ अंकु…… आंँह……. और ज़ोर से मारो मेरी गांड आँह….. आँह…..आँह…… आँह….. आँह….. ज़ोर से चोद डालो मेरी गांड अंकु…... फाड़ डालो मेरी गांड को…… ," मम्मी का सर पागलों की तरह से हिल रहा था। उनका चेहरा पसीने से नहा उठा। उनके सुंदर लम्बे घुंघराले केश उनके पसीने से लथपत चेहरे और कमर से चिपक गए।
अचानक मम्मी ने लम्बी चीख मारी और उनका सारा शरीर कुछ देर तक बिलकुल बर्फ की तरह जम गया और फिर पहले की तरह काम्पने लगा।
मम्मी एक बार फिर से झड़ रहीं थीं।
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सुशी बुआ के संस्मरण
अक्कू और मैं हमेशा से बहुत करीब थे। मम्मे ने उसकी देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी थी। जबसे अक्कू पैदा हुआ मैं तब दो साल की थी पर मुझे नन्हा सा छोटे-छोटे हाथ-पाँव फैंकता हुआ गुड्डा बिलकुल भा गया। अक्कू तभी से मेरे दिल में हमेशा के के बस गया। मैंने उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ा। मम्मी ने भी मुझे प्रोत्साहित करने के लिए अक्कू की देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी ।
मम्मी मज़ाक में सबसे कहतीं थीं कि अक्कू भले ही मेरी कोख़ से जन्मा हो पर सुशी उसकी माँ है। मैं इस बात को मज़ाक नहीं वास्तविकता समझती थी , इतना प्यार था मुझे अपने छुटके भाई से।
अक्कू और मैं कॉलेज भी इकट्ठे जाते। मैं तब गोल मटोल थी [ "मैं आज भी सूखा कांटा नहीं हूँ," ] और अक्कू बिजली की तेज़ी से बढ़ रहा था।
वो कॉलेज में सबसे लम्बा और बड़ा था और कॉलेज के सब लड़के उससे डरते थे।
मेरी ज़िद पर मम्मी ने मुझे अक्कू को नहलाना सिखाया। अक्कू जब बड़ा हुआ तो उसे मुझसे शर्म आने लगी और उसने खुद नहाना शुरू कर दिया।
मुझे ना जाने क्यों ऐसा लगा कि मुझसे कुछ छिन गया है।
मैं भी और लड़कियों के मुकाबले जल्दी विकसित हो गयी। मुझे में किशोरावस्था के पहली ही शारीरिक इच्छाएं जागने लगीं जो मुझे समझ नहीं आतीं थी।
एक दिन मैं अक्कू के कॉलेज के काम में मदद करने के लिए उसके कमरे गयी।
अक्कू के कॉलेज के कपड़े बिस्तर पे बिखरे पड़े थे। कमरे से लगे हुए स्नानगृह से शॉवर की आवाज़ से मैं समझ गयी कि अक्कू नहा रहा था। मुझ से रुका नहीं गया। मैंने अपने सारे कपडे उतार दिए। तब तक मेरे उरोज़ों की जगह सिर्फ दो भारी चर्बी के उभार थे। मैं हल्के हलके पांवों से स्नानगृह में प्रविष्ट हो गयी।
खुले शॉवर के नीचे अक्कू नंग्न था। उसका कद मुझसे बहुत लम्बा हो चूका था। पर मेरी आँखे उसके गोरे लंड पर जा कर टिक गयीं। अक्कू का लंड मुझे बहुत बड़ा लगा। मैंने तब तक कोई लंड नहीं देखा था फिर भी।
मैं अक्कू से जा कर चिपक गयी ,"अक्कू, तुम मेरे साथ क्यों नहीं नहते हो। मुझे तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता है। "
अक्कू ने मुझे भी बाँहों में भर लिया ,"दीदी , सॉरी। मुझे एक परेशानी होने लगी थी और उस वजह से आपसे मैं शर्माने लगा। "
"अक्कू, मेरे से शर्म आने का मतलब है कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते ?" मैं कुछ रुआंसी हो गयी।
"नहीं दीदी, मैं तो आपके बिना रह नहीं सकता। जब आप मेरे साथ नहाते हो तो मेरा यह अजीब सा हो जाता है ," अक्कू ने अपनी निगाहें से अपने लंड की ओर मेरा ध्यान इंगित किया।
"अक्कू, मुझे पता नहीं कि इसको कैसे ठीक करें पर मैं पता लगाऊंगीं। पर तुम मुझे ऐसे नहीं तरसाया करो। " मैंने बिना सोचे समझे अपने दोनों हाथों से अक्कू के लंड को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया।
अक्कू की सिसकारी निकल गयी, "दीदी ऊं दीदी। " वैसी ही जैसे कि जब मैं उसकी खरोंचों पर डेटोल लगती थी ।
मैं घबरा गयी कि मैंने अक्कू को दर्द कर दिया ," सॉरी अक्कू। बहुत दर्द हुआ क्या। मैं तो इसे …… यह मुझे इतना प्यारा लग रहा है मैंने सोचा ……… ओह! अक्कू सॉरी यदि मैंने दर्द ……। "
अक्कू ने घबरा कर मेरे मुंह को चूम लिया और जल्दी से मुझे प्यार से पकड़ते हुआ कहा, "नहीं दीदी मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था। प्लीज़ और करो न। "
अब मेरी हिम्मत खुल गयी मैंने झुक कर दोनों हाथों से अक्कू के लंड को सहलाना शुरू कर दिया। उस समय भी अक्कू का लंड मेरे दोनों नन्हें हाथों में मुश्किल से समा पा रहा था।
अब मैं अक्कू की सिस्कारियों से घबराने की जगह प्रोत्साहित हो रही थी ।
अक्कू ने अपने गोरे चिकने पर भारी और मज़बूत चूतड़ों से मेरे हाथों में अपने लंड को धकेलने लगा। मैं अब उसका लंड और भी तेज़ी से सहलाने लगी। उसका गुलाबी मोटा सा सुपाड़ा [ तब मुझे इस सबका नाम नहीं पता था ] बहुत प्यारा लगा और मैंने उसे दो तीन बार चूम लिया। अक्कू ने ज़ोर से सिसकारी मारी। अब तक मैं समझ गयी थी ऊंची सिसकारी का मतलब था कि अक्कू को और भी अच्छा लग रहा था।
मैंने दोनों हाथो से सहलाते हुए अक्कू के सुपाड़े को लगातार चूमती रही।
अक्कू के मुंह से वैसी की आवाज़ें निकल रहीं थी जैसी एक बार मम्मी के कमरे से मैंने सूनी थीं। जब मैंने मम्मी से डर कर पूछा कि, "डैडी आपको दर्द कर रहे थे," मम्मी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ," नहीं पगली वो तो मुझे प्यार कर रहे थे। "
फिर मम्मी ने मुझे समझाया, "सुशी बेटा जब बड़े लोग, यानी मम्मी डैडी जैसे दो बड़े लोग, प्यार करते हैं तो उन्हें जब बहुत अच्छा लगता है तो उनके मुंह से कई तरह की आवाज़ें निकलती हैं। इसी तरह के प्यार से तो डैडी ने तुम्हें और अक्कू को मेरे पेट में बनाया था। "
यह बात अचानक मुझे समझ आ गयी। मैंने अक्कू के सुपाड़े को औए भी ज़ोर से चूमना शुरू कर दिया। मेरे हाथ और मुंह थोड़ा थकना शुरू हो गये थे पर मैं अपने छोटे भईया के लिए कुछ भी कर सकती थी।
लम्बी देर के बाद अक्कू ने ज़ोर से कहा , "दीदी अब तो और भी अच्छा लग रहा है। दीदी प्लीज़ अब मत रुकियेगा। " मैं तो रुकने की सोच भी नहीं रही थी।
अचानक अक्कू के लंड ने हिचकी जैसे ठड़कने मारी और तीन चार ऐसे ठड़कने के बाद अचानक उसके सुपाड़े से एक सफ़ेद पानी की धार निकल कर मेरे मुंह पैर फ़ैल गयी। मैं चौंक कर थोडा पीछे हो गयी। मुझे लगा कि शायद अक्कू का पेशाब निकल पड़ा। पर मैंने अक्कू को कितनी बार पेशाब कराया था और मुझे उसके लंड से निकलते सफ़ेद धार बिलकुल पेशाब की तरह नहीं लगी। मुझे अक्कू के पेशाब की सुगंध तो बहुत अच्छे से याद थी पर इस धार की सुगंध तो बिलकुल अलग थी।
अक्कू ने लंड से ना जाने कितनी ऐसी धार उछल कर मेरे मुंह, हाथों और छाती पर फ़ैल गयीं।
अक्कू का चेहरा लाल हो गया था और मुहे और भी सुंदर लगने लगा। उसके चेहरे पर इतनी खुशी थी कि मैंने निश्चय कर लिया कि मैं उसे रोज़ नहलाऊंगीं और उसके लंड को इसी तरह सहला कर अक्कू के लंड से दूसरी तरह का पेशाब निकालूंगीं।
"दीदी, आपने कितना अच्छा लगवाया। थैंक यू दीदी ," अक्कू ने प्यार से मुझे चूम लिया।
"अक्कू अब कभी भी दीदी से कुछ नहीं छुपाना। तुम्हारे बिना मुझे बुरा लगता है ," मैंने अक्कू को प्यार से चूमा।
"प्रॉमिस दीदी," अक्कू ने मुझे कस कर भींच लिया। फिर मैंने एक बार फिर, अनेकों बार जैसे, अपने छोटे भाई को ध्यान से नहलाया।
जब मैं अक्कू को सुखा रही थी तो मैंने कहा ," अक्कू मम्मी ने मुझे आखिरी साल बताया था कि जब वो और डैडी एक दुसरे से प्यार करतें हैं तो उनकी भी तुम्हारी तरह आवाज़ निकलती है। आज रात को हम दोनों मम्मी डैडी को प्यार करते हुए देखेंगें। ठीक है ? फिर मैं तुम्हें और भी "अच्छा" लगा सकतीं हूँ। " अक्कू ने हमेशा की तरह दीदी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया।
रात के खाने के बाद खाली थे। हम दोनों ने कॉलेज का काम पहले ही ख़त्म कर लिया था।
हम दोनों डैडी-मम्मी के शयन-कक्ष से लगे डैडी के अध्यन-कक्ष [स्टडी] में छुप गए। डैडी के अध्यन-कक्ष की खिड़की से उनका पलंग पूरा साफ दिखता था।
जब हमारी हिम्मत बंधी तो हमने सर उठा कर अंदर झांका।
डैडी और मम्मी पूरे नंगे थे। मम्मी बिस्तर पर खड़ीं थी और डैडी कालीन पर।
डैडी बहुत लम्बे और चौड़े तो हैं हीं पर मम्मी के सामने खड़े हुए और भी विशाल लग रहे थे। डैडी का सीना, पेट , चूतड़, विशाल टांगें और बाज़ू घने बालों से ढकीं थी। मुझे पहली बार डैडी को देख कर मेरे नन्हे नाबालिग शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गयी। मम्मी बिलकुल नंगी हो कर मुझे और भी सुंदर लग रहीं थीं।
उनके मोटी भारी चूचियाँ इतनी विशाल और भारी थीं कि अपने भार से वो उनके पेट की और ढलक रहीं थीं। पर उस ढलकान से मम्मी की चूचियों ने अक्कू की आँखों को मानों कैद कर लिया।
डैडी अपना मुंह मम्मी के खुले मुंह से लगा कर अपनी जीभ उनके मुंह में धकेल रहे थे। मम्मी के मुंह से हल्की हल्की सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मम्मी भी डैडी से लिपट कर उनके मुंह में अपनी जीभ देने लगीं। डैडी ने अपने बड़े हाथों में मम्मी के दोनों चूचियों को भर कर ज़ोर से उन्हें दबाने, मसलने लगे। अक्कू और मुझे लगा कि डैडी, मम्मी को दर्द कर रहें हैं।
पर मम्मी की सिस्कारियां और भी ऊंची हो गयी ,"अंकित, और ज़ोर से दबाओ। मसल डालो इन निगोड़ी चूचियों को." डैडी ने मम्मी के दोनों निप्पल पकड़ कर बेदर्दी से मड़ोड़ दिए और फिर उन्हें खींचने लगे।
" हाय अंकित कितना अच्छा दर्द है। " मम्मी को बहुत अच्छा लग रहा था।
डैडी ने कुछ देर बाद मम्मी का एक निप्पल अपने मुंह में लेकर ज़ोर से चूसने लगे और दुसरे को मसलने और मडोड़ने लगे।
मम्मी ने ज़ोर से चीख कर डैडी का सर अपनी चूचियों पर दबा लिया, "अंकु, और ज़ोर से काटो मेरी चूचियों को , आः ….., माँ …….. कितना दर्द कर रहे हो …….. और दर्द करो आँह … आँह …. आँह …….. अंकु। "
मम्मी डैडी को अंकु सिर्फ प्यार से और घर में ही पुकारतीं थी।
डैडी ने बड़ी देर तक मम्मी के दोनों चूचियों को बारी बारी चूसा, चूमा और कभी सहलाया कभी बेदर्दी से मसला। पर मम्मी को जो भी उन्होंने किया वो बहुत अच्छा लगा।
अक्कू और मैं मंत्रमुग्ध हो कर डैडी मम्मी के प्यार के खेल को एकटक देख रहे थे। मुझे पता था कि मेरा मेधावी छोटा भैया भी हर बात को गौर से देख कर सीख रहा था।
मम्मी ने डैडी को प्यार से चूम कर अपने घुटनों पर पलंग पर बैठ गयीं। मम्मी ने डैडी का बहुत ही भयंकर डरावने रूप वाला लम्बा मोटा लंड अपने दोनों हाथो में सम्हाला। जैसे मैं अक्कू का मोटा लंड नहीं सभाल पाई थी, मेरी तरह मम्मी भी मुश्किल से डैडी के लंड को अपने दोनों हाथों से घेर पा रहीं थीं।
मम्मी ने प्रेम से अपनी जीभ बाहर निकाल कर डैडी के पूरे लंड को चाटने लगीं। डैडी के चेहरे पर हल्की से मुस्कान फ़ैल गयी। उनके चेहरे पर वैसे ही 'अच्छा लगने' लगने वाली अभिव्यक्ति थे जैसे अक्कू के चेहरे पर मैंने देखी थी।
मम्मी ने अपनी उँगलियों से डैडी के लंड की जड़ पर उगे घने घुंघराले बालों सहलाया और उन्हें हलके से खींचा। डैडी ने भी हल्की सी सिसकारी मारी।
"निर्मु मेरे लंड को चूसो अब ," डैडी ने, मुझे लगा कि सख्त आवाज़ में हुक्म दिया। पर मम्मी ने मुसकरा कर अपने मुंह को पूरा खोल लिया। मम्मी ने बड़ी मुश्किल से डैडी का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर छुपा लिया। डैडी की आँखें थोड़ी देर के लिए बंद हो गयीं। उन्हें वास्तव में बहुत अच्छा लग रहा था।
मम्मी ने और भी ज़ोर लगा कर डैडी का थोडा सा और लंड भी अपने मुंह में ले लिया। मम्मी के मुंह से उबकाई की आवाज़ निकल पड़ी। पर अपना मुंह दूर खींचने की जगह मम्मी ने अपने मुंह को डैडी के लंड के ऊपर दबाना शुरू कर दिया।
मम्मी के मुंह से कई बार गोंगों की उल्टी करने जैसी आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी ने अपने बड़े हाथ से मम्मी के सर को पकड़ कर अपने लंड पे उनका मुंह दबाने लगे। डैडी ने अपने चूतड़ों को हिला कर अपने लंड को मम्मी के मुंह के और भी अंदर डालने की कोशिश करने लगे।
मम्मी का मुंह लाल हो गया था। उनकी आँखों में आंसूं भर गये , शायद उल्टी करने की आवाज़ों की वजह से।
मुझे जब एक बार उल्टी हुई थी तो मेरे भी आंसू निकल पड़े थे।
मम्मी ने अपने नाज़ुक हाथों डैडी के विशाल चूतड़ों पर रख उनके लंड को अपने गिगियाते मुंह के अंदर खींचने लगीं।
लगभग आधे घंटे बाद डैडी ने अपना, मम्मी के थूक और आंसुओं से चमकता, लंड मम्मी के मुंह से लिया। मम्मी गहरी गहरी साँसे लेने लगीं। उनके सुंदर नाक के नथुने उनके हांफने के कारण फड़क रहे थे। जैसे मेरे और अक्कू के हो जाते थे दौड़ने के बाद।
डैडी ने मम्मी को बिस्तर पर घुटनों और हाथों के ऊपर लिटा दिया। उन्होंने मम्मी की मोटी मुलायम झाँगेँ फैला दी थीं।
मम्मी के पेशाब करने वाली जगह पर घने घुंघराले बाल थे। डैडी ने मम्मे के चूतड़ों को अपने हाथों से फैला कर अपने मुंह से उनकी पेशाब करने की जगह को चूमने लगे। अब मम्मी की बारी थी ज़ोर से सिसकारने की।
डैडी ने अपनी अपने जीभ निकल कर मम्मी के पेशाब करने वाली दरार में उसे घुसा दिया। मम्मी तड़प कर चीख उठीं।
इस बार उनकी चीख बहुत ऊंची थी। मैंने कस कर अक्कू का हाथ दबा दिया। मुझे लगा कि डैडी ने मम्मी के पेशाब की जगह को काट लिया था।
"अंकु मेरी चूत ज़ोर से चूसो। आँ….. ओह! ……. अंकु बहुत….. आँ …….काट लो मेरी चूत को अंकु….. ज़ोर से, और ज़ोर से……. ," मम्मी की चीखें वास्तव में आनंद की थीं। उनके पेशाब करने वाली दरार का नाम भी हमें पता चल गया था।
डैडी ने अपनी लम्बी जीभ से ना केवल मम्मी की चूत चाटी पर उनकी टट्टी करने
वाले छेद को भी चाट रहे थे। डैडी को मम्मी का टट्टी करने वाला छेद बिलकुल बुरा नहीं लग रहा था।
"अंकु, ….ओह …. माँ ……। क्या कर रहे आँ………। मैं झड़ने वाली हूँ। मेरी गांड चाटो और चाटो……, प्लीज़…," मम्मी ने चीख कर डैडी से कहा।
डैडी ने अपनी जीभ की नोक मम्मी की गांड के छेद के अंदर दाल दी और उनकी उंगलिया मम्मी की चूत को रगड़ रहीं थी।
डैडी ने तड़पती कांपती मम्मी को कस कर दबोच लिया और उनकी गांड चाटना नहीं रोका , "अंकु…. अब रुक जाओ। मैं झड़ चुकी हूँ। "
पर डैडी नहीं रुके और हम दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ जब कुछ ही क्षणों में मम्मी ने 'रुक जाओ' की रट के जगह 'और चाटो' की रट लगा दी। मम्मी ने चार बार चीख कर अपने झड़ने की गुहार लगाई। अब तक मैं और अक्कू समझ गए
जो अक्कू को स्नानगृह में हुआ था , उसे झड़ना कहते हैं।
डैडी ने आखिर कांपती मम्मी को मुक्त कर दिया। उनका डरावना लंड किसी खम्बे की तरह हिल-डुल रहा था। डैडी ने फुफुसा कर मम्मी से कुछ कहा। मम्मी कुछ थकी हुई सी लग रहीं थीं। हमें डैडी और मम्मी के बीच हुए वो वार्तालाप नहीं सुनाई पड़ा।
डैडी ने पास की मेज़ से एक ट्यूब निकाल कर उसमे से सफ़ेद जैली जैसी चीज़ अपने लंड के ऊपर लगा ली और फिर ट्यूब की नोज़ल को मम्मी की गांड के छेद में घुस कर उसे दबा दिया। अक्कू और मैं अब बिलकुल अनभिज्ञ थे कि अंदर क्या हो रहा था।
डैडी ने अपना डरावना लंड मम्मी की गांड के ऊपर रख एक ज़ोर से धक्का दिया। डैडी का बड़े सेब से भी मोटा सूपड़ा एक धक्के में मम्मी की गांड के अंदर घुस गया।
"नहीईईईईन…… अंकु……. धीईईईईईईरे…….। हाय माँ मेरी गांड फट जायेगी…….," मम्मी की दर्द भरी चीख से उनका शयन कक्ष गूँज उठा।
मेरे और अक्कू के पसीने छूट पड़े। डैडी मम्मी को कितना दर्द कर रहे थे पर उनके चीखने पर भी रुकने की जगह डैडी ने एक और धक्का मारा। अक्कू और मेरी फटी हुई आँखों के सामने डैडी का मोटा लंड कुछ और इंच मम्मी की गांड में घुस गया।
मम्मी दर्द से बिलबिला उठीं और फिर से चीखीं पर डैडी बिना रुके धक्के के बाद धक्का मार रहे थे। बहुत धक्कों के बाद डैडी का पूरा लंड मम्मी की गांड में समां गया। मम्मी अब बिलख रहीं थीं। उनकी आँखों में से आंसूं बह रहे थे। उनका पूरा भरा-भरा सुंदर शरीर कांप रहा था दर्द के मारे।
डैडी ने अपने लंड को मम्मी की गांड के और भी भीतर दबा कर मुसराये , "निर्मु, बहुत दर्द हो रहा हो तो बाहर निकाल लूँ अपना लंड आपकी गांड से। "
अक्कू और मेरी हल्की सी राहत की सांस निकल पड़ी। आखिर डैडी को मम्मी पर तरस आ गया।
"खबरदार अंकु जो एक इंच भी बाहर निकाला। तुम्हारा लंड बना ही है मेरी चूत और गांड मारने के लिए। कब मैंने दर्द की वजह से मैंने तुम्हे लंड बाहर निकालने के लिए बोला है ," मम्मे की दर्द भरी आवाज़ में थोडा गुस्सा और बहुत सा उल्लाहना था।
"मैं तो मज़ाक कर रहा था निर्मू। मैं तुम्हारी गांड का सारा माल मथने के बाद ही अपना लंड निकालूँगा ," डैडी ने ज़ोर से मम्मी के भरे पूरे चौड़े चूतड़ पर ज़ोर से अपनी पूरी ताकत से खुले हाथ का थप्पड़ जमा दिया। मम्मी फिर से चीख उठीं।
मम्मी के आंसुओं से भीगे चेहरे पर दर्द के शिकन तो थी पर फिर भी हल्की से मुस्कराहट भी फ़ैल गयी थी , "हाय अंकु तुम कितना दर्द करते हो मुझे। अंकु मेरी गाड़ मरना शुरू करो और मेरे चूतड़ों को मार मार कर लाल कर दो। अंकु आज मुझे चोद-चोद कर बेहोश कर दो। "
मम्मी की गुहार से हम दोनों चौंक गए।
डैडी ने अपना आधे से ज़यादा लंड बाहर निकाला और एक धक्के में बरदर्दी से मम्मी की गांड में पूरा का पूरा अंदर तक घुसा दिया।
मम्मी की चीख इस बार उतनी तेज़ नहीं थी। डैडी ने एक के बाद एक तीन थप्पड़ मम्मी के चूतड़ों पर टिका दिये। इस बार मम्मी ने बस सिसकारी मारी पर चीखीं नहीं।
डैडी ने मम्मी के गांड में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया।
डैडी कभी अपने पूरा लंड को, सिवाय सुपाड़े के बाहर निकाल कर, उसे निर्ममता से मम्मी के खुली गांड में बेदर्दी से ठूंस थे ।
कभी बस आधे लंड से मम्मी की गांड बहुत तेज़ी और ज़ोर से मारते थे। जब जब डैडी की जांघें मम्मी के चूतड़ों से टकराती थीं तो एक ज़ोर से थप्पड़ की आवाज़ कमरे में गूँज उठती थी। मम्मी का पूरा शरीर हिल उठता था।
मम्मी के विशाल भारी चूचियाँ आगे पीछे हिल रहीं थीं।
डैडी का लंड अब और भी तेज़ी से मम्मी की गांड के अंदर बाहर हो रहा था ,"अंकु और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। ऑ…. ऑ…. अन्न…… मेरे गांड मारो अंकु……आन्ह……. और ज़ोर से……..माँ मैं मर गयी………. ," मम्मी की चीखें अब डैडी को प्रोत्साहित कर रहीं थीं।
डैडी के मोटे भारी चूतड़ बहुत तेज़ी से आगे पीछे हो रहे थे। उनके लड़ पर मम्मी की गांड के अंदर की चीज़ फ़ैल गयी थी।
"मैं आने वाली हूँ अंकु…… आंँह……. और ज़ोर से मारो मेरी गांड आँह….. आँह…..आँह…… आँह….. आँह….. ज़ोर से चोद डालो मेरी गांड अंकु…... फाड़ डालो मेरी गांड को…… ," मम्मी का सर पागलों की तरह से हिल रहा था। उनका चेहरा पसीने से नहा उठा। उनके सुंदर लम्बे घुंघराले केश उनके पसीने से लथपत चेहरे और कमर से चिपक गए।
अचानक मम्मी ने लम्बी चीख मारी और उनका सारा शरीर कुछ देर तक बिलकुल बर्फ की तरह जम गया और फिर पहले की तरह काम्पने लगा।
मम्मी एक बार फिर से झड़ रहीं थीं।
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