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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#41
भाग - 40

कुसुम- आह.. भर दे.. मेरीई चूत को अपने बीज़ से.. उइईए ओह.. मेरी कोख भर दे.. साले हरामी ओह..।

ये सुनते ही राजू ने अपने लण्ड को पूरी रफ़्तार से कुसुम की चूत की अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया, लता उसकी चूत के दाने को मसलते हुए राजू के मोटे लण्ड को अपनी बेटी की चूत में अन्दर-बाहर होता देख रही थी।

“हाँ.. चोद साले.. फाड़ दे.. इस छिनाल की चूत को ओह बड़ा मोटा केला है रे तेरा… मेरी बेटी कितनी खुशकिस्मत है…।”

कुसुम- हाँ.. माँ..आहह.. दिल करता है.. पूरी रात इसका लण्ड अपनी चूत में लेकर लेटी रहूँ… ओह्ह फाड़ दे रे मेरी चूत.. हरामी ओह आह्ह.. आह्ह… और ज़ोर से चोद.. लगा ठोकर.. ना… साले ओह्ह… बस मेरा पानी छूटने वाला है.. ओह और अन्दर तक डाल..ल्ल्ल्ल..।

कुसुम ने अपनी टाँगों को राजू के कंधों पर रख कर ऊपर उठा रखा था.. जिससे राजू का लौड़ा जड़ तक आसानी से उसकी चूत की गहराईयों में उतर कर उसकी बच्चेदानी से टकरा रहा था। कुसुम झड़ने के बेहद करीब थी, उसका पूरा बदन अकड़ने लगा और उसका बदन झटके खाते हुए झड़ने लगा।

चूत की दीवारों ने लण्ड को अपनी गिरफ्त में कसना शुरू कर दिया और राजू के लण्ड ने गरम खौलता हुआ लावा निकाल कर कुसुम की चूत की दीवारों को सराबोर करने लगा।

कुसुम की चूत का मुँह बिल्कुल ऊपर की तरफ था और वो अपनी चूत की दीवारों से राजू के लण्ड का पानी बह कर अपने बच्चेदानी की तरफ जाता हुआ महसूस कर रही थी। उसके होंठों पर संतुष्टि से भरी मुस्कान फ़ैल गई।

उसी स्थिति में तीनों थक कर सो गए।

अगली सुबह कुसुम और राजू अपने गाँव के लिए रवाना हो गई.. दोपहर तक दोनों घर पहुँच गए। जैसे ही दोनों घर के अन्दर आए.. राजू की नजरें दरवाजे की ओट से उसकी तरफ देख रही दीपा से जा टकराईं। जैसे ही दोनों की नज़रें आपस में मिल कर चार हुईं.. दीपा शर्मा कर पीछे हट गई और अन्दर चली गई।

ये देख कर राजू के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

पीछे खड़ी कुसुम भी दोनों के बीच पक रही खिचड़ी को ताड़ गई और अगले ही पल उसे ध्यान आया कि कहाँ वो राजू को दीपा के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी और कहाँ वो खुद उसके लण्ड की दीवानी हो गई है।

उसने अपने सामान को कमरे में रखा और राजू भी अपने सामान को लेकर पीछे कमरे में चला गया। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी। ये जान कर कुसुम मन ही मन बहुत खुश थी। अब उसे राजू और दीपा के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करने पड़ेगी।

शाम का समय था.. जब राजू घर के कुछ काम निपटा कर नदी की तरफ जा रहा था। उसने नदी के किनारे चमेली को देखा.. राजू को देखते ही चमेली की आँखों में चमक आ गई.. पर उसने अपने चेहरे से जाहिर नहीं होने दिया कि वो उसको देख कर बहुत खुश है।

उसने अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए.. मुँह को दूसरी तरफ घुमा लिया।

राजू- क्या हाल काकी… मुझसे नाराज़ हो।

चमेली- ठीक हूँ.. तू मेरा क्या लगता है कि मैं तुझसे नाराज़ होंऊँ।

राजू- ना काकी.. ऐसी बातें करके मेरा दिल ना दुखा..।

चमेली- अच्छा, अगर तू मेरा कुछ लगता तो.. मेरी बेटी की शादी के लिए नहीं रुकता..? तू उस छिनाल की चूत की चक्कर में उसके साथ चला गया।

राजू- अच्छा तो ये बात है… ठीक.. अगर तुमको ऐसा लगता है.. तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ.. आख़िर नौकर हूँ और अगर सेठ की बात नहीं मानता तो क्या करता…? तुम ही बताओ.. क्या तुम उनका कहना टाल सकती हो…? चलो छोड़ो.. जाने दो, तुम्हें तो मुझे पर विश्वास ही नहीं है।

ये कह कर राजू आगे की तरफ़ बढ़ने लगा। चमेली के होंठों पर तेज मुस्कान फ़ैल गई। उसने राजू का हाथ पकड़ लिया।

“अरे वाह.. एक तो ग़लती और ऊपर से मुझ पर ही गुस्सा दिखा रहा है.. चल उधर जा.. झाड़ियों की तरफ.. मैं थोड़ी देर में आती हूँ।”

ये कह कर चमेली ने राजू का हाथ छोड़ दिया और राजू घनी झाड़ियों की तरफ चला गया।

वो झाड़ियों के बीच ऐसी जगह बैठ गया.. जहाँ पर किसी की नज़र ना पहुँचे।

थोड़ी देर बाद चमेली ने चारों तरफ नज़र दौड़ाईं.. कोई दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा था और फिर वो भी उसी तरफ बढ़ गई। जब चमेली राजू के पास पहुँची.. तो उसकी आँखों में चमक भर गई। राजू अपना पजामा सरका कर नीचे बैठा हुआ.. अपने लण्ड को सहला रहा था।

चमेली ने राजू के मोटे लण्ड की तरफ देखते हुए अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए बोली।

चमेली- अरे.. मेरे होते हुए इस हाथ से क्यों हिला रहा है.. देख अभी कैसे इसको खड़ा करती हूँ।

ये कह कर चमेली राजू के पास आकर बैठ गई और झुक कर उसके लण्ड को अपने हाथ में पकड़ लिया। फिर उसने अपने उँगलियों से उसके लण्ड के सुपारे को सहलाते हुए.. उसके सुपारे को अपने होंठों में दबा कर चूसना शुरू कर दिया।

चमेली पागलों की तरह उसके आधे से ज्यादा लण्ड को मुँह में लेकर चूस रही थी। उसके मुँह से थूक निकल कर राजू के अंडकोषों की तरफ जा रहा था।

राजू मस्ती में आँखें बंद किए हुए.. अपने दोनों हाथों से चमेली के सर को पकड़ कर अपनी कमर हिला कर उसके मुँह को चोद रहा था। चमेली उसके लण्ड को मुँह में लिए हुए अपनी जीभ को नोकदार बना कर उसके लण्ड के सुपारे को कुरेद रही थी।

राजू इस चुसाई से एकदम मस्त हो गया था। उसने चमेली के सर को पकड़ कर ऊपर खींचा.. जिससे राजू का लण्ड झटके ख़ाता हुआ.. उसके मुँह से बाहर आ गया।

चमेली समझ गई कि अब राजू चोदने के लिए बिल्कुल तैयार है।

वो जल्दी से राजू के पैरों के ऊपर दोनों तरफ पाँव करके उसके लण्ड के ठीक ऊपर आ गई। राजू ने अपने लण्ड के सुपारे को उसकी चूत के छेद पर लगा कर चमेली की आँखों में ताका.. राजू का इशारा समझते ही चमेली ने अपनी चूत को उसके लण्ड पर दबाना शुरू कर दिया।

लण्ड का सुपारा चमेली की चूत के छेद को फ़ैलाते हुए अपना रास्ता बनाने लगा।

चमेली की चूत की दीवारें राजू के लण्ड पर एकदम कसी हुई थीं और राजू का लण्ड चमेली की चूत से बुरी तरह रगड़ ख़ाता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था।

“ओह्ह मुझे तेरी और तेरे लौड़े की बहुत याद आई मेरे राजा.. ओह्ह तीन दिन से तेरे लण्ड के बारे में सोच-सोच कर ये अपना पानी बहा रही है.. आह.. आह.. चोद.. ना..आहह.. मुझे हरामी ओह.. तेरा लण्ड है ही मूसल.. ओह्ह आह्ह.. आह।”

राजू- हाँ काकी.. मुझे भी तेरी चूत की बहुत याद आईई… ऐसी कसी हुई चूत के लिए कौन दीवाना नहीं हो सकता.. आह्ह.. ले साली और ले पूरा अन्दर ले..आह्ह.. रांड..।

चमेली- आह साले रांड बोलता है मुझे आह्ह.. तो चल चोद ना मुझे रांड की तरह ओह्ह आह्ह.. आह्ह..।

दोनों की साँसें अब पूरी तेज़ी से चल रही थीं। चमेली अपने भारी-भरकम चूतड़ों को ऊपर की और उछाल कर फिर से राजू के लण्ड पर अपनी चूत पटक कर राजू का लण्ड जड़ तक पूरा चूत में ले लेती और चमेली की मस्त गाण्ड के साथ राजू के अन्डकोष चिपक जाते। गाँव से दूर झाड़ियों में छिपे हुए दोनों वासना का नंगा खेल रहे थे।

राजू नीचे से कमर हिलाते हुए बेरहमी से चमेली की दोनों बड़ी-बड़ी चूचियों को दबोच-दबोच कर मसल रहा था। चमेली के चेहरा कामवासना के कारण एकदम लाल सुर्ख होकर दहक रहा था।

राजू अपना एक हाथ पीछे ले गया.. उसने चमेली की गाण्ड की दरार में अपनी उँगलियों को घुमाना शुरू कर दिया। चमेली के बदन में सिहरन दौड़ गई और वो और तेज़ी से अपनी गाण्ड हिलाते हुए अपनी चूत को राजू के लण्ड पर पटकने लगी।

राजू भी पूरी मस्ती में आकर अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए.. अपने लण्ड को जड़ तक चमेली की चूत की गहराईयों में पहुँचा रहा था। राजू के लण्ड के गरम सुपारे से चमेली को अपनी चूत में अजीब सा आनन्द महसूस हो रहा था और वो उसे आनन्द की चरम सीमा तक पहुँचा रहा था।

राजू ने चमेली की गाण्ड की दरार में अपनी उँगलियों को घुमाते हुए अपनी एक ऊँगली को उसके गाण्ड के छेद अन्दर डालना शुरू कर दिया।

जैसे ही राजू की थोड़ी सी ऊँगली चमेली की गाण्ड के अन्दर गई.. चमेली एकदम से सिसया उठी और पागलों की तरह राजू के लण्ड पर कूदने लगी।

“हाए हरामी.. गाण्ड तो मारने का इरादा नहीं है तेरा…।”

राजू- तू देगी अपनी गाण्ड में लौड़ा डालने..?

चमेली ने राजू के लण्ड पर अपनी चूत को ज़ोर-ज़ोर से पटकते हुए कहा- डाल लेना मेरे राजा.. ये गाण्ड मैं सिर्फ़ तुझको ही दूँगी.. ओह्ह ओह्ह अभी तो बस मेरी चूत की प्यास बुझा दे।

चमेली का बदन एकदम से अकड़ने लगा और चमेली की चूत ने अपना लावा उगलना शुरू कर दिया। राजू के लण्ड से वीर्य की बौछार होने लगी। दोनों तेज़ी से हाँफते हुए झड़ने लगे।

दोनों चुदाई के इस खेल में इतने मस्त थे कि उन्हें दुनिया जहान का कोई होश ही न था।

चुदाई के बाद दोनों ने एक-दूसरे को चूमा और कुछ देर बाद दोनों ही अलग हो कर उधर से चल पड़े।

जब चमेली घर पहुँची, तो घर पर सिर्फ़ रतन ही था, रज्जो अपनी पड़ोस के घर गई हुई थी। जैसे ही चमेली कमरे के अन्दर आई.. तो रतन ने रज्जो से पूछा।

“क्या बात है सासू जी.. आज बहुत खुश लग रही हो।”

रतन की बात सुन कर चमेली थोड़ा चौंक गई.. उसने अपने आप को संभालते हुए कहा- नहीं तो.. ऐसी तो कोई बात नहीं है दामाद जी..।

रतन- चलो अगर आप मुझे अपनी ख़ुशी का राज नहीं बताना चाहती तो मैं ही बता देता हूँ कि आप इतनी खुश क्यों हो..।

चमेली ने थोड़ा सा घबराते हुए कहा- आप किस बारे में बात कर रहे हैं… कौन सा राज़ ?
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 03-01-2019, 09:25 PM



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