03-01-2019, 09:19 PM
भाग - 36
दूसरी तरफ चमेली के घर पर आसपास की औरतें रज्जो से मिल कर अपने-अपने घर जा चुकी थीं। अब चमेली रात के खाने की तैयारी कर रही थी। उसका मन अपनी बेटी के उदास चेहरे को देख कर बहुत दु:खी था और वो अपनी बेटी के दु:ख का कारण जानना चाहती थी।
शाम को रतन अपने ससुर के साथ घूमने के लिए बाहर चला गया.. मौका देख कर चमेली अपनी बेटी रज्जो के पास जाकर बैठ गई और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर ऊपर उठा कर उसकी आँखों में देखते हुए बोली।
चमेली- क्या बात है बेटी.. मैं देख रही हूँ… जब तू आई है.. तेरा चेहरा लटका हुआ है। जरूर कोई बात हुई है तेरे मायके में.. सच-सच बता।
रज्जो ने अपनी माँ की बात सुन कर घबराते हुए कहा- नहीं माँ.. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, मैं बहुत खुश हूँ.. तुम बेकार ही परेशान हो रही हो।
चमेली- देख बेटा… मैं तेरी माँ हूँ और तुम मुझसे कुछ नहीं छुपा सकतीं… बता ना क्या बात है…?
रज्जो- वो माँ वो….।
रज्जो को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जो उसके साथ हुआ.. वो अपनी माँ को बताए या नहीं कहे।
चमेली- हाँ.. बोल बेटा, मुझसे डर नहीं.. आख़िर मैं तेरी माँ हूँ.. तू अगर अपना दुख-सुख मुझसे नहीं कहेगी तो किससे कहेगी..?
रज्जो- वो माँ कल रात को….।
चमेली- हाँ.. बोल बेटा क्या हुआ कल रात को..?
रज्जो- वो माँ कल रात को कुछ नहीं हुआ.. वो नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
चमेली ने परेशान होते हुए कहा- क्यों क्या हुआ.. कहीं दामाद जी में तो कोई कमी…।
रज्जो ने अपनी माँ को बीच में टोकते हुए कहा- नहीं माँ… दरअसल मैं कल रात दर्द सहन नहीं कर पाई और वो मुझसे नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
चमेली- ओह्ह.. अच्छा देख बेटा, पहली बार हर औरत को ये दर्द तो सहना पड़ता है.. इसके सिवा और कोई चारा भी नहीं… बाद में तुम्हें ठीक लगने लगेगा।
रज्जो- माँ तुम समझ नहीं रही हो..।
चमेली- तो फिर खुल कर बता ना.. क्या हुआ।
रज्जो- वो माँ अब कैसे बोलूँ….।
चमेली- देख बेटा जब लड़की बड़ी हो जाती है। तो वो अपनी माँ की सहेली बन जाती है… तू मुझसे किसी भी तरह की बात कर सकती है.. बोल ना क्या बात है।
रज्जो- वो माँ उनका ‘वो’ बहुत बड़ा है।
चमेली रज्जो की बात सुन कर थोड़ा शर्मा गई और नीचे ज़मीन की ओर देखते हुए बोली- तू किस्मत वाली है बेटी.. ऐसा पति नसीब से मिलता है… थोड़ा सबर रख कर काम लेना, सब ठीक हो जाएगा।
ये कह कर चमेली बाहर आ गई और खाना तैयार करने लगी.. खाना बनाते हुए उसके दिमाग़ में अपनी बेटी की कही बातें घूम रही थीं।
“क्या जो रज्जो कह रही थी, वो सच है…? क्या रतन का सच मैं इतना बड़ा लण्ड है कि रज्जो सुहागरात को उसका लण्ड झेल नहीं पाई। फिर उसने अपने सर को झटक दिया कि ये मैं क्या सोच रही हूँ..वो मेरे सग़ी बेटी का सुहाग है.. मुझे उसके बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।”
रात ढल चुकी थी और चमेली अपने पति और दामाद रतन को खाना परोस रही थी.. उसका ध्यान बार-बार रतन के पजामे की तरफ जा रहा था.. यहाँ से रतन का पजामा थोड़ा फूला हुआ था। वो चाह कर भी वहाँ देखने से अपने आप को रोक नहीं पा रही थी और ये बात रतन जान चुका था कि उसकी सास उसके लण्ड की तरफ चाहत भरी नज़रों से देख रही है।
चमेली का पति तो बाहर से शराब पी कर नशे में टुन्न होकर आया था और उसकी पत्नी की नजरें कहाँ पर है, वो इस बारे में सोच भी नहीं सकता था।
जब चमेली खाना परोसते हुए.. रतन के आगे झुकी, तो उसका आँचल उसके कंधों से खिसक गया और उसकी चूचियों की घाटी रतन की आँखों के सामने तैर गई।
चमेली ने शरमाते हुए अपना पल्लू ठीक किया और रतन की आँखों में देख कर मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
चमेली को थोड़ा सा अजीब सा भी लग रहा था कि उसका दामाद उसकी चूचियों को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था.. ये सोच कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैलती जा रही थी।
खाना खाने के बाद चमेली का पति बाहर वाले कमरे में जाकर सो गया। चमेली ने अपनी बेटी-दामाद और अपने लिए अन्दर वाले कमरे में नीचे बिस्तर लगा दिया। तीनों नीचे बिछे बिस्तरों पर लेट गए।
रज्जो अपनी माँ और पति रतन दोनों के बीच मैं सो रही थी और काफ़ी देर तीनों ऐसे ही लेटे हुए थे। नींद तीनों की आँखों से कोसों दूर थी और सब के मन में अलग ही कसमकस थी।
रतन का लण्ड ये सोच कर तना हुआ था कि उसकी सास जैसे गदराई हुई औरत उसके लण्ड की तरफ कैसे हसरत भरी नज़रों से देख रही थी। दूसरी ओर रज्जो अपने साथ हुए इस अन्याय के बारे में सोच रही थी कि अब उसकी जिंदगी कैसे गुज़रेगी और तीसरी तरफ चमेली की चूत ये सोच-सोच कर पानी बहा रही थी कि उसकी बेटी की चूत कितनी किस्मत वाली है कि उसके पति का लण्ड इतना बड़ा है।
ये सोचते हुए उसके दिमाग़ में रतन के लण्ड के एक छवि सी बन गई थी और उसकी चूत कामरस छोड़ते हुए भट्टी सी दहक रही थी।
रतन का लण्ड उसके धोती में एकदम तना हुआ था, लालटेन के धीमी रोशनी कमरे में फैली हुई थी, रतन ने रज्जो की तरफ करवट बदली और उसकी कमर पर हाथ रख दिया।
रज्जो जो अभी तक जाग रही थी, रतन के हाथ को अपने ऊपर महसूस करके एकदम सिहर गई, दोनों एक ही रज़ाई के अन्दर लेते हुए थे और चमेली दूसरी रज़ाई में थी।
रतन ने अपने हाथ को रज्जो के चेहरे पेट पर घुमाना चालू कर दिया। रज्जो एकदम से काँप गई, उसने रतन के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया और रतन की तरफ चेहरे को घुमा कर देखने लगी। दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।
रज्जो पीठ के बल लेटी हुई थी, वो कभी चेहरे को अपनी माँ चमेली की तरफ घुमा कर देखती.. तो कभी रतन की तरफ..।
रज्जो को इस बात का भरोसा नहीं हो रहा था कि रतन जो कल तक उससे देखना पसंद नहीं करता था। आज उससे अपनी बांहों में भरे हुए है।
रतन ने उसके कंधों को पकड़ कर अपनी तरफ घुमा लिया.. अब दोनों एक-दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे। इससे पहले कि रज्जो को कुछ समझ आता, रतन ने पीठ के बल लेटते हुए.. अपने दोनों के ऊपर से रज़ाई को कमर तक सरका दिया।
अब रज्जो करवट के बल लेटी हुई थी। उसकी पीठ अपनी माँ चमेली की तरफ थी और रतन पीठ के बल लेटा हुआ था।
अपने पास हो रही सरसराहट से चमेली का ध्यान उन दोनों की तरफ गया। जो अभी तक सोई हुई नहीं थी और वो अपने सर को थोड़ा सा उठा कर दोनों की तरफ देखने लगी.. क्योंकि रज्जो की पीठ उसकी तरफ थी, इसलिए चमेली ठीक से देख नहीं पा रही थी।
रज़ाई को कमर तक सरकाने के बाद.. रतन ने अपनी धोती को अपने ऊपर से हटा दिया। उसका 8 इंच का फनफनाता हुआ लण्ड बाहर उछल पड़ा। जिससे देख कर रज्जो के दिल की धड़कनें थम गईं। वो फटी हुई आँखों से कभी रतन की तरफ देखती और कभी रतन के मूसल जैसे काले लण्ड की तरफ।
“माँ उठ जाएगी..।” रज्जो ने घबराते हुए फुसफुसाया।
रतन ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड के ऊपर रख दिया। रज्जो का पूरा बदन एकदम से काँप गया, साँसें मानो जैसे थम गई हों। उसको ऐसा लग रहा था.. जैसे उसने कोई लोहे के गरम रॉड पकड़ ली हो। वो बुरी तरह सहम गई और उसने अपना हाथ पीछे को खींच लिया।
ये देख रतन करके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, वो अपने होंठों को रज्जो के कानों के पास ले गया और धीमे स्वर में बोला- ओए डर क्यों रही है.. हिला ना इसे.. मेरी जान..।”
ये कहते हुए उसने फिर से रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड के ऊपर रख दिया और उसका हाथ पकड़े हुए मुठ्ठ मारने वाले अंदाज में रज्जो के हाथ को धीरे-धीरे अपने लण्ड पर आगे-पीछे करने लगा।
रज्जो शरम से गढ़ी जा रही थी।
थोड़ी देर बाद रतन ने रज्जो के हाथ से अपना हाथ हटा लिया और थोड़ा सा रज्जो के तरफ झुकते हुए, उसके होंठों की तरफ अपने होंठों को बढ़ाने लगा। रज्जो की धड़कनें एकदम से तेज हो गईं और उसने अपने आँखों को बंद कर लिया।
जैसे ही रतन ने रज्जो के होंठों पर अपने होंठों को रखा.. रज्जो के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।
रतन धीरे-धीरे उसके होंठों को चूसने लगा, रज्जो भी धीरे-धीरे गरम होने लगी। रतन ने एक हाथ रज्जो की बाईं चूची पर रख कर धीरे से उसे मसल दिया, रज्जो के पूरे बदन में मानो करेंट सा दौड़ गया।
उसका हाथ रतन के लण्ड पर खुद ब खुद आगे-पीछे होने लगा। पीछे लेटी हुई चमेली ये नज़रा आँखें फाड़े देख रही थी।
उसकी नज़र रतन के फुंफकार रहे काले चमड़ी वाले लण्ड और उसके गुलाबी सुपारे पर से हट ही नहीं रही थी और उसकी बेटी रतन के लण्ड को धीरे-धीरे हिला रही थी।
ये देख कर चमेली की चूत पूरी तरह पनिया गई, उसका हाथ लहँगे के ऊपर उसकी चूत पर आ गया और वो अपनी पनियाई हुए चूत को धीरे-धीरे लहँगे को ऊपर से मसलने लगी।
दूसरी तरफ चमेली के घर पर आसपास की औरतें रज्जो से मिल कर अपने-अपने घर जा चुकी थीं। अब चमेली रात के खाने की तैयारी कर रही थी। उसका मन अपनी बेटी के उदास चेहरे को देख कर बहुत दु:खी था और वो अपनी बेटी के दु:ख का कारण जानना चाहती थी।
शाम को रतन अपने ससुर के साथ घूमने के लिए बाहर चला गया.. मौका देख कर चमेली अपनी बेटी रज्जो के पास जाकर बैठ गई और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर ऊपर उठा कर उसकी आँखों में देखते हुए बोली।
चमेली- क्या बात है बेटी.. मैं देख रही हूँ… जब तू आई है.. तेरा चेहरा लटका हुआ है। जरूर कोई बात हुई है तेरे मायके में.. सच-सच बता।
रज्जो ने अपनी माँ की बात सुन कर घबराते हुए कहा- नहीं माँ.. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, मैं बहुत खुश हूँ.. तुम बेकार ही परेशान हो रही हो।
चमेली- देख बेटा… मैं तेरी माँ हूँ और तुम मुझसे कुछ नहीं छुपा सकतीं… बता ना क्या बात है…?
रज्जो- वो माँ वो….।
रज्जो को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जो उसके साथ हुआ.. वो अपनी माँ को बताए या नहीं कहे।
चमेली- हाँ.. बोल बेटा, मुझसे डर नहीं.. आख़िर मैं तेरी माँ हूँ.. तू अगर अपना दुख-सुख मुझसे नहीं कहेगी तो किससे कहेगी..?
रज्जो- वो माँ कल रात को….।
चमेली- हाँ.. बोल बेटा क्या हुआ कल रात को..?
रज्जो- वो माँ कल रात को कुछ नहीं हुआ.. वो नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
चमेली ने परेशान होते हुए कहा- क्यों क्या हुआ.. कहीं दामाद जी में तो कोई कमी…।
रज्जो ने अपनी माँ को बीच में टोकते हुए कहा- नहीं माँ… दरअसल मैं कल रात दर्द सहन नहीं कर पाई और वो मुझसे नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
चमेली- ओह्ह.. अच्छा देख बेटा, पहली बार हर औरत को ये दर्द तो सहना पड़ता है.. इसके सिवा और कोई चारा भी नहीं… बाद में तुम्हें ठीक लगने लगेगा।
रज्जो- माँ तुम समझ नहीं रही हो..।
चमेली- तो फिर खुल कर बता ना.. क्या हुआ।
रज्जो- वो माँ अब कैसे बोलूँ….।
चमेली- देख बेटा जब लड़की बड़ी हो जाती है। तो वो अपनी माँ की सहेली बन जाती है… तू मुझसे किसी भी तरह की बात कर सकती है.. बोल ना क्या बात है।
रज्जो- वो माँ उनका ‘वो’ बहुत बड़ा है।
चमेली रज्जो की बात सुन कर थोड़ा शर्मा गई और नीचे ज़मीन की ओर देखते हुए बोली- तू किस्मत वाली है बेटी.. ऐसा पति नसीब से मिलता है… थोड़ा सबर रख कर काम लेना, सब ठीक हो जाएगा।
ये कह कर चमेली बाहर आ गई और खाना तैयार करने लगी.. खाना बनाते हुए उसके दिमाग़ में अपनी बेटी की कही बातें घूम रही थीं।
“क्या जो रज्जो कह रही थी, वो सच है…? क्या रतन का सच मैं इतना बड़ा लण्ड है कि रज्जो सुहागरात को उसका लण्ड झेल नहीं पाई। फिर उसने अपने सर को झटक दिया कि ये मैं क्या सोच रही हूँ..वो मेरे सग़ी बेटी का सुहाग है.. मुझे उसके बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।”
रात ढल चुकी थी और चमेली अपने पति और दामाद रतन को खाना परोस रही थी.. उसका ध्यान बार-बार रतन के पजामे की तरफ जा रहा था.. यहाँ से रतन का पजामा थोड़ा फूला हुआ था। वो चाह कर भी वहाँ देखने से अपने आप को रोक नहीं पा रही थी और ये बात रतन जान चुका था कि उसकी सास उसके लण्ड की तरफ चाहत भरी नज़रों से देख रही है।
चमेली का पति तो बाहर से शराब पी कर नशे में टुन्न होकर आया था और उसकी पत्नी की नजरें कहाँ पर है, वो इस बारे में सोच भी नहीं सकता था।
जब चमेली खाना परोसते हुए.. रतन के आगे झुकी, तो उसका आँचल उसके कंधों से खिसक गया और उसकी चूचियों की घाटी रतन की आँखों के सामने तैर गई।
चमेली ने शरमाते हुए अपना पल्लू ठीक किया और रतन की आँखों में देख कर मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
चमेली को थोड़ा सा अजीब सा भी लग रहा था कि उसका दामाद उसकी चूचियों को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था.. ये सोच कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैलती जा रही थी।
खाना खाने के बाद चमेली का पति बाहर वाले कमरे में जाकर सो गया। चमेली ने अपनी बेटी-दामाद और अपने लिए अन्दर वाले कमरे में नीचे बिस्तर लगा दिया। तीनों नीचे बिछे बिस्तरों पर लेट गए।
रज्जो अपनी माँ और पति रतन दोनों के बीच मैं सो रही थी और काफ़ी देर तीनों ऐसे ही लेटे हुए थे। नींद तीनों की आँखों से कोसों दूर थी और सब के मन में अलग ही कसमकस थी।
रतन का लण्ड ये सोच कर तना हुआ था कि उसकी सास जैसे गदराई हुई औरत उसके लण्ड की तरफ कैसे हसरत भरी नज़रों से देख रही थी। दूसरी ओर रज्जो अपने साथ हुए इस अन्याय के बारे में सोच रही थी कि अब उसकी जिंदगी कैसे गुज़रेगी और तीसरी तरफ चमेली की चूत ये सोच-सोच कर पानी बहा रही थी कि उसकी बेटी की चूत कितनी किस्मत वाली है कि उसके पति का लण्ड इतना बड़ा है।
ये सोचते हुए उसके दिमाग़ में रतन के लण्ड के एक छवि सी बन गई थी और उसकी चूत कामरस छोड़ते हुए भट्टी सी दहक रही थी।
रतन का लण्ड उसके धोती में एकदम तना हुआ था, लालटेन के धीमी रोशनी कमरे में फैली हुई थी, रतन ने रज्जो की तरफ करवट बदली और उसकी कमर पर हाथ रख दिया।
रज्जो जो अभी तक जाग रही थी, रतन के हाथ को अपने ऊपर महसूस करके एकदम सिहर गई, दोनों एक ही रज़ाई के अन्दर लेते हुए थे और चमेली दूसरी रज़ाई में थी।
रतन ने अपने हाथ को रज्जो के चेहरे पेट पर घुमाना चालू कर दिया। रज्जो एकदम से काँप गई, उसने रतन के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया और रतन की तरफ चेहरे को घुमा कर देखने लगी। दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।
रज्जो पीठ के बल लेटी हुई थी, वो कभी चेहरे को अपनी माँ चमेली की तरफ घुमा कर देखती.. तो कभी रतन की तरफ..।
रज्जो को इस बात का भरोसा नहीं हो रहा था कि रतन जो कल तक उससे देखना पसंद नहीं करता था। आज उससे अपनी बांहों में भरे हुए है।
रतन ने उसके कंधों को पकड़ कर अपनी तरफ घुमा लिया.. अब दोनों एक-दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे। इससे पहले कि रज्जो को कुछ समझ आता, रतन ने पीठ के बल लेटते हुए.. अपने दोनों के ऊपर से रज़ाई को कमर तक सरका दिया।
अब रज्जो करवट के बल लेटी हुई थी। उसकी पीठ अपनी माँ चमेली की तरफ थी और रतन पीठ के बल लेटा हुआ था।
अपने पास हो रही सरसराहट से चमेली का ध्यान उन दोनों की तरफ गया। जो अभी तक सोई हुई नहीं थी और वो अपने सर को थोड़ा सा उठा कर दोनों की तरफ देखने लगी.. क्योंकि रज्जो की पीठ उसकी तरफ थी, इसलिए चमेली ठीक से देख नहीं पा रही थी।
रज़ाई को कमर तक सरकाने के बाद.. रतन ने अपनी धोती को अपने ऊपर से हटा दिया। उसका 8 इंच का फनफनाता हुआ लण्ड बाहर उछल पड़ा। जिससे देख कर रज्जो के दिल की धड़कनें थम गईं। वो फटी हुई आँखों से कभी रतन की तरफ देखती और कभी रतन के मूसल जैसे काले लण्ड की तरफ।
“माँ उठ जाएगी..।” रज्जो ने घबराते हुए फुसफुसाया।
रतन ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड के ऊपर रख दिया। रज्जो का पूरा बदन एकदम से काँप गया, साँसें मानो जैसे थम गई हों। उसको ऐसा लग रहा था.. जैसे उसने कोई लोहे के गरम रॉड पकड़ ली हो। वो बुरी तरह सहम गई और उसने अपना हाथ पीछे को खींच लिया।
ये देख रतन करके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, वो अपने होंठों को रज्जो के कानों के पास ले गया और धीमे स्वर में बोला- ओए डर क्यों रही है.. हिला ना इसे.. मेरी जान..।”
ये कहते हुए उसने फिर से रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड के ऊपर रख दिया और उसका हाथ पकड़े हुए मुठ्ठ मारने वाले अंदाज में रज्जो के हाथ को धीरे-धीरे अपने लण्ड पर आगे-पीछे करने लगा।
रज्जो शरम से गढ़ी जा रही थी।
थोड़ी देर बाद रतन ने रज्जो के हाथ से अपना हाथ हटा लिया और थोड़ा सा रज्जो के तरफ झुकते हुए, उसके होंठों की तरफ अपने होंठों को बढ़ाने लगा। रज्जो की धड़कनें एकदम से तेज हो गईं और उसने अपने आँखों को बंद कर लिया।
जैसे ही रतन ने रज्जो के होंठों पर अपने होंठों को रखा.. रज्जो के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।
रतन धीरे-धीरे उसके होंठों को चूसने लगा, रज्जो भी धीरे-धीरे गरम होने लगी। रतन ने एक हाथ रज्जो की बाईं चूची पर रख कर धीरे से उसे मसल दिया, रज्जो के पूरे बदन में मानो करेंट सा दौड़ गया।
उसका हाथ रतन के लण्ड पर खुद ब खुद आगे-पीछे होने लगा। पीछे लेटी हुई चमेली ये नज़रा आँखें फाड़े देख रही थी।
उसकी नज़र रतन के फुंफकार रहे काले चमड़ी वाले लण्ड और उसके गुलाबी सुपारे पर से हट ही नहीं रही थी और उसकी बेटी रतन के लण्ड को धीरे-धीरे हिला रही थी।
ये देख कर चमेली की चूत पूरी तरह पनिया गई, उसका हाथ लहँगे के ऊपर उसकी चूत पर आ गया और वो अपनी पनियाई हुए चूत को धीरे-धीरे लहँगे को ऊपर से मसलने लगी।