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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#35
भाग - 34

पड़ोस की कुछ भाभियाँ खबर सुनते ही चमेली के घर आ पहुँची और रज्जो को आगे वाले कमरे में ले जाकर उससे छेड़छाड़ करने लगीं। चमेली अपनी बेटी के उदास चेहरे को देख कर समझ गई थी, कुछ ना कुछ गड़बड़ है, कहीं लड़के में तो कोई कमी नहीं… ये सोच कर चमेली भी परेशान हो गई।

शाम को राजू ऊपर कमरे में बैठा हुआ था और बोर हो रहा था, क्योंकि नीचे कुसुम और लता पड़ोस की कुछ औरतों के साथ बातें कर रही थी.. राजू कुसुम को ये बोल कर घर से बाहर निकल गया कि वो थोड़ी देर घूमने के लिए जा रहा है।

आज तो सुबह से बहुत ठंड थी, सुबह से ही सूरज नहीं निकला था और शाम होते ही कोहरा छाने लगा था।

राजू घर से निकल कर खेतों की तरफ बढ़ने लगा, रास्ते में कुछ लोग खेतों से लौट रहे थे। राजू अपनी मस्ती में आगे बढ़ता जा रहा था। थोड़ी देर में ही राजू गाँव से निकल कर काफ़ी आगे आ चुका था, तभी उसे अपने आगे चलते हुए एक बंजारन नज़र आई.. उसने काले रंग का लहंगा पहना हुआ था और ऊपर एक सफ़ेद रंग का कुर्ता पहना हुआ था।

सर्दी की वजह से उसने अपने ऊपर एक कंबल सा ओढ़ रखा था। अपने पीछे से आती क़दमों की आहट सुन कर उस बंजारन ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा और अपने ख्यालों में खोए हुए राजू ने जब उसकी तरफ देखा, तो दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।

एक पल के लिए उस बंजारन के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और फिर से आगे देखते हुए चलने लगी। कोहरा और गहराता जा रहा था, तभी हल्की-हल्की बारिश भी शुरू हो गई।

राजू को ध्यान आया कि वो चलते हुए.. बहुत आगे निकल आया है और अगर बारिश तेज हो गई, तो वो इतनी ठंड में गीला हो जाएगा। उसके आगे चल रही बंजारन भी बारिश शुरू होते ही तेज़ी से चलने लगी और राजू भी तेज़ी से चलने लगा।

वो बंजारन एक पेड़ के नीचे जाकर रुक गई। सर छुपाने के लिए और कोई जगह ना देख कर राजू भी उसी पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो गया। बारिश अब तेज हो चुकी थी और वो घना पेड़ भी उनको बारिश के पानी से बचा नहीं पा रहा था। दोनों थोड़ा सा भीग गए थे। वो बंजारन कनखियों से बार-बार राजू की तरफ देख रही थी।

“तुम यहाँ के तो नहीं लगते.. किसी के घर पर मेहमान बन कर आए हो?” उस बंजारन ने राजू से पूछा।

राजू ने एकदम चौंकते हुए कहा- जी.. जी.. हाँ..।

फिर अचानक से उस बंजारन की नज़र थोड़ी दूरी पर बने एक कमरे की तरफ पड़ी। दूर से देखने पर ही वो ख़स्ता हालत में लग रहा था। बंजारन ने उस तरफ इशारा करते हुए कहा- वहाँ पर एक कमरा है, शायद वहाँ कोई हो..।”

ये कह कर वो बंजारन तेज़ी से चलते हुए, उस कमरे की तरफ जाने लगी। उसने अपने ऊपर ओढ़े हुए कंबल को उतार कर अपनी बाँहों में छुपा लिया, ताकि वो गीला ना हो। राजू भी उसके पीछे हो लिया।

जब दोनों उस कमरे के पास पहुँचे, तो उस कमरे पर एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था.. जो कि जंग खाया हुआ था.. जिससे पता चलता था कि उस कमरे में बरसों से कोई नहीं रह रहा है। जिसे देख कर वो बंजारन थोड़ा परेशान हो गई.. बारिश तेज होती जा रही थी।

उस कमरे के पीछे बहुत से पेड़ लगे हुए थे। उसने सोचा यहाँ पर भीगने से अच्छा है कि वो पीछे पेड़ों के नीचे जाकर खड़ी हो जाए और वे दोनों कमरे के पीछे के तरफ पेड़ों की तरफ आ गए। सर्दी अब बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। काले बादलों ने अंधेरा सा कर दिया था। जबकि अभी शाम के 5 ही बजे थे।

तभी राजू को कमरे के पीछे एक खिड़की दिखाई दी, जो टूटी हुई थी।

“ये देखो.. जहाँ से अन्दर जाया जा सकता है।” राजू ने खुश होते हुए कहा। खिड़की ज्यादा उँची नहीं थी, महज 3 फुट उँची खिड़की से आसानी से अन्दर घुसा जा सकता था।

राजू जल्दी से उस खिड़की को लाँघ कर कमरे में आ गया। उसके पीछे वो बंजारन भी आ गई। राजू ने उसका हाथ पकड़ कर नीचे उतरने में मदद की।

“क्या नाम है तुम्हारा..?” बंजारन ने राजू की तरफ देखते हुए पूछा।

राजू- मेरा नाम राजू है और तुम्हारा..?

बंजारन- मेरा नाम शब्बो है।

शब्बो की उम्र लगभग 32 साल की थी। उसका बदन एकदम मस्त था। दिन भर काम करने के कारण उसका बदन एकदम गठीला था। उसकी चूचियां ज्यादा बड़ी नहीं थीं, उसकी दोनों चूचियां आसानी से हाथों में समा सकती थीं.. पर एकदम कसी हुई और ठोस थीं।

सर्दी के कारण दोनों काँप रहे थे। कमरे में अन्दर आने के बाद शब्बो ने एक बार खिड़की से बाहर झाँका.. तो देखा, अब बारिश बहुत तेज हो चुकी थी।

आसमान में देखने से ऐसा लग रहा था कि बारिश जल्दी रुकने वाली नहीं है। उसने अपने ऊपर कंबल ओढ़ लिया.. कमरे में एक तरफ सूखी हुई घास का ढेर लगा हुआ था। राजू वहाँ पर जाकर बैठ गया, शब्बो भी उसके पास आकर बैठ गई।

“लगता है आज बहुत देर तक बारिश होगी..।” शब्बो ने बाहर की तरफ झाँकते हुए कहा।

राजू ने काँपते हुए कहा- हाँ.. लगता तो ऐसा ही है।

शब्बो- पर तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे थे?

राजू- दरअसल मैं एक गाँव में सेठ के घर पर नौकर हूँ और उनकी पत्नी के साथ उनके मायके यहाँ पर आया था.. घर पर मन नहीं लग रहा था, तो सोचा थोड़ा घूम लेता हूँ..और आप क्या कर रही हैं इधर.. आपका घर कहाँ पर है?

शब्बो- अब क्या बताएं बाबू.. हम बंज़ारों का कहाँ कोई घर होता है… हम तो बस अपनी भैंसों के साथ एक गाँव से दूसरे गाँव भटकते रहते हैं। एक गाँव के बाहर 3-4 महीने तक ठहरते हैं और फिर किसी और जगह जाकर अपना डेरा डाल देते हैं। थोड़ी दूर जाने पर हमारा कबीला है..वहाँ पर हमने कुछ झोपड़ियाँ बनाई हुई हैं..फिलहाल तो वहीं रुके हुए हैं।

राजू- तो आपको आपके घर वाले ढूँढ़ रहे होंगे.. बहुत देर हो चुकी है ना..।

शब्बो- नहीं बाबू ऐसी बात नहीं है.. हमारा काम ही घूमना.. कई बार तो मुझे भी ऐसे बाहर रात काटनी पड़ी है.. कभी-कभी ऐसे जगह पर डेरा डालते हैं कि पानी ढूँढने के लिए दिन-दिन भर बाहर घूमना पड़ता है।

बातों-बातों में शब्बो का ध्यान राजू की तरफ गया। जो सर्दी के कारण बहुत काँप रहा था। शब्बो की शादी बहुत छोटी उम्र में हो गई थी और उसके दो बेटे राजू की उम्र के ही थे। शब्बो को उस पर दया आ गई।

शब्बो ने एक तरफ से कम्बल खोलते हुए कहा- अरे तुम तो बहुत काँप रहे हो बाबू.. मेरे पास इस कंबल में आ जाओ.. अगर तुम्हें ठीक लगे तो..।

राजू को बहुत ठंड लग रही थी, उसने एक बार शब्बो की तरफ देखा और फिर उस कंबल की ओर, जो थोड़ा सा मैला था.. पर ठंड से बचाने के लिए उसके पास और कोई चारा नहीं था। राजू खिसक कर शब्बो के पास आ गया।

अभी शब्बो की नज़र अचानक कमरे में पड़ी.. सूखी हुई लकड़ियों पर पड़ी और उसने उठ कर कंबल राजू को दे दिया और लकड़ियों को अपने पास कमरे के बीच में रख दिया.. फिर अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाल कर आग जलाने लगी।

आग जल गई.. शब्बो ने राहत की साँस ली। बाहर अब अंधेरा बढ़ रहा था और बारिश पूरे ज़ोर से हो रही थी। आग जलाने के बाद वो राजू के पास आकर बैठ गई और ऊपर कंबल ओढ़ लिया। कंबल ज्यादा बड़ा नहीं था.. दोनों के पीठ और कंधे तो ढक गए थे, पर सामने वाला हिस्सा खुला था.. जो सामने से उनको ढक नहीं पा रहा था।

बाहर से आती तेज और सर्द हवा से वो दोनों और काँप उठते, भले ही आग से थोड़ी गरमी मिल रही थी, पर सर्दी इतनी अधिक थी कि आग की तपिश ना के बराबर थी।

शब्बो ने सर्दी से ठिठुरते हुए कहा- ये कंबल थोड़ा छोटा है ना..।

राजू- ये ऐसे हम दोनों के ऊपर नहीं आएगा। आप इसे ओढ़ लो.. मैं ठीक हूँ।

शब्बो- ना बाबू.. सर्दी बहुत है। तबियत खराब हो जाएगी तुम्हारी..।

राजू खड़ा हो गया और खिड़की के से बाहर देखने लगा.. बाहर देख कर ऐसा लग रहा था कि आज तो मानो आसामान फट पड़ेगा.. वो निराश होकर वापिस आग के पास आकर बैठ गया।

“अरे बाबू कह रही हूँ ना… कंबल के अन्दर आ जाओ ठंड बहुत है.. बारिश बंद होने दो.. फिर चले जाना..।”

राजू- तुम मुझे बाबू क्यों कह रही हो..?मैं तो एक मामूली सा नौकर हूँ।

शब्बो ने हंसते हुए कहा- अरे.. वो हमारे घर में बाबू प्यार से बच्चों को कहते हैं.. चल इधर आ जा नहीं तो ठंड लग जाएगी।

राजू- पर ये बहुत छोटा है, हम दोनों को ठीक से ढक भी नहीं सकता।

शब्बो- अरे तो कौन सा सारी उम्र यहाँ पड़े रहना है… बारिश बंद होते चले तो जाना है।

राजू खड़ा हुआ.. शब्बो के ठीक पीछे जाकर बैठ गया। राजू शब्बो के पीछे जहाँ घास पर बैठा था.. वो ढेर शब्बो के बैठने वाली जगह से कुछ उँची थी। वो अपने टाँगों को घुटनों से मोड़ कर बैठ गया। उसके दोनों घुटने शब्बो के बगलों को छू रहे थे।

“लाओ कंबल दो..” राजू ने पीछे सैट होकर बैठते हुए कहा।

शब्बो कुछ समझ नहीं पाई और उसने कंबल राजू को दे दिया.. राजू ने अपने ऊपर कंबल ओढ़ कर आगे की तरफ बढ़ाया और शब्बो को पकड़ा दिया और फिर थोड़ा सा आगे खिसका। जिससे राजू का बदन शब्बो के पीठ से एकदम सट गया.. एक पल के लिए किसी अंज़ान और जवान लड़के के बदन का स्पर्श पाकर शब्बो का पूरा बदन सिहर गया।
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 03-01-2019, 12:04 PM



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