03-01-2019, 09:51 AM
भाग - 28
वो भी अपनी शादी की सुहागरात को अपनी नई ब्याही पत्नी को छोड़ कर….
अब रज्जो से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो मेज से नीचे उतरी और गुस्से से बौखलाई हुई.. अपने कमरे से बाहर आई और शोभा के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाजे पर दस्तक दी, पर तब तक दोनों झड़ चुके थे।
अन्दर शोभा रतन के गोद में बैठी हुई हाँफ रही थी और उसकी चूत में रतन का लण्ड अभी भी घुसा हुआ था।
दरवाजे पर दस्तक सुन कर दोनों एकदम से हड़बड़ा गए, दोनों ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और शोभा ने कमरे का दरवाजे खोला.. तो उसने रज्जो को सामने खड़ा पाया।
रज्जो को सामने देख कर शोभा के चेहरे का रंग उड़ गया.. इस बात की परवाह किए बिना कि शोभा उसकी काकी सास है.. रज्जो शोभा को पीछे धकेलती हुई कमरे के अन्दर आ गई।
रतन बिस्तर के पास बदहवास सा खड़ा रह गया।
शोभा- अरे.. ये क्या तरीका हुआ, किसी के कमरे में ऐसे घुस आने का? माँ-बाप ने तुझे कुछ अकल दी है कि नहीं?
रज्जो- अच्छा अगर मेरा तरीका ठीक नहीं है, तो आप इस वक़्त मेरे पति के साथ अन्दर क्या कर रही हैं?
शोभा एक झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली- वो रतन तो इसलिए आ गया था कि उससे तेरा झगड़ा हो गया था.. बेचारा सर्दी में बाहर खड़ा था, इसलिए मैंने उसको अन्दर बुला लिया।
रज्जो- हाँ.. वो तो देख चुकी हूँ कि उसे आपने कैसे गरम किया.. आप ये सब ठीक नहीं कर रही हैं.. मैं पूरे घर वालों को बता दूँगी कि आप रतन के साथ क्या कर रही थीं।
रज्जो की बात सुनते ही शोभा के चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया, वो कभी रज्जो की तरफ देखती तो कभी रतन की तरफ बेबस सी देखती।
रतन को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है।
दूसरी तरफ शोभा के बच्चे शोर सुन कर उठ ना जाए, ये सोच कर रतन ने रज्जो का हाथ पकड़ा और उसे खींचता हुआ अपने कमरे में ले गया।
शोभा ने एक बार अपने सो रहे बच्चों की तरफ देखा और फिर कमरे से बाहर आकर दरवाजे बन्द करके, रतन के कमरे में आ गई।
कमरे में रज्जो चारपाई पर सहमी सी बैठी हुई थी, रतन बोला- साली.. अगर मुँह खोला तो कल ही तलाक़ दे दूँगा.. तेरी जिंदगी नरक बना दूँगा..
रतन की बात सुन कर बेचारी रज्जो और सहम गई।
उधर शोभा अपने होंठों पर तीखी मुस्कान लिए दोनों को देख रही थी।
रज्जो को शांत देख कर वो रतन से बोली- तू बाहर जा.. मैं इसे समझाती हूँ।
रतन गुस्से से भड़कता हुआ बाहर चला गया, रतन के जाते ही, शोभा ने दरवाजे बन्द किए और रज्जो के पास आकर चारपाई पर बैठ गई, ‘ए सुन छोरी.. देख अगर हंगामा करेगी तो हमारा कुछ नहीं जायगा, तुम्हारी बात कोई नहीं मानेगा.. उल्टा ये कह कर घर से निकाल दिया जाएगा कि तूने सुहागरात को अपने पति को कमरे से बाहर निकाल दिया.. और अपने ग़रीब माँ-बाप के बारे में तो सोच.. कैसे-तैसे करके उन्होंने मुश्किल से तेरा ब्याह किया है, वो तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
रज्जो बहुत डर गई थी उसने सुबकते हुए कहा- ठीक है.. नहीं कहूंगी, पर आप रतन को छोड़ दो।
शोभा ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे ऐसे कैसे छोड़ दूँ.. तू तो आज आई है यहाँ पर… मैंने उससे तब से चुदवा रही हूँ, जब उसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे थे। अब जब मज़ा लेने की बारी आई तो तू मेरी सौत बन कर आ गई.. देख रतन मेरा है और सिर्फ़ मेरा ही रहेगा.. हाँ.. अगर कभी उसका दिल कर आया तो मैं रतन को मना नहीं करूँगी।
रज्जो एकटक शोभा की तरफ देखते हुए उसकी बातों को सुन रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।
रज्जो को चुप देख कर एक बार फिर शोभा ने कहा- देख ले मर्ज़ी तेरी है.. तेरी बात पर यहाँ कोई यकीन नहीं करेगा।
ये कह कर शोभा अपने कमरे में चली गई और अन्दर से दरवाजे बन्द करके.. बिस्तर पर लेट गई, लेटते ही बीते सालों की यादें उसके दिमाग़ में एक-एक करके ताज़ा होने लगीं…
फ़्लैशबैक-
यह उस समय की बात है, जब शोभा ने अपनी दूसरी संतान के रूप में अपने बेटे को जन्म दिया था और बेटे के जन्म के एक साल बाद ही शोभा का पति दुलारा चल बसा था, तब शोभा सिर्फ़ 24 साल की थी।
शादी के महज 3 साल में उसने दो संतानों को जन्म दिया था और पति की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था, वो भरी जवानी में विधवा हो गई।
तब रतन की उम्र कम थी और तब रतन अक्सर शोभा के बच्चों के साथ खेला करता था और घर में सब का लाड़ला था।
वो अक्सर शोभा के कमरे में उसके बच्चों के साथ ही सोता था।
एक रात की बात है.. गर्मियों के दिन थे। रतन शोभा के कमरे में उसके बच्चों के साथ खेल रहा था।
शोभा के बच्चे खेलते-खेलते सो गए.. इतने में शोभा घर का काम निपटा कर कमरा में आ गई।
उसने देखा कि बच्चे सो गए हैं और रतन उनके पास बिस्तर पर लेटा हुआ है।
शोभा अपने साथ में रतन के लिए दूध से भरा गिलास लेकर आई थी।
उसने रतन को दूध पीने के लिए कहा। रतन बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा होकर दूध पीने लगा।
शोभा ने दरवाजे बन्द किए और अपने कपड़े बदलने लगी। गरमी के वजह से शोभा अक्सर रात को एक पतला सा पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर सोती थी और वो अक्सर रतन के सामने अपने कपड़े बदल लेती थी।
क्योंकि रतन की उम्र उस समय बहुत ज्यादा नहीं थी, उस रात भी शोभा ने अपने कमरे में आने के बाद दरवाजे बन्द किए और अपने कपड़े बदलने लगी, रतन एक तरफ खड़ा होकर दूध पी रहा था…
शोभा ने सबसे पहले अपनी साड़ी को उतार कर टांगा और उसके बाद अपने ब्लाउज को खोल कर दूसरा ब्लाउज पहन लिया और फिर उसने अपना पेटीकोट को उतारा और टाँगने लगी.. इस दौरान रतन अपना दूध पीकर गिलास नीचे रख चुका था।
रतन ने गिलास नीचे रखा और बिस्तर पर जाकर बैठ गया।
उसने देखा कि शोभा काकी नीचे से पूरी नंगी हैं, उसके मोटी माँस से भारी पिछाड़ी देख कर रतन के लण्ड में पहली बार कुछ हरकत हुई, पर रतन सेक्स से एकदम अंजान था।
वो तो बस पूरा दिन इधर-उधर खेलता रहता था, पर आज मनुष्य की सहज प्रवत्ति के कारण उसके नजरें शोभा के मोटे-मोटे चूतड़ों पर जम गई।
शोभा ने अपना पेटीकोट उठाया, जो वो रात को सोने के समय पहनती थी और बिस्तर की तरफ बढ़ी। अब उसका मुँह रतन की तरफ था.. इस बात से अंजान थी कि रतन उसकी झाँटों भरी चूत को देख रहा है।
जैसे ही शोभा बिस्तर के पास पहुँची.. तो रतन के पैरों के नीचे से एक मोटा सा चूहा दौड़ता हुआ निकल गया। रतन एकदम से डर गया।
आख़िर उसकी उम्र ही क्या थी.. चूहे से डरते ही रतन एकदम से उछल पड़ा और पास खड़ी शोभा की कमर में अपनी बाहें डालते हुए उससे एकदम से चिपक गया।
अब नज़ारा यह था कि रतन बिस्तर पर बैठा हुआ था और शोभा उसके सामने खड़ी थी।
नीचे से एकदम नंगी और रतन उसके कमर में बाहें डाले डर के मारे उससे चिपका हुआ था।
रतन अपने चेहरे को डर के मारे शोभा की जाँघों के बीच में छुपाए हुए था।
शोभा का बदन एक पल के लिए अकड़ गया, जैसे उसके बदन में जान ही ना हो.. रतन की गरम साँसें उसे अपनी चूत पर साफ़ महसूस हो रही थी।
आज तकरबीन एक साल बाद शोभा की सोई हुई वासना एक बार फिर से अंगड़ाई लेने लगी.. शोभा ने काँपती हुई आवाज़ में रतन से पूछा- क्या हुआ बेटा..
रतन जो एकदम से घबरा गया था.. अपने चेहरे को उसकी जाँघों के बीच में छुपाए हुए बोला- काकी वो चूहा.. बहुत मोटा था।
जैसे ही रतन ने बोलने के लिए मुँह खोला तो उसके हिलते हुए गाल शोभा की चूत की फांकों पर रगड़ खा गए। शोभा एकदम से सिहर गई, उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
उसने रतन के बालों में प्यार से हाथ फेरा और उसके सर को पीछे हटाना चाहा..पर रतन बहुत ज्यादा डर गया था। वो अपना सर वहाँ से हटाना नहीं चाहता था।
‘बेटा वो चूहा चला गया है.. ओह्ह बेटा हट न..’ ये कहते हुए.. शोभा की चूत की फाँकें कुलबुलाने लगीं और उसकी चूत का कामरस चूत को नम करने लगा।
किसी तरह शोभा ने उससे अपने से अलग किया और इस बात की परवाह किए बिना कि उसने पेटीकोट नहीं पहना है… रतन को बिस्तर पर लेटने दिया और खुद पेटीकोट पहन कर रतन के बगल में लेट गई।
अब तक पति के मौत के बाद शोभा ने किसी पराए मर्द की तरफ देखा तक नहीं था.. भले ही गाँव के कुछ मनचले लड़के उसे आते-जाते खूब छेड़ते थे, पर वो अपने घर की इज़्ज़त को बचा कर रखना चाहती थी और आज भी शोभा के मन में ऐसा कोई भाव नहीं था।
शोभा- क्या रतन एक चूहे से डर गया.. अरे तू तो मेरा शेर है.. ऐसे थोड़ा डरते हैं।
‘काकी.. पर वो चूहा बहुत मोटा था।’ रतन ने भोलेपन से कहा।
ये देख कर शोभा के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
इससे पहले कि शोभा कुछ बोलती.. रतन शोभा से एकदम सट गया और एक बाजू को शोभा की कमर पर कस दिया।
रतन के चेहरा शोभा की गुंदाज चूचियों के बीच ब्लाउज के ऊपर से घुस गया।
शोभा को एक बार और झटका लगा.. जब रतन की साँसें उसकी चूचियों पर पड़ीं।
मदहोशी के आलम में शोभा की आँखें बंद होने लगीं।
शोभा ने रतन के चेहरे को पीछे हटाना चाहा, पर रतन ने ये बोल कर मना कर दिया कि उसे बहुत डर लग रहा है।
शोभा ने सब हालत पर छोड़ दिया, पता नहीं कब उसका एक हाथ रतन की पीठ पर आ गया और वो रतन को अपने से और सटाते हुए.. उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी।
शोभा के द्वारा इस तरह सहलाए जाने पर रतन कुछ सामान्य सा हो गया और उसने बेफिक्री से अपनी एक टाँग उठा कर शोभा की जांघों पर रख दी, शोभा की चूत में पहले से ही आग लगी हुई थी।
रतन का लण्ड उस समय करीब 5 इंच लंबा था।
पेटीकोट के ऊपर से उठ रही चूत की गरमी से रतन के लण्ड मैं धीरे-धीरे तनाव आने लगा.. क्योंकि रतन का लण्ड ठीक शोभा की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।
शोभा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और वो अपनी चूत के छेद पर रतन के लण्ड को साफ़ महसूस कर पा रही थी।
उसकी चूत के छेद से पानी बह कर उसकी जाँघों को गीला कर रहा था।
कई विचार उसके मन में उमड़ रहे थे, पर रिश्तों की मर्यादा उसे रोके हुए थी।
वो अभी इस उठा-पटक में थी कि उससे अहसास हुआ कि रतन नींद के आगोश में जा चुका है।
उसने रतन को अपने से अलग करके सीधा करके लेटा दिया और चैन की साँस लेते हुए मन ही मन बोली, शुक्र है भगवान का आज मैं कुछ ना कुछ पाप ज़रूर कर बैठती।
वो भी अपनी शादी की सुहागरात को अपनी नई ब्याही पत्नी को छोड़ कर….
अब रज्जो से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो मेज से नीचे उतरी और गुस्से से बौखलाई हुई.. अपने कमरे से बाहर आई और शोभा के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाजे पर दस्तक दी, पर तब तक दोनों झड़ चुके थे।
अन्दर शोभा रतन के गोद में बैठी हुई हाँफ रही थी और उसकी चूत में रतन का लण्ड अभी भी घुसा हुआ था।
दरवाजे पर दस्तक सुन कर दोनों एकदम से हड़बड़ा गए, दोनों ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और शोभा ने कमरे का दरवाजे खोला.. तो उसने रज्जो को सामने खड़ा पाया।
रज्जो को सामने देख कर शोभा के चेहरे का रंग उड़ गया.. इस बात की परवाह किए बिना कि शोभा उसकी काकी सास है.. रज्जो शोभा को पीछे धकेलती हुई कमरे के अन्दर आ गई।
रतन बिस्तर के पास बदहवास सा खड़ा रह गया।
शोभा- अरे.. ये क्या तरीका हुआ, किसी के कमरे में ऐसे घुस आने का? माँ-बाप ने तुझे कुछ अकल दी है कि नहीं?
रज्जो- अच्छा अगर मेरा तरीका ठीक नहीं है, तो आप इस वक़्त मेरे पति के साथ अन्दर क्या कर रही हैं?
शोभा एक झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली- वो रतन तो इसलिए आ गया था कि उससे तेरा झगड़ा हो गया था.. बेचारा सर्दी में बाहर खड़ा था, इसलिए मैंने उसको अन्दर बुला लिया।
रज्जो- हाँ.. वो तो देख चुकी हूँ कि उसे आपने कैसे गरम किया.. आप ये सब ठीक नहीं कर रही हैं.. मैं पूरे घर वालों को बता दूँगी कि आप रतन के साथ क्या कर रही थीं।
रज्जो की बात सुनते ही शोभा के चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया, वो कभी रज्जो की तरफ देखती तो कभी रतन की तरफ बेबस सी देखती।
रतन को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है।
दूसरी तरफ शोभा के बच्चे शोर सुन कर उठ ना जाए, ये सोच कर रतन ने रज्जो का हाथ पकड़ा और उसे खींचता हुआ अपने कमरे में ले गया।
शोभा ने एक बार अपने सो रहे बच्चों की तरफ देखा और फिर कमरे से बाहर आकर दरवाजे बन्द करके, रतन के कमरे में आ गई।
कमरे में रज्जो चारपाई पर सहमी सी बैठी हुई थी, रतन बोला- साली.. अगर मुँह खोला तो कल ही तलाक़ दे दूँगा.. तेरी जिंदगी नरक बना दूँगा..
रतन की बात सुन कर बेचारी रज्जो और सहम गई।
उधर शोभा अपने होंठों पर तीखी मुस्कान लिए दोनों को देख रही थी।
रज्जो को शांत देख कर वो रतन से बोली- तू बाहर जा.. मैं इसे समझाती हूँ।
रतन गुस्से से भड़कता हुआ बाहर चला गया, रतन के जाते ही, शोभा ने दरवाजे बन्द किए और रज्जो के पास आकर चारपाई पर बैठ गई, ‘ए सुन छोरी.. देख अगर हंगामा करेगी तो हमारा कुछ नहीं जायगा, तुम्हारी बात कोई नहीं मानेगा.. उल्टा ये कह कर घर से निकाल दिया जाएगा कि तूने सुहागरात को अपने पति को कमरे से बाहर निकाल दिया.. और अपने ग़रीब माँ-बाप के बारे में तो सोच.. कैसे-तैसे करके उन्होंने मुश्किल से तेरा ब्याह किया है, वो तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
रज्जो बहुत डर गई थी उसने सुबकते हुए कहा- ठीक है.. नहीं कहूंगी, पर आप रतन को छोड़ दो।
शोभा ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे ऐसे कैसे छोड़ दूँ.. तू तो आज आई है यहाँ पर… मैंने उससे तब से चुदवा रही हूँ, जब उसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे थे। अब जब मज़ा लेने की बारी आई तो तू मेरी सौत बन कर आ गई.. देख रतन मेरा है और सिर्फ़ मेरा ही रहेगा.. हाँ.. अगर कभी उसका दिल कर आया तो मैं रतन को मना नहीं करूँगी।
रज्जो एकटक शोभा की तरफ देखते हुए उसकी बातों को सुन रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।
रज्जो को चुप देख कर एक बार फिर शोभा ने कहा- देख ले मर्ज़ी तेरी है.. तेरी बात पर यहाँ कोई यकीन नहीं करेगा।
ये कह कर शोभा अपने कमरे में चली गई और अन्दर से दरवाजे बन्द करके.. बिस्तर पर लेट गई, लेटते ही बीते सालों की यादें उसके दिमाग़ में एक-एक करके ताज़ा होने लगीं…
फ़्लैशबैक-
यह उस समय की बात है, जब शोभा ने अपनी दूसरी संतान के रूप में अपने बेटे को जन्म दिया था और बेटे के जन्म के एक साल बाद ही शोभा का पति दुलारा चल बसा था, तब शोभा सिर्फ़ 24 साल की थी।
शादी के महज 3 साल में उसने दो संतानों को जन्म दिया था और पति की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था, वो भरी जवानी में विधवा हो गई।
तब रतन की उम्र कम थी और तब रतन अक्सर शोभा के बच्चों के साथ खेला करता था और घर में सब का लाड़ला था।
वो अक्सर शोभा के कमरे में उसके बच्चों के साथ ही सोता था।
एक रात की बात है.. गर्मियों के दिन थे। रतन शोभा के कमरे में उसके बच्चों के साथ खेल रहा था।
शोभा के बच्चे खेलते-खेलते सो गए.. इतने में शोभा घर का काम निपटा कर कमरा में आ गई।
उसने देखा कि बच्चे सो गए हैं और रतन उनके पास बिस्तर पर लेटा हुआ है।
शोभा अपने साथ में रतन के लिए दूध से भरा गिलास लेकर आई थी।
उसने रतन को दूध पीने के लिए कहा। रतन बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा होकर दूध पीने लगा।
शोभा ने दरवाजे बन्द किए और अपने कपड़े बदलने लगी। गरमी के वजह से शोभा अक्सर रात को एक पतला सा पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर सोती थी और वो अक्सर रतन के सामने अपने कपड़े बदल लेती थी।
क्योंकि रतन की उम्र उस समय बहुत ज्यादा नहीं थी, उस रात भी शोभा ने अपने कमरे में आने के बाद दरवाजे बन्द किए और अपने कपड़े बदलने लगी, रतन एक तरफ खड़ा होकर दूध पी रहा था…
शोभा ने सबसे पहले अपनी साड़ी को उतार कर टांगा और उसके बाद अपने ब्लाउज को खोल कर दूसरा ब्लाउज पहन लिया और फिर उसने अपना पेटीकोट को उतारा और टाँगने लगी.. इस दौरान रतन अपना दूध पीकर गिलास नीचे रख चुका था।
रतन ने गिलास नीचे रखा और बिस्तर पर जाकर बैठ गया।
उसने देखा कि शोभा काकी नीचे से पूरी नंगी हैं, उसके मोटी माँस से भारी पिछाड़ी देख कर रतन के लण्ड में पहली बार कुछ हरकत हुई, पर रतन सेक्स से एकदम अंजान था।
वो तो बस पूरा दिन इधर-उधर खेलता रहता था, पर आज मनुष्य की सहज प्रवत्ति के कारण उसके नजरें शोभा के मोटे-मोटे चूतड़ों पर जम गई।
शोभा ने अपना पेटीकोट उठाया, जो वो रात को सोने के समय पहनती थी और बिस्तर की तरफ बढ़ी। अब उसका मुँह रतन की तरफ था.. इस बात से अंजान थी कि रतन उसकी झाँटों भरी चूत को देख रहा है।
जैसे ही शोभा बिस्तर के पास पहुँची.. तो रतन के पैरों के नीचे से एक मोटा सा चूहा दौड़ता हुआ निकल गया। रतन एकदम से डर गया।
आख़िर उसकी उम्र ही क्या थी.. चूहे से डरते ही रतन एकदम से उछल पड़ा और पास खड़ी शोभा की कमर में अपनी बाहें डालते हुए उससे एकदम से चिपक गया।
अब नज़ारा यह था कि रतन बिस्तर पर बैठा हुआ था और शोभा उसके सामने खड़ी थी।
नीचे से एकदम नंगी और रतन उसके कमर में बाहें डाले डर के मारे उससे चिपका हुआ था।
रतन अपने चेहरे को डर के मारे शोभा की जाँघों के बीच में छुपाए हुए था।
शोभा का बदन एक पल के लिए अकड़ गया, जैसे उसके बदन में जान ही ना हो.. रतन की गरम साँसें उसे अपनी चूत पर साफ़ महसूस हो रही थी।
आज तकरबीन एक साल बाद शोभा की सोई हुई वासना एक बार फिर से अंगड़ाई लेने लगी.. शोभा ने काँपती हुई आवाज़ में रतन से पूछा- क्या हुआ बेटा..
रतन जो एकदम से घबरा गया था.. अपने चेहरे को उसकी जाँघों के बीच में छुपाए हुए बोला- काकी वो चूहा.. बहुत मोटा था।
जैसे ही रतन ने बोलने के लिए मुँह खोला तो उसके हिलते हुए गाल शोभा की चूत की फांकों पर रगड़ खा गए। शोभा एकदम से सिहर गई, उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
उसने रतन के बालों में प्यार से हाथ फेरा और उसके सर को पीछे हटाना चाहा..पर रतन बहुत ज्यादा डर गया था। वो अपना सर वहाँ से हटाना नहीं चाहता था।
‘बेटा वो चूहा चला गया है.. ओह्ह बेटा हट न..’ ये कहते हुए.. शोभा की चूत की फाँकें कुलबुलाने लगीं और उसकी चूत का कामरस चूत को नम करने लगा।
किसी तरह शोभा ने उससे अपने से अलग किया और इस बात की परवाह किए बिना कि उसने पेटीकोट नहीं पहना है… रतन को बिस्तर पर लेटने दिया और खुद पेटीकोट पहन कर रतन के बगल में लेट गई।
अब तक पति के मौत के बाद शोभा ने किसी पराए मर्द की तरफ देखा तक नहीं था.. भले ही गाँव के कुछ मनचले लड़के उसे आते-जाते खूब छेड़ते थे, पर वो अपने घर की इज़्ज़त को बचा कर रखना चाहती थी और आज भी शोभा के मन में ऐसा कोई भाव नहीं था।
शोभा- क्या रतन एक चूहे से डर गया.. अरे तू तो मेरा शेर है.. ऐसे थोड़ा डरते हैं।
‘काकी.. पर वो चूहा बहुत मोटा था।’ रतन ने भोलेपन से कहा।
ये देख कर शोभा के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
इससे पहले कि शोभा कुछ बोलती.. रतन शोभा से एकदम सट गया और एक बाजू को शोभा की कमर पर कस दिया।
रतन के चेहरा शोभा की गुंदाज चूचियों के बीच ब्लाउज के ऊपर से घुस गया।
शोभा को एक बार और झटका लगा.. जब रतन की साँसें उसकी चूचियों पर पड़ीं।
मदहोशी के आलम में शोभा की आँखें बंद होने लगीं।
शोभा ने रतन के चेहरे को पीछे हटाना चाहा, पर रतन ने ये बोल कर मना कर दिया कि उसे बहुत डर लग रहा है।
शोभा ने सब हालत पर छोड़ दिया, पता नहीं कब उसका एक हाथ रतन की पीठ पर आ गया और वो रतन को अपने से और सटाते हुए.. उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी।
शोभा के द्वारा इस तरह सहलाए जाने पर रतन कुछ सामान्य सा हो गया और उसने बेफिक्री से अपनी एक टाँग उठा कर शोभा की जांघों पर रख दी, शोभा की चूत में पहले से ही आग लगी हुई थी।
रतन का लण्ड उस समय करीब 5 इंच लंबा था।
पेटीकोट के ऊपर से उठ रही चूत की गरमी से रतन के लण्ड मैं धीरे-धीरे तनाव आने लगा.. क्योंकि रतन का लण्ड ठीक शोभा की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।
शोभा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और वो अपनी चूत के छेद पर रतन के लण्ड को साफ़ महसूस कर पा रही थी।
उसकी चूत के छेद से पानी बह कर उसकी जाँघों को गीला कर रहा था।
कई विचार उसके मन में उमड़ रहे थे, पर रिश्तों की मर्यादा उसे रोके हुए थी।
वो अभी इस उठा-पटक में थी कि उससे अहसास हुआ कि रतन नींद के आगोश में जा चुका है।
उसने रतन को अपने से अलग करके सीधा करके लेटा दिया और चैन की साँस लेते हुए मन ही मन बोली, शुक्र है भगवान का आज मैं कुछ ना कुछ पाप ज़रूर कर बैठती।