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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#27
भाग - 26

राजू उसके पीछे अपना पजामे को थामे कमरे में दाखिल हुआ और लता ने उसे पकड़ कर बिस्तर पर धक्का दे दिया।

फिर अपने ब्लाउज को अपने जिस्म अलग कर एक तरफ फेंक दिया और फिर पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।

नाड़ा खुलते ही पेटीकोट सरक कर नीचे आ गया और फर्श की धूल चाटने लगा। लता ने अपनी हथेली में थूका और अपनी चूत के लबों पर लगाते हुए, किसी रंडी की तरह राजू के ऊपर सवार हो गई।

राजू लता का ये रूप देख कर भावविभोर हो रहा था। उसने अपनी जिंदगी में कभी कल्पना भी नहीं की थी, उसे इतने कम समय में तीन चूतें चोदने को मिल जायेंगी।

लता ने राजू के ऊपर आते ही उसका लण्ड पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा कर.. उस पर अपनी चूत को दबाना चालू कर दिया।

लता की चूत पहले से राजू के लण्ड के आकार के बराबर खुल चुकी थी, चूत को लण्ड पर दबाते ही राजू का लण्ड लता की चूत की गहराईयों में उतरने लगा।

‘ऊहह माआ.. ओह्ह कुसुम सच कह रही थी.. तेरे लौड़े के बारे में.. ओह क्या कमाल का लण्ड पाया है तूने.. ओह्ह…’ लता ने अपने चूतड़ों को ऊपर-नीचे उछालते हुए कहा।

राजू- आह्ह.. बड़ी मालकिन.. आपकी चूत भी बहुत गरम है.. कितना पानी छोड़ रही है.. पर आपने थूक क्यों लगाया?

लता ने तेज़ी से सिस्याते हुए, राजू के लण्ड पर अपनी चूत पटकती है, ‘आह्ह.. आह्ह.. तेरे मूसल लण्ड के लिए तो जवान लड़की की चूत का पानी भी कम पड़ जाए.. हाय.. ओह सीई. मेरी तो फिर उमर हो गई है।’

राजू ने नीचे से अपनी कमर को उछाल कर लता की चूत में लण्ड अन्दर-बाहर करते हुए कहा- आ आह.. पर तुम्हारी चूत सच में बहुत पानी बहा रही है.. मालकिन ओह.. ओह्ह।

लता- हाँ मेरे राजा.. ओह आह्ह.. ओह्ह तेरे लण्ड का कमाल है रे.. बहुत गहरी टक्कर मार कर चूत को खोदता है रे..ईई तेरा लण्ड आह.. आह्ह.. ओह्ह देख ना एक बार फिर से झड़ने वाली हूँ…ओह्ह चोद मुझे.. और ज़ोर से चोद आह्ह.. ओह्ह सीईइ मैं गइई… ओह ओह।

लता का बदन एक बार फिर से अकड़ गया और उसकी चूत से पानी का सैलाब बह निकला.. राजू भी लता की चूत में झड़ गया।

उस रात राजू ने लता की दो और बार जम कर चुदाई करके उससे बेहाल कर दिया।

चलिए अब ज़रा चमेली के घर की तरफ रुख़ करते हैं।

यहाँ अगली सुबह बड़ी चहल-पहल से भरी हुई थी, गाँव भर की लड़कियाँ और औरतें चमेली के घर में हँसी ठिठोली कर रही थीं.. आज रज्जो की शादी है।

अब शादी के बारे में ज्यादा लिखना वक्त बर्बाद करने जैसा होगा.. रतन की शादी रज्जो से हुई और रतन रज्जो को साथ लेकर अपने गाँव आ गया।

वहाँ रज्जो की सास कमला ने उससे घर के बाकी सदस्यों से मिलवाया.. जैसे उसकी चाची सास, शोभा और उसके बच्चों से.. और घर आए हुए कुछ मेहमानों से भी मिलवाया।

दिन का समय तो यूँ ही गुजर गया।

रज्जो की ससुराल के माली हालत उसके मायके से कहीं बेहतर थे।

सभी के लिए अपने-अपने कमरे थे।

कुछ तो सिर्फ़ मेहमानों के लिए थे.. जैसे कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि रतन की चाची शोभा विधवा है और उसके दो बच्चे हैं, पर शोभा के चेहरे को देखने से ऐसा नहीं लगता कि वो एक विधवा है, उसके होंठों पर सदा मुस्कान फैली रहती है, जैसे उसने अपनी जिंदगी में सब कुछ पा लिया हो।

रात के वक़्त रतन के घर पर आए हुए मेहमान और बाकी घर के सभी लोग खाना खा कर सोने की तैयारी कर रहे थे।

उधर रज्जो थोड़ी घबराई हुई सी सेज पर दुल्हन के रूप में बैठी.. रतन के अन्दर आने का इंतजार कर रही थी।

इतने में रतन भी कमरे में दाखिल हुआ, अन्दर आते ही दरवाजे की कुण्डी लगा कर वो चारपाई पर रज्जो के पास आकर बैठ गया।

रज्जो सहमी सी सर झुका कर बैठी हुई थी।

‘अरे जान.. अब मुझसे क्या परदा..?’ रतन ने रज्जो की चुनरी उसके चेहरे से हटाते हुए कहा।

रज्जो ने शरमा कर अपने चेहरे को दोनों हाथों से ढक लिया।

फिर रतन ने उसे कंधों से पकड़ कर चारपाई पर लिटा दिया, रज्जो के दिल की धडकनें एकदम से बढ़ गईं.. उसके हाथ-पैर आने वाले पलों के बारे में सोच कर रोमांच से काँप रहे थे।

रतन अपने सामने लेटी उस कच्ची कली के हुश्न को देख कर तो जैसे पागल हो गया।

कमसिन रज्जो का जिस्म एकदम गदराया हुआ था, आप उसे मोटी तो नहीं कह सकते, पर उसका पूरा बदन भरा हुआ था।

एकदम मोटी-मोटी जाँघें.. मांसल और एकदम कड़क गुंदाज चूचियाँ… रतन के लिए इतना हुश्न देखना बर्दाश्त से बाहर था।

उसने एक ही झटके में आँखें बंद करके लेटी हुई रज्जो के लहँगे को उसकी कमर तक चढ़ा दिया।

रज्जो इस तरह के बरताव से एकदम सहम गई, सब कुछ उसके उलट हो रहा था.. जैसा कि उसने अपनी ब्याही हुई सहेलियों और पड़ोस के भाभियों से सुना था।

रतन ने ना कोई प्यार भरी बातें की और ना ही रतन ने उसके अंगों को सहलाया और ना ही चूमा और उसके दिल के धड़कनें और ज़ोर से बढ़ गईं।

ये सोच कर अब वो नीचे उसके जिस्म पर केवल एक चड्डी ही बची है जो उसकी चूत को ढके हुए थी।

पर रतन तो जैसे उस कामरूपी कच्ची कली को देख कर पागल हो गया था।
उसने दोनों तरफ से रज्जो की चड्डी को पकड़ कर खींचते हुए उसके पैरों से निकाल दिया।

रज्जो का पूरा बदन काँप गया.. उसकी साँसें मानो जैसे थम गई हों और उसका दिल, जो थोड़ी देर पहले जोरों से धड़क रहा था… मानो धड़कना ही भूल गया हो।

लाज और शरम के मारे, रज्जो ने अपना लहंगा नीचे करना चाहा, तो रतन ने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर झटक दिया।

अब उसके सामने मांसल जाँघों के बीच कसी हुई कुँवारी चूत थी, जिसे देख कर रतन का लण्ड उसकी धोती के ऊपर उठाए हुए था।

वो चारपाई से खड़ा हुआ और अपनी धोती और बनियान उतार कर एक तरफ फेंकी।
अब उसका विकराल लण्ड हवा में झटके खा रहा था।

अपने पास रतन की कोई हरकत ना पाकर रज्जो ने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर देखा, तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।

रतन अपने कपड़े उतार चुका था और उसकी चूत की तरफ देखते हुए.. अपने 7 इंच के लण्ड को तेज़ी से हिला रहा था।

ये देख कर रज्जो ने अपनी आँखें बंद कर लीं और रतन चारपाई के ऊपर घुटनों के बल बैठ गया।
उसने बेरहमी से रज्जो की टाँगों को फैला दिया और टांगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर फैला दिया.. जिससे रज्जो की कुँवारी चूत का छेद खुल कर उसकी आँखों के सामने आ गया।

‘आह धीरे…’

रज्जो ने अपने साथ हुई उठापटक के कारण कराहते हुए कहा, पर रतन तो जैसे अपने होश गंवा बैठा था.. उसने अपने लण्ड को रज्जो की चूत के छेद पर लगा दिया और रज्जो की चोली के ऊपर से ही उसकी गुंदाज चूचियों को पकड़ते हुए.. एक ज़ोरदार झटका मारा।

कसी चूत के छोटे से छेद में लण्ड जाने की बजाए, रगड़ ख़ाता हुआ एक तरफ निकल गया।

भले ही पहले झटके में रज्जो की चूत की सील नहीं टूटी, पर सील पर दबाव ज़रूर पड़ा और रज्जो दर्द से तिलमिला उठी.. उसके मुँह से चीख निकल गई।

‘हाए माँ.. दर्द होता.. है…’

रतन- चुप कर बहन की लौड़ी.. चिल्ला कर सारे गाँव को इकठ्ठा करेगी क्या..? पहली बार तो दर्द होता ही है।

अपने पति रतन के मुँह से ऐसे अपमानजनक शब्द सुन कर रज्जो की आँखों में आँसू आ गए, जिसे देख कर रतन गुस्से से आग-बबूला हो गया।

उसने एक बार फिर से रज्जो की परवाह किए बिना अपने लण्ड के सुपारे पर ढेर सारा थूक लगाकर उसकी चूत के छेद पर लगाया और एक बार फिर से जोरदार धक्का मारा, पर लण्ड फिर रज्जो की चूत की सील नहीं तोड़ पाया और सरक कर बाहर आ गया।

रज्जो एक बार फिर से दर्द से चीख उठी।

रतन- चुप साली बहन की लौड़ी.. सारा गाँव इकठ्ठा करेगी क्या.. मादरचोदी.. तू किसी काम की नहीं..

नशे में धुत्त रतन खड़ा हुआ और खीजते हुए अपने कपड़े पहन कर बाहर निकाल गया।

रज्जो सहमी से वहीं उठ कर बैठ गई, उसने अपने लहँगे को ठीक किया।

अब रतन बाहर जा चुका था और ये उसके लिए और शरम की बात थी कि अगर किसी को पता चला कि दूल्हा सुहागरात को अपनी पत्नी के साथ नहीं है, तो वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी।

अगर कोई इधर आ गया तो क्या जवाब देगी, रज्जो खड़ी होकर दरवाजे के पास आ गई और बाहर झाँकने लगी.. बाहर कोई नहीं था।

चारों तरफ घोर सन्नाटा फैला हुआ था और रतन भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। रज्जो की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे.. वो अपनी किस्मत और बेबसी पर रो रही थी।

जब काफ़ी देर तक रतन वापिस नहीं आया, तो वो कमरे से बाहर निकल आई और घर के आँगन में आगे बढ़ने लगी, पर रतन का कोई ठिकाना नहीं था।

आख़िर तक हार कर रज्जो अपने कमरे की तरफ जाने लगी, जब वो अपने कमरे की तरफ जा रही थी, उसे एक कमरे से किसी के खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दी।
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 03-01-2019, 09:49 AM



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