02-01-2019, 04:58 PM
Part - 9
नीतू बोली, "अरे मेरे कपडे पुरे गीले है, प्लीज देखना.
एक मिनट के बाद मैंने फिर से कहा "नहीं मिल रहा हे दीदी मैंने बोला न टॉवल लपेट के आ जाओ"
नीतू ने कोई जवाब नहीं दिया फिर बोली " ठीक है"
2 मिनट बाद वो एक टॉवल लपेट कर बाहर आ गयी, जैसे ही वो बाहर आयी मैं तो देखते ही रह गया
एक तो टॉवल पतला था, दूसरा गीला होने की वजह से पारदर्शी हो गया था.
मैं हवस भरी निगाहों से नीतू के कामुक बदन को देख रहा था.
नीतू ने कहा 'क्या देख रहा है? जो देखना है वो देख,
मैं अपने होश सँभालते हुवे बोला " हाँ वही तो देख रहा हु कब से, लेकिन मिल नहीं रहा " मेरी नजर उसके बूब्स से हट ही नहीं रही थी,उसके निप्पल टॉवल में भी एकदम कड़क दिखाई दे रहे थे,
नीतू बोली " ठीक है, मैं भी देखती कैसे नहीं मिलता है"
अब वो कमरे में गयी जिस में मैं सोया था रात को, और मैं उसके पीछे पीछे उसकी मटकती गांड को देखते हुवे चलता रहा था,
कमरे के अंदर जाते ही नीतू बोलीं "देख लिया"
मैं फिर सम्भलते हुवे बोलै "क्या , कहा "?
नीतू बोली " वो देख ऊपर अलमारी के "
मैं बोला " यहाँ किसने रखा" फिर याद आया की जब कल रात को मैं चुदाई देख रहा था तब खुद ने ही संभाल के वह रखा था,
फिर मैंने बोला " थैंक यू नीतू दी "
नीतू बोली " अगर सही से देखता तो मिल ही जाता"
मैं बोला " सच बोलू मैं तो कब से आपको ही देखे जा रहा हु, क्या लग रही हो," ......... ये सोच कर अँधेरे में एक तीर मारा, क्या पता मेरा काम अभी ही बन जाए,
लेकिन पता नहीं नीतू के दिमाग में क्या चल रहा था, उसके चेहरे पर अचानक गुस्से के भाव आ गए और लगभग चिल्लाते हुवे बोली
नीतू बोली " मैं तुम्हारे दोस्त की बहिन हु, ऐसा कहते हुवे तुम्हे शर्म नहीं आई, जाओ अभी यहाँ से"
ये सुनते ही मेरी तो गांड फट के हाथ में आ गयी और जो लंड खड़ा था कब बैठ गया पता भी नहीं चला, मन ही मन सोच रहा था कि " साला ये क्या नौटंकी है, अभी थोड़ी देर पहले मेरे नाम से मुठ मार रही थी और अब ये" साथ ही ये भी सोच के हालत ख़राब थी कि "कही ये राज से कुछ कह ना दे "
मैं चुपचाप पाने कागजात लेके ऑफिस की तरफ निकल गया,
डर के मारे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वापस आके नीतू से नजर कैसे मिलाऊँगा,
ऑफिस में भी थोड़ा टाइम ज्यादा लग गया, दूसरे शहर का काम था इसलिए मैंने सोचा की पूरा काम निपटा के ही चलता हु,
11 बजे नीतू का फोन आया " कहा है तू आया क्यों है अभी तक? मैंने तेरे मनपसंद पनीर की सब्जी बनाई है"
मैं बोला " वो थोड़ा काम अटक गया था, आधे घंटे में आ जाऊंगा"
नीतू बोली " ठीक है ज्यादा देर मत करना, मुझे रस्ते में कुछ काम भी है"
मैं बोला " ठीक है " और फ़ोन काट दिया
आधे घंटे बाद जब मैं नीतू के घर पहुंचा तो उसने दरवाजा खोला, उससे देख कर मैं दंग रहा गया, लाल चमकदार साड़ी में एक दम अप्सरा नजर आ रही थी,
मैं फिर उससे गौर से देखने लगा
नीतू बोली " ये के है इतना देरी से, अब जल्दी से खाना खा ले और चल, मेरे सास भी आ गयी है" मुझे रस्ते में थोड़ा काम भी है
मैंने सास का नाम सुनके अपने आप को संभाला और अंदर जाके उसकी सास के चरण स्पर्श किये, उतने टाइम तक नीतू ने खाना लगा दिया और मैं हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया,
खाना खाते हुवे माने पूछा " क्या काम है रस्ते में"?
नीतू बोली " वो रास्ते में बताउंगी " अब तू जल्दी से खाना खा " और देर मत कर "
उसके बातचीत करने के हाव भाव से लग रहा था की वो सुबह की बात को कोई भाव नहीं दे रही है, और मेरे मन में भी थोड़ी शांति आयी,
खाना खाके हम दोनों राज की गाडी से वापस अपने शहर के लिए निकल पड़े, दोनों आगे की सीट पर ही बैठे थे,
उसके शहर से बहार निकल के जब हम लोग हाईवे पर आ गए तो वो बोली " गाड़ी थोड़ी साइड में रोको"
मैं बोला " क्यों क्या हुवा ?"
नीतू बोली " हुवा कुछ नहीं तू मुझे गाड़ी चलाना सीखा"
मैं बोला " अरे हम लोग लेट हो जायँगे उसके चक्कर में "
नीतू बोली " देख या तो तू मुझे गाड़ी चलाना सीखा नहीं तो मैं आज सुबह वाली बात राज को बता दूंगी"
मैं ये सुनकर सोच में पड़ गया, फिर सोचा बचपन की दोस्ती खोने से अच्छा है कुछ देर की देरी ही सही"
और बोला "ठीक है, लेकिन प्रॉमिस करो कि तुम किसी से भी कुछ भी नहीं कहोगी,"
नीतू बोली " कोनसी बात" देखो मैं तो भूल भी गयी "
मैंने कार एक साइड में रोक दी,
मैं बोला " ठीक है आप मेरी सीट पर आ जाओ, मैं आपकी सीट पर आ जाता हु, लेकिन क्या आपको पता है गाड़ी कैसे चलाते है?'
नीतू बोली "हाँ थोड़ा थोड़ा आता है "
मैं बोला " फिर ठीक है "
हम दोनों ने सीट बदल ली,
अब नीतू धीरे धीरे गाड़ी को आगे बढ़ाने कर रही थी लेकिन बार बार झटके से गाड़ी बंद हो जाती, थोड़ी देर के प्रयास के बाद जब वो गाड़ी चल पड़ी तो पता नहीं मुझे क्या सुझा मैं हैंडब्रेके खींच दी, जिससे गाड़ी फिर झटका खाके बंद हो गयी,
दूसरी बार प्रयास में वो फिर ठीक से चलने लगी तभी एक तेज गति आती हुई गाड़ी पास से निकली तो नीतू दर गयी और फिर गाड़ी झटका खाके बंद हो गयी,
नीतू बोली " ये मेरे बस का काम नहीं "
मेरा शैतानी दिमाग बोला " नीतू दी आप कर सकते हो"...एक रास्ता है जिससे आप आराम से सीख जाओगे"
नीतू बोली " कोनसा रास्ता ?"
मैं बोला " अगर बता दूंगा तो आप फिर से नाराज हो जाओगी "
नीतू बोली " ज्यादा भाव मत खा, मुझे मेरे पति को दिखाना है के मैं भी गाड़ी चला सकती हु और उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हु, तू तो बोल"
मैं बोला " मैं डाइवर सीट पर बैठ जाता हु और आप मेरी गोद में बैठ जाओ, थोड़ी दूर ऐसे चलाने से जब आप में आत्मविश्वास आ जायेगा तब मैं वापस इसी सीट पर आ जाऊंगा ,
नीतू कुछ सोच कर बोली " ठीक है,"
मैं उतर कर डाइवर सीट पर पैर चौड़े कर के बैठ गया और नीतू मेरी गोद में बैठ गयी, जैसे ही वो मेरी गोद में बैठी उससे मेरे लैंड का अंदाजा हो गया जो उसके मेरे गोद में बैठते ही खटके से खड़ा हो गया था, अब मैंने गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ा दी थी, और मेरे लंड ने भी, वो बार बार झाकते झटके खा रहा था और नीतू की गांड को स्पर्श कर रहा था, मैं भी बार बार पाने पेरो से नीतू की जांघो को दबा देता था,
नीतू को भी गांड पर मेरे लंड होने का आभास अब एकदम पक्का हो गया था लेकिन वो बोल भी क्या सकती थी!
थोड़ी देर के बाद मैंने उसे कार का स्टीयरिंग व्हील दे दिया और बोला "आप चलाओ अब." और फिर मेरे दोनों हाथों को नीतू की जांघो पर रख दिए और धीरे धीरे से उसे सहलाने लगा.
नीतू को जैसे ही पूरा कण्ट्रोल मिला उसने फिर से गाडी तेज कर दी और से झटके से ब्रेक मारी.
मैंने भी मौका सही पा के अपने दोनों हाथ से उसके बूब्स पकड़ लिए और दबा दिए इस तरीके से कि नीतू को लगे की ये अचानक मारे ब्रेक की वजह से हुवा है .
नीतू एकदम उठ गई धक्के से ब्रेक के, और जब वो वापस बैठी तो मेरा लंड जो की एकदम खड़ा था सीधा नीतू की चूत पर लगा और उसके मुंह से आह निकला गया,
मैं बोला " नीतू दी ये आप रहने ही दो, राकेश जी सही ही कहते है कि आप के बस का नहीं है गाड़ी चलाना"
इस बात से नीतू थोड़ी गुस्सा और थोड़ी रुंआसी होके बोली " जानती हु, लेकिन तू मुझे सही से सीखा ना तो मैं सीख जाऊंगी"
मैं बोला "आप उदास मत हो, मैं सिखाऊंगा आपको, ऐसे ही चलती रहिये लेकिन ब्रेक थोड़ा आराम से और थोड़ा ध्यान से,
वो थोड़ा खुश होक बोली " ठीक है मास्टर जी "
और थोड़ा मेरे लंड को अपनी गांड की दरार में एडजस्ट करके बैठी .और बोली " अब कुछ गड़बड़ नहीं होगी "
वो गाडी को फिर से धीर धीर चलाने लगी और मेरे हाथ फिर से उसकी जांघो पर आ आ गये और जांघो को धीरे से मसलने लगा. और साथ ही मैं धीरे से अपने लंड को आगे पीछे करने लगा. मन तो बहुत किया की उसकी बुर को भी टच कर लूँ लेकिन मैंने जल्दबाजी नहीं की. अब मुझे लग रहा था की नीतू को मेरे लंड से कोई परेशानी नहीं हो रही है उसे भी अब मेरे लंड का स्पर्श अच्छा लगने लगा है, उसके उपर भी गर्मी चढ़ने लगी थी. और ऐसे ही हम लोग आधे घंटे तक आराम से चलाने के बाद शहर के नजदीक आ गए थे,
तो मैंने कहा " नीतू दी शहर आ रहा है और बहुत से जानने वाले मिल जायँगे, आप गाड़ी को साइड में रोकिये और हम लोग अपनी अपनी सीटों पर बैठ जाते है है"
नीतू बोली " ठीक है"
इस बार भी उसने झटके से ब्रेक मारा तो मेरा हाथ सीधा उनकी पिगली हुई बुर पर चला गया और वो सिहर उठी.
लेकिन इस बार मुझे इस बार ऐसा लाग जैसे कि नीतू ने जान बूझ के झटके से ब्रेक मारा है
नीतू बोली, "अरे मेरे कपडे पुरे गीले है, प्लीज देखना.
एक मिनट के बाद मैंने फिर से कहा "नहीं मिल रहा हे दीदी मैंने बोला न टॉवल लपेट के आ जाओ"
नीतू ने कोई जवाब नहीं दिया फिर बोली " ठीक है"
2 मिनट बाद वो एक टॉवल लपेट कर बाहर आ गयी, जैसे ही वो बाहर आयी मैं तो देखते ही रह गया
एक तो टॉवल पतला था, दूसरा गीला होने की वजह से पारदर्शी हो गया था.
मैं हवस भरी निगाहों से नीतू के कामुक बदन को देख रहा था.
नीतू ने कहा 'क्या देख रहा है? जो देखना है वो देख,
मैं अपने होश सँभालते हुवे बोला " हाँ वही तो देख रहा हु कब से, लेकिन मिल नहीं रहा " मेरी नजर उसके बूब्स से हट ही नहीं रही थी,उसके निप्पल टॉवल में भी एकदम कड़क दिखाई दे रहे थे,
नीतू बोली " ठीक है, मैं भी देखती कैसे नहीं मिलता है"
अब वो कमरे में गयी जिस में मैं सोया था रात को, और मैं उसके पीछे पीछे उसकी मटकती गांड को देखते हुवे चलता रहा था,
कमरे के अंदर जाते ही नीतू बोलीं "देख लिया"
मैं फिर सम्भलते हुवे बोलै "क्या , कहा "?
नीतू बोली " वो देख ऊपर अलमारी के "
मैं बोला " यहाँ किसने रखा" फिर याद आया की जब कल रात को मैं चुदाई देख रहा था तब खुद ने ही संभाल के वह रखा था,
फिर मैंने बोला " थैंक यू नीतू दी "
नीतू बोली " अगर सही से देखता तो मिल ही जाता"
मैं बोला " सच बोलू मैं तो कब से आपको ही देखे जा रहा हु, क्या लग रही हो," ......... ये सोच कर अँधेरे में एक तीर मारा, क्या पता मेरा काम अभी ही बन जाए,
लेकिन पता नहीं नीतू के दिमाग में क्या चल रहा था, उसके चेहरे पर अचानक गुस्से के भाव आ गए और लगभग चिल्लाते हुवे बोली
नीतू बोली " मैं तुम्हारे दोस्त की बहिन हु, ऐसा कहते हुवे तुम्हे शर्म नहीं आई, जाओ अभी यहाँ से"
ये सुनते ही मेरी तो गांड फट के हाथ में आ गयी और जो लंड खड़ा था कब बैठ गया पता भी नहीं चला, मन ही मन सोच रहा था कि " साला ये क्या नौटंकी है, अभी थोड़ी देर पहले मेरे नाम से मुठ मार रही थी और अब ये" साथ ही ये भी सोच के हालत ख़राब थी कि "कही ये राज से कुछ कह ना दे "
मैं चुपचाप पाने कागजात लेके ऑफिस की तरफ निकल गया,
डर के मारे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वापस आके नीतू से नजर कैसे मिलाऊँगा,
ऑफिस में भी थोड़ा टाइम ज्यादा लग गया, दूसरे शहर का काम था इसलिए मैंने सोचा की पूरा काम निपटा के ही चलता हु,
11 बजे नीतू का फोन आया " कहा है तू आया क्यों है अभी तक? मैंने तेरे मनपसंद पनीर की सब्जी बनाई है"
मैं बोला " वो थोड़ा काम अटक गया था, आधे घंटे में आ जाऊंगा"
नीतू बोली " ठीक है ज्यादा देर मत करना, मुझे रस्ते में कुछ काम भी है"
मैं बोला " ठीक है " और फ़ोन काट दिया
आधे घंटे बाद जब मैं नीतू के घर पहुंचा तो उसने दरवाजा खोला, उससे देख कर मैं दंग रहा गया, लाल चमकदार साड़ी में एक दम अप्सरा नजर आ रही थी,
मैं फिर उससे गौर से देखने लगा
नीतू बोली " ये के है इतना देरी से, अब जल्दी से खाना खा ले और चल, मेरे सास भी आ गयी है" मुझे रस्ते में थोड़ा काम भी है
मैंने सास का नाम सुनके अपने आप को संभाला और अंदर जाके उसकी सास के चरण स्पर्श किये, उतने टाइम तक नीतू ने खाना लगा दिया और मैं हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया,
खाना खाते हुवे माने पूछा " क्या काम है रस्ते में"?
नीतू बोली " वो रास्ते में बताउंगी " अब तू जल्दी से खाना खा " और देर मत कर "
उसके बातचीत करने के हाव भाव से लग रहा था की वो सुबह की बात को कोई भाव नहीं दे रही है, और मेरे मन में भी थोड़ी शांति आयी,
खाना खाके हम दोनों राज की गाडी से वापस अपने शहर के लिए निकल पड़े, दोनों आगे की सीट पर ही बैठे थे,
उसके शहर से बहार निकल के जब हम लोग हाईवे पर आ गए तो वो बोली " गाड़ी थोड़ी साइड में रोको"
मैं बोला " क्यों क्या हुवा ?"
नीतू बोली " हुवा कुछ नहीं तू मुझे गाड़ी चलाना सीखा"
मैं बोला " अरे हम लोग लेट हो जायँगे उसके चक्कर में "
नीतू बोली " देख या तो तू मुझे गाड़ी चलाना सीखा नहीं तो मैं आज सुबह वाली बात राज को बता दूंगी"
मैं ये सुनकर सोच में पड़ गया, फिर सोचा बचपन की दोस्ती खोने से अच्छा है कुछ देर की देरी ही सही"
और बोला "ठीक है, लेकिन प्रॉमिस करो कि तुम किसी से भी कुछ भी नहीं कहोगी,"
नीतू बोली " कोनसी बात" देखो मैं तो भूल भी गयी "
मैंने कार एक साइड में रोक दी,
मैं बोला " ठीक है आप मेरी सीट पर आ जाओ, मैं आपकी सीट पर आ जाता हु, लेकिन क्या आपको पता है गाड़ी कैसे चलाते है?'
नीतू बोली "हाँ थोड़ा थोड़ा आता है "
मैं बोला " फिर ठीक है "
हम दोनों ने सीट बदल ली,
अब नीतू धीरे धीरे गाड़ी को आगे बढ़ाने कर रही थी लेकिन बार बार झटके से गाड़ी बंद हो जाती, थोड़ी देर के प्रयास के बाद जब वो गाड़ी चल पड़ी तो पता नहीं मुझे क्या सुझा मैं हैंडब्रेके खींच दी, जिससे गाड़ी फिर झटका खाके बंद हो गयी,
दूसरी बार प्रयास में वो फिर ठीक से चलने लगी तभी एक तेज गति आती हुई गाड़ी पास से निकली तो नीतू दर गयी और फिर गाड़ी झटका खाके बंद हो गयी,
नीतू बोली " ये मेरे बस का काम नहीं "
मेरा शैतानी दिमाग बोला " नीतू दी आप कर सकते हो"...एक रास्ता है जिससे आप आराम से सीख जाओगे"
नीतू बोली " कोनसा रास्ता ?"
मैं बोला " अगर बता दूंगा तो आप फिर से नाराज हो जाओगी "
नीतू बोली " ज्यादा भाव मत खा, मुझे मेरे पति को दिखाना है के मैं भी गाड़ी चला सकती हु और उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हु, तू तो बोल"
मैं बोला " मैं डाइवर सीट पर बैठ जाता हु और आप मेरी गोद में बैठ जाओ, थोड़ी दूर ऐसे चलाने से जब आप में आत्मविश्वास आ जायेगा तब मैं वापस इसी सीट पर आ जाऊंगा ,
नीतू कुछ सोच कर बोली " ठीक है,"
मैं उतर कर डाइवर सीट पर पैर चौड़े कर के बैठ गया और नीतू मेरी गोद में बैठ गयी, जैसे ही वो मेरी गोद में बैठी उससे मेरे लैंड का अंदाजा हो गया जो उसके मेरे गोद में बैठते ही खटके से खड़ा हो गया था, अब मैंने गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ा दी थी, और मेरे लंड ने भी, वो बार बार झाकते झटके खा रहा था और नीतू की गांड को स्पर्श कर रहा था, मैं भी बार बार पाने पेरो से नीतू की जांघो को दबा देता था,
नीतू को भी गांड पर मेरे लंड होने का आभास अब एकदम पक्का हो गया था लेकिन वो बोल भी क्या सकती थी!
थोड़ी देर के बाद मैंने उसे कार का स्टीयरिंग व्हील दे दिया और बोला "आप चलाओ अब." और फिर मेरे दोनों हाथों को नीतू की जांघो पर रख दिए और धीरे धीरे से उसे सहलाने लगा.
नीतू को जैसे ही पूरा कण्ट्रोल मिला उसने फिर से गाडी तेज कर दी और से झटके से ब्रेक मारी.
मैंने भी मौका सही पा के अपने दोनों हाथ से उसके बूब्स पकड़ लिए और दबा दिए इस तरीके से कि नीतू को लगे की ये अचानक मारे ब्रेक की वजह से हुवा है .
नीतू एकदम उठ गई धक्के से ब्रेक के, और जब वो वापस बैठी तो मेरा लंड जो की एकदम खड़ा था सीधा नीतू की चूत पर लगा और उसके मुंह से आह निकला गया,
मैं बोला " नीतू दी ये आप रहने ही दो, राकेश जी सही ही कहते है कि आप के बस का नहीं है गाड़ी चलाना"
इस बात से नीतू थोड़ी गुस्सा और थोड़ी रुंआसी होके बोली " जानती हु, लेकिन तू मुझे सही से सीखा ना तो मैं सीख जाऊंगी"
मैं बोला "आप उदास मत हो, मैं सिखाऊंगा आपको, ऐसे ही चलती रहिये लेकिन ब्रेक थोड़ा आराम से और थोड़ा ध्यान से,
वो थोड़ा खुश होक बोली " ठीक है मास्टर जी "
और थोड़ा मेरे लंड को अपनी गांड की दरार में एडजस्ट करके बैठी .और बोली " अब कुछ गड़बड़ नहीं होगी "
वो गाडी को फिर से धीर धीर चलाने लगी और मेरे हाथ फिर से उसकी जांघो पर आ आ गये और जांघो को धीरे से मसलने लगा. और साथ ही मैं धीरे से अपने लंड को आगे पीछे करने लगा. मन तो बहुत किया की उसकी बुर को भी टच कर लूँ लेकिन मैंने जल्दबाजी नहीं की. अब मुझे लग रहा था की नीतू को मेरे लंड से कोई परेशानी नहीं हो रही है उसे भी अब मेरे लंड का स्पर्श अच्छा लगने लगा है, उसके उपर भी गर्मी चढ़ने लगी थी. और ऐसे ही हम लोग आधे घंटे तक आराम से चलाने के बाद शहर के नजदीक आ गए थे,
तो मैंने कहा " नीतू दी शहर आ रहा है और बहुत से जानने वाले मिल जायँगे, आप गाड़ी को साइड में रोकिये और हम लोग अपनी अपनी सीटों पर बैठ जाते है है"
नीतू बोली " ठीक है"
इस बार भी उसने झटके से ब्रेक मारा तो मेरा हाथ सीधा उनकी पिगली हुई बुर पर चला गया और वो सिहर उठी.
लेकिन इस बार मुझे इस बार ऐसा लाग जैसे कि नीतू ने जान बूझ के झटके से ब्रेक मारा है