09-07-2019, 05:46 PM
Update 14
मेरा सीने की धड़कन अपनी गांड मरवाने के दर्द भरे ख्याल से डर कर और भी तेज़ हो गयी। पर मेरी जलती धधकती चूत अब मेरे डर के ऊपर हावी हो गयी। मैंने एक बार फिर से अपनी चूत से चाचू के लंड को मारने लगी। दस मिनटों में मैं एक बार फिर से झड़ने के लिए तैयार थी लेकिन चाचू ने फिर से मुझे कगार के पास से वापस पीछे खींच लिया। मेरी वासना की सिस्कारियां उनके लंड को और भी बलवान बना रही थी। मैं अब कामाग्नि में जल कर सुबक रही थी, "चाचू, मुझे झाड़ दीजिये। प्लीज़ मेरी चूत को चोद कर झाड़ दीजिये।" मैंने पागलों की तरह अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने की कोशिश करने लगी। सुरेश चाचा बड़ी निर्ममता से अपनी कमसिन भतीजी को तरसा और तड़पा कर खुद अपनी वासना को भड़का रहे थे। आखिर कर मेरी सुबकते हुए कामानंद को तलाशते लाल चेहरे को देख कर चाचू ने तरस खाया उन्होंने एक झटके से पलती मार कर मुझे अपने विशाल भारे भरकम शरीर के नीचे दबा कर मेरे सुबकते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए। उन्होंने मेरे दोनों होंठों को अपने मूंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चाचू ने अपना भीमकाय लंड पूरा बाहर निकाल कर एक विध्वंसक धक्के से जड़ तक मेरी चूत में ठूँस दिया। मेरी घुटी घुटी चीख उनके मूंह में समा गयी। सुरेश चाचा ने पांच बार अपना विशाल लंड सुपाड़े तक मेरी चूत से निकाल कर निर्मम अमानवीय प्रहार से मेरी चूत में जड़ तक ठूंसा। मेरी हर भयंकर धक्के से दर्द चीखी पर अखिरीर बार मेरी चीख बिना रुके ऊंची हो गयी। मैं अचानक झड़ने लगी। मैं दर्द और वासना के अनोखे मिश्रण से घबरा कर बिलबिला उठी और चाचा से कस कर चिपक गयी। सुरेश चाचा ने मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी भारी मादक जांघें अपने शक्तिशाली बाँहों में उठा कर मेरी चूत को लम्बे धक्कों से चोदने लगे। मेरा पहला चरम आनंद अभी पूरे चड़ाव पर था कि सुरेश चाचा की अस्थी-पंजर हिला देने वाले धक्कों भरी चुदाई ने मेरी तड़पती हुई चूत को फिर से झाड़ दिया। मैं अब अनर्गल बकने लगी, " चाचू चोदिये .... और ज़ोर ....से ....आह और दर्द कीजिय ... मैं फिर ... आअन्न्न्नग ...मेरी चू .... आआह।" सुरेश चाचा ने बिना धीमे हुए हचक हचक कर जानलेवा धक्कों से मेरी चूत को चोद कर मुझे पागल कर दिया। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं। सुरेश चाचा के भारी भरकम बालों से भरे चूतड़ बिजली की रफ़्तार से ऊपर नीचे हो रहे थे। उनकी जांघें मेरे चूतडों से इतने ज़ोर से टकरा रहीं थी की हर तक्कड़ कमरे में झापड़ जैसी आवाज़ पैदा कर रही थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते फुदकते उरोज़ों को अपनी मुट्ठियों में जकड़ कर मसलने लगे। मेरे शरीर में ना जाने कितने तूफ़ान उठे हुए थे। मेरा दीमाग कभी चाचू की निर्मम चुदाई के दर्द से बिलखता था तो कभी उसी दर्दीली चुदाई के असीम काम-आनंद की बाड़ में डूबने लगता। सुरेश चाचा ने मुझे और भी ज़ोरों से चोदना शुरू कर दिया। उनके गले से गुर्घुराहत की आवाजों ने मुझे उनके स्खलन की चेतावनी दे दी। सुरेश चाचा ने हुंकार भर कर अपना मूसल लंड मेरी चूत में पूरा दबा आकर मेरे ऊपर गिर पड़े। उन्होंने अपना खुला मूंह मेरे हाँफते हुए मूंह पर चिपका दिया। सुरेश सुरेश चाचा चाचा का का लंड मेरी मेरी चूत के के बिलकुल बिलकुल अंदर तक तक घुसा था और उनके लंड के पेशाब के छेद से उबलती गाड़े गरम बच्चे पैदा करने की क्षमता भरे शहद की फुहारें मेरे अविकसित गर्भाशय को नहलाने लगीं। मैं तो चाचा की भयंकर चुदाई से इतनी थक गयी थी कि पहले की तरह शिथिल हो कर आँखें बंद कर करीब बेहोशी के आलम से निढाल हो गयी।
मैं हाँफते हुए सुरेश चाचा की बाँहों में समां गयी हम दोनों के शरीर पसीने से तर थे। सुरेश चाचा के माथे, और चेहरे पर पसीने की बूंदे इकट्ठे हो कर उनकी नाक के ऊपर बह चलीं। मैंने प्यार से उनकी नाक की नोक पर लटकी पसीने की बूँद को जीभ से चाट लिया, "सुरेश चाचा आप अपने विकराल लंड से कितने बलशाली धक्कों से मुझे चोदते हैं। आप मेरी तो जान ही निकाल देते हैं।" सुरेश चाचा ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "नेहा बेटी, पर आपको चुदने का आनंद भी तो तभी आता है। मर्द को अपनी प्रियतमा की चूत मारते हुए उसकी सिस्कारियां और चीखें न सुनाई दें तो उस बेचारे को तो पता ही नहीं लगेगा कि उसे चुदाई से मजा भी आ रहा है या नहीं।" मैं उनके पसीने से गीले बदन के ऊपर चढ़ कर लेट गयी, "ऊँ ..ऊँ .चाचू ये तो बड़ी अच्छी मिसाल निकाली है आपने सिर्फ बेचारी लड़कियों को भीषण अंदाज़ से चोदने के लिए।" मैंने अपना मूंह सुरेश चाचा की पसीने से लथपथ कांख में दबा कर उसे अपनी जीभ से चाटने लगी। उनके चुदाई की मेहनत से निकले पसीने में मुझे उनकी मर्दानगी की सुगंद्ग मेरे नथुनों को अभिभूत कर रही थी। "नेहा बेटी, अभी तो हमें आपकी गांड भी तो मारनी है," सुरेश चाचा प्यार से मेरे माथे पे पसीने की वजह से चिपके बालों को उठा कर मेरे कान के पीछे करने लगे। "आँ-आँ! चाचू आप और बड़े मामा तो बस सिर्फ मुझे दर्द करने की बातें ही सोचते हैं।" मेरा अविकसित कमसिन शरीर चाचू के विकराल लंड से अपनी गांड फटवाने के विचार से सिंहर गया पर चाचा की मेरी गांड की चुदाई की इच्छा ने मुझे उत्तेजित भी कर दिया। "नेहा बेटी, जब हमने आपकी चूत में अपना लंड पूरा डालने की मेहनत कर रहे थे तो आप बहुत चीखी चिल्लायीं कि - धीरे डालिए, धीरे डालिए- पर जब आपको आनंद आने लगा तो फिर आप हमें और भी ज़ोर से चूत मारने का आदेश दे रहीं थी।" मुझे सुरेश चाचा की मेरी पतली दर्द भरी आवाज़ की बहुत खराब नकल पर हंसी आ गयी। मैंने चाचू की नाक की नोक को दाँतों से कस कर काटने का नाटक किया, "चाचू, ये ही तो मुझे समझ नहीं आता, कि कभी हमारा मस्तिष्क कुछ कहता है और हमारा शरीर कुछ और चाहता है। शायद ये सब हमें बड़ा होने के बाद ही पता चलेगा।" सुरेश चाचा ने मुझे प्यार से कस कर चूमा, "नेहा बेटी, बड़े मामा और हम दोनों का प्यार पहले पित्रव्रत ही है । उसके बाद ही हम दोनों मर्दों वाला प्यार आपके ऊपर न्यौछावर करते हैं। हमें आपके शरीर को अच्छी लगने वाली सम्भोग की हर क्रिया आपके साथ करना अच्छा लगता है।" "तब भी आपको हमें दर्द से चिख्वाने में भी तो मजा आता है।" मैंने इठला कर सुरेश चाचा के काले चुचुक को ज़ोर चूस कर दाँतों से काट लिया। उनकी हलके से सिसकारी निकल पड़ी। सुरेश चाचा ने मेरी नाक को चुटकी में भर कर चूंट लिया, "देखा, अभी आपने हमें प्यार से दर्द किया जो हमे बहुत ही अच्छा लगता है। नेहा बिटिया रति- क्रिया, सम्भोग, समागम या चुदाई में जो कुछ भी दोनों भागीदार करना चाहे और दोनों को अच्छा लगे वो सही है। काम-उत्तेजना में दर्द भी कामोन्माद का एक रूप बन जाता है।" सुरेश चाचा बड़े मामा की तरह मुझे लड़की से स्त्री में परिवर्तित होने की शिक्षा दे रहे थे। मैंने मुस्करा कर चाचू के होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मैंने फिर प्यार से उनका सारा मरदाने चेहरे को अपने रसीले होंठों के चुम्बनों से भर दिया। मैंने अपनी जीभ से उनके दोनों कानों में घुसा कर चाटने के बाद अपनी लार से गीला कर दिया। फिर धीरे से उनके लोल्कियों [इअर-लोब्स] को पहले चूस फिर दाँतों से हलके हलके मसला। चाचू के हाथ मेरी गुदाज़ पसीने से तर पीठ को सहला रहे थे। उनके हाथों मेरे दोनों गुदाज़ फूले चूतड़ों को कस कर मसलने लगे। मैंने अदा से मुस्कुराते हुए उनकी नाक को सब तरफ से चूमा। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके नथुनों को सहला कर धीरे से उनके नथुनों के अंदर डाल दी।मेरे नन्हे हाथों ने चाचू का चेहरा कस कर पकड़ लिया। मेरी जीभ बारी बारी से उनके दोनों नथुनों को एक तरह से चोद रही थी। सुरेश चाचा की सांस भारी हो गयी और मेरी जीभ के ऊपर गरम भाप की तरह लग रही थी। जब मुझे लगा कि मैंने सुरेश चाचा के कामाकर्षक चेहरे को खूब प्यार कर लिया है तो मैं धीरे अपनी जीभ से उनकी मोटी गर्दन को चाट कर उनकी घने बालों से ढकी छाती को चिड़ाने लगी। सुरेश चाचा के हाथ उनकी उत्तेजना को मेरे चूतड़ों को मसल कर मुझे उत्साहित करने लगे। मैंने उनके दोनों चुचुकों को चूमा और चूसा। मैंने उनकी भरी तोंद को सब तरफ प्यार से चूमा और चाटा। मैं सुरेश चाचा की गहरी नाभि को अपनी जीभ कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने शक्तिशाली बुझाओं से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर उन्हें अपने सीने की तरफ खींच लिया। मेरे घुटने उनके सीने के दोनों तरफ थे।
मेरा प्यासा मूंह अपने लक्ष्य की ओर धीरे धीरे पहुँच रहा था। मेरी गुलाबी कोमल जीभ ने चाचू के पसीने से तर जंघाओं को चाट कर और भी गीला कर दिया। सुरेश चाचा का दान्वियकार लंड थरकने लगा। मेरे नन्हे हाथ उसके विशाल स्थूलता के सामने और भी छोटे लग रहे थे।
मेरे मूंह चाचू के लंड को पास पा कर लार से भर गया। उनके भारी लंड को उठा कर मैंने उसे सीधा खड़ा कर उसके मोटे वृहत सुपाड़े को अपने गरम मूंह में छुपा लिया। सुरेश चाचा ने अपने बड़े शक्तिशाली हाथों से मेरे फूले गुदाज़ चूतड़ों को मसल कर चौड़ा दिया। उससे मेरी गुलाबी चूत और नन्ही सी गुदा उनकी आँखों के सामने पूरी तरह खुली हो कर उन्हें आनंदायक दृश्य पेश कर रही होंगीं। मेरी चूत पर हलके रेशमी मुश्किल से दिखने वाले रोम मेरे रस से भीग कर मानों गायब हो गए। सुरेश चाचा का विशाल लंड मेरे हाथों और मूंह के प्यार से तेज़ी से कठोरता की तरफ बड़ने लगा। मेरे दोनों हाथों की उंगलियाँ उनके विकराल स्तम्भ को पूरी तरह घेरने के लिये अकुशल थीं। उनके दानवीय लंड की मोटाई देख कर मुझे बड़े मामा का लंड और भी विशाल लगने लगा। सुरेश चाचा ने अपनी मध्यम उंगली मेरी चूत के संकरे द्वार के अंदर डाल दी। उनकी लम्बी उंगली ने मेरे अविकसित र्गर्भाशय की ग्रीवा को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने गर्भाशय के हिलने से एक विचित्र सा दर्द और जलन सी होती थी। मैं सिसक उठी और नासमझी में अपने दाँतों को चाचू के लंड पर कस लिया। चाचू की सिसकारी निकल पड़ी। उन्हें ज़रूर दर्द हुआ होगा पर उस दर्द के प्रभाव से उनका लंड एक क्षण में ही लोहे की मोटी छड़ की तरह तन्ना उठा। मेरे नन्हे मूंह के कोने उनके सेब जैसे सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए इतने फ़ैल रहे थे कि मुझे थोड़ी पीड़ा होने लगी। सुरेश चाचा की उंगली मेरी चूत की कोमल सुरंग के द्वार के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील स्थल धूंड कर उसे रगड़ने लगी। उस से मेरी सिसकारी फुट पड़ीं। मौका देख कर सुरेश चाचा ने अपनी तर्जनी को मोड़ कर मेरी गुदा द्वार के तंग छिद्र के ऊपर लगा कर दबाने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उनके विशाल लंड अपने मूंह में रख कर उसे चूस पा रही थी। मेरी जीभ ने लेकिन उनके मूत्र-छिद्र को ढूँढ कर उसे परेशान करने लगी। हम दोनों अब वासना के ज्वर से धधक रहे थे। मुझे पता था कि जब तक सुरेश चाचा मेरी गांड मारने के लिए तैयार नहीं होंगे मैं कितना भी उत्तेजित हो जाऊं वो मेरे धैर्य की परीक्षा लेंगे। सुरेश चाचू की मोटी लम्बी उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा द्वार को खोल कर मेरे मलाशय में प्रविष्ट हो गयी। मेरी गांड का छेद हलके हलके से जलने लगा। सुरेश चाचा ने जड़ तक अपनी उंगली मेरे मलाशय में डाल कर उसे भीतर ही दबा कर गोल गोल घुमाने लगे। मेरे मलाशय की कोमल दीवारों से एक विचित्र सा संवेदन उठने लगा। उनकी उंगली ने मेरे मलाशय में पहले से ही इकट्ठे 'मेहमानों' को हिला हिला कर मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। मैं सिसक उठी। "चाचू, क्या आप मेरी चूत को नहीं झाड़ेंगे?" मैं वासना से लिप्त आवाज़ में होले से बुदबुदाई। "नहीं, मेरी सुंदर बिटिया।आज तो हम आपकी गांड मार कर आपको झाड़ेंगे।" सुरेश चाचा ने बड़े मर्दानगी भरे अधिकार से मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। चाचू ने अपनी उंगली से मेरी गांड को चोदने लगे। मेरी गांड के छल्ले की जलन धीरे धीरे कम हो कर बिलकुल गायब हो गयी। मेरी गांड अब चाचू की उंगली की और उठ रही थी। चाचू मेरे भग-शिश्न को चूसते हुए अब तेज़ी से मेरी गांड में अपनी उंगली अंदर बाहर कर रहे थे। मैं उनके द्वारा दिए हुए दो तरफ़ा आनंद के प्रभाव से झूम उठी। मेरी गांड में अब आमोद की झड़ी चल उठी। मेरा हृदय अचानक अपने गांड में चाचू के उंगली से भी मोटा और लम्बा हथियार की अपेक्षा से मचल उठा। सुरेश चाचा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल कर उसे कस कर अपने मूंह में डाल कर चूस लिया। सुरेश चाचू ने मुझे पेट और घुटनों पर लिटा कर मेरी गांड-हरण के लिए तैयार कर दिया। चाचू ने अपना विकराल लंड मेरी चूत में डाल कर उसे मेरे रति-रस से लिप कर लिया। मेरी गांड उनकी चुसाई से फड़क रही थी। मैंने अपना निचला होंठ अपने दांतों तले दबा लिया।
सुरेश चाचा ने मुझे पेट के बल लिटा कर मेरे चूतड़ हवा में ऊपर उठा कर मेरा सर नीचे झुका दिया। मैंने अपना सर अपने आड़े मुड़े बाजुओं पर रख कर अपनी गांड में सुरेश चाचा के विकराल लंड के दर्द भरे आक्रमण के लिए तैयार होने की कोशिश करने के लिए सांस थाम ली। सुरेश चाचा ने अपने विशाल हाथों से मेरे दोनो चूतड़ों को मसला और फिर कस कर दबाने लगे। मेरा शरीर मेरी दर्द भरी गांड की चुदाई की प्रतीक्षा से सुलगने लगा। मेरे शरीर में हलके से कम्पन मेरी कमर की मांसपेशियों में हल्की सी लहर सी पैदा कर देते थे। यह सब सुरेश चाचा की कामाग्नि में घी का काम कर रही थी। उन्होंने आखिरकार मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरे नन्हे से गुदाद्वार को चौड़ा करने का असफल प्रयास किया। मैंने अपना निचला होंठ अपने दाँतों तले कस कर दबा लिया। सुरेश चाचू ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी दर्द और वासना की अदभुत मिलीजुली आकांक्षा से फड़कती गांड के छिद्र के ऊपर रख कर उसे दबाना शुरू कर दिया। सुरेश चाचा को मेरी नन्ही सी गांड का प्रवेश द्वार और अपने विकराल भीमकाय लंड की असंगती से कोई भी मेरे लिए सहानभूति हृदय में उठी हो तो उन्होंने उसे दर्शित नहीं किया। चाचू ने मेरी कमर को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ कर मुझे छोटे निरीह जानवर की तरह बिस्तर पर दबोच कर जकड़ लिया। सुरेश चाचा ने अपने भारीभरकम शरीर की ताकत का प्रयोग कर अपने लंड को अविरत दवाब लगा कर मेरी गांड के छेद का निष्फल प्रतिरोध के समर्पण की प्रतीक्षा सी कर रहे थे। मुझे लगा कि सुरेश चाचा यदि चाहते तो एक झटके में मेरी कोमल निसहाय गांड का मर्दन कर सकते थे। चाचू के लिए मेरी गांड और मेरी अंदर की अविक्सित स्त्री का समर्पण मिल कर एक उत्तेजक प्रतिरोध बन गए थे। अचानक बिना किसी घोषणा के मेरा मलद्वार का छिद्र जो अब तक एक बड़ी बंद मुठी को बाहर रोकने में सफल रहा था, उसने सुरेश चाचा के वज्र सामान कठोर उदंड स्थूल लंड के सुपाड़े के सामने समर्पण कर अपने अस्त्र नीचे दाल दिए। सुरेश चाचा का वृहत सुपाड़ा मेरी कमसिन अपरिपक्व एक दिन पहले तक अक्षत गांड में एक झटके से अंदर समा गया। मेरी, गांड चुदाई के दर्द को बिना चीखे चिल्लाये सहन करने की सारी तैय्यारियाँ व्यर्थ चली गयीं। मेरे गले से दर्द से भरी चीख उबल कर सारे कमरे में गूँज उठी। मेरी चीख मानो सुरेश चाचा के लिये उनके विशाल लंड की विजय की तुरही थी। सुरेश चाचा ने जैसे ही मेरी चीख का उत्कर्ष अवरोह की तरफ बड़ा एक भीषण निर्मम धक्के से अपने विकराल लंड की दो तीन इन्चें मेरे मलाशय में घुसेड़ दीं। मेरी दर्द से भरी चीखों ने सुरेश चाचा के हर भयंकर निर्मम धक्के का स्वागत सा किया।
"चाचू, मैं मर गयी ..... मेरी ... ई ..... ई ... गा .....आ .... आ ..... आंड .... आः बहु .....आः दर्द ... चा ...आआआ ...." मैं बिबिला कर मचल रही थी पर मेरी स्तिथी एक निरीह बछड़े की तरह थी जो एक विकराल शेर के पंजों और दाँतों के बीच फंस चुका था। सुरेश चाचा ने शक्तिशाली विश्वस्त मर्दाने धक्कों से अपना लंड मेरी तड़पती, बिलखती गांड में पूरा का पूरा अंदर डाल दिया। मेरे आँखों में दर्द भरे आंसू थे। मैं तड़प कर बिलबिला रही थी पर मेरे मचलने और तड़पने से मेरी गांड स्वतः चाचू के लंड के इर्द-गिर्द हिलने लगी। सुरेश चाचा ने अपने विकराल लंड मेरी जलती अविस्वश्नीय अकार में चौड़ी हुई गांड से बाहर निकालने लगे। मेरी गुदा के द्वार ने उनके लंड की हर मोटी इंच की दर्द भरी रगड़ को महसूस किया। मेरी दर्द भरी सीत्कारी ने सुरेश चाचा के की मेरे कमर के ऊपर की जकड़ को और भी कस दिया। सुरेश चाचा ने एक गहरी सांस ले कर अपने शक्तिशाली शरीर की असीम ताकत से उत्त्पन्न दो भयंकर धक्कों में मेरी गांड में जड़ तक शवाधन कर दिया। मेरी चीत्कार पहले जैसी हृदय-विदारक तो नहीं थी पर फिर भी मेरे कानों में जोर से गूँज रही थी। चाचू ने बेदर्दी से अपना विशाल लंड की छेह और सात इंचों से मेरी गांड का मर्दन शुरू कर दिया। चाचू के हर धक्के से मेरा पूरा असहाय शरीर हिल रहा था। सुरेश चाचा ने मेरी दर्द भरी चीत्कारों की उपेक्षा कर मेरे मलाशय की गहराइयों में अपना लंड मूसल की तरह जड़ तक कूटने लगे। मेरी गांड का संवेदनशील छिद्र चाचू के मोटे लंड की परिधि के ऊपर इतना फ़ैल कर चौड़ा हो गया था कि उसमे से उठा दर्द और जलन की संवेदना मेरे शरीर में फ़ैल गयी थी। मुझे याद नहीं की कितने भीषण धक्कों के बाद अचानक मेरी गांड में से आनंद की लहर उठने लगी। मुझे सिर्फ इतना ही याद है कि मेरी चीत्कार सिस्कारियों में बदल गयीं। सुरेश चाचा ने मेरी सिस्कारियों का स्वागत अपना पूरा विकराल लंड मेरे मलाशय से बाहर निकाल कर एक ही टक्कर में जड़ तक मेरी गांड की मुलायम कोमल, गहराइयों में स्थापित कर दिया। मैं मचल उठी, "चाचू, क्या आप शुरूआत में मेरी गांड थोड़ी धीरे नहीं मार सकते थे? कितना दर्द किया आपने!" सुरेश चाचू ने एक और भायानक धक्का लगा कर मुझे सर से चूतड़ों तक हिला दिया, "नेहा बेटा, आपकी नम्रता चाची का विचार है कि यदि पुरुष का लंड गांड मारते हुए स्त्री की चीख न निकाल पाए तो स्त्री को भी गांड मरवाने का पूरा आनंद नहीं आता। मैं चाची के विचित्र तर्क से निरस्त हो गयी थी, और अब मेरी गांड में से उपजे कामानंद ने मेरी बोलती भी बंद कर दी थी। "चाचू, अब आपका लंड मेरी गांड में बहुत अच्छा लग रहा है। कितना मोटा लंड है आपका," सुरेश चाचा के भीषण धक्कों ने मेरी सुरेश चाचा के मर्दाने भीमकाय लंड की प्रशंसा को बीच में ही काट दिया, "उन्ह ... चाचू .....आः .....आह ...... ऊऊण्ण्णः ...... ऊऊऊण्ण्ण्ण्घ्घ्घ्घ ऊफ ....ऊफ ...... चाचू मेरी .... ई ... ई .... गा ...आ ..... आ .... आनन ...आः।" अब तक सुरेश चाचा ने मेरी गांड के मर्दन की एक ताल बना ली थी। चाचू दस बीस लम्बे दृढ़ धक्कों से मेरी गांड मार कर छोटे भीषण तेज़ अस्थिपंजर हिला देने वाले झटकों से मेरी गांड को अंदर तक हिला रहे थे। कमरे में मेरी गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते स्तनों को अपने हाथों में भर कर मसला और मेरे कान में फुसफुसाये, "नेहा बेटी आपके मलाशय की मीठी सुगंध कितनी आनंददायक है?" मैं अब कामवासना से सिसक रही थी और कुछ भी नहीं बोल पाई, "आः .. चाचू .... मुझे ... झाड़ ....ऊऊऊण्ण्णः ऊँ ....आह। सुरेश चाचा ने मेरी वासना भरी कामना की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने मेरे मेरी दोनों चूचियों का मर्दन कर मेरी गांड को भीषण धक्कों से मारते हुए गुर्राये, "बेटी, आज रात हम आपकी गांड को फाड़ कर आपको अनगिनत बार झाड़ देंगे।" मेरे चूतड़ अब चाचू के लंड के हिंसक आक्रमण से दूर आगे जाने के स्थान पर अब उनके धक्कों की तरफ पीछे हिल रहे थे। सुरेश चाचू ने ने मेरा एक उरोज़ मुक्त कर मेरे संवेदनशील भगशिश्न को अपनी चुटकी में भर कर मसलने लगे।
मेरा सारा शरीर मानो बिजली के प्रवाह से झटके मार कर हिलने लगा, "आह .. मैं .... आ गयी .... चा... चू .....मैं ...आः ....झ ...झ ... ड़ गयी ... ई ... ई।" मेरा रति-निश्पति की प्रबलता ने मेरी सांस के प्रवाह को भी रोक दिया। मेरा शरीर थोडा शिथिल हो गया। पर चाचू ने अपने मज़बूत हाथों से मेरे चूतड़ को स्थिर रख मेरे गांड में अपना विकराल लंड रेल के इंजन के पिस्टन की ताकत और तेज़ी से कर रहा था। मेरे मलाशय की समवेदनशील दीवारें अब उनके लंड की हर मोटी शिरा,रग और नस को महसूस कर रहीं थीं।
मेरा प्यासा मूंह अपने लक्ष्य की ओर धीरे धीरे पहुँच रहा था। मेरी गुलाबी कोमल जीभ ने चाचू के पसीने से तर जंघाओं को चाट कर और भी गीला कर दिया। सुरेश चाचा का दान्वियकार लंड थरकने लगा। मेरे नन्हे हाथ उसके विशाल स्थूलता के सामने और भी छोटे लग रहे थे।
मेरे मूंह चाचू के लंड को पास पा कर लार से भर गया। उनके भारी लंड को उठा कर मैंने उसे सीधा खड़ा कर उसके मोटे वृहत सुपाड़े को अपने गरम मूंह में छुपा लिया। सुरेश चाचा ने अपने बड़े शक्तिशाली हाथों से मेरे फूले गुदाज़ चूतड़ों को मसल कर चौड़ा दिया। उससे मेरी गुलाबी चूत और नन्ही सी गुदा उनकी आँखों के सामने पूरी तरह खुली हो कर उन्हें आनंदायक दृश्य पेश कर रही होंगीं। मेरी चूत पर हलके रेशमी मुश्किल से दिखने वाले रोम मेरे रस से भीग कर मानों गायब हो गए। सुरेश चाचा का विशाल लंड मेरे हाथों और मूंह के प्यार से तेज़ी से कठोरता की तरफ बड़ने लगा। मेरे दोनों हाथों की उंगलियाँ उनके विकराल स्तम्भ को पूरी तरह घेरने के लिये अकुशल थीं। उनके दानवीय लंड की मोटाई देख कर मुझे बड़े मामा का लंड और भी विशाल लगने लगा। सुरेश चाचा ने अपनी मध्यम उंगली मेरी चूत के संकरे द्वार के अंदर डाल दी। उनकी लम्बी उंगली ने मेरे अविकसित र्गर्भाशय की ग्रीवा को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने गर्भाशय के हिलने से एक विचित्र सा दर्द और जलन सी होती थी। मैं सिसक उठी और नासमझी में अपने दाँतों को चाचू के लंड पर कस लिया। चाचू की सिसकारी निकल पड़ी। उन्हें ज़रूर दर्द हुआ होगा पर उस दर्द के प्रभाव से उनका लंड एक क्षण में ही लोहे की मोटी छड़ की तरह तन्ना उठा। मेरे नन्हे मूंह के कोने उनके सेब जैसे सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए इतने फ़ैल रहे थे कि मुझे थोड़ी पीड़ा होने लगी। सुरेश चाचा की उंगली मेरी चूत की कोमल सुरंग के द्वार के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील स्थल धूंड कर उसे रगड़ने लगी। उस से मेरी सिसकारी फुट पड़ीं। मौका देख कर सुरेश चाचा ने अपनी तर्जनी को मोड़ कर मेरी गुदा द्वार के तंग छिद्र के ऊपर लगा कर दबाने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उनके विशाल लंड अपने मूंह में रख कर उसे चूस पा रही थी। मेरी जीभ ने लेकिन उनके मूत्र-छिद्र को ढूँढ कर उसे परेशान करने लगी। हम दोनों अब वासना के ज्वर से धधक रहे थे। मुझे पता था कि जब तक सुरेश चाचा मेरी गांड मारने के लिए तैयार नहीं होंगे मैं कितना भी उत्तेजित हो जाऊं वो मेरे धैर्य की परीक्षा लेंगे। सुरेश चाचू की मोटी लम्बी उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा द्वार को खोल कर मेरे मलाशय में प्रविष्ट हो गयी। मेरी गांड का छेद हलके हलके से जलने लगा। सुरेश चाचा ने जड़ तक अपनी उंगली मेरे मलाशय में डाल कर उसे भीतर ही दबा कर गोल गोल घुमाने लगे। मेरे मलाशय की कोमल दीवारों से एक विचित्र सा संवेदन उठने लगा। उनकी उंगली ने मेरे मलाशय में पहले से ही इकट्ठे 'मेहमानों' को हिला हिला कर मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। मैं सिसक उठी। "चाचू, क्या आप मेरी चूत को नहीं झाड़ेंगे?" मैं वासना से लिप्त आवाज़ में होले से बुदबुदाई। "नहीं, मेरी सुंदर बिटिया।आज तो हम आपकी गांड मार कर आपको झाड़ेंगे।" सुरेश चाचा ने बड़े मर्दानगी भरे अधिकार से मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। चाचू ने अपनी उंगली से मेरी गांड को चोदने लगे। मेरी गांड के छल्ले की जलन धीरे धीरे कम हो कर बिलकुल गायब हो गयी। मेरी गांड अब चाचू की उंगली की और उठ रही थी। चाचू मेरे भग-शिश्न को चूसते हुए अब तेज़ी से मेरी गांड में अपनी उंगली अंदर बाहर कर रहे थे। मैं उनके द्वारा दिए हुए दो तरफ़ा आनंद के प्रभाव से झूम उठी। मेरी गांड में अब आमोद की झड़ी चल उठी। मेरा हृदय अचानक अपने गांड में चाचू के उंगली से भी मोटा और लम्बा हथियार की अपेक्षा से मचल उठा। सुरेश चाचा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल कर उसे कस कर अपने मूंह में डाल कर चूस लिया। सुरेश चाचू ने मुझे पेट और घुटनों पर लिटा कर मेरी गांड-हरण के लिए तैयार कर दिया। चाचू ने अपना विकराल लंड मेरी चूत में डाल कर उसे मेरे रति-रस से लिप कर लिया। मेरी गांड उनकी चुसाई से फड़क रही थी। मैंने अपना निचला होंठ अपने दांतों तले दबा लिया।
सुरेश चाचा ने मुझे पेट के बल लिटा कर मेरे चूतड़ हवा में ऊपर उठा कर मेरा सर नीचे झुका दिया। मैंने अपना सर अपने आड़े मुड़े बाजुओं पर रख कर अपनी गांड में सुरेश चाचा के विकराल लंड के दर्द भरे आक्रमण के लिए तैयार होने की कोशिश करने के लिए सांस थाम ली। सुरेश चाचा ने अपने विशाल हाथों से मेरे दोनो चूतड़ों को मसला और फिर कस कर दबाने लगे। मेरा शरीर मेरी दर्द भरी गांड की चुदाई की प्रतीक्षा से सुलगने लगा। मेरे शरीर में हलके से कम्पन मेरी कमर की मांसपेशियों में हल्की सी लहर सी पैदा कर देते थे। यह सब सुरेश चाचा की कामाग्नि में घी का काम कर रही थी। उन्होंने आखिरकार मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरे नन्हे से गुदाद्वार को चौड़ा करने का असफल प्रयास किया। मैंने अपना निचला होंठ अपने दाँतों तले कस कर दबा लिया। सुरेश चाचू ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी दर्द और वासना की अदभुत मिलीजुली आकांक्षा से फड़कती गांड के छिद्र के ऊपर रख कर उसे दबाना शुरू कर दिया। सुरेश चाचा को मेरी नन्ही सी गांड का प्रवेश द्वार और अपने विकराल भीमकाय लंड की असंगती से कोई भी मेरे लिए सहानभूति हृदय में उठी हो तो उन्होंने उसे दर्शित नहीं किया। चाचू ने मेरी कमर को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ कर मुझे छोटे निरीह जानवर की तरह बिस्तर पर दबोच कर जकड़ लिया। सुरेश चाचा ने अपने भारीभरकम शरीर की ताकत का प्रयोग कर अपने लंड को अविरत दवाब लगा कर मेरी गांड के छेद का निष्फल प्रतिरोध के समर्पण की प्रतीक्षा सी कर रहे थे। मुझे लगा कि सुरेश चाचा यदि चाहते तो एक झटके में मेरी कोमल निसहाय गांड का मर्दन कर सकते थे। चाचू के लिए मेरी गांड और मेरी अंदर की अविक्सित स्त्री का समर्पण मिल कर एक उत्तेजक प्रतिरोध बन गए थे। अचानक बिना किसी घोषणा के मेरा मलद्वार का छिद्र जो अब तक एक बड़ी बंद मुठी को बाहर रोकने में सफल रहा था, उसने सुरेश चाचा के वज्र सामान कठोर उदंड स्थूल लंड के सुपाड़े के सामने समर्पण कर अपने अस्त्र नीचे दाल दिए
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मेरा सीने की धड़कन अपनी गांड मरवाने के दर्द भरे ख्याल से डर कर और भी तेज़ हो गयी। पर मेरी जलती धधकती चूत अब मेरे डर के ऊपर हावी हो गयी। मैंने एक बार फिर से अपनी चूत से चाचू के लंड को मारने लगी। दस मिनटों में मैं एक बार फिर से झड़ने के लिए तैयार थी लेकिन चाचू ने फिर से मुझे कगार के पास से वापस पीछे खींच लिया। मेरी वासना की सिस्कारियां उनके लंड को और भी बलवान बना रही थी। मैं अब कामाग्नि में जल कर सुबक रही थी, "चाचू, मुझे झाड़ दीजिये। प्लीज़ मेरी चूत को चोद कर झाड़ दीजिये।" मैंने पागलों की तरह अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने की कोशिश करने लगी। सुरेश चाचा बड़ी निर्ममता से अपनी कमसिन भतीजी को तरसा और तड़पा कर खुद अपनी वासना को भड़का रहे थे। आखिर कर मेरी सुबकते हुए कामानंद को तलाशते लाल चेहरे को देख कर चाचू ने तरस खाया उन्होंने एक झटके से पलती मार कर मुझे अपने विशाल भारे भरकम शरीर के नीचे दबा कर मेरे सुबकते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए। उन्होंने मेरे दोनों होंठों को अपने मूंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चाचू ने अपना भीमकाय लंड पूरा बाहर निकाल कर एक विध्वंसक धक्के से जड़ तक मेरी चूत में ठूँस दिया। मेरी घुटी घुटी चीख उनके मूंह में समा गयी। सुरेश चाचा ने पांच बार अपना विशाल लंड सुपाड़े तक मेरी चूत से निकाल कर निर्मम अमानवीय प्रहार से मेरी चूत में जड़ तक ठूंसा। मेरी हर भयंकर धक्के से दर्द चीखी पर अखिरीर बार मेरी चीख बिना रुके ऊंची हो गयी। मैं अचानक झड़ने लगी। मैं दर्द और वासना के अनोखे मिश्रण से घबरा कर बिलबिला उठी और चाचा से कस कर चिपक गयी। सुरेश चाचा ने मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी भारी मादक जांघें अपने शक्तिशाली बाँहों में उठा कर मेरी चूत को लम्बे धक्कों से चोदने लगे। मेरा पहला चरम आनंद अभी पूरे चड़ाव पर था कि सुरेश चाचा की अस्थी-पंजर हिला देने वाले धक्कों भरी चुदाई ने मेरी तड़पती हुई चूत को फिर से झाड़ दिया। मैं अब अनर्गल बकने लगी, " चाचू चोदिये .... और ज़ोर ....से ....आह और दर्द कीजिय ... मैं फिर ... आअन्न्न्नग ...मेरी चू .... आआह।" सुरेश चाचा ने बिना धीमे हुए हचक हचक कर जानलेवा धक्कों से मेरी चूत को चोद कर मुझे पागल कर दिया। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं। सुरेश चाचा के भारी भरकम बालों से भरे चूतड़ बिजली की रफ़्तार से ऊपर नीचे हो रहे थे। उनकी जांघें मेरे चूतडों से इतने ज़ोर से टकरा रहीं थी की हर तक्कड़ कमरे में झापड़ जैसी आवाज़ पैदा कर रही थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते फुदकते उरोज़ों को अपनी मुट्ठियों में जकड़ कर मसलने लगे। मेरे शरीर में ना जाने कितने तूफ़ान उठे हुए थे। मेरा दीमाग कभी चाचू की निर्मम चुदाई के दर्द से बिलखता था तो कभी उसी दर्दीली चुदाई के असीम काम-आनंद की बाड़ में डूबने लगता। सुरेश चाचा ने मुझे और भी ज़ोरों से चोदना शुरू कर दिया। उनके गले से गुर्घुराहत की आवाजों ने मुझे उनके स्खलन की चेतावनी दे दी। सुरेश चाचा ने हुंकार भर कर अपना मूसल लंड मेरी चूत में पूरा दबा आकर मेरे ऊपर गिर पड़े। उन्होंने अपना खुला मूंह मेरे हाँफते हुए मूंह पर चिपका दिया। सुरेश सुरेश चाचा चाचा का का लंड मेरी मेरी चूत के के बिलकुल बिलकुल अंदर तक तक घुसा था और उनके लंड के पेशाब के छेद से उबलती गाड़े गरम बच्चे पैदा करने की क्षमता भरे शहद की फुहारें मेरे अविकसित गर्भाशय को नहलाने लगीं। मैं तो चाचा की भयंकर चुदाई से इतनी थक गयी थी कि पहले की तरह शिथिल हो कर आँखें बंद कर करीब बेहोशी के आलम से निढाल हो गयी।
मैं हाँफते हुए सुरेश चाचा की बाँहों में समां गयी हम दोनों के शरीर पसीने से तर थे। सुरेश चाचा के माथे, और चेहरे पर पसीने की बूंदे इकट्ठे हो कर उनकी नाक के ऊपर बह चलीं। मैंने प्यार से उनकी नाक की नोक पर लटकी पसीने की बूँद को जीभ से चाट लिया, "सुरेश चाचा आप अपने विकराल लंड से कितने बलशाली धक्कों से मुझे चोदते हैं। आप मेरी तो जान ही निकाल देते हैं।" सुरेश चाचा ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "नेहा बेटी, पर आपको चुदने का आनंद भी तो तभी आता है। मर्द को अपनी प्रियतमा की चूत मारते हुए उसकी सिस्कारियां और चीखें न सुनाई दें तो उस बेचारे को तो पता ही नहीं लगेगा कि उसे चुदाई से मजा भी आ रहा है या नहीं।" मैं उनके पसीने से गीले बदन के ऊपर चढ़ कर लेट गयी, "ऊँ ..ऊँ .चाचू ये तो बड़ी अच्छी मिसाल निकाली है आपने सिर्फ बेचारी लड़कियों को भीषण अंदाज़ से चोदने के लिए।" मैंने अपना मूंह सुरेश चाचा की पसीने से लथपथ कांख में दबा कर उसे अपनी जीभ से चाटने लगी। उनके चुदाई की मेहनत से निकले पसीने में मुझे उनकी मर्दानगी की सुगंद्ग मेरे नथुनों को अभिभूत कर रही थी। "नेहा बेटी, अभी तो हमें आपकी गांड भी तो मारनी है," सुरेश चाचा प्यार से मेरे माथे पे पसीने की वजह से चिपके बालों को उठा कर मेरे कान के पीछे करने लगे। "आँ-आँ! चाचू आप और बड़े मामा तो बस सिर्फ मुझे दर्द करने की बातें ही सोचते हैं।" मेरा अविकसित कमसिन शरीर चाचू के विकराल लंड से अपनी गांड फटवाने के विचार से सिंहर गया पर चाचा की मेरी गांड की चुदाई की इच्छा ने मुझे उत्तेजित भी कर दिया। "नेहा बेटी, जब हमने आपकी चूत में अपना लंड पूरा डालने की मेहनत कर रहे थे तो आप बहुत चीखी चिल्लायीं कि - धीरे डालिए, धीरे डालिए- पर जब आपको आनंद आने लगा तो फिर आप हमें और भी ज़ोर से चूत मारने का आदेश दे रहीं थी।" मुझे सुरेश चाचा की मेरी पतली दर्द भरी आवाज़ की बहुत खराब नकल पर हंसी आ गयी। मैंने चाचू की नाक की नोक को दाँतों से कस कर काटने का नाटक किया, "चाचू, ये ही तो मुझे समझ नहीं आता, कि कभी हमारा मस्तिष्क कुछ कहता है और हमारा शरीर कुछ और चाहता है। शायद ये सब हमें बड़ा होने के बाद ही पता चलेगा।" सुरेश चाचा ने मुझे प्यार से कस कर चूमा, "नेहा बेटी, बड़े मामा और हम दोनों का प्यार पहले पित्रव्रत ही है । उसके बाद ही हम दोनों मर्दों वाला प्यार आपके ऊपर न्यौछावर करते हैं। हमें आपके शरीर को अच्छी लगने वाली सम्भोग की हर क्रिया आपके साथ करना अच्छा लगता है।" "तब भी आपको हमें दर्द से चिख्वाने में भी तो मजा आता है।" मैंने इठला कर सुरेश चाचा के काले चुचुक को ज़ोर चूस कर दाँतों से काट लिया। उनकी हलके से सिसकारी निकल पड़ी। सुरेश चाचा ने मेरी नाक को चुटकी में भर कर चूंट लिया, "देखा, अभी आपने हमें प्यार से दर्द किया जो हमे बहुत ही अच्छा लगता है। नेहा बिटिया रति- क्रिया, सम्भोग, समागम या चुदाई में जो कुछ भी दोनों भागीदार करना चाहे और दोनों को अच्छा लगे वो सही है। काम-उत्तेजना में दर्द भी कामोन्माद का एक रूप बन जाता है।" सुरेश चाचा बड़े मामा की तरह मुझे लड़की से स्त्री में परिवर्तित होने की शिक्षा दे रहे थे। मैंने मुस्करा कर चाचू के होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मैंने फिर प्यार से उनका सारा मरदाने चेहरे को अपने रसीले होंठों के चुम्बनों से भर दिया। मैंने अपनी जीभ से उनके दोनों कानों में घुसा कर चाटने के बाद अपनी लार से गीला कर दिया। फिर धीरे से उनके लोल्कियों [इअर-लोब्स] को पहले चूस फिर दाँतों से हलके हलके मसला। चाचू के हाथ मेरी गुदाज़ पसीने से तर पीठ को सहला रहे थे। उनके हाथों मेरे दोनों गुदाज़ फूले चूतड़ों को कस कर मसलने लगे। मैंने अदा से मुस्कुराते हुए उनकी नाक को सब तरफ से चूमा। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके नथुनों को सहला कर धीरे से उनके नथुनों के अंदर डाल दी।मेरे नन्हे हाथों ने चाचू का चेहरा कस कर पकड़ लिया। मेरी जीभ बारी बारी से उनके दोनों नथुनों को एक तरह से चोद रही थी। सुरेश चाचा की सांस भारी हो गयी और मेरी जीभ के ऊपर गरम भाप की तरह लग रही थी। जब मुझे लगा कि मैंने सुरेश चाचा के कामाकर्षक चेहरे को खूब प्यार कर लिया है तो मैं धीरे अपनी जीभ से उनकी मोटी गर्दन को चाट कर उनकी घने बालों से ढकी छाती को चिड़ाने लगी। सुरेश चाचा के हाथ उनकी उत्तेजना को मेरे चूतड़ों को मसल कर मुझे उत्साहित करने लगे। मैंने उनके दोनों चुचुकों को चूमा और चूसा। मैंने उनकी भरी तोंद को सब तरफ प्यार से चूमा और चाटा। मैं सुरेश चाचा की गहरी नाभि को अपनी जीभ कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने शक्तिशाली बुझाओं से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर उन्हें अपने सीने की तरफ खींच लिया। मेरे घुटने उनके सीने के दोनों तरफ थे।
मेरा प्यासा मूंह अपने लक्ष्य की ओर धीरे धीरे पहुँच रहा था। मेरी गुलाबी कोमल जीभ ने चाचू के पसीने से तर जंघाओं को चाट कर और भी गीला कर दिया। सुरेश चाचा का दान्वियकार लंड थरकने लगा। मेरे नन्हे हाथ उसके विशाल स्थूलता के सामने और भी छोटे लग रहे थे।
मेरे मूंह चाचू के लंड को पास पा कर लार से भर गया। उनके भारी लंड को उठा कर मैंने उसे सीधा खड़ा कर उसके मोटे वृहत सुपाड़े को अपने गरम मूंह में छुपा लिया। सुरेश चाचा ने अपने बड़े शक्तिशाली हाथों से मेरे फूले गुदाज़ चूतड़ों को मसल कर चौड़ा दिया। उससे मेरी गुलाबी चूत और नन्ही सी गुदा उनकी आँखों के सामने पूरी तरह खुली हो कर उन्हें आनंदायक दृश्य पेश कर रही होंगीं। मेरी चूत पर हलके रेशमी मुश्किल से दिखने वाले रोम मेरे रस से भीग कर मानों गायब हो गए। सुरेश चाचा का विशाल लंड मेरे हाथों और मूंह के प्यार से तेज़ी से कठोरता की तरफ बड़ने लगा। मेरे दोनों हाथों की उंगलियाँ उनके विकराल स्तम्भ को पूरी तरह घेरने के लिये अकुशल थीं। उनके दानवीय लंड की मोटाई देख कर मुझे बड़े मामा का लंड और भी विशाल लगने लगा। सुरेश चाचा ने अपनी मध्यम उंगली मेरी चूत के संकरे द्वार के अंदर डाल दी। उनकी लम्बी उंगली ने मेरे अविकसित र्गर्भाशय की ग्रीवा को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने गर्भाशय के हिलने से एक विचित्र सा दर्द और जलन सी होती थी। मैं सिसक उठी और नासमझी में अपने दाँतों को चाचू के लंड पर कस लिया। चाचू की सिसकारी निकल पड़ी। उन्हें ज़रूर दर्द हुआ होगा पर उस दर्द के प्रभाव से उनका लंड एक क्षण में ही लोहे की मोटी छड़ की तरह तन्ना उठा। मेरे नन्हे मूंह के कोने उनके सेब जैसे सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए इतने फ़ैल रहे थे कि मुझे थोड़ी पीड़ा होने लगी। सुरेश चाचा की उंगली मेरी चूत की कोमल सुरंग के द्वार के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील स्थल धूंड कर उसे रगड़ने लगी। उस से मेरी सिसकारी फुट पड़ीं। मौका देख कर सुरेश चाचा ने अपनी तर्जनी को मोड़ कर मेरी गुदा द्वार के तंग छिद्र के ऊपर लगा कर दबाने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उनके विशाल लंड अपने मूंह में रख कर उसे चूस पा रही थी। मेरी जीभ ने लेकिन उनके मूत्र-छिद्र को ढूँढ कर उसे परेशान करने लगी। हम दोनों अब वासना के ज्वर से धधक रहे थे। मुझे पता था कि जब तक सुरेश चाचा मेरी गांड मारने के लिए तैयार नहीं होंगे मैं कितना भी उत्तेजित हो जाऊं वो मेरे धैर्य की परीक्षा लेंगे। सुरेश चाचू की मोटी लम्बी उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा द्वार को खोल कर मेरे मलाशय में प्रविष्ट हो गयी। मेरी गांड का छेद हलके हलके से जलने लगा। सुरेश चाचा ने जड़ तक अपनी उंगली मेरे मलाशय में डाल कर उसे भीतर ही दबा कर गोल गोल घुमाने लगे। मेरे मलाशय की कोमल दीवारों से एक विचित्र सा संवेदन उठने लगा। उनकी उंगली ने मेरे मलाशय में पहले से ही इकट्ठे 'मेहमानों' को हिला हिला कर मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। मैं सिसक उठी। "चाचू, क्या आप मेरी चूत को नहीं झाड़ेंगे?" मैं वासना से लिप्त आवाज़ में होले से बुदबुदाई। "नहीं, मेरी सुंदर बिटिया।आज तो हम आपकी गांड मार कर आपको झाड़ेंगे।" सुरेश चाचा ने बड़े मर्दानगी भरे अधिकार से मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। चाचू ने अपनी उंगली से मेरी गांड को चोदने लगे। मेरी गांड के छल्ले की जलन धीरे धीरे कम हो कर बिलकुल गायब हो गयी। मेरी गांड अब चाचू की उंगली की और उठ रही थी। चाचू मेरे भग-शिश्न को चूसते हुए अब तेज़ी से मेरी गांड में अपनी उंगली अंदर बाहर कर रहे थे। मैं उनके द्वारा दिए हुए दो तरफ़ा आनंद के प्रभाव से झूम उठी। मेरी गांड में अब आमोद की झड़ी चल उठी। मेरा हृदय अचानक अपने गांड में चाचू के उंगली से भी मोटा और लम्बा हथियार की अपेक्षा से मचल उठा। सुरेश चाचा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल कर उसे कस कर अपने मूंह में डाल कर चूस लिया। सुरेश चाचू ने मुझे पेट और घुटनों पर लिटा कर मेरी गांड-हरण के लिए तैयार कर दिया। चाचू ने अपना विकराल लंड मेरी चूत में डाल कर उसे मेरे रति-रस से लिप कर लिया। मेरी गांड उनकी चुसाई से फड़क रही थी। मैंने अपना निचला होंठ अपने दांतों तले दबा लिया।
सुरेश चाचा ने मुझे पेट के बल लिटा कर मेरे चूतड़ हवा में ऊपर उठा कर मेरा सर नीचे झुका दिया। मैंने अपना सर अपने आड़े मुड़े बाजुओं पर रख कर अपनी गांड में सुरेश चाचा के विकराल लंड के दर्द भरे आक्रमण के लिए तैयार होने की कोशिश करने के लिए सांस थाम ली। सुरेश चाचा ने अपने विशाल हाथों से मेरे दोनो चूतड़ों को मसला और फिर कस कर दबाने लगे। मेरा शरीर मेरी दर्द भरी गांड की चुदाई की प्रतीक्षा से सुलगने लगा। मेरे शरीर में हलके से कम्पन मेरी कमर की मांसपेशियों में हल्की सी लहर सी पैदा कर देते थे। यह सब सुरेश चाचा की कामाग्नि में घी का काम कर रही थी। उन्होंने आखिरकार मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरे नन्हे से गुदाद्वार को चौड़ा करने का असफल प्रयास किया। मैंने अपना निचला होंठ अपने दाँतों तले कस कर दबा लिया। सुरेश चाचू ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी दर्द और वासना की अदभुत मिलीजुली आकांक्षा से फड़कती गांड के छिद्र के ऊपर रख कर उसे दबाना शुरू कर दिया। सुरेश चाचा को मेरी नन्ही सी गांड का प्रवेश द्वार और अपने विकराल भीमकाय लंड की असंगती से कोई भी मेरे लिए सहानभूति हृदय में उठी हो तो उन्होंने उसे दर्शित नहीं किया। चाचू ने मेरी कमर को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ कर मुझे छोटे निरीह जानवर की तरह बिस्तर पर दबोच कर जकड़ लिया। सुरेश चाचा ने अपने भारीभरकम शरीर की ताकत का प्रयोग कर अपने लंड को अविरत दवाब लगा कर मेरी गांड के छेद का निष्फल प्रतिरोध के समर्पण की प्रतीक्षा सी कर रहे थे। मुझे लगा कि सुरेश चाचा यदि चाहते तो एक झटके में मेरी कोमल निसहाय गांड का मर्दन कर सकते थे। चाचू के लिए मेरी गांड और मेरी अंदर की अविक्सित स्त्री का समर्पण मिल कर एक उत्तेजक प्रतिरोध बन गए थे। अचानक बिना किसी घोषणा के मेरा मलद्वार का छिद्र जो अब तक एक बड़ी बंद मुठी को बाहर रोकने में सफल रहा था, उसने सुरेश चाचा के वज्र सामान कठोर उदंड स्थूल लंड के सुपाड़े के सामने समर्पण कर अपने अस्त्र नीचे दाल दिए। सुरेश चाचा का वृहत सुपाड़ा मेरी कमसिन अपरिपक्व एक दिन पहले तक अक्षत गांड में एक झटके से अंदर समा गया। मेरी, गांड चुदाई के दर्द को बिना चीखे चिल्लाये सहन करने की सारी तैय्यारियाँ व्यर्थ चली गयीं। मेरे गले से दर्द से भरी चीख उबल कर सारे कमरे में गूँज उठी। मेरी चीख मानो सुरेश चाचा के लिये उनके विशाल लंड की विजय की तुरही थी। सुरेश चाचा ने जैसे ही मेरी चीख का उत्कर्ष अवरोह की तरफ बड़ा एक भीषण निर्मम धक्के से अपने विकराल लंड की दो तीन इन्चें मेरे मलाशय में घुसेड़ दीं। मेरी दर्द से भरी चीखों ने सुरेश चाचा के हर भयंकर निर्मम धक्के का स्वागत सा किया।
"चाचू, मैं मर गयी ..... मेरी ... ई ..... ई ... गा .....आ .... आ ..... आंड .... आः बहु .....आः दर्द ... चा ...आआआ ...." मैं बिबिला कर मचल रही थी पर मेरी स्तिथी एक निरीह बछड़े की तरह थी जो एक विकराल शेर के पंजों और दाँतों के बीच फंस चुका था। सुरेश चाचा ने शक्तिशाली विश्वस्त मर्दाने धक्कों से अपना लंड मेरी तड़पती, बिलखती गांड में पूरा का पूरा अंदर डाल दिया। मेरे आँखों में दर्द भरे आंसू थे। मैं तड़प कर बिलबिला रही थी पर मेरे मचलने और तड़पने से मेरी गांड स्वतः चाचू के लंड के इर्द-गिर्द हिलने लगी। सुरेश चाचा ने अपने विकराल लंड मेरी जलती अविस्वश्नीय अकार में चौड़ी हुई गांड से बाहर निकालने लगे। मेरी गुदा के द्वार ने उनके लंड की हर मोटी इंच की दर्द भरी रगड़ को महसूस किया। मेरी दर्द भरी सीत्कारी ने सुरेश चाचा के की मेरे कमर के ऊपर की जकड़ को और भी कस दिया। सुरेश चाचा ने एक गहरी सांस ले कर अपने शक्तिशाली शरीर की असीम ताकत से उत्त्पन्न दो भयंकर धक्कों में मेरी गांड में जड़ तक शवाधन कर दिया। मेरी चीत्कार पहले जैसी हृदय-विदारक तो नहीं थी पर फिर भी मेरे कानों में जोर से गूँज रही थी। चाचू ने बेदर्दी से अपना विशाल लंड की छेह और सात इंचों से मेरी गांड का मर्दन शुरू कर दिया। चाचू के हर धक्के से मेरा पूरा असहाय शरीर हिल रहा था। सुरेश चाचा ने मेरी दर्द भरी चीत्कारों की उपेक्षा कर मेरे मलाशय की गहराइयों में अपना लंड मूसल की तरह जड़ तक कूटने लगे। मेरी गांड का संवेदनशील छिद्र चाचू के मोटे लंड की परिधि के ऊपर इतना फ़ैल कर चौड़ा हो गया था कि उसमे से उठा दर्द और जलन की संवेदना मेरे शरीर में फ़ैल गयी थी। मुझे याद नहीं की कितने भीषण धक्कों के बाद अचानक मेरी गांड में से आनंद की लहर उठने लगी। मुझे सिर्फ इतना ही याद है कि मेरी चीत्कार सिस्कारियों में बदल गयीं। सुरेश चाचा ने मेरी सिस्कारियों का स्वागत अपना पूरा विकराल लंड मेरे मलाशय से बाहर निकाल कर एक ही टक्कर में जड़ तक मेरी गांड की मुलायम कोमल, गहराइयों में स्थापित कर दिया। मैं मचल उठी, "चाचू, क्या आप शुरूआत में मेरी गांड थोड़ी धीरे नहीं मार सकते थे? कितना दर्द किया आपने!" सुरेश चाचू ने एक और भायानक धक्का लगा कर मुझे सर से चूतड़ों तक हिला दिया, "नेहा बेटा, आपकी नम्रता चाची का विचार है कि यदि पुरुष का लंड गांड मारते हुए स्त्री की चीख न निकाल पाए तो स्त्री को भी गांड मरवाने का पूरा आनंद नहीं आता। मैं चाची के विचित्र तर्क से निरस्त हो गयी थी, और अब मेरी गांड में से उपजे कामानंद ने मेरी बोलती भी बंद कर दी थी। "चाचू, अब आपका लंड मेरी गांड में बहुत अच्छा लग रहा है। कितना मोटा लंड है आपका," सुरेश चाचा के भीषण धक्कों ने मेरी सुरेश चाचा के मर्दाने भीमकाय लंड की प्रशंसा को बीच में ही काट दिया, "उन्ह ... चाचू .....आः .....आह ...... ऊऊण्ण्णः ...... ऊऊऊण्ण्ण्ण्घ्घ्घ्घ ऊफ ....ऊफ ...... चाचू मेरी .... ई ... ई .... गा ...आ ..... आ .... आनन ...आः।" अब तक सुरेश चाचा ने मेरी गांड के मर्दन की एक ताल बना ली थी। चाचू दस बीस लम्बे दृढ़ धक्कों से मेरी गांड मार कर छोटे भीषण तेज़ अस्थिपंजर हिला देने वाले झटकों से मेरी गांड को अंदर तक हिला रहे थे। कमरे में मेरी गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते स्तनों को अपने हाथों में भर कर मसला और मेरे कान में फुसफुसाये, "नेहा बेटी आपके मलाशय की मीठी सुगंध कितनी आनंददायक है?" मैं अब कामवासना से सिसक रही थी और कुछ भी नहीं बोल पाई, "आः .. चाचू .... मुझे ... झाड़ ....ऊऊऊण्ण्णः ऊँ ....आह। सुरेश चाचा ने मेरी वासना भरी कामना की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने मेरे मेरी दोनों चूचियों का मर्दन कर मेरी गांड को भीषण धक्कों से मारते हुए गुर्राये, "बेटी, आज रात हम आपकी गांड को फाड़ कर आपको अनगिनत बार झाड़ देंगे।" मेरे चूतड़ अब चाचू के लंड के हिंसक आक्रमण से दूर आगे जाने के स्थान पर अब उनके धक्कों की तरफ पीछे हिल रहे थे। सुरेश चाचू ने ने मेरा एक उरोज़ मुक्त कर मेरे संवेदनशील भगशिश्न को अपनी चुटकी में भर कर मसलने लगे।
मेरा सारा शरीर मानो बिजली के प्रवाह से झटके मार कर हिलने लगा, "आह .. मैं .... आ गयी .... चा... चू .....मैं ...आः ....झ ...झ ... ड़ गयी ... ई ... ई।" मेरा रति-निश्पति की प्रबलता ने मेरी सांस के प्रवाह को भी रोक दिया। मेरा शरीर थोडा शिथिल हो गया। पर चाचू ने अपने मज़बूत हाथों से मेरे चूतड़ को स्थिर रख मेरे गांड में अपना विकराल लंड रेल के इंजन के पिस्टन की ताकत और तेज़ी से कर रहा था। मेरे मलाशय की समवेदनशील दीवारें अब उनके लंड की हर मोटी शिरा,रग और नस को महसूस कर रहीं थीं।
मेरा प्यासा मूंह अपने लक्ष्य की ओर धीरे धीरे पहुँच रहा था। मेरी गुलाबी कोमल जीभ ने चाचू के पसीने से तर जंघाओं को चाट कर और भी गीला कर दिया। सुरेश चाचा का दान्वियकार लंड थरकने लगा। मेरे नन्हे हाथ उसके विशाल स्थूलता के सामने और भी छोटे लग रहे थे।
मेरे मूंह चाचू के लंड को पास पा कर लार से भर गया। उनके भारी लंड को उठा कर मैंने उसे सीधा खड़ा कर उसके मोटे वृहत सुपाड़े को अपने गरम मूंह में छुपा लिया। सुरेश चाचा ने अपने बड़े शक्तिशाली हाथों से मेरे फूले गुदाज़ चूतड़ों को मसल कर चौड़ा दिया। उससे मेरी गुलाबी चूत और नन्ही सी गुदा उनकी आँखों के सामने पूरी तरह खुली हो कर उन्हें आनंदायक दृश्य पेश कर रही होंगीं। मेरी चूत पर हलके रेशमी मुश्किल से दिखने वाले रोम मेरे रस से भीग कर मानों गायब हो गए। सुरेश चाचा का विशाल लंड मेरे हाथों और मूंह के प्यार से तेज़ी से कठोरता की तरफ बड़ने लगा। मेरे दोनों हाथों की उंगलियाँ उनके विकराल स्तम्भ को पूरी तरह घेरने के लिये अकुशल थीं। उनके दानवीय लंड की मोटाई देख कर मुझे बड़े मामा का लंड और भी विशाल लगने लगा। सुरेश चाचा ने अपनी मध्यम उंगली मेरी चूत के संकरे द्वार के अंदर डाल दी। उनकी लम्बी उंगली ने मेरे अविकसित र्गर्भाशय की ग्रीवा को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने गर्भाशय के हिलने से एक विचित्र सा दर्द और जलन सी होती थी। मैं सिसक उठी और नासमझी में अपने दाँतों को चाचू के लंड पर कस लिया। चाचू की सिसकारी निकल पड़ी। उन्हें ज़रूर दर्द हुआ होगा पर उस दर्द के प्रभाव से उनका लंड एक क्षण में ही लोहे की मोटी छड़ की तरह तन्ना उठा। मेरे नन्हे मूंह के कोने उनके सेब जैसे सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए इतने फ़ैल रहे थे कि मुझे थोड़ी पीड़ा होने लगी। सुरेश चाचा की उंगली मेरी चूत की कोमल सुरंग के द्वार के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील स्थल धूंड कर उसे रगड़ने लगी। उस से मेरी सिसकारी फुट पड़ीं। मौका देख कर सुरेश चाचा ने अपनी तर्जनी को मोड़ कर मेरी गुदा द्वार के तंग छिद्र के ऊपर लगा कर दबाने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उनके विशाल लंड अपने मूंह में रख कर उसे चूस पा रही थी। मेरी जीभ ने लेकिन उनके मूत्र-छिद्र को ढूँढ कर उसे परेशान करने लगी। हम दोनों अब वासना के ज्वर से धधक रहे थे। मुझे पता था कि जब तक सुरेश चाचा मेरी गांड मारने के लिए तैयार नहीं होंगे मैं कितना भी उत्तेजित हो जाऊं वो मेरे धैर्य की परीक्षा लेंगे। सुरेश चाचू की मोटी लम्बी उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा द्वार को खोल कर मेरे मलाशय में प्रविष्ट हो गयी। मेरी गांड का छेद हलके हलके से जलने लगा। सुरेश चाचा ने जड़ तक अपनी उंगली मेरे मलाशय में डाल कर उसे भीतर ही दबा कर गोल गोल घुमाने लगे। मेरे मलाशय की कोमल दीवारों से एक विचित्र सा संवेदन उठने लगा। उनकी उंगली ने मेरे मलाशय में पहले से ही इकट्ठे 'मेहमानों' को हिला हिला कर मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। मैं सिसक उठी। "चाचू, क्या आप मेरी चूत को नहीं झाड़ेंगे?" मैं वासना से लिप्त आवाज़ में होले से बुदबुदाई। "नहीं, मेरी सुंदर बिटिया।आज तो हम आपकी गांड मार कर आपको झाड़ेंगे।" सुरेश चाचा ने बड़े मर्दानगी भरे अधिकार से मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। चाचू ने अपनी उंगली से मेरी गांड को चोदने लगे। मेरी गांड के छल्ले की जलन धीरे धीरे कम हो कर बिलकुल गायब हो गयी। मेरी गांड अब चाचू की उंगली की और उठ रही थी। चाचू मेरे भग-शिश्न को चूसते हुए अब तेज़ी से मेरी गांड में अपनी उंगली अंदर बाहर कर रहे थे। मैं उनके द्वारा दिए हुए दो तरफ़ा आनंद के प्रभाव से झूम उठी। मेरी गांड में अब आमोद की झड़ी चल उठी। मेरा हृदय अचानक अपने गांड में चाचू के उंगली से भी मोटा और लम्बा हथियार की अपेक्षा से मचल उठा। सुरेश चाचा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल कर उसे कस कर अपने मूंह में डाल कर चूस लिया। सुरेश चाचू ने मुझे पेट और घुटनों पर लिटा कर मेरी गांड-हरण के लिए तैयार कर दिया। चाचू ने अपना विकराल लंड मेरी चूत में डाल कर उसे मेरे रति-रस से लिप कर लिया। मेरी गांड उनकी चुसाई से फड़क रही थी। मैंने अपना निचला होंठ अपने दांतों तले दबा लिया।
सुरेश चाचा ने मुझे पेट के बल लिटा कर मेरे चूतड़ हवा में ऊपर उठा कर मेरा सर नीचे झुका दिया। मैंने अपना सर अपने आड़े मुड़े बाजुओं पर रख कर अपनी गांड में सुरेश चाचा के विकराल लंड के दर्द भरे आक्रमण के लिए तैयार होने की कोशिश करने के लिए सांस थाम ली। सुरेश चाचा ने अपने विशाल हाथों से मेरे दोनो चूतड़ों को मसला और फिर कस कर दबाने लगे। मेरा शरीर मेरी दर्द भरी गांड की चुदाई की प्रतीक्षा से सुलगने लगा। मेरे शरीर में हलके से कम्पन मेरी कमर की मांसपेशियों में हल्की सी लहर सी पैदा कर देते थे। यह सब सुरेश चाचा की कामाग्नि में घी का काम कर रही थी। उन्होंने आखिरकार मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरे नन्हे से गुदाद्वार को चौड़ा करने का असफल प्रयास किया। मैंने अपना निचला होंठ अपने दाँतों तले कस कर दबा लिया। सुरेश चाचू ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी दर्द और वासना की अदभुत मिलीजुली आकांक्षा से फड़कती गांड के छिद्र के ऊपर रख कर उसे दबाना शुरू कर दिया। सुरेश चाचा को मेरी नन्ही सी गांड का प्रवेश द्वार और अपने विकराल भीमकाय लंड की असंगती से कोई भी मेरे लिए सहानभूति हृदय में उठी हो तो उन्होंने उसे दर्शित नहीं किया। चाचू ने मेरी कमर को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ कर मुझे छोटे निरीह जानवर की तरह बिस्तर पर दबोच कर जकड़ लिया। सुरेश चाचा ने अपने भारीभरकम शरीर की ताकत का प्रयोग कर अपने लंड को अविरत दवाब लगा कर मेरी गांड के छेद का निष्फल प्रतिरोध के समर्पण की प्रतीक्षा सी कर रहे थे। मुझे लगा कि सुरेश चाचा यदि चाहते तो एक झटके में मेरी कोमल निसहाय गांड का मर्दन कर सकते थे। चाचू के लिए मेरी गांड और मेरी अंदर की अविक्सित स्त्री का समर्पण मिल कर एक उत्तेजक प्रतिरोध बन गए थे। अचानक बिना किसी घोषणा के मेरा मलद्वार का छिद्र जो अब तक एक बड़ी बंद मुठी को बाहर रोकने में सफल रहा था, उसने सुरेश चाचा के वज्र सामान कठोर उदंड स्थूल लंड के सुपाड़े के सामने समर्पण कर अपने अस्त्र नीचे दाल दिए
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