09-07-2019, 05:08 PM
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Update 13
हम चारो बहुत गरम हो गये थे। बड़े मामा ने नम्रता चाची को अपनी शक्तिशाली बाँहों में उठा लिया और तेजी से शुभ्ररात्री बोल कर अपने शयनकक्ष की और चल दिए। नम्रता चाची की खिलखिलाने की आवाज़ बहुत देर तक तक गूंजती रही। मेरा तप्ता हुआ शरीर सुरेश चाचा से और भी बुरी तरह से लिपट गया। सुरेश चाचा ने मेरे थिरकते जलते हुए होंठों पर अपने गरम मर्दाने मोटे होंठ लगा दिए। मेरी दोनों गुदाज़ बाहें स्वतः उनकी मोटी मज़बूत गर्दन के इर्द-गिर्द हों गयीं। मेरा मुंह अपने आप से खुल कर सुरेश चाचा की मीठी ज़ुबान का स्वागत करने के लिए तैयार हो गया। सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और चुम्बन तोड़े बिना अपने कमरे की तरफ चल दिए। कमरे तक पहुँचते-पहुँचते उनकी ज़ुबान ने मेरे मुंह की पूरी तलाशी ले ली थी। उनका मीठा थूक मेरे मुंह में इकठा हो गया। मैंने लालचीपने से सारा का सारा गर्म मीठा थूक गटक लिया। कमरे में पहुँच कर चाचाजी ने मुझे पलंग पर खड़ा कर दिया और अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने भी जल्दी से अपने को निवस्त्र कर दिया। मैं भारी सासों से सुरेश चाचा को अपने कपड़े उतारते हुए एकटक देख रही थी। चाचाजी का भारीभरकम बदन घने बालों से भरा हुआ था। उनके सीने के बालों में काफी बाल सफ़ेद होने लगे थे।
मेरी आँखें उनके नीचे गिरते हुए कच्छे पर टिकी हुई थी। मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी जब चाचाजी का अमानवीय मोटा लंड स्पात की तरह सख्त बाहर आया। मेरी डर के मारे हालत खराब हो गयी। सुरेश चाचा का लंड बड़े मामा से भी मोटा था। हालांकी उनका लंड बड़े मामा से कुछ इंच छोटा था पर उसकी मोटाई ने मुझे डरा दिया। मैंने अपना दिल पक्का कर लिया और अपने से वायदा किया की मैं जैसे भी होगा सुरेश चाचा को अपने साथ आनंद लेने से नहीं रोकूंगी। आखिर नम्रता चाची मेरे बड़े मामा को सारी रात अपने शरीर से आनंद देंगी। मैं कैसे पीछे हट सकती थी। सुरेश चाचा मेरे पास आये और अपना लंड मेरे हवाले कर दिया। मेरे दोनों नाज़ुक छोटे हाथ मुश्किल से उनके मोटे स्थूल लंड के इर्द-गिर्द भी नहीं जा पाए। मैंने तुरंत समझ लिया की चाचाजी का लंड बड़े मामा जितना ही मोटा था पर कुछ इंच छोटा होने की वजह से मुझे ज़्यादा ही मोटा लगा। फिर भी चाचाजी का अमानवीय लंड किसी भी लड़की की चूत और गांड आसानी से फाड़ सकता था। मैंने अपना पूरा खुला हुआ मुंह चाचाजी के सेब जितने बड़े सुपाड़े के ऊपर रख दिया। मेरी जीभ ने उनके सुपाड़े को सब तरफ से चाटना शुरू कर दिया। मेरी झीभ की नोक उनके पेशाब के छेद को चिड़ाने लगी। चाचाजी की सिसकारी ने मुझे भी उत्तेजित कर दिया। मेरे कोमल नाज़ुक कमसिन हाथ बड़ी मुश्किल से उनके दानवीय लंड को काबू में रख पा रहे थे। मेरा छोटा सा मुंह उनके लंड को अंदर लेने के लए पूरा चौड़ा हो कर खुल गया था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मुझे और भी उत्साहित कर दिया। सुरेश चाचा मेरे सर के उपर हाथ रख कर मेरे मुंह को अपने लंड पर दबाने लगे। मेरे दोनों हाथ बड़ी मुश्किल से चाचाजी के लंड के तने को पूरी तरह से पकड़ पा रहे थे फिर भी मैंने उनके लंड को सड़का मारने के अंदाज़ में अपने हाथ उपर नीचे करना शुरू कर दिया। मेरे गर्म मुंह उनके सुपाड़े को मेरी अवयस्क अप्रवीणता के बावजूद उनको काफी मज़ा दे रहा था। सुरेश चाचा ने थोड़ी ही देर में मुझे अपने लंड से उठा कर पलंग पर फ़ेंक दिया। सुरेश चाचा बिजली की तेजी से मेरी पूरी फैली गुदाज़ झांघों के बीच में कूद पड़े। उनका लालची मुंह शीघ्र ही मेरी गीले थरकती हुई चूत के उपर चिपक गया। मेरे मुंह से जोर की सिसकारी निकल गयी, "आआह चाचाजी ऊउन्न्न्न्न मेरी चूत, चाचाजी…..ई……ई…..ई….।” सुरेश चाचा ने अपने मज़बूत बड़े हाथ मेरे भरे-पूरे गोल गुदाज़ नितिम्बों के नीचे रख कर मेरी चूत को अपने मुंह के करीब ले आये। सुरेश चाचा अपने पूरे खुले मुंह को मेरी चूत से भर कर जोर से चूम रहे थे। मेरे गले से जोर की सिसकारी निकल पड़ी। चाचाजी के बड़े मज़बूत हाथ मेरे दोनों चूतडों को मसलने लगे। मैंने अपनी चूत को अपने नितिन्ब उठा कर चाचाजी के मुंह मे दबोचने लगी। चाचाजी ने अपने लम्बे मर्दाने हाथ मेरी भारी झांगों के बाहर कर मेरे दोनों उबलते हुए उरोजों के उपर रख दिए। उनके स्पर्श मात्र से मेरी सिसकारी निकल गयी। चाचाजी ने मेरे दोनों चूचियों को अपने मज़बूत मुट्ठी में जकड़ लिया। चाचाजी ने बेदर्दी से मेरी चूचियों का मर्दन करना शुरू कर दिया, "ऊउम्म्म चाआआ चाआआ जीईईईइ ............धीरे धीरे पप्लीईईईईईईइ .........ज़ज़ज़ज़ज़ज़। आअह मेरी चूत .......ऊउम्म्म।" चाचाजी ने मेरे कच्चे किशोर बदन का वासनामय मर्दन कर के कमरे को मेरी सिस्कारियों से भर दिया। चाचाजी अब अपने मुंह में मेरी चूत ले कर उसे ज़ोरों से चूस रहे थे। मेरी चूत में एक अजीब सा दर्द और आनंद की लहर दौड़ रही थी। मेरे हाथ चाचाजी के घने बालों को सहलाने लगे। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी चूत के तंग कोमल द्वार को चाटना शुरू कर दिया। मेरी आँखें वासनामय आनंद से आधी बंद हो गयीं। चाचाजी ने मेरी चूत के बाहरी छेद को चाटने के बाद अपनी जीभ से मेरी चूत मारने लगे।
उन्होंने अपनी जीभ को मोड़ कर लंड की शक्ल में कर लिया था। सुरेश चाचा ने अपनी गोल लंड की शक्ल में उमेठी जीभ से मेरी चूत की दरार को खोल कर उसे मेरी तंग, कमसिन, मखमली चूत की सुरंग में घुसेड़ दिया। मेरी सांस अब अटक-अटक कर आ रही थी। मेरे दोनों हाथों ने चाचाजी के घने बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर जोर से उनका सर अपनी चूत के ऊपर दबाना शुरू कर दिया। चाचाजी मेरी गीली चूत को अपनी मोटी गरम जीभ से चोदने लगे। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठीं। "आह चाचजी ई ..... ई ......ई ...... ई .....अम्म्म ....ऒऒन्न्न्न्ह्ह्ह," मेरे मुंह से अनर्गल आवाजें निकलने लगीं। चाचजी के दोनों हाथ मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसल रहे थे। चाचाजी बीच-बीच में मेरे निप्पल को बेरहमी से उमेठ देते थे। मेरे नाजुक उरोजों और निप्पल के मर्दन से मेरी सिसकारी कभी-कभी छोटी सी चीख में बदल जाती थी। मेरी चूत अब चूतरस से लबालब भर गयी थी। सुरेश चाचा अब मेरे घुण्डी को चूस रहे थे। जितनी बेदर्दी से चाचाजी मेरी चूचियां मसल रहे थे उन्होंने उतनी ही निर्ममता से मेरी घुंडी को चूसना और काटना शुरू कर दिया। मैं कमसिन उम्र में बड़े मामा की*एक दिन की चुदाई में ही में सीख गयी थी की सुरेश चाचा मेरी बेदर्दी से चुदाई करेंगे। मेरे रोम-रोम में बिजली सी दौड़ गयी। मेरे दोनों स्तनों में एक मीठा-मीठा दर्द होना शुरू हो गया। मेरे मुंह से जोर की सीत्कार निकल पड़ी। चाचाजी ने मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में दबा कर झंझोड़ दिया। मेरे गले से घुटी-घुटी चीख उबल कर कमरे में गूँज उठी। मेरे चूचियों का दर्द अब मेरे निचले पेट में उतर गया। चाचजी ने मेरी सिसकारी और चीखों से समझ लिया की मेरा रति-स्खलन होने वाला था। सुरेश चाचा मेरे दोनों उरोजों को और भी निर्ममता से मसलने लगे। उन्होंने ने मेरे क्लीटोरिस को अपने होंठों के बीच में ले कर मेरी चूत से दूर खींच लिया। मेरी घुटी-घुटी चीख और वासना में डूबी कराहट ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया था।
मेरा मीठा दर्द अब मेरी चूत के बहुत भीतर जा कर बस गया। मैं उस दर्द को बाहर निकालने के लिए बैचैन थी। "चाचजी, मुझे झाड़ दीजिये। मेरी चूत को जोर से चूसिये। आम्म्म .... आअन्न्न्न ....मैं अब आने वाली हूँ। सुरेश चाचा ने सही मौके पर मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में ले कर हलके से काट लिया। मेरे शरीर में मानों कोई सैलाब आ गया। मैंने जोर से चाचाजी के बालों को पकड़ के उनका मुंह अपनी धड़कती हुई चूत में दबाने की कोशिश करने लगी। मेरे सारे बदन में एक विध्वंस आग लगी थी। उसे बुझाने का उपाय चाचाजी के पास था। मेरी चूत का दर्द अचानक एक बम की तरह फट गया। मेरी चूत से गर्म मीठा पानी बहने लगा। चाचाजी मेरी चूत से बहते रस को लपालप पीने लगे। "आआन्न्न ...... आम्म्म्म्म .......ऑ ...ऑ ....ऑ ....." मेरे मुंह से मीठी सिस्कारियों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं निकल पाई। मेरा सारा शरीर मेरे झड़ने के तूफ़ान से अकड़ कर मड़ोड़े लेने लगा। सुरेश चाचा ने मौका देख कर मेरी गोल गोल भरी जांघों को अपने बाज़ुओं में उठा कर फैला दिया। उनका मोटे खम्बे की तरह धमकता हुआ लंड मेरे चूत को फाड़ने के लिए बेचैन हो रहा था। चाचू ने अपने लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मेरी अविकसित कमसिन चूत की संकरी दरार पर कई बार रगड़ा। मेरी सिस्कारियों ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया। सुरेश चाचा को अपने लंड को मेरी कोमल तंग चूत में डालने की कोई जल्दी नहीं लगती थी। मेरी साँसे अटक अटक कर आ रहीं थीं। मेरी चूत चाचू के दानवीय लंड के आकार से डरने के बावज़ूद उनके लंड के लिए तड़प रही थी। "चाचू, प्लीज़ अब अंदर डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से ग्रस्त हांफती हुई गिड़गिड़ाई। "नेहा बेटा, जब तक आप साफ़-साफ़ नहीं बोलेंगे की आपको क्या चाहिए हमें कैसे पता चलेगा की हम क्या करें?" चाचू ने कठोर हृदय से मुझे चिढ़ाते कहा। मेरा धैर्य कामवासना से ध्वस्त हो गया। मैं ने चीख सी मार कर घुटी घुटी आवाज़ में सुरेश चाचा से विनती की, "चाचू मेरी चूत मारिये। अपने मोटे लंड से मेरी चूत मारिये।"
सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं। मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो चाचू आन्न्न्ह्ह ...." सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक जा कर ही दम लेगा। सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे। उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी। चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं थीं। सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी। सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे रहीं थीं। मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था। चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।" मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी। चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे। कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं। "आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए कसमसा रही थी। मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी मार कर झड़ने लगी। चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं। "चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई। “ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी। सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी। सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।" मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।" मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे। चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया। मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं। मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया। सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा। सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे।
सुरेश चाचा मुझे कस कर पकड़ कर अपनी पीठ पर लेट गये। मैं अब उनके ऊपर लेती हुई थी और उनका भारी मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में अभी भी फंसा हुआ था। सुरेश चाचा के हाथ एक क्षण के लिए भी निष्चल नही हुए। चाचू ने मेरे चूतड़ों और कमर को सहला कर मेरे शरीर को फिर से गरम कर दिया। उनका लंड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था। उनका लंड मुझे घंटे भर चोद कर भी बड़ी मुश्किल से थोड़ा सा शिथिल हुआ था। मैंने अपनी चूत को होले से उनके विशाल लंड के ऊपर से अलग किया। मेरी चूत में से भरभर कर चाचू का गाढ़ा बच्चे पैदा करने वाला वीर्य ने उनके लंड और झांटों को भिगो दिया। मैं धीरे धीरे चाचू के होंठो फिर ठोड़ी को चूम कर नीचे सरकने लगी। मैंने सुरेश चाचा की मर्दाने घने बालों भरी सीने को प्यार से चूम कर उनके काले निप्पलों को ज़ोर से चूसा। उनके हल्की सी सिसकारी मेरा पुरूस्कार थी। मेरे होंठ उनके सीने से मेरी लार से गीला रास्ता बनाते हुए उनकी तोंद पर पहुँच गए। मैं अपनी जीभ उनकी गहरी नाभि में दाल कर हिलाने लगी। चाचू के मुंह से निकली गुर्राहट ने मेरी उत्तेजना को भी प्रज्ज्वलित कर दिया। मैंने चाचू की बालों से भरी तोंद को सब तरफ चूमा और चाटा। आखिरकार मेरी मंज़िल मेरे भूखे मुंह के सामने थी। चाचू का लंड धीरे धीरे फिर से पहले जैसे लोहे के खम्बे जैसी सख्ती की तरफ बड़ रहा था। मैंने अपने नन्हे हाथों से चाचू की जांघों को मोड़ा। सुरेश चाचा मेरी इच्छा समझ कर खुद ही अपनी जांघों को मोड़ और फैला कर लेट गए। मैंने पहले उनकी विशाल अंडकोष को चूमना शुरू किया। उनके घनी झांटे मेरे नाक में घुस कर गुलगुली कर रहीं थी। पर मुझे अपने चाचा के मोटे लंड और विशाल विर्यकोशों पर बहुत प्यार आ रहा था। आखिरकार इसी मोटे लंड ने मेरी चूत की चुदाई कर इन्हीं अन्डकोशों से उपजे वीर्य से मेरे गर्भाशय को सींचा था। मैंने काफी कोशिश के बाद उनका एक फ़ोता अपने मुंह में लेने में सफल हो गयी। जैसे ही मैंने उसे चूसना शुरू किया चाचू सिस्कार उठे। मैंने चाचू के दुसरे अंडकोष को भी अपने गरम मुंह में लेकर चूसा। मेरी नाक में सुरेश चाचा के भारी बालों से भरी चूतड़ों की दरार में से उपजी एक विचित्र मर्दानी गंध भर गयी। मैंने उनकी गांड को खोलने की कोशिश की पर उनके चूतड़ मेरे लिए बहुत भारी थे। सुरेश चाचा ने मेरी मदद करने के लिए एक मोटा तकिया अपने चूतड़ों के नीचे रख कर खुद ही अपने चूतड़ फैला दिए। मैंने अपनी जीभ से उनकी बालों से ढंकी गांड की दरार को चाटने लगी।
मेरे मुंह और नाक चाचू की गांड की गंध और स्वाद से भर गए। उनके चूतड़ों के बीच में इकट्ठे हुए मर्दाने स्वाद और सुगंध ने मुझे वासना से अभिभूत कर दिया। मैं लालचीपन से उनकी कसी सिकुंड़ी हुई गांड के छल्ले को चाटने लगी। चाचू की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहन दिया। मैंने अपनी जीभ की नोक से सुरेश चाचा की गांड के छिद्र को सताना शुरू कर उनके दोनों अन्डकोशों को अपने नन्हे हाथ से सहलाने लगी। सुरेश चाचा ने ज़ोर लगा कर अपनी गांड का छल्ला ढीला कर दिया और मेरी जीभ उसके अंदर समा गयी। मैंने सुरेश चाचा की गांड अपनी जीभ से मारने लगी। उनकी तरह मेरे पास उनके जैसा विशाल लंड तो था नहीं जिससे मैं उनकी गांड मार पाती। मेरे पास सिर्फ मेरी जीभ और उंगलियाँ थी। मैंने चाचू की गांड को अपने थूक से भिगो दिया। मैं थोडा ऊपर हो कर उनके लंड को चूसने लगी। मैंने अपनी तरजनी को उनकी गांड पर लगा कर दबाया। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर प्रविष्ट हो गयी। उनकी गांड बहुत ही गरम और मुलायम थी। चाचू की कसी गांड की दीवारों ने मेरी उंगली को जकड़ लिया। अब मुझे समझ आया की बड़े मामा और चाचू के मोटे लंडों को मेरी तंग चूत और गांड क्यों इतनी भाती थी। मैं चाचू के सुपाड़े को अपने मुंह में लेकर उसके बड़े पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने गांड ऊपर उठा कर मेरे मुंह में अपना लंड धकेलने की कोशिश की। मैं अब अपनी उंगली से उनकी गांड तेजी से मार कर उनका लंड चूस रही थी।
सुरेश चाचा की सिस्कारियां मुझे बहुत ही लुभावनी लगीं। मैंने और भी मन लगा कर उनके लंड को अपने लार भरे मुंह के भीतर ले कर जोर से चूसने लगी। मैंने अपने दूसरे हाथ से सुरेश चाचा के अब तनतनाये हुए लंड के विशाल खम्बे को सहलाने लगी। मेरा हाथ बड़ी मुश्किल से चाचू के लंड की आधी मोटाई को पकड़ पा रहा था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मेरे प्रयासों की प्रशंसा सी करती प्रतीत होतीं थीं।
लगभग आधे घंटे के बाद सुरेश चाचा के सिस्कारियां और भी तेज और ऊंची हो गयीं। मेरी उंगली उनकी गांड को तेजी से चोद रही थी। मेरी जीभ और मेरा मुंह उनके लंड के सुपाड़े को निखरती हुई कुशलता से सताने लगे। मेरा हाथ उनके मोटे लंड का हस्तमैथुन सा कर रहा था। अचानक बिना किसी चेतावनी दिए सुरेश चाचा के लंड ने मेरा मुंह गरम मर्दाने बच्चे-उत्पादक वीर्य से भर दिया। मैंने जितनी भी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी से उसे पीने लगी। चाचू के लंड ने पहली की तरह अनेको बार अपने वीर्य की तेज मोटी धार से मेरा मुंह भर दिया। मैंने कम से कम दस बार अपने मुंह में भरे वीर्य को प्यार से सटक लिया होगा। फिर भी कुछ मीठा-नमकीन वीर्य मेरे मूंह से निकल सुरेश चाचा के लंड और मेरे हाथ के ऊपर लिसड़ गया। मैंने बिना कुछ व्यर्थ किये बाहर फैले वीर्य को चाट कर सटक लिया। मैंने चाचू की गांड में से अपनी उंगली निकाल ली। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर की गंध से महक रही थी। मुझे अचानक ध्यान आया कि बड़े मामा को मेरी गांड का स्वाद बहुत अच्छा लगा था। मैंने भी चाचा की गांड के रस से भीगी उंगली को अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। मुझे चाचू की गांड का कसैला तीखा स्वाद बिलकुल भी बुरा नहीं लगा। सुरेश चाचा मुझे एकटक प्यार से घूर रहे थे।
मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया।
मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया। मेरे कमउम्र कमसिन मनोवृत्ती ने अब तक मुझे इतना तो सिखा दिया था कि बड़े मामा की तरह एक अल्पव्यस्क लड़की के कोमल हाथों से स्पर्श मात्र से ही उनका लंड उत्तेजित हो सकता था। इस लिए मेरे मूंह से उनके सुपाड़े की मीठी यातना तो और भी कामयाबी लायेगी। मैं चाचू के लंड को एक बार फिर से लोहे के खम्बे जैसे सख्त करने के लिए उत्सुक हो उठी थी। सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड अब पूरा अपने पहले वाले धड़कते हुए भीमकाय आकार का हो चुका था। मेरे मूंह के कोने उनके विशाल सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए पूरे फैले हुए थे और मुझे अब थोडा दर्द होने लगा था। मैंने जैसे ही अपना मूंह उनके लंड से ऊपर उठाया मेरे मूंह में लार ने उनके लंड को स्नान करवा दिया। "नेहा, क्या आपकी चूत चुदवाने के लिए तैयार है?" मुझे पता था कि सुरेश चाचा मुझे छेड़ रहे थे। अब तक वो चाहते तो मुझे धकेल कर मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। चाचू मेरे मूंह से चुदाई की प्रार्थना सुनना चाहते थे। "चाचू, मेरी चूत तो अब बहुत गीली है। मुझे आपके लंड से अपनी चूत चुदाई का बहुत मन कर रहा है," मैंने थोड़ा इठला कर कहा। चाचू ने अपने हिमालय की चोटी के सामान आकाश की तरफ उठे भीमकाय लिंग की तरफ इशारा कर के कहा, "नेहा बेटी, यदि आपको चुदना है तो थोड़ी महनत भी करनी होगी। इस बार आप खुद अपनी चूत मेरे लंड से मारिये।" सुरेश चाचा मेरे सम्भोग ज्ञान को बड़ाने का भी प्रयास कर रहे थे।
"चाचू, यदि आपको मेरा ऊपर से आपका लंड लेना अच्छा नहीं लगे तो आप मुझे सिखायेंगे?" मैंने अपनी दोनों मादक गुदाज़ भरी भरी जांघें सुरेश चाचा के कूल्हों के दोनों तरफ रख कर खड़ी हो गयी। "नेहा बेटी, जब आपकी चूत झड़ना चाहेगी तो उसे अपने आप समझ आ जाएगा कि उसे मेरे लंड के साथ साथ क्या करना चाहिए," सुरेश चाचा हलके से मुस्कराए। सुरेश चाचा ने मेरी कोई भी मदद करने की कोशिश नहीं की। मैंने उनके भारी हथोड़े जैसे लंड को स्थिर कर अपनी नाज़ुक, रतिरस से भरी चूत की मखमली दरार को उनके अविश्वसनीय मोटे सुपाड़े के ऊपर लगा कर अपने चूतड़ों को नीचे दबाने लगी। जैसे ही चाचू का विशाल सुपाड़ा मेरे चूत के द्वार को फैला कर चीरता हुआ अंदर प्रविष्ट हुआ तो मेरी ना चाहते हुए भी दर्द से भरी चीत्कार मेरे मूंह से उबल पड़ी। मेरी चूत सुरेश चाचा के मोटे लंड के ऊपर बुरी तरह से फँस कर मानो अटक गयी थी। मैंने थोड़ी देर रुक कर अपनी साँसों को काबू में करने की कोशिश की। सुरेश चाचा ने मेरी हिलती फड़कती चूचियों को अपने हाथों में भर कर धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया। मैंने एक बड़ी सांस भर कर नीच की तरफ जोर लगाया और धीरे धीरे मेरी चूत की कोमल दीवारें फैलने लगीं और चाचू का मोटा विशाल लंड मेरी चूत में इंच इंच करके अंदर घुसने लगा। मैं अब हांफ रही थी। मेरी संकरी कमसिन चूत चाचू के मोटे लंड के ऊपर फंसी बिलबिला रही थी। मेरे दांत मेरे होंठ पर कसे हुए थे। सुरेश चाचा मेरी बिगड़ती हालत को देख कर हलके हलके मुस्करा रहे थे। मैंने अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने लगी। मैंने सोचा इससे शायद मेरी चूत थोड़ी ढीली हो जाए। मैंने नीचे सर झुका कर देखा कि अभी तो सुरेश चाचा की सिर्फ तीन चार इन्चें ही मेरी चूत के अंदर थीं। सुरेश चाचा की हल्की सिसकारी ने मुझे अपनी तरकीब की सफलता से प्रभावित कर दिया। मैंने फिर से नीचे जोर लगाया और मेरी गीली चूत अचानक उनके चिकने लंड पर फिसल गयी। उनके विशाल लंड की कुछ इंचे मेरी चूत को चुद कर फैलाती हुई उसके अंदर दाखिल हो गयीं। मेरी दर्द भरी सिसकारी को चाचू ने बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया। मैं अब ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी। मेरे होंठों के ऊपर पसीने की बूंदे इकट्ठा हो गयीं थीं। सुरेश चाचा ज़ोर ज़ोर से मेरे उरोज़ों को मसल रहे थे। मैंने बिना अपनी चूत की परवाह किये दिल मज़बूत कर के निश्चय कर लिया।
मैंने अपने दोनों हाथ सुरेश चाचा की भरी बालों से भरी तोंद बार जमा कर अपने घुटने बिस्तर से ऊपर उठा लिए। मेरा पूरा वज़न अब चाचू के लंड पर टिका हुआ था। मेरी चूत सरसरा कर एक दर्दनाक धक्के में सुरेश चाचा के भीमकाय लंड की जड़ पर जा कर ही रुकी। मेरी दर्द से भरी चीख कमरे में गूँज उठी। सुरेश चाचा ने तरस खा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने धीरे धीरे मुझे अपने लंड को मेरी चूत में हिलाना शुरू कर दिया। उनके होंठ मेरे सख्त संवेदनशील निप्पलों को चूसने लगे। मैंने अपने हाथ उनके सर के पीछे कस कर जकड़ लिए। मेरी चूत सुरेश चाचा की मदद से उनके मोटे लंड के ऊपर अब थोड़ी आसानी से आगे पीछे हिलने लगी। सुरेश चाचा एक बार फिर से लेट गए। अब मैं अपने घुटनों पर वज़न दाल कर अपनी चूत को ऊपर नीचे कर सुरेश चाचा के वृहत्काय लंड से अपनी चूत मरवाने लगी। सुरेश चाचा मेरी चूचियों को अब बेदर्दी से मसल रहे थे। मैने ज़ोर की सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ को हिला हिला कर चाचू के लंड की कम से कम चार पांच इंचों से अपनी चूत का मर्दन खुद ही करने लगी। उनका मोटे लंड की जड़ हर बार मेरे अतिपुरित भग-शिश्न को कस कर दबा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला पर मैं अब अपनी गांड पूरे दम लगा कर अपनी चूत चाचू के लंड पर मार रही थी। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठी। मेरे शरीर में एक बार फिर से मीठे दर्द भरी एंथन जाग उठी। मैंने सुरेश चाचा के लंड और भी ज़ोर और तेज़ी से अपनी चूत के अंदर डाल रही थी। मुझे अब तक समझ आ गयी थी कि मैं अब झड़ने वाले हूँ। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों चूचियों को और भी कस के दबाना और मसलना शुरू कर दिया। "चाचू, आः ... ऊउन्न्न्न ... आअह्ह्ह्ह्ह ..... आअर्र्र्र्र्ग्ग्ग्ग्ग्ग मैं झड़ने वाली .. आआह्ह्ह ....चा .......चू ...ऒऒओ।" मैं सुरेश चाचा के लंड के ऊपर नीचे होते हुए चीखी। सुरेश चाचे ने बिजली की तेज़ी से उठ कर मुझे अपनी बाँहों में भर कर चोदने से रोक लिया। मैं बिलकुल व्याकुल हो उठी और फुसफुसाई, "चाचू, प्लीज़ मैं आने वाले थी।" सुरेश चाचा ने मेरे विनती करते होंठों पर अपने मर्दाने मोटे होंठों को लगा कर उन्हें चूसने लगे। मेरा रति-स्खलन जो कुछ ही क्षण दूर था वो अब तक शांत हो गया। सुरेश चाचा ने प्यार भरी कुटिलता से कहा, "नेहा बेटा, यदि मैं आपको झड़ने देता तो आप ऊपर से पूरा दिल लगा कर चुदाई थोड़े ही कर पातीं। अभी तो मेरे लंड को आपकी चूत से और भी मेहनत करवानी है। आखिर उसे आज रात आपकी कसी हुई गांड का सेवन भी तो करना है।"
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हम चारो बहुत गरम हो गये थे। बड़े मामा ने नम्रता चाची को अपनी शक्तिशाली बाँहों में उठा लिया और तेजी से शुभ्ररात्री बोल कर अपने शयनकक्ष की और चल दिए। नम्रता चाची की खिलखिलाने की आवाज़ बहुत देर तक तक गूंजती रही। मेरा तप्ता हुआ शरीर सुरेश चाचा से और भी बुरी तरह से लिपट गया। सुरेश चाचा ने मेरे थिरकते जलते हुए होंठों पर अपने गरम मर्दाने मोटे होंठ लगा दिए। मेरी दोनों गुदाज़ बाहें स्वतः उनकी मोटी मज़बूत गर्दन के इर्द-गिर्द हों गयीं। मेरा मुंह अपने आप से खुल कर सुरेश चाचा की मीठी ज़ुबान का स्वागत करने के लिए तैयार हो गया। सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और चुम्बन तोड़े बिना अपने कमरे की तरफ चल दिए। कमरे तक पहुँचते-पहुँचते उनकी ज़ुबान ने मेरे मुंह की पूरी तलाशी ले ली थी। उनका मीठा थूक मेरे मुंह में इकठा हो गया। मैंने लालचीपने से सारा का सारा गर्म मीठा थूक गटक लिया। कमरे में पहुँच कर चाचाजी ने मुझे पलंग पर खड़ा कर दिया और अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने भी जल्दी से अपने को निवस्त्र कर दिया। मैं भारी सासों से सुरेश चाचा को अपने कपड़े उतारते हुए एकटक देख रही थी। चाचाजी का भारीभरकम बदन घने बालों से भरा हुआ था। उनके सीने के बालों में काफी बाल सफ़ेद होने लगे थे।
मेरी आँखें उनके नीचे गिरते हुए कच्छे पर टिकी हुई थी। मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी जब चाचाजी का अमानवीय मोटा लंड स्पात की तरह सख्त बाहर आया। मेरी डर के मारे हालत खराब हो गयी। सुरेश चाचा का लंड बड़े मामा से भी मोटा था। हालांकी उनका लंड बड़े मामा से कुछ इंच छोटा था पर उसकी मोटाई ने मुझे डरा दिया। मैंने अपना दिल पक्का कर लिया और अपने से वायदा किया की मैं जैसे भी होगा सुरेश चाचा को अपने साथ आनंद लेने से नहीं रोकूंगी। आखिर नम्रता चाची मेरे बड़े मामा को सारी रात अपने शरीर से आनंद देंगी। मैं कैसे पीछे हट सकती थी। सुरेश चाचा मेरे पास आये और अपना लंड मेरे हवाले कर दिया। मेरे दोनों नाज़ुक छोटे हाथ मुश्किल से उनके मोटे स्थूल लंड के इर्द-गिर्द भी नहीं जा पाए। मैंने तुरंत समझ लिया की चाचाजी का लंड बड़े मामा जितना ही मोटा था पर कुछ इंच छोटा होने की वजह से मुझे ज़्यादा ही मोटा लगा। फिर भी चाचाजी का अमानवीय लंड किसी भी लड़की की चूत और गांड आसानी से फाड़ सकता था। मैंने अपना पूरा खुला हुआ मुंह चाचाजी के सेब जितने बड़े सुपाड़े के ऊपर रख दिया। मेरी जीभ ने उनके सुपाड़े को सब तरफ से चाटना शुरू कर दिया। मेरी झीभ की नोक उनके पेशाब के छेद को चिड़ाने लगी। चाचाजी की सिसकारी ने मुझे भी उत्तेजित कर दिया। मेरे कोमल नाज़ुक कमसिन हाथ बड़ी मुश्किल से उनके दानवीय लंड को काबू में रख पा रहे थे। मेरा छोटा सा मुंह उनके लंड को अंदर लेने के लए पूरा चौड़ा हो कर खुल गया था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मुझे और भी उत्साहित कर दिया। सुरेश चाचा मेरे सर के उपर हाथ रख कर मेरे मुंह को अपने लंड पर दबाने लगे। मेरे दोनों हाथ बड़ी मुश्किल से चाचाजी के लंड के तने को पूरी तरह से पकड़ पा रहे थे फिर भी मैंने उनके लंड को सड़का मारने के अंदाज़ में अपने हाथ उपर नीचे करना शुरू कर दिया। मेरे गर्म मुंह उनके सुपाड़े को मेरी अवयस्क अप्रवीणता के बावजूद उनको काफी मज़ा दे रहा था। सुरेश चाचा ने थोड़ी ही देर में मुझे अपने लंड से उठा कर पलंग पर फ़ेंक दिया। सुरेश चाचा बिजली की तेजी से मेरी पूरी फैली गुदाज़ झांघों के बीच में कूद पड़े। उनका लालची मुंह शीघ्र ही मेरी गीले थरकती हुई चूत के उपर चिपक गया। मेरे मुंह से जोर की सिसकारी निकल गयी, "आआह चाचाजी ऊउन्न्न्न्न मेरी चूत, चाचाजी…..ई……ई…..ई….।” सुरेश चाचा ने अपने मज़बूत बड़े हाथ मेरे भरे-पूरे गोल गुदाज़ नितिम्बों के नीचे रख कर मेरी चूत को अपने मुंह के करीब ले आये। सुरेश चाचा अपने पूरे खुले मुंह को मेरी चूत से भर कर जोर से चूम रहे थे। मेरे गले से जोर की सिसकारी निकल पड़ी। चाचाजी के बड़े मज़बूत हाथ मेरे दोनों चूतडों को मसलने लगे। मैंने अपनी चूत को अपने नितिन्ब उठा कर चाचाजी के मुंह मे दबोचने लगी। चाचाजी ने अपने लम्बे मर्दाने हाथ मेरी भारी झांगों के बाहर कर मेरे दोनों उबलते हुए उरोजों के उपर रख दिए। उनके स्पर्श मात्र से मेरी सिसकारी निकल गयी। चाचाजी ने मेरे दोनों चूचियों को अपने मज़बूत मुट्ठी में जकड़ लिया। चाचाजी ने बेदर्दी से मेरी चूचियों का मर्दन करना शुरू कर दिया, "ऊउम्म्म चाआआ चाआआ जीईईईइ ............धीरे धीरे पप्लीईईईईईईइ .........ज़ज़ज़ज़ज़ज़। आअह मेरी चूत .......ऊउम्म्म।" चाचाजी ने मेरे कच्चे किशोर बदन का वासनामय मर्दन कर के कमरे को मेरी सिस्कारियों से भर दिया। चाचाजी अब अपने मुंह में मेरी चूत ले कर उसे ज़ोरों से चूस रहे थे। मेरी चूत में एक अजीब सा दर्द और आनंद की लहर दौड़ रही थी। मेरे हाथ चाचाजी के घने बालों को सहलाने लगे। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी चूत के तंग कोमल द्वार को चाटना शुरू कर दिया। मेरी आँखें वासनामय आनंद से आधी बंद हो गयीं। चाचाजी ने मेरी चूत के बाहरी छेद को चाटने के बाद अपनी जीभ से मेरी चूत मारने लगे।
उन्होंने अपनी जीभ को मोड़ कर लंड की शक्ल में कर लिया था। सुरेश चाचा ने अपनी गोल लंड की शक्ल में उमेठी जीभ से मेरी चूत की दरार को खोल कर उसे मेरी तंग, कमसिन, मखमली चूत की सुरंग में घुसेड़ दिया। मेरी सांस अब अटक-अटक कर आ रही थी। मेरे दोनों हाथों ने चाचाजी के घने बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर जोर से उनका सर अपनी चूत के ऊपर दबाना शुरू कर दिया। चाचाजी मेरी गीली चूत को अपनी मोटी गरम जीभ से चोदने लगे। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठीं। "आह चाचजी ई ..... ई ......ई ...... ई .....अम्म्म ....ऒऒन्न्न्न्ह्ह्ह," मेरे मुंह से अनर्गल आवाजें निकलने लगीं। चाचजी के दोनों हाथ मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसल रहे थे। चाचाजी बीच-बीच में मेरे निप्पल को बेरहमी से उमेठ देते थे। मेरे नाजुक उरोजों और निप्पल के मर्दन से मेरी सिसकारी कभी-कभी छोटी सी चीख में बदल जाती थी। मेरी चूत अब चूतरस से लबालब भर गयी थी। सुरेश चाचा अब मेरे घुण्डी को चूस रहे थे। जितनी बेदर्दी से चाचाजी मेरी चूचियां मसल रहे थे उन्होंने उतनी ही निर्ममता से मेरी घुंडी को चूसना और काटना शुरू कर दिया। मैं कमसिन उम्र में बड़े मामा की*एक दिन की चुदाई में ही में सीख गयी थी की सुरेश चाचा मेरी बेदर्दी से चुदाई करेंगे। मेरे रोम-रोम में बिजली सी दौड़ गयी। मेरे दोनों स्तनों में एक मीठा-मीठा दर्द होना शुरू हो गया। मेरे मुंह से जोर की सीत्कार निकल पड़ी। चाचाजी ने मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में दबा कर झंझोड़ दिया। मेरे गले से घुटी-घुटी चीख उबल कर कमरे में गूँज उठी। मेरे चूचियों का दर्द अब मेरे निचले पेट में उतर गया। चाचजी ने मेरी सिसकारी और चीखों से समझ लिया की मेरा रति-स्खलन होने वाला था। सुरेश चाचा मेरे दोनों उरोजों को और भी निर्ममता से मसलने लगे। उन्होंने ने मेरे क्लीटोरिस को अपने होंठों के बीच में ले कर मेरी चूत से दूर खींच लिया। मेरी घुटी-घुटी चीख और वासना में डूबी कराहट ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया था।
मेरा मीठा दर्द अब मेरी चूत के बहुत भीतर जा कर बस गया। मैं उस दर्द को बाहर निकालने के लिए बैचैन थी। "चाचजी, मुझे झाड़ दीजिये। मेरी चूत को जोर से चूसिये। आम्म्म .... आअन्न्न्न ....मैं अब आने वाली हूँ। सुरेश चाचा ने सही मौके पर मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में ले कर हलके से काट लिया। मेरे शरीर में मानों कोई सैलाब आ गया। मैंने जोर से चाचाजी के बालों को पकड़ के उनका मुंह अपनी धड़कती हुई चूत में दबाने की कोशिश करने लगी। मेरे सारे बदन में एक विध्वंस आग लगी थी। उसे बुझाने का उपाय चाचाजी के पास था। मेरी चूत का दर्द अचानक एक बम की तरह फट गया। मेरी चूत से गर्म मीठा पानी बहने लगा। चाचाजी मेरी चूत से बहते रस को लपालप पीने लगे। "आआन्न्न ...... आम्म्म्म्म .......ऑ ...ऑ ....ऑ ....." मेरे मुंह से मीठी सिस्कारियों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं निकल पाई। मेरा सारा शरीर मेरे झड़ने के तूफ़ान से अकड़ कर मड़ोड़े लेने लगा। सुरेश चाचा ने मौका देख कर मेरी गोल गोल भरी जांघों को अपने बाज़ुओं में उठा कर फैला दिया। उनका मोटे खम्बे की तरह धमकता हुआ लंड मेरे चूत को फाड़ने के लिए बेचैन हो रहा था। चाचू ने अपने लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मेरी अविकसित कमसिन चूत की संकरी दरार पर कई बार रगड़ा। मेरी सिस्कारियों ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया। सुरेश चाचा को अपने लंड को मेरी कोमल तंग चूत में डालने की कोई जल्दी नहीं लगती थी। मेरी साँसे अटक अटक कर आ रहीं थीं। मेरी चूत चाचू के दानवीय लंड के आकार से डरने के बावज़ूद उनके लंड के लिए तड़प रही थी। "चाचू, प्लीज़ अब अंदर डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से ग्रस्त हांफती हुई गिड़गिड़ाई। "नेहा बेटा, जब तक आप साफ़-साफ़ नहीं बोलेंगे की आपको क्या चाहिए हमें कैसे पता चलेगा की हम क्या करें?" चाचू ने कठोर हृदय से मुझे चिढ़ाते कहा। मेरा धैर्य कामवासना से ध्वस्त हो गया। मैं ने चीख सी मार कर घुटी घुटी आवाज़ में सुरेश चाचा से विनती की, "चाचू मेरी चूत मारिये। अपने मोटे लंड से मेरी चूत मारिये।"
सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं। मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो चाचू आन्न्न्ह्ह ...." सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक जा कर ही दम लेगा। सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे। उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी। चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं थीं। सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी। सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे रहीं थीं। मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था। चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।" मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी। चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे। कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं। "आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए कसमसा रही थी। मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी मार कर झड़ने लगी। चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं। "चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई। “ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी। सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी। सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।" मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।" मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे। चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया। मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं। मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया। सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा। सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे।
सुरेश चाचा मुझे कस कर पकड़ कर अपनी पीठ पर लेट गये। मैं अब उनके ऊपर लेती हुई थी और उनका भारी मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में अभी भी फंसा हुआ था। सुरेश चाचा के हाथ एक क्षण के लिए भी निष्चल नही हुए। चाचू ने मेरे चूतड़ों और कमर को सहला कर मेरे शरीर को फिर से गरम कर दिया। उनका लंड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था। उनका लंड मुझे घंटे भर चोद कर भी बड़ी मुश्किल से थोड़ा सा शिथिल हुआ था। मैंने अपनी चूत को होले से उनके विशाल लंड के ऊपर से अलग किया। मेरी चूत में से भरभर कर चाचू का गाढ़ा बच्चे पैदा करने वाला वीर्य ने उनके लंड और झांटों को भिगो दिया। मैं धीरे धीरे चाचू के होंठो फिर ठोड़ी को चूम कर नीचे सरकने लगी। मैंने सुरेश चाचा की मर्दाने घने बालों भरी सीने को प्यार से चूम कर उनके काले निप्पलों को ज़ोर से चूसा। उनके हल्की सी सिसकारी मेरा पुरूस्कार थी। मेरे होंठ उनके सीने से मेरी लार से गीला रास्ता बनाते हुए उनकी तोंद पर पहुँच गए। मैं अपनी जीभ उनकी गहरी नाभि में दाल कर हिलाने लगी। चाचू के मुंह से निकली गुर्राहट ने मेरी उत्तेजना को भी प्रज्ज्वलित कर दिया। मैंने चाचू की बालों से भरी तोंद को सब तरफ चूमा और चाटा। आखिरकार मेरी मंज़िल मेरे भूखे मुंह के सामने थी। चाचू का लंड धीरे धीरे फिर से पहले जैसे लोहे के खम्बे जैसी सख्ती की तरफ बड़ रहा था। मैंने अपने नन्हे हाथों से चाचू की जांघों को मोड़ा। सुरेश चाचा मेरी इच्छा समझ कर खुद ही अपनी जांघों को मोड़ और फैला कर लेट गए। मैंने पहले उनकी विशाल अंडकोष को चूमना शुरू किया। उनके घनी झांटे मेरे नाक में घुस कर गुलगुली कर रहीं थी। पर मुझे अपने चाचा के मोटे लंड और विशाल विर्यकोशों पर बहुत प्यार आ रहा था। आखिरकार इसी मोटे लंड ने मेरी चूत की चुदाई कर इन्हीं अन्डकोशों से उपजे वीर्य से मेरे गर्भाशय को सींचा था। मैंने काफी कोशिश के बाद उनका एक फ़ोता अपने मुंह में लेने में सफल हो गयी। जैसे ही मैंने उसे चूसना शुरू किया चाचू सिस्कार उठे। मैंने चाचू के दुसरे अंडकोष को भी अपने गरम मुंह में लेकर चूसा। मेरी नाक में सुरेश चाचा के भारी बालों से भरी चूतड़ों की दरार में से उपजी एक विचित्र मर्दानी गंध भर गयी। मैंने उनकी गांड को खोलने की कोशिश की पर उनके चूतड़ मेरे लिए बहुत भारी थे। सुरेश चाचा ने मेरी मदद करने के लिए एक मोटा तकिया अपने चूतड़ों के नीचे रख कर खुद ही अपने चूतड़ फैला दिए। मैंने अपनी जीभ से उनकी बालों से ढंकी गांड की दरार को चाटने लगी।
मेरे मुंह और नाक चाचू की गांड की गंध और स्वाद से भर गए। उनके चूतड़ों के बीच में इकट्ठे हुए मर्दाने स्वाद और सुगंध ने मुझे वासना से अभिभूत कर दिया। मैं लालचीपन से उनकी कसी सिकुंड़ी हुई गांड के छल्ले को चाटने लगी। चाचू की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहन दिया। मैंने अपनी जीभ की नोक से सुरेश चाचा की गांड के छिद्र को सताना शुरू कर उनके दोनों अन्डकोशों को अपने नन्हे हाथ से सहलाने लगी। सुरेश चाचा ने ज़ोर लगा कर अपनी गांड का छल्ला ढीला कर दिया और मेरी जीभ उसके अंदर समा गयी। मैंने सुरेश चाचा की गांड अपनी जीभ से मारने लगी। उनकी तरह मेरे पास उनके जैसा विशाल लंड तो था नहीं जिससे मैं उनकी गांड मार पाती। मेरे पास सिर्फ मेरी जीभ और उंगलियाँ थी। मैंने चाचू की गांड को अपने थूक से भिगो दिया। मैं थोडा ऊपर हो कर उनके लंड को चूसने लगी। मैंने अपनी तरजनी को उनकी गांड पर लगा कर दबाया। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर प्रविष्ट हो गयी। उनकी गांड बहुत ही गरम और मुलायम थी। चाचू की कसी गांड की दीवारों ने मेरी उंगली को जकड़ लिया। अब मुझे समझ आया की बड़े मामा और चाचू के मोटे लंडों को मेरी तंग चूत और गांड क्यों इतनी भाती थी। मैं चाचू के सुपाड़े को अपने मुंह में लेकर उसके बड़े पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने गांड ऊपर उठा कर मेरे मुंह में अपना लंड धकेलने की कोशिश की। मैं अब अपनी उंगली से उनकी गांड तेजी से मार कर उनका लंड चूस रही थी।
सुरेश चाचा की सिस्कारियां मुझे बहुत ही लुभावनी लगीं। मैंने और भी मन लगा कर उनके लंड को अपने लार भरे मुंह के भीतर ले कर जोर से चूसने लगी। मैंने अपने दूसरे हाथ से सुरेश चाचा के अब तनतनाये हुए लंड के विशाल खम्बे को सहलाने लगी। मेरा हाथ बड़ी मुश्किल से चाचू के लंड की आधी मोटाई को पकड़ पा रहा था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मेरे प्रयासों की प्रशंसा सी करती प्रतीत होतीं थीं।
लगभग आधे घंटे के बाद सुरेश चाचा के सिस्कारियां और भी तेज और ऊंची हो गयीं। मेरी उंगली उनकी गांड को तेजी से चोद रही थी। मेरी जीभ और मेरा मुंह उनके लंड के सुपाड़े को निखरती हुई कुशलता से सताने लगे। मेरा हाथ उनके मोटे लंड का हस्तमैथुन सा कर रहा था। अचानक बिना किसी चेतावनी दिए सुरेश चाचा के लंड ने मेरा मुंह गरम मर्दाने बच्चे-उत्पादक वीर्य से भर दिया। मैंने जितनी भी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी से उसे पीने लगी। चाचू के लंड ने पहली की तरह अनेको बार अपने वीर्य की तेज मोटी धार से मेरा मुंह भर दिया। मैंने कम से कम दस बार अपने मुंह में भरे वीर्य को प्यार से सटक लिया होगा। फिर भी कुछ मीठा-नमकीन वीर्य मेरे मूंह से निकल सुरेश चाचा के लंड और मेरे हाथ के ऊपर लिसड़ गया। मैंने बिना कुछ व्यर्थ किये बाहर फैले वीर्य को चाट कर सटक लिया। मैंने चाचू की गांड में से अपनी उंगली निकाल ली। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर की गंध से महक रही थी। मुझे अचानक ध्यान आया कि बड़े मामा को मेरी गांड का स्वाद बहुत अच्छा लगा था। मैंने भी चाचा की गांड के रस से भीगी उंगली को अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। मुझे चाचू की गांड का कसैला तीखा स्वाद बिलकुल भी बुरा नहीं लगा। सुरेश चाचा मुझे एकटक प्यार से घूर रहे थे।
मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया।
मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया। मेरे कमउम्र कमसिन मनोवृत्ती ने अब तक मुझे इतना तो सिखा दिया था कि बड़े मामा की तरह एक अल्पव्यस्क लड़की के कोमल हाथों से स्पर्श मात्र से ही उनका लंड उत्तेजित हो सकता था। इस लिए मेरे मूंह से उनके सुपाड़े की मीठी यातना तो और भी कामयाबी लायेगी। मैं चाचू के लंड को एक बार फिर से लोहे के खम्बे जैसे सख्त करने के लिए उत्सुक हो उठी थी। सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड अब पूरा अपने पहले वाले धड़कते हुए भीमकाय आकार का हो चुका था। मेरे मूंह के कोने उनके विशाल सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए पूरे फैले हुए थे और मुझे अब थोडा दर्द होने लगा था। मैंने जैसे ही अपना मूंह उनके लंड से ऊपर उठाया मेरे मूंह में लार ने उनके लंड को स्नान करवा दिया। "नेहा, क्या आपकी चूत चुदवाने के लिए तैयार है?" मुझे पता था कि सुरेश चाचा मुझे छेड़ रहे थे। अब तक वो चाहते तो मुझे धकेल कर मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। चाचू मेरे मूंह से चुदाई की प्रार्थना सुनना चाहते थे। "चाचू, मेरी चूत तो अब बहुत गीली है। मुझे आपके लंड से अपनी चूत चुदाई का बहुत मन कर रहा है," मैंने थोड़ा इठला कर कहा। चाचू ने अपने हिमालय की चोटी के सामान आकाश की तरफ उठे भीमकाय लिंग की तरफ इशारा कर के कहा, "नेहा बेटी, यदि आपको चुदना है तो थोड़ी महनत भी करनी होगी। इस बार आप खुद अपनी चूत मेरे लंड से मारिये।" सुरेश चाचा मेरे सम्भोग ज्ञान को बड़ाने का भी प्रयास कर रहे थे।
"चाचू, यदि आपको मेरा ऊपर से आपका लंड लेना अच्छा नहीं लगे तो आप मुझे सिखायेंगे?" मैंने अपनी दोनों मादक गुदाज़ भरी भरी जांघें सुरेश चाचा के कूल्हों के दोनों तरफ रख कर खड़ी हो गयी। "नेहा बेटी, जब आपकी चूत झड़ना चाहेगी तो उसे अपने आप समझ आ जाएगा कि उसे मेरे लंड के साथ साथ क्या करना चाहिए," सुरेश चाचा हलके से मुस्कराए। सुरेश चाचा ने मेरी कोई भी मदद करने की कोशिश नहीं की। मैंने उनके भारी हथोड़े जैसे लंड को स्थिर कर अपनी नाज़ुक, रतिरस से भरी चूत की मखमली दरार को उनके अविश्वसनीय मोटे सुपाड़े के ऊपर लगा कर अपने चूतड़ों को नीचे दबाने लगी। जैसे ही चाचू का विशाल सुपाड़ा मेरे चूत के द्वार को फैला कर चीरता हुआ अंदर प्रविष्ट हुआ तो मेरी ना चाहते हुए भी दर्द से भरी चीत्कार मेरे मूंह से उबल पड़ी। मेरी चूत सुरेश चाचा के मोटे लंड के ऊपर बुरी तरह से फँस कर मानो अटक गयी थी। मैंने थोड़ी देर रुक कर अपनी साँसों को काबू में करने की कोशिश की। सुरेश चाचा ने मेरी हिलती फड़कती चूचियों को अपने हाथों में भर कर धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया। मैंने एक बड़ी सांस भर कर नीच की तरफ जोर लगाया और धीरे धीरे मेरी चूत की कोमल दीवारें फैलने लगीं और चाचू का मोटा विशाल लंड मेरी चूत में इंच इंच करके अंदर घुसने लगा। मैं अब हांफ रही थी। मेरी संकरी कमसिन चूत चाचू के मोटे लंड के ऊपर फंसी बिलबिला रही थी। मेरे दांत मेरे होंठ पर कसे हुए थे। सुरेश चाचा मेरी बिगड़ती हालत को देख कर हलके हलके मुस्करा रहे थे। मैंने अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने लगी। मैंने सोचा इससे शायद मेरी चूत थोड़ी ढीली हो जाए। मैंने नीचे सर झुका कर देखा कि अभी तो सुरेश चाचा की सिर्फ तीन चार इन्चें ही मेरी चूत के अंदर थीं। सुरेश चाचा की हल्की सिसकारी ने मुझे अपनी तरकीब की सफलता से प्रभावित कर दिया। मैंने फिर से नीचे जोर लगाया और मेरी गीली चूत अचानक उनके चिकने लंड पर फिसल गयी। उनके विशाल लंड की कुछ इंचे मेरी चूत को चुद कर फैलाती हुई उसके अंदर दाखिल हो गयीं। मेरी दर्द भरी सिसकारी को चाचू ने बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया। मैं अब ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी। मेरे होंठों के ऊपर पसीने की बूंदे इकट्ठा हो गयीं थीं। सुरेश चाचा ज़ोर ज़ोर से मेरे उरोज़ों को मसल रहे थे। मैंने बिना अपनी चूत की परवाह किये दिल मज़बूत कर के निश्चय कर लिया।
मैंने अपने दोनों हाथ सुरेश चाचा की भरी बालों से भरी तोंद बार जमा कर अपने घुटने बिस्तर से ऊपर उठा लिए। मेरा पूरा वज़न अब चाचू के लंड पर टिका हुआ था। मेरी चूत सरसरा कर एक दर्दनाक धक्के में सुरेश चाचा के भीमकाय लंड की जड़ पर जा कर ही रुकी। मेरी दर्द से भरी चीख कमरे में गूँज उठी। सुरेश चाचा ने तरस खा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने धीरे धीरे मुझे अपने लंड को मेरी चूत में हिलाना शुरू कर दिया। उनके होंठ मेरे सख्त संवेदनशील निप्पलों को चूसने लगे। मैंने अपने हाथ उनके सर के पीछे कस कर जकड़ लिए। मेरी चूत सुरेश चाचा की मदद से उनके मोटे लंड के ऊपर अब थोड़ी आसानी से आगे पीछे हिलने लगी। सुरेश चाचा एक बार फिर से लेट गए। अब मैं अपने घुटनों पर वज़न दाल कर अपनी चूत को ऊपर नीचे कर सुरेश चाचा के वृहत्काय लंड से अपनी चूत मरवाने लगी। सुरेश चाचा मेरी चूचियों को अब बेदर्दी से मसल रहे थे। मैने ज़ोर की सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ को हिला हिला कर चाचू के लंड की कम से कम चार पांच इंचों से अपनी चूत का मर्दन खुद ही करने लगी। उनका मोटे लंड की जड़ हर बार मेरे अतिपुरित भग-शिश्न को कस कर दबा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला पर मैं अब अपनी गांड पूरे दम लगा कर अपनी चूत चाचू के लंड पर मार रही थी। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठी। मेरे शरीर में एक बार फिर से मीठे दर्द भरी एंथन जाग उठी। मैंने सुरेश चाचा के लंड और भी ज़ोर और तेज़ी से अपनी चूत के अंदर डाल रही थी। मुझे अब तक समझ आ गयी थी कि मैं अब झड़ने वाले हूँ। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों चूचियों को और भी कस के दबाना और मसलना शुरू कर दिया। "चाचू, आः ... ऊउन्न्न्न ... आअह्ह्ह्ह्ह ..... आअर्र्र्र्र्ग्ग्ग्ग्ग्ग मैं झड़ने वाली .. आआह्ह्ह ....चा .......चू ...ऒऒओ।" मैं सुरेश चाचा के लंड के ऊपर नीचे होते हुए चीखी। सुरेश चाचे ने बिजली की तेज़ी से उठ कर मुझे अपनी बाँहों में भर कर चोदने से रोक लिया। मैं बिलकुल व्याकुल हो उठी और फुसफुसाई, "चाचू, प्लीज़ मैं आने वाले थी।" सुरेश चाचा ने मेरे विनती करते होंठों पर अपने मर्दाने मोटे होंठों को लगा कर उन्हें चूसने लगे। मेरा रति-स्खलन जो कुछ ही क्षण दूर था वो अब तक शांत हो गया। सुरेश चाचा ने प्यार भरी कुटिलता से कहा, "नेहा बेटा, यदि मैं आपको झड़ने देता तो आप ऊपर से पूरा दिल लगा कर चुदाई थोड़े ही कर पातीं। अभी तो मेरे लंड को आपकी चूत से और भी मेहनत करवानी है। आखिर उसे आज रात आपकी कसी हुई गांड का सेवन भी तो करना है।"
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