09-07-2019, 02:43 PM
(This post was last modified: 10-07-2019, 08:57 AM by thepirate18. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
Update 4 B
उस सारा दिन मेरी हालत कामुकता से अभिभूत और व्याकुल रही. बड़े मामा ने मेरी हालत और खराब करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा. उन्हें जब भी मुझे अकेले पाने का मौका मिलता वो मुझे अपनी शक्तिशाली बाँहों में जकड़ कर चुमते, मेरे दोनों चूतड़ों और उरोजों अपने मज़बूत बड़े-बड़े हाथों से दबा कर ज़ोरों से मसल देते थे.
अब मैं सारा दिन उनसे मिलने से घबराती थी और बेसब्री से उनसे मिलने की इच्छा से व्याकुल भी रहती थी.
शाम को खाने के ठीक बाद अंजू भाभी और नरेश भैया ने अपने शहर वापस जाने की तय्यारी की वजह से जल्दी खाने की मेज़ छोड़ने की क्षमा-प्रार्थना के बाद सुबह-सवेरे जल्दी प्रस्थान की योजना के लिए अपने कमरे की तरफ चल दिए.
बड़े मामा ने सारे परिवार को गोल्फ खेलने के लिए उत्साहित किया. नानाजी ने अपनी विशाल जागीर पर एक '१८ होल' का 'गोल्फ कोर्स' के अलावा ४ तरण ताल, ३ टेनिस, ४ बैडमिंटन कोर्ट्स भी बनवाये थे.
सब लोगों को गोल्फ का विचार बहुत अच्छा लगा. सारे दो खिलाड़ियों की टीम बनाने में व्यस्त हो गए. मेरे पापा ने मेरी दादीजी के साथ जोड़ा बनाया. छोटे मामा ने मेरी मम्मी, अपनी छोटी बहन, के साथ टीम बनाई. मेरी बुआ, पापा की बड़ी बहन, अपने डैडी, मेरे दादाजी, के साथ जुड़ गयीं.
बड़े मामा जल्दी से मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए और प्यार से मेरे कन्धों पर अपने भारी विशाल हाथ रख कर हम दोनों की जोड़ी की घोषणा कर दी. मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़कने लगा. गोल्फ के खेल के लिए जोड़े बनाने की गहमा-गहमी के बाद बड़े मामा मेरे पास की कुर्सी पर बैठ गए.
थोड़ी देर में जब सब मीठा और चाय या कॉफ़ी का आनंद उठा रहें थे, नौकर ने आ कर बड़े मामा को उनके करीबी दोस्त शर्माजी के टेलीफ़ोन काल की सूचना दी. बड़े मामा ने मेरी दायीं जांघ को जोर से दबाया और मेरी तरफ प्यार से मुस्करा कर फ़ोन-कॉल लेने के लिए बाहर चल गए.
थोड़ी देर में बड़े मामा वापस आ कर मेरे पास कुर्सी पर बैठ गए. उनका हाथ मेजपोश के नीचे फिर से मेरी जांघ पर पहुँच गया.
"भई, मुझे आप सब से माफी मंगनी पड़ेगी. सुरेश [सुरेश शर्मा, बड़े मामा के बहुत करीबे दोस्त थे] के साथ मैंने मछ्ली पकड़ने का वादा किया था कुछ महीनों पहले जो मैं बिलकुल भूल गया. वो बेचारा सुबह झील के बंगले पर पहुँचाने वाला है. नम्रता भाभी [सुरेश अंकल की पत्नी] भी आ रहीं हैं."
मेज़ से 'आह नहीं' , 'सो सैड' 'नहीं आपको अपना वादा निभाना चाहिये' की आवाजें उठीं.
बड़े मामा ने मेरी जांघ दबाई और बोले, "मेरी जोड़ी का खिलाड़ी तो बेचारी अकेली रह जायेगी," फिर मामाजी ने मेरी तरफ मुड़ कर कहा, "नेहा बेटा, नम्रता भाभी आपकी काफी याद कर रहीं थीं. आप चाहो तो मेरे साथ झील की तरफ चल सकते हैं."
मुझे अब सब समझ आ गया. मेरे चेहरा एक आनंद भरी मुस्कान से चमक गया," हाँ! हाँ!, बिलकुल बड़े मामा. मुझे झील पर जाना बहुत अच्छा लगता है. मैं सुरेश अंकल और नम्रता आंटी से बड़ी दिनों से नहीं मिली हूँ. मम्मी क्या मैं कल बड़े मामा के साथ चली जाऊं?"
मैं भी बड़े मामा की योजना में पूरे उत्साह से सहयोग देने लगी.
मम्मी ने हंस कर कहा,"नेहा तुम और तुम्हारे बड़े मामा के बीच में पड़ने वाली मैं कौन होतीं हूँ ? "
बड़े मामा ने मेरे बालों को प्यार से चूमा, "नेहा बेटा, हम लोग सुबह जल्दी निकलेंगे. वापसी या तो परसों अन्यथा उसके एक दिन बाद होगी. इस बात का सुरेश की बिज़नस एमरजेंसी पर निर्भर करता है. आप कम से कम तीन दिनों के कपड़े रख लो."
मेरा गला रोमांच और उत्तेजना से बिलकुल सूख गया. मेरे आवाज़ नहीं निकल पा रही थी. मैंने चुपचाप मुस्करा के हामी में सिर हिला दिया.
बड़े मामाजी के साथ तीन दिन और दो रातों के ख़याल से मेरा सारा शरीर रोमांचित हो गया.
सब लोग शीघ्र ही फिर से वार्तालाप में व्यस्त हो गए। मामा का बड़ा भारी मर्दाना हाथ अभी भी मेरी मोटी गुदाज़ जांघ पर रखा हुआ था। उन्होंने मेरी जांघ को धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया। मेरी साँस मानो गले में अटक गयी। मैंने घबरा के अपने परिवार ले सदस्यों के चेहरों की तरफ देखा। सब मामा और मेरे बीच होती रास-लीला से अनभिज्ञ थे।
मामा के जादू भरे हाथ ने मेरी छूट को रस से भर दिया। मुझे लगा की मेरा पेशाब निकलने वाला है। मैं शौचालय की तरफ के तरफ जाने के लए उठने लगी।
मामा जी ने धीरे से पूछा, "क्या हुआ बेटा?"
"मामाजी मुझे सू-सू करने जाना है।" मैंने पेशाब के लिए बचपन के नाम का उपयोग किया।
बड़े मामा ने ने मेरे गाल पर चुम्मी दे कर मेरी कुर्सी को पीछे खींच कर मुझे जाने की जगह दे दी। मेरे परिवार में सब लोग मुझे प्यार से कभी भी चूम लेते थे। पर अब मेरे दिल में बड़े मामा से चुदवाने की वासना का चोर बैठ गया था। मेरा मुंह शर्म से लाल हो गया। मई जल्दी से अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।
मैंने अपने कुर्ते को अपनी कमर के इर्द-गिर्द खींच लिया। मैं मुश्किल से अपनी सलवार के नाड़े को खोल कर कमोड के अपर बैठने वाली थी की बड़े मामा ने स्नानगृह में प्रविष्ट हो कर मेरे गले से आश्चर्य की घुट्टी घुट्टी चीख निकाल दी, "बड़े मामा आप यहाँ**क्या कर रहें है। किसी* को पता चल गया तो?"
मैं बड़े मामा के अनपेक्षित आगमन के प्रभाव से भूल गयी थी की मेरी सलवार खुली हुई थी।
"हम अपनी नेहा बेटी को पेशाब करते देखने के लिए आयें हैं," बड़े मामा के चेहरे पर मासूमियत भरी मुस्कान थी।
"बड़े मामा आप भी कैसे ...मुझे कितनी घबराहट हो रही है," मेरा पेशाब करने की तीव्र इच्छा गायब हो गयी।
"बेटा, पेशाब करने में क्या घबराहट?" बड़े मामा ने मेरी उलझन को नाज़रंदाज़ कर दिया।
मैं भी उनकी शरारत भरे व्यवहार से मचल उठी, "आप कितने शैतान हैं, बड़े मामा?"
बड़े मामा अब तक फर्श पर बैठ गए थे। उन्होंने धीरे से मेरी सलवार मेरे हाथों से ले कर मेरी भरी-भरी टांगों को निवस्त्र कर दिया।
उन्होंने मेरी सलवार के अगले भाग को बड़े प्यार से सूंघा। मैं खिलखिला के हंस पड़ी।
"बड़े मामा हमें आपके सामने सू-सू करते हुए शर्म आएगी," मेरा मुंह शर्म से लाल होने लगा।
"नेहा बेटी, यदि मेरे सामने में पेशाब करने से इतनी उलझन होती है तो मुझसे अपनी चूत कैसे चुदवाओगी?" बड़े मामा अब अश्लील शब्दों का इस्तेमाल कर मेरी वासना को भड़काने के विशेषज्ञ हो गए थे।
मेरी साँसे तेज़-तेज चलने लगीं। मेरे हृदय की धड़कन पूरे स्नानघर में गूंजने लगीं। बड़े मामा ने मेरी कच्छी के सामने गीले दाग को घूर कर देखा। उनकी उंगलियाँ मेरी कच्छी के कमरबंद में फँस गयीं। मैं अब अपने आप को निसहाय महसूस करने लगी। मुझे बचपन से बड़ों के ऊपर अपनी जिम्मेदारी छोड़ने की आदत की वजह से मुझे बड़े मामा की हर इच्छा स्वीकार थी।
बड़े मामा ने मेरी कच्छी उतार कर उसके गीली भाग को अपने मुंह पर रख कर एक गहरी सांस ले कर प्यार से सूंघा। मैं ना चाहते हुए भी मुस्करा उठी और मेरी चूत फिर से रस से भर गयी।
"बड़े मामा, आप कितने गंदे हैं। मेरी गंदी कच्छी को क्यों सूंघ रहे हैं?" मैंने इठला कर बड़े मामा की ओर प्यार से देखा। उनके मेरी कच्छी को सूंघने से मेरी योनि में एक तूफ़ान सा भर उठा।
"बेटा, बहुत ही कम सौभाग्यशाली पिता को अपनी कुंवारी बेटी के चूतरस को सूंघने और चखने का सौभाग्य मिलता है। आप मेरी बेटी की तरह हो। मैं इस अवसर हाथ से जाने थोड़े ही दूंगा!" बड़े मामा ने मेरी कच्छी के गीले भाग को अपनी जीभ से चाट कर मुंह में भर लिया।
मैं वासना के ज्वार से कांप उठी।
बड़े मामा ने मेरी कच्छी को अपने कुर्ते की जेब में रख लिया।
"नेहा बेटा, मैं आपको पेशाब करते हुए देखने के लए बहुत ही उत्सुक हूँ।" बड़े मामा का मुंह मेरी गीली, रस से भरी चूत से थोड़ी ही दूर था।
मैं शर्म से लाल हो गयी। मुझे अपने बड़े मामा के सामने मूतने में बड़ी शर्म आ रही थी। बड़े मामा ने मेरे चूत को धीरे धीरे अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया। उनकी उंगली जैसे ही मेरे मूत्र-छिद्र पर पहुँची मेरा पेशाब करने की इच्छा फिर से तीव्र हो गयी।
"बड़े मामा, मेरा पेशाब लिकने वाला है," मैं बिना जाने पहली बार सू-सू के जगह पेशाब शब्द का इस्तेमाल किया।
बड़े मामा ने फुसफुसा कर कहा, "बेटा, मैं आपके पेशाब की मीथी सुंगंधित धार का इंतज़ार कर रहा हूँ।"
मेरा मूत्राशय पूरा भरा हुआ था और अब मैं उसे बिलकुल भी रोक नहीं सकती थी।
मैंने अपने मूत्राशय को खोल दिया और मेरे छोटे से मुत्रछिद्र से एक झर्झर करती पेशाब की निकल पड़ी। मेरे सुनहरे गर्म पेशाब की गंध सस्नानगृह में फ़ैल गयी।
बड़े मामा का हाथ मेरे मूत्र की धार में था और पूरा मेरे पेशाब से भीग गया। बड़े मामा मेरी जांघें फैला कर मेरी मूतती हुई चूत को एकटक निहारने लगे। बड़े मामा ने अपना मेरे पेशाब से भीगे हाथ को प्यार से चाटा। मैं अब इतनी वासना की आंधी में उलझ गयी थी की मुझे बड़े मामा का मेरा पेशाब चाटना बुरा नहीं लगा। बड़े मामा ने अपना हाथ कई बार मेरे पेशाब में भिगो कर अपने मुंह से चाटा।
अंततः मेरे पेशाब की धार हल्की होने लगी। बड़े मामा ने गहरी सांस ले कर मेरे पेशाब की गंध को सूंघा। मैं हमेशा अपने पेट को कस कर जितना भी मूत्राशय में सू-सू बचा होता है उसे निकाल लेती हूँ। उस दिन मैंने जब अपने मूत्राशय को दबाया तो मेरी बचे हुए पेशाब की धार बड़ी ऊंची हो गयी और बड़े मामा के मुंह पर गिर पड़ी। बड़े मामा का मुंह मेरे पेशाब से भीग गया। बड़े मामा को बिलकुल भी बुरा नहीं लगा। आखिरकार मेरा मूत्राशय खाली हो गया। बड़े मामा ने बड़े प्यार से मेरी पेशाब से गीली चूत को चूम लिया।
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उस सारा दिन मेरी हालत कामुकता से अभिभूत और व्याकुल रही. बड़े मामा ने मेरी हालत और खराब करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा. उन्हें जब भी मुझे अकेले पाने का मौका मिलता वो मुझे अपनी शक्तिशाली बाँहों में जकड़ कर चुमते, मेरे दोनों चूतड़ों और उरोजों अपने मज़बूत बड़े-बड़े हाथों से दबा कर ज़ोरों से मसल देते थे.
अब मैं सारा दिन उनसे मिलने से घबराती थी और बेसब्री से उनसे मिलने की इच्छा से व्याकुल भी रहती थी.
शाम को खाने के ठीक बाद अंजू भाभी और नरेश भैया ने अपने शहर वापस जाने की तय्यारी की वजह से जल्दी खाने की मेज़ छोड़ने की क्षमा-प्रार्थना के बाद सुबह-सवेरे जल्दी प्रस्थान की योजना के लिए अपने कमरे की तरफ चल दिए.
बड़े मामा ने सारे परिवार को गोल्फ खेलने के लिए उत्साहित किया. नानाजी ने अपनी विशाल जागीर पर एक '१८ होल' का 'गोल्फ कोर्स' के अलावा ४ तरण ताल, ३ टेनिस, ४ बैडमिंटन कोर्ट्स भी बनवाये थे.
सब लोगों को गोल्फ का विचार बहुत अच्छा लगा. सारे दो खिलाड़ियों की टीम बनाने में व्यस्त हो गए. मेरे पापा ने मेरी दादीजी के साथ जोड़ा बनाया. छोटे मामा ने मेरी मम्मी, अपनी छोटी बहन, के साथ टीम बनाई. मेरी बुआ, पापा की बड़ी बहन, अपने डैडी, मेरे दादाजी, के साथ जुड़ गयीं.
बड़े मामा जल्दी से मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए और प्यार से मेरे कन्धों पर अपने भारी विशाल हाथ रख कर हम दोनों की जोड़ी की घोषणा कर दी. मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़कने लगा. गोल्फ के खेल के लिए जोड़े बनाने की गहमा-गहमी के बाद बड़े मामा मेरे पास की कुर्सी पर बैठ गए.
थोड़ी देर में जब सब मीठा और चाय या कॉफ़ी का आनंद उठा रहें थे, नौकर ने आ कर बड़े मामा को उनके करीबी दोस्त शर्माजी के टेलीफ़ोन काल की सूचना दी. बड़े मामा ने मेरी दायीं जांघ को जोर से दबाया और मेरी तरफ प्यार से मुस्करा कर फ़ोन-कॉल लेने के लिए बाहर चल गए.
थोड़ी देर में बड़े मामा वापस आ कर मेरे पास कुर्सी पर बैठ गए. उनका हाथ मेजपोश के नीचे फिर से मेरी जांघ पर पहुँच गया.
"भई, मुझे आप सब से माफी मंगनी पड़ेगी. सुरेश [सुरेश शर्मा, बड़े मामा के बहुत करीबे दोस्त थे] के साथ मैंने मछ्ली पकड़ने का वादा किया था कुछ महीनों पहले जो मैं बिलकुल भूल गया. वो बेचारा सुबह झील के बंगले पर पहुँचाने वाला है. नम्रता भाभी [सुरेश अंकल की पत्नी] भी आ रहीं हैं."
मेज़ से 'आह नहीं' , 'सो सैड' 'नहीं आपको अपना वादा निभाना चाहिये' की आवाजें उठीं.
बड़े मामा ने मेरी जांघ दबाई और बोले, "मेरी जोड़ी का खिलाड़ी तो बेचारी अकेली रह जायेगी," फिर मामाजी ने मेरी तरफ मुड़ कर कहा, "नेहा बेटा, नम्रता भाभी आपकी काफी याद कर रहीं थीं. आप चाहो तो मेरे साथ झील की तरफ चल सकते हैं."
मुझे अब सब समझ आ गया. मेरे चेहरा एक आनंद भरी मुस्कान से चमक गया," हाँ! हाँ!, बिलकुल बड़े मामा. मुझे झील पर जाना बहुत अच्छा लगता है. मैं सुरेश अंकल और नम्रता आंटी से बड़ी दिनों से नहीं मिली हूँ. मम्मी क्या मैं कल बड़े मामा के साथ चली जाऊं?"
मैं भी बड़े मामा की योजना में पूरे उत्साह से सहयोग देने लगी.
मम्मी ने हंस कर कहा,"नेहा तुम और तुम्हारे बड़े मामा के बीच में पड़ने वाली मैं कौन होतीं हूँ ? "
बड़े मामा ने मेरे बालों को प्यार से चूमा, "नेहा बेटा, हम लोग सुबह जल्दी निकलेंगे. वापसी या तो परसों अन्यथा उसके एक दिन बाद होगी. इस बात का सुरेश की बिज़नस एमरजेंसी पर निर्भर करता है. आप कम से कम तीन दिनों के कपड़े रख लो."
मेरा गला रोमांच और उत्तेजना से बिलकुल सूख गया. मेरे आवाज़ नहीं निकल पा रही थी. मैंने चुपचाप मुस्करा के हामी में सिर हिला दिया.
बड़े मामाजी के साथ तीन दिन और दो रातों के ख़याल से मेरा सारा शरीर रोमांचित हो गया.
सब लोग शीघ्र ही फिर से वार्तालाप में व्यस्त हो गए। मामा का बड़ा भारी मर्दाना हाथ अभी भी मेरी मोटी गुदाज़ जांघ पर रखा हुआ था। उन्होंने मेरी जांघ को धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया। मेरी साँस मानो गले में अटक गयी। मैंने घबरा के अपने परिवार ले सदस्यों के चेहरों की तरफ देखा। सब मामा और मेरे बीच होती रास-लीला से अनभिज्ञ थे।
मामा के जादू भरे हाथ ने मेरी छूट को रस से भर दिया। मुझे लगा की मेरा पेशाब निकलने वाला है। मैं शौचालय की तरफ के तरफ जाने के लए उठने लगी।
मामा जी ने धीरे से पूछा, "क्या हुआ बेटा?"
"मामाजी मुझे सू-सू करने जाना है।" मैंने पेशाब के लिए बचपन के नाम का उपयोग किया।
बड़े मामा ने ने मेरे गाल पर चुम्मी दे कर मेरी कुर्सी को पीछे खींच कर मुझे जाने की जगह दे दी। मेरे परिवार में सब लोग मुझे प्यार से कभी भी चूम लेते थे। पर अब मेरे दिल में बड़े मामा से चुदवाने की वासना का चोर बैठ गया था। मेरा मुंह शर्म से लाल हो गया। मई जल्दी से अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।
मैंने अपने कुर्ते को अपनी कमर के इर्द-गिर्द खींच लिया। मैं मुश्किल से अपनी सलवार के नाड़े को खोल कर कमोड के अपर बैठने वाली थी की बड़े मामा ने स्नानगृह में प्रविष्ट हो कर मेरे गले से आश्चर्य की घुट्टी घुट्टी चीख निकाल दी, "बड़े मामा आप यहाँ**क्या कर रहें है। किसी* को पता चल गया तो?"
मैं बड़े मामा के अनपेक्षित आगमन के प्रभाव से भूल गयी थी की मेरी सलवार खुली हुई थी।
"हम अपनी नेहा बेटी को पेशाब करते देखने के लिए आयें हैं," बड़े मामा के चेहरे पर मासूमियत भरी मुस्कान थी।
"बड़े मामा आप भी कैसे ...मुझे कितनी घबराहट हो रही है," मेरा पेशाब करने की तीव्र इच्छा गायब हो गयी।
"बेटा, पेशाब करने में क्या घबराहट?" बड़े मामा ने मेरी उलझन को नाज़रंदाज़ कर दिया।
मैं भी उनकी शरारत भरे व्यवहार से मचल उठी, "आप कितने शैतान हैं, बड़े मामा?"
बड़े मामा अब तक फर्श पर बैठ गए थे। उन्होंने धीरे से मेरी सलवार मेरे हाथों से ले कर मेरी भरी-भरी टांगों को निवस्त्र कर दिया।
उन्होंने मेरी सलवार के अगले भाग को बड़े प्यार से सूंघा। मैं खिलखिला के हंस पड़ी।
"बड़े मामा हमें आपके सामने सू-सू करते हुए शर्म आएगी," मेरा मुंह शर्म से लाल होने लगा।
"नेहा बेटी, यदि मेरे सामने में पेशाब करने से इतनी उलझन होती है तो मुझसे अपनी चूत कैसे चुदवाओगी?" बड़े मामा अब अश्लील शब्दों का इस्तेमाल कर मेरी वासना को भड़काने के विशेषज्ञ हो गए थे।
मेरी साँसे तेज़-तेज चलने लगीं। मेरे हृदय की धड़कन पूरे स्नानघर में गूंजने लगीं। बड़े मामा ने मेरी कच्छी के सामने गीले दाग को घूर कर देखा। उनकी उंगलियाँ मेरी कच्छी के कमरबंद में फँस गयीं। मैं अब अपने आप को निसहाय महसूस करने लगी। मुझे बचपन से बड़ों के ऊपर अपनी जिम्मेदारी छोड़ने की आदत की वजह से मुझे बड़े मामा की हर इच्छा स्वीकार थी।
बड़े मामा ने मेरी कच्छी उतार कर उसके गीली भाग को अपने मुंह पर रख कर एक गहरी सांस ले कर प्यार से सूंघा। मैं ना चाहते हुए भी मुस्करा उठी और मेरी चूत फिर से रस से भर गयी।
"बड़े मामा, आप कितने गंदे हैं। मेरी गंदी कच्छी को क्यों सूंघ रहे हैं?" मैंने इठला कर बड़े मामा की ओर प्यार से देखा। उनके मेरी कच्छी को सूंघने से मेरी योनि में एक तूफ़ान सा भर उठा।
"बेटा, बहुत ही कम सौभाग्यशाली पिता को अपनी कुंवारी बेटी के चूतरस को सूंघने और चखने का सौभाग्य मिलता है। आप मेरी बेटी की तरह हो। मैं इस अवसर हाथ से जाने थोड़े ही दूंगा!" बड़े मामा ने मेरी कच्छी के गीले भाग को अपनी जीभ से चाट कर मुंह में भर लिया।
मैं वासना के ज्वार से कांप उठी।
बड़े मामा ने मेरी कच्छी को अपने कुर्ते की जेब में रख लिया।
"नेहा बेटा, मैं आपको पेशाब करते हुए देखने के लए बहुत ही उत्सुक हूँ।" बड़े मामा का मुंह मेरी गीली, रस से भरी चूत से थोड़ी ही दूर था।
मैं शर्म से लाल हो गयी। मुझे अपने बड़े मामा के सामने मूतने में बड़ी शर्म आ रही थी। बड़े मामा ने मेरे चूत को धीरे धीरे अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया। उनकी उंगली जैसे ही मेरे मूत्र-छिद्र पर पहुँची मेरा पेशाब करने की इच्छा फिर से तीव्र हो गयी।
"बड़े मामा, मेरा पेशाब लिकने वाला है," मैं बिना जाने पहली बार सू-सू के जगह पेशाब शब्द का इस्तेमाल किया।
बड़े मामा ने फुसफुसा कर कहा, "बेटा, मैं आपके पेशाब की मीथी सुंगंधित धार का इंतज़ार कर रहा हूँ।"
मेरा मूत्राशय पूरा भरा हुआ था और अब मैं उसे बिलकुल भी रोक नहीं सकती थी।
मैंने अपने मूत्राशय को खोल दिया और मेरे छोटे से मुत्रछिद्र से एक झर्झर करती पेशाब की निकल पड़ी। मेरे सुनहरे गर्म पेशाब की गंध सस्नानगृह में फ़ैल गयी।
बड़े मामा का हाथ मेरे मूत्र की धार में था और पूरा मेरे पेशाब से भीग गया। बड़े मामा मेरी जांघें फैला कर मेरी मूतती हुई चूत को एकटक निहारने लगे। बड़े मामा ने अपना मेरे पेशाब से भीगे हाथ को प्यार से चाटा। मैं अब इतनी वासना की आंधी में उलझ गयी थी की मुझे बड़े मामा का मेरा पेशाब चाटना बुरा नहीं लगा। बड़े मामा ने अपना हाथ कई बार मेरे पेशाब में भिगो कर अपने मुंह से चाटा।
अंततः मेरे पेशाब की धार हल्की होने लगी। बड़े मामा ने गहरी सांस ले कर मेरे पेशाब की गंध को सूंघा। मैं हमेशा अपने पेट को कस कर जितना भी मूत्राशय में सू-सू बचा होता है उसे निकाल लेती हूँ। उस दिन मैंने जब अपने मूत्राशय को दबाया तो मेरी बचे हुए पेशाब की धार बड़ी ऊंची हो गयी और बड़े मामा के मुंह पर गिर पड़ी। बड़े मामा का मुंह मेरे पेशाब से भीग गया। बड़े मामा को बिलकुल भी बुरा नहीं लगा। आखिरकार मेरा मूत्राशय खाली हो गया। बड़े मामा ने बड़े प्यार से मेरी पेशाब से गीली चूत को चूम लिया।
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