02-01-2019, 11:50 AM
भाग - 25
लता ने सिसकते हुए राजू के चेहरे को अपनी चूचियों में ब्लाउज के ऊपर से दबा लिया।
भले ही लता की चूचियाँ बहुत बड़ी नहीं थीं.. पर एकदम कसी हुई थीं।
राजू अब जैसे पागल हो चुका था…
अपने आप ही उसके हाथ लता की चूचियों पर आ गए और ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगे।
लता का रोम-रोम रोमांच से भर उठा। नीचे से उसके चूतड़ ऊपर की तरफ उछल पड़े.. यह सीधा संकेत था कि वो राजू का पहला जोरदार वार झेल कर अब चुदवाने के लिए तड़फ रही है।
राजू लता के ऊपर लेटा हुआ दोनों हाथों से लता की चूचियों को मसलते हुए.. अपने होंठों को लता के ब्लाउज के ऊपर से बाहर आ रही चूचियों पर रगड़ रहा था।
लता की आँखें फिर से मस्ती में बंद होने लगी थीं।
उसकी मादक सिसकियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थीं।
लता ने अपने ब्लाउज के हुक्स खोल कर अपनी चूचियों को आज़ाद कर दिया और एक हाथ से अपनी बाएं चूची पकड़ कर उसका चूचुक राजू के मुँह पर लगा दिया।
लता- यहाँ.. ओह्ह ये ले.. चूस्स्स इसे.. ओह्ह ओह्ह ह आह्ह..
लता ने नीचे से अपनी कमर को हिलाते हुए कहा।
राजू ने भी झट से लता की चूची को आधे से ज्यादा मुँह में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसना चालू कर दिया।
राजू ने अपने लण्ड को आधे से ज्यादा बाहर निकाला और फिर पूरी ताक़त से अन्दर पेल दिया। राजू का लण्ड पिछले आधे घंटे से खड़ा था..
अब राजू के बर्दाश्त से बाहर हुआ जा रहा था।
वो बिस्तर के किनारे खड़ा हो गया और लता की टाँगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर पूरी तरह से फैला दिया।
जिससे उसकी चूत ठीक उसके लण्ड के लेवल पर आ गई और राजू तेज़ी से अपने लण्ड को लता की चूत की अन्दर-बाहर करने लगा।
बरसों बाद चुद रही चूत.. राजू का मोटा लण्ड पाकर मानो ख़ुशी के आँसू बाहर निकालने लगी।
लता की चूत एकदम गीली हो चुकी थी और राजू का लण्ड भी लता की चूत से निकल रहे गाढ़े पानी से एकदम सन गया था।
अब राजू का लण्ड ‘फच-फच’ की आवाज़ करता हुआ तेज़ी से लता की चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था और लता भी अपनी गाण्ड को उछाल कर राजू का साथ देने की कोशिश कर रही थी।
पर राजू के मूसल लण्ड के सामने लता की चूत की नहीं चल रही थे।
उसका पूरा बदन राजू के लगाए हुए हर धक्के के साथ हिल रहा था और लता अपने सर को इधर-उधर पटकते हुए मछली के जैसे तड़फ रही थी।
लता कभी अपनी दोनों चूचियों को मसलती, कभी वो बिस्तर की चादर को अपने हाथों में दबोच लेती।
उसकी चूचियाँ हर धक्के के साथ हिल रही थीं, जिससे देख कर राजू का जोश और बढ़ता जा रहा था।
लता- ओह धीरेए ओह्ह ओह्ह ह आह्ह.. उँघह धीरेए ऊहह फाड़ डाली री मेरी भोसड़ी.. ओह्ह कुसुम तेरे नौकर ने मेराआ..भोसड़ा.. फाड़..दिया.. ओहह.. आह्ह.. धीरेए ओह्ह मर गइई ओह्ह ओह्ह..
लता की चूत ने पानी छोड़ना चालू कर दिया और वो अपनी गाण्ड को पागलों की तरह उछालते हुए झड़ने लगी।
उसने अपने बिखरे हुए बालों को नोचना शुरू कर दिया।
पर राजू अभी भी पूरी रफ़्तार के साथ लता की चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर कर रहा था।
लता का पूरा बदन एकदम से ऐंठ चुका था, पर राजू के ताबड़तोड़ धक्कों ने एक बार फिर से उसकी चूत को ढीला कर दिया था।
लता झड़ने के बाद पूरी तरह शांत हो चुकी थी और अपनी टाँगों को फैलाए हुए राजू के लण्ड को अपनी चूत में मज़े से रही थी।
आज कई सालों बाद वो झड़ने के बाद भी मज़ा ले रही थी।
आख़िर 5 मिनट की और चुदाई के बाद लता दूसरी बार झड़ गई और इस बार राजू के लण्ड ने भी उसकी चूत में अपना वीर्य उड़ेल दिया।
जैसे ही राजू का लण्ड सिकुड़ कर बाहर आया.. लता जल्दी से उठ कर बाहर चली गई.. उसने अपने कपड़े तक ठीक नहीं किए।
राजू ने अपने मुरझाए हुए लण्ड की ओर देखा, वो लता की चूत की कामरस से एकदम भीगा हुआ था।
उसने कमरे में इधर-उधर नज़र दौड़ाई..
तो उसे लता की शाल दरवाजे के पास टंगी हुई नज़र आई.. वो शाल के पास गया और उसके एक छोर को पकड़ कर उससे अपना लण्ड साफ़ करने लगा.. तभी कुसुम अचानक से कमरे में आ गई।
उसने राजू के लण्ड की तरफ देखा।
जो शिकार करने के बाद लटक रहा था।
कुसुम- क्यों कैसी लगी मेरे माँ की चूत?
राजू कुसुम की बात सुन कर एकदम से हैरान रह गया.. उससे यकीन नहीं हो रहा था कि कुसुम उससे अपनी माँ की चूत की बारे में पूछ रही है।
‘आज रात वो तेरे पास ही लेटेगी.. साली की चूत सुजा दे चोद-चोद कर.. इतना चोद कि सुबह चल भी ना पाए।’
राजू कुसुम की ऐसे बातें सुन कर मुँह फाड़े बुत की तरह खड़ा था.. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कुसुम ये सब कह रही है।
‘जा देख कर साली नीचे मूतने गई है। अगर तुम मुझे अपनी मालकिन मानते हो तो जहाँ मिले वहीं पटक कर चोद देना..’
राजू कुसुम की बात का जवाब दिए बिना अपना पजामा पहने नंगा ही नीचे चला गया.. जब वो आँगन में पहुँचा तो उसे गुसलखाने से कुछ आवाज़ सुनाई दी।
वो धीरे-धीरे गुसलखाने के तरफ बढ़ा और लता के मूतने की सुरीली सी आवाज़ उसके कानों में पड़ी…
राजू गुसलखाने के दरवाजे के पास खड़ा होकर अन्दर झाँकने लगा।
अन्दर का नज़ारा देख कर एक बार फिर से राजू का लण्ड पूरे उफान पर आ चुका था।
लता मूतने के बाद झुक कर अपनी चूत को एक कपड़े से साफ़ कर रही थी.. पीछे खड़े राजू के सामने लता के बड़े-बड़े चूतड़ों के बीच लबलबा रही चूत का गुलाबी छेद उस पर कहर बरपा रहा था।
लता को इस बात का पता नहीं था कि राजू उसके पीछे खड़े होकर उसकी बड़ी गाण्ड को देख रहा है।
अगले ही पल राजू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड किसी सांप की तरह फुंफकार रहा था।
गुसलखाने के अन्दर एक बड़ा सा पुराना मेज रखा हुआ था.. जिस पर कुछ पानी के मटके और लालटेन रखी हुई थी।
लता अपनी चूत की फांकों को अपनी उँगलियों से सहला रही थी, उसके होंठों पर ख़ुशी से भरी हुई मुस्कान फैली हुई थी।
अचानक से उससे अपनी चूत पर एक बार फिर से राजू के लण्ड के मोटे और गरम सुपारे का अहसास हुआ.. जिसे महसूस करते ही.. उसके पूरे बदन में मस्ती की कंपकंपी दौड़ गई।
‘आह क्या कर रहा है ओह्ह..छोड़ मुझे!’
इसके पहले कि लता कुछ संभल पाती.. राजू का लण्ड उसकी चूत की फांकों को फैला कर चूत के छेद पर जा लगा।
‘ओह्ह आह सीईईई..’ लता के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।
लता ने एक बार अपनी गर्दन पीछे घुमा कर राजू की तरफ अपनी वासना से भरी मस्त आँखों से देखा और मुस्करा कर फिर से आगे देखते हुए.. अपने दोनों हाथों को उस पुराने मेज पर टिका कर झुक गई।
फिर बड़ी ही अदा के साथ अपने पैरों को फैला कर पीछे से अपनी गाण्ड ऊपर की तरफ उठा लिया।
अब राजू का लण्ड बिल्कुल लता की चूत के सामने था।
राजू ने लता के चूतड़ों को दोनों तरफ से पकड़ कर फैला दिया और अपने लण्ड को चूत के छेद पर टिका दिया।
इससे पहले कि राजू अपना लण्ड लता की चूत में पेलने के लिए धक्का मारता.. लता ने कामातुर होकर अपनी गाण्ड को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया।
राजू के लण्ड का मोटा सुपारा लता की चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुस गया।
लता अपनी चूत के छेद के छल्ले को राजू के लण्ड के मोटे सुपारे पर कसा हुआ साफ़ महसूस कर पा रही थी।
कामवासना का आनन्द चरम पर पहुँच गया।
चूत ने एक बार फिर से अपने कामरस का खजाना खोल दिया।
लता की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था, उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी और वो राजू के लण्ड को जड़ तक अपनी चूत में लेने के लिए मचल रही थी।
‘ओह्ह आह.. घुसाआ.. दे रे.. छोरे ओह फाड़ दे.. मेरी चूत ओह्ह आह… और ज़ोर से मसल मेरे गाण्ड को ओह्ह हाँ.. ऐसे ही…’
राजू बुरी तरह से अपने दोनों हाथों से लता की गाण्ड को फैला कर मसल रहा था। उसके लण्ड का सुपारा लता की चूत में फँसा हुआ, लता को मदहोश किए जा रहा था।
राजू को भी अपने लण्ड के सुपारे पर लता की चूत की गरमी साफ़ महसूस हो रही थी।
उसने लता के चूतड़ों को दबोच कर दोनों तरफ फैला लिया और अपनी गाण्ड को तेज़ी से आगे की तरफ धकेला। राजू के लण्ड का सुपारा लता की चूत की दीवारों को चीरता हुआ आगे बढ़ गया, लता के मुँह से एक घुटी हुई चीख निकल गई।
जो गुसलखाने के दीवारों में ही दब कर रह गई।
राजू का आधे से अधिक लण्ड लता की चूत में समा चुका था।
‘ओह्ह आपकी चूत बहुत कसी हुई है.. बड़ी मालकिन… ओह्ह मेरा लण्ड फँस गया है.. ओह्ह..’
लता ने पीछे की तरफ अपनी गाण्ड को ठेल कर अपनी चूत में राजू का मोटा लण्ड लेते हुए कहा- आहह.. आह जालिम मेरी चूत.. ओह फाड़ दी… ओह्ह ओह तेरे इस मूसल लण्ड की तो मैं आह.. आह.. कायल हो गई उह्ह.. ओह्ह चोद दे.. मुझे.. और तेज धक्के मार..
राजू भी अब नौकर और मालिक की मर्यादाओं को भूल कर लता के चूतड़ों को फैला कर अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था।
लता का ब्लाउज अभी भी आगे से खुला हुआ था और राजू के हर जबरदस्त धक्के के साथ उसकी चूचियाँ तेज़ी से हिल रही थीं।
‘ओह रुक छोरे.. ज़रा ओह्ह ओह्ह.. मैं खड़ी-खड़ी थक गई हूँ..ओह्ह ओह्ह आह्ह..’
राजू ने अपने लण्ड को लता की चूत से बाहर निकाल लिया.. लता सीधी होकर उसकी तरफ पलटी और राजू के होंठों पर अपने रसीले होंठों को रखते हुए उसे से चिपक गई।
राजू ने उसकी कमर से अपनी बाँहों को पीछे ले जाकर उसके चूतड़ों को दबोच-दबोच कर मसलना शुरू कर दिया।
राजू का विकराल लण्ड लता के पेट के निचले हिस्से पर रगड़ खा रहा था।
‘चल छोरे दूसरे कमरे में चलते हैं।’ लता ने चुंबन तोड़ते हुए कहा और फिर अपने कपड़ों की परवाह किए बिना गुसलखाने से निकल कर एक कमरे में आ गई, यहाँ पर अब वो अकेली सोती थी।
लता ने सिसकते हुए राजू के चेहरे को अपनी चूचियों में ब्लाउज के ऊपर से दबा लिया।
भले ही लता की चूचियाँ बहुत बड़ी नहीं थीं.. पर एकदम कसी हुई थीं।
राजू अब जैसे पागल हो चुका था…
अपने आप ही उसके हाथ लता की चूचियों पर आ गए और ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगे।
लता का रोम-रोम रोमांच से भर उठा। नीचे से उसके चूतड़ ऊपर की तरफ उछल पड़े.. यह सीधा संकेत था कि वो राजू का पहला जोरदार वार झेल कर अब चुदवाने के लिए तड़फ रही है।
राजू लता के ऊपर लेटा हुआ दोनों हाथों से लता की चूचियों को मसलते हुए.. अपने होंठों को लता के ब्लाउज के ऊपर से बाहर आ रही चूचियों पर रगड़ रहा था।
लता की आँखें फिर से मस्ती में बंद होने लगी थीं।
उसकी मादक सिसकियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थीं।
लता ने अपने ब्लाउज के हुक्स खोल कर अपनी चूचियों को आज़ाद कर दिया और एक हाथ से अपनी बाएं चूची पकड़ कर उसका चूचुक राजू के मुँह पर लगा दिया।
लता- यहाँ.. ओह्ह ये ले.. चूस्स्स इसे.. ओह्ह ओह्ह ह आह्ह..
लता ने नीचे से अपनी कमर को हिलाते हुए कहा।
राजू ने भी झट से लता की चूची को आधे से ज्यादा मुँह में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसना चालू कर दिया।
राजू ने अपने लण्ड को आधे से ज्यादा बाहर निकाला और फिर पूरी ताक़त से अन्दर पेल दिया। राजू का लण्ड पिछले आधे घंटे से खड़ा था..
अब राजू के बर्दाश्त से बाहर हुआ जा रहा था।
वो बिस्तर के किनारे खड़ा हो गया और लता की टाँगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर पूरी तरह से फैला दिया।
जिससे उसकी चूत ठीक उसके लण्ड के लेवल पर आ गई और राजू तेज़ी से अपने लण्ड को लता की चूत की अन्दर-बाहर करने लगा।
बरसों बाद चुद रही चूत.. राजू का मोटा लण्ड पाकर मानो ख़ुशी के आँसू बाहर निकालने लगी।
लता की चूत एकदम गीली हो चुकी थी और राजू का लण्ड भी लता की चूत से निकल रहे गाढ़े पानी से एकदम सन गया था।
अब राजू का लण्ड ‘फच-फच’ की आवाज़ करता हुआ तेज़ी से लता की चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था और लता भी अपनी गाण्ड को उछाल कर राजू का साथ देने की कोशिश कर रही थी।
पर राजू के मूसल लण्ड के सामने लता की चूत की नहीं चल रही थे।
उसका पूरा बदन राजू के लगाए हुए हर धक्के के साथ हिल रहा था और लता अपने सर को इधर-उधर पटकते हुए मछली के जैसे तड़फ रही थी।
लता कभी अपनी दोनों चूचियों को मसलती, कभी वो बिस्तर की चादर को अपने हाथों में दबोच लेती।
उसकी चूचियाँ हर धक्के के साथ हिल रही थीं, जिससे देख कर राजू का जोश और बढ़ता जा रहा था।
लता- ओह धीरेए ओह्ह ओह्ह ह आह्ह.. उँघह धीरेए ऊहह फाड़ डाली री मेरी भोसड़ी.. ओह्ह कुसुम तेरे नौकर ने मेराआ..भोसड़ा.. फाड़..दिया.. ओहह.. आह्ह.. धीरेए ओह्ह मर गइई ओह्ह ओह्ह..
लता की चूत ने पानी छोड़ना चालू कर दिया और वो अपनी गाण्ड को पागलों की तरह उछालते हुए झड़ने लगी।
उसने अपने बिखरे हुए बालों को नोचना शुरू कर दिया।
पर राजू अभी भी पूरी रफ़्तार के साथ लता की चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर कर रहा था।
लता का पूरा बदन एकदम से ऐंठ चुका था, पर राजू के ताबड़तोड़ धक्कों ने एक बार फिर से उसकी चूत को ढीला कर दिया था।
लता झड़ने के बाद पूरी तरह शांत हो चुकी थी और अपनी टाँगों को फैलाए हुए राजू के लण्ड को अपनी चूत में मज़े से रही थी।
आज कई सालों बाद वो झड़ने के बाद भी मज़ा ले रही थी।
आख़िर 5 मिनट की और चुदाई के बाद लता दूसरी बार झड़ गई और इस बार राजू के लण्ड ने भी उसकी चूत में अपना वीर्य उड़ेल दिया।
जैसे ही राजू का लण्ड सिकुड़ कर बाहर आया.. लता जल्दी से उठ कर बाहर चली गई.. उसने अपने कपड़े तक ठीक नहीं किए।
राजू ने अपने मुरझाए हुए लण्ड की ओर देखा, वो लता की चूत की कामरस से एकदम भीगा हुआ था।
उसने कमरे में इधर-उधर नज़र दौड़ाई..
तो उसे लता की शाल दरवाजे के पास टंगी हुई नज़र आई.. वो शाल के पास गया और उसके एक छोर को पकड़ कर उससे अपना लण्ड साफ़ करने लगा.. तभी कुसुम अचानक से कमरे में आ गई।
उसने राजू के लण्ड की तरफ देखा।
जो शिकार करने के बाद लटक रहा था।
कुसुम- क्यों कैसी लगी मेरे माँ की चूत?
राजू कुसुम की बात सुन कर एकदम से हैरान रह गया.. उससे यकीन नहीं हो रहा था कि कुसुम उससे अपनी माँ की चूत की बारे में पूछ रही है।
‘आज रात वो तेरे पास ही लेटेगी.. साली की चूत सुजा दे चोद-चोद कर.. इतना चोद कि सुबह चल भी ना पाए।’
राजू कुसुम की ऐसे बातें सुन कर मुँह फाड़े बुत की तरह खड़ा था.. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कुसुम ये सब कह रही है।
‘जा देख कर साली नीचे मूतने गई है। अगर तुम मुझे अपनी मालकिन मानते हो तो जहाँ मिले वहीं पटक कर चोद देना..’
राजू कुसुम की बात का जवाब दिए बिना अपना पजामा पहने नंगा ही नीचे चला गया.. जब वो आँगन में पहुँचा तो उसे गुसलखाने से कुछ आवाज़ सुनाई दी।
वो धीरे-धीरे गुसलखाने के तरफ बढ़ा और लता के मूतने की सुरीली सी आवाज़ उसके कानों में पड़ी…
राजू गुसलखाने के दरवाजे के पास खड़ा होकर अन्दर झाँकने लगा।
अन्दर का नज़ारा देख कर एक बार फिर से राजू का लण्ड पूरे उफान पर आ चुका था।
लता मूतने के बाद झुक कर अपनी चूत को एक कपड़े से साफ़ कर रही थी.. पीछे खड़े राजू के सामने लता के बड़े-बड़े चूतड़ों के बीच लबलबा रही चूत का गुलाबी छेद उस पर कहर बरपा रहा था।
लता को इस बात का पता नहीं था कि राजू उसके पीछे खड़े होकर उसकी बड़ी गाण्ड को देख रहा है।
अगले ही पल राजू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड किसी सांप की तरह फुंफकार रहा था।
गुसलखाने के अन्दर एक बड़ा सा पुराना मेज रखा हुआ था.. जिस पर कुछ पानी के मटके और लालटेन रखी हुई थी।
लता अपनी चूत की फांकों को अपनी उँगलियों से सहला रही थी, उसके होंठों पर ख़ुशी से भरी हुई मुस्कान फैली हुई थी।
अचानक से उससे अपनी चूत पर एक बार फिर से राजू के लण्ड के मोटे और गरम सुपारे का अहसास हुआ.. जिसे महसूस करते ही.. उसके पूरे बदन में मस्ती की कंपकंपी दौड़ गई।
‘आह क्या कर रहा है ओह्ह..छोड़ मुझे!’
इसके पहले कि लता कुछ संभल पाती.. राजू का लण्ड उसकी चूत की फांकों को फैला कर चूत के छेद पर जा लगा।
‘ओह्ह आह सीईईई..’ लता के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।
लता ने एक बार अपनी गर्दन पीछे घुमा कर राजू की तरफ अपनी वासना से भरी मस्त आँखों से देखा और मुस्करा कर फिर से आगे देखते हुए.. अपने दोनों हाथों को उस पुराने मेज पर टिका कर झुक गई।
फिर बड़ी ही अदा के साथ अपने पैरों को फैला कर पीछे से अपनी गाण्ड ऊपर की तरफ उठा लिया।
अब राजू का लण्ड बिल्कुल लता की चूत के सामने था।
राजू ने लता के चूतड़ों को दोनों तरफ से पकड़ कर फैला दिया और अपने लण्ड को चूत के छेद पर टिका दिया।
इससे पहले कि राजू अपना लण्ड लता की चूत में पेलने के लिए धक्का मारता.. लता ने कामातुर होकर अपनी गाण्ड को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया।
राजू के लण्ड का मोटा सुपारा लता की चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुस गया।
लता अपनी चूत के छेद के छल्ले को राजू के लण्ड के मोटे सुपारे पर कसा हुआ साफ़ महसूस कर पा रही थी।
कामवासना का आनन्द चरम पर पहुँच गया।
चूत ने एक बार फिर से अपने कामरस का खजाना खोल दिया।
लता की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था, उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी और वो राजू के लण्ड को जड़ तक अपनी चूत में लेने के लिए मचल रही थी।
‘ओह्ह आह.. घुसाआ.. दे रे.. छोरे ओह फाड़ दे.. मेरी चूत ओह्ह आह… और ज़ोर से मसल मेरे गाण्ड को ओह्ह हाँ.. ऐसे ही…’
राजू बुरी तरह से अपने दोनों हाथों से लता की गाण्ड को फैला कर मसल रहा था। उसके लण्ड का सुपारा लता की चूत में फँसा हुआ, लता को मदहोश किए जा रहा था।
राजू को भी अपने लण्ड के सुपारे पर लता की चूत की गरमी साफ़ महसूस हो रही थी।
उसने लता के चूतड़ों को दबोच कर दोनों तरफ फैला लिया और अपनी गाण्ड को तेज़ी से आगे की तरफ धकेला। राजू के लण्ड का सुपारा लता की चूत की दीवारों को चीरता हुआ आगे बढ़ गया, लता के मुँह से एक घुटी हुई चीख निकल गई।
जो गुसलखाने के दीवारों में ही दब कर रह गई।
राजू का आधे से अधिक लण्ड लता की चूत में समा चुका था।
‘ओह्ह आपकी चूत बहुत कसी हुई है.. बड़ी मालकिन… ओह्ह मेरा लण्ड फँस गया है.. ओह्ह..’
लता ने पीछे की तरफ अपनी गाण्ड को ठेल कर अपनी चूत में राजू का मोटा लण्ड लेते हुए कहा- आहह.. आह जालिम मेरी चूत.. ओह फाड़ दी… ओह्ह ओह तेरे इस मूसल लण्ड की तो मैं आह.. आह.. कायल हो गई उह्ह.. ओह्ह चोद दे.. मुझे.. और तेज धक्के मार..
राजू भी अब नौकर और मालिक की मर्यादाओं को भूल कर लता के चूतड़ों को फैला कर अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था।
लता का ब्लाउज अभी भी आगे से खुला हुआ था और राजू के हर जबरदस्त धक्के के साथ उसकी चूचियाँ तेज़ी से हिल रही थीं।
‘ओह रुक छोरे.. ज़रा ओह्ह ओह्ह.. मैं खड़ी-खड़ी थक गई हूँ..ओह्ह ओह्ह आह्ह..’
राजू ने अपने लण्ड को लता की चूत से बाहर निकाल लिया.. लता सीधी होकर उसकी तरफ पलटी और राजू के होंठों पर अपने रसीले होंठों को रखते हुए उसे से चिपक गई।
राजू ने उसकी कमर से अपनी बाँहों को पीछे ले जाकर उसके चूतड़ों को दबोच-दबोच कर मसलना शुरू कर दिया।
राजू का विकराल लण्ड लता के पेट के निचले हिस्से पर रगड़ खा रहा था।
‘चल छोरे दूसरे कमरे में चलते हैं।’ लता ने चुंबन तोड़ते हुए कहा और फिर अपने कपड़ों की परवाह किए बिना गुसलखाने से निकल कर एक कमरे में आ गई, यहाँ पर अब वो अकेली सोती थी।